सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, June 11, 2010
The Prophet पैग़म्बर साहब स. की पूरी ज़िन्दगी सब्र की पॉलिसी है।
पैग़म्बर साहब स. की पूरी ज़िन्दगी सब्र की पॉलिसी है।
हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम को एक बार एक तंग पहाड़ी दर्रे से गुज़रना पड़ा। लोगों ने उनके सामने मसला रखा कि कैसे इस दर्रे से गुज़रा जाए ?
पैग़म्बर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे उस दर्रे का नाम पूछा तो उन्होंने कहा कि इसका नाम ‘अज़्ज़ाएक़ा‘ यानि तंग है।
आप स. ने कहा कि इसका नाम ‘अलयुसरा‘ यानि आसान है।
आपके कहने पर फैले हुए लोग क़तार बनाकर उस दर्रे से गुज़र गये।
Wise plan बनाने के ठंडा दिमाग़ चाहिये। सब्र का मतलब यही है।
मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब ने अपनी ज़िंदगी से भी मिसाल देकर समझाया।अपने बच्चे शम्सुल इस्लाम की कम उम्र में ही मरने का वाक़या सुनाया कि उसकी मौत के वक्त वे घर पर मौजूद नहीं थे। बच्चे की मौत की ख़बर उन्हें टेलीग्राम से मिली। मौलाना ने टेलीग्राम पढ़ और वुज़ू करके नमाज़ अदा की और चंद सेकेंड में ही टेंशन फ़्री हो गये।
मौलाना ने कहा कि आज हरेक की ज़िंदगी में टेंशन है। सब्र टेंशन से आज़ाद करता है।
क्लास में मौजूद सभी औरत मर्द आला तालीमयाफ़्ता थे। सभी गंभीरता से मौलाना की बातों को सुन भी रहे थे और नोट भी कर रहे थे। कोई लैपटॉप पर नोट कर रहा था और कोई डायरी में।
हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम को एक बार एक तंग पहाड़ी दर्रे से गुज़रना पड़ा। लोगों ने उनके सामने मसला रखा कि कैसे इस दर्रे से गुज़रा जाए ?
पैग़म्बर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे उस दर्रे का नाम पूछा तो उन्होंने कहा कि इसका नाम ‘अज़्ज़ाएक़ा‘ यानि तंग है।
आप स. ने कहा कि इसका नाम ‘अलयुसरा‘ यानि आसान है।
आपके कहने पर फैले हुए लोग क़तार बनाकर उस दर्रे से गुज़र गये।
Wise plan बनाने के ठंडा दिमाग़ चाहिये। सब्र का मतलब यही है।
मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब ने अपनी ज़िंदगी से भी मिसाल देकर समझाया।अपने बच्चे शम्सुल इस्लाम की कम उम्र में ही मरने का वाक़या सुनाया कि उसकी मौत के वक्त वे घर पर मौजूद नहीं थे। बच्चे की मौत की ख़बर उन्हें टेलीग्राम से मिली। मौलाना ने टेलीग्राम पढ़ और वुज़ू करके नमाज़ अदा की और चंद सेकेंड में ही टेंशन फ़्री हो गये।
मौलाना ने कहा कि आज हरेक की ज़िंदगी में टेंशन है। सब्र टेंशन से आज़ाद करता है।
क्लास में मौजूद सभी औरत मर्द आला तालीमयाफ़्ता थे। सभी गंभीरता से मौलाना की बातों को सुन भी रहे थे और नोट भी कर रहे थे। कोई लैपटॉप पर नोट कर रहा था और कोई डायरी में।
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36 comments:
बहुद ही बढ़िया लिखा है अनवर साहब!
बहुत अच्छा लिखी हे, हम भी सराहना करता हूँ
Wise plan बनाने के लिये चाहिये सब्र । Very good .
अच्छी मिसाल दी है , आपने ज़िँदा मिसाल दी है ।
प्रेरक पोस्ट है।
अच्छी पोस्ट
Friday, May 28, 2010
फ़िरदौस जी, आप शिया है अथवा सुन्नी?
