सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Monday, June 21, 2010

इस्लाम के पैग़म्बरःहज़रत मुहम्मद (सल्ल.) Written by Prof. Ramakrishna Rao


अध्याय .1


इस्लाम के पैग़म्बरःहज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म अरब के रेगिस्तान में मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार 20 अप्रैल 571 ई. में हुआ। ‘मुहम्मद’ का अर्थ होता है ‘जिस की अत्यन्त प्रशंसा की गई हो।’ मेरी नज़र में आप अरब के सपूतों में महाप्रज्ञ और सबसे उच्च बुद्धि के व्यक्ति हैं। क्या आपसे पहले और क्या आप के बाद, इस लाल रकतीले अगम रेगिस्तान में जन्मे सभी कवियों और शासकों की अपेक्षा आप का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है।जब आप पैदा हूए अरब उपमहीद्वीप केवल एक सूना रेगिस्तान था। मुहम्मद(सल्ल.) की सशक्त आत्मा ने इस सूने रेगिस्तान से एक नए संसार का निर्माण किया, एक नए जीवन का, एक नई संस्कृति और नई सभ्यता का। आपके द्वारा एक ऐसे नये राज्य की स्थापना हुई, जो मराकश से ले कर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों-एशिया, अफ्ऱीक़ा, और यूरोप के विचार और जीवन पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला।

उदारता की ज़रूरत
मैंने जब पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में लिखने का इरादा किया तो पहले तो मुझे संकोच हुआ, क्योंकि यह एक ऐसे धर्म के बारे में लिखने का मामला था जिसका मैं अनुयायी नहीं हूँ और यह एक नाज़ूक मामला भी है क्योंकि दूनिया में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग पाए जाते हैं और एक धर्म के अनुयायी भी परस्पर विरोधी मतों (school of thought) और फ़िरक़ों में बंटे रहते हैं।हालाँकि कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि धर्म पूर्णतः एक व्यक्तिगत मामला है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि धर्म में पूरे जगत् को अपने घेरे में ले लेने की प्रवृत्ति पाई जाती है, चाहे उसका संबंध प्रत्यक्ष से हो या अप्रत्यक्ष चीज़ों से। वह किसी न किसी तरह और कभी न कभी हमारे हृदय, हमारी आत्माओं और हमारे मन और मस्तिष्क में अपनी राह बना लेता है। चाहे उसका ताल्लुक़ उसके चेतन से हो, अवचेतन या अचेतन से हो या किसी ऐसे हिस्से से हो जिसकी हम कल्पना कर सकते हों। यह समस्या उस समय और ज़्यादा गंभीर और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि इस बात का गहरा यक़ीन भी हो कि हमारा भूत, वर्तमान और भविष्य  सब के सब एक अत्यन्त कोमल, नाज़ुक, संवेदनशील रेशमी सूत्रों से बंधे हुए हैं। यदि हम कुछ ज़्यादा ही संवेदनशील हुए तो फिर हमारे सन्तुलन केन्द्र के अत्यन्त तनाव की स्थिति में रहने की संभावना बनी रहती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो दूसरों के धर्म के बारे में जितना कम कुछ कहा जाए उतना ही अच्छा है। हमारे धर्मों को तो बहुत ही छिपा रहना चाहिए। उनका स्थान तो हमारे हृदय के अन्दर होना चाहिए और इस सिलसिले में हमारी ज़ुबान बिल्कुल नहीं खुलनी चाहिए।

मनुष्य: एक सामाजिक प्राणी
लेकिन समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। मनुष्य समाज में रहता है और हमारा जीवन चाहे-अनचाहे, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे लोगों के जीवन से जुड़ा होता है। हम एक ही धरती का अनाज खाते हैं, एक ही जल-स्रोत का पानी पीते हैं और एक ही वायुमंडल की हवा में सांस लेते हैं। ऐसी दशा में भी, जबकि हम अपने निजी विचारों व धार्मिक धारणाओं पर क़ायम हों, अगर हम थोड़ा-बहुत यह भी जान लें कि हमारा पड़ोसी किस तरह सोचता है, उसके कर्मों के मुख्य प्रेरणा-स्रोत क्या हैं? तो यह जानकारी कम से कम अपने माहौल के साथ तालमेल पैदा करने में सहायक बनेगी। यह बहुत ही पसन्दीदा बात है कि आदमी को संसार मे धर्मों के बारे में उचित भावना के साथ जानने की कोशिश करनी चाहिये, ताकि आपसी जानकारी और मेल-मिलाप को बढ़ावा मिले और हम बेहतर तरीक़े से अपने क़रीब या दूर के पास-पड़ोस के लोगों की क़द्र कर सकें।फिर हमारे विचार वास्तव में उतने बिखरे नहीं हैं जैसा कि वे ऊपर से दिखाई देते हैं। वास्तव में वे कुछ केन्द्रों के गिर्द जमा होकर स्टाफ़िक़ जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें दुनिया के महान धर्मों और जीवन्त आस्थाओं के रूप में देखते हैं। जो धरती में लाखों ज़िन्दगियों का मार्गदर्शन करते और उन्हें प्रेरित करते हैं। अतः अगर हम इस संसार के आदर्श नागरिक बनना चाहते हैं तो यह हमारी जि़म्मेदारी भी है कि उन महान धर्मों और उन दार्शनिक सिद्धान्तों को जानने की अपने बस भर कोशिश करें, जिनका मानव पर शासन रहा है।

