सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Thursday, February 21, 2013
मनु और आद्या: जोड़ा जो स्वर्ग में बना Manu : The very first man
प्रथम भाग ‘देखिए मनु की उत्पत्ति और उनके विवाह का वर्णन, वेद में‘, से आगे पढ़ें और आगे बढ़ें-
मनु का अथर्ववेद 11वाँ काँड, 8वें सूक्त में बड़ा सुंदर वर्णन है। इसमें कुछ मुख्य बिन्दु ध्यान देने योग्य हैं कि
1. उन्हें मन्यु कहा गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है।
2. उनका विवाह संकल्प के घर में होना बताया गया है।
3. वह पहले मनुष्य थे। इसीलिए उनके विवाह में कोई मनुष्य शामिल न हुआ, न वर पक्ष की ओर से और न ही कन्या पक्ष की ओर से।
4. तब केवल तप और कर्म ही दोनों ओर से मौजूद थे अर्थात मनु और आद्या दोनों ही तप और कर्म के गुणों से युक्त थे।
5. इस विवाह को ब्रह्म ने संपन्न किया था।
6. यह उस जगह की बात है जहाँ ऋतुएं नहीं थाीं।
7. यह वर्तमान पृथ्वी से पूर्व विगत पृथ्वी की बात है।
8. तब धाता, इन्द्र, बृहस्पति और अश्विनी कुमार आदि भी पैदा नहीं हुए थे।
9. जो विद्वान विगत पृथ्वी में वर्तमान वस्तुओं के नाम जानने वाला है, वही इस पृथ्वी को जानने में समर्थ है।
10. विगत पृथ्वी को केवल महर्षि ही जानते हैं।
11. बिना माता पिता के विधाता ने मनु का शरीर कैसे बनाया ?, उसका यह कर्म उसकी महान शक्ति का परिचायक है कि उसने मनु के बाल, हड्डियाँ, नसें और माँस मज्जा कैसे बनाईं ?
उसने यह सब अपनी ‘निजी शक्ति‘ से किया।
सिर, मुंह, कंधे, पसलियाँ, पीठ, जंघांएं, घुटने और पाँवों को इतने सुंदर तरीक़े से किसने जोड़ा ?, इन्हें जोड़ने वाला भी वही ब्रह्म है।
सिर, हाथ, मुंह, गला, जीभ और हड्डियों को सुंदर खाल से ढककर कर्म करने योग्य किसने बनाया ?, यह भी उसी ब्रह्म ने किया।
इस शरीर के अलग अलग अंगों को अलग अलग रंग देकर सुंदर किसने बनाया ?, यह काम भी उसी ब्रह्म ने बनाया।
12. मनु का यह शरीर इतना सुंदर था कि सभी देवता उनके समीप रहना चाहते थे।
13. इस संसार के बनाने वाले ने इस संसार को देखने के लिए मनु को नेत्र और कान आदि भी दिए। उसने उन्हें भोगने के लिए प्राण, अपान और इन्द्रियाँ भी दीं। इन सबका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि सपने, नींद, आलस्य, निर्ऋति और पाप भी उसके अंदर उत्पन्न हो गए। आयु को कम करने वाली जरा, चक्षु, मन, खालित्य, पालित्य भी उपस्थित हो गए।
14. मनु की देह में चोरी, दुष्कर्म, पाप, सत्य, यज्ञ, महान, बल, क्षात्रधर्म और ओज आदि सकारात्मक और नकारात्मक, सब तरह की प्रवृत्तियाँ भी रख दी गईं।
मनु का अथर्ववेद 11वाँ काँड, 8वें सूक्त में बड़ा सुंदर वर्णन है। इसमें कुछ मुख्य बिन्दु ध्यान देने योग्य हैं कि
1. उन्हें मन्यु कहा गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है।
2. उनका विवाह संकल्प के घर में होना बताया गया है।
3. वह पहले मनुष्य थे। इसीलिए उनके विवाह में कोई मनुष्य शामिल न हुआ, न वर पक्ष की ओर से और न ही कन्या पक्ष की ओर से।
4. तब केवल तप और कर्म ही दोनों ओर से मौजूद थे अर्थात मनु और आद्या दोनों ही तप और कर्म के गुणों से युक्त थे।
5. इस विवाह को ब्रह्म ने संपन्न किया था।
6. यह उस जगह की बात है जहाँ ऋतुएं नहीं थाीं।
7. यह वर्तमान पृथ्वी से पूर्व विगत पृथ्वी की बात है।
8. तब धाता, इन्द्र, बृहस्पति और अश्विनी कुमार आदि भी पैदा नहीं हुए थे।
9. जो विद्वान विगत पृथ्वी में वर्तमान वस्तुओं के नाम जानने वाला है, वही इस पृथ्वी को जानने में समर्थ है।
10. विगत पृथ्वी को केवल महर्षि ही जानते हैं।
11. बिना माता पिता के विधाता ने मनु का शरीर कैसे बनाया ?, उसका यह कर्म उसकी महान शक्ति का परिचायक है कि उसने मनु के बाल, हड्डियाँ, नसें और माँस मज्जा कैसे बनाईं ?
