सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, June 18, 2010
Tagore said- वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती।
वन्देमातरम् : समर्थन और विरोध् के विविध् आयाम
वन्देमातरम् के समर्थन और विरोध की प्रक्रिया प्रायः तभी शुरू हो गई थी, जब यह गीत छपकर पाठकों के सामने आया था। उसी समय से हिन्दुत्ववादी शक्ति इसका समर्थन करती आ रही है। इसके विपरीत अल्पंसख्यक समुदाय, विशेषकर मुस्लिम समुदाय, इसका विरोधी रहा है। समर्थक और विरोधी दोनों वर्ग के अपने-अपने तर्क हैं।
बंकिमचन्द्र चटर्जी के विवादास्पद उपन्यास ‘आनंदमठ’ से उद्धृत इस गीत का समर्थन करने वाले लोग कहते हैं कि इसका विरोध करने वाले लोग न तो भारत के प्रति निष्ठावान हो सकते हैं और न यहां की सभ्यता और संस्कृति का आदर ही कर सकते हैं। विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल वन्देमातरम् या सरस्वती वन्दना के गायन के विरोध को ‘राष्ट्र का अपमान तथा हिन्दू समाज के प्रति घृणा का प्रदर्शन’ कहते हैं।
विपरीत अल्पसंख्यक समुदाय का कहना है कि हम वन्देमातरम् या सरस्वती वन्दना का विरोध नहीं करते हैं, इस गीत को गै़र हिन्दू समुदाय पर थोपने का विरोध करते हैं। हिन्दू भाई गाएं और रात-दिन गाएं, गाते रहें। हम नहीं गाएंगे। इसे हम पर न थोपा जाए।
मुस्लिम समुदाय कहता है कि वन्देमातरम् में अनेक देवी-देवताओं की वन्दना की गई है। इसलिए यह इस्लाम की मूल अवधारणा-एकेश्वरवाद-के खि़लाफ़ है। मुसलमान सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करता है, उसी के समक्ष झुकता है, अन्य किसी की न तो वह इबादत या वन्दना कर सकता है और न ही किसी दूसरे के सामने झुक सकता है। वह तो अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की भी इबादत नहीं करते , इबादत के लायक़ तो केवल अल्लाह है, अन्य कोई नहीं। अतः मुस्लिम समुदाय दुर्गा, सरस्वती, माता, मातृभूमि या अन्य किसी भी देवी-देवता की वन्दना नहीं कर सकता।
संघ परिवार के बहुत निकट समझे जाने वाले एक मौलाना भी इस तथ्य से इनकार नहीं करते कि वन्दना में धरती या देश को विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में दिखलाया गया है। मौलाना का कहना है कि मुसलमान मानता है कि अल्लाह एक है। सिर्फ़ उसी के आगे झुकना है। इसलिए यह मुस्लिम चित्त को ठेस पहुँचाता है। मुसलमान का हृदय हर उस बात से आन्दोलित होता है, जो इस विश्वास के खि़लाफ़ जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि मुसलमान देशभक्त नहीं है। भारत के प्रति या अपने देश के लिए मुसलमान के मन में अपार श्रद्धा है। परन्तु यह उस तरह की मातृ भक्ति कदापि नहीं कर सकता, जैसी संघ परिवार चाहता है।
मौलाना एक उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि लाखों लोग सड़क पर चलते हैं। उनमें औरतें भी होती हैं। एक औरत होती है, जिसने हमें जन्म दिया है। वह औरत भी हज़ारों-लाखों औरतों की तरह मामूली है। उन्हीं की तरह चेहरा-मोहरा, चाल-ढाल है, थोड़े से हेरफेर के साथ वैसी ही शक्ल-सूरत है। लेकिन उस औरत के प्रति विशेष लगाव क्यों आ जाता है, जिसने हमें जन्म दिया है? उस लगाव का ऐलान नहीं करना पड़ता। गीत गाकर आपको बताना नहीं पड़ता कि यह मेरी माँ है और मैं इसकी इज़्ज़त करता हूँ क्योंकि यह मुहब्बत स्वाभाविक है। वह माँ के प्रति प्यार की तरह स्वाभाविक है। उसके लिए गीत गाना ज़रूरी नहीं है। यह भी नहीं समझना चाहिए कि देशगान गाएंगे तो ही देशभक्त साबित होंगे, वरना नहीं।
यहां गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर के एक पत्र का उल्लेख प्रसंगानुकूल होगा। उन्होंने 1937 ई॰ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती। बंकिम ने अपने इस गीत में बंगाल से दुर्गा का अटूट संबंध बताया है। इसलिए किसी भी मुसलमान से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह दस हाथों वाली इस देवी को राष्ट्रीयता की भावना से स्वदेश के रूप में पूजेगा। इस साल हमारी पत्रिका के बहुत से पाठकों ने वन्देमातरम् के गायन वाले कुछ स्कूलों के हवाले दिए हैं और सबूतों के साथ सम्पादकों को लिखा है कि यह गीत दुर्गा देवी का भजन ही है।’’ (सेलेक्टेड लेटर्स आफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सम्पादक दत्ता तथा रॉबिन्सन, कैम्ब्रिज, 1997, पृ॰ 487)
वन्देमातरम् और संघ परिवार
