सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, October 7, 2011
राम को इल्ज़ाम न दो Part 1 Real Ramayana
हर साल सर्दियाँ आने से पहले ही मार्कीट में मूंगफली नजर आने लगती है और उनके नजर आते ही रामलीला शुरू हो जाती है। इसी के साथ टी. वी. चैनल्स और पत्र-पत्रिकाओं में श्री रामचंद्र जी से जुडी घटनाओं पर बातचीत शुरू हो जाती है। ब्लॉगिंग की शुरूआत के बाद उनसे जुडी जानकारी अब ब्लॉगिंग में भी देखी जा सकती है।
एक ब्लॉग पर एक पोस्ट ने जानकारी दी है कि फैजाबाद में मुसलमान करते हैं रामलीला का मंचन और वे रावण को जलाते भी हैं
यहां मुसलमान करते हैं रामलीला का आयोजन Indian tradition एक ब्लॉग पर एक पोस्ट ने जानकारी दी है कि फैजाबाद में मुसलमान करते हैं रामलीला का मंचन और वे रावण को जलाते भी हैं
दूसरी पोस्ट से पता चला कि बैजनाथ कस्बे के हिंदू रावण को नहीं जलाते।
भारत भी एक अजीब देश है कि एक तरफ तो मुसलमान लगे हुए हैं रावण को जलाने में और दूसरी तरफ ऐसे हिंदू भाई भी हैं जो हिंदू होने के बावजूद रावण को नहीं जलाते।
है न ताज्जुब की बात ?
इससे भी ताज्जुब की बात यह है कि आपको हिंदू भाईयों में यह कहते हुए भी मिल जाएंगे कि रावण एक बहुत बडा ज्ञानी आदमी था बस उससे एक यही गलती हुई कि उसने सीता का हरण किया वर्ना तो उस एक कमी के अलावा उसमें कोई और कमी नहीं थी और उसे यही एक कमी नुक्सान दे गई।
कुछ हिंदू भाई इससे भी आगे बढ जाते हैं और वे श्री रामचंद्र जी में दस तरह के दोष गिना देते हैं। देखिए स्वामी चंद्रमौली जी की यह पोस्ट
स्वामी चंदरमोली Thursday October 06, 2011
रावण उच्च कोटि के विद्वान थे,यज मे होने वाली हिंसा का विरोध करते थे,दलित को मंदिर मे प्रवेश,महिलाओ की आज़ादी के पक्ष मे आंदोलन चलाया, राम ने उसकी बहन के राज्य पर हमला किया,उसके पति और बेटो की हत्या कर दी,नाक काटने का मतलब होता है,बलात्कार करना,रावण के प्रगति शील कामो की वजह से रूडी वादी संत उसके खिलाप हो गये,इसलिए उन सब ने राम का साथ दिया,रावण ने राम के इतने अत्याचारो के बाद दुखी होकर सीता का अपहरण किया,फिर भी रावण ने सीता की सहमति के बिना कुछ नही किया,राम ने उसी महान सीता को गर्भ वती होने पर भी एक धोबी के कहने से वनवास दे दिया,जनता ईमानदारी से फ़ैसला करे,कौन चरित्रवान् है,रावण दहन महपाप है,इसको देखने वाले को पाप लगता है
हमने स्वामी चंद्रमौली जी की यह पोस्ट पढी और यह देखकर ताज्जुब हुआ कि हमसे बहस करने वालों में से किसी ने भी इस पोस्ट पर उनकी आपत्तियों का निराकरण करना उचित न समझा।
यह सिलसिला यहीं तक नहीं रुकता बल्कि जब आदमी को सवाल परेशान करते हैं तो आदमी कुछ भी पूछने लगता है . श्री मनीष कुमार खेदावत जी पूछ रहे हैं कि
इस तरह की पोस्ट्स जब हमारी नज़र से गुज़रती हैं तो हमारे हालत अजीब हो जाती है . अगर हम खामोश रहें तो हमारे पूर्वज पर आरोप आ रहा है और अगर बोलते हैं तो तथाकथित हिंदुत्ववादी भाई हमें और इस्लाम को गालियाँ देने के लिए आ जायेंगे. पहले तो हमने इंतज़ार किया कि कोई हिन्दू विद्वान इन भाइयों की आपत्तियों का युक्तियुक्त रीति से निराकरण कर दे लेकिन किसी को आता न देख कर मजबूरन हमको बोलना ही पड़ा . अब जो भाई हमारे इस काम को ग़लत समझे , वह हमें बुरा भला कहने के लिए आज़ाद है.
