सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Monday, June 14, 2010
True spirituality आप ईश्वर से रोज़ मिलते हैं लेकिन पहचानते नहीं। / खुददार शहरोज़ के हवाले से एक सनातन सच का बयान
हज़रत अबू हुरैरह रज़ि. से रिवायत है कि परमेश्वर के दूत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि परमेश्वर क़ियामत के दिन किसी बन्दे से कहेगाः ‘‘हे आदम के बेटे! मैं बीमार हुआ तूने मेरी बीमारपुर्सी नहीं की।‘‘ वह बन्दा कहेगा कि हे पालनहार! मैं तेरी बीमारपुर्सी कैसे करता तू तो सारे जगत का पालनहार है ?
वह कहेगाः ‘‘क्या तू नहीं जानता था कि मेरा अमुक बन्दा बीमार है तूने उसकी बीमारपुर्सी नहीं की ? क्या तू नहीं जानता था कि अगर तू उसकी बीमारपुर्सी करता तो अवश्य ही तू मुझे उसके पास पाता। हे आदम के बेटे! मैंने तुझसे खाना मांगा लेकिन तूने मुझे खाना नहीं खिलाया।‘‘
बन्दा कहेगाः‘‘ हे पालनहार! मैं तुझे कैसे खिलाता तू तो जगत का पालनहार है ?
वह कहेगाः‘‘क्या तुझे नहीं मालूम कि मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे खाना मांगा लेकिन तूने उसे नहीं खिलाया। क्या तूने न जाना कि अगर तूने उसे खिलाया होता तो उसको मेरे पास पाता।
हे आदम के बेटे! मैंने तुझसे पानी मांगा लेकिन तूने मुझे पानी न पिलाया।‘‘
बन्दा कहेगाः‘‘हे पालनहार! मैं तुझे कैसे पानी पिलाता तू तो सारे जगत का पालनहार है।‘‘
वह कहेगाः‘‘मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे पानी मांगा लेकिन तूने उसे न पिलाया अगर तू उसे पानी पिलाता तो उसे मेरे पास पाता।‘‘ - हदीस ग्रंथ मुस्लिम
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हरेक रचनाकार को अपनी रचनाओं से प्रेम होता है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है मानव। उसने मनुष्य को दुनिया में भेजा ताकि जो कुछ ज्ञान उसने मनुष्य के अंदर रखा है वह उसे बरतना सीख ले। यह दुनिया मनुष्य के लिये प्रशिक्षण की जगह भी है और परीक्षा की भी। मानव की विशेषता है मानवता और मानवता के प्रधान गुण हैं दया, प्रेम, करूणा और उपकार। हालात के उतार चढ़ाव की वजह से समाज में हमेशा ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें सहायता की ज़रूरत रहती है। हरेक समाज में उनके कल्याण के लिये सामूहिक रूप से फ़ण्ड की व्यवस्था की जाती है, हमारे देश में भी है। लेकिन दूसरी योजनाओं की तरह यह फ़ण्ड भी उनके हक़दारों तक नहीं पहुंच पाता। ऐसे में समाज के सदस्यों को ही अपने बीच के ज़रूरतमंदों का ध्यान रखना होगा। भारत जैसे आध्यात्मिक देश के नागरिकों के लिये इसकी अहमियत दूसरों के मुक़ाबले और भी ज़्यादा है। अपने रचयिता की दया, करूणा और सहायता पाने का यह एक सरल उपाय है कि आप खुद को भी इन ईश्वरीय गुणों का दर्पण बना लें। आपको देखकर लोगों को ईश्वर की याद आये। आज आप जो भी करेंगे , आने वाले वक्त में आप उसका फल खुद ही उठायेंगे।
शहरोज़ भाई की पुकार को ब्लॉगर्स ने अनसुना नहीं किया है यह अच्छी बात है लेकिन कई शहरोज़ ऐसे भी हैं जो अपनी समस्या को ढंग से बताने की लियाक़त नहीं रखते।
कुछ लोग खुद को मुसीबत का मारा बताकर लोगों को ठगते हैं उनकी शिनाख्त तो ज़रूरी है लेकिन सच्चे ज़रूरतमंदों को पहचानना भी ज़रूरी है।
रात के ढाई तीन बजे, जबकि दुनिया सो रही थी तब भी कुछ लोग जाग रहे थे। हिन्दु इसे ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं और मुसलमान इसे तहज्जुद का वक्त कहते हैं। कोई ध्यान में समाधि का अनुभव कर रहा था और कोई नमाज़ में सज्दे कर रहा था। इन्हीं लोगों के दरम्यान
भाई जनाब सतीश सक्सेना जी शहरोज़ भाई की परेशानी को दूर करने के लिये चिंतित थे।
इनमें से कोई भी एक चीज़ दूसरे का बदल नहीं है लेकिन हमें चाहिये कि हमारा ध्यान और इबादत हमें उपकारी बनाये और हमारा उपकार हमें सच्चे मालिक के उपकारों की ऐसे याद दिलाये कि
हम मालिक के सामने झुक जायें और अपनी वह चीज़ अपने प्रभु को अर्पित कर दें जिसका नाम दिल है।
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18 comments:
हमें मालिक के सामने दिल से झुकना चाहिए
nice post
सही ज़रूरत मंद की पहचान ज़रूरी है और ज़रूरत मंद की मदद तो इंसान क्या खुदा भी करता है!