वन्देमातरम् गाने या न गाने का विवाद जब ज़ोरों पर था, तभी संघ परिवार के प्रमुख नेता सदाशिव माधव गोलवलकर ने अपने एक लेख में यह लिखकर वन्देमातरम् विवाद को एक नया मोड़ दे दिया था कि जो लोग देश को अपनी मां नहीं समझते, इस रूप में उसे पूज्य नहीं मानते, वन्देमातरम् गाने से परहेज़ करते हैं, वे इस देश के प्रति निष्ठावान नहीं हो सकते।
आज भी संघ परिवार गुरूजी के नक्शेक़दम पर चल रहा है। संघ परिवार भारतीय मुसलमानों को नया नाम देना चाहता है। क्या है वह नया नाम? वह नाम है ‘मुहम्मदी हिन्दू’ अर्थात् ऐसे प्रत्येक मुसलमान को ‘मुहम्मदी हिन्दू’ कहा जा सकता है, जो पूरी तरह हिन्दुत्व के रंग में रंग जाए और यहां की देवियों तथा यहां के देवताओं एवं महापुरूषों को अपना पूज्य माने, उनके आगे पूरे श्रद्धाभाव से झुके। उनका नाम मुसलमानों जैसा हो, लेकिन काम पूरी तरह हिन्दुओं जैसा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर एक बार गुरूजी ने मज़ारपरस्त मुसलमानों के बारे में कहा था कि इन्हें न छेड़ो, इनकी मदद करो, क्योंकि ये हमारे भटके हुए भाई हैं। - मुहम्मद इलियास हुसैन
मासिक कान्ति जुलाई 1999 से साभार
सुशोभित, शक्तिशालिनी, अजर-अमर
मैं तेरी वन्दना करता हूँ।
वन्देमातरम् के समर्थन और विरोध की प्रक्रिया प्रायः तभी शुरू हो गई थी, जब यह गीत छपकर पाठकों के सामने आया था। उसी समय से हिन्दुत्ववादी शक्ति इसका समर्थन करती आ रही है। इसके विपरीत अल्पंसख्यक समुदाय, विशेषकर मुस्लिम समुदाय, इसका विरोधी रहा है। समर्थक और विरोधी दोनों वर्ग के अपने-अपने तर्क हैं।
बंकिमचन्द्र चटर्जी के विवादास्पद उपन्यास ‘आनंदमठ’ से उद्धृत इस गीत का समर्थन करने वाले लोग कहते हैं कि इसका विरोध करने वाले लोग न तो भारत के प्रति निष्ठावान हो सकते हैं और न यहां की सभ्यता और संस्कृति का आदर ही कर सकते हैं। विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल वन्देमातरम् या सरस्वती वन्दना के गायन के विरोध को ‘राष्ट्र का अपमान तथा हिन्दू समाज के प्रति घृणा का प्रदर्शन’ कहते हैं।
विपरीत अल्पसंख्यक समुदाय का कहना है कि हम वन्देमातरम् या सरस्वती वन्दना का विरोध नहीं करते हैं, इस गीत को गै़र हिन्दू समुदाय पर थोपने का विरोध करते हैं। हिन्दू भाई गाएं और रात-दिन गाएं, गाते रहें। हम नहीं गाएंगे। इसे हम पर न थोपा जाए।
मुस्लिम समुदाय कहता है कि वन्देमातरम् में अनेक देवी-देवताओं की वन्दना की गई है। इसलिए यह इस्लाम की मूल अवधारणा-एकेश्वरवाद-के खि़लाफ़ है। मुसलमान सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करता है, उसी के समक्ष झुकता है, अन्य किसी की न तो वह इबादत या वन्दना कर सकता है और न ही किसी दूसरे के सामने झुक सकता है। वह तो अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की भी इबादत नहीं करते , इबादत के लायक़ तो केवल अल्लाह है, अन्य कोई नहीं। अतः मुस्लिम समुदाय दुर्गा, सरस्वती, माता, मातृभूमि या अन्य किसी भी देवी-देवता की वन्दना नहीं कर सकता।
संघ परिवार के बहुत निकट समझे जाने वाले एक मौलाना भी इस तथ्य से इनकार नहीं करते कि वन्दना में धरती या देश को विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में दिखलाया गया है। मौलाना का कहना है कि मुसलमान मानता है कि अल्लाह एक है। सिर्फ़ उसी के आगे झुकना है। इसलिए यह मुस्लिम चित्त को ठेस पहुँचाता है। मुसलमान का हृदय हर उस बात से आन्दोलित होता है, जो इस विश्वास के खि़लाफ़ जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि मुसलमान देशभक्त नहीं है। भारत के प्रति या अपने देश के लिए मुसलमान के मन में अपार श्रद्धा है। परन्तु यह उस तरह की मातृ भक्ति कदापि नहीं कर सकता, जैसी संघ परिवार चाहता है।
मौलाना एक उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि लाखों लोग सड़क पर चलते हैं। उनमें औरतें भी होती हैं। एक औरत होती है, जिसने हमें जन्म दिया है। वह औरत भी हज़ारों-लाखों औरतों की तरह मामूली है। उन्हीं की तरह चेहरा-मोहरा, चाल-ढाल है, थोड़े से हेरफेर के साथ वैसी ही शक्ल-सूरत है। लेकिन उस औरत के प्रति विशेष लगाव क्यों आ जाता है, जिसने हमें जन्म दिया है? उस लगाव का ऐलान नहीं करना पड़ता। गीत गाकर आपको बताना नहीं पड़ता कि यह मेरी माँ है और मैं इसकी इज़्ज़त करता हूँ क्योंकि यह मुहब्बत स्वाभाविक है। वह माँ के प्रति प्यार की तरह स्वाभाविक है। उसके लिए गीत गाना ज़रूरी नहीं है। यह भी नहीं समझना चाहिए कि देशगान गाएंगे तो ही देशभक्त साबित होंगे, वरना नहीं।