आगे बढ़ने से पहले आप सबको शीर्षक को ऐसा ही लिखने की वजह बताना चाहता हूँ, चूँकि हमारे देश में जो जनगणना होने वाली है वह जाति-आधारित होगी तो सोचा क्यूँ न मैं भी ब्लॉग लिखने वालों की एक लिस्ट बनाऊं. और देखिये न आपका नाम ज़ेहन में सबसे पहले आया. अब सवाल वही है जो पोस्ट के शीर्षक में है कि आप शिया है अथवा सुन्नी? और शिया हैं तो उसमें जाति क्या है अगर सुन्नी हैं तो उसमें जाति है? बस इतना सा सवाल है?
तहज़ीब अजीब है, लोग अजीब है, मौत करीब है, क़यामत भी अन-करीब है... क्या ले कर आये थे, और क्या वह ले कर जा सकोगे.. सिवाय अच्छे आमाल के... सच क्या है, क्या सब कुछ सच है, या फिर सब झूठ.
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
ऐलान-ए-आम
मैं फ़िरदौस जी का बहूत बड़ा प्रशंशक हूँ और रहूंगा. किसी को कोई ऐतराज़ हो तो बताये? मैंने हमेशा से ही उनकी राष्ट्रवादिता और इंसानियत का सम्मान किया है और आगे भी करता रहूँगा. मेरे द्वारा उनके समर्थन में लिखे गए चन्द लेख, शमाअत फरमाएं.
Friday, May 21, 2010 फ़िरदौस जी ने जिस
दीलेरी से स्वयं को "काफ़िर" घोषित कि
http://laraibhaqbat.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html
लोग समझेँ तो जीवन ही न बदल जाये ।
सभी मुस्लिम ब्लॉगर्स को बहिस्कृत कर प्रतिबंधित कर देना चाहिए सिवाय महफूज़ जी, फ़िरदौस जी और मेरे ब्लॉग को
इधर कुछ दिनों से ब्लॉग जगत में धार्मिक विद्वेष वाली पोस्ट लिख कर चंद लोग खूब सुर्खियाँ बटोर रहें हैं. एक तरफ़ वे है जो इनका विरोध करके अपनी रोटी सेंक रहें है तो दुसरी तरफ़ उनका समर्थन कर. मैंने देखा है कि इन सब से दूर मैं और महफूज़ जी और फ़िरदौस जी हमेशा से ही मध्यस्थ रहें है और देश-हित के समर्थन में रहें है. मैं तो ख़ैर नया ही हूँ.
कुछ लोग ब्लॉग को प्रतिबन्ध की बात कर रहें हैं तो मेरा मानना है कि क्यूँ न सभी मुस्लिम ब्लॉगर को बहिस्कृत कर देना चाहिए सिवाय महफूज़ जी, फ़िरदौस जी और मेरे ब्लॉग को.
मेरी बात का समर्थन देने वाले लोगों से अपील है कि इस मुद्दे पर मेरा साथ दें कि सभी मुस्लिम ब्लॉगर्स को बहिस्कृत कर प्रतिबंधित कर देना चाहिए सिवाय महफूज़ जी, फ़िरदौस जी और मेरे ब्लॉग को.
प्रस्तुतकर्ता EJAZ AHMAD IDREESI
http://laraibhaqbat.blogspot.com/2010/04/blog-post_22.html
Mr. anonymous ! बात को समझो , अपना मुस्तक़बिल सँवारो ।
nice post
@Mr HAKEEM SAUD ANWAR KHAN
पैग़म्बर साहब स. की पूरी ज़िन्दगी सब्र की पॉलिसी nahii, kewal ISLAM prachaar kii policy thii, Hajaaron Begunaah logo ko marvaya es paigamber ne.
