सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, August 7, 2010

Is it fair ? जो लोग कहते हैं कि हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वे भी आराम से बर्दाश्त कर लेते हैं बल्कि नास्तिकों से भी बढ़कर खुद हिन्दू धर्मग्रंथों पर प्रहार करते हैं। - Anwer Jamal

मैं एक मनुवंशी हूं और मनुवादी भी सो रामवादी स्वतः ही हूं। श्री रामचन्द्र जी मेरे पूर्वज हैं , उनका मैं आदर करता हूं और प्यार भी। इस्लाम मेरा दीन है । इस्लाम अपने पूर्वजों से प्यार करने से नहीं रोकता बल्कि उनसे प्यार करने की प्रेरणा देता है। वह रोकता है अज्ञानता से , शिर्क से। उपासक को उपासनीय बना लेना ही शिर्क है। श्री रामचन्द्र जी जीवन भर ईश्वर की उपासना करते रहे, उससे सहायता की प्रार्थना करते रहे। मूर्तिपूजा पहले आर्यों में नहीं थी, जैनियों की देखा देखी सनातन धर्मियों ने भी करनी शुरू कर दी। हिन्दुओं में भी बहुत लोग हैं जो मूर्तिपूजा नहीं करते लेकिन श्री रामचन्द्र जी का आदर करते हैं।
श्री रामचन्द्र जी का आदर करने के लिये मूर्तिपूजा करना ज़रूरी नहीं है।
 सो मैं मूर्तिपूजा नहीं करता लेकिन श्री रामचन्द्र जी का आदर-सम्मान करता हूं। इसमें कोई विरोधाभास नहीं है। मैंने सुना है कि मलेशिया और इंडोनेशिया के मुसलमान भी श्री रामचन्द्र जी की कथा पढ़ते-सुनते हैं और आदर-सम्मान भी करते हैं। यह हर्ष का विषय है।
मैं बाल्मीकि रामायण को एक उत्तम कोटि का काव्य मानता हूं। इसे मैंने अपने घर की अलमारी में सबसे बुलंद ख़ाने में रखा हुआ है जहां मैं अन्य इस्लामी किताबें रखता हूं ताकि बच्चों के हाथ से सुरक्षित रहे।
बाल्मीकि के सारे वक्तव्यों से सहमत न होने के बावजूद मैं बाल्मीकि रामायण को पसंद करता हूं क्योंकि इसमें श्री रामचन्द्र जी के चरित्र की झलक मौजूद है। हिंदुस्तान में प्रचलित सारी रामकथाएं इसी पर आधारित या प्रेरित हैं और वे सब इसके बाद की रचनाएं हैं।
श्री रामचन्द्र जी हिन्दुओं के साथ मुसलमानों के भी पूर्वज हैं। मुसलमानों को अपने पूर्वजों के बारे में पढ़ने, विचारने और दूसरों से सहमत या असहमत का पूरा अधिकार है।
श्री रामचन्द्र जी की कथा रामायण के अलावा पुराणों में भी आई है। मैं पुराणों की भी बहुत सी बातों को सत्य मानता हूं। मैं जानता हूं कि मेरे ऐसा कहने से ‘तत्व‘ से नावाक़िफ़ मुसलमान मुझसे नाराज़ हो सकते हैं और हिन्दू मुझे कभी सत्यवक्ता स्वीकारने वाले नहीं। इसके बावजूद मैं यह सब कह रहा हूं क्योंकि हरेक आदमी भेड़चाल का शिकार नहीं होता, कोई कोई गडरिया अर्थात बुद्धिजीवी भी होता है।
एक मुसलमान अगर श्री रामचन्द्र जी की तारीफ़ भी करे तब भी उसकी मंशा तक पर सवाल खड़े किये जाते हैं जबकि हिंदू
ईश्वर-अल्लाह को ताले में बंद रखने की बात कहे तो आयं-बायं-शायं कमेंट करके गुज़र जाते हैं और बेग़ैरती की हद तो तब होती है जब मालिक से साथ बेहूदगी करने को उसके साथ प्यार जताना बताया जाता है।
जो लोग कहते हैं कि हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वे भी आराम से बर्दाश्त कर लेते हैं बल्कि नास्तिकों से भी बढ़कर खुद हिन्दू धर्मग्रंथों पर प्रहार करते हैं। देखिये-
इसे यहाँ प्रस्तुत करके आप कहना क्या चाहते हैं ? पुराण तो गधों के लिए ही लिखे गए हैं -आप को क्या कहा जाय ?http://vedictoap.blogspot.com/2010/07/blog-post_27.html    

1-ब्लॉग जगत के वे सभी लोग जिन्हें मेरे ब्लॉग पर आते ही संजयदृष्टि प्राप्त हो जाती है, इन जैसे कमेंट्स पर, पोस्ट्स पर धृतराष्ट्र का पार्ट प्ले करने लगते हैं , क्यों ?
2-मैं विनतीपूर्वक आपसे यह पूछना चाहता हूं, अगर पूछने पर पाबंदी न हो तो । आप लोग मुझ जैसे मनुवादी कहने वाले मुसलमान का भी हौसला पस्त करने के प्रयास करेंगे तो दूसरे ईमानदार मुसलमानों
को कैसे जोड़ पाएंगे ?
3-कौन और क्यूं है राम ? इस पोस्ट पर किसी ने श्री अरविन्द मिश्रा जी से यह न कहा कि आप हिंदू और मुसलमानों की तुलना न करें लेकिन जब मैं तुलना करके कहूंगा कि यह वक्तव्य कबीर साहब का नहीं है, उनके ग्रंथ में यह है ही नहीं तो यही लोग ऐतराज़ करने आ जाएंगे।
  • साथ ही अपनी ओर से पहुंचने वाली हरेक पीड़ा पर आपसे क्षमा याचना भी करता हूं।

54 comments:

सहसपुरिया said...

विचार करने लायक़...

सहसपुरिया said...

श्री रामचन्द्र जी हिन्दुओं के साथ मुसलमानों के भी पूर्वज हैं। मुसलमानों को अपने पूर्वजों के बारे में पढ़ने, विचारने और दूसरों से सहमत या असहमत का पूरा अधिकार है।

Mahak said...