यहां गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर के एक पत्र का उल्लेख प्रसंगानुकूल होगा। उन्होंने 1937 ई॰ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती। बंकिम ने अपने इस गीत में बंगाल से दुर्गा का अटूट संबंध बताया है। इसलिए किसी भी मुसलमान से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह दस हाथों वाली इस देवी को राष्ट्रीयता की भावना से स्वदेश के रूप में पूजेगा। इस साल हमारी पत्रिका के बहुत से पाठकों ने वन्देमातरम् के गायन वाले कुछ स्कूलों के हवाले दिए हैं और सबूतों के साथ सम्पादकों को लिखा है कि यह गीत दुर्गा देवी का भजन ही है।’’ (सेलेक्टेड लेटर्स आफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सम्पादक दत्ता तथा रॉबिन्सन, कैम्ब्रिज, 1997, पृ॰ 487)
वन्देमातरम् और संघ परिवार
वन्देमातरम् गाने या न गाने का विवाद जब ज़ोरों पर था, तभी संघ परिवार के प्रमुख नेता सदाशिव माधव गोलवलकर ने अपने एक लेख में यह लिखकर वन्देमातरम् विवाद को एक नया मोड़ दे दिया था कि जो लोग देश को अपनी मां नहीं समझते, इस रूप में उसे पूज्य नहीं मानते, वन्देमातरम् गाने से परहेज़ करते हैं, वे इस देश के प्रति निष्ठावान नहीं हो सकते।
आज भी संघ परिवार गुरूजी के नक्शेक़दम पर चल रहा है। संघ परिवार भारतीय मुसलमानों को नया नाम देना चाहता है। क्या है वह नया नाम? वह नाम है ‘मुहम्मदी हिन्दू’ अर्थात् ऐसे प्रत्येक मुसलमान को ‘मुहम्मदी हिन्दू’ कहा जा सकता है, जो पूरी तरह हिन्दुत्व के रंग में रंग जाए और यहां की देवियों तथा यहां के देवताओं एवं महापुरूषों को अपना पूज्य माने, उनके आगे पूरे श्रद्धाभाव से झुके। उनका नाम मुसलमानों जैसा हो, लेकिन काम पूरी तरह हिन्दुओं जैसा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर एक बार गुरूजी ने मज़ारपरस्त मुसलमानों के बारे में कहा था कि इन्हें न छेड़ो, इनकी मदद करो, क्योंकि ये हमारे भटके हुए भाई हैं। - मुहम्मद इलियास हुसैन
मासिक कान्ति जुलाई 1999 से साभार
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35 comments:
क्या अब कोई गुरु रवींद्र नाथ टैगोर जी के राष्ट्रवाद को भी चुनौती दे सकता है जिनका लिखा गीत आज भी पूरी आन बान शान से गाया जाता है और हर भारतीय को गुरुजी और उनके गीत पर फ़ख्र है
वन्देमातरम्
उनका जो फ़र्ज़ है वो अहले सियासत जानें मेरा पैग़ाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे.'जिगर मुरादाबादी
अहले सियासत क्या कहते हैं क्या करते हैं, इससे धर्म का क्या लेना देना. वन्देमातरम् का आज के दौर में इस्तेमाल गन्दी सियासत वाले ही करते हैं, आम हिन्दू या मुसलमान को इस से कुछ लेना देना नहीं. इस्लाम में नीयत सबसे अहम् होती है. आप इस वंदना को देवी की पूजा के तौर पे भी ले सकते हैं और वतन की तारीफ के तौर पे भी. ऐसे मसलों से दूरी ही बेहतर हुआ करती है.
क्या सिर्फ वन्दे मातरम् कह देने से कोई भी भारतीय देश भक्त हो जाएगा? और यह भी गलत है की कोई मुल्ला इसको एक बड़ा मसला बना लें और फतवे देने लगें. यह सब हकीकत में गन्दी राजनीति की देन है वरना यह कोई मसला नहीं है. मुसलमान इस्लाम पे चलता है और इस्लाम में देशभक्ति पे बहुत ज़ोर दिया गया है. देशभक्ति और देशप्रेम मुसलमान की पहचान है.
चीन में एक बच्ची के पेट में जुड़वा बच्चे पल रहे हैं। इस बात का पता उसके माता पिता को तब चला जब दिनों दिन बच्ची के बढ़ते पेट को देखकर इसे अस्पताल ले गए। डॉक्टर जांच करने के बाद हैरान थे कि इस बच्ची के पेट में जुड़वा बच्चे पल रहे हैं, जो कि उसके गर्भाशय में न होकर अन्य जगह हैं। इस बार में चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे केस 5 लाख में से एक ही पाया जाता है।
http://khas-khabar.blogspot.com/2010/06/blog-post_5643.html
Nice post .‘‘वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती। बंकिम ने अपने इस गीत में बंगाल से दुर्गा का अटूट संबंध बताया है। इसलिए किसी भी मुसलमान से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह दस हाथों वाली इस देवी को राष्ट्रीयता की भावना से स्वदेश के रूप में पूजेगा। इस साल हमारी पत्रिका के बहुत से पाठकों ने वन्देमातरम् के गायन वाले कुछ स्कूलों के हवाले दिए हैं और सबूतों के साथ सम्पादकों को लिखा है कि यह गीत दुर्गा देवी का भजन ही है।’’ (सेलेक्टेड लेटर्स आफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सम्पादक दत्ता तथा रॉबिन्सन, कैम्ब्रिज, 1997, पृ॰ 487)
Nice post
Voice Of The People se sahmat hun.
