सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, October 5, 2011
Afganistan में सोम बूटी आज भी मिलती है लेकिन 'होम' (Haoma) के नाम से
वेदों में सोम नाम की एक वनस्पति का जिक्र बडी अहमियत के साथ आया है।
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ईरान में पाई जाने वाली HAOMA or Ephedra बूटी के कुछ औषधीय गुण इस प्रकार हैं :
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वर्तमान वैदिक साहित्यकारों के बीच इस बूटी को लेकर बहुत से मतभेद हैं।
कोई विद्वान कहता है कि वह बूटी अब लुप्त हो चुकी है और कोई कहता है कि वह बूटी भांग है और कुछ दूसरे विद्वान अलग अलग बूटियों को सोम बताते हैं यहां तक कि किसी ने तो गन्ने को भी सोम कह दिया है क्योंकि इसके रस में दूध मिलाकर पकाया जाता है।
ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि सोम की तलाश केवल भारत की भौगोलिक परिधि और केवल भारतीय साहित्य के आधार पर की गई और अब भी ऐसी ही कोशिशें जारी हैं।
इसी सिलसिले में आज 'साई ब्लॉग' पर एक लेख पढा तो हमने वहां यह कहा
डिस्कवरी चैनल के एक प्रोग्राम में भारत, अफगानिस्तान और ईरान की यात्रा में सोम बूटी का जिक्र भी आया था। ईरान के पुराने नगरों के भग्नावशेषों में सोम रस तैयार करने के पात्र आदि भी दिखाए थे और यह भी अफगानिस्तान में आज भी यह बूटी 'होम' के नाम से पंसारियों के पास आसानी से मिल जाती है।
अपने कमेंट के जवाब में हमें एक ईमेल प्राप्त हुई और उसमें आदरणीय डा. अरविन्द मिश्रा जी ने हमारी बात की तसदीक़ की तो हमें वाकई खुशी हुई और यह खुशी की बात भी है कि जो मुद्दा सैकडों साल से अनसुलझा और विवादित पडा हो, वह कुछ सुलझ जाए और कुछ सच्चाई सामने आ जाए तो वास्तव में यह एक उपलब्धि ही है।
डा. अरविन्द मिश्रा जी ने कहा कि
डॉ जमाल साहब ,
आपने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है ...दरअसल अवेस्तन या पारसियों का Haoma ही सोम है और मजे की बात देखिये हमारे यहाँ सामान्य यग्य अनुष्ठानों के लिए होम शब्द ही व्यवहृत होता है -होम करने का मतलब सोम आयोजन !हमने जवाबन अर्ज़ किया कि
आदरणीय अरविन्द मिश्रा जी ,
आपका शुक्रिया कि आपने एक सही बात की तस्दीक की, इससे एक ऐसी बात हम सबके सामने आती है जिससे कि हमें हमारी प्राचीन परंपराओं को समझने में मदद मिलेगी और इसी के साथ वृहत्तर भारत की सांस्कृतिक एकता भी प्रमाणित होती है। यही एकता भारत को विश्व का सिरमौर बनाएगी।धन्यवाद !------------------
ईरान में पाई जाने वाली HAOMA or Ephedra बूटी के कुछ औषधीय गुण इस प्रकार हैं :
Indigenous to Iran this is a small plant with yellow flowers. It was also found to have an intoxicating effect and then said by Ahura Mazda to be a ‘waste of time’ causing the consumer to be become irrational.
Widely used for muscular and bronchial complaints, headaches, as an antiseptic, aid to digestion and a blood purifier. It’s now thought to have properties close to penicillin and can be used
for hay fever, asthma, and for colds and fevers.Interestingly enough it is thought to be very useful in loosing weight but before you rush out to find it, there is a recommended limit of 150mg per day. Generally it’s an all round healer as it’s supposed to promote the bodies natural ability of the body to fight invading diseases through a natural antibiotic called interferon.
Source : http://javanehskitchen.wordpress.com/category/interesting-info---------------------------------
...और अब आप वह लेख भी देख लीजिए, जिस पर हमारा यह संवाद वुजूद में आया।
कहीं यह नागफनी ही तो सोम नहीं है?
