सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, August 15, 2010
Sacrifices of muslim ulema हज़रत मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रहमतुल्लाह अलैह ने तैयार की थी फ़ौज - Anwer Jamal
दारूल उलूम देवबन्द के संस्थापक हज़रत मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रहमतुल्लाह अलैह ने अंगे्रजों की मुखालिफत ही नहीं की बल्कि उनके ख़िलाफ़ एक पूरी फौज भी तैयार की थी।
मौलाना कासिम साहब का जन्म सन् 1832 में कस्बा नानौता के एक दीनदार परिवार में हुआ था। वह इब्तिदाई तालिम हासिल करने के बाद 22 जनवरी, 1844 को मौलाना ममलूक अली नानौतवी के पास दिल्ली चले गए। 19 अक्टूबर 1951 को मौलाना ममलूक अली साहब का इंतकाल हो गया। तब वह उनके बेटे मौलाना याकूब साहब के साथ दिल्ली के कूचा चीलान में रहने लगे। यहां रहते हुये उन्होंने नौजवानों को अंग्रेजों के खिलाफ मुसल्लह बग़ावत की प्रेरणा दी। 1857 की क्रान्ति के शुरू होते ही शामली के इलाके में उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की फौज को हरा दिया गया। अंग्रेजों ने उनके वारण्ट निकाल दिये। क्रान्ति के नाकाम होने के बाद अंग्रेजों ने क्रान्तिकारियों का केन्द्र मदरसा अजीजिया, दिल्ली को पूरी तरह नेस्तोनाबूद कर दिया, और हज़ारों आलिमों को फांसी पर लटका दिया। तब मौलाना ने 1967 में दारूल उलूम की स्थापना की। 15 अप्रैल 1880 को मौलाना इस
दार-ए-फ़ानी से कूच कर गये। मौलाना जब तक जीवित रहे अंग्रेजों की मुखालिफत में सरगर्म रहे। उनकी कोशिशों से नस्ल दर नस्ल मुसलमानों में क्रान्तिकारी पैदा होते रहे। मौलाना सिर्फ़ मुसलमानों में ही नही बल्कि गैर मुस्लिमों में भी बहुत मक़बूल थे।
अफ़सोस की बात है कि दूसरे मुसलमानों के साथ उनकी कुर्बानियों को भी भुला दिया गया, जिसकी वजह से लोगों में नाउम्मीदी और बदगुमानी पैदा हुई और फ़िरक़ापरस्ती का रूझान बढ़ा। मुल्क की सलामती और तरक्की के लिये फ़िरक़ापरस्ती का ख़ात्मा ज़रूरी है और इसके लिये वतन की खातिर जान देने वाले मुसलमानों को उनका वाजिब हक़ दिया जाना ज़रूरी है।
मौलाना कासिम साहब का जन्म सन् 1832 में कस्बा नानौता के एक दीनदार परिवार में हुआ था। वह इब्तिदाई तालिम हासिल करने के बाद 22 जनवरी, 1844 को मौलाना ममलूक अली नानौतवी के पास दिल्ली चले गए। 19 अक्टूबर 1951 को मौलाना ममलूक अली साहब का इंतकाल हो गया। तब वह उनके बेटे मौलाना याकूब साहब के साथ दिल्ली के कूचा चीलान में रहने लगे। यहां रहते हुये उन्होंने नौजवानों को अंग्रेजों के खिलाफ मुसल्लह बग़ावत की प्रेरणा दी। 1857 की क्रान्ति के शुरू होते ही शामली के इलाके में उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की फौज को हरा दिया गया। अंग्रेजों ने उनके वारण्ट निकाल दिये। क्रान्ति के नाकाम होने के बाद अंग्रेजों ने क्रान्तिकारियों का केन्द्र मदरसा अजीजिया, दिल्ली को पूरी तरह नेस्तोनाबूद कर दिया, और हज़ारों आलिमों को फांसी पर लटका दिया। तब मौलाना ने 1967 में दारूल उलूम की स्थापना की। 15 अप्रैल 1880 को मौलाना इस
दार-ए-फ़ानी से कूच कर गये। मौलाना जब तक जीवित रहे अंग्रेजों की मुखालिफत में सरगर्म रहे। उनकी कोशिशों से नस्ल दर नस्ल मुसलमानों में क्रान्तिकारी पैदा होते रहे। मौलाना सिर्फ़ मुसलमानों में ही नही बल्कि गैर मुस्लिमों में भी बहुत मक़बूल थे।
अफ़सोस की बात है कि दूसरे मुसलमानों के साथ उनकी कुर्बानियों को भी भुला दिया गया, जिसकी वजह से लोगों में नाउम्मीदी और बदगुमानी पैदा हुई और फ़िरक़ापरस्ती का रूझान बढ़ा। मुल्क की सलामती और तरक्की के लिये फ़िरक़ापरस्ती का ख़ात्मा ज़रूरी है और इसके लिये वतन की खातिर जान देने वाले मुसलमानों को उनका वाजिब हक़ दिया जाना ज़रूरी है।
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13 comments:
आज मौलाना कासिम नानोतवी और दूसरे मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों को पूरी तरह भुला दिया गया जबकि इसके विपरीत दूसरे लोगों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है
अच्छी पोस्ट
आपने अच्छी जानकारी दी है.आभार !! देवबंद मदरसे का अतुलनीय योगदान रहा है.