Lekin ek bat aur kahna chahta hun ki main kisi ko naraj nahi kar sakta,
Rahi bat Sirf Vande Matram gane wale hi Deshbhakt hote hain to main is se sahmat nahi hun
Aur ek bat Ye ki sirf kuch kattarpanthiyon ki chal hai ki Hindu aur Musalman apas main kisi na kisi bahane ladte rahe.
गिरी जी से सहमत
गिरी साहब में आप से सहमत हु !
गिरी साहब में आप से सहमत हु !
डॉ. साहब मै आपकी लगभग हर बात से सहमत हूँ!इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि "वन्दे मातरम्" एक दुर्गा स्तुति है!अभी वो एक राष्ट्रगीत भी है,क्या ये सच नहीं है?वैसे ये बात कोई मायने नहीं रखती कि कौन इसे गा रहा है कौन नहीं.....अरे जिन्हें नहीं मानना वो तो अपने सगे बाप को भी नहीं मानते,ये तो एक गाना भर है!इसी विषय पर मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी आप उस पर बस "वन्दे मातरम्" कह कर ही आ गए थे!जो प्रशन वहा मै पूछ रहा था उन पर शायद आपकी दृष्टि नहीं पड़ी थी,ऐसा ही हो सकता है,नहीं तो आप जवाब जरुर देकर जाते!आज आपने ये विषय चुना अच्छा लगा!
आज भले ही इसे गैर-इस्लामिक करार दिया जाता हो पर ऐसा हमेशा से ही नहीं था!आज़ादी से पहले नज़ारा थोडा अलग बताया जाता है!
क्यों खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत वन्दे मातरम् से होती थी और ये अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में उठकर खड़े होते थे। बेरिस्टर जिन्ना पहले तो इसके सम्मान में खडे न होने वालों को फटकार लगाते थे। रफीक जकारिया ने अपने निबन्ध में इस बात की ओर इशारा किया है।
1906 से 1911 तक यह वंदे मातरम् गीत पूरा गाया जाता था तो इस मंत्र में यह ताकत थी कि बंगाल का विभाजन ब्रितानी हुकूमत को वापस लेना पडा, लेकिन, 1947 तक जबकि इस मंत्र गीत को खण्डित करने पर तथाकथित ‘राजनीतिक सहमति बन गई तब तक भारत भी इतना कमजोर हो गया कि अपना खण्डन नहीं रोक सका यदि इस गीत मंत्र के टुकड़े पहले हुए तो उसकी परिणति देश के टुकडे होने में हुई।
सवाल यह है कि इतने वषो तक क्यों वन्दे मातरम् गैर इस्लामी नहीं था?आज ही ऐसा क्या हो गया कि ये एक इश्वर के सिद्धांत को चौनोती दे रहा है,जबकि इसमें कोई परिवर्तन सम्भवतः नहीं हुए है....?
कुंवर जी,
राष्ट्रियता जताने के लिए राष्ट्रगान करना आवश्यक नहीं है।
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय सरकारी सेवा में थे और १८७० में जब अंग्रेजी
हूकमत ने 'God save the King/Queen' गाना अनिवार्य
कर दिया तो इसके विरोध में वन्दे मातरम् गीत के पहले दो पद्य १८७६ में संस्कृत
में लिखे। इन दोनो पद्य में केवल मातृ-भूमि की वन्दना है। उन्होंने ने
१८८२ में आनन्द मठ नाम का
उपन्यास बांग्ला में लिखा और इस गीत को उसमें सम्मिलित किया। उस समय इस
उपन्यास की जरूरत समझते हुये इसके बाद के पद्य बंगला भाषा में जोड़े गये।
इन बाद के पद्य में दुर्गा की स्तुति है। कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन
(१८९६) में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे लय और संगीत के साथ गाया। श्री
अरविन्द ने इस गीत का अंग्रेजी में और आरिफ मौहम्मद खान ने इसका उर्दू में
अनुवाद किया है। आरिफ मोहम्मद खान भी एक मुसलमान थे और सच्चे मुसलमान थे।
जब उन्होने इसका उर्दू अनुवाद किया तो क्या बिना पढे किया था, ऐसा तो नहीं
होगा। उन्होने इसका मर्म समझा था तब अनुवाद किया, अब आज के मुसलमान कह सकते
है कि शायद वे सच्चे मुसलमान नहीं होगें।
इस देश में असंख्य अल्पसंख्यक वन्दे मातरम् के प्रति श्रद्धा रखते हैं। मुफ्ती अब्दुल
कुदूस रूमी ने फतवा जारी करते हुए कहा था कि राष्ट्रगान का गायन उन्हें
मुस्लिमों को नरक पहुँचाएगा। बहिष्त लोगों में लोहा मण्डी और शहीद नगर
मस्जिदों के मुतवल्ली भी थे। इनमें से 13 ने माफी मांग ली। आश्चर्य की बात
है कि अपराधिक गतिविधियों में शामिल होना, आतंकवादी कार्रवाईयों में भाग
