सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Tuesday, October 12, 2010

What was the real mission of Christ मसीह का मिशन था ‘सत्य पर गवाही देना‘ - Anwer Jamal

What was the real mission of Christ  and who did complete it ?
ईसाई प्रचारक ख़ामोश क्यों हैं ?
जनाब राकेश लाल जी ने तो अब मेरे ब्लॉग पर ज़ाहिर होना ही छोड़ दिया। अब कुमारम जी के नाम से कोई आ रहा है और एक भाई भगवत प्रसाद मिश्रा जी और नमूदार हुए हैं लेकिन मेरे सवालों का जवाब इनमें से कोई भी नहीं दे रहा है। ये क्या जवाब देंगे ?
जवाब तो पादरी राकेश चार्ली जी भी न दे सके। आज पेश है उनसे मुलाक़ात और बातचीत का हाल। उम्मीद है पसंद आने के साथ-साथ आपका ज्ञान भी बढ़ेगा।
ईसाई पादरी आये मेरे घर
मुकेश लॉरेंस से मेरी मुलाक़ात महज़ एक इत्तेफ़ाक़ थी। वह एक कम्प्यूटर कम्पोज़िंग के बाद अपने काम का प्रूफ़ निकलवा रहे थे और मुझे भी अपनी बेटी अनम का एक फ़ोटो अपनी कार्ड ड्राइव से डेवलप कराना था। मैंने उनसे चंद मिनटों के लिए उनका काम रोकने की इजाज़त मांगी तो वे खुशदिली का इज़्हार करते हुए फ़ौरन तैयार हो गए। इसी दरम्यान मेरी उनसे बहुत मुख्तसर सी बातचीत हुई। उन्होंने मेरा मोबाईल नम्बर ले लिया। उन्होंने मुझे उर्दू के बेहतरीन शेर  भी सुनाए, जिन्हें किसी और मौक़े पर शायद लिख भी दिया जाए। मुकेश लॉरेंस एक बेहद नर्म मिज़ाज और मिलनसार आदमी हैं और एक अच्छा प्रचारक भी।
जब धर्म चर्चा करें तो अपने बच्चों को अपने साथ रखें
मेरी उनसे मुलाक़ात 28-08-10 को दिन में हुई और शाम को ही उनका फ़ोन आ गया कि अगर मैं उन्हें वक़्त दे सकूं तो वे पादरी साहब को लेकर मेरे घर आना चाहते हैं। मैंने कहा कि मुझे बेहद खुशी होगी, आप रोज़ा इफ़तार हमारे साथ करना चाहें तो इफ्तार के वक्त तशरीफ़ ले आयें वर्ना उसके थोड़ी देर बाद। उन्होंने इफ़तार के बाद साढ़े सात बजे आने के लिये कहा और वे दोनों अपने अपने दुपहिया वाहनों के ज़रिये 7.35 बजे शाम आ भी गये।
मैंने अपने बेटे अनस ख़ान को हिदायत की थी कि बेटे आज खुदा की मुक़द्दस किताब का इल्म रखने वाले दो लोग हमारे घर आ रहे हैं लिहाज़ा जब हमारी गुफ़तगू हो तो आप हमारे पास ही रहना और हमारी बात सुनना।
पादरी व्यवस्था के बजाय मौजज़े पर बल क्यों देते हैं ?
मुकेश लॉरेंस साहब ने पादरी साहब का नाम राकेश चार्ली बताया। वे मैथोडिस्ट चर्च से जुड़े हुए हैं। पादरी साहब जिस्म में थोड़ा हल्के से और उम्र में मुझसे कम थे। उनके अंदर भी मैंने नर्मी देखी।
मैंने उन्हें बाइबिल और नया नियम की प्रतियां दिखाईं। नया नियम को तो मैं पिछले 27 सालों से पढ़ता आ रहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि वे मुझे अगली मुलाक़ात में नया नियम की उर्दू प्रति देंगे।
मेरी कुछ शुरूआती बात सुनने के बाद वे बोले कि आदमी जब तक मौज्ज़े के ज़रिये ईमान का निजि अनुभव नहीं कर लेता, तब तक वह ईमान को वास्तव में नहीं समझ सकता।
सवाल का संतोषजनक जवाब देना ही ईसा अ.  का  मार्ग है
मैंने अर्ज़ किया-‘देखिये, हरेक का निजी अनुभव अलग हो सकता है। मेरा निजी अनुभव कुछ और हो सकता है और आपका निजी अनुभव कुछ और हो सकता है। इसलिए मेरा निजी अनुभव आपके लिए और आपका निजी अनुभव मेरे लिए दलील नहीं बन सकता। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के पास जब कभी यहूदी, फ़रीसी या सदूक़ी कोई भी सवाल लेकर आये तो उन्होंने हमेशा उन्हें ऐसे जवाब दिए जिससे उनकी बुद्धि संतुष्ट हो गई या फिर वे निरूत्तर हो गये। उन्होंने कभी किसी से यह नहीं कहा कि आप किसी चमत्कार या निजी अनुभव के द्वारा सच्चाई को पाने की कोशिश कीजिये।
चमत्कार तो शैतान भी दिखा सकता है लेकिन वह ईश्वरीय व्यवस्था पर नहीं चल सकता
चमत्कार तो लोगों ने मसीह के ज़रिये भी होते देखे और एंटी-क्राइस्ट के ज़रिये भी होते देखेंगे और न्याय दिवस के दिन कुछ ऐसे लोग भी मसीह को हे प्रभु , हे प्रभु कहते हुए उनके पास मदद पाने के लिए पहुंचेंगे जिन्होंने दुनिया में उनके नाम से लोगों को दुष्टात्माओं को निकाला होगा और अजनबी भाषाओं में कलाम किया होगा लेकिन मसीह उन्हें धिक्कार कर भगा देंगे और कहेंगे कि हे पापियों मैंने तो तुम्हें कभी जाना ही नहीं। इसलिए सिर्फ़ चमत्कार ही पैमाना नहीं बन सकता बल्कि उसके साथ यह भी देखा जायेगा कि चमत्कार दिखाने वाला मसीह की तरह शरीअत का पाबंद है या नहीं। एंटी- क्राइस्ट शरीअत का पाबंद नहीं होगा यही उसकी सबसे बड़ी पहचान होगी।
इंजील के हुक्म को न मानने वाले ईसाई कैसे हो सकते हैं ?
मैं इंजील और मसीह में आस्था रखता हूं और आप भी। मैं कुरआन और हज़रत मुहम्मद स. में आस्था रखता हूं लेकिन आप नहीं रखते। सो हमारे आपके दरम्यान इंजील और मसीह कॉमन ग्राउंड है। इसलिए हम दोनों के लिए इंजील और मसीह अलैहिस्सलाम दलील बनेंगे। इनसे न तो मैं भाग सकता हूं और न ही आपको इनसे हटने की इजाज़त दूंगा।‘
पादरी साहब ने माना कि आपकी बात सही है।
मसीह के आने का मक़सद था व्यवस्था को पूरा करना, उस पर खुद चलना और लोगों को चलने की हिदायत करना
मैंने कहा-‘हम पाबंद हैं मसीह के क़ौल के, न कि उनके बाद के सेंट पॉल  आदि आदमियों के। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ‘यह न समझो कि मैं धर्म-व्यवस्था या नबियों की शिक्षाओं को मिटाने आया हूं। मैं उनको मिटाने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं। मैं तुमसे सच कहता हूं कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं तब तक धर्म-व्यवस्था से एक मात्रा या एक बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा। इसलिए जो मनुष्य इन छोटी सी छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़ेगा और वैसा ही लोगों को सिखाएगा कि वे भी तोड़ें तो वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा। परन्तु जो उन आज्ञाओं का पालन करेगा और दूसरों को उनका पालन करना सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।‘ (मत्ती, 5, 17-20)
अब आप बताईये कि सेंट पॉल ने किस अधिकार से शरीअत मंसूख़ कर दी ? वे कहते हैं कि ‘यीशु ने अपने शरीर में बैर अर्थात व्यवस्था को उसकी आज्ञाओं तथा नियमों के साथ मिटा दिया। (इफिसियों, 2, 15)
यूहन्ना के चेलों ने जब मसीह से उनके साथियों के रोज़ा न रखने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि ‘वे दिन आएंगे जब दूल्हा उनसे अलग कर किया जाएगा। उस समय वे उपवास करेंगे।‘ (मत्ती, 9, 15)