इस तरह की बहुत सी पोस्ट्स हमारी नजर से गुजरीं, उनमें से ये चंद मात्र नमूने के तौर पर पेश कर दी गई हैं।
आप और हम उन सब पोस्ट्स को एक जगह इकठ्ठा करें और थोडा गौर करें कि महाकाव्य रामायण के नायक श्री रामचंद्र जी हैं और नायक में समस्त खूबियां होनी चाहिएं और अवगुण एक भी नहीं होना चाहिए लेकिन श्री रामचंद्र जी के चरित्र में सीता माता का परित्याग और शंबूक वध जैसी बहुत सी बातें कैसे आ गईं, जिन्हें खूबी नहीं कहा जा सकता ?
दूसरी तरफ यह देखिए कि रामायण में रावण को पराक्रमी वीर और महात्मा तक कह दिया गया जबकि वह इस कथानक का खलनायक है।
जो नायक है उसमें तो दसियों कमियां दिखा दी गई हैं और जो खलनायक है उसमें मात्र एक ही कमी दिखाई गई है, ऐसा क्यों ?
महाकाव्य रामायण को हिंदू धर्म की ओर से इतिहास के तौर पर भी पेश किया जाता है और इतिहास पर विचार करने का अधिकार सबको है।
कुछ लोग श्री रामचंद्र जी को ईश्वर का अवतार मानते हैं और दूसरी ओर कुछ दलित लोग भी हैं जो उनसे विपरीत विचार रखते हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें एक राजा दोनों ही मानते हैं।
दलित साहित्य में और नारीवादी साहित्य में ऐसा बहुत कुछ मिलता है जो कि श्री रामचंद्र जी को आरोपित करता है और रामायण में श्रृद्धा रखने वाला कोई भी विद्वान हमें ऐसा नजर नहीं आया जो कि उनकी आपत्तियों का निराकरण कर सका हो।
श्री रामचंद्र जी मनुवंशी हैं और हम भी मनुवंशी हैं। यही बात हमें श्री रामचंद्र जी से जोडती है और यही बात हमें मजबूर करती है कि जिस मुददे को दुनिया के बडे बडे विद्वान न सुलझा सके हों, उसे हम सुलझा दें और वाकई ईश्वर ने अपनी कृपा से इन सभी आपत्तियों को सुलझाना हमारे लिए आसान कर दिया है।
हम मनुवंशी भी हैं और मनुवादी भी और मनुवाद मानवतावाद के सिवा कुछ और नहीं है। मनु के धर्म के सिवाय कुछ और धर्म है ही नहीं और मनु का धर्म दया और परोपकार के सिवा कुछ और नहीं है।
एक बाप अपनी संतान को उनकी भलाई के लिए आज भी भली बातों की ही शिक्षा देता है और जिन भली बातों की शिक्षा वह देता है, वही बातें हमें धर्मग्रंथों में पहले से ही लिखी हुई मिलती हैं। यह एक अकाट्य सत्य है।
श्री रामचंद्र जी एक महापुरूष हैं और महापुरूष वह होता है जो सदाचारी हो और सदाचारी सत्य और न्याय का दामन कभी छोडता नहीं है। अब जो भी बातें सत्य और न्याय के विपरीत हों वे श्री रामचंद्र जी का आचरण कभी हो ही नहीं सकतीं।
लिहाजा जिन घटनाओं के कारण श्री रामचंद्र जी के ऊपर उंगली उठाई जाती है, उसकी कोई बुनियाद ही नहीं है।
रावण खलनायक माना जाता है। उसे भारत में बुराई का प्रतीक माना जाता है। उसने कुछ ऐसा जरूर किया होगा जिसकी वजह से श्री रामचंद्र जी को उससे युद्ध करना पडा लेकिन जब हम रावण के पूरे कैरेक्टर को सामने रखकर सोचते हैं कि वह पराक्रमी भी था और नीति का ज्ञाता भी और इतना ही नहीं बल्कि माना जाता है कि वेदों का पहला भाष्यकार भी रावण ही था।
इतनी खूबियों के साथ यह बात मैच नहीं करती कि वह श्री रामचंद्र जी को सीधे सीधे ललकारने के बजाय उनकी पत्नी का हरण कर ले जाएगा जबकि उसने इससे पहले भी बडे बडे युद्ध किए और उसने इंद्र तक को पराजित किया बल्कि उसे बांधकर ले आया। जब भी उसने युद्ध किया तो सीधे ही आक्रमण कर दिया और उसके लिए उचित भी यही था।
हिंसक पशुओं से घिरे हुए वन में किसी भी देश की राजकुमारी या कोई पीएम-सीएम आज भी अकेली नहीं घूमती तो उस समय भी नहीं घूमती होंगीं, तब सूपर्नखा भला वहां क्यों घूमेगी ?