पैग़म्बर : ऐतिहासिक व्यक्तित्व
इन आरम्भिक टिप्पणियों के बावजूद धर्म का क्षेत्र ऐसा है, जहाँ प्रायः बुद्धि और संवेदन के बीच संघर्ष पाया जाता है। यहाँ फिसलने की इतनी सम्भावना रहती है कि आदमी को उन कम समझ लोगों का बराबर ध्यान रखना पड़ता है, जो वहाँ भी घुसने से नहीं चूकते, जहाँ प्रवेश करते हुए फ़रिश्ते भी डरते है। इस पहलू से भी यह अत्यन्त जटिल समस्या है। मेरे लेख का विषय एक विशेष धर्म के सिद्धान्तों से है। वह धर्म ऐतिहासिक है और उसके पैग़म्बर का व्यक्तित्व भी ऐतिहासिक है। यहाँ तक कि सर विलियम म्यूर जैसा इस्लाम विरोधी आलोचक भी कु़रआन के बारे में कहता है, ‘‘शायद संसार में (कु़रआन के अतिक्ति) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।’’1 मैं इसमें इतना और बढ़ा सकता हूँ कि पैग़म्बर मुहम्मद भी एक ऐसे अकेले ऐतिहासिक महापुरुष हैं, जिनके जीवन की एक-एक घटना को बड़ी सावधनी के साथ बिल्कुल शुद्ध रूप में बारीक से बारीक विवरण के साथ आनेवाली नसलों के लिए सुरक्षित कर लिया गया है। उनका जीवन और उनके कारनामे रहस्य के परदों में छुपे हुए नहीं हैं। उनके बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी को सिर खपाने और भटकने की ज़रूरत नहीं। सत्य रूपी मोती प्राप्त करने के लिए ढेर सारी रास से भूसा उड़ाकर चन्द दाने प्राप्त करने जैसे कठिन परिश्रम की ज़रूरत है।

पूर्वकालीन भ्रामक चित्रण
मेरा काम इस लिए और आसान हो गया है कि अब वह समय तेज़ी से गुज़र रहा है, जब कुछ राजनैतिक और इसी प्रकार के दूसरे कारणों से कुछ आलोचक इस्लाम का ग़लत और बहुत ही भ्रामक चित्रण किया करते थे।1
 प्रोफ़सर बीबान ‘केम्ब्रिज मेडिवल हिस्ट्री (Cambrigd madieval history) में लिखता है-‘‘ इस्लाम और मुहम्मद के संबंध में 19वीं सदी के आरम्भ से पूर्व यूरोप में जो पुस्तकें प्रकाशित हुईं उनकी हैसियत केवल साहित्यिक कौतूहलों की रह गई है’’मेरे लिए पैग़म्बर मुहम्मद के जीवन-चित्र के लिखने की समस्या बहुत ही आसान हो गई है, क्योंकि अब हम इस प्रकार के भ्रामक ऐसिहासिक तथ्यों का सहारा लेने के लिए मजबूर नहीं हैं और इस्लाम के संबंध में भ्रमक निरूपणों के स्पष्ट करने में हमारा समय बर्बाद नहीं होता।मिसाल के तौर पर इस्लामी सिद्धान्त और तलवार की बात किसी उल्लेखनीय क्षेत्र में ज़ोरदार अन्दाज़ में सुनने को नहीं मिलती। इस्लाम का यह सिद्धान्त कि ‘धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नही’, आज सब पर भली-भाँति विदित है।
पूरी किताब पढने के लिए ....     http://islaminhindi.blogspot.com/

22 comments:

MLA said...

Achhi Jankari. Nice Post!

MLA said...

Achhi Jankari. Nice Post!

