सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, June 27, 2010
Manner ? क्या महिला ब्लॉगर्स और इन पुरूष बुद्धिजीवियों से मेरी शिकायत वाजिब है या ग़ैर वाजिब है ?
कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिये आजकल इतनी ज़्यादा आवाज़ें उठाई जा रही हैं कि ऐसा करना आज बुद्धिजीवी कहलाने और जागरूक सा दिखने के लिये कम्पलसरी हो गया है। महिला अधिकारों के लिये आवाज़ बुलन्द करने वाली महिला ब्लॉगर्स भी इस विषय पर अक्सर फ़िक्रमंद सी दिखने की कोशिश करती हैं।
क्या वाक़ई ये अपनी सोच के लिये ज़रा भी प्रतिबद्ध हैं ?
ऐसा सवाल मेरे मन में क्यों खड़ा हुआ ?
मेरी प्रेग्नेंट वाइफ़ को देखकर लेडी डाक्टर श्रीमति मीनाक्षी राना ने गर्भ गिराने की सलाह दी जिसे हम दोनों ने तुरन्त ठुकरा दिया। 24 जून 2010 को दोपहर के समय हमारे घर में एक नन्हीं सी बच्ची ने जन्म लिया। वह अपनी अल्ट्रा साउंड रिपोर्ट के मुताबिक़ अपाहिज है। उसके दिमाग़ में कमी है, उसकी रीढ़ की हड्डी पर एक बड़ा सा खुला हुआ ज़ख्म है। दोनों टांगें भी हरकत नहीं कर रही हैं और वज़्न भी निहायत कम है। मैंने अपाहिज भ्रूण के जन्म लेने के हक़ के बारे में आवाज़ उठाई, कई लेख इसी ब्लॉग पर प्रकाशित किये लेकिन किसी एक भी महिला ब्लॉगर ने मेरे नज़रिये का समर्थन करने की तकलीफ़ गवारा न की। अब जब एक छोटी सी बच्ची अपने जीवन के लिये मौत से एक भयंकर लड़ाई लड़ रही है तो भी उनमें से किसी एक ने भी उसके लिये दो बोल आशीर्वाद के अदा करना ज़रूरी न समझा , क्यों ?
इस नन्हीं सी बच्ची के जन्म लेने और उसके बीमार होने के बारे में मैंने अपने ब्लॉग के अलावा ‘प्रेम संदेश‘, ‘हमारी अंजुमन‘ और ‘मेरे गीत‘ पर भी इत्तिला देकर दुआ के लिये कहा है। ये सभी ब्लॉग्स ज़्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉग्स में गिने जाते हैं और इन्हें औरत मर्द सभी पढ़ते हैं। इसके अलावा मैंने दीगर लागों के साथ बहन फ़िरदौस और लावण्यम जी को ईमेल भी की थी।
क्या महिलाओं को अपने ही वर्ग की एक मासूम कली के प्रति कोई हमदर्दी और फ़िक्रमंदी नहीं है ?
क्या अपने वर्ग की सदस्या की हिफ़ाज़त के लिये दौड़भाग करने वाले एक पुरूष की भी उनकी नज़र में कोई अहमियत नहीं है ?
क्या इनकी सारी चिंतांएं केवल अपनी पोस्ट बनाने और दिखाने तक ही सीमित हैं ?
यही शिकायत मुझे उन ब्लॉगर्स से भी है जो ‘प्यार लुटाने वाले‘ भाई सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग पर अपनी हाज़िरी लगाते रहते हैं।
उनकी पोस्ट पर किसी भी समय मर जाने वाली मेरी बेटी का ज़िक्र कई बार आया, सक्सेना जी ने भी उन पर उचित चिंता प्रकट की लेकिन क्या मजाल कि कला, मनोविज्ञान और शिष्टाचार के इन माहिरों में से कोई ज़रा भी विचलित हुआ हो ?
तंगदिल-संगदिल तो ये सब हो नहीं सकते तो फिर इन्हें एक मासूम बीमार बच्ची के हक़ में हमदर्दी के दो बोल बोलने से किस चीज़ ने रोका ?