Sabko Jannat kaa dar dikhayaa ,
Koi musalmaan bataye, kishi ne jannat dekhi hain, Sab saale darpok hain
Aaj pure SAMAAJ ka sabse badaa dusman ye paiganber hain. eshi kii kitaab - QURAN, ko pad kar aadmi SAITAAN ho jataa hain
QURAN kitaab par pratibandh lag jaana chaa chahiye
वाक़ई सब्र बहुत बड़ा हथियार है. जल्दबाज़ी में लिए गये फ़ैसलो का अंजाम कुछ खास नही होता.
मगर सब्र करने की हिम्मत होना ज़रूरी है
GOOD POST
bahut accha.Blogvani main ab aise hi lekh ki jarurat hai.
पैग़म्बर साहब स. की पूरी ज़िन्दगी सब्र की पॉलिसी है।
@ काश उनके अनुयायी इस बात को समझे और अपने जीवन में आत्मसात करे |
रतन जी के आह्वान पर मुसलमानोँ को सोचने की ज़रुरत है ।
गिरी जी ! किसी दिन हमारे यहाँ भी तशरीफ़ लाइये ।
"सब्र की ताक़त"
अगर इसे मे Islami तालीम से जोड़ कर देखता हूँ तो ऐसा कहना मेरा ख़याल मे ज़यादा दुरुस्त है की
"सब्र ताक़त से जुड़ कर ही मुमकिन है बिना किसी ताक़त से जुड़े जो सब्र किया जाता है उसका सब्र का बाँध जल्दी टूट जाता है",
मिसाल के तौर पर कोई हादसा हो जाता है किसी भी परिवार केलिए बुरी खबर होती है उस पर कोई ताक़त अगर जुड़ जाती है जैसे रिस्तेदार आके संभाल ले, सरकार मुआवज़ा दे तो इंसान का दुख जो उस हानि से हुआ था वो तोड़ा कम हो जाता है, उसके दिमाग़ दूसरी बात भी सोचने लगता है इस तरह उस दुख से निकालने मे उसे सहायता मिल जाती है,
अगर ख़ुसी की खबर मिले तो ? तो कई बार तो आपस के लोगो से बाँट कर तोड़ा भावनाओ पर कंट्रोल इंसान कर लेता है लेकिन कई बार कंट्रोल नही कर पाए तो ? इंसान का हार्ट फेल भी हो जाता है, अगर इंसान गम या ख़ुसी को अपनी ताक़त या कुव्वत से जोड़ता है तो ये सब होता है,
अमेरिका सालो से इराक़ और अफघानिस्तान मे जंग लड़ता है क्योकि उसे अपनी ताक़त पर गुरूर है की मुझे कोई कुछ नही कर सकता,
अगर उसका ये गुरूर टूट जाए तो, चाहे आर्थिक हो या सैनिक तो क्या वो सब्र कर पाएगा ?
एक मुस्लिम अपनी हर खुशी, गम को सबसे बड़ी ताक़त से जोड़ देता है, खुशी की खबर मिले तो अल्लाह को याद करता है (खुशी की खबर मिलने की दुआ) और गम की खबर मिले तो अल्लाह को याद करना,(http://www.makedua.com) ऐसा करना ईमान को ताज़ा करना है और उस शर्त को याद करना होता है जो उसे इस्लाम कबूल करते वक्त सिखाई जाती है यानी किस्मत पर, और अपने जिंदगी मे जो भी अच्छे बुरा होना वो पहेले से अल्लाह ने किस्मत मे लिख दिया था,
इसलिए गम मे अपनी कुव्वत या ताक़त ख़त्म होने पर ना अफ़सोस करे,
ना खुशी मे अपनी कुव्वत या ताक़त (माल, दौलता, औलाद, सत्ता आदि) पर इतराए,
सब्र दर्जा बा दर्जा हासिल होता है !
और सब्र के इन दर्ज़ो से इंसान का दर्जा भी बुलुंद होता जाता है !