उन्होंने यह तो कहा कि वे अभी रोज़ा नहीं रख रहे हैं लेकिन कहा कि वे कुछ समय बाद रखेंगे। अस्ल बात यह थी कि मसीह धर्म प्रचार के लिए लगातार सफ़र करते रहे और मुसाफ़िर को इजाज़त होती है कि वह बाद में रोज़े रख ले।
उन्होंने हमेशा शरीअत की पाबंदी की बात की और कहीं भी उसे ख़त्म नहीं किया। सेंट पॉल ने शरीअत माफ़ कर दी ताकि रोमी और अन्य जातियां मसीह पर ईमान ला सकें। उन्होंने चाहे कितनी ही नेक नीयती से यह काम किया हो लेकिन उन्हें ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं था।
मुसलमानों से सीखने की ज़रूरत है
आप देखते हैं कि हिंदुस्तान में कुछ लोग मुसलमानों द्वारा दी जाने वाली कुरबानी पर ऐतराज़ जताते हैं लेकिन मुसलमानों ने कभी उन्हें रिझाने की ग़र्ज़ से शरीअत को निरस्त घोषित नहीं किया। उनसे कहा जायेगा कि यह शरीअत ऐसी ही ठीक है आपका दिल चाहे कुबूल करके नजात पायें और आप इन्कार करना चाहें तो आपकी मर्ज़ी। पॉल को भी यही करना चाहिये था।
शरीअत कैंसिल करने के बाद फिर आप क्यों कहते हैं कि औरत चर्च में अपना सिर ढके ? यह हुक्म तो शरीअत का है और शरीअत को आप कैंसिल ठहरा चुके हैं।
जीवन को व्यवस्थित करने के लिए व्यवस्था ज़रूरी है
आदमी को जीने के लिये क़ानून दरकार है। उसे जायदाद का बंटवारा भी करना होता है और शादी-ब्याह और दूसरे सामाजिक मामले भी होते हैं। जब आपने शरीअत को कैंसिल कर दिया तो फिर आपने नेता चुने, उन्होंने आपके लिए क़ानून बनाये और आपने उन्हें माना। मैं पूछता हूं कि जब आपको क़ानून की ज़रूरत भी थी और आपको उसे मानना भी था तो फिर जो क़ानून खुदा ने मूसा को दिया था उसे मानते लेकिन आपने उसे छोड़ा और दुनिया के क़ानून को माना। आपने ऐसा क्यों किया ?
बाइबिल को एक से दो बना डाला
प्रोटैस्टेंट ने किस अधिकार से 7 किताबें जाली घोषित करके उन्हें बाइबिल से बाहर निकाल दिया ?
और फिर हर बीस साल बाद आप एक नया एडीशन ले आते हैं जिसमें हर बार पिछली बाइबिल के मुक़ाबले आयतें कम या ज़्यादा करते रहते हैं , ऐसा क्यों ?
आज चर्च की हालत यह हो रही है कि हम आये दिन अख़बारों में पढ़ते रहते हैं कि चर्च में समलैंगिक जोड़ों की शादियां कराई जा रही हैं। जबकि नबी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के ज़माने में समलैंगिकों पर खुदा का अज़ाब नाज़िल हुआ था।
पादरी साहब ने हामी भरी और मुकेश लॉरेंस भी पूरी दिलचस्पी से सुन रहे थे।
चर्च की धार्मिक रस्मों में शराब का प्रयोग क्यों ?
 मैंने कहा-‘आज चर्च में धार्मिक रस्म के तौर पर शराब पिलाई जा रही है। हज़रत मसीह पाक हैं और शराब नापाक। क्या कभी कोई नबी लोगों को शराब पिलाएगा ?
पादरी साहब बोले-‘नहीं‘
मैंने कहा-‘इंजील में हज़रत मसीह का एक चमत्कार लिखा है कि उन्होंने पानी को दाखरस बना दिया। मैंने कहा हो सकता कि दाखरस उस समय कोई शरबत वग़ैरह हो जिसे आज शराब समझ लिया गया हो ?
दाखरस ‘शराब‘ ही होता है
पादरी साहब बोले-‘लोग समझते हैं कि चर्च में वाइन पिलाई जाती है ऐसा नहीं है। दाखरस अंगूर का रस होता है। चर्च में वही रस पिलाया जाता है।
मैंने कहा-‘क्या उस रस में फ़र्मंटेशन होता है ?‘
उन्होंने कहा-‘हां‘
मैंने कहा-‘फ़र्मंटेशन के बाद रस से दो ही चीज़ें बनती हैं। एक एसीटिक एसिड यानि सिरका और दूसरे अल्कोहल यानि शराब। अब बताईये कि क्या वह रस सिरका होता है ?‘
पादरी साहब बोले-‘नहीं‘
मैंने कहा-‘तब वह दाखरस शराब ही होता है। किसी इबादतख़ाने में धर्म के नाम पर धार्मिक लोगों को शराब पिलाई जाये, इससे बड़ा अधर्म भला क्या होगा ?‘
पादरी साहब चुप रहे।
हज़रत मसीह ने जिसे हराम ठहराया उसे भी हलाल कैसे ठहरा लिया ?
मैंने कहा-‘यही हाल आपने खाने-पीने में हलाल-हराम का किया। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम एक बार बिना हाथ धोये खाना खाने लगे। यहूदियों ने ऐतराज़ किया कि आप बिना हाथ धोये खाते हैं ? तब उन्होंने जवाब दिया कि जो चीज़ बाहर से अन्दर जाती है वह नापाक नहीं करती बल्कि जो चीज़ अन्दर से बाहर आती है वह इनसान को नापाक करती है।‘
उनकी बात सही थी। हाथ की धूल इनसान की दिल को नापाक नहीं करती बल्कि दिल की नापाकी और गुनाह का बोल इनसान को नापाक कर देता है। इससे नसीहत यह मिलती है कि इनसान को गुनाह की बातें ज़बान से नहीं निकालनी चाहिये और अपने दिल को पाक रखना चाहिये। अगर सफ़र में कहीं बिना हाथ धोये खाना पड़ जाये तो दीन में इसकी इजाज़त है।
‘जो बाहर से अन्दर जाता है वह नापाक नहीं करता‘ इस उसूल को इतना एक्सपैंड क्यों कर लिया कि सुअर और हराम जानवर खाना भी जायज़ कर बैठे ? हराम-हलाल की जानकारी देने के लिए मसीह ने यह बात नहीं कही थी। हराम-हलाल जानना था तो शरीअत से मालूम करते, जिसकी पाबंदी मसीह ने जीवन भर की, उनकी मां ने की। क्या कभी मसीह अलैहिस्सलाम ने सुअर खाया ?
पादरी साहब बोले-‘नहीं‘
मैंने कहा-‘तब आप सुअर खाना कहां से जायज़ कर बैठे ?‘
वे चुप रहे।
हज़रत ईसा अ. की जान के दुश्मन यहूदियों की साज़िशें
मैंने कहा-‘हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम प्रतीकात्मक भाषा बोलते थे और दृष्टांत देते थे क्योंकि यहूदी हमेशा उनकी घात में रहते थे कि उनके मुंह से कोई बात पकड़ें और उन्हें क़ैसर का बाग़ी घोषित करके सज़ा दिलायें। यहूदियों ने धर्म को व्यापार बना दिया था। इबादतख़ानों को तिजारत की मंडी बनाकर रख दिया था। मसीह ने उनकी चैकियां इबादतख़ानों में ही उलट दी थीं और उन्हें धिक्कारा था। (मरकुस, 11, 15)
मसीह की मौजूदगी उनकी नक़ली दीनदारी की पोल खोल रही थी और उनके लिए अपनी चैधराहट क़ायम रखना मुश्किल हो रहा था। इसीलिए एक बार वे एक व्यभिचारिणी औरत को पकड़कर मसीह के पास लाये कि इसे क्या सज़ा दी जाये ? ताकि अगर मसीह शरीअत के मुताबिक़ सज़ा सुनाये तो वे उन्हें क़ैसर का बाग़ी घोषित करके उन्हें सज़ा दिलायें और अगर वे उसे माफ़ कर दें तो उन्हें नबियों की शरीअत मिटाने वाला कहकर पब्लिक में उन्हें मशहूर करें।
हज़रत मसीह अ. ने ऐसी बात कही कि यहूदियों की सारी साज़िश ही फ़ेल हो गई। उन्होंने कहा कि ‘तुम में जो निष्पाप हो, वही पुरूष सबसे पहिले इसको पत्थर मारे।‘ (यूहन्ना, 8, 8)
यह सुनकर किसी ने उस औरत को पत्थर न मारा। इस मौक़े पर भी मसीह अलैहिस्सलाम ने यहूदी चैधरियों और उनके पिछलग्गुओं को आईना दिखा दिया और ऐलानिया उन्हें गुनाहगार ठहरा दिया।
मसीह की हिकमत के सामने निरूत्तर हो गये साज़िश करने वाले