और क्यों श्री रामचंद्र जी उससे झूठ बोलेंगे कि मैं तो विवाहित हूं, तुम मेरे भाई लक्ष्मण के पास चली जाओ।
यह पूरी घटना ही संदिग्ध प्रतीत होती है।
बात केवल यह है कि श्री रामचंद्र जी भी राजा थे और रावण भी राजा था। दोनों राज्यों के बीच सीमा का स्वाभाविक विवाद था और राजा दशरथ के राज्य के सीमांत प्रदेश में रहने वाले ऋषियों के आवास पर रावण के सैनिक अक्सर हमला करते रहते थे और इस तरह वे जन-धन की हानि पहुंचाते रहते थे। लोगों को रावण के उत्पात से मुक्ति दिलाने के लिए श्री रामचंद्र जी ने संकल्प लिया और अपने छोटे भाई भरत को राज्य सौंपकर रावण से लडने के लिए चले गए।
श्री रामचंद्र जी को अपने विरोध में आया देखकर रावण ने उन्हें ललकारा और उनसे युद्ध किया और अंततः उसने मुंह की खाई और वह युद्ध में मारा गया।
इस सादा सी बात को नई नई उपमाओं और अलंकारों से सजाने के चक्कर में कवियों ने अपनी कल्पनाओं से बहुत सी ऐसी बातें दोनों के बारे में लिख दी हैं जो कि उनके पूरे चरित्र से मैच नहीं करती हैं, अतः ऐसी सभी बातें न मानने के योग्य हैं। रावण के दस सिर होने की बात भी कवि की कल्पना मात्र है।
...और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जो लोग श्री रामचंद्र जी से द्वेष रखते थे, उन्होंने कुछ मिथ्या बातें खुद ही षडयंत्र के तहत रामायण आदि में लिख दी हों ताकि कालांतर में उन बातों को आधार बनाकर वे श्री रामचंद्र जी के निर्मल चरित्र पर सवालिया निशान लगा सकें।
वैसे भी रामायण श्री रामचंद्र जी की ऑटोबायोग्राफी नहीं है और दूसरा कोई उनके बारे में क्या लिखता है, इसकी जिम्मेदारी श्री रामचंद्र जी पर नहीं है।
हिंदू काल गणना के अनुसार श्री रामचंद्र जी को गुजरे हुए आज १२ लाख ९६ हजार साल हो चुके हैं। इतने लंबे समय के बाद आज उनसे जुडे हुए सभी प्रकरण अगर ज्यों के त्यों नहीं मिलते हैं तो यह स्वाभाविक ही है।
सीता जी एक पवित्र चरित्र की सती औरत थीं और श्री रामचंद्र जी को उनकी पवित्रता का पूरा विश्वास था। उन्होंने उनकी अग्नि परीक्षा कभी नहीं ली क्योंकि रावण सीता जी को हरण करके ले जा ही नहीं सका था। रावण केवल उनकी शक्ति का अनुमान करने के लिए ब्राह्मण का भेष बनाकर अवश्य आया था और उसने सीता जी के मन की थाह लेने के लिए उन्हें प्रलोभन भी दिया लेकिन जब सीता जी ने उसे धिक्कार दिया तो वह समझ गया कि यह चरित्रवान स्त्री है, यहां दाल गलने वाली नहीं है और वह उन्हें लिए बिना ही लंका लौट गया था।
वैसे भी अगर रावण सीता जी को साथ ले जाना चाहता तो न ले जा पाता क्योंकि मशहूर है कि शिव जी के जिस धनुष को रावण हिला तक न पाया था, उसे सीता जी नित्य एक हाथ से उठाकर सफाई किया करती थीं। परस्त्री का हरण करना अधम कोटि का काम था जिसे एक नीति कुशल ब्राह्मण विद्वान कभी कर ही नहीं सकता।