लेना, झूठ, धोखा, हिंसा, हत्या, असहिष्णुता, शराब, जुआ, राष्ट्र द्रोह और
तस्करी जैसे कृत्य से कोई नरक में नहीं जाता मगर देश भक्ति का ज़ज़बा पैदा
करने वाले राष्ट्र गान को गाने मात्र से एक इंसान नरक का अधिकारी हो जाता
है। ब्रिटेन के राष्ट गान
में रानी को हर तरह से बचाने की प्रार्थना भगवान से की गई है अब ब्रिटेन के
नागरिकों को यह सवाल उठाना चाहिए कि कि भगवान रानी को ही क्यो बचाए, किसी
कैंसर के मरीज को क्यों नहीं? बांग्लादेश से पूछा जा सकता
है कि उसके राष्ट्रगीत में यह आम जैसे फल का विशेषोल्लेख क्यों है? सउदी
अरब का राष्ट्रगीत ‘‘सारे मुस्लिमों के उत्कर्ष की ही क्यों बात करता है और
राष्ट्रगीत में राजा की चाटुकारिता की क्या जरूरत है? सीरिया के
राष्ट्रगीत में सिर्फ ‘अरबवाद की चर्चा क्या इसे रेसिस्ट नह बनाती? ईरान के राष्ट्रगीत
में यह इमाम का संदेश क्या कर रहा है? लीबिया का राष्ट्रगीत
अल्लाहो अकबर की पुकारें लगाता है तो क्या वो धार्मिक हुआ या राष्ट्रीय? अल्जीरिया का राष्ट्रगीत
क्यों गन पाउडर की आवाज को ‘हमारी लय और मशीनगन की ध्वनि को ‘हमारी रागिनी
कहता है? अमेरिका के राष्ट्रगीत में भी ‘हवा में फूटते हुए
बम क्यों हैं? चीन के राष्ट्रगीत में खतरे की यह भय ग्रन्थि
क्या है? किसी भी देश के राष्ट्रगीत पर ऐसी कोई भी कैसे भी टिप्पणी की जा
सकती है.
क्यों खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत वन्दे मातरम् से होती
थी और ये अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके
सम्मान में उठकर खड़े होते थे। बेरिस्टर जिन्ना पहले तो इसके सम्मान में
खडे न होने वालों को फटकार लगाते थे। रफीक जकारिया ने हाल में
लिखे अपने निबन्ध में इस बात की ओर इशारा किया है। उनके अनुसार मुस्लिमों
द्वारा वन्दे मातरम् के गायन पर विवाद निरर्थक है। यह गीत
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काँग्रेस के सभी मुस्लिम नेताओं द्वारा गाया
जाता था। जो मुस्लिम इसे गाना नहीं चाहते, न गाए लेकिन गीत के सम्मान में
उठकर तो खड़े हो जाए क्योंकि इसका एक संघर्ष का इतिहास रहा है और यह
संविधान में राष्ट्रगान घोषित किया गया है....
....
बंगाल के विभाजन के समय हिन्दू और मुसलमान दोनों ही इसके पूरा गाते थे, न कि प्रथम दो छंदों को। 1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में इसका पूर्ण-
असंक्षिप्त वर्शन गया गया था। इसके प्रथम स्टेज परफॉर्मर और कम्पोजर स्वयं
रवींद्रनाथ टैगोर थे।
1905 में गाँधीजी
ने लिखा- आज लाखों लोग एक बात के लिए एकत्र होकर वन्दे मातरम् गाते हैं। मेरे विचार से इसने हमारे राष्ट्रीय गीत का दर्जा हासिल कर लिया है। मुझे यह पवित्र, भक्तिपरक और भावनात्मक गीत लगता है। कई अन्य राष्ट्रगीतों के विपरीत यह किसी अन्य राष्ट्र-राज्य की नकारात्मकताओं के बारे में शोर-शराबा नह करता। 1936 में गाँधीजी ने लिखा - ‘‘ कवि ने हमारी मातृभूमि के लिए जो अनके सार्थक विशेषण प्रयुक्त किए हैं, वे एकदम अनुकूल हैं, इनका कोई सानी नहीं है। 26 अक्टूबर 1937 को पं- जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कलकत्ता में कांग्रेस की कार्यसमिति ने इस विषय पर एक प्रस्ताव स्वीकृत किया। इसके अनुसार ‘‘ यह गीत और इसके शब्द विशेषत: बंगाल में और सामान्यत: सारे देश में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ राष्ट्रीयय विरोध के प्रतीक बन गए। ‘वन्दे मातरम् ये शब्द शक्ति का ऐसा प्रेरणास्रोत बन गए जिसने हमारी जनता को प्रेरित किया और ऐसे अभिवादन हो गए जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की हमें हमेशा याद दिलाता रहेगा।
हम सभी नागरिकों को अपने धरोहर का सम्मान करना चाहिए.
धरोहर से तात्पर्य है - हमारे अतित की हर वो ख़ास चीज़ से है जिससे देश का गौरव जुडा हुआ है. हमारे स्वतंत्रता सेनानी, शान्तिदूत, ज्ञानी, विचारक उनके आदर्श. संघर्ष गाथाएँ, राष्ट्रीय प्रतीक, साहित्य, गीत, संगीत, कला आदि.