@अनवर जी ,

हमने तो कुरीतियों और कुप्रथाओं के विरुद्ध लिखी जाने वाली आपकी हर पोस्ट का समर्थन ही किया है बिना ये देखे की वो पोस्ट हिंदू कुरीति के विरोध में है या फिर मुस्लिम कुरीति के और आपको याद होगा आपकी एक पोस्ट पर इस बात को स्पष्टतापूर्वक माना है की हर धार्मिक ग्रन्थ में कई बातें आज के समय के अनुकूल ना होकर अप्रासंगिक हैं

और जहाँ तक नास्तिक बुद्धिजीवियों की बात है तो उन्हें कहकर कोई फायदा नहीं है , वो नहीं मानेंगे ,हम किसी से भी ज़बरदस्ती नहीं मनवा सकते हैं की ईश्वर है और क्योंकि हम मानते हैं तो तुम भी मानो, वो नहीं मानते उनकी मर्ज़ी और आपके लफ़्ज़ों में कहें तो हर एक को मालिक के सामने जवाब खुद ही देना है तो उन्हें भी ये जवाब वहाँ पर खुद ही देने होंगे

DR. ANWER JAMAL said...

4- प्रिय महक जी ! मैं शुरू से ही आपकी निष्पक्षता का गवाह और क़द्रदान रहा हूं। आप ज़रा ध्यान दीजिये , यहां केवल नास्तिकों की नहीं बल्कि ऐसे आस्तिकों की बात हो रही है जो हिन्दू आस्थाओं की रक्षा के लिये शस्त्र के साथ शास्त्र भी रखते हैं। क्या ये सारे हथियार केवल मुसलमानों के ही लिये हैं ?

Sharif Khan said...

आपकी बातें विचार योग्य हैं.

Mahak said...

@शरीफ खान जी

आपको ब्लॉग-जगत में ये नया भूचाल लाने की क्या ज़रूरत थी ?, एक बार कोर्ट का फैसला आ जाने देते उसके बाद ये सब लिखते तो ज्यादा बेहतर रहता ,
शाहनवाज़ भाई ने तो पहले ही चेता दिया था की इस प्रकार की पोस्ट्स से और चर्चाओं से ब्लॉग जगत में कड़वाहट ही बढ़ेगी और कुछ नहीं ,

साथ ही जब आदरणीय अनवर जमाल जी और संजय बेंगाणी जी ने पहले ही कह दिया था की दोनों पक्षों को कानून का फैसला मानना चाहिए और कानून के अंतर्गत ही मामले को आगे बढ़ाया जाना चाहिए उसके बावजूद भी आप दो पार्ट्स और लिख गए

अब आपकी इन पोस्ट्स से शुरे हुए इस विवाद से ब्लॉग-जगत में एक बेहद गंभीर ध्रुवीकरण होने का संकट पैदा हो गया है

अगर मेरी किसी बात से आपको दुःख पहुंचा हो तो क्षमांप्रार्थी हूँ लेकिन कहना चाहूँगा की न्यायलय का फैसला आने तक इस प्रकार के बेहद संवेदनशील मुद्दे को छेड़ना ना तो सही था और ना ही इसकी आवश्यकता थी

महक

MLA said...

मोहतरम बुज़ुर्ग अनवर जमाल साहब,

आप हमेशा ही अच्छा लिखते हैं, और मैं आपको अक्सर पढता भी हूँ. आज मैंने ब्लॉग जगत के दोगले पन पर एक लेख लिखा है और आप वहां हाज़िर भी हुए, लेकिन आपने मेरी पोस्ट के बारे में कुछ नहीं कहा. वैसे आपकी पोस्ट ही लगता है मेरी पोस्ट की कहानी कह रही है.

मैंने कभी लेख लिखने की सोची नहीं थी, लिखना अपने बस की बात कहाँ. मैं तो कमेंट्स ही सही से नहीं लिख पाता हूँ, लेकिन पिछले कुछ महीनो से ब्लॉग जगत पर दोगले पन को देख रहा था.

मैं किसी के भी मज़हब को बुरा कहने को बुरा समझता हूँ, लेकिन लोग हमें तो बुरा कहते हैं और जब उनके अपने वाही काम करते हैं तो मज़े ले-लेकर तारीफें करते हैं. इसी लिए जो महसूस किया वह लिखा.

http://mla-delhi.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

MLA said...

महक साहब और एनी भाई-बंधुओं से भी अनुरोध हैं की पढ़े और अगर मैंने गलत लिखा है तो ज़रूर बताएं

MLA said...

अनवर साहब,

ब्लॉग जगत के इस दोगले पन के खिलाफ आज मैं ऐलान कर रहा हूँ की जब तक यहाँ के ब्लोगर केवल दूसरों के बुरे को बुरे कहने की जगह हर बुरे को बुरा (चाहे अपना भाई ही बुरा काम क्यों ना करे) नहीं कहेंगे मैं तब तक हर बुरी बात की भी ना चाहते हुई भी तरफदारी करूँगा. और समर्थन में खूब साड़ी टिपण्णी भी करूँगा.

मुझे यकीन है एक दिन यह लोग ज़रूर समझेंगे और बुराई को दूर करेंगे.

MLA said...

लोगों को "मेरा खून, खून और दुसरे का पानी" वाली सोच से ऊपर उठाना पड़ेगा.

प्रवीण said...

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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,

आपने क्योंकि मेरी पोस्ट का लिंक देकर सवाल पूछे हैं तो मेरा जवाब देना जरूरी है...

यह रहा मेरा जवाब...

*** न तो प्रकाश गोविन्द जी ने ईश्वर / अल्लाह को गाली दी है और न प्रवीण शाह चटखारे ले रहा है... अगर आपको ऐसा लगता है तो यों समझिये कि समझ-समझ का फेर है यह...

*** जब आप किसी पर इस तरह का आक्षेप करते हैं तो उस ब्लॉगर के द्वारा पहले लिखे आलेख-टिप्पणियों को भी पढ़ें... फिर मन बनायें...

*** हम दोनों लोग जो कहना चाह रहे हैं उसे वही समझ सकता है जो धर्म के मर्म तक पहुँच सका हो...

*** रही बात 'ईश्वर' की ओर से आपको बुरा लगने की... तो ठन्ड करो मित्र... 'उस' ने तो अपनी ओर से आपको नियुक्त किया नहीं... वैसे भी धर्म कहता है कि फैसले के दिन 'वह' न्याय करेगा... अब हम तो वही कहेंगे न जो अपनी समझ से हमें सही लगता है... अगर 'उसे' हमारा आचरण व बातें बुरी लगी होंगी... तो खौलते तेल की कढ़ाही में डुबकियों के लिये हैं तैयार हम... आप आनंद से देखियेगा!