ऐसे ही एक बार उनसे साज़िशन पूछा गया कि क़ैसर को कर देना कैसा है ? ताकि अगर वे शरीअत के मुताबिक़ क़ैसर को कर देने से मना करें तो वे उन्हें क़ैसर का बाग़ी घोषित करके सैनिकों के हवाले कर सकें और अगर वे कर देने के लिये कहें तो वे उन्हें शरीअत के खि़लाफ़ अमल करने वाला ठहरा सकें।
इस बार भी इन दुष्टों को मुंह की खानी पड़ी। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने उनसे एक सिक्का लेकर पूछा कि ‘यह मूर्ति और नाम किसका है ?
उन्होंने कहा-‘कै़सर का।‘
तब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बोले कि‘ जो क़ैसर है वह क़ैसर को दो और जो खुदा का है वह खुदा को दो।‘ (मरकुस, 12, 16 व 17)
मसीह की तरह उनका कलाम भी बुलंद है उनके कलाम को उनके शिष्य ही नहीं समझ पाते थे
हज़रत मसीह का कलाम बहुत बुलंद है, इतना ज़्यादा बुलंद कि बहुत बार उनके साथ रहने वाले वे लोग भी उनके कहने की मुराद नहीं समझ पाते थे जिन्हें कि ख़ास तौर पह खुदा की तरफ़ से आसमानी बादशाहत के रहस्यों की समझ दी गयी थी, और एक वजह यह भी थी कि वे सभी आम समाज से आये थे।
‘उन बारहों को यीशु की एक भी बात समझ में नहीं आई। यीशु की बात का अर्थ उनसे छिपा रहा। जो कहा गया था, वह उनकी समझ में न आया।‘ (लूका, 18, 34)
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की बातों में छिपी चेतावनियों को यहूदी आलिम बखूबी समझते थे क्योंकि वे नबियों की किताबें पढ़ने की वजह से नबियों के अन्दाज़े-कलाम से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे लेकिन मसीह के प्रेरितों की समझ उस दर्जे की न थी। यही वजह है कि प्रेरितों को अक्सर मसीह से पूछना पड़ा कि हे गुरू आपके कहने का तात्पर्य क्या है ?
जब मसीह ने खुदा के कलाम को बीज की मिसाल देकर समझाया तब भी प्रेरितों को उनसे पूछना पड़ा कि वे कहना क्या चाहते हैं ? (मरकुस, 4, 10-12)
परमेश्वर को ‘पिता‘ कहने का वास्तविक अर्थ
मसीह ने खुदा को पिता कहकर पुकारा क्योंकि इस्राइली जाति में आने वाले नबी खुदा को अलंकारिक रूप से बाप कहकर संबोधित करते आये थे। उन्हीं नबियों की तरह मसीह ने भी खुदा को पिता कहा लेकिन लोगों ने अलंकार को यथार्थ समझ लिया और मसीह को खुदा को ऐसा ही बेटा ठहरा दिया जैसा कि आम इनसानों में बाप-बेटे का रिश्ता होता है। मसीह ने खुद को आदम का बेटा भी कहा है। यहां वे यथार्थ ही कह रहे हैं। मसीह को इंजील में पवित्रात्मा का बेटा, दाऊद का बेटा और यूसुफ़ बढ़ई का बेटा भी कहा गया है। यूसुफ़ को उनकी परवरिश करने की वजह से उनका बाप कहा गया है, दाऊद के वंश से होने के कारण दाऊद को उनका बाप कहा गया और पवित्रात्मा ने मसीह को अपना पु़त्र उनकी रूहानी खूबियों की वजह से कहा।
पवित्र इंजील में पांच लोगों के साथ उनके बाप-बेटे के रिश्ते का ज़िक्र आया है। हमें हरेक जगह उसकी सही मुराद को समझना पड़ेगा, अगर हम सत्य को पाना चाहते हैं तो, वर्ना अगर हम हरेक जगह बाप शब्द का एक ही अर्थ समझते गये तो फिर हम सच नहीं जान पाएंगे।
परमेश्वर के लिए पिता शब्द कहना अलंकार मात्र है, उसे लिटेरल सेंस में लेना ऐसी ग़लती है जिसकी वजह से ईसा मसीह को पहले खुदा का बेटा मान लिया गया और फिर उन्हें खुदा ही मान लिया गया। उन्हीं से दुआएं मांगी जाने लगीं जबकि वे खुद ज़िन्दगी भर खुदा से दुआएं मांगते रहे और अपनी दुआओं के पूरा होने पर खुदा का शुक्र बुलंद आवाज़ में अदा करते रहे ताकि कोई उनके ज़रिये से होने वाले चमत्कार देखकर कन्फ़्यूज़ न हो जाये और उन्हें खुदा न समझ बैठे।
मुर्दे को ज़िन्दा करने वाला खुदा है, मसीह अ. तो खुदा से ज़िन्दगी के लिए दुआ किया करते थे
उन्होंने लाजरस को आवाज़ दी और लाजरस अपनी क़ब्र से बाहर निकल आया, ज़िन्दा होकर तब भी मसीह ने खुदा का शुक्र अदा किया और कहा कि तू सदा मेरी प्रार्थना सुनता है। (यूहन्ना, 11, 42)
इसका मतलब लाजरस को ज़िन्दा करने के लिए मसीह ने खुदा से दुआ की थी और खुदा ने उनकी दुआ कुबूल कर ली थी। लाजरस का ज़िन्दा होना खुदा के हुक्म से था।
यहां से यह भी पता चलता है कि मसीह की दुआ हमेशा सुनी गई। इसलिये यह नामुमकिन है कि मसीह की आखि़री रात की दुआ न सुनी गई हो। जब मसीह तन्हाई में जाकर घुटने टेककर खुदा से दुआ करते हैं कि ‘हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले। तो भी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूर्ण हो ?‘ (लूका, 22, 42)
खुदा ने हज़रत ईसा अ. की हर दुआ कुबूल की
मसीह ने ऐसा मौत के डर से नहीं कहा बल्कि उन्हें मालूम था कि उनके इन्कार के बदले में इन्कारी अज़ाब का शिकार होंगे और उन्हें मसीह मानने वाले अभी कच्चे हैं, उन्हें कुछ समय और चाहिये। मसीह की कोई दुआ कभी रद्द नहीं हुई, यह दुआ भी रद्द नहीं हुई लिहाज़ा मौत का कटोरा खुदा ने उनके सामने से हटा लिया और उन्हें जीवित ही आसमान पर उठा लिया। उन्हें सलीब पर चढ़ाया तो ज़रूर गया लेकिन सलीब पर उन्हें मौत नहीं आई। वे सलीब पर बेहोश हो गए। दूर से देखने वालों ने समझा कि वे मर गए। यह लोगों की सोच थी न कि हक़ीक़त। (लूका, 23, 49)
जो कहे कि मार्ग, जीवन और सच्चाई मैं ही हूं। (यूहन्ना, 14, 6) जो साक्षात जीवन हो उसे मौत आ भी कैसे सकती थी ? जबकि उसने खुदा से मौत का कटोरा अपने सामने से हटाने की दुआ भी की हो (मरकुस, 14, 36) और उसकी दुआ मालिक ने कभी रद्द न की हो। (यूहन्ना, 11, 42)
हज़रत ईसा अ. को मौत नहीं आई, वे ज़िन्दा हैं
मसीह को जब सलीब से उतारा गया तो वे बेहोश थे न कि मुर्दा। उन्हें यूसुफ़ अरमतियाह ने गुफ़ानुमा एक क़ब्र में रखा। उनके बदन पर मारपीट की चोटों के भी ज़ख्म थे और उस भाले का भी जो सिपाहियों ने चलते-चलते उन्हें मारा था और खून और पानी उनके बदन से निकला था (यूहन्ना, 19, 34) जोकि खुद उनकी ज़िन्दगी का सुबूत है।
तीसरे दिन मरियम मगदलीनी उनकी क़ब्र पर पहुंची लेकिन उनकी क़ब्र ख़ाली थी। हज़रत ईसा ने उसे संबोधित किया-‘हे नारी ! तू क्यों रो रही है ? तू किसे ढूंढ रही है ? (यूहन्ना, 20, 15) तो वह उन्हें पहचान नहीं पाई, वह उन्हें माली समझी। तब ईसा अलैहिस्सलाम ने खुद को उस पर ज़ाहिर किया तब वह उन्हें पहचान पाई। उन्होंने उसे खुद को छूने से रोक दिया क्योंकि वे ज़ख्मी थे। यहां यह भी क़ाबिले ग़ौर है कि उन्होंने मरियम से कहा कि मुझे मत छू ; क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया हूं। (यूहन्ना, 20, 17)
और सलीब पर अपने साथ टंगे हुए एक डाकू से कहा था कि ‘मैं तुझसे सच कहता हूं, आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा । (लूका, 23, 43)