एक गीत के रूप में वन्दे मातरम् इन सब में इसलिए ख़ास है, यह अपनी धरती के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण का भावः होने के साथ साथ पूर्व में विदेशी सत्ता के विरुद्ध एक आह्वान भी रहा है. इसे राष्ट्र गीत का दर्जा इसमें निहित मूल्यों के कारण ही दिया गया है. अनजाने में इसका विरोध करना मूर्खता है और साजिश के तहत विरोध करना राष्ट्र द्रोह के दायरे में आएगा.
अफ़सोस होता है देशहित में सम्मिलित शक्ति संचय करने के जगह पर हम फिर से धार्मिक द्वंदों को बढावा दे रहे हैं.
leave this matter and think forward for other matter which are more importance.
why You are opening the Pandora Box?
Bahut Acha yeh ek aham sachai hai.
BAHOOT KHOOB !!!!!!!!!!!!!
किसी पर भी ज़बरदस्ती करना " वन्दे-मातरम " गाने ले लिए,ये गलत है .जिसे गाना है गाए जिसे नहीं गाना वो ना गाए . अब अगर कल को हमारे मुस्लिम भाई भी ऐसी ही जिद करने लगें की हर बात में आसलाम-वालेकुम बोला करो या फिर अल्लाह-हु -अकबर बोला करो तो कितने लोग इसे सही मान लेंगे . वन्दे-मातरम दिल में होना चाहिए ना की उसका ढोंग या दिखावा किया जाए . ऐसे लोग वन्दे-मातरम बोलने वाले उन लोगों से तो बहुत अच्छे हैं जो मूंह पर वन्दे-मातरम और पीछे से भ्रष्टाचार आदि कर देश का नुक्सान करते हैं .
बस एक बात पूछना चाहूंगा आप सबसे की देश बड़ा या धर्म बड़ा ? , इस्लाम इस विषय में क्या कहता है ?
बाकी तो मैं सौ-फ़ीसदी सहमत हूँ की सिर्फ वन्दे-मातरम या अन्य कोई वाक्य बोल देने को देशभक्ति का पैमाना नहीं माना जा सकता .
महक
फ़िर से आ गया अपनी असली औकात पर? जब घटिया लेखो मे टिप्पडिया मिलना बन्द हो गयी तो फ़िर से वन्देमातरम पर आ गया
टिप्पडि, चटके और विवाद का भूखा भेडिया अनवर जमाल
टिप्पडि, चटके और विवाद का भूखा भेडिया अनवर जमाल
तारकेश्वर गिरि भाई से सहमत
सिर्फ वन्दे-मातरम या अन्य कोई वाक्य बोल देने को देशभक्ति का पैमाना नहीं माना जा सकता .
वन्दे मातरम को गाने का विरोध का कोई कारण तो नहीं ,अभी केंद्रीय मंत्री सलमान खूस्र्शीद ने इसका विरोध करने वाले लोगो फटकार लगाई थी ,की इसमें अचानक देव बंद को क्या दिख गया जो इसके के खिलाफ फ़तवा जरी कर दिया ,क्या ये इतना बूरा करम हे जो इसके खिलाफ फ़तवा जरी करने की नोफ्त आ गयी ,क्या आप सभी भाई लोग इस देवबंदी फतवे से सहमत हे ?
यंहा बात माता के परती अंध आस्था की कंहा हो रही हे ,स्तुति भी इसे नहीं कह सकते स्तुती मंत्रो से होती हे ,ये माता के सम्मान में गया एक सुन्दर गान हे ,इस में कंहा कहा गया हे माँ के सामने आप नमाज की तरह झूको ?इश्वर के एक सवरूप की आप स्तुती तो कर सकते हे ,लकिन क्या आप अपनी माँ के चरणों में जन्नत नहीं मान सकते हे ,जबकि डॉ.साहब आपने पिछली एक पोस्ट पर ये बाते लिखी थी ,इस गान में कंहा लिखा हे की आप हाथ में थाली और अन्य पूजा सामग्री ले कर आरती उतारो ?यंहा कंहा इस्लामिक ईश्वरीय कानूनों का उल्लंघन हो रह हे ,इस में कंहा सर झोकने की बात हो रही हे बल्की रास्ट्र के सम्मान में सर उठाने की बात हो रही हे ,क्या आप रास्ट्र के सम्मान में सर नहीं उठाना चाहेंगे ?
@प्रिय MANजी आप बहुत दिन बाद दिखाई दिए । सब कुशल मंगल तो है।जहाँ तक राष्ट्र के सम्मान मे सर उठाने की बात है तो हम तो रोज़ ही "सारे जहाँ अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा"गाते है और आप जानते है इस गीत "वंदेमातरम्" का लेखक अंग्रेज़ो का पिठठू बंकिमचँद्र चटर्जी था वह कोई क्रांतिकारी नही था फिर ऐसे आदमी का गीत देशभक्ति का पैमाना कैसे हो सकता है
ठीक है अगर राष्ट्रप्रेम का यही पेमाना है तो हम भी इस को गाने को तैयार है. लेकिन क्या इस की वजह से हम को भी रिश्वत लेने , स्विस बेंको मैं ख़ाता खोलने, देश के राज़ बेचने, घोटाले करने, चारा घोटाला, MP MLA की खरीद फ़रोख़्त करने, जनता का हक़ खाने का अधिकार मिलेगा ?
अगर हां तो फिर खुद ही गाइए और देशप्रेमकी डुगडुगी बजाइये....