रासूल्लुल्लाह ताईफ की तरफ जाते है वहाँ उन पर पत्थर बरसाए जाते है, आप तड़प उठते है बैचेन हो जाते है और फरमाते है " ए अल्लाह मुझे किन लोगो के बीच मे पहुचा दिया ......" फिर अपना ताल्लुक को उसी सबसे बड़ी ताक़त से जोड़ते हुए कहते है की " अगर तू मुझ से राज़ी है तो मुझे किसी की कोई परवाह नही"
एक शाअर भी कुछ इस तरह कहता है " रज़ा ए रब मे राज़ी रह, हरसे आरज़ू कैसा ? खुदा खालिक खुदा मालिक खुदा का हुक्म, तू कैसा?
ऐसा सब्र का दर्जा हासिल करने के लिए ज़िंदागी को जीना पड़ता है,
जो लोग जिंदगी को सिर्फ़ गुज़ार देते है उन्हे ये दर्जे हासिल नही हो पाते क्योकि उनका सारा वक्त तो जिंदगी गुजारने के साजो सामान के इन्तेजाम करने मे ही गुजर जाता है.
"आपके कहने पर फैले हुए लोग क़तार बनाकर उस दर्रे से गुज़र गये।"
पैग़म्बर साहब स.की एक साधारण सी सीख को उनके फॉलोअर बहुत जल्दी भूल जाते हैं,और हर साल हज़ के दौरान भगदड़ मे जान गँवा देते है।
@ search true Islam ! मुझे पैगम्बर साहब के बारे मेँ कुछ नहीँ कहना है । मुसलमानोँ से कहना है कि उनके विचार व स्वभाव को अपनाओगे कब ? तुम सुधरो तो हमेँ भी शांति मिले । भारत के एक टुकड़े पाकिस्तान को तो संभाल नहीँ पाये , सारे भारत पर इस्लामी झँडा फहराने की तुम्हारी इच्छा व्यर्थ है ।
@Param Arya आपने @ search true Islam लिखा शायद आप मुझ से मुखातिब है, लेकिन आपने लिखा "तुम सुधरो तो हमेँ भी शांति मिले" ये तुम कौन है ?
क्या मै ?
या पाकिस्तान ?
क्या मै और पाकिस्तान एक है ?
अगर मै तो क्या आप मुझे जानते है ?
और मुझ मे अपने अंदर क्या सुधार करने चाहिए ?
जहाँ तक पक्सितान का सवाल है तो उनके करमो की ज़िम्मेदारी मुझ पर या किसी और मुस्लिम पर नही है, बल्कि हर इंसान के कर्म यहाँ तक की मा बाप भाई बहन बेटे बेटी रिश्तेदार के करमो की ज़िम्मेदारी भी किसी दूसरे मुस्लिम पर नही है, हर किसी को अपने करमो का हिसाब देना,
ज़िम्मेदारी सिर्फ़ ये है की अगर ताक़त है तो बुराई को ताक़त से रोको (अब क्या मै पाकिस्तान मे होने वाली किसी बुराई को ताक़त से रोक सकता हूँ? ) मै इतना ताकतवर तो नही हूँ
लेकिन अगर ताक़त नही है तो ज़ुबान से (शब्दो) से रोको (बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाओ, लोगो बता दिया जाए की आप ग़लत कर रहे हो
) अगर इतनी भी ताक़त नही है तो अपने दिल मे उस बुराई को बुरा जानो (ये काम तो हर वयक्ति कर ही सकता है)बुराई चाहे कोई भी करे मुस्लिम या गैर मुस्लिम,
ये दोनो काम तो मै कर ही सकता हूँ की जहाँ बुरा होते देखु जनह्न तक संभव हो बता दूं और कही नही बता पऔन तो कम से कम अपने दिल मे उसे बुरा जान लू ताकि मै उससे बचा रहूँ, अगर बुराई को बुरा ना जाना तो उसे अच्छाई सम्झ कर अपना किया जाता है,
चूँकि मुस्लिमो ने इस्लाम कबूल किया और अल्लाह ने उनसे कहा की तुम बेहतरीन लोग हो जो खुद अपने आपको भी बुराई से रोकते हो और लोगो को भी बुराई से रुकने के लिए कहते और अच्छाइयो की तरफ बुलाते हो तो ज़िम्मेदारी भी मुस्लिमो पर ज़यादा बनती है की पहेले मुस्लिम खुद बुराई से रुके और अच्छे कर्म करे और अगर मुस्लिम ऐसा नही करे तो ?