ख़ैर खुदा ने मसीह की दुआ सुन ली और उन्हें आसमान पर उठा लिया जहां से वे दोबारा तब आयेंगे जब कि खुदा उन्हें भेजना चाहेगा।
पादरी साहब और लॉरेंस मेरी बात को दिलचस्पी और ग़ौर से सुन रहे थे।
खुदा ने मसीह अ. को सलीब पर मरने के लिए भेजा ही नहीं था
खुदा ने मसीह को सलीब पर मरने के लिए नहीं भेजा था और न ही खुद मसीह की मर्ज़ी थी कि वे सलीब पर मरें। इसीलिए उन्होंने खुदा से ‘दुख के कटोरे‘ को हटाने की दुआ की। वे सलीब पर मरें, ऐसा तो यहूदी चाहते थे। उन्हें डर था कि अगर उन पर ईमान लाने वालों की तादाद इसी तरह बढ़ती रही तो रोमी उन्हें बाग़ी समझेंगे और उनकी जगह और जाति पर क़ब्ज़ा कर लेंगे। इसलिए वे कहते थे कि ‘हमारी भलाई इस बात में है कि हमारी जाति के लिए एक मनुष्य एक मरे और सारी जाति नष्ट न हो।‘ (यूहन्ना, 11, 50)
साज़िश में कही गयी मसीह के दुश्मनों की बात उनपर ईमान लाने वालों का अक़ीदा कैसे बन गई ?
आपने कैसे मान लिया कि लोगों को पैदाइशी गुनाह से मुक्ति दिलाने के लिए मसीह एक बेऐब मेमने की मानिन्द सलीब पर कुर्बान हो गए ?
ईसा अ. बच्चों को मासूम और स्वर्ग का हक़दार मानते थे न कि जन्मजात पापी
मसीह ने कभी बच्चों को पैदाइशी गुनाहगार नहीं माना। एक बार लोग अपने बच्चों को उनके पास लाये ताकि वे उनपर अपना हाथ रखें और बरकत की दुआ दें। पर चेलों ने उनको डांटा। यह देखकर मसीह ने नाराज़ होकर उनसे कहा कि ‘बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो; क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों का ही है। मैं तुमसे सच कहता हूं कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को छोटे बच्चे के समान ग्रहण न करे, वह उस में कभी प्रवेश करने न पाएगा।‘
यीशु ने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी। (मरकुस, 10, 14-16)
मसीह ने तो अपने साथियों से कहा कि वे खुद को बच्चों की मानिन्द बनायें हालांकि वे महीनों से उनके साथ थे और उन्होंने मसीह के ज़रिये होने वाले चमत्कार भी देखे थे और उन्हें ‘ईमान का निजी अनुभव‘ भी था। उन्होंने बच्चों से नहीं कहा कि वे उनके साथियों की मानिन्द बनें। अगर बच्चे पैदाइशी गुनाहगार होते तो वे अपने साथियों को उनकी मानिन्द बनने की नसीहत हरगिज़ न करते।
परमेश्वर का मेमना बचा लिया गया
दूसरी बात मेमने की कुरबान होने के बारे में है। ओल्ड टेस्टामेंट में है कि मेमना बचा लिया गया। मेमना प्रतीक है मसीह का। जब मेमने के बारे में आया है कि उसे बचा लिया गया तो इसका मतलब यही है कि मसीह को बचा लिया गया। धर्मशास्त्र में भी आया है कि ‘मैं दया से प्रसन्न से होता हूं बलिदान से नहीं।‘ (मत्ती, 12, 7)
न तो कोई बच्चा पैदाइशी गुनाहगार होता है और न ही मसीह सलीब पर लोगों के पापों के प्रायश्चित के तौर पर कुरबान होने के लिए भेजे गए थे और न ही वे सलीब पर मरना चाहते थे और न ही वे सलीब पर मरे।
मसीह का मिशन क्या था ?
मसीह का मिशन था लोगों को शैतान की गुलामी और गुनाहों की दलदल से निकालना। इसके लिए वे चाहते थे कि लोग दीनदारी का दिखावा न करें बल्कि सचमुच दीनदार बनें। इसीलिए उन्होंने कहा कि ‘हे पाखंडी शास्त्रियों और फ़रीसियों , तुम पर हाय ! तुम पोदीने, सौंफ़ और ज़ीरे जैसी छोटी-छोटी वस्तुओं का दसवां अंश देते हो। परन्तु तुम ने धर्म-व्यवस्था की गम्भीर बातों को अर्थात न्याय, दया और विश्वास को छोड़ दिया है। तुम्हें चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते। हे अन्धे अगुवों, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊंट को निगल जाते हो। (मत्ती, 23, 23 व 24)
यहां पर भी मसीह ने शरीअत को कैंसिल नहीं किया बल्कि लोगों को डांटा कि वे शरीअत के अहम हुक्मों पर अमल नहीं कर रहे हैं।
मसीह का मिशन था ‘सत्य पर गवाही देना‘
वे कहते हैं कि ‘मैंने इसीलिए जन्म लिया और इसीलिए संसार में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।‘ (यूहन्ना, 18, 37)
उन्होंने कहा कि ‘हे सब परिश्रम करने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझसे सीखो। (मत्ती, 11, 28 व 29)
मसीह का जूआ लादने के लिए ज़रूरी था कि जो जूआ उन पर पहले से लदा है वे उसे उतार फेंके, लेकिन जो फ़रीसी वग़ैरह इन ग़रीब लोगों पर अपना जूआ लादे हुए थे वे कब चाहते थे कि लोग उनके नीचे से निकल भागें।
‘तब फ़रीसियों ने बाहर जाकर यीशु के विरोध में सम्मति की, कि यीशु का वध किस प्रकार करें। (मत्ती, 12, 14)
नक़ली खुदाओं की दुकानदारी का ख़ात्मा था मसीह का मिशन
नबी के आने से नक़ली खुदाओं की खुदाई का और उनके जुल्म का ख़ात्मा होना शुरू हो जाता है, इसलिये इनसानियत के दुश्मन हमेशा नबी का विरोध करते हैं और आम लोगों को भरमाते हैं।
तब नबी का उसके देश में निरादर किया जाता है, उसे उसके देश से निकाल दिया जाता है और यरूशलम का इतिहास है कि वहां के लोगों ने बहुत से नबियों को क़त्ल तक कर डाला।
मसीह के साथ किया गया शर्मनाक बर्ताव और उन्हें क़त्ल करने की नाकाम कोशिश भी उसी परम्परा का हिस्सा थी।
मसीह का मिशन, खुदा का मिशन था और खुदा के कामों को रोकना किसी के बस में है नहीं
आखि़रकार जब मसीह के काम में रूकावट डाली गई और उन्हें ज़ख्मी कर दिया गया तो उन्हें कुछ वक्त के लिए आराम की ज़रूरत पड़ी। मालिक ने उन्हें दुनिया से उठा लिया, सशरीर और ज़िन्दा। लेकिन उनके उठा लिए जाने से खुदा का मिशन तो रूकने वाला नहीं था। सो मसीह ने दुनिया से जाने से पहले कहा था कि ‘मैं तुमसे सच कहता हूं कि मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है। जब तक मैं नहीं जाऊंगा तब तक वह सहायक तुम्हारे पास नहीं आएगा। परन्तु यदि मैं जाऊंगा तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा। जब वह आएगा तब संसार को पाप, धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।‘ (यूहन्ना, 16, 6-8)
‘मुझे तुमसे और भी बहुत सी बातें कहनी हैं। परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा तब तुम्हें सम्पूर्ण सत्य का मार्ग बताएगा। वह मेरी महिमा करेगा , क्योंकि जो मेरी बातें हैं, वह उन्हें तुम्हें बताएगा।
                                                                       (यूहन्ना, 16, 12-14)
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की भविष्यवाणी पूरी हुई और दुनिया में हज़रत मुहम्मद स. तशरीफ़ लाए। उन्होंने गवाही दी कि ईसा कुंवारी मां के बेटे थे और मसीह थे। खुदा के सच्चे नबी थे, मासूम थे। वे ज़िन्दा आसमान पर उठा लिए गए और दोबारा ज़मीन पर आएंगे और मानव जाति के दुश्मन ‘दज्जाल‘ (एंटी क्राइस्ट) का अंत करेंगे।
