सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, October 9, 2011
नास्तिकता का ढोंग रचाते हैं कुछ बुद्धिजीवी
जैसे लोग आस्तिकता का ढोंग करते हैं और लोग उन्हें आस्तिक समझ लेते हैं, ऐसे ही कुछ लोग नास्तिकता का ढोंग करते हैं और लोग उन्हें नास्तिक समझ लेते हैं।
कुछ लोग आस्तिक होने का दावा करते हैं और काम नास्तिकता के करते हैं, ऐसे ही कुछ लोग नास्तिक होने का दावा करते हैं लेकिन धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं।
किसी भी बूढे नास्तिक के बच्चों के जीवन साथियों को देख लीजिए, अपने बच्चों का विवाह वह उसी रीति के अनुसार करता है, जो कि उसके पूर्वजों का धर्म सिखाता है और जिसके इन्कार का दम भरकर वह बुद्धिजीवी कहलाता है।
नास्तिकों को भी आजीवन अपने बारे में यही भ्रम रहता है कि वे नास्तिक हैं, जब कि वे भी उसी तरह के पाखंड का शिकार होते हैं, जिस तरह के पाखंड का शिकार वे आस्तिकता के झूठे दावेदारों को समझते हैं।
जाकिर अली 'रजनीश' जी ! आपको अब यह भी जान लेना चाहिए कि ऐसे कई ब्लॉग हैं जहां संयमित भाषा में तर्क-वितर्क होता है।
धन्यवाद !
हमारे यह विचार निम्न पोस्ट पर हैं :
ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाता 'नास्तिकों का ब्लॉग'
('जनसंदेश टाइम्स', 05 अक्टूबर, 2011 के
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
दुनिया के समस्त धर्म ग्रन्थ मुक्त कंठ से ईश्वर की प्रशंसा के कोरस में मुब्तिला नजर आते है। उनका केन्द्रीय भाव यही है कि ईश्वर महान है। वह कभी भी, कुछ भी कर सकता है। एक क्षण में राई को पर्वत, पर्वत को राई। इसलिए हे मनुष्यो, यदि तुम चाहते हो कि सदा हंसी खुशी रहो, तरक्की की सीढि़याँ चढ़ो, तो ईश्वर की वंदना करो, उसकी प्रार्थना करो। और अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो ईश्वर तुम्हें नरक की आग में डाल देगा। और लालच तथा डर से घिरा हुआ इंसान न चाहते हुए भी ईश्वर की शरण में नतमस्तक हो जाता है।
लेकिन दुनिया में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जो ईश्वरवादियों के रचाए इस मायाजाल को समझते हैं। ऐसे लोग वैचारिक मंथन के बाद इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि ईश्वर आदमी के मन की उपज है और कुछ नहीं, जिसे मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए, अपनी सत्ता चलाने के लिए सृजित किया है। ऐसे लोग विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक नीत्शे के सुर में सुर मिलाते हुए कहते है- ‘मैं ईश्वर में विश्वास नहीं कर सकता। वह हर वक्त अपनी तारीफ सुनना चाहता है। ईश्वर यही चाहता है कि दुनिया के लोग कहें कि हे ईश्वर, तू कितना महान है।’ नास्तिकता का दर्शन भारत में ‘लोकायत’ के नाम से प्रचलित रहा है। ‘लोकायत’ के अनुयायी ईश्वर की सत्ता पर विश्वाश नही करते थे। उनका मानना था की क्रमबद्ध व्यवस्था ही विश्व के होने का एकमात्र कारण है, एवं इसमें किसी अन्य बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नही है। कहा जाता है कि भारतीय दर्शन की इस परम्परा को बलपूर्वक नष्ट कर दिया गया। उसी परम्परा, उसी दर्शन को आगे बढ़ाने क काम कर रहा है ‘नास्तिकों का ब्लॉग’ (http://nastikonblog.blogspot.com), जोकि एक सामुहिक ब्लॉग है।
‘नास्तिकों का ब्लॉग’ एक ऐसे लोगों का समूह है, जो नास्तिकता में विश्वास करता है। इस ब्लॉग के संचालकों का मानना है कि नास्तिकता सहज स्वाभाविक है, प्राकृतिक है। उनका कहना है कि हर बच्चा जन्म से नास्तिक ही होता है। धर्म, ईश्वर और आस्तिकता से उसका परिचय इस दुनिया में आने के बाद ही कराया जाता है, इसी दुनिया के कुछ लोगों के द्वारा। ब्लॉग के संचालक इसके निर्माण के पीछे का उद्देश्य बताते हुए कहते हैं- ‘हमारा प्रयास मानवतावादी दृष्टिकोण को उभारने का रहेगा, जो किसी सम्प्रदाय अथवा धर्म के हस्तक्षेप से मुक्त हो।’ साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अगर आप ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखते हैं, तो आपका इस ब्लॉग में स्वागत है। लेकिन अगर आप आस्तिक हैं, तो भी आप हमसे इस ब्लॉग पर आकर तर्क-वितर्क कर सकते हैं। यहाँ पर शर्त सिर्फ इतनी है की भाषा अपशब्द एवं व्यक्तिगत आक्षेपों से मुक्त होनी चाहिए।
यह हिन्दी का इकलौता ब्लॉग है, जहाँ पर तर्क-वितर्क होता है और वाद-विवाद भी होता है पर सब कुछ बेहद संयमित और जीवंत रूप रूप में। ईश्वर के समर्थन और विरोध में जितने तर्क हो सकते हैं, वे यहाँ देखने को मिलते हैं।
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1 comment:
Nice
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