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

ज़ीशान भाई, काफ़ी अच्छी जानकारी दी आपने ये किताब काफ़ी दिलचस्प महसुस हो रही है...॥

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"हमारा हिन्दुस्तान"

"इस्लाम और कुरआन"

Coding | A Programmers Area

Ayaz ahmad said...

धर्म के मामले मे कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नही इस्लाम का यह सिद्धांत आज सर्वविदित है

Ayaz ahmad said...

nice post

Anonymous said...

अब ये प्रोफेसर कहाँ से उठा लाए

बाल ठाकरे said...

ये सब फर्जी लोग है

Ayaz ahmad said...

हमारे यहाँ नकली कुछ नही होता यहाँ पर सब कुछ असली है

Mohammed Umar Kairanvi said...

nice मेरे ब्‍लाग पर यह किताब कलीम साहब का तोहफा है, जो शायद आपको सबसे ज्‍यादा पसन्‍द है

S.M.Masoom said...

सर्वधर्म सद्भाव (द्वेषरहित). से यह किताब सबको पढनी चहिये. सच को झूट कहने से झूट नहीं हो जाता, साबित करने की ज़रुरत हुआ करती है.

सहसपुरिया said...

GOOD POST

Spiritual World Live said...

(कु़रआन के अतिक्ति) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।

zeashan haider zaidi said...

इस्लामी सिद्धान्त और तलवार की बात किसी उल्लेखनीय क्षेत्र में ज़ोरदार अन्दाज़ में सुनने को नहीं मिलती। इस्लाम का यह सिद्धान्त कि ‘धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नही’, आज सब पर भली-भाँति विदित है।

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

विलियम म्यूर जैसा इस्लाम विरोधी आलोचक भी कु़रआन के बारे में कहता है, ‘‘शायद संसार में (कु़रआन के अतिक्ति) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।’’

हकनामा said...

अब 'हकनामा' करेगा हक की बात, पूरी तरह से तैयार

हमारीवाणी said...

आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम



हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!

ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।

अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
http://hamarivani.blogspot.com

Sharif Khan said...

आप बहुत अच्छा लिखते हैं। आप से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
आप ने अपनी ब्लॉगर्स बिरादरी में मुझ नाचीज़ को अपने क़ीमती अलफ़ाज़ से नवाज़ कर जो हौसलाअफ़ज़ाई की है उसका में तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं।

Asad ali said...

salam bhaijann
aap achha likhte hai

Astik Vinek said...

Later, in the form of a ghostly presence, the expert illusionist Mahamada appeared at night in front of king Bhojaraja and said: "O king, your religion is of course known as the best religion among all. Still, by the order of the Lord, I am going to establish a terrible and demoniac religion and enforce a strong creed over the meat-eaters [mlecchas]. My followers will be known by their cut [circumcised] genitals, they will have no shikha [tuft of hair on their head, like Brahmanas], but will have a beard, make noise loudly [as in the aadhaan, the call to prayer], and eat all kinds of animals except swine without observing any rituals. They will perform purificatory acts with the musala, and thus be called musalman, and not purify their things with kusha grass [one of the Vedic customs]. Thus, I will be the originator of this adharmic [opposed to Vedic or Aryan Dharma] and demoniac religion of the meat-eating nations." After having heard all this, the Bhavishya Purana goes on to relate that King Bhojaraja returned to his land and palace, and that ghost of the man also went back to his own place.



The intelligent king, Bhojaraj, established the language of Sanskrit amongst the three varnas -- the Brahmanas, Kshatriyas and Vaisyas -- and for the Shudras he established prakrita-bhasha, the ordinary language spoken by common men. After ruling his kingdom for another 50 years, he went to the heavenly planets. The moral laws established by him were honored even by the demigods. The arya-varta, the pious land is situated between Vindhyachala and Himachala, or the mountains known as Vindhya and Himalaya. The Aryans reside there, but varna-sankaras reside on the lower part of Vindhya. The musalman people were kept on the other [northwestern] side of the river Sindhu.

Astik Vinek said...

It is explained in the Bhavishya Purana (Parva 3, Khand 3, Adhya 3, verses 5-6) that "An illiterate mleccha [foreigner] teacher will appear, Mahamada is his name, and he will give religion to his fifth-class companions." This does not describe much in regard to his life, but it does mention Mahamada, which some suggest to be Mohammed, and what he was expected to do, which was to give his own form of religion to the lower classes of his region. Some people are most willing to accept that Mohammed was predicted in the Bhavishya Purana, and so their logic is that if he was predicted in this way by a Vedic text, then Hindus should all accept Mohammed and become Muslims. However, if we look at the full translation of this story, they may not want to jump to conclusions.

Astik Vinek said...