*** लेकिन यह भी याद रहे कि अगर 'वह' है तो मुझे पूरा भरोसा है कि मैं उसका सबसे 'प्यारा बच्चा' हूँ... क्योंकि तरह तरह के सवाल पूछ कर... बार बार उसको ताने देकर, शिकायत कर के, 'उस' के होने पर प्रश्नचिन्ह लगा कर... हर विद्रूप-हर असमानता-हर यथास्थिति-हर भाई-भाई के बीच दूरी बनाये रखने के प्रपंच जो 'उस' के नाम पर आप या आप जैसे ही दूसरे कुछ लोग करते हैं, उन सब प्रपंचों के लिये 'उस' को भी बराबर का भागीदार मान कर मैंने 'उस' के मूल चरित्र को उघाड़ कर रख दिया है... जबकि बाकियों ने पुस्तकों के लिखे मात्र पर यकीन कर लिया है... इस लिये फैसले के दिन हमारी जगहें बदल भी सकती हैं... सोचियेगा जरूर...!!!

*** माता-पिता से मिला नाम मेरी पहचान है... परंतु मैं स्वयं अपने को महज एक अदना इंसाफ पसंद, साफ-साफ मुंह पर कहने वाला भारतीय 'इंसान' ही कहलाना पसंद करूंगा... आप यदि मुझ पर 'हिन्दू' मान कर आक्षेप लगा रहे हैं तो यह मेरी विफलता है...


आभार!


...




Shahvez Malik said...

Bahut Achcha Janab Aise hi jari rakhiye.

DR. ANWER JAMAL said...

@ प्रिय प्रवीण जी ! आप एक न्यायप्रिय इंसान हैं, ऐसा मैं जानता-मानता हूं। आप कहते हैं कि धर्म ने कभी न्याय नहीं किया। आपने कहा और किसी ने भी ऐतराज़ न किया और न ही इसे ‘हिन्दू आस्थाओं‘ पर प्रहार माना गया।जबकि मैं कहता हूं कि ‘धर्म‘ ने, ऋषियों ने सदा न्याय ही किया, अन्याय किया विकारी लोगों ने और उनका कर्म पाप कहलायेगा न कि धर्म। इसी आधार पर ‘मूल वैदिक धर्म‘ को मैं ईश्वरीय और न्याययुक्त मानता हूं। इसके बावजूद मुझे हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार करने वाला माना जाता है। आप जैसे मेरे नियमित पाठक भी मुझे उलाहना दें , इससे ज़्यादा दुखदायी क्या हो सकता है ?
*** आप राष्ट्रपति के लिये जो लैंग्वेज यूज़ नहीं कर सकते, उसे सारी सृष्टि के मालिक के लिये भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। आप नास्तिक हैं, आप उसका न होना मानते हैं लेकिन आस्तिकों के लिये तो वह मौजूद है। वे आपके द्वारा उसका उपहास क्यों बर्दाश्त करेंगे भला ?
सृष्टिकर्ता को अरबी में अल्लाह कहते हैं और संस्कृत में ईश्वर और राम। मैंने कभी न तो उसके बारे में खुद हंसी-मज़ाक़ किया है और न ही दूसरों की ‘हरकतों‘ को पसंद ही किया है।
सृष्टिकर्ता राम की मैं उपासना करता हूं और राजा रामचन्द्र जी को मर्यादा पुरूषोत्तम का दर्जा देकर प्यार और सम्मान करता हूं। ऐसा करने से मेरे द्वारा दूरियां बढ़ रही हैं, यह मेरे लिये आश्चर्य और शोक का विषय है। आप कमियां बताएं, दूरियां घटाने के लिये मैं और ज़्यादा सुधार करूंगा, इन्शा अल्लाह।
*** आप सही कहते हैं परलोक में हमारी जगहें आपस में बदल भी सकती हैं। मैं ईश्वर के प्रकोप से डरता हूं और उससे क्षमा चाहता हूं और आप सभी भाइयों से भी। परलोक का दण्ड और नर्क एक वास्तविकता है। पुराणों की जिन बातों को मैं मानता हूं , उनमें से एक यह भी है।
*** कोई चीज़ मुझे नहीं डराती लेकिन जिस चीज़ को आप मज़ाक़ के तौर पर कह गुज़रे उसने मुझे वाक़ई डरा दिया है। रमज़ान का महीना आ रहा है, मैं अपना गहन विश्लेषण करूंगा। कहीं आपकी बात वाक़ई सच न हो जाये। अपने साथ मैं आपके लिये भी प्रभुवर से कल्याण और उद्धार की प्रार्थना करूंगा।
इन्सान की ज़िम्मेदारी यह है कि सही रास्ते पर चले लेकिन इन्सान हमेशा सही नहीं हो सकता, मैं भी नहीं । आपकी आलोचना मुझे सही रास्ता दिखाएगी बशर्ते कि वे निष्पक्ष हों। जिस चीज़ का आरोप मुझ पर लगाया जा रहा है, वे खुद उस ‘ज़्यादती‘ से मुक्त हों।

Unknown said...

यह कमेण्ट मैंने MLA साहब के ब्लॉग पर भी किया है, और चूंकि यहाँ भी विषय मिलता-जुलता है इसलिये मजबूरन कॉपी-पेस्ट कर रहा हूं…

1) यदि कोई हिन्दू ब्लॉगर, भगवान या वेद-पुराण की खिल्ली उड़ाये, बुरा भला कहे, उसमें खोट निकाले तो हमें मंजूर है, हम उससे बहस करेंगे, उसे समझाएंगे… यही हिन्दू धर्म का लोकतन्त्र है, लेकिन आप खुद अपनी गिरेबान में झाँक कर देख लें कि यदि कोई मुस्लिम (चाहे फ़िरदौस हो या महफ़ूज़ या सलमान रुशदी ही) कुरान या पैगम्बर के बारे में कुछ आलोचना करता है तो क्या होता है…

2) आपको जो भी कहना हो, जो भी लिखना हो, जो भी प्रचार करना हो… शौक से कीजिये, लेकिन उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लाम तक ही सीमित रखिये…। कोई मुसलमान यदि हिन्दू धर्म के बारे में, देवी-देवताओं के बारे में, वेदों-ग्रन्थों के बारे में कोई बात लिखेगा तो स्वाभाविक तौर पर "किसी भी हिन्दू ब्लागर" को बर्दाश्त नहीं होने वाला…

बात साफ़ है, जब तक मुस्लिम ब्लॉगर, हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में ऊलजलूल लिखना बन्द नहीं करते, तब तक भण्डाफ़ोड़ू या हर्फ़-ए-गलत जैसे लोग भी आते-जाते रहेंगे…। (यह जाँच का विषय है कि "शुरुआत" किसने की? इसके लिये पुरानी पोस्टें और उनकी दिनांक देखनी पड़ेगी)

दोनों पक्षों को सीधी सी बात समझना होगी कि "तुम" तुम हो, "हम" हम हैं… तुम्हारी किताब तुम्हारी हैं, और हमारे पुराण हमारे…, तुम्हारे पैगम्बर तुम्हारे हैं, हमारे ईश्वर हमारे…। इनके बीच कोई तुलना नहीं, कोई सम्बन्ध नहीं, यह बात समझें तो शान्ति बनी रहेगी।

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अब एक विशेष नोट (पूरी बात और बहस का निचोड़ समझाने के लिये) :-

मैं वेद-पुराणों के एक बड़े हिस्से को अभी भी बकवास और कालातीत (बीते ज़माने की बात) कहता हूं, कोई हिन्दू बुरा नहीं मानेगा, मानेगा भी तो हम उसे समझा लेंगे, मना लेंगे। आप तो मुस्लिम हैं, आप एक बार कुरान को बकवास और कालातीत कहकर देख लीजिये… बस, दोनों समुदायों की मानसिकता के बीच का अन्तर आपको समझ में आ जायेगा…

Pramendra Pratap Singh said...

