सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, February 27, 2013
Adhyatm सच्चा गुरू कौन है और उसे कैसे पहचानें ? भाग 2
हरेक गुरू ने अलग अलग चीज़ों का त्याग करना बताया और उनका स्तर भी अलग अलग ही बताया।
इनमें से किसने ठीक बताया है ?,
यह भी एक प्रश्न है।
जितने लोगों को आज गुरू माना जाता है। वे ख़ुद जीवन भर दुखी रहे और जिसने भी उनके रास्ते पर चलने की कोशिश की उस पर भी दुख का पहाड़ टूट पड़ा। बुरे लोगों ने गुरू और उनके शिष्यों को ख़ूब सताया। बुरे लोगों ने गुरूओं और उनके शिष्यों के प्राण तक लिए हैं। अच्छे लोगों ने संसार का त्याग किया तो बुरे लोगों ने संसार पर राज्य किया। इस तरह संसार का त्याग करने वाले बुरे लोगों के रास्ते से ख़ुद ही हट गए और बुरे लोगों ने समाज का डटकर शोषण किया। संसार का त्याग करने से न तो अपना दुख नष्ट हुआ और न ही समाज का।
यह और बात है कि किसी ने अपने अहसास को ही ख़त्म कर लिया हो। उसकी बेटी विधवा हुई हो तो वह रोया न हो। उसने अपनी बेटी के दुख को अपने अंदर महसूस ही न किया हो कि उसकी बेटी पर क्या दुख गुज़रा है ?
उसके घर में कोई जन्मा हो तो वह ख़ुश न हुआ हो। उसके घर में कोई मर भी जाए तो वह दुखी न होगा। उसका मन संवेदना जो खो चुका है। वह अपने मन में ख़ुशी और दुख के हरेक अहसास को महसूस करना बंद कर चुका है। उसमें और एक पत्थर में कोई फ़र्क़ नहीं बचा है। अब वह एक चलते फिरते पत्थर में बदल चुका है। ऐसे लोग परिवार छोड़ कर चले जाते हैं या परिवार में रहते भी हैं तो उनकी मनोदशा असामान्य बनी रहती है।
जब तक हमारी खाल तंदरूस्त है, वह ठंडक और गर्मी को महसूस करती है। उसके ऐसा करने से हमें दुख अनुभव होता है। वह ऐसा करना बंद कर दे। हममें से यह कोई भी न चाहेगा क्योंकि इसका मतलब है रोगी हो जाना लेकिन दिल को सुख दुख का अहसास बंद हो जाए, इसके लिए लोगों ने ज़बर्दस्त साधनाएं कीं। जो विफल रहे वे तो नाकाम ही रहे और जिनकी साधना सफल हुई, वे उनसे भी ज़्यादा नाकाम रहे। उनके दिल से सुख दुख का अहसास जाता रहा।
सुख दुख का अहसास है तो आप चंगे हैं। दुख मिटाने की कोशिश में आपका दिल संवेदना खो देगा। तब आप न ख़ुशी में ख़ुश होंगे और न दुख में दुखी होंगे। आप समझेंगे कि मुझे ‘सम‘ अवस्था प्राप्त हो गई है लेकिन हक़ीक़त में मानवीय संवेदना की स्थिति जो आपको प्राप्त थी, आपने उसे खो दिया है।
इच्छा, कामना, तृष्णा और संबंध दुख देते हैं तो दें। इन्हें छोड़कर दुख से मुक्ति मिलती है तो उस मुक्ति का अचार डालना है क्या ?
हम किसी के उपयोग के न बचें, जगत की किसी वस्तु का हम उपयोग न करें और अगर करें तो उसमें लिप्त न हों।
इस सबका लाभ क्या है ?
दुख से मुक्ति ?
वह संभव नहीं है।
कोई बुरा आदमी हमें न भी सताए, तब भी औरत बच्चे को जन्म देगी तो उसे दुख अवश्य होगा। दुख हमेशा हमारे कर्म में लिप्त होने से ही उत्पन्न नहीं होता। दुख हमारे जीवन का अंग है। परमेश्वर ने हमारे जीवन को ऐसा ही डिज़ायन किया है।
परमेश्वर ने हमारे जीवन को ऐसा क्यों बनाया है ?
