सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Tuesday, February 26, 2013

सच्चा गुरू कौन है और उसे कैसे पहचानें ? Spirituallity

यह एक प्रश्न है जिस पर हमेशा ही विचार किया गया है। आदरणीय चैतन्य नागर जी ने अपने एक लेख ‘धार्मिक सर्कस में गुरूओं का तांडव‘ में भी यही प्रश्न उठाया है। उनके लेख को पढ़कर यह जाना जा सकता है कि आज ख़ास व आम हरेक आदमी धर्म, मत और संप्रदायों के गुरूओं के कारण कितना ज़्यादा चकराया हुआ है।  आदरणीय चैतन्य नागर जी कहते हैं कि
अलग-अलग धर्मों, सिद्धान्तों, मतों, विचारों, सम्प्रदायों के कई रंगरूप और मुद्राओं वाले गुरु चैबिसों घंटे अपनी बातें दोहराते आपको दिख जाएंगे। धर्म में रुचि रखने वाला कोई व्यक्ति यदि इन सभी गुरुओं की बातों पर गौर करे तो उसके मन में शंका, भ्रम और प्रश्नों का जो बवंडर उठ खड़ा होगा उसे सम्भाल पाना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा। यहां किसी विशेष संप्रदाय, धर्म या मत से जुड़े किसी गुरु, व्यक्ति या अनुयायी के बारे कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है। सिर्फ आध्यात्मिकता के वर्तमान स्वरूप, उसके अर्थ और उससे जुड़े लोगों की मानसिकता के बारे में  कुछ सवाल किए जा रहे हैं। ऐसे सवाल जो हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक और धार्मिक जीवन से जुड़े हैं। 

कई प्रश्न हैं: गुरु और शिष्य के बीच विभाजन और दूरी का आधार क्या है? शास्त्रों का ज्ञान? कोई अतीन्द्रिय ताकत? कोई चमत्कार? क्या शास्त्रों को पढ़कर और उनकी व्याख्या करके कोई व्यक्ति गुरु बन सकता है? आप कैसे पता करेंगे कि कोई व्यक्ति वास्तव में गुरु बनने के योग्य है? उसके अनुयायियों की संख्या के आधार पर या फिर इस उम्मीद से कि शायद उसके पास सत्य की कुंजी होगी? यदि आप यह जानते हैं कि किसी व्यक्ति के पास सत्य है तो फिर इसका अर्थ यह हुआ कि आपको भी पता है कि सत्य क्या है। और जब आप यह जानते ही हैं कि सत्य क्या है तो फिर किसी गुरु शरण में जाने की आपको जरूरत ही क्या है ? 
आदरणीय नागर जी केवल प्रश्न ही खड़ा नहीं करते बल्कि उसका जवाब भी सुझाते हैं। वह कहते हैं कि 


हमारी इस प्रवृत्ति का शोषण करने वाले कई लोग है जो हमारे और सत्य के बीच एजेंट होने का दावा करते हैं। हम सीधे खुद को समझने की कोशिश करने के बजाए किसी आसान शॉर्टकट में ज्यादा रुचि रखते हैं। 
मेरे विचार से सही गुरु वह है जो दोस्त की तरह आपका हाथ थामे आपसे बतचीत करे और आपके भीतर छिपी हुई समझ को जगाने की कोशिश करे। आत्मबोध की यात्रा पूरी तरह से एक ऐसी यात्रा है जो हमारे मन की गहराइयों में घटित होती है। जहां आप अकेले होते हैं अपनी खामोशी के साथ, जिन्दगी से जुड़े अपने सवालों के साथ। 

बेशक चैतन्य नागर जी ने एक अच्छा लेख लिखा है लेकिन उनके लेख से मूल प्रश्न हल नहीं होता बल्कि कुछ नए प्रश्न ज़रूर खड़े हो जाते हैं।
1. चैतन्य नागर जी ने दोस्त की तरह हाथ थामने वाले को ‘सही गुरू‘ माना है। किसी गुरू के ‘सही‘ होने का यह कोई आधार नहीं है। ग़लत क़िस्म के गुरू भी दोस्त की तरह हाथ थाम लेते हैं। अगर श्रद्धालु कोई लड़की है तो उसका हाथ तो ग़लत गुरू सदैव ‘फ़्रेंड‘ की तरह ही थामता है।
2. दूसरा प्रश्न यह है कि मन की गहराईयों में बहुत कुछ घटित होता है। वहां ‘आत्मबोध‘ ही घटित हो रहा है, यह कैसे पता चलेगा ?
3. नागर जी ने सही गुरू मिलने और मन की गहराईयों में आत्मबोध घटित होने का प्रभाव ‘दुख से मुक्ति‘ माना है।  ?

क्या मानव जाति के पूरे इतिहास में कोई दौर ऐसा गुज़रा है कि मनुष्य समाज दुख से मुक्ति पा सका हो ?
नहीं ! मनुष्य समाज कभी 100 या 10 या 1 वर्ष के लिए भी मुक्ति न पा सका, चाहे उन्होंने बिल्कुल सही गुरू से ही शिक्षा क्यों न पाई हो, तब भी !

अपनी इच्छा को ख़त्म करने की इच्छा भी एक इच्छा है। इच्छा ख़त्म नहीं हो सकती।
निष्काम भाव से कर्म करने की कामना भी एक कामना ही है। कामना का नाश संभव नहीं है. 
जितने लोग यह सब सिखा रहे हैं। वे एक ऐसी बात सिखा रहे हैं, जो इस दुनिया में न कभी घटित हुई और न ही कभी घटित होगी। असफलता पहले से निश्चित है। असफलता के मार्ग पर चलने वाले कभी सफलता का मार्ग नहीं दिखा सकते। 
सच्चा गुरू इनके दायरे से अलग ही मिलेगा। जीवन का मक़सद वही बताएगा और वह जीवन का मक़सद दुख से मुक्ति या आवागमन के दुखदायक चक्र से मुक्ति के अलावा कुछ और ही बताएगा। यह उसका मूल लक्षण है।
अधिकतर लोग किसी का त्याग देखकर उसे गुरू बना लेते हैं। लोग सोचते हैं कि इसके दिल में लालच नहीं है। यह ज़रूर सही आदमी होगा। देखो, इसने बीवी-बच्चे, घर-बार और संसार का हरेक ऐशो आराम छोड़ दिया है। इसे गुरू बना लो। यह बिल्कुल ज़रूरी नहीं है कि जिसने संसार त्याग दिया हो, उसे ज्ञान भी हो और यह भी ज़रूरी नहीं है कि जिसे ज्ञान हो, उसने संसार त्याग दिया हो।
                                            (जारी ...)

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