ब्‍लाग जगत मे उक्त टिप्‍प्‍णीकार की बातो को महत्‍व देने अपने महत्‍व को कम करना है। एक ऐसे पर्सन है जिनके बारे जिनको विवादो को जन्‍मने और फिर उसी मे लिपटने रहते है।

DR. ANWER JAMAL said...

@ महाशक्ति जी ! आप शायद आज पहली बार यहां पधारे हैं, आपका स्वागत है। आपने ‘उक्त‘ कहा है, इससे अस्पष्टता सी रह गयी है, कृपया ‘उक्त‘ का नाम बताएं।

Anonymous said...

जिस तरह सुकून का एहसास समझने के लिए दर्द से गुज़रना ज़रूरी है,

Anonymous said...

अच्छाई को जानने के लिए बुराई को समझना ज़रूरी है उसी तरह हलाल क्या है को जानने के लिए हराम को जानना भी ज़रूरी है

Anonymous said...

और हलाल क्या है हराम क्या है ये जानने के लिए पहेले तौहीद शिर्क और कुफ्र को समझना ज़रूरी है

और हराम और हलाल का ताललुक तौहीद से है कयोकि जो अल्लाह ने जायज़ करार दिया वो हलाल नाजायज़ करार दिया हराम हुई है

(इनके बीच मे कुच्छ शुबह वाली बातें है जिन पर फतवे बाजी होती है)

Anonymous said...

तौहीद को जानने के लिए शिर्क और कुफ्र को समझना ज़रूरी है

शिर्क को समझने के लिए कुछ हिस्सो मे बाँटा गया और उसमे से आखरी या सबसे छोटा शिर्क जिसके करने से उलेमा ने फ़रमाया है की कोई मुस्लिम मुश्रिक तो नही होता लेकिन गुनहगार ज़रूर होता है और वो है शिर्क खफी यानी छुपा हुआ शिर्क,

इसकी मिसाल रियाकारि है शिर्क खफी को एक हदीस से बयान किया जाता है की

"रसूललुल्लाह सल्ललाहोअलेह वासलम ने फ़रमाया की जिस तरह काली अंधेरी रात मे काली चट्टन पर रेंगती हुई काली चींटीयाँ दिखाई नही देती उसी तरह इंसान की जिंदगी मे शिर्क खफी दिखाई नही देता" !

Unknown said...

ये लो एक बुर्काधारी पधारे हैं… 4-5 कमेण्ट ठेल दिये हैं लेकिन मुद्दे की एक भी बात नहीं…
इसे कहते हैं… *&$%*#

सुज्ञ said...

अनवर जमाल साहब,

आप्के इस कोट का आधार क्या है?
"मूर्तिपूजा पहले आर्यों में नहीं थी, जैनियों की देखा देखी सनातन धर्मियों ने भी करनी शुरू कर दी।"

महर्षि दयानंद सरस्वती जी का संदर्भ न दें, क्योकि उनकी सारी बाते आपके द्वारा भी मान्य नहीं है।
एतिहासिक संदर्भ दें।
क्योकि मूर्तिपूजा जैनो में भी बहूत बाद में प्रचलित हुई थी, और जैन आर्य ही है, जैन शास्त्रो में हर जगह सभ्य व्यक्ति के लिये आर्य उद्बोधन है। राम जैनों में भी पूज्य है।
जैनो व वैदिको में वर्ग विभाजन का प्रयास न करें।
जैनो नें सभी धर्मों को एकांत दृष्टिकोण से विचारधाराएं स्वीकार किया है।

इस विषय पर प्रकाश डालें

सुज्ञ said...

अनवर जमाल साहब,

'हक़्नामा'ब्लोग पर आपने एक टिप्पणी की……।

DR. ANWER JAMAL said...

@ संजय बेंगाणी जी! हम क्यों बता दें जबकि यह काम आदि शंकराचार्य जी पहले कर चुके हैं, आप शंकरदिग्विजय नामक ग्रंथ देख लें आपको ऐसे बहुत से जैन-बौद्ध विहार मिल जाएंगे जिनमें वैदिक संस्थान खोले गये।………॥

--- क्या आपको उसके बाद कभी भी वैदिको,जैनो या बौद्धो के बीच वैमनस्य दिखता है?
कया उसके बाद भी इतिहास मे इनके बीच धर्म-विग्रह हुआ? नहिं ना।
सभी भारतीय दर्शन विचारधाराओं ने इस उत्थान पतन को विचारधाराओं का उत्थान पतन ही माना है। वर्ग-विग्रह नहिं
सभी महानुभावों का मंतव्य निर्देश इसी सहिष्णुता की और है।

DR. ANWER JAMAL said...