जबकि ये जिन सतीश जी का लेख पढ़कर उन्हें ‘अनुकरणीय‘ बता रहे हैं वे मेरी बच्ची के बारे में इतने फ़िक्रमंद हो गये कि बोले कि अगर रात में भी बुलाओगे तो मैं आउंगा। ये उनके अनुकरण में इतना भी करने के लिये तैयार न हुये जितना कि ‘इनसान‘ कहलाने के लिये बुनियादी तौर पर ज़रूरी है ।
क्या इन पुरूष बुद्धिजीवियों से मेरी शिकायत वाजिब है या ग़ैर वाजिब है ?
मेरी मतभिन्नता का मतलब हमेशा विरोध नहीं होता और मेरे विरोध का मतलब दुश्मनी तो कभी नहीं होता। मान और अमित शर्मा जी के बर्ताव ने भी यही बताया कि वे मेरे दुश्मन नहीं हैं हालांकि मुझसे असहमत हैं। उन्होंने परिवार के सदस्यों की तरह मुझे दिलासा दिया। डाक्टर नरेश सैनी के बाद मुसलसल डाक्टर अयाज़ साहब ने मेरी बच्ची की ड्रेसिंग की , उन्होंने एक डाक्टर और एक दोस्त का हक़ अदा किया और भाई हकीम सउद साहब तो दोस्त से कहीं बढ़कर हैं। मेरे ब्लॉग को नियमित पढ़ने वाले सभी भाइयों ने मेरे ब्लॉग पर आकर या फ़ोन करके अपना फ़र्ज़ पूरा किया मैं इन सभी का शुक्रगुज़ार हूं।
आज बच्ची का नाम रखा जाएगा। बच्ची बदस्तूर ख़तरे में है और उसके साथ मैं भी आपकी दुआओं का ज़रूरतमंद और तलबगार हूं।
... और पोस्ट पब्लिश करने के दरम्यान ही नज़र पड़ी कि ऐसे नाजुक समय में भी आर्यसमाजी युवा विद्वान मुझे अपनी बच्ची की दवा पाकिस्तान और बांग्लादेश से मंगाने की सलाह दे रहे हैं।
राज साहब उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और प्रसिद्ध आर्य विद्वान श्री राजेन्द्र ‘जिज्ञासु‘ जी के शिष्य हैं, मुरादाबाद में रहते हैं, बैंकों का आडिट करते हैं। आर्य समाज के युवा वर्ग में इनकी ख़ासी प्रतिष्ठा है। इस सबके बावजूद
इनकी संगदिली का आलम यह है। हम दुआ करते हैं कि मालिक जीवन में इन्हें कभी औलाद का दुख न दिखाए। एक मासूम बच्ची जब फोड़े की दुखन से तड़पकर रोती है, ऐसा पल इनके जीवन में कभी न आए।
क्या वाक़ई ये अपनी सोच के लिये ज़रा भी प्रतिबद्ध हैं ?
ऐसा सवाल मेरे मन में क्यों खड़ा हुआ ?
मेरी प्रेग्नेंट वाइफ़ को देखकर लेडी डाक्टर श्रीमति मीनाक्षी राना ने गर्भ गिराने की सलाह दी जिसे हम दोनों ने तुरन्त ठुकरा दिया। 24 जून 2010 को दोपहर के समय हमारे घर में एक नन्हीं सी बच्ची ने जन्म लिया। वह अपनी अल्ट्रा साउंड रिपोर्ट के मुताबिक़ अपाहिज है। उसके दिमाग़ में कमी है, उसकी रीढ़ की हड्डी पर एक बड़ा सा खुला हुआ ज़ख्म है। दोनों टांगें भी हरकत नहीं कर रही हैं और वज़्न भी निहायत कम है। मैंने अपाहिज भ्रूण के जन्म लेने के हक़ के बारे में आवाज़ उठाई, कई लेख इसी ब्लॉग पर प्रकाशित किये लेकिन किसी एक भी महिला ब्लॉगर ने मेरे नज़रिये का समर्थन करने की तकलीफ़ गवारा न की। अब जब एक छोटी सी बच्ची अपने जीवन के लिये मौत से एक भयंकर लड़ाई लड़ रही है तो भी उनमें से किसी एक ने भी उसके लिये दो बोल आशीर्वाद के अदा करना ज़रूरी न समझा , क्यों ?
