सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, March 10, 2013
कबीर दास परमेश्वर के दास थे, परमेश्वर नहीं थे Kabeer ke Dohe
भारत में अपने अपने गुरूओं को ईश्वर घोषित करने वालों की एक बहुत बड़ी तादाद है। उनमें एक नाम श्री रामपाल जी का भी है। वे कबीरपंथी हैं और उन्हें जगतगुरू कहा जा रहा है। जगतगुरू के अज्ञान की हालत यह है कि उन्हें अपने गुरू का पूरा नाम और उसका अर्थ भी पता नहीं है।
शॉर्ट में जिस हस्ती को कबीर कह दिया जाता है। उसका पूरा नाम कबीर दास है। कबीर अरबी में परमेश्वर का एक गुणवाचक नाम है जिसका अर्थ ‘बड़ा‘ है। दास शब्द हिन्दी का है, जिसका अर्थ ग़ुलाम है। कबीर दास नाम का अर्थ हुआ, ‘बड़े का दास‘ अर्थात ईश्वर का दास। कबीर दास ख़ुद को ज़िंदगी भर परमेश्वर का दास बताते रहे और लोगों ने उन्हें परमेश्वर घोषित कर दिया। श्री रामपाल जी भी यही कर रहे हैं। जिसे अपने गुरू के ही पूरे नाम का पता न हो, उसे परमेश्वर का और उसकी भक्ति का क्या पता होगा ?
...लेकिन यह भारत है। यहां ऐसे लोगों की भारी भीड़ है। अज्ञानी लोग जगतगुरू बनकर दुनिया को भरमा रहे हैं। अगर कबीरपंथी भाई कबीर दास जी के पूरे नाम पर भी ठीक तरह ध्यान दे लें तो वे समझ लेंगे कि कबीर दास परमेश्वर नहीं हैं, जैसा कि अज्ञानी गुरू उन्हें बता रहे हैं।
परमेश्वर से जुदा होने और उसका दास होने की हक़ीक़त स्वयं कबीर दास जी ने कितने ही दोहों में खोलकर भी बताई है। कबीर दोहावली में यह सब देखा जा सकता है। उनका पूरा नाम उनके मुख से ही सुन लीजिए-
माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।
वह स्वयं परमेश्वर से प्रार्थना भी करते थे। वह कहते हैं कि
साई इतना दीजिये जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं साधु भी भूखा न जाय।।
एक दूसरी प्रार्थना में उनके भाव देख लीजिए-
मैं अपराधी जन्म का, नख सिख भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजना, मेरी करो सम्हार।।
कबीर दास जी रात में उठकर भी भगवान का भजन करते थे-
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान।
जम जब घर ले जाएंगे, पड़ी रहेगी म्यान।।
भजन में भी वे अपना नाम न लेकर राम का नाम लेते थे-
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।।
राम के सामने कबीर दास जी अपनी हैसियत बताते हुए कहते हैं कि मेरे गले में राम की रस्सी बंधी है। वह जिधर खींचता है, मुझे उधर ही जाना पड़ता है अर्थात अपने ऊपर मेरा स्वयं का अधिकार नहीं है बल्कि राम का है।
कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउँ।
गलै राम की जेवड़ी, जित खैंचे तित जाऊँ।।
राम नाम का ज्ञान भी उन्हें स्वयं से न था बल्कि यह ज्ञान उन्हें अपने गुरू से मिला था-
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरू आपनो, गोविंद दियो बताय।।
इसमें कबीर दास जी स्वयं कह रहे हैं कि जब तक उनके गुरू ने उन्हें परमेश्वर के बारे में नहीं बताया था, तब तक उन्हें परमेश्वर का ज्ञान नहीं हुआ था।
क्या यह संभव है कि परमेश्वर को कोई दूसरा बताए कि परमेश्वर कौन है ?
कबीर दास जी कहते हैं कि अगर सतगुरू की कृपा न होती तो वे भी पत्थर की पूजा कर रहे होते-
हम भी पाहन पूजते होते, बन के रोझ।
सतगुरू की किरपा भई, सिर तैं उतरय्या बोझ।।
क्या यह संभव है कि अगर परमेश्वर को सतगुरू न मिले तो वह भी अज्ञानियों की तरह पत्थर की पूजा करता रहे ?