अंग्रेजों से हासिल मुक्ति-पर्व मुबारक हो !
समय हो तो अवश्य पढ़ें :
आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html
shahroz
जिन्होंने वाकई आज़ादी में कुछ किया, उनका कोई नामलेवा नहीं और जिन्होंने कुछ नहीं किया उनकी मूर्तियाँ स्थापित हो रही हैं.
Lo Jamaal ka nayaa ghotaal...
देवबंद मदरसे ek aataankvaadi kaa madarsa hain, yahaan se bahut se aatankvaadi paida huye hain.
Jinnah ko koun bhool sakta hain, jisne kewal islam yaa pakistan ke liye ladai ladi aur bantvaare mein 10 lakh log maare gaye the, Lekin marte samay Jinnah ko apnii galti ka ahasaah ho gaya tha, tab jinnha ne kaha ki bantvaara meri sabse badii bhool thii
Deoband ke bare me achhi jankari.
Hame to pata hai, magar kuchh jamaton ne janboojhkar yeh jaankari apne logo se chhupai, jisse nafrat ke beej boye ja sake.
@zeashan zaidi Ji
sansad bhavan se mahatma gandhi kii moorti hata dete hain, aur Jinnah kii moorti laga dete hain. Jinnah ne ek nara diya "ISLAM KHATRE MEIN HAIN.." aur desh kaa batvaaraa kar diya, bantvaare mein 10 lakh log maare gaye
kripaya unke naam bataaye jinkii moorti lagee hain aur desh ke liye kuchh nahii kiya
मैं देश का महान गददार रहा हूँ मगर कुछ लोग मुझे देशभक्त साबित करने के चक्कर मे हैं वे मेरी आत्मा को कष्ट ही पहुंचाते है मेरी अंग्रेज भक्ति पर शक करने वालो के मुँह पर मैं थूखता हूँ थू है उन पर!
@ Anonymous
वैसे तो मैं अनोनिमस टिप्पड़ियों का जवाब नहीं देता, फिर भी यहाँ जवाब दे रहा हूँ. मैं तो कही भी किसी की भी मूर्ति लगाने के खिलाफ हूँ. जिनको आप समझते हैं की उन्होंने देश के लिए कुछ किया, उन्हें अपने दिल में बसाइए. मूर्तियाँ लगाने चलियेगा तो करोड़ों लगानी पड़ेंगी. क्योंकि आज़ादी में उस समय के लगभग हर व्यक्ति ने कुछ न कुछ योगदान दिया था, सबकी मूर्तियाँ लगाइयेगा तो देश की दैत्याकार आबादी के लिए रहने की जगह नहीं बचेगी. झगडे होंगे सो अलग. एक सरकार आती है तो अपने नेताओं की मूर्तियाँ लगवाने लगती है, और दूसरी सरकार अपने पूज्नियों की. पहले हर चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस का सिपाही होता था, आज मूर्तिया. क्या आपने अपने महापुरुषों को ट्रैफिक पुलिस का सिपाही बना दिया है? क्या आपकी आस्था यही कहती है की आपके महापुरुषों की मूर्तिया बरसात में भीगती रहें? और कव्वे उनपर बीट करते रहें? आप उन्हें अपने दिल में बसायें और चौराहों पर उनकी जगह हरे पेड़ लगाएं ताकि राहगीर जब थककर उनके नीचे आराम करें तो आपको दुआएं दें.
आपने सही फ़रमाया भाईजान!
खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
sabsa badaa firkaa parast to deoband hi hai....yun hi gidgidaate raho gairullah ke aage kuchh nahi milegaa sirf thokro ke.
Aniny ji apko kuch ata to hai nahi achcha to siwaji kaun tha kabhi samne se to ladha nhi hmesa pith piche se war kiya kahte ho wah bahadur hai uski murti lagate ho
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