एक ज़रूरी ऐलानः
यह पोस्ट आधा तीतर आधा बटेर बनकर रह गई है। सबसे पहले सलीम साहब ने,फिर क्रमशः शहरोज़ भाई, उमर साहब और शाहनवाज़ भाई ने भी फ़ोन पर अपना ऐतराज़ जताया था। उमर कैरानवी साहब ने इसे एक घटिया पोस्ट क़रार दिया है और गुरू वही है जो ग़लती बताये, मार्ग दिखाये और शिष्य वह है जो अपनी कमी को कुबूल करे और उसे दूर भी करे। वैसे इसे पोस्ट करते समय भी मेरे मन में खटक थी लेकिन ख़याल था कि एक कहानी है लेकिन ‘निष्पक्ष लेखकों‘ ने बताया कि कहानी है तो इसमें नाम असली क्यों हैं ?
... और वाक़ई यह एक बड़ी ग़लती है जिसकी वजह से जनाब मिश्रा जी अपने गुस्से में भी हक़ बजानिब हैं और सज़ा देने में भी। मेरे दिल में उनके लिये प्यार और सम्मान है और एक लेखक के लिये सबसे बड़ी नाकामी यह है कि वह अपने जज़्बात को भी ढंग से अदा न कर पाये। मैं इस कहानी को खेद सहित वापस लेता हूं और कमेंट्स ज्यों के त्यों रहने देता हूं ताकि मुझे अपनी ख़ता का अहसास होता रहे और जिन्हें पीड़ा पहुंची है उन्हें कुछ राहत मिल सके। मैं एक बार फिर आप सभी हज़रात से क्षमा याचना करता हूं।
ब्लॉगिंग का उद्देश्य स्वस्थ संवाद होना चाहिये जोकि अपने और देश-समाज के विकास के लिये बेहद ज़रूरी है। सबका हित इसी में है। मेरे लेखन का उद्देश्य भी यही है। नाजायज़ दबाव मैं किसी का मानता नहीं और ग़लती का अहसास होते ही फिर मैं उसे रिमूव करने में देर लगाता नहीं। सो यह "सदा सहिष्णु भारत" पोस्ट रिमूव की जाती है।
http://mankiduniya.blogspot.com/2010/08/tolerance-in-india-anwer-jamal.html

सुज्ञ said...

देर आयद,दुरस्त आयद।

सच ही था सदा सहिष्णु भारत।

मेरी टिप्पणियाँ प्रत्युत्तर की अपेक्षा में।

DR. ANWER JAMAL said...

@ प्रयागवासी मराठी बंधु! आप हिंदू-मुस्लिमों के बारे में , उनके माननीय ग्रंथों बारे में जो निंदनीय बयान दे रहे हैं, मैं उसकी कड़ी निंदा करता हूं।
आप एक मुसलमान के ब्लॉग पर आकर बुरके पर व्यंग्य करके मुस्लिम परंपरा के साथ-साथ देहाती हिंदू परंपरा का भी अपमान कर रहे हैं। उम्मीद कम है कि किसी परंपरा रक्षक की तरफ़ से आपके खि़लाफ़ स्वर बुलंद होगा। आप जैसे फ़र्ज़ी राष्ट्रवादी लोगों को ‘हम और तुम‘ में विभाजित करते आये हैं, यह विभाजनवादी मानसिकता का प्रतीक है। मेरा मक़सद ‘ज्ञान‘ के आधार पर दूरियों का भ्रम मिटाना है, आप जैसों की उठायी हुई दीवारों को गिराना है।
आप अहंकारवश पोस्ट तक पढ़ना गवारा नहीं करते वर्ना आप बेनामी की टिप्पणियों का मख़ौल उड़ाकर खुद को अविद्वान सिद्ध न करते।
पोस्ट में मैंने ‘शिर्क‘ का संक्षेप में ज़िक्र किया है, बेनामी भाई ने उसी को विस्तार से समझाया है। आप भी शिर्क छोड़ दीजिये, एकनिष्ठा की बड़ी महिमा आई है दोनों भाषाओं के ग्रंथों में।a
इसके बावजूद मैं आपको "*&$%*#" न कहूंगा। यह है असली फ़र्क़ मुझमें और आप में।

सुज्ञ said...

डा जमाल साहब,
Is it fair ?
आपकी एक पोस्ट “The real Guide सच का जानने…………
में आपने स्वयं को, कृष्ण, शिवजी, बुद्ध और महावीर, शंकराचार्य, गुरू नानक, कबीर और दयानंद जी के समकक्ष रखा है, कि उनके द्वारा सुधार स्वीकार किये गये तो भला आपके क्यों नहिं
आर्यवर्त भूमि में पनपे दर्शनो की यही खासियत है कि शास्त्रों पर खण्डन-मण्डन की स्वतंत्रता है।
इसे शास्त्रार्थ का दर्जा प्राप्त है। हर अच्छी बात को अपनाना और बुरी बात को त्यागना विद्वानों की खूबी रही है।
लेकिन इस्लाम में खण्डन की स्पष्ठ मनाई है।
अब भला बताईए जो व्यक्ति अपनी विचारधारा का अंश भी खण्डन स्वीकार न करता हो,और दूसरो की विचारधारा के खण्डन कर अपेक्षा रखे कि खण्डन सौहार्द से स्वीकार किया जायेगा। भला कैसे सम्भव है।
इसिलिये लोग अगर इसे आपकी अनधिकार चेष्टा माने तो गलत क्या है?

DR. ANWER JAMAL said...

@ सुज्ञ जी ! यजुर्वेद के 32 वें अध्याय का 3सरा मंत्र प्रमाण रूप में पेश करता हूं-
न तस्य प्रतिमा स्ति यस्य नाम महद्यशः ।
अर्थात उस परमेश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती, उसका नामस्मरण ही बड़ी नेकी है।
जैन समुदाय के एक बड़े विद्वान हैं लाला सुमेर चन्द जैन, उन्होंने बताया है कि गुणों की क़द्र करने के लिये मूर्ति बनाने का तरीका सबसे पहले जैनियों द्वारा प्रचलित किया गया है। अगर आप चाहें तो इसका भी हवाला मय पेज नंबर मुझसे मांग सकते हैं, दिया जायेगा, इंशा अल्लाह।
*** आपने मान लिया है कि आदि शंकराचार्य जी के काल में बौद्ध-जैन विहार गिराये गये हैं, उन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा किया गया है, इसके बावजूद आप सवाल भी हम से कर रहे हैं, हद है नासमझी की।
मेरे विद्वान भाई ! अब तो सवाल हम करेंगे आपसे कि आप उन नाजायज़ क़ब्ज़ाये गये विहारों को उनके असली वारिसों को लौटाकर सद्भावना की मिसाल कब क़ायम करेंगे ?
*** आपकी मिसाल मुसलमानों को भी प्रेरणा देगी।

DR. ANWER JAMAL said...

@ सुज्ञ जी ! मैंने खुद को श्री कृष्ण जी या गुरू नानक साहब के समकक्ष नहीं रखा बल्कि उनकी परंपरा का उदाहरण दिया है और बताया है कि उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि ही यह है कि उन्होंने अपने काल में बुराई का प्रतिकार किया है तो हमें अपने काल में उनका अनुसरण करना चाहिये। इसलामी विद्वान भी खूब तर्क-वितर्क और खण्डन-मण्डन करते हैं, तदुपरान्त श्रेष्ठ विचार को ग्रहण करते हैं। फिक़्ह या इल्म ए कलाम की किताब पढ़कर देख लीजिये।

सुज्ञ said...