हज़रत मुहम्मद स. ने खुदा के हुक्म से हज़रत ईसा अ. के काम को ही अंजाम तक पहुंचाया है
जो बातें मसीह कहना चाहते थे लेकिन कह नहीं पाए, वे सब बातें पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. ने दुनिया को बताईं और उन्होंने संसार को पाप, धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर किया।
आज ज़मीन पर 153 करोड़ से ज़्यादा मुसलमान आबाद हैं। हरेक मुसलमान सिर्फ़ उनकी गवाही की वजह से ही ईसा को खुदा का नबी और मसीह मानते हैं। मरियम को पाक और उनकी पैदाइश को खुदा का करिश्मा मानते हैं। क्या मसीह के बाद दुनिया में हज़रत मुहम्मद स. के अलावा कोई और पैदा हुआ है जिसने मसीह की सच्चाई के हक़ में इतनी बड़ी गवाही दी हो और खुदा की शरीअत को ज़मीन पर क़ायम किया हो ?
‘सत्य का आत्मा‘ हैं हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
अगर आप इसके बावजूद भी हज़रत मुहम्मद स. को ‘सत्य का आत्मा‘ नहीं मानते तो फिर आप बताएं कि ‘सत्य का आत्मा‘ कौन है, जिसे मसीह ने जाकर भेजने के लिए कहा था ?
उनके अलावा आप किसे कह सकते हैं कि उसने सम्पूर्ण सत्य का मार्ग बताया है ?
क्या एक ईसाई के लिए इंजील के खि़लाफ़ अमल करना जायज़ है ?
ख़ैर , हो सकता है कि हज़रत मुहम्मद स. की सच्चाई पर मुतमईन होने में आपको कुछ वक्त लगे लेकिन जिस इंजील पर आप ईमान रखते हैं, उसके खि़लाफ़ अमल करने का आपको क्या हक़ है ?
इंजील के खि़लाफ़ न तो मैं अमल करना चाहता हूं और न ही आपको करने दूंगा।
बहुत बार ऐसा होता है कि जो बात ज्ञानियों से पोशीदा रह जाती हैं, उन्हें मालिक बच्चों पर खोल देता है। (मत्ती, 11, 25)
ज्ञानी में ज्ञान का अहंकार भी आ जाता है और उसे लगता है कि सभी ज़रूरी बातें जो जान लेनी चाहिए थीं उन्हें वह जान चुका है। ज्ञान के उसकी प्यास ख़त्म हो जाती है। प्यास ख़त्म तो समझो तलाश भी ख़त्म और नियम यह है कि ‘जो ढूंढता है वह पाता है।‘
जो ढूंढता है वह पाता है
बच्चे स्वाभाविक रूप से ही जिज्ञासु होते हैं और पक्षपात उनमें कुछ होता नहीं। सत्य को जानने के लिए यही दो आवश्यक शर्तें हैं, जो बच्चे पूरी कर देते हैं और ज्ञानी पूरी कर नहीं पाते। बच्चे ढूंढते और वे पा लेते हैं क्योंकि वे पाने की शर्तों पर खरे उतरते हैं।
मैं भी एक बच्चा ही हूं। मुझे कुछ मिला है। आप इसे देख लीजिये। आपको जंचे तो ठीक है वर्ना क़ियामत के रोज़ मसीह खुद बता देंगे कि उनके किस क़ौल का क्या मतलब था ?
तब बहुत से लोग उनके पास आएंगे और उनसे कहेंगे कि हमने तेरे साथ खाया-पीया था और तूने हमारे बाज़ारों में उपदेश दिया था।, लेकिन मसीह उन्हें धिक्कार कर कहेंगे कि हे कुकर्म करने वालो, तुम सब मुझसे दूर रहो। (लूका, 13, 27)
जीवन की सफलता के लिए ‘सत्कर्म‘ ज़रूरी है
इसीलिए मैं कहता हूं कि बिना सत्कर्म के सिर्फ़ मौज्ज़े और चमत्कार किसी की सच्चाई को परखने का सही पैमाना नहीं है। सत्कर्म का पैमाना केवल ‘व्यवस्था‘ है। यही मसीह की शिक्षा है। चमत्कार तो मसीह ने भी दिखाए और एंटी-क्राइस्ट भी दिखाएगा, लेकिन दोनों में फ़र्क़ यह होगा कि मसीह आये थे जो जो शरीअत को क़ायम करने और मसीह आएगा शरीअत को मिटाने के लिए। सही-ग़लत की पहचान का सही पैमाना शरीअत है, इसमें किसी को कभी धोखा नहीं हो सकता।
खुदा का हुक्म और मसीह की मर्ज़ी दो नहीं, बल्कि एक है
‘मसीह में जीने‘ और ‘खुदा में जीने‘ का मतलब भी यही है कि खुदा की मर्ज़ी और मसीह के तरीक़े में जीना। खुदा की मर्ज़ी और मसीह का तरीक़ा दो नहीं हैं बल्कि ‘एक‘ है। इसीलिए मसीह कहते हैं कि ‘मैं और पिता एक है।‘
खुदा की मर्ज़ी ही मसीह का तरीक़ा है और मसीह के तरीक़े का नाम ही शरीअत है। लोगों की आसानी के लिए शरीअत की तकमील ही मसीह के आने और जाने का मक़सद थी। अब मसीह जिस्मानी ऐतबार से हमारे दरम्यान नहीं हैं लेकिन उनका तरीक़ा हमारे सामने आज भी है। अगर आप मसीह में जीना चाहते हैं तो आपको उनके तरीक़े में जीना होगा। जिस तरह उन्होंने दिन गुज़ारा उस तरह आपको दिन गुज़ारना होगा और जिस तरह उन्होंने रात गुज़ारी उस तरह आपको रात गुज़ारनी होगी। जिस खुदा की उन्होंने इबादत की उसी खुदा की इबादत आपको करनी होगी और जिस खुदा से घुटने टेककर वे दुआ मांगा करते थे उसी खुदा से आपको दुआ मांगनी होगी। तब जाकर आप मसीह के तरीक़े को पा सकेंगे और मसीह में जी सकेंगे।
मसीह ने ज़िन्दगी भर केवल एक ईश्वर की उपासना की है, न तीन की और न ही दो की
यह नहीं कि मसीह तो ज़िन्दगी भर अपने पैदा करने वाले खुदा की इबादत करते रहे, उसी से दुआ मांगते रहे और दुआ पूरी होने पर उसी का शुक्र अदा करते रहे और सभी इस बात के गवाह भी हैं, लेकिन अब आप उनके तरीक़े के खि़लाफ़ खुदा को छोड़कर मसीह की इबादत करने लगें और उन्हीं से दुआएं मांगने लगें और शुक्र भी उन्हीं का अदा करने लगें और कोई पूछे तो आप कह दें कि मसीह ने कहा है कि ‘मैं और पिता एक हैं।‘
 भाई ! उनका कहना बिल्कुल सही है लेकिन उनके कहने को उनके करने के साथ जोड़कर तो देखिए।
जब उन्होंने कहा कि मैं और पिता एक हैं, तो क्या वे खुद अपनी इबादत करने लगे थे या मुसीबतों में खुद से ही दुआएं किया करते थे ?
अब उनके शिष्यों को देखिए कि उनके शिष्यों ने उनके मुंह से यह सुनकर क्या किया ?
क्या उनमें से किसी ने कभी खुदा के अलावा किसी की इबादत की ?
या उन्होंने मसीह से कभी घुटने टेककर दुआएं मांगी ?
हालांकि उन्होंने मसीह से सुना कि ‘जो कुछ पिता का है वह सब मेरा है‘ और ‘स्वर्ग और धरती का अधिकार मुझे दे दिया गया।‘ इसके बावजूद भी जब कभी किसी ने मसीह को उत्तम कहा तो उन्होंने यही कहा कि ‘तू मुझे उत्तम क्यों कहता है ? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात परमेश्वर।‘ (मरकुस, 10, 18)
‘तू अपने प्रभु परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना कर। (लूका, 4, 8)
आखि़री विनती
पादरी राकेश चार्ली साहब और भाई मकेश लॉरैंस साहब से और भी काफ़ी बातें हुईं जिन्हें किसी और वक्त पेश किया जाएगा। मैं नहीं जानता कि इन बातों को उन्होंने कितना माना ? और कितना उन पर विचार किया ?
यही बातें अब मैं आपके सामने रखता हूं। आपको जो बात सही लगे उसे ले लीजिए और जो बात ग़लत लगे मुझे उसके बारे में बता दीजिए ताकि मैं उसे सही कर लूं। मैं आपका शुक्रगुज़ार रहूंगा।

