सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Wednesday, June 23, 2010
What is best ? तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है। यही पूर्व ग्रंथों में भी है,
परमेश्वर कहता है-
और ‘हमने‘ आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और ‘हमने‘ उन्हें जल-थल में सवार किया और उन्हें पाक चीज़ों में से रोज़ी दी और ‘हमने‘ उन्हें अपनी बहुत सी सृष्टि पर प्रधानता दी। -बनी इस्राईल, 70
‘हमने‘ इनसान को बेहतरीन संरचना पर पैदा किया। -अलअलक़, 4
तो इनसान को देखना चाहिये कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है। वह एक उछलते पानी से पैदा किया गया है। -अत्तारिक़, 5-6
सो नसीहत करो अगर नसीहत फ़ायदा पहुंचाये। वह शख्स नसीहत कुबूल करेगा जो डरता है और उससे बचेगा वह जो बदबख्त होगा। वह पड़ेगा बड़ी आग में। फिर न उसमें मरेगा और न जिएगा। कामयाब हुआ जिसने ख़ुद को पाक किया और अपने रब का नाम लिया, फिर नमाज़ क़ायम की, बल्कि तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है।
यही पूर्व ग्रंथों में भी है, मूसा और इबराहीम के सहीफ़ों में। -अलआला,10-19
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1. सारे इनसान एक बाप की औलाद हैं।
2. सारे इनसान एक परिवार हैं।
3. इस परिवार का मुखिया स्वयं परमेश्वर है।
4. जल थल में इनसान के लिये भोजन और सवारी का परमेश्वर ने ही किया है न कि इनसान ने।
5. एक गंदे पानी में उछलकर गर्भाशय तक जाने की क्षमता भी उसी दयालु मालिक ने रखी है।
6. एक नापाक पानी से परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की ताकि उसके लिये घमण्ड करने की कोई वजह न बचे और जब भी वह अपनी संरचना पर विचार करे तो वह अपने मालिक की कुदरत का क़ायल और शुक्रगुज़ार बन जाये।
7. इनसान को मालिक ने बेहतरीन रूप आकार और योग्यता के साथ पैदा किया। उसे इज़्ज़त भी दी और बहुत सी चीज़ों और जीवों पर उसे प्रधानता दी।
8. अब इनसान को चाहिये कि वह अपनी ताक़त और अपने साधनों को रचनात्मक कामों में, सेवा के कामों में लगाये जैसा कि उसे मालिक ने हुक्म दिया है। सफलता इसी में है।
9. जो लोग मालिक के हुक्म को भुलाकर अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति में ही मगन हो गये और न तो अपना फ़र्ज़ पूरा किया और न ही लोगों को उनका हक़ दिया और जब उन्हें नेक नसीहत की तो उसे नज़रअन्दाज़ कर दिया तो ये लोग दुनिया में फ़साद फैलने का कारण बनते हैं। दंगे, युद्ध और आपसी संघर्ष इन्हीं लोगों की नाजायज़ ख्वाहिशों के नतीजे में भड़कते हैं। इन्हीं लोगों के कारण लोगों का ईश्वर, धर्म और नैतिकता पर से विश्वास उठ जाता है और पूरा समाज ख़राबियों का शिकार हो जाता है।
10. इन कुकर्मों का नतीजा दुनिया में तो चाहे वे भोगने से बच जायें लेकिन परलोक में इनका ठिकाना आग का गड्ढा होगा।
11. इस लोक के बजाय परलोक का जीवन बेहतर और शाश्वत है।
12. परमेश्वर कहता है कि कुरआन से पहले भी जब कभी ईश्वरीय वाणी की प्रकाशना की गयी है, उसमें भी यही बताया गया है।
13. इस्लाम के नियम नये नहीं हैं और न ही ये पुराने ग्रंथों की नक़ल हैं बल्कि जिस ईश्वर की ओर से पूर्व ग्रंथों की प्रकाशना की हुई है उसी ने कुरआन को भी अवतरित किया है।
14. जो कुछ भिन्नता है वह पुराने ग्रंथों में क्षेपक और विद्वानों के अनुवाद और व्याख्या के कारण है। धर्म के मौलिक सिद्धान्त जैसे कि ईश्वर का एक होना, कर्मों का पूरा फल परलोक में मिलना और ईश्वर की ओर से मनुष्य को ज्ञान की प्रकाशना होना आदि कभी नहीं बदले।
15. धर्म के इम्पलीमेंटेशन के तरीक़े से परम्पराओं में भी अन्तर देखा जा सकता है लेकिन यह सब गौण है। मुख्य चीज़ सिद्धान्त है, वह सदा से ही एक हैं।