To set the scene, Shri Suta Gosvami first explained that previously, in the dynasty of King Shalivahana, there were ten kings who went to the heavenly planets after ruling for over 500 years. Then gradually the morality declined on the planet. At that time, Bhojaraja was the tenth of the kings on the earth. When he saw that the moral law of conduct was declining, he went to conquer all the directions of his country with ten-thousand soldiers commanded by Kalidasa. He crossed the river Sindhu [modern Indus River] going northward and conquered over the gandharas [the area of Afghanistan], mlecchas [present-day region of Turkey], shakas, Kashmiris [Kashmir and present-day Pakistan], naravas, and sathas. Crossing the Sindhu, he conquered the mlecchas in Gandhar and the shaths in Kashmir. King Bhoj grabbed their treasure and then punished them.



Then, as verses 7-8 relate, the Aryan King Bhojaraja, who had already left India for the lands across the Sindhu River and to the west, meets Mahamada [some say this is Mohammed], the preceptor of the mleccha-dharma [religion of the mlecchas], who had arrived with his followers. Thereafter, however, the King went to worship the image of Lord Mahadev, the great god Shiva, situated in the marusthal, desert. King Bhoj bathed the image of Shiva with Ganges water and worshiped him in his mind with panchagavya (the five purificatory elements from the cow, consisting of milk, ghee, yogurt, cow dung, and cow urine), along with sandalwood paste, etc., and offered him, the image of Shiva, sincere prayers and devotion. King Bhoj prayed to Lord Mahadev, "O Girijanath who stays in the marusthal (land of deserts), I offer my prayers to you. You have forced maya [the illusory energy] to destroy Tripurasur [the demon Tripura]; but the mlecchas are now worshiping you. You are pure and sat-chit-anand swaroop [eternal knowledge and bliss]. I am your sevak [servant]. I have come under your protection."

Astik Vinek said...

Verses 10-27 relates next that Suta Goswami explained: After hearing the king’s prayers and being pleased with him, Lord Shiva said: "Let the King go to Mahakaleshwar (Ujjain) in the land of Vahika, which is now contaminated by mlecchas. O King, the land where you are standing, that is popular by the name of Bahik, has been polluted by the mlecchas. In that terrible country there no longer exists Dharma. There was a mystic demon named Tripura (Tripurasura), whom I have already burnt to ashes once before, he has come again by the order of Bali. He has no origin but he achieved a benediction from me. His name is Mahamada and his deeds are like that of a ghost. Therefore, O king, you should not go to this land of the evil ghost. By my mercy your intelligence will be purified." [This would seem to indicate that this Mahamada was an incarnation of the demon Tripura.] So hearing this, the king came back to his country and Mahamada came with them, but only to the bank of the river Sindhu. He was expert in expanding illusion, so he said to the king very pleasingly, "O great king, your god has become my servant. Just see, as he eats my remnants, so I will show you."



The king became surprised when he saw this happening before them. Then in anger Kalidasa, the king’s commander, rebuked Mahamada, "O rascal, you have created an illusion to bewilder the king, I will kill you, you are the lowest..." Then the king left that area.



Later, in the form of a ghostly presence, the expert illusionist Mahamada appeared at night in front of king Bhojaraja and said: "O king, your religion is of course known as the best religion among all. Still, by the order of the Lord, I am going to establish a terrible and demoniac religion and enforce a strong creed over the meat-eaters [mlecchas]. My followers will be known by their cut [circumcised] genitals, they will have no shikha [tuft of hair on their head, like Brahmanas], but will have a beard, make noise loudly [as in the aadhaan, the call to prayer], and eat all kinds of animals except swine without observing any rituals. They will perform purificatory acts with the musala, and thus be called musalman, and not purify their things with kusha grass [one of the Vedic customs]. Thus, I will be the originator of this adharmic [opposed to Vedic or Aryan Dharma] and demoniac religion of the meat-eating nations." After having heard all this, the Bhavishya Purana goes on to relate that King Bhojaraja returned to his land and palace, and that ghost of the man also went back to his own place.



The intelligent king, Bhojaraj, established the language of Sanskrit amongst the three varnas -- the Brahmanas, Kshatriyas and Vaisyas -- and for the Shudras he established prakrita-bhasha, the ordinary language spoken by common men. After ruling his kingdom for another 50 years, he went to the heavenly planets. The moral laws established by him were honored even by the demigods. The arya-varta, the pious land is situated between Vindhyachala and Himachala, or the mountains known as Vindhya and Himalaya. The Aryans reside there, but varna-sankaras reside on the lower part of Vindhya. The musalman people were kept on the other [northwestern] side of the river Sindhu.