35 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

ध्यान जमाने के लिए बेजान मूर्ति एकमात्र साधन नहीं है
@ सुज्ञ जी ! इंसान को जिंदा रहने के लिए खाना पीना और चलना फिरना अनिवार्य है, यह एक सत्य है जिसे सभी मानते हैं लेकिन हरेक आदमी इसका पालन अपनी रीती नीति से करता है . बरसात , गर्मी और सर्दी के मौसम में भी आदमी का आचरण बदल जाता है . रेगिस्तान और मैदान की परिस्थितियों का भी आदमी के आचरण पर असर पड़ता है . सत्य एक ही रहता है केवल उसके अनुपालन की रीति बदल जाती है . आप चाहते तो इस मामूली सी बात को खुद ही समझ सकते थे .
@ रविन्द्र जी ! मैं क्या हरेक नमाज़ी बंदा सजदे में अपनी नाक पर ही दृष्टि रखता है और मालिक का ध्यान करता है . ध्यान जमाने के लिए बेजान मूर्ति एकमात्र साधन नहीं है तो इस पर अनावश्यक ज़ोर क्यों ?

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

Satish Chand Gupta said...

या पोस्‍ट तो कल से भी अधिक शानदार है

Satish Chand Gupta said...

या पोस्‍ट तो कल से भी अधिक शानदार है

Satish Chand Gupta said...

या पोस्‍ट तो कल से भी अधिक शानदार है

Satish Chand Gupta said...

गलती से कई बार कमेंटस हो गया क्षमा करें

Aslam Qasmi said...

बहुत बढिया

विश्‍व गौरव said...

सारी बातें अच्‍छी लगी हम तो सारी ले रहे हैं

Shahvez Malik said...

Very nice Anwer Bhai.

S.M.Masoom said...

सुज्ञ जी जी यह विडियो देख के क्या आप को कुछ नया शक हो रहा है? अगर हां तो बताएं अवश्य..

Anonymous said...

@Ejaz Ul Haq:- १. मैं अचंभित हूँ कि किस प्रकार लोग भ्र्म की दुनिया मे जीते हैं, मैने कब कहा कि मेरा कुरान पर मोह था, न था न है और अब उसको पढने के पश्चात होने की कोई संभावना भी नही। मेरा पूर्वाग्रह दूर करने के प्रति अपनी ऊर्जा न लगाओ, हो सके तो वह वातावरण बनाओ जिससे तुम्हारे लो अनायास ही धर्म के नाम पर व्यर्थ मे अपने प्राणों की आहुति न दें, स्वयं भी जिएं दूसरों को भी जीने दें।

२. देवी के अपमान की बात फिर से मुझे तुम्हारे गुरुजी के सृष्टि के उत्पन्न होने की theory पर ले जाती है जहाँ निर्लज्जता पूर्वक तुम लोगो ने श्रीमद्भावत पुराण को उद्ध्र्त किया झूठा।

३. मैने यह नही कहा कि डा गांव मे रहते हैं, मैने कहा कि डा गांव के लोगो को ठगते हैं, comment ज्यादा ही कडवा है पर क्या करूँ जब इंजक्श्न टाइट लगता है तो यह तो सब समझ जाते हैं कि सामने वाला qualified बंदा नही है। तो ऐसा आदमी परमात्मा से मिलाएगा या जर्क भेजेगा थोडा शंशय रहता है।

४. भारतीय संस्कृति के विविध आयाम हैं उसमे से एक इसे मानता है कि मृत्यु निश्चित समय पर आती है तो दूसरा मानता है कि कर्म ही सब को नियंत्रिन करता है, अर्थात कर्म के अनुसार भाग्य बदलता रहता है। महर्षि चार्वाक ने तो भाग्य को पूर्णतः खारिज किया हुआ है, अतः आप किस आयाम की बात कर रहे हैं जरा स्पष्ट करें।

मुझ पर ईसाइ पंडित होने का आरोप लगाने वाले हो सकता है कि तुम विदेशी ताकतो के जरिया हो हम लोगो को आपस मे लडाने के लिए।

बलबीर सिंह (आमिर) said...

घर आए महमान से हुई बातें बहुत अच्‍छी लगी आगे की कहानी भी हो सके तो कभी सुनाईएगा


नव- मुस्लिम डाक्टर मुहम्मद हुज़ेफा (डी. एस. पी. रामकुमार) से मुलाकात interview 5

मास्टर मुहम्मद आमिर (बलबीर सिंह, पूर्व शिवसेना युवा शाखा अध्‍यक्ष) से एक मुलाकात - Interview

मुहम्मद इसहाक (पूर्व बजरंग दल कार्यकर्त्ता अशोक कुमार) से एक दिलचस्प मुलाकात Interview 2

बाबरी मस्जिद गिराने के लिये 25 लाख खर्च करने वाला सेठ रामजी लाल गुप्ता अब "सेठ मुहम्मद उमर" interview 3

जनाब अब्दुर्रहमान (शास्त्री अनिलराव आर्य समाजी) से मुलाकात Interview-4

Anonymous said...

@जमाल भाइ - बात साकार और निराकार मे चयन की है, नाक भी साकार है, कल को कोई नाक की मुर्ती बना कर पूजन प्रारंभ कर देगा, कैसे रोकोगे? वैसे भी सब मुस्लिम ध्यान करते ही हैं इसका कोइ प्रमाण नही है, कई तो दूसरो को देख कर मात्र अभ्यास वश उठते और बैठते हैं क्या इतना मात्र ध्यान है? अतः जो भी जिस रूप मे समझ सके महत्व समझने का है।

आपके प्रश्न सुज्ञ जी के लिए - सत्य एक ही होता है पर समझने वाले उसको समझे तब न, आप जो सुज्ञ जी को समझा रहे हैं वस्तुतः वो आपको समझना है। पर आप समझे तब न।

bhagvatprasad mishra said...

भाइ अनवर जी ये मेरे सवाल का जवाब नही था

मैने पिछले पेज मे पूछा था ये मेरे सवाल का जवाब नही था

कृप्या नमुदार का अर्थ बता दें

Anonymous said...

अगर आप साकार और निराकार के बजाए सजीव और निर्जीव मे भेद के आधार पर मूर्ती पूजन का विरोध करते हैं तो गुरुपूजन एवं माता पिता के पूजनीय होने पर कोइ प्रश्न नही उठाना चाहिए।

Anonymous said...