तो अल्लाह ने क़ुरान मे साफ़ फ़ार्मा दिया की दुनिया मे भी रुसवाई और आख़िरत(परलोक) मे सज़ा मिलेगी, यानी मुसलमान ज़मीन के पाँच फिट उपर रहे या पाँच फिट नीचे ज़िल्लत उसका नसीब बन जाएगी
अगर मुस्लिम अच्छे कर्म करे और खुद बुराई से रुके और लोगो को भी बुराई से रोके (अपनी ताक़त के अनुसार) तो अल्लाह मुस्लिमो को खलीफा (लीडर) बनाएगा चाहे दुनिया का कोई भी हिस्सा हो,
और केवल उसी समय लोगो को भी जीवन जीने के लिए सव्स्थ वातावर्ण मिलना संभव हो पाएगा एवं यकीन्न पूर्ण शांति मिलेगी
जिन्होने पाकिस्तान लिया था (मोहम्मद अली जिन्ना) उन्हे तो इस्लाम का बुनियादी इल्म भी नही था, इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान लेने के बाद वो ये ही नही तय कर पाए की इस्लाम क्या है और उसे कैसे लागू करे, उन्होने भी लोकतंत्र ही अपन्याया और ब्रिटिश क़ानून मे थोड़ा फेर बदल करके सविन्धान लागू कर दिया, उसी ग़लती की वजह से पाकिस्तान की हालत ये हो गयी
" नाखुदा ही मिला ना विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के "
और आख़िरी बात हर चीज़ का वक्त तय है, किसी को कोई बात समझाई भी जाए तो वक्त से पहेले वो उसे समझ मे भी नही आएगी, लेकिन इस बात को दलील बनाकर समझाना नही छोड़े और यही सब्र है या यूँ कहे ये भी सब्र का एक वजह बन जाती है ताकि इंसान अल्लाह से ताल्लुक जोड़े की मैने अपना काम कर दिया (समझाने का) अब तू(अल्लाह) हिदायत दे या हलाक करे ये तेरी मर्ज़ी है.
अल्लाह अपने बन्दो से फरमाता है "एक तेरी चाहत है, एक मेरी चाहत है, होगा वही जो मेरी चाहत है, अगर तूने सुपुर्द किया उसके जो मेरी चाहत है तो मै तुझे वो भी दूँगा जो तेरी चाहत है, अगर तूने मुख़ालफ़त की उसकी जो मेरी चाहत है तो मै तुझे थका दूँगा उसमे जो तेरी चाहत है, फिर होगा वही जो मेरी चाहत है"
हिन्दी के फॉंट्स का पूरी तरह इस्तेमाल नही कर पाता हूँ इसलिए संभव कुछ त्रुटि हो उसके लिए माफी
searchtruepath फोंट वोंट जाये भाड में, जैसा भी जैसे भी लिख रहे हो सीधा दिलों पे वार करने वाला है, शाबाश, बहतरीन, लाजवाब
लोग समझेँ तो जीवन ही न बदल जाये ।
search true Islam ! चल तू पाकिस्तान की छोड़ अपनी बता क्या तूने अपने नबी साहब की तरह अपनी बीवी को महर नगद दिया ?
तेरे बाप ने तेरी बहन को सम्पत्ति मेँ भाग दिया या उसे भगा दिया । बता सिरात नामक पुल पर कैसे पार होगा तू और तेरा पापा ?
मेरी शादी ही नही हुए तो मै मेहर किसे दूं ?