सीता जी श्री रामचंद्र जी के संग सदा ही रहीं और उनकी पवित्रता का विश्वास भी श्री रामचंद्र जी को सदा ही रहा। बाद के काल में अपने लिए तर्क जुटाने की खातिर पुरूष वर्चस्ववादियो द्वारा ऐसे प्रसंग रामायण में जोड दिए गए जिनमें सीता जी की अग्नि परीक्षा लेने और उनके परित्याग करने का जिक्र मिलता है।
जरा सोचिए कि इसी रामायण का एक पात्र अंजलि भी है। वह वन से गर्भवती होकर लौटती है और सारा किस्सा अपने पति केसरी को बताती है कि किस तरह उसकी अनिच्छा के बावजूद उसे पवन देवता ने वरदान देकर गर्भवती कर दिया है।
सब कुछ जानने के बाद भी न तो केसरी अंजलि के चरित्र पर शक करते हैं और न ही उनका त्याग करते हैं।
रामायण के अपेक्षाकृत एक छोटे से चरित्र केसरी का दिल इतना बडा है तो उसी रामायण के नायक का दिल तो केसरी से कई गुना बडा अवश्य ही होगा और ऐसा ही था भी।
ये सब कॉमन सेंस की बातें हैं और जब इस रीति से विचार किया जाता है तो किसी पर कोई आक्षेप नहीं आता। न तो सीता जी पर, न श्री रामचंद्र जी पर और न ही रावण पर।
राम-रावण युद्ध का कारण सूपर्नखा के नाक कान काटना नहीं था बल्कि उसके पीछे राजनैतिक कारण थे, जिनके विवरण रामायण में जहां-तहां मिलते ही हैं।
पिछले डेढ साल से हिंदी ब्लॉगिंग में हम 'श्री राम गौरव रक्षा अभियान' चला रहे हैं, प्रस्तुत लेख भी उसी अभियान की एक कडी है।
अंत में हम इतना ही कहेंगे कि दोषपूर्ण बात कभी धर्म नहीं होती। इसीलिए धर्म और मर्यादा की रक्षा करने वाले महापुरूष कभी दोषयुक्त आचरण नहीं करते।
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1 comment:
"बात केवल यह है कि श्री रामचंद्र जी भी राजा थे और रावण भी राजा था। दोनों राज्यों के बीच सीमा का स्वाभाविक विवाद था और राजा दशरथ के राज्य के सीमांत प्रदेश में रहने वाले ऋषियों के आवास पर रावण के सैनिक अक्सर हमला करते रहते थे और इस तरह वे जन-धन की हानि पहुंचाते रहते थे। लोगों को रावण के उत्पात से मुक्ति दिलाने के लिए श्री रामचंद्र जी ने संकल्प लिया और अपने छोटे भाई भरत को राज्य सौंपकर रावण से लडने के लिए चले गए |"
अगर सिर्फ यहीं बात थी तो राम सीधे ही रावण से क्यूँ नहीं भीड़ गए ? बेटे के वियोग में राजा दशरथ स्वर्ग न सिधारे होते | सीता को यूं इतने दिन रावण की बंदिनी न बनना होता | खुद राम को नंगे पैर न घूमना होता | उर्मिला को पति वियोग में 14 साल न तड़पना पड़ता |लव का बचपन यूं जंगलों में न बीता होता :|
हर बात इतनी भी आसान नहीं होती |
कुछ ज्यादा कह देने के लिए क्षमाप्राथी हूँ :)
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