जमाल तुमने लिखा है "लेकिन मेरे सवालों का जवाब इनमें से कोई भी नहीं दे रहा है। ये क्या जवाब देंगे ? जवाब तो पादरी राकेश चार्ली जी भी न दे सके।" - तुम्हारा यह घमण्ड मुझे बहुत पसंद है, इसे बनाए रखो|

Anonymous said...

"धर्मशास्त्र में भी आया है कि ‘मैं दया से प्रसन्न से होता हूं बलिदान से नहीं।" - क्या जमाल ने मांसाहार छोड दिया, और बकरीद पर क्या वो कुर्बानी नही देगें?

kumaram said...

अनवर जी सत्य के बारे मे जानिये।

हमारे हिन्दुस्तान संस्कृति मे अपने से बड़ो की इज्जत की जाती है। उन्हे सम्मान दिया जाता है और न हि उनकी कही बातों को काटा जाता है।
न कि नंगा किया जाता है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मोहम्मद साहब से छह सौ या सात सौ साल पहले आये थे इसमे कोई शक नही है। बाकी आप समझदार हैं।

और मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। John 14:17
अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता हैः तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा। John 14:18

1.@ अनवर जी इस बात को जरा ध्यान सें पढ़े वह तुम में होगा।

मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं। John 14:13
ये बातें मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही। John 14:26


2.@ अनवर जी इस बात को जरा ध्यान सें पढ़े जो काम ईसा ने किये वरन उस

से भी बड़े बड़े काम करेगा।

प्रश्न - क्या मोहम्मद साहब ने ईसा जैसे ही काम किये हो तो बतायें।


परन्तु सहायक अर्थात् पवित्रा आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा। John 14:27

kumaram said...

आप ने बताया है कि सत्य का आत्मा हैं हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम

ईसा के कथन - और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।

प्रश्न - मोहम्मद साहब ने यही स्मरण दिलाया कि

1. ईसा ने शराब बनाई और पी

2. ईसा की मृत्यू नही हुई वो क्रूस पर मरे नही थे।

3 जो कहता है मै आज कल और सर्वदा एक सा कभी न बदलने वाला परमेश्वर हूं।

कभी न बदलने वाले खुदा को दो तरह का बना दिया। ईसा तक कुछ और ईसा के बाद मुहम्मद साहब के समय कुछ और।

4. मसीह खुदा का बेटा नही है। मसीह ने झूठ कहा था लोंगों ने उसे खुदा का बेटा बना दिया।

5. आदम से लेकर ईसा तक को झूठा बना दिया। और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ ।

DR. ANWER JAMAL said...

@ Mr. Kumaram !
मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं। John 14:13
kya aapne kiye kabhi Jesus se bhi bade kaam, jaisa ki unhone kaha tha ?

kumaram said...

सत्य का आत्मा अर्थात पवित्र आत्मा पाये हुओं मे ये चिन्ह होंगंे
नई नई भाषा बोलेंगे, सांपों को उठा लेंगे, और यदि वे नाशक वस्तु भी पी जांए तौभी उन की कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएंगे। निदान प्रभु यीशु उन से बातें करने के बाद स्वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्वर की दहिनी ओर बैठ गया। mark 16:18.19

सत्य का आत्मा अर्थात पवित्र आत्मा का आगमन -

जब पिन्तेकुस्त का दिन आया, तो वे सब एक जगह इकठ्ठे थे।
और एकाएक आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द हुआ, और उस से सारा घर जहां वे बैठे थे, गूंज गया।
और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं।
और वे सब पवित्रा आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।।
और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त यहूदी यरूशलेम में रहते थे। जब वह शब्द हुआ तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाई देता था, कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। और वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे; देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं?
तो फिर क्यों हम में से हर एक अपनी अपनी जन्म भूमि की भाषा सुनता है? हम जो पारथी और मेदी और एलामी लोग और मिसुपुतामिया और यहूदिया और कप्दूकिया और पुन्तुस और आसिया।
और फ्रीगिया और पमफूलिया और मिसर और लिबूआ देश जो कुरेने के आस पास है, इन सब देशों के रहनेवाले और रोमी प्रवासी, क्या यहूदी क्या यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं।
परन्तु अपनी अपनी भाषा में उन से परमेश्वर के बड़े बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।
और वे सब चकित हुए, और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे कि यह क्या हुआ चाहता है?
परन्तु औरों ने ठठ्ठा करके कहा, कि वे तो नई मदिरा के नशे में हैं।।
पतरस उन ग्यारह के साथ खड़ा हुआ और उूंचे शब्द से कहने लगा, कि हे यहूदियो, और हे यरूशलेम के सब रहनेवालो, यह जान लो और कान लगाकर मेरी बातें सुनो।
जैसा तुम समझ रहे हो, ये नशें में नहीं, क्योंकि अभी तो पहर ही दिन चढ़ा है।
परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है।
कि परमेश्वर कहता है, कि अन्त कि दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे, और तुम्हारे पुरनिए स्वप्न देखेंगे।
बरन मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे। और मैं उूपर आकाश में अद्भुत काम, और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात् लोहू, और आग और धूएं का बादल दिखाउुगा।
प्रभु के महान और प्रसिद्ध दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धेरा और चान्द लोहू हो जाएगा। Acts 2:1to20

kumaram said...

EACH DAY HAS ITS OWN DISTINY:

YESTERDAY IS HISTORY,

TODAY IS OPPORTUNITY,

WHILE TOMORROW IS MYSTERY:

www.tbjoshua.com

kumaram said...

अनवर जी आपने ही पेज बनाया उसमे जो आपने अपनी जानकारी के अनुसार लिखा उसमे मैने आपके ज्ञान की कमी पायी क्योकि आपको जितना नालेज है उतना ही नही लिखोगे। मगर उसमे जो प्रश्न है उसके उत्तर ठूढं के जरुर दीजियेगा।

आपने उत्तर देने के पहले ही सवाल रख दिया

उत्तर - आपके पास तो बहुत कुछ है फिर भी मै आपको बतलाता हंू

कलाम कहता है

1 परख या आजमा कर देख यहोवा कितना भला है

2 संकट के समय अति सहज से मिलने वाला परमेश्वर यहोवा है।
क्या आपके पास इतना महान खुदा नही जो आपको मुझसे पूछने की जरुरत पड़ी ।

मेरे भाई मेरी बातो का बुरा मत मानना छोटा भाई समझ कर माफ कर देना

kumaram said...

अनवर जी आपने जो हैडिंग लिखी है उसके बारे मे -

मसीह का मिशन था सत्य पर गवाही देना यह गलत है

1 क्योकि वह स्वंय सत्य था। यीशू ने कहा मार्ग सत्य और जीवन मै ही हूं।

2 यीशू का मिशन मृत्यू पर जय पाना था अगर शैतान लूसीफर को मालूम होता तो वह उसको मरने ही नही देता। शैतान ही तो यहूदा स्कारयोती के अन्दर समाया ईसा को पकड़वाने का माध्यम बनाया।

शैतान तो सोचता था कि कितनी जल्दी इसे मरवा डालूं

ईसा ने मरने के बाद सबसे पहले मौत की कुन्जी को अपने कब्जे मे लिये। इसी लिये शैतान आज उनके नाम से थर्राता है।

कभी शैतान के सामने यीशू के लहू की जय बोल कर अजमा लेना।

सेन्ट पॉल के विषय मे शरियत का जिक्र किया है।

शरियत के बारे मे आप थोड़ा अध्ययन करियेगा या किसी ज्ञान वान से क्योकि वो आपकी किताब में नही है।

Ejaz Ul Haq said...

हमारा दावा है कि आप मसीह से बड़े काम नहीं कर सकते
@ कुमारम जी !