मेरे वालिद (पिता) ने इंतेकाल से पहेले वसीयत करके मेरी बहनो को भी हिस्सा लिख दिया था और अभी वो अपने हिस्सो को भी इस्तेमाल करती है उस से उनको को कोई नही रोकता.
अल्लाह के साथ किसी को शरीक (साथी) ना ठहराना और अल्लाह से अल्लाह की रहमत की उमीद पुल सीरात से पार होने के लिए चाईए,
बहुत सही लिखा
@ PARAM arya
हम सब तो अपनी फ़िक्र कर ही रहे है ,आप अपनी फ़िक्र करना शुरू करो. आप लोग पाकिस्तान का नाम ले ले कर मुसलमानो को छेड़ते हो. कभी अपने मित्र नेपाल पर भी ग़ौर किया है, वहाँ कैसे आपके भाइयो का और आपकी भाषा का अपमान होता है ? कभी मुँह से दो बोल भी निकले नेपाल के खिलाफ. कैसे आज नेपाल चीन के साथ मिलकर भारत में नक्सलवाद को बड़ावा दे रहा है? ये वोही नेपाल है जिस नागरिको को भारतीयो के बराबर अधिकार हासिल हैं. और आजतक नेपाल के साथ प्रतियर्पण समझोता नही हो पाया ? क्यूँ ?
@ PARAM arya
ज़रूरी बात ये है कि जब भी कुछ लिखो तो अदब का दामन पकड़ कर रखना, वैसे आपकी भाषा शेली से आपके संस्कारो का पता चल ही रहा है.
अनवर भाई, लेख तो आपने ज़बरदस्त लिखा है.... लेकिन आपके लेख के कमेंट्स में एक शख्स ने जो लिखा है वोह वाकई ज़बरदस्त है..... उस शख्स का नाम तो पता नहीं लेकिन ID है:
searchtruepath
"अल्लाह अपने बन्दो से फरमाता है "एक तेरी चाहत है, एक मेरी चाहत है, होगा वही जो मेरी चाहत है, अगर तूने सुपुर्द किया उसके जो मेरी चाहत है तो मै तुझे वो भी दूँगा जो तेरी चाहत है, अगर तूने मुख़ालफ़त की उसकी जो मेरी चाहत है तो मै तुझे थका दूँगा उसमे जो तेरी चाहत है, फिर होगा वही जो मेरी चाहत है"
@searchtruepath,
Pakistan, musalmaano ka pryaahvaachii ban gayaa hain, Jo Pakistaan kii halaat ho rakhii hain, vo sab ISLAM kii vajah se hain, Saale Sab ISLAM ke naam par marte or maarte rahate hain. Sab ISLAM kii sikshaa ke kaaran ho rahaa hain, Jis desh mein dekho ISLAM ke kaaran logon kaa maara ja raha hain, unkaa kasoor ye hain ki vo ISLAM ko nahii maante. Sabse gandaa dharm ISLAM hain, jo doosre dharm ko KAFIR kii nazar se dekhta hain
Nice to read,well done
@ Anonymous अगर हरा चश्मा पहन कर दुनिया को या लोगो को ये कहोगे की अरे देख दुनिया तो हरी है, दुनिया मे सब चीज़े हरे रंग की है,
फिर काला रंग का चश्मा पहन कर कहोगे की देखो देखो दुनिया मै कोई रंग है ही नही सब काला काला है तो लोग आपको क्या कहेंगे ?
उसका जवाब तो आप जानते होंगे ?
लेकि मै आपसे ये कहूँगा की चश्मा उतार कर उस आँख से दुनिया को देखो जिसमे कुद्रत ने सारे रंग देखने की कुव्वत रखी है तो रंगो मे फ़र्क कर पाओगे और दुनिया के हसीन नज़ारे भी कर पाओगे
@ Param आपके ब्लॉग पर आर्टिकल "सौभाग्य पाने का सिद्धान्त" http://vedictoap.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
पर मैने कॉमेंट लिखा है कृपा समाधान करे
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