इस नन्हीं सी बच्ची के जन्म लेने और उसके बीमार होने के बारे में मैंने अपने ब्लॉग के अलावा ‘प्रेम संदेश‘, ‘हमारी अंजुमन‘ और ‘मेरे गीत‘ पर भी इत्तिला देकर दुआ के लिये कहा है। ये सभी ब्लॉग्स ज़्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉग्स में गिने जाते हैं और इन्हें औरत मर्द सभी पढ़ते हैं। इसके अलावा मैंने दीगर लागों के साथ बहन फ़िरदौस और लावण्यम जी को ईमेल भी की थी।
क्या महिलाओं को अपने ही वर्ग की एक मासूम कली के प्रति कोई हमदर्दी और फ़िक्रमंदी नहीं है ?
क्या अपने वर्ग की सदस्या की हिफ़ाज़त के लिये दौड़भाग करने वाले एक पुरूष की भी उनकी नज़र में कोई अहमियत नहीं है ?
क्या इनकी सारी चिंतांएं केवल अपनी पोस्ट बनाने और दिखाने तक ही सीमित हैं ?
यही शिकायत मुझे उन ब्लॉगर्स से भी है जो ‘प्यार लुटाने वाले‘ भाई सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग पर अपनी हाज़िरी लगाते रहते हैं।
उनकी पोस्ट पर किसी भी समय मर जाने वाली मेरी बेटी का ज़िक्र कई बार आया, सक्सेना जी ने भी उन पर उचित चिंता प्रकट की लेकिन क्या मजाल कि कला, मनोविज्ञान और शिष्टाचार के इन माहिरों में से कोई ज़रा भी विचलित हुआ हो ?
तंगदिल-संगदिल तो ये सब हो नहीं सकते तो फिर इन्हें एक मासूम बीमार बच्ची के हक़ में हमदर्दी के दो बोल बोलने से किस चीज़ ने रोका ?
जबकि ये जिन सतीश जी का लेख पढ़कर उन्हें ‘अनुकरणीय‘ बता रहे हैं वे मेरी बच्ची के बारे में इतने फ़िक्रमंद हो गये कि बोले कि अगर रात में भी बुलाओगे तो मैं आउंगा। ये उनके अनुकरण में इतना भी करने के लिये तैयार न हुये जितना कि ‘इनसान‘ कहलाने के लिये बुनियादी तौर पर ज़रूरी है ।
क्या इन पुरूष बुद्धिजीवियों से मेरी शिकायत वाजिब है या ग़ैर वाजिब है ?
मेरी मतभिन्नता का मतलब हमेशा विरोध नहीं होता और मेरे विरोध का मतलब दुश्मनी तो कभी नहीं होता। मान और अमित शर्मा जी के बर्ताव ने भी यही बताया कि वे मेरे दुश्मन नहीं हैं हालांकि मुझसे असहमत हैं। उन्होंने परिवार के सदस्यों की तरह मुझे दिलासा दिया। डाक्टर नरेश सैनी के बाद मुसलसल डाक्टर अयाज़ साहब ने मेरी बच्ची की ड्रेसिंग की , उन्होंने एक डाक्टर और एक दोस्त का हक़ अदा किया और भाई हकीम सउद साहब तो दोस्त से कहीं बढ़कर हैं। मेरे ब्लॉग को नियमित पढ़ने वाले सभी भाइयों ने मेरे ब्लॉग पर आकर या फ़ोन करके अपना फ़र्ज़ पूरा किया मैं इन सभी का शुक्रगुज़ार हूं।
आज बच्ची का नाम रखा जाएगा। बच्ची बदस्तूर ख़तरे में है और उसके साथ मैं भी आपकी दुआओं का ज़रूरतमंद और तलबगार हूं।
... और पोस्ट पब्लिश करने के दरम्यान ही नज़र पड़ी कि ऐसे नाजुक समय में भी आर्यसमाजी युवा विद्वान मुझे अपनी बच्ची की दवा पाकिस्तान और बांग्लादेश से मंगाने की सलाह दे रहे हैं।
राज साहब उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और प्रसिद्ध आर्य विद्वान श्री राजेन्द्र ‘जिज्ञासु‘ जी के शिष्य हैं, मुरादाबाद में रहते हैं, बैंकों का आडिट करते हैं। आर्य समाज के युवा वर्ग में इनकी ख़ासी प्रतिष्ठा है। इस सबके बावजूद
इनकी संगदिली का आलम यह है। हम दुआ करते हैं कि मालिक जीवन में इन्हें कभी औलाद का दुख न दिखाए। एक मासूम बच्ची जब फोड़े की दुखन से तड़पकर रोती है, ऐसा पल इनके जीवन में कभी न आए।
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21 comments:
सोचने की बात है...