उसने यह सब अपनी ‘निजी शक्ति‘ से किया।
सिर, मुंह, कंधे, पसलियाँ, पीठ, जंघांएं, घुटने और पाँवों को इतने सुंदर तरीक़े से किसने जोड़ा ?, इन्हें जोड़ने वाला भी वही ब्रह्म है।
सिर, हाथ, मुंह, गला, जीभ और हड्डियों को सुंदर खाल से ढककर कर्म करने योग्य किसने बनाया ?, यह भी उसी ब्रह्म ने किया।
इस शरीर के अलग अलग अंगों को अलग अलग रंग देकर सुंदर किसने बनाया ?, यह काम भी उसी ब्रह्म ने बनाया।
12. मनु का यह शरीर इतना सुंदर था कि सभी देवता उनके समीप रहना चाहते थे।
13. इस संसार के बनाने वाले ने इस संसार को देखने के लिए मनु को नेत्र और कान आदि भी दिए। उसने उन्हें भोगने के लिए प्राण, अपान और इन्द्रियाँ भी दीं। इन सबका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि सपने, नींद, आलस्य, निर्ऋति और पाप भी उसके अंदर उत्पन्न हो गए। आयु को कम करने वाली जरा, चक्षु, मन, खालित्य, पालित्य भी उपस्थित हो गए।
14. मनु की देह में चोरी, दुष्कर्म, पाप, सत्य, यज्ञ, महान, बल, क्षात्रधर्म और ओज आदि सकारात्मक और नकारात्मक, सब तरह की प्रवृत्तियाँ भी रख दी गईं।
इन बिन्दुओं पर ध्यान देने से पता चलता है कि यह पहले मनुष्य की रचना का वर्णन हो रहा है। जिसे इस पृथ्वी पर नहीं रचा गया बल्कि इसके अलावा किसी और पृथ्वी पर रचा गया। तब न तो कोई मनुष्य था और न ही इन्द्र आदि देवता थे। पहले मनुष्य के शरीर को ब्रह्म ने स्वयं अपनी शक्ति से बनाया। इससे इस शरीर की महत्ता पता चलता है। देवताओं ने भी उसके समीप रहने की इच्छा की क्योंकि वे इस शरीर का महत्व जानते थे। उसी ब्रह्म ने प्राण और इन्द्रियाँ बनाईं। उसी ने मनु को विगत पृथ्वी की चीज़ों के नामों का ज्ञान दिया ताकि वह इस पृथ्वी की चीज़ों को इस्तेमाल कर सकें। नकारात्मक प्रवृत्तियों से रक्षा के लिए उसने मनु को सत्य, यज्ञ, बल और ओज भी दिया। भौतिक संसार के शत्रुओं से लड़ने लिए उसने मनु को क्षात्रधर्म से भी युक्त किया।
पहले मनुष्य की रचना के बाद ब्रह्म ने उनके लिए पहली औरत ‘आद्या‘ को उत्पन्न किया। मनु का आद्या से विवाह ब्रह्म ने स्वयं किया। इससे विवाह के महत्व का पता चलता है। इसीलिए कहा जाता है कि जोड़ा स्वर्ग में बनता है। लोग कहते तो हैं लेकिन जानते नहीं है कि स्वर्ग में सबसे पहला जोड़ा किसका बना था और यह कहावत कैसे चली ?
जो ईश्वरीय ज्ञान रखता है वह अथर्ववेद के इस सूक्त को देखकर यही कहेगा कि निस्संदेह इस सूक्त में ईश्वरीय ज्ञान है। कोई भी मनुष्य अपने अनुमान से यह नहीं बता सकता कि
1. पहले मनुष्य की रचना कहाँ हुई और किसने की ?,
2. उसका विवाह किससे हुआ और किसने किया ?
और यह कि
3. उसे ‘चीज़ों के नामों का ज्ञान‘ भी दिया गया था।
...और यह कहना तो और भी ज़्यादा अचंभित करता है कि
4. ये सब काम ‘संकल्प के घर‘ में हुए थे।
ये बातें केवल एक ईश्वर ही जानता है और वही बता सकता है। इसीलिए हम कहते हैं कि वेद में ईश्वरीय ज्ञान आज भी मौजूद है। यह ज्ञान आज भी अज्ञान को मिटाने में सक्षम है।
अथर्ववेद के इस सूक्त से मनुष्य जान सकता है कि उसके माता- पिता की उत्पत्ति कहाँ और किस उद्देश्य के लिए हुई थी और किसने की थी ?
