सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Thursday, October 20, 2011
धर्म का दावा करने वालों की हक़ीक़त
सनातन है समर्पण और आज्ञापालन की रीत
ईश्वर सदा से है और एक ही है। पूर्ण समर्पण भाव से उसकी आज्ञा का पालन ही धर्म है और यह धर्म आज से नहीं है बल्कि सनातन काल से है।
इस्लाम का अर्थ है समर्पण और आज्ञापालन।
दरअसल इन शब्दों से इनके अर्थ का ग्रहण करना चाहिए लेकिन लोगों ने इन्हें लेबल बना दिया है।
चाहे कोई ऐसे दर्शन पर चलता हो जो कि अभी कल ही पैदा हुआ है लेकिन वह खुद को सनातन धर्मी कहता है तो समाज उसे सनातन धर्मी ही मान लेता है।
ऐसे ही चाहे एक आदमी पूरे दिन ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन ही करता रहता हो लेकिन वह खुद को मुस्लिम कहता है तो समाज उसे मुस्लिम मान लेता है।
अपने हिंदू भाईयों के बारे में हम कुछ कहेंगे तो वे इसे अन्यथा ले सकते हैं लिहाज़ा यहां हम अपने मुसलमान भाईयों के आचरण की एक मिसाल लेते हैं।
दरअसल यह दो टिप्पणियों का संपादित अंश है, जिसे हमने वर्ष 2010 ई. में तहरीर किया था।
इस्लाम का अर्थ है समर्पण और आज्ञापालन।
दरअसल इन शब्दों से इनके अर्थ का ग्रहण करना चाहिए लेकिन लोगों ने इन्हें लेबल बना दिया है।
चाहे कोई ऐसे दर्शन पर चलता हो जो कि अभी कल ही पैदा हुआ है लेकिन वह खुद को सनातन धर्मी कहता है तो समाज उसे सनातन धर्मी ही मान लेता है।
ऐसे ही चाहे एक आदमी पूरे दिन ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन ही करता रहता हो लेकिन वह खुद को मुस्लिम कहता है तो समाज उसे मुस्लिम मान लेता है।
अपने हिंदू भाईयों के बारे में हम कुछ कहेंगे तो वे इसे अन्यथा ले सकते हैं लिहाज़ा यहां हम अपने मुसलमान भाईयों के आचरण की एक मिसाल लेते हैं।
दरअसल यह दो टिप्पणियों का संपादित अंश है, जिसे हमने वर्ष 2010 ई. में तहरीर किया था।
मुसलमानों का परम चरम पतन
चार साल पहले ग़ालिब के प्रशंसकों ने दिल्ली सरकार के सहयोग से ग़ालिब की हवेली को उसकी पुरानी सूरत में खड़ा कर दिया है । यह हवेली बल्लीमारान , दिल्ली में है और तब से गाने बजाने और नाचने का आयोजन हर साल होता है , जिसे सांस्कृतिक आयोजन कहा जाता है और इसमें गुलज़ार जैसे साहित्यकार भी भाग लेते हैं । इस समारोह का आयोजन यादगारे ग़ालिब के नाम से नृत्यांगना उमा शर्मा साहित्य कला परिषद के सहयोग से करती हैं । अभी पिछले हफ्ते जब यह आयोजन हुआ तो उसमें पवन वर्मा जी ने मिर्ज़ा ग़ालिब की जिंदगी के बारे में अपना एक लेख भी सुनाया ।
इसकी रिपोर्ट दैनिक हिंदुस्तान अंक 2 दिनांक 9 जनवरी 2011 पृष्ठ 14 पर छपी है ।
इसकी रिपोर्ट दैनिक हिंदुस्तान अंक 2 दिनांक 9 जनवरी 2011 पृष्ठ 14 पर छपी है ।
... और यादगारे ग़ालिब के नाम से नाचने गाने का यह आयोजन हुआ कहां ?
इंडिया इस्लामिक सभागार मेँ ।
जो सभागार इंडिया में इस्लामिक एक्टिविटीज़ के लिए बनाया गया था वहां मुजरे हो रहे हैं ।
क्या यह मुसलमानों के परम चरम पतन का खुला प्रमाण नहीं है ?
और ऐसा कहने के पीछे मेरा मक़सद मुसलमानों को नीचा दिखाना नहीं है बल्कि यह सच्चाई सामने लाना है कि मुसलमान जिस दीन पर ईमान का दावा करते हैं उसका शऊर उन्हें कितना कम है ?
कुरआन के हुक्म के मुताबिक़ उनकी ज़िंदगी में अमल कितना कम है ?
जन्नत में दाख़िले के लिए महज़ ईमान का दावा काफ़ी नहीं है बल्कि सचमुच ईमान होना ज़रूरी है और रब पर ईमान है या नहीं इसका पता चलता है आदमी के अमल से कि आदमी का अमल रबमुखी है या मनमुखी ?
जन्नत का शाश्वत जीवन उसी को मिलेगा जिसने नेकी की राह में शाश्वत और अमर प्रभु के लिए अपनी जान दी होगी या जान देने का रिस्क उठाया होगा और जो लोग अपने मन की वासनाओं के कारण अपने रब से दूर होकर आज घिनौने जुर्म करके आनंद मना रहे हैं वे अपने रब तक पहुंचने वाले नहीं हैं ।
इंडिया इस्लामिक सभागार मेँ ।
जो सभागार इंडिया में इस्लामिक एक्टिविटीज़ के लिए बनाया गया था वहां मुजरे हो रहे हैं ।
क्या यह मुसलमानों के परम चरम पतन का खुला प्रमाण नहीं है ?
और ऐसा कहने के पीछे मेरा मक़सद मुसलमानों को नीचा दिखाना नहीं है बल्कि यह सच्चाई सामने लाना है कि मुसलमान जिस दीन पर ईमान का दावा करते हैं उसका शऊर उन्हें कितना कम है ?
कुरआन के हुक्म के मुताबिक़ उनकी ज़िंदगी में अमल कितना कम है ?
जन्नत में दाख़िले के लिए महज़ ईमान का दावा काफ़ी नहीं है बल्कि सचमुच ईमान होना ज़रूरी है और रब पर ईमान है या नहीं इसका पता चलता है आदमी के अमल से कि आदमी का अमल रबमुखी है या मनमुखी ?
जन्नत का शाश्वत जीवन उसी को मिलेगा जिसने नेकी की राह में शाश्वत और अमर प्रभु के लिए अपनी जान दी होगी या जान देने का रिस्क उठाया होगा और जो लोग अपने मन की वासनाओं के कारण अपने रब से दूर होकर आज घिनौने जुर्म करके आनंद मना रहे हैं वे अपने रब तक पहुंचने वाले नहीं हैं ।
इस टिप्पणी को आप इस लिंक पर देख सकते हैं :
जन्नत के बारे में ग़ालिब के ख़याल की हक़ीक़त Standard scale for moral values
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