Dr.जमाल साहब,

शायद आपने टिप्पनी को अंत तक पढा नहिं,
बाकि मिसाल वहां प्रेरणा वाली ही थी।

उस पुस्तक का पूरा हवाला दे सकते है।

सुज्ञ said...

Dr.जमाल साहब,

आवश्यक कार्य्र से जा रहा हूं, पर चर्चा अच्छे मोड पर है। कल अवश्य ही आगे बढाना चाहुंगा।

धन्यवाद

Anonymous said...

हरी ॐ जमाल साहब !

अगर सारे पेड़ कलम हों और सभी समुन्द्र स्याही तो भी अल्लाह के गुणों को नहीं लिखा जा सकता !!

एक बात और -

मुल्ले को मक्का प्यारा !!!
पंडित को पोथी ```
बेकार को बहस प्यारी और
गरीब को रोटी !!!!!
ब्लॉगर को कमेन्ट प्यारा और
हमारे प्यारे जमाल साहब को ............................;;;;;;;;;;;,,//..//???????

DR. ANWER JAMAL said...

@ @ शहरोज़ साहब ! आदमी समूह में रहता है और व्यवस्था में जीता है। व्यवस्था में ख़राबी की वजह से आदमी और समाज दुखी रहता है। वह दुख से मुक्ति का हरसंभव उपाय करता है लेकिन उसकी मुसीबतें पहले से ज़्यादा और ज़्यादा होती रहती हैं। उसे याद ही नहीं रहता कि जिस ईश्वर ने उसे जीवन दिया है उसने उसे व्यवस्था भी दी है जो जीवन के हरेक पहलू में काम देती है। राजनेता और धर्मगुरू भी अपने-अपने राजनीतिक और आध्यात्मिक दर्शनों में लोगों को उलझाये और भरमाये रहते हैं लेकिन उन्हें धर्म और दर्शन के बीच मौजूद बुनियादी फ़र्क़ तक नहीं समझाते और जो समझाना चाहते हैं उन्हें अपने हितों का दुश्मन देखकर जनता को उनके खि़लाफ़ खड़ा करने में सारा ज़ोर लगा देते हैं। पहले भी यही हुआ और मनु महाराज के काल जल प्रलय आई,आज भी यही हो रहा है और अग्नि प्रलय हर ओर हो रही है। निराश मानवता ईश्वर और उसकी दण्ड व्यवस्था के बारे में सशंकित है लेकिन अगर यहां न्याय नहीं है तो फिर न्याय कहीं और तो ज़रूर ही है। जो न्याय पूरी मानव जाति को अपेक्षित है वह उसे ज़रूर मिलेगा चाहे उसके लिये उस मालिक को फ़ना हो चुकी सारी मानव जाति को नये सिरे से जीवित करना पड़े। वह जीवनदान का दिन ही न्याय दिवस है, जो चाहे मान ले और जो चाहे इन्कार कर दे। लेकिन किसी के इन्कार से हक़ीक़त बदला नहीं करती। सृष्टि के आदि से , वेदों से लेकर कुरआन तक दोबारा जन्म, आवागमन नहीं बल्कि केवल दूसरे जन्म का जो ज़िक्र तत्वदर्शियों ने किया है, वह होकर रहेगा। जो ज़ालिम अपने दबदबे के चलते यहां सज़ा से बच निकलते हैं, वहां धर लिये जाएंगे। धर्म यही कहता है और मैं इसे मानता हूं। यही मानना आदमी को आशावादी बनाता है, जीवन के मौजूदा कष्ट झेलना आसान बनाता है।
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html?showComment=1281266175841#c7842753521943884721

Anonymous said...

वेदों से लेकर कुरआन तक दोबारा जन्म, आवागमन नहीं बल्कि केवल दूसरे जन्म का जो ज़िक्र तत्वदर्शियों ने किया है, वह होकर रहेगा !

कुछ अलग सा कहा आपने

क्योंकि शंकराचार्य जी कहतें हैं -

पुनरपि जनरं पुनरपि मरंम

और उपनिषद भी आवागमन से मुक्ति और गीता भी आवागमन से मुक्ति की ही बात समझाते हैं १

दया करके इसी विषय पर एक पोस्ट लिख दीजिये

अति कृपा होगी !!!

Unknown said...

सीधी बात का सीधा जवाब देना तो किसी ने सीखा ही नहीं यहाँ… मेरा सवाल सीधा सा है -

1) मुस्लिम ब्लॉगर्स को हिन्दू धर्म, देवी-देवताओं-वेदों-पुराणों पर लिखना ही क्यों चाहिये? और

2) जिस प्रकार हिन्दू ब्लॉगर्स वेदों और भगवान की आलोचना, तर्क-वितर्क कर सकते हैं, क्या मुस्लिम ब्लॉगर्स कुरान और पैगम्बर की आलोचना कर सकते हैं?

Unknown said...

अब इनका जवाब भी ऐसा घुमाफ़िराकर दिया जायेगा कि इंसान तो समझ ही ना सके… :)

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब ! सीधा सा ही जवाब दिया है अगर आप समझना चाहें तो...
1-बहुत से महापुरूषों को हिन्दू भाई अवतार का या देवता का दर्जा देते हैं वे बहुत से मुसलमानों के भी पूर्वज हैं । जब उनसे इस्लाम नहीं काटता , कोई हिंदू प्रचारक नहीं काटता मुसलमानों को तो आप ही क्यों काटना चाहते हैं ? मुसलमानों को अपने पूर्वजों के बारे में जानने और कहने का हक़ हासिल है।
2- हिन्दू भाई सत्य और तथ्य के विश्लेषण के लिये जो तरीक़ा अपनाते हैं मुसलमान आलिम भी बहुत सी हदीसों के सत्यापन में और कुरआन के हुक्म के निर्धारण में यथोचित तर्क-वितर्क करते हैं। आप मुसलमानों को हू-ब-हू हिंदुओं के नक्शे क़दम पर क्यों चलाना चाहते हैं ?
अब सवाल बहुत हुए और यह बताइये कि आपने मेरे ब्लॉग पर बुरक़े पर बेहूदा कमेंट क्यों किया ?

DR. ANWER JAMAL said...