भारत की प्राचीन जादुई प्रभावों वाली सोम बूटी और सोमरस पर विस्तृत चर्चा यहाँपहले ही की जा चुकी है. आखिर वह कौन सी जडी -बूटी थी जो अब पहचानी नहीं जा पा रही है? क्या यह विलुप्त ही हो गयी? मशरूम (खुम्बी /गुच्छी) की कोई प्रजाति या भारत और नेपाल के पहाडी क्षेत्रों में पाया जाने वाला यार सा गुम्बा ही तो कहीं सोम नहीं है -यह पड़ताल भी हम पहले कर चुके हैं .भारत में सोम की खोज कई शोध प्रेमियों का प्रिय शगल रहा है -जिसके पीछे मुख्यत तो कौतूहल भाव रहा है मगर इसके व्यावसायिक निहितार्थों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती ...मेरा तो केवल शुद्ध जिज्ञासा भाव ही रहा है सोम को जानने समझने की और इसीलिये मैं इस चमत्कारिक जडी की खोज में कितने ही पौराणिक /मिथकीय और आधुनिक साहित्य को देखता फिरता रहता हूँ ...
एक बार अपने पैतृक आवास पर अवकाश के दिनों मुझे अथर्ववेद परायण के दौरान एक जगह सोम के बारे जब यह लिखा हुआ मिला कि 'तुम्हे वाराह ने ढूँढा" तो मैं बल्लियों उछल पडा था - कारण कि मशरूम की कुछ प्रजातियाँ तो वाराह यानी सुअरों द्वारा ही खोजी जाती हैं ....यह वह पहला जोरदार भारतीय साक्ष्य था जो सोम को एक मशरूम प्रजाति का होने का दावा कर रहा था ....
सोम बूटी का नया दावा:नागफनी की एक प्रजाति
अब अध्ययन के उसी क्रम में एक नागफनी की प्रजाति के सोम होने का संकेत मिला है .जिसे पेयोट(peyote) कहते हैं -सोम का जिक्र मशहूर विज्ञान गल्प लेखक आल्दुअस हक्सले ने अपनी अंतिम पुस्तक आईलैंड(island ) में भी किया था .अपनी एक और बहुचर्चित पुस्तक 'द ब्रेव न्यू वर्ल्ड' में उन्होंने संसार के सारे दुखों से मुंह मोड़ने के जुगाड़ स्वरुप सोमा बटी का जिक्र किया था तो आईलैंड में मोक्ष बटी का जिक्र किया जिसका स्रोत कोई फंफूद बताया गया था ....उन्होंने अपनी एक नान फिक्शन पुस्तक 'द डोर्स आफ परसेप्शन' में नागफनी की उक्त प्रजाति का भी जिक्र किया है जिसमें मेस्केलाईन नाम का पदार्थ मिलता है जिसकी मादकता मिथकीय सोम से मिलती जुलती है और इसके बारे में उन्होंने लिखा कि इसका प्रयोग दक्षिण पश्चिम भारत के कई धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता रहा है ..ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत का यह कोना संस्कृति के आदि चरणों का साक्षी रहा है.....
जाहिर है पेयोट अब सोम के संभाव्य अभ्यर्थी बूटियों में उभर आया है .....किन्तुविकीपीडिया में इसे टेक्सास और मैक्सिको मूल का बताया गया है? क्या यह नागफनी भारत के कुछ भी हिस्सों में होती रही है? और क्या इसका प्रयोग अनुष्ठानों में मादक अनुभवों के लिए होता रहा है -इस तथ्य की ताकीद की जानी है....और इसलिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ कि कोई भी सुधी जन ज्ञान प्रेमी इसके बारे में जानकारी देकर सोम साहित्य गवेषणा के यज्ञ में हविदान करें तो स्वागत है .
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3 comments:
सोम की खोज एक अनवरत और अनंत खोज है ....हम आगे भी इस जडी /बूटी पर अपना साझा ध्यान देते रहेगें ....
आभार !
anvar bhai bhtrin lekh yeh som buti khte hain ke noydaa dilli ke aek sksena saahb ke yhaan bhi hai lekin uskaa istemaal kese hogaa unhe ptaa nhin hai voh nagfani premi or naagfani club ke adhyksh hain .akhtar khan akela kota rajsthan
Thank you very much for this very important information. It can be useful for many aurvedic and unani medicine doctors.
Best Regards
Zafar
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