aisaa jikr milta hai ki ek vaqt aisaa aayega jab rishte sirf matlab ke liye banenge shayad ye vahi daur hai.
दुख की बात है ।
विचारणीय प्रश्न
@Anvar -- कभी पूंजीपति दवासाज़ों और कमीशनख़ोर डाक्टरों की वजह से वह दवा आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती है। इस्लाम यहां न तो सिस्टम में है और न ही अधिसंख्या के जीवन में।......
Anvar bhai mere khayaal se aapke bachhe kii davaa pakistaan yaa banglaadesh mein mil jaayegii , kyonki vahaan इस्लाम सिस्टम में है.
ISLAMIC desho ke log hindu pradhhaan desh "HINDUSTAAN" mein aakar apnaa elaaj kra rahae hain, lekin aap, इस्लाम सिस्टम ko dhhoondh rahe ho, how shame on you. kripayaa apnee bachhi ka elaaj islam ke naam par rukvaa mat dena, bachhii ko islam ke baae mein kyaa pattaa, vah to lakshmii kaa avatar hain. Bhagwaan Bholenaath, paigambar ke chelon ko sat budhii de, eshi mein poore sansaar kaa kalyaan hain,
क्या महिलाओं को अपने ही वर्ग की एक मासूम कली के प्रति कोई हमदर्दी और फ़िक्रमंदी नहीं है ?
विचारणीय प्रश्न है....
दिल हो तो पिघलेंगे ना? दिखावों के भंवर में फंसे लोग, केवल दिखावों को ही अपना धर्म समझते हैं. उनमे इंसानियत तो तनिक भी नहीं होती है.
खैर छोड़िये!
अल्लाह बच्ची को सेहतयाब करे. आमीन!
me is nanhi jaan ki salamati aur acche swath ki prartha karta hu..
ALLAH se dua hai ki aapki beti ko sehat ata kare...
abhi aap puri tawajjoh usi par den...
aapki baat sau feesad sahi hai !!!
saleem
9838659380
is nanhe phool ki paidaish un logo ke liye bahut bada sabaq hai jo log apni sehatmand aulad ko bhi janm se pahle hi mar dalte hai.upar wale ko hi paida karne aur marne ka haq hai.
बिल्कूल गैरवाज़ीब है,इस समय
जमाल साहब,यह समय है उस नन्ही जान की सलामती का,उसके स्वास्थ्य का।
सभी लोग दिल से दुआ चाह्ते है उस नये जीवन के लिये। केवल टिप्पनियों से ही सोचना दुखद है।
यह समय टिप्पणियो और पोस्टों का नहीं,और न यह समय है यह देखने का कि कौन आया कौन नहिं आया। अल्लाह का टेस्ट है,आप पर।खुदा करे आप पार उतरें
सब्र से काम लें,भावनाओं को एक तरफ़ रखकर्।
अनवर भाई !