कबीर दास जी अपने गुरू के बारे में अपना अनुभव बताते हैं कि
बलिहारी गुरू आपनो, घड़ी सौ सौ बार।
मानुष से देवत किया, करत न लागी बार।।
कबीर दास जी की नज़र में परमेश्वर से भी बड़ा स्थान गुरू का है-
कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरू को कहते और।
हरि रूठै गुरू ठौर है, गुरू रूठै नहीं ठौर।।
परमेश्वर और कबीर एक दूसरे से अलग वुजूद रखते हैं। उनके आराध्य राम उन्हें बैकुंठ अर्थात स्वर्ग में आने का बुलावा भेजते हैं तो वह रोने लगते हैं। उन्हें बैकुंठ से ज़्यादा सुख साधुओं की संगत में मिलता है। देखिए-
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय।।
कबीर दास जी के इतने साफ़ बताने के बाद भी लोग उनकी बात उनके जीवन में भी नहीं समझते थे । उनके मरने के बाद भी लोगों ने उनसे उल्टा चलना नहीं छोड़ा। देखिए वह कहते हैं कि
समझाय समझे नहीं, पर के साथ बिकाय।
मैं खींचत हूं आपके, तू चला जमपुर जाय।।
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16 comments:
lekhk kabir sahib ke drshn ko smjhe aur us ko apna kr bde das ka das bn jaye meri yhi shubhkamnayen hain
बहुत सुंदर !
पता नहीं लेखक क्या नया कहना चाहता है...
@ Dr. Shyam Gupta ji ! कबीर दास जी के इतने साफ़ बताने के बाद भी लोग उनकी बात उनके जीवन में भी नहीं समझते थे । उनके मरने के बाद भी लोगों ने उनसे उल्टा चलना नहीं छोड़ा। देखिए वह कहते हैं कि
समझाय समझे नहीं, पर के साथ बिकाय।
मैं खींचत हूं आपके, तू चला जमपुर जाय।।
अवधू अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया |
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया |
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया |
माता-पिता मेरे कुछ नाही, ना मेरे घर दासी |
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी |
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा |
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा |
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा |
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा |
हाड चाम लहू नहीं मेरे, जाने कोई सतनाम उपासी |
तारण तरन अभै पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी |
अवधू अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया |
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया |
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया |
माता-पिता मेरे कुछ नाही, ना मेरे घर दासी |
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी |
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा |
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा |
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा |
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा |
हाड चाम लहू नहीं मेरे, जाने कोई सतनाम उपासी |
तारण तरन अभै पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी |
lekhak ye kehna chahta hai je 70 ko chod kar 1 malik ke age shish jhukao.
Bas itni si bat hai.
Aur sahi bhi hai
सही कहा आपने श्याम जी, लेखक अँधों को आईना दिखाना चाहता है जो की बिल्कूल नामूमकिन है।
ऐसे लोग जो छोटे-मोटे जादु के खेल दिखाकर (जो कोई मदारी भी कर सकता है) आज के यूग के लोगों को अंधविश्वास की दूनिया में भटका रहे हैं और कूछ बेवक़ुफ़ लोग उसे ईश्वर का दर्जा भी दे देते हैं।
अब ऐसे लोगो का मार्ग दर्शन करके लेखक को थोड़े ही कोई पूण्य मिलने वाला है।
es m aapki galti nahi lakhak ji aap ki soch jaha tak h aap wahi tak hi sochoo
yahan bat sirf ishwar ki hai k kia kabir das ishwar k samman hai .
Hamko dohe mat sunao bhayi jo topic hai uspar jame raho
Also See the Proof In Quran Sharif Of GOD Kabir.
Holy Quran Sharif - Allah Kabir (God Kabir)
http://www.jagatgururampalji.org/quran.php
Read for holly book.
Fir bad me kabir parmeshwar pr tippni karo
Inko hoya motiya bind re
bahut achhi janakari hai
आप सब की पोल खुल चुकी है
बहुत जल्द जनता जागेगी
ओर
जूतों से आपका स्वागत होगा
Bahut achi tarah s bataya apne
Koi meko clear kar sakta hai kya kabir das ji iswar the rampal ji ke bhakt bolte hai wo parmatma hai
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