उस विगत पृथ्वी पर उस रचनाकार ने क्या संकल्प लिया था ?
जो उस संकल्प को नहीं जानता, वह दुनिया में केवल भटकता ही रहता है।
वह ज़्यादा खा, पी और टहल सकता है लेकिन अपने जीवन के उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर सकता। जब वह जीवन का उद्देश्य जानता ही नहीं है तो पूरा क्या करेगा ?
पहले मनुष्य की रचना के बाद ब्रह्म ने उनके लिए पहली औरत ‘आद्या‘ को उत्पन्न किया। मनु का आद्या से विवाह ब्रह्म ने स्वयं किया। इससे विवाह के महत्व का पता चलता है। इसीलिए कहा जाता है कि जोड़ा स्वर्ग में बनता है। लोग कहते तो हैं लेकिन जानते नहीं है कि स्वर्ग में सबसे पहला जोड़ा किसका बना था और यह कहावत कैसे चली ?
जो ईश्वरीय ज्ञान रखता है वह अथर्ववेद के इस सूक्त को देखकर यही कहेगा कि निस्संदेह इस सूक्त में ईश्वरीय ज्ञान है। कोई भी मनुष्य अपने अनुमान से यह नहीं बता सकता कि
1. पहले मनुष्य की रचना कहाँ हुई और किसने की ?,
2. उसका विवाह किससे हुआ और किसने किया ?
और यह कि
3. उसे ‘चीज़ों के नामों का ज्ञान‘ भी दिया गया था।
...और यह कहना तो और भी ज़्यादा अचंभित करता है कि
4. ये सब काम ‘संकल्प के घर‘ में हुए थे।
ये बातें केवल एक ईश्वर ही जानता है और वही बता सकता है। इसीलिए हम कहते हैं कि वेद में ईश्वरीय ज्ञान आज भी मौजूद है। यह ज्ञान आज भी अज्ञान को मिटाने में सक्षम है।
अथर्ववेद के इस सूक्त से मनुष्य जान सकता है कि उसके माता- पिता की उत्पत्ति कहाँ और किस उद्देश्य के लिए हुई थी और किसने की थी ?
उस विगत पृथ्वी पर उस रचनाकार ने क्या संकल्प लिया था ?
जो उस संकल्प को नहीं जानता, वह दुनिया में केवल भटकता ही रहता है।
वह ज़्यादा खा, पी और टहल सकता है लेकिन अपने जीवन के उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर सकता। जब वह जीवन का उद्देश्य जानता ही नहीं है तो पूरा क्या करेगा ?
...और अति विनम्रता के साथ हम यह भी कहना चाहेंगे कि अगर हम न बताएं तो वह अथर्ववेद का यह सूक्त तो क्या चारों वेद पढ़कर भी इन प्रश्नों का उत्तर नहीं जान सकता।
अगर ईश्वर ने ही स्वयं हमें न बताया होता तो हम भी न बता सकते। हक़ीक़त जानने वाला केवल वही एक परमेश्वर है। इसीलिए उसके लिए दिल की गहराईयों से यह भाव उठता है-
सुब्हान-अल्लाह अर्थात परमेश्वर पवित्र है।
अगर ईश्वर ने ही स्वयं हमें न बताया होता तो हम भी न बता सकते। हक़ीक़त जानने वाला केवल वही एक परमेश्वर है। इसीलिए उसके लिए दिल की गहराईयों से यह भाव उठता है-
सुब्हान-अल्लाह अर्थात परमेश्वर पवित्र है।
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3 comments:
nice
एक तरफ तो कहते हो कि तब देवता आदि कोई भी नहीं था दूसरी ओर उसके उलट ...
'मनु का यह शरीर इतना सुंदर था कि सभी देवता उनके समीप रहना चाहते थे।'
---सब उल-जुलूल, मन गढ़ंत अर्थ -अनर्थ किये दे रहे हो ...यह तुम्हारे बस का नहीं है
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपको हिंदी ब्लॉगिंग में इतना समय हो गया लेकिन आपको यह सलीक़ा नहीं आया कि किसी क़िस्तवार लेख को समझने के लिए उसके पहले भाग को भी पढ़ना चाहिए। इस लेख के शुरू में पहले लेख का लिंक दिया गया है। उसे पढ़िए और समझने की सलाहियत तो समझ लीजिए और समझ में न आए तो पूछ लीजिए। तब हम बता देंगे कि वेद के इस सूक्त का अर्थ क्या है ?
वेद को समझना आपके बस का नहीं है। वेदों के अर्थ का अनर्थ आप जैसे हठी लोगों ने ही किया है।
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