ब्लाग जगत से अधिक उम्मीदें, व्यक्तिगत कष्ट में क्यों रखें ? यह पहली बार नहीं हुआ है, मैंने अक्सर ही यह तकलीफ महसूस की है ! अक्सर लोग पोस्ट को ही सरसरी निगाह से पढ़ते हैं , बहुत से भाई सिर्फ टिप्पणी पाने के लिए सिर्फ टिप्पणी देने ही आते हैं और वे बिना पोस्ट पढ़े अन्य टिप्पणियों को देख टिप्पणी करते हैं ! इनसे आप जैसा विद्वान् भी शिकायत करेगा ?? आपकी सहनशीलता का मैं कायल हूँ ! खैर इस भयानक कष्ट में, आपकी शिकायत वाज़िब है मैं इसे महसूस कर सकता हूँ !
परमात्मा अक्सर भले लोगों की परीक्षा अधिक लेता है , सो कष्ट आप जैसे ही उठाएंगे ! मुझे पूरा भरोसा है कि आप अपनी सहनशक्ति के बल पर इससे पार हो जायेंगे ! चिंता बच्ची की माँ की है, उन्हें हौसला दें और शायद वह आप ही बेहतर कर सकते हैं !
आपके साथ हूँ !
जनाब सतीश जी की बात से सहमत!
anwar jamal bhai!sun kar bahut dukh hua. allah aapki bachchi ko jald se jald sehatyab kare. aamin
जो घटिया ख़यालात के लोग ऐसे कमेंट्स लिख रहे हैं , इनका एक निहितार्थ है जो पब्लिश होने के साथ ही पूरा हो जाता है ! अनवर भाई अनुरोध है कृपया किसी बेनामी के कमेंट्स न छापें !
सब्र रखें ! कोई कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा ! आप अपना फ़ोन नंबर दें , बात करता हूँ
kafi takleef vali halat hai.
ॐ शांति ! जनाब सतीश सक्सेना जी !
१. जो लोग मानवीय संवेदनाओं की बातें करें , स्त्री अधिकारों के लिए पुरुषों को कोसें , उनसे कन्या शिशु के प्रति हमदर्दी की आशा क्यों न की जाए ? अगर भारत का शिक्षित वर्ग , बुद्धिजीवी वर्ग भी ढकोसलेबाज़ निकलेगा तो फिर जनसामान्य आशा किससे रखेगा ?
बात केवल मेरे निजी कष्ट की नहीं है और न ही मैंने किसी से कोई मदद पाने की गर्ज़ से ही लिखा है . मेरी उम्मीद तो अपने मालिक से है और खुद उम्मीद को भी उसी के सुपुर्द किया हुआ है . वह हमारी उम्मीदों को चाहे अब पूरा करे या बाद में या फिर हम पर इस से भी बड़ी मुसीबतों का पहाड़ तोड़ दे. वह मालिक है और हम उसके बन्दे . हुक्म और योजना उसकी चलेगी न कि हमारी . वह हमेशा सही होता है , चाहे हम इस "तत्व" को समझ जाएँ या न समझ पायें . यही अक़ीदा तो है जिसकी वजह से न तो मेरे चेहरे से मुस्कराहट ग़ायब हुई है और न ही बच्ची की माँ के चेहरे से . फिक्रमंदी और मुनासिब जद्दोजहद के बावजूद घर के सभी लोग खुश हैं , अल्हम्दुलिल्लाह .
२.बेनामी लोगों के बारे में , इन लोगों के मन का ग़ुब्बार भी निकल जाये तो शायद ये लोग कुछ हल्का फ़ील करें . इनके कमेंट्स पब्लिश करने का मकसद यही है .
Dr. Anwar Jamal,
I do not know what has happened in past.
I respect your decision for giving life to a baby girl. Your wife's and your decision is praiseworthy and exemplary .
I wish heaven's choicest blessings be showered on the little daughter.
I pray for her good health and may her mother also be fit and healthy soon.
As a father and husband, you are indeed under huge pressure. Your love and concern towards family is quite evident. I admire you for the pains you are taking for them.
I wish you courage and patience.
Regards,
Divya
Shahnawaz se Sehmat
main aapke saahas, aapki zurrat aur aapke insaaf pasand insaani ravaiye ko salaam karta hoon
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