डॉ.अयाज सभी अच्छे हे ,कुशल मंगल पूछने ke लिए धन्य वाद ,|आप गुरुदेव के जिस गीत को रास्टर वादी बता रहे हे वो वस्तूते एक वायसराय के लिए गया स्तुती गान हे ,एक गोरी चमड़ी के लूटेरो के लिए गया स्तुति गान केसे रास्टर वादी केसे हो सकता हे ?और वन्देमातरम विशुद जन्भूमि के लिए गया गीत हे |और रंडीबाज नेहरु जितना तो अंग्रेजो का कोन पीटू होगा ,उसको रास्ट्र भगत बना दिया ?
राष्ट्र भक्ति के लिए सिर्फ राष्ट्र -भावना की जरुरत है . इसकी अभिव्यक्ति अपने अपने तरीके से कैसे भी की जा सकती है - "वन्दे मातरम" गा कर , "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" गाकर या कुछ भी न गाकर ...हमें इन बहरी चीजों को दूसरों पर थोपना नहीं चाहिए और न ही सिर्फ इस आधार पर की वे आपके तरीके से राष्ट्र भक्ति नहीं कर रहे है , दूसरों को राष्ट्र द्रोही नहीं कह सकते जबकि असल में वे आपसे भी अधिक राष्ट्र भक्त या देशभक्त हो सकते हैं ..हमें यह हमेशा स्मरण रखना चाहिए कि व्यक्ति या वर्ग विशेष का राष्ट्रीयता प्रदर्शित करने का तरीका ही अद्वितीय नहीं है . हमें दूसरों की राष्ट्रीयता की भावना को पहचानना चाहिए न कि उसके तरीका विशेष को , और इसके लिए दूसरों की राष्ट्र भावना और तरीका विशेष दोनों की ही क़द्र करनी चाहिए .
डॉ अनवर जमाल ,
आपने ब्लॉग buddhambedkar पर कंवल भारती की पोस्ट दलित धर्म की अवधारणा और बौद्ध धर्म पर एक टिप्पणी छोड़ी है जो यहाँ दी हुई है. लगता है आपने यह टिप्पणी कँवल भारती जी के लिए की है, लेकिन मैंने तो यह पोस्ट एक पत्रिका से साभार ली है. कृपया अपनी यह टिप्पणी कँवल भारती जी तक पहुंचाएं.
सहस्पुरिया जी ,रास्ट्र भक्ति का पैमाना ,आप किसे मानते हे? में ये नहीं कह रह की ये ही पैमाना हे ,बाकि ये उनमे से एक हे |आप ने जो संशय और समशाए गिनवाई हे ,वस्तूते इसका कारन भी इस भावना को अपने नागरिको को राजसत्ता दुवारा , शिक्षा और आचरण दुवारा ,नहीं सिखाना हे |आज आपमें देखा होगा होगाकि अंग्रेजी शिक्षा का मॉडल और संवेधानिक और कानून वाव्यस्था ज्यो की त्यों अन्गेरेजो की रख ली गयी ,को की सवयम अंग्रेजो के देशो में भी उन्होंने खुद ने इस गंदगी को अवोइड किया |अच्छे प्रोफेशोनल लोग तेयार हुवे और हो रहे हे ?लकिन अछ्हे इंसान और अच्छे नागरिक तैयार नहीं किये जाराहेहे |
नागरिको का रास्ट्रीय चरित्र जब तक सही नहीं होगा जब तक आप की बताई संशय और samshaye बनी रहेगी .|आप किसीके चरित्र को किसी की रास्ट्र भागती के साथ जोड़ के नहीं देख सकते हे ,मुझे याद हे कारगिल युद्ध में एक पत्नी की मोत के आरोप अजमेर सेन्ट्रल जेल में बंद सनिक को सीमा पर लड़ने भेजा गया /वो गया और ५ दुश्मन सैनिको को मरने के baad शीद हुवा ...वन्देमातरम |
@ S k Siddharth !आपकी आमद के लिए मैं बेहद शुक्रगुजार हूँ . आपका कहना ठीक है .अगर आप लेखक से सहमत हैं तो मैं आपके लिए भी अच्छे जज्बात रखता हूँ .
@ भाई लोगों क्या अपने सुना नहीं कि टैगोर महोदय क्या कह रहे है ?
उन्होंने 1937 ई॰ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती। बंकिम ने अपने इस गीत में बंगाल से दुर्गा का अटूट संबंध बताया है। इसलिए किसी भी मुसलमान से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह दस हाथों वाली इस देवी को राष्ट्रीयता की भावना से स्वदेश के रूप में पूजेगा। इस साल हमारी पत्रिका के बहुत से पाठकों ने वन्देमातरम् के गायन वाले कुछ स्कूलों के हवाले दिए हैं और सबूतों के साथ सम्पादकों को लिखा है कि यह गीत दुर्गा देवी का भजन ही है।’’ (सेलेक्टेड लेटर्स आफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सम्पादक दत्ता तथा रॉबिन्सन, कैम्ब्रिज, 1997, पृ॰ 487)
फिर भी आप बहस कर रहे हैं ?