जनाब असलम क़ासमी साहब ! ऐसा होता है कि ईश्वर के सगुण नाम पर लोग अपने बच्चों के नाम रखते हैं या उनसे जोड़कर । हरेक भाषा में ऐसा होता आया है। रामचन्द्र दो शब्दों का योग है - राम $ चन्द्र अर्थात राम का चांद । श्री रामचन्द्र जी राम के चांद थे , इसी से पता चलता है कि कोई राम भी है और वह ऐसा है कि उससे जुड़कर मनुष्य का गौरव बढ़ता है। राम संस्कृत भाषा में ईश्वर का एक नाम माना गया है । आप भी खोजेंगे-सोचेंगे तो हक़ीक़त तक पहुंच जाएंगे। हम किसी की ज़िद में एक इल्मी बात का इन्कार नहीं कर सकते। श्री रामचन्द्र जी एक मनुष्य थे , ईश्वर के उपासक थे , यह प्रमाणित है। पुरानी बातों को आज ज्यों का त्यों जानना संभव नहीं है इसलिये कुरआन के उसूल के मुताबिक़ अगर एक ही बात के कई पहलू निकलते हों तो उसके बेहतरीन पहलू को लेना हिकमत है। श्री रामचन्द्र जी और प्राचीन काल के महापुरूषों के संबंध में मैं इसी नीति पर अमल करता हूं। आप भी विचार करें।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/08/blog-post_406.html

सुज्ञ said...

वे कौन्सी किताबें है,जिसमे कुरआन पर खण्डन विवेचन हुआ है? और आलिमों द्वारा सुधार स्वीकृत हुआ है।
एक स्वतंत्र पोस्ट आप इस पर लिख दें तो एक सुंदर व भ्रम निवारक जानकारी होगी।

अभी एक जगह आपने कहा……
"आप मुसलमानों को हू-ब-हू हिंदुओं के नक्शे क़दम पर क्यों चलाना चाहते हैं ?"
इसी को दूसरे पहलू से समझें
हिंदु भी क्यों आपके या मुस्लीमों के बताए नक्शे क़दम पर चले ?

zeashan haider zaidi said...

@सुज्ञ जी,
कुरआन पर विवेचन 'तफसीर' कहलाता है. जिसकी बहुत सी किताबें मौजूद हैं, जिनमें से कुछ की लिस्ट इस तरह है :
Tafsir ibn Kathir (~1370)
Tafsir al-Qurtubi (~1273)
Tafsir al-Tabari (~922)
Tafsir al-Jalalayn
Tafhim-ul-Quran
Fi zilal al-Qur'an
Tanwir al-Miqbas
Ma'ariful Quran
Tafsir al-Mizan
Tafsir al-Baghawi
Tafsir of Fakhr al-Din
Dur al-Manthur
Tadabbur-i-Qur'an
Al-Mizan Fi Tafsir al-Qur'an
Holy Quran (puya)
Majma' al-Bayan
Nur al-Thaqalayn al-Safi
Tafsir Ibn Arabi

Anonymous said...

@Suresh Chiplunkar said...

अब इनका जवाब भी ऐसा घुमाफ़िराकर दिया जायेगा कि इंसान तो समझ ही ना सके… :)

सुरेश जी ^_ क्या आपको लगता है कि इस ब्लॉग पर इंसान भी आते हैं !!!!

HAKEEM YUNUS KHAN said...

@ mera desh mera dharm ! aap khud isi blog par ho kya aapko apni insaniyat men shak hai ?
2-- Ab ye batao ki kya aap mishra ji ke kathan se sahmat hain ki PURAN Donkeys ke liye hain ?
3- KIsi sawal ka jawab aap bhi to dijiye JANAB ?

सुज्ञ said...

जिशान मित्र,
अब इतनी किताबें कहां पढ पायेंगे।
क्या आप सहायता कर सकते है,एक एक तफ़्सीर का हिन्दी आलेख प्रस्तूत कर।

भ्रम निवारण का उपयुक्त साधन दृष्टिगोचर हो रहा है।

आप भी शुरु करें, पोस्टों से यह समिक्षा।

Unknown said...

@ हकीम जी - मैं मिश्रा जी से सहमत नहीं हूं कि वेद गधों के लिये बने हैं, लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि मैं उनके खिलाफ़ फ़तवा जारी कर दूं, उन्हें मारने-पीटने के लिये सड़कों पर उतर जाऊं… :) मिश्रा जी का अपना मत है, मेरा अपना मत है, किसी और हिन्दू का मत ये भी हो सकता है कि वेद हैं ही नहीं… इसी को तो लोकतन्त्र कहते हैं भाई।

हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता कि किसी हिन्दू ने कहा कि भगवान राम थे ही नहीं, और हम उस व्यक्ति को विश्व भर में कहीं सुरक्षित रहने ही न दें…। बल्कि हिन्दुओं के खिलाफ़ ऊलजलूल चित्र बनाने वाले को भी "सिर्फ़ देशनिकाला" दिया है, न कि जान से मारने का फ़तवा…।

इसलिये हकीम साहब, मिश्रा जी जो भी कहें, वह उनके विचार हैं। लेकिन यही बात कोई मुस्लिम कहे तब बात अलग होगी, यही बात बार-बार समझाने के बावजूद अनवर साहब समझ नहीं रहे और लगातार वेद-कुरान की तुलना और हिन्दू भगवानों को "नबी-वबी" बताने में लगे हुए हैं…। जबकि अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी जानता और समझता है कि वेद और कुरान कभी एक जैसे हो ही नहीं सकते, दोनों मे ज़मीन-आसमान का फ़र्क है।

जमाल साहब खामखा हिन्दू धर्म के मामलों में टाँग फ़ँसाने की कोशिश कर रहे हैं…। वेद-ग्रन्थ-राम-कृष्ण हमारा मामला है, यदि कोई गड़बड़ है भी तो हम सुलझा लेंगे, आप "अपना घर" देखिये ना… बस इतनी सी बात समझ लें तो सभी को आसानी होगी।

Ayaz ahmad said...

ब्लाग जगत मे चर्चित बाबरी मस्जिद राम मंदिर मामले मे विश्व हिंदु परिषद ने अदालत का कोई भी फैसला मानने से इंकार कर दिया है उनका कहना है कि फैसला चाहे कुछ भी हो मंदिर वहीं बनाएँगे इससे लोक तंत्र के प्रति हिंदु संगठनों की निष्ठा खुलकर सामने आ गई है । अब तो सुरेश चिपलुँकर जी जैसे शिव सैनिक को राष्ट्रवाद का राग अलापना बंद कर देना चाहिए क्योकि अब उन जैसे लोगो की असलियत खुलकर सामने आ गई है

Ayaz ahmad said...

@सुरेश जी क्या आप विश्व हिंदु परिषद के इस संविधान विरोधी रुख की आलोचना करेंगे।

Anonymous said...

@ HAKEEM YUNUS KHAN :-

mujhe lagata hai ki is blog par insaan nahin kewal hindu aur musalamaan aate hain

impact said...