परमेश्वर हमें न बताए तो हम इस सत्य को जान नहीं सकते। जीवन के सत्य को जानने के लिए हमें परमेश्वर की ज़रूरत है क्योंकि सत्य का ज्ञान केवल उसी सर्वज्ञ को है। मनुष्य का गुरू वास्तव में सदा से वही है।
सच्चा गुरू वह है जो जीने की राह दिखाता है। सच्चा गुरू आपको इसी समाज में जीना सिखाएगा। वह आपको पत्नी और परिवार के प्रति संबंधों का निर्वाह सिखाएगा। परिवार को छोड़कर भागना वह न सिखाएगा। सन्यास को वह वर्जित बताएगा। वह आपको जज़्बात में जीना सिखाएगा। वह आपके दिल की सेहत को और बढ़ाएगा। वह सुख और दुख को महसूस करना और उस पर सही प्रतिक्रिया देना सिखाएगा। वह आपको काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ने के लिए नहीं कहेगा। वह इनका सकारात्मक उपयोग सिखाएगा। ज़हर का इस्तेमाल दवा के रूप में भी होता है। वह हमें अपने दुखों की चिंता छोड़कर दूसरों के दुख में काम आना सिखाएगा। वह अपनी वाणी में यह सब विस्तार से बताएगा। अपनी वाणी के साथ वह उसके अनुसार व्यवहार करने वाले एक मनुष्य को भी लोगों का आदर्श बनाएगा ताकि लोग जान लें कि क्या करना है और कैसे करना है ?
परमेश्वर अपने ज्ञान के कारण स्वयं गुरू है और आदर्श मनुष्य उसके ज्ञान के कारण और उसके द्वारा चुने जाने के कारण गुरू है। लोग ईश्वर की वाणी को भी परख सकते हैं और उसके द्वारा घोषित आदर्श व्यक्ति को भी। परमेश्वर के कर्म भी हमारे सामने हैं और आदर्श मनष्य के कर्म भी। प्रकृति ओर इतिहास दोनों हमारे सामने हैं।
सच्चे गुरू को पाना बहुत आसान है लेकिन उसके लिए पक्षपात और पूर्वाग्रह छोड़ना पड़ेगा। दुनिया में जितने लोगों ने मनुष्य को जीवन का मक़सद और उसे पाने का तरीक़ा बताया है। आप उन सबके कामों पर नज़र डालिए और देखिए कि
1. वे ख़ुद समाज के कमज़ोर और दुखी लोगों के दुख में काम कैसे आए और कितना आए ?
2. और उन्होंने एक इंसान को दूसरे इंसान के काम आने के लिए क्या सिखाया ?
3. और उन्होंने अपने बीवी-बच्चों की देखभाल का हक़ कैसे अदा किया ?
उनमें से जिसने यह काम सबसे बेहतर तरीक़े से किया होगा, उसने अपने अनुयायियों का साथ एक दोस्त की तरह ही दिया होगा और उनके भीतर छिपी समझ को भी उन्होंने जगाया होगा और तब उनके दिल की गहराईयों में जो घटित हुआ होगा, उसे बेशक आत्मबोध कहा जा सकता है। आत्मबोध से आपको अपने कर्तव्यों का बोध होगा और उन्हें करने की भरपूर ऊर्जा मिलेगी। उन कर्तव्यों के पूरा होने से आपके परिवार और समाज का भला होगा। किसी के कर्म देखकर ही उसके मन की गहराईयों के विचारों को जाना जा सकता है कि उसके मन में सचमुच ही ‘आत्मबोध‘ घट चुका है।
इसी के बाद आदमी को ज्ञान होता है कि किस चीज़ को कितना और कैसे त्यागना है और क्यों त्यागना है ?
और किस चीज़ को कितना और कैसे भोगना है और क्यों भोगना है ?
जगत का उपभोग यही कर पाते हैं और यह जगत बना भी इसीलिए है। दुनियावी जीवन को सार्थक करने वाले यही लोग हैं। यही लोग सीधे रास्ते पर हैं और यही लोग सफलता पाने वाले हैं।
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1 comment:
Very interesting that I was thinking but was not clear
A lot of thanks
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