हमें जीवन के किसी भी पहलू के अपने तरीके पर प्रतिबद्ध होना चाहिए , क्योंकि प्रतिबद्ध होने का मतलब ही अपनी मान्यताओं व विश्वासों को अच्छी तरह जानकर और हर कसौटी पर खरा उतारकर उसके प्रति गहरी आस्था होना है, साथ ही साथ दूसरों की आस्था का सम्मान करना भी है |
जबकि कट्टरता अपनी मान्यताओं व विश्वासों के प्रति बिना किसी कसौटी पर जांचे और जाने अन्ध श्रद्धा रखना है और इसमें दूसरों की मान्यताओं व विश्वासों को हेय व घ्रणा की द्रष्टि से देखना है |
हमें लोगों की प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए तथा कट्टरता का विरोध करना चाहिए भले ही वह अपने ही वर्ग या समाज विशेष में क्यों न हो | यह सांप्रदायिक कट्टरता हिन्दू और मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों में देखने को मिलती है जबकि ऐसे तत्व दोनों ही ओर से अपने आप को श्रेष्ठ बताते हैं तथा विपरीत पक्ष की उसे सांप्रदायिक या कट्टर बताकर आलोचना करते हैं | इसके लिए प्रतिबद्धता और कट्टरता में पहले तो अंतर समझें, कुमार अम्बुज की इस कविता से:
देखताहूं कि प्रतिबद्धता को लेकर कुछ लोग इस तरह बात करते हैं मानो प्रतिबद्ध होना, कट्टर होना है ।
जबकि सीधी-सच्ची बात है कि प्रतिबद्धता समझ से पैदा होती है, कट्टरता नासमझी से ।
प्रतिबद्धता वैचारिक गतिशीलता को स्वीकार करती है, कट्टरता एक हदबंदी में अपनी पताका फहराना चाहती है ।
प्रतिबद्धता दृढ़ता और विश्वास पैदा करती है , कट्टरता घृणा और संकीर्ण श्रेष्ठि भाव ।
प्रतिबद्ध होने से आप किसी को व्यक्तिगत शत्रु नहीं मानते हैं,कट्टर होने से व्यक्तिगत शत्रुताएं बनती ही हैं ।
प्रतिबद्धता सामूहिकता में एक सर्जनात्मक औज़ार है और कट्टरता अपनी सामूहिकता में विध्वंसक हथियार ।
प्रतिबद्धता आपको जिम्मेवार नागरिक बनाती है और कट्टरता अराजक ।
जो प्रतिबद्ध नहीं होना चाहते हैं, वे लोग कुतर्कों से प्रतिबद्धता को कट्टरता के समकक्ष रख देना चाहते हैं -- कुमार अंबुज , यह कविता जनपक्ष पर देखी गयी |
इसलिए कट्टरता को त्यागें और प्रतिबद्धता को अपनाएं |
@ Man!यह हाल है वन्दे मातरम कहने वालों का ...
वो साधू के वेश में शैतान निकला.......लोग उसे पूजते थे और वह उन्हें मौत बांटता था....... वो धर्म की आड़ में नशे का सौदा कर रहा था.......लेकिन कहते है कि हर बुराई का कभी न कभी अंत होता है और बुरे काम करने वाले को सजा भी जरूर मिलती है..... जबलपुर के मौनी बाबा भगवा वस्त्रों की आड़ में भी पंद्रह साल से स्मेक और ब्राउन शुगर बेचते थे पर किसी को उन पर शक नहीं हुआ......पर आज वे पकडे गए और भगवा के पीछे छिपा उनका काला चेहरा सबके सामने आ गया।पुलिस ने उन्हें उत्तर प्रदेश के दो लोगों के साथ ब्राउन शुगर का सौदा करते रंगे हाथ पकड़ा. उनके पास से आधा किलो ब्राउन शुगर पकड़ी गयी. ये मौनी बाबा अपनी मौन तपस्या के कारण जबलपुर के साथ आस-पास के इलाकों में भी पूजे जाते थे लेकिन आज उनकी सारी पोल खुल गई ....मृत्युंजय महाराज उर्फ़ मौनी बाबा नशे के बहुत बड़े सौदागर निकले...पुलिस ने उन्हें आधा किलो ब्राउन शुगर के साथ उस वक्त रंगे हाथ पकड़ा जब वो इलाहाबाद से आये दो लोगो से उसे खरीदने का सौदा कर रहे थे.
http://jabalpurmedia.blogspot.com/2010/06/blog-post_18.html
@ डॉ. अनवर साहब बन्दे मातरम को न तो हिन्दू दिल से गाते हैं और न ही मुस्लमान सब खानापूरी करते साले
रही मुसलमानों के ईमान ख़राब होने की बात तो सबसे पहले मुसलमानों को संगीत,नाच-गाना और सराब से दूर कराओ इससे बड़ा पाप कुछ भी नहीं है.
ब्लागवाणी अन्याय का साथ दोगे तो बन जाएगी ब्लाकवाणी
यहां गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर के एक पत्र का उल्लेख प्रसंगानुकूल होगा। उन्होंने 1937 ई॰ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती। बंकिम ने अपने इस गीत में बंगाल से दुर्गा का अटूट संबंध बताया है। इसलिए किसी भी मुसलमान से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह दस हाथों वाली इस देवी को राष्ट्रीयता की भावना से स्वदेश के रूप में पूजेगा। इस साल हमारी पत्रिका के बहुत से पाठकों ने वन्देमातरम् के गायन वाले कुछ स्कूलों के हवाले दिए हैं और सबूतों के साथ सम्पादकों को लिखा है कि यह गीत दुर्गा देवी का भजन ही है।’’ (सेलेक्टेड लेटर्स आफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सम्पादक दत्ता तथा रॉबिन्सन, कैम्ब्रिज, 1997, पृ॰ 487)
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