16. सबका मालिक एक है और सबका धर्म भी एक ही है।
और ‘हमने‘ आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और ‘हमने‘ उन्हें जल-थल में सवार किया और उन्हें पाक चीज़ों में से रोज़ी दी और ‘हमने‘ उन्हें अपनी बहुत सी सृष्टि पर प्रधानता दी। -बनी इस्राईल, 70
‘हमने‘ इनसान को बेहतरीन संरचना पर पैदा किया। -अलअलक़, 4
तो इनसान को देखना चाहिये कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है। वह एक उछलते पानी से पैदा किया गया है। -अत्तारिक़, 5-6
सो नसीहत करो अगर नसीहत फ़ायदा पहुंचाये। वह शख्स नसीहत कुबूल करेगा जो डरता है और उससे बचेगा वह जो बदबख्त होगा। वह पड़ेगा बड़ी आग में। फिर न उसमें मरेगा और न जिएगा। कामयाब हुआ जिसने ख़ुद को पाक किया और अपने रब का नाम लिया, फिर नमाज़ क़ायम की, बल्कि तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है।
यही पूर्व ग्रंथों में भी है, मूसा और इबराहीम के सहीफ़ों में। -अलआला,10-19
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1. सारे इनसान एक बाप की औलाद हैं।
2. सारे इनसान एक परिवार हैं।
3. इस परिवार का मुखिया स्वयं परमेश्वर है।
4. जल थल में इनसान के लिये भोजन और सवारी का परमेश्वर ने ही किया है न कि इनसान ने।
5. एक गंदे पानी में उछलकर गर्भाशय तक जाने की क्षमता भी उसी दयालु मालिक ने रखी है।
6. एक नापाक पानी से परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की ताकि उसके लिये घमण्ड करने की कोई वजह न बचे और जब भी वह अपनी संरचना पर विचार करे तो वह अपने मालिक की कुदरत का क़ायल और शुक्रगुज़ार बन जाये।
7. इनसान को मालिक ने बेहतरीन रूप आकार और योग्यता के साथ पैदा किया। उसे इज़्ज़त भी दी और बहुत सी चीज़ों और जीवों पर उसे प्रधानता दी।
8. अब इनसान को चाहिये कि वह अपनी ताक़त और अपने साधनों को रचनात्मक कामों में, सेवा के कामों में लगाये जैसा कि उसे मालिक ने हुक्म दिया है। सफलता इसी में है।
9. जो लोग मालिक के हुक्म को भुलाकर अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति में ही मगन हो गये और न तो अपना फ़र्ज़ पूरा किया और न ही लोगों को उनका हक़ दिया और जब उन्हें नेक नसीहत की तो उसे नज़रअन्दाज़ कर दिया तो ये लोग दुनिया में फ़साद फैलने का कारण बनते हैं। दंगे, युद्ध और आपसी संघर्ष इन्हीं लोगों की नाजायज़ ख्वाहिशों के नतीजे में भड़कते हैं। इन्हीं लोगों के कारण लोगों का ईश्वर, धर्म और नैतिकता पर से विश्वास उठ जाता है और पूरा समाज ख़राबियों का शिकार हो जाता है।
10. इन कुकर्मों का नतीजा दुनिया में तो चाहे वे भोगने से बच जायें लेकिन परलोक में इनका ठिकाना आग का गड्ढा होगा।
11. इस लोक के बजाय परलोक का जीवन बेहतर और शाश्वत है।
12. परमेश्वर कहता है कि कुरआन से पहले भी जब कभी ईश्वरीय वाणी की प्रकाशना की गयी है, उसमें भी यही बताया गया है।
13. इस्लाम के नियम नये नहीं हैं और न ही ये पुराने ग्रंथों की नक़ल हैं बल्कि जिस ईश्वर की ओर से पूर्व ग्रंथों की प्रकाशना की हुई है उसी ने कुरआन को भी अवतरित किया है।
14. जो कुछ भिन्नता है वह पुराने ग्रंथों में क्षेपक और विद्वानों के अनुवाद और व्याख्या के कारण है। धर्म के मौलिक सिद्धान्त जैसे कि ईश्वर का एक होना, कर्मों का पूरा फल परलोक में मिलना और ईश्वर की ओर से मनुष्य को ज्ञान की प्रकाशना होना आदि कभी नहीं बदले।
15. धर्म के इम्पलीमेंटेशन के तरीक़े से परम्पराओं में भी अन्तर देखा जा सकता है लेकिन यह सब गौण है। मुख्य चीज़ सिद्धान्त है, वह सदा से ही एक हैं।
16. सबका मालिक एक है और सबका धर्म भी एक ही है।
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