@Suresh Chiplunkar
अगर मुसलमान हिन्दू धर्म के बारे में कुछ बोल नहीं सकता तो मुसलमान से यह क्यों कहते हो की हिन्दुस्तान में रहना है तो हिन्दू बनकर रहना पड़ेगा.

DR. ANWER JAMAL said...

@ मराठा जी ! आपका सुझाव आपका निजी विचार है जो कि भारतीय महापुरूषों की सनातन आर्य परंपरा के विपरीत है अतः त्याज्य है। इस पर भारतवर्ष में आज तक अमल नहीं किया गया है और न ही यह संभव है। अगर आप इसे सही और संभव मानते हैं तो आप जैसे सीनियर ब्लॉगर्स इसको व्यवहारिक रूप से साक्षात करके दिखाएं मुझ जैसा जूनियर आपके अच्छे काम अनुसरण ज़रूर करेगा।
2-आपने ‘नबी-वबी‘ लफ़्ज़ यूज़ किया है जो अपमानजनक है। आपको अपने विचार और असहमति रखने का पूरा हक़ है लेकिन धार्मिक पुरूषों के अपमान का हक़ हासिल नहीं है। सामान्य शिष्टाचार हर हाल में ज़रूरी है। मेरा दिल तो आपके अपमान को भी नापसंद करता है।
3-मैंने श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी को नबी कहां साबित किया है भाई ? वे इतने प्राचीन काल में हुए हैं कि हम कुछ भी साबित कर ही नहीं सकते लेकिन हां उनके लिए अच्छी भावनाएं ज़रूर रख सकते हैं। उनके लिए उलमा ए देवबंद ने ‘नबी‘ होने का केवल ‘इम्कान‘ अर्थात संभावना व्यक्त करते हुए मुसलमानों को उनके लिए किसी भी तरह के निरादर से रोका है और यही वजह है कि किसी आलिम या उनकी सोहबत में रहने वाले किसी दीनदार मुसलमान ने इनका अपमान करने वाली टिप्पणी आज तक नहीं की जबकि उनकी तारीफ़ में बहुत सा साहित्य ज़रूर रचा है, आज भी रचा जा रहा है।

DR. ANWER JAMAL said...

@ सुज्ञ जी ! आप लाला सुमेर चंद जैन के वक्तव्य को जैन मत सार पृष्ठ 293 पर देख सकते हैं। इसे जैन मित्र मण्डल , धर्मपुरा दिल्ली ने 1938 में प्रकाशित किया है।

Unknown said...

@ अनवर साहब - आप बेशक अपने दुष्प्रचार में लगे रहिये… और ब्लॉग जगत का माहौल खराब करते रहिये…। आपके इस तथाकथित "परोपकारी" और "ज्ञान भरे" काम से हिन्दू-मुस्लिम एकता तो होने से रही… उलटे हिन्दू ब्लॉगर आपका ब्लॉग पढ़कर या तो क्रोधित होंगे और अन्तहीन बहस चलेगी जैसी अभी चल रही है, या फ़िर दोबारा आयेंगे ही नहीं…। आप अपने "मिशन" में लगे रहें… सादर नमस्कार…
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@ अयाज़ साहब के लिये दो बातें रिपीट कर रहा हूं…

1) हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता कि किसी हिन्दू ने कहा कि भगवान राम थे ही नहीं, और हम उस व्यक्ति को विश्व भर में कहीं सुरक्षित रहने ही न दें…। बल्कि हिन्दुओं के खिलाफ़ ऊलजलूल चित्र बनाने वाले को भी "सिर्फ़ देशनिकाला" दिया है, न कि जान से मारने का फ़तवा…।

2) अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी जानता और समझता है कि वेद और कुरान कभी एक जैसे हो ही नहीं सकते, दोनों मे ज़मीन-आसमान का फ़र्क है।

Ayaz ahmad said...

सुरेश जी अगर वह देवी के ऊल जलूल चित्र बनाने वाले देश से नही जाते तो आप लोग उसकी जान ले लेते । और यहाँ जो हिंदु ब्लागर अपने ब्लाग पर देवी का नग्न चित्र लगाए हुए है उसे तो आप या आपके साथियो ने कुछ नही कहा और न देश निकाला दिया । और अनवर भाई ने तो न किसी महापुरुष का गाली दी और न कोई असभ्य बात कही । फिर अनवर साहब तो आप की बताई हुई बातों पर आपके पीछे चलने के लिए तैयार है फिर आप क्यो भाग रहे है और कोई स्पष्ट उत्तर भी नही दे पा रहे है

DR. ANWER JAMAL said...

@ सुज्ञ जी ! हिन्दू हो या मुसलमान, हरेक को उस अजन्मे अविनाशी सृष्टिकर्ता परमेश्वर के आदेश का पालन उस रीति से करना चाहिये जिस तरह ऋषियों ने करके दिखाया। कुरआन परमेश्वर की वाणी है और हज़रत मुहम्मद साहब स. उसके दूत हैं इसीलिये हम उनका अनुकरण करते हैं। आप भी उनका अनुकरण कीजिये लेकिन अगर आप कुरआन को परमेश्वर की वाणी हज़रत मुहम्मद साहब स. को उसका दूत नहीं मानते तो आप जिस ग्रंथ में निर्भ्रांत सत्य पायें और जिस व्यक्ति में ऋषि का मूल लक्षण पायें उसका अनुकरण करें। अपनी वासना के पीछे दौड़ना न मुसलमान के लिये जायज़ है और न ही हिन्दू के लिये। यही वासना भ्रष्टाचार का मूल है जो देश-समाज को किसी घुन की तरह चाट रहा है। कल्याण के लिये ‘तत्व‘ को समझना ज़रूरी है। सृष्टिकर्ता को मुसलमान अल्लाह, रहमान, रहीम और हिन्दू भाई ईश्वर, ब्रह्म और राम कहते हैं। उसे सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और न्यायकारी बताते हैं। हरेक चीज़ को उसी ‘एक‘ के द्वारा उत्पन्न किया जाना मानते हैं। भलाई-बुराई का फल भी उसी के द्वारा दिया जाना मानते हैं। लोग एकता की बातें करते हैं लेकिन मैं ‘एकत्व‘ का बोध कराना चाहता हूं। लोगों को चाहिये कि वे अपने लिये जो व्यवहार पसंद करते हैं वही दूसरों के साथ भी करें।

सुज्ञ said...

@ अनवर साहब,
उपरोक्त टिप्पणी, आपकी आज तक में सभी से जानदार व शानदार है।
मैं तो कहूंगा इन शब्दों को आप अपने ब्लोग पर मुख्य विचार में लगाएं।

सभी के कल्याण की भावना के साथ!!
धन्यवाद!!