Bahi wah!, Maja aa gaya. Wo insan hi hai kya jiske hath aurwo ki madad ke liye naa uthe.
डाकटर साहेब, किसी के आगे सर झुकाने की जरुरत नहीं, न खुदा के न किसी इंसान के आगे , सर को हमेशा ऊपर रखिये मगर यदि सचमुच में खुदा और अपने धर्म पर विश्वास रखते है तो मैं इसे पढने वाले हर मुसलमान भाई से ( हिन्दुओ से भी मगर मैं यहाँ सिर्फ मुसलमानों की बात कर रहा हूँ) यही कहूंगा कि परिस्थितियों ने जिस इंसान का सर झुका दिया उस शहरोज भाई की मदद को आगे आये ! उनकी मजबूरी का अंदाजा आप लोग उनके लेख को पढ़कर लगा सकते है ! और यदि यह सब जान्ने के बाद भी अपनी हैसियत के हिसाब से उनकी मदद नहीं करते हो तो छोड़ दो ये इस्लाम की रट, सब बेकार की बातें है !
सच कहा ख़िदमत ए ख़ल्क़ बहुत बड़ा काम है
Ek baat aur aapne mere lekh par tippani mein likhaa thaa ki kisee ne uske liye Minus Marking kar dee thee, to main ye kahungaa ki THANKS TO SALIM BHAI. Khair, As I said, I damn care such mindless things.
गोदियाल साहब ! सिर की तो आदत ही झुकना है , इसे ज्यादा देर तक तानकर नहीं रखा जा सकता . अगर ये सही जगह न झुके तो फिर ....
खैर , शहरोज़ भाई के ब्लॉग पर मैंने अपनी तरफ से मदद का ऑफ़र रख दिया है . आपका कहना सही है कि हरेक आदमी को अपनी हैसियत के मुताबिक ज़रूरतमंद कि मदद के लिए आगे आना ही चाहिए .
नमस्ते,
आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।
गोदियाल जी से सहमत . इन बातों को आचरण में लाओ .
सार्थक पोस्ट
anwar bhai, ashu bhai ki dukan pe aapne blogvani k bare mein bataya tha. aur kuch muchhna hai mujhe aur aapka fon no. bhi nahi hai to mujhse rabta karen plz. abdurrahman usmnai 09760704598
GOOD POST
http://sahespuriya.blogspot.com/
डॉ . अन्वेर जमाल एक बेहतरीन पोस्ट है लेकिन इसबात को कितने लूग समझते है की मानव सेवा, अल्लाह के बन्दों की सेवा ही अल्लाह की सेवा है. शहरोज़ भाई की पुकार को ब्लॉगर्स ने अनसुना नहीं किया है लेकिन क्या किसी नए नौकरी दिलवाई या पैसों से मदद की या कोई तिजारत में मदद की? अगेर हाँ तोह में ब्लोगेर्स को सलाम करता हूँ
डॉ अनवर जमाल !
आपकी यह पोस्ट बेहद साफ़ सुलझी हुई पोस्ट है जिसने सोचने को मजबूर कर दिया , सच कहा है कि ओर भी जाने कितने शहरोज़ हैं जिनकी पुकार हमारे कानों में नहीं पंहुचती ओर वे आभाव में ही दम तोड़ देते होंगे ! मदद ओर मददगार को सही तभी ठहराया जा सकता है जब वह ठीक जगह ओर वाकई ज़रुरतमंद तक ही पंहुचे ! अधिकांश मदद मांगने वाले फर्जी पाए जाते हैं ! अतः परोपकार में भी सावधानी जरूरी है ! अगर किसी भी मददगार को यह अहसास हो जाये कि मैंने किसी बेईमान की मदद की है तो भविष्य में कई कई दुखियों कि मदद नहीं हो पायेगी !
मैंने शहरोज़ के घर जाकर हाल दरियाफ्त किया ओर उनकी कुछ मदद भी की है ! मैंने उनसे किसी काम को करने की सलाह दी है उसमें आर्थिक सहयोग का वायदा भी किया है जिसको उन्होंने कुछ सोचकर बताने को कहा है ! कई मित्रों ने उनकी नौकरी का प्रस्ताव दिया है, शहरोज का जवाब का इंतज़ार है !
सादर
सतीश जी का जज्बा काबिले तारीफ है .
nice post .
अच्छी पोस्ट
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