आपने कहा " मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं। John 14:13
१. मेरा प्रश्न- मसीह अलैहिस्सलाम का ख़तना हुआ, वे जीवन भर मूसा की व्यवस्था पर चले और ख़ुदा के हुक्म से मुर्दों को ज़िंदा किया.
क्या आपका ख़तना हुआ ? क्या आप मसीह की तरह व्यवस्था पर चलते हैं ? क्या आप लोग मुर्दों को ज़िंदा कर देते हैं? क्या आप लोग मसीह के लहू की जय बोल कर छुटकारा पा लेते हैं बिमारियों से? क्या ईसाई नन और पादरी डाक्टर के पास नहीं जाते ? अगर जाते हैं तो फिर क्या फ़ायदा ऐसे दावे का कि हम मसीह से भी बड़े काम कर सकते हैं. हमारा दावा तो यह है कि आप मसीह से बड़े तो क्या उनके जैसे भी काम नहीं कर सकते और न ही कर रहे हो. दुनिया इसे जानती है.
प्रश्न २. आपने इतने दिनों बाद भी यह नहीं बताया कि आप बच्चे को मासूम मानते हैं या जन्मजात पापी ?

Ejaz Ul Haq said...

कौन है ? जो ईसा मसीह से भी बड़े काम कर सकता हो ?
@ कुमारम जी ! जवाब दीजिये.
@ रविंदर जी !
१. क्या आप भूल गए हैं कि आपने धर्म ग्रंथों के प्रति मोह भंग होने कि बात कही थी? जिन धर्म ग्रंथों से आपका मोह भंग हुआ क्या उनमे कुरआन शामिल नहीं है,
डा. अनवर साहब ने जो कुछ सुज्ञ जी को समझाया वे समझ गए, राकेश जी या कुमारम जी भी समझ जाएँगे ,क्योंकि " wine" पर वे कुछ बोले नहीं पिछली पोस्ट पर, आप भी समझने की कोशिश कीजिये और शायद आप समझ भी गए हैं,क्योंकि मूर्ति पर ध्यान जमाने की ज़िद भी आपने छोड़ दी है, आपका धन्यावाद ।
@ महक जी !
कहाँ हैं आप ? क्या ज़्यादा बिज़ी हैं आज कल ?

kumaram said...

एजाजुल हक जी आप शब्दों के अर्थ पर अपने तर्क रखतें है।
उसी को बहस का मुद्दा बना देते है। जवाब देने के बजाय नया प्रश्न खड़ा कर देतें है।

अगर आप अनवर जी से पूछे सवालो का जवाब देते उसके बाद प्रश्न करते तो कोई बात होती।

आपका उत्तर - 1 .बैगलोर मे रेव्ह. बेन्नी हिन्न की 3 दिन मीटिंग मे 70,000,00 सत्तर लाख लोग आये थे
बैगलोर का जकूर हवाई अड्डा 15 दिन बंद रहा।
कितनी चगांई हुई सीडी मगवा कर देख लीजियेगा।

2 .भारत में चेन्नई नामक जगह है वहां डा0 डी.जी.एस.दीनाकरन थे वो अभी नही हैं वर्तमान में उनका लड़का पॉल दीनाकरन हैं इनके बारे मे पता कर लें आपको जवाब मिल जायेगा।

ढूंढोगे तो पाओगे।

सुज्ञ said...

@"डा. अनवर साहब ने जो कुछ सुज्ञ जी को समझाया वे समझ गए"

मैं जो समझा हूं वह यह है कि बहस के दंभीयो के हाथों इस्लाम की हार नहिं चाह्ता। यहां अनवर,एज़ाज़ आदि वाक्चातुर्य में जीतना चाह्ते है,इस्लाम का जो होना हो वो हो। यही मैं समझा हूं। इसीलिये मैं बहस से बाहर हूं।
श्री रविन्द्र नाथ जी फ़िर भी मेरे से सम्बधित सच्चाई रख रहे है, श्री निरंजन जी मिश्र की सलाह http://premsandes.blogspot.com/2010/10/who-will-give-ideal-consept-of-dharma.html#comments पर
भाई रविन्द्र नाथ जी आपको भी इस निष्परिणाम बहस से बाहर हो जाना चाहिए।
महक जी, अनावश्यक बहस का ही यह दुष्परिणाम था कि वैदिक मूल कर्मसिद्धांत'आवागमन'पर विचारभ्रम पैदा हुआ।
आप भी बहस से बाहर आएं।

सुज्ञ said...

डा. अनवर साहब,एज़ाज़ साहब,
कृपया अब मेरे नाम से उद््बोधित पोस्ट या टिप्पणी न करें। कि विवश होकर प्रत्युत्तर के लिये आना पडे।मैं बहस से अपने को विलग करता हूं।

kumaram said...

अब जरा सोचिये कि जिस ईसा को मूसा इब्राहिम इसहाक और याकूब और दाउद का सच्चा यहोवा परमेश्वर जिसने ईसा को जिलाया है।

जिसने शैतान के सिर को कुचला जिससे शैतान थर्राता है।

उसका विरोध आप क्यों करते है। इससे मै क्या समझू। कही आप घायल तो नहीं हो रहे हैं आप सभी कि प्रतिक्रिया यही बयां कर रही है।

आप तो तीन मे एक आर एक मे तीन पर बहस करते है

अभी यहां तो छह 6-7 मे एक दखिई देने लगा है ये आपने प्रमाणित कर दिया है।

Anonymous said...

सुज्ञ जी आप उचित ही कहते हैं, यहाँ तो थोथा चना बाजे घना का हाल है। सच मे अधजल गगरी छलकत जाय कहावत ऐसे ही लोगो के लिए है। मैं तो महक जी के लिए कुछ कह नही सकता वो गलत अर्थ निकालेंगे, उनको समझाने का दायित्व आप पर ही आया इस प्रकार।

आपके द्वारा यह सही इंगित किया गया है, यहाँ अब और समय व्यर्थ करना उचित नहीं।

ABHISHEK MISHRA said...

मैं तो बहुत पहले ही जान गया था की यहाँ पर अनवर जमाल एंड पार्टी तर्कों की कसौटी पर हारने पर भी कुतर्को द्वारा सिर्फ अपनी बात सिद्ध करना चाहते है .इन को कई बार आईना दिखाया .पर ये तो बस सकुलर बन कर मूर्ख बनाने की कोसिस कर रहे है .
महक जी . जमाल जी हिन्दुओ को नमाज कायम करने की सलाह दे रहे है .एजाज उल हक़ तो मुझे अपनी ये सलाह पहले ही दे चुके है .अब आप अपने गुरुतुल्य की बात मान कर नमाज़ कायम कर ही ले .
गिरी जी तो मुद्दा ही नही समझ पाते है .बहुत संभव है की वो एक बार फिर बिना समझे इस लेख का भी समर्थन कर दे .
मैं इस अंतहीन बहस से पहले ही बाहर चला गया हू और आप सब हिन्दू भईयो से पुनः आग्रह करता हू की इन को इन के हाल पर छोड़ दीजिये . ये कभी नही सुधरने वाले .

सूअर से कुश्ती नही लड़नी चाहिए . इस के दो कारण है
(१)आप के कपडे गंदे हो जायेंगे .
(२)इस से भी बड़ा कारण यह है की सूअर को मज़ा आएगी

DR. ANWER JAMAL said...

@ कुमारम जी उर्फ़ राकेश लाल जी ! आपने आज तक नहीं कि
1- आप बच्चों को मासूम मानते हैं या फिर जन्मजात पापी जैसा कि दीगर ईसाई मानते हैं ?
2-और न ही आपने यह बताया कि जिस बाइबिल से आप उद्धरण देते हैं उसमें कुल कितनी किताबें हैं ?
@ मिस्टर अभिषेक ! आपकी सलाह हिरण्याक्ष ने नहीं मानी वह लड़ा था सुअर से और हार गया। मैंने बहुत पहले एक लेख लिखा था कि हिन्दू भाई किसी को गाली देने के लिए शब्दहीन हो चुके हैं क्योंकि हरेक शब्द से जो आकृति बनती है उसे वे साक्षात ईश्वर या देवी-देवता या उनकी सवारी मानते हैं । वह लेख आपके आगमन से पहले लिखा था लेकिन आपके पढ़ने योग्य है। वैसे भी उन्हें मना किया गया है गाली बकने से।

shyam gupta said...

सही कहा अभिषेक...कोई फ़ायदा नहीं....१५ वी सदी जो चल रही है....

DR. ANWER JAMAL said...

@ डाक्टर श्याम गुप्ता जी ! २१ वीं सदी चल रही है जनाब , आम तौर से तो यही मशहूर है . आप ज़रा खुल कर बताएं कि१५ वीं सदी कौन चल रही है और उसके चलने से क्या होने वाला है ?

http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/09/blog-post_15.html