सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, June 2, 2010
Iman and wisdom और वे (ईमान वाले) ऐसे हैं कि जब उन्हें उनके रब की आयतों के ज़रिये नसीहत की जाती है तो वे उनपर बहरे और अन्धे होकर नहीं गिरते।
दयालु पालनहार का फ़रमान है-
और वे (ईमान वाले) ऐसे हैं कि जब उन्हें उनके रब की आयतों के ज़रिये नसीहत की जाती है तो वे उनपर बहरे और अन्धे होकर नहीं गिरते।
अलफ़ुरक़ान, 73
जो शख्स यह जानता है कि जो कुछ तुम्हारे पालनहार की तरफ़ से उतारा गया है वह सत्य है, क्या वह उसके मानिन्द हो सकता है जो अन्धा है ?, नसीहत तो अक्ल वाले लोग ही कुबूल करते हैं।
अलरअद, 19
और वे जो समूद थे, तो हमने उन्हें हिदायत का रास्ता दिखाया मगर उन्होंने हिदायत के मुक़ाबले अन्धेपन को पसन्द किया तो उन्हें अपमानजनक यातना के कड़के ने पकड़ लिया उनकी बदकारियों की वजह से । और हमने उन लोगों को मुक्ति दी जो ईमान लाये और डरने वाले थे।
हामीम सज्दा, 17- 18
सच को जानने और मानने का नाम ईमान है। सच को जानने के लिए अक्ल की ज़रूरत होती है और उसे मानने के लिए इनसान को अपने जज़्बात से ऊपर भी उठना पड़ता है। इनसान की कामयाबी इनसान बनने में है। इनसान बनने के लिए उसमें नैतिक गुणों का होना बहुत ज़रूरी है। इनसान बनने के लिए फ़र्ज़ का अदा करना भी ज़रूरी है।
इनसान पर इनसानों के भी हक़ है और उन चीज़ों के भी, जिन्हें वह बरतता है। इन सबकी अदायगी में संतुलन भी ज़रूरी है। जो आदमी ईश्वर को नहीं मानते वे उसकी हिदायत को भी नहीं मानते और न ही वे उसकी ओर से आने वाले किसी मार्गदर्शक का अनुसरण करना ही ज़रूरी समझते हैं। वे पाप पुण्य को भी नहीं मानते। जाहिल लोग अपनी जहालत के कारण ऐसा करते हैं और पढ़े लिखे लोग अपनी बातों को दर्शन का रूप दे देते हैं। बहुत से लोग बहुत से मतों को जन्म देते हैं और हरेक देश और समाज की नैतिकता, हक़ और फ़र्ज़ में बुनियादी अन्तर आ जाता है। इसी अन्तर से असंतुलन पैदा होता है जो अन्ततः सभ्यता के विनाश का कारण बनता है।
समूद भी इसी वजह से नष्ट हुए और आज भी मानव जाति फिर उसी ग़लती को दोहरा रही है। अक्लमन्दी का तक़ाज़ा तो यह है कि पिछली नष्ट हो चुकी सभ्यताओं की ग़लतियों को न दोहराया जाए।
परमेश्वर ईमान वाले बन्दों का गुण बताता है कि वे उसके वचन पर भी अंधे बहरे होकर नहीं गिरते अर्थात उसे मानने के लिए अपनी अक्ल का बेहतरीन इस्तेमाल करते हैं। इसलाम का यह बुनियादी सबक़ है कि ईमान वाला अपनी अक्ल को हमेशा अलर्ट रखे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
23 comments:
जो शख्स यह जानता है कि जो कुछ तुम्हारे पालनहार की तरफ़ से उतारा गया है वह सत्य है, क्या वह उसके मानिन्द हो सकता है जो अन्धा है ?, नसीहत तो अक्ल वाले लोग ही कुबूल करते हैं।
वाह वाह !
जय हो.........
GOOD POST
Nice Post Anwar Sahab!
दुनिया को बर्बादी के रास्ते पर ले जाने वाले ग्रन्थों से सावधान। सोचो, बुद्धि क्यों दी गयी है?
जो आदमी ईश्वर को नहीं मानते वे उसकी हिदायत को भी नहीं मानते और न ही वे उसकी ओर से आने वाले किसी मार्गदर्शक का अनुसरण करना ही ज़रूरी समझते हैं। वे पाप पुण्य को भी नहीं मानते। जाहिल लोग अपनी जहालत के कारण ऐसा करते हैं और पढ़े लिखे लोग अपनी बातों को दर्शन का रूप दे देते हैं। बहुत से लोग बहुत से मतों को जन्म देते हैं और हरेक देश और समाज की नैतिकता, हक़ और
बहुत से लोग बहुत से मतों को जन्म देते हैं और हरेक देश और समाज की नैतिकता, हक़ और फ़र्ज़ में बुनियादी अन्तर आ जाता है। इसी अन्तर से असंतुलन पैदा होता है जो अन्ततः सभ्यता के विनाश का कारण बनता है।
समूद भी इसी वजह से नष्ट हुए और आज भी मानव जाति फिर उसी ग़लती को दोहरा रही है। अक्लमन्दी का तक़ाज़ा तो यह है कि पिछली नष्ट हो चुकी सभ्यताओं की ग़लतियों को न दोहराया जाए।
nice post
हिन्दू धर्म व्यक्ति प्रवर्तित धर्म नहीं है। इसका आधार वेदादि धर्मग्रन्थ है, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है। ये सब दो विभागों में विभक्त है-
इस श्रेणी के ग्रन्थ श्रुति कहलाते हैं। ये अपौरुषेय माने जाते हैं। इसमें वेद की चार संहिताओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों, उपनिषदों, वेदांग, सूत्र आदि ग्रन्थों की गणना की जाती है। आगम ग्रन्थ भी श्रुति-श्रेणी में माने जाते हैं।
इस श्रेणी के ग्रन्थ “स्मृति´´ कहलाते हैं। ये ऋषि प्रणीत माने जाते हैं।
इस श्रेणी में 18 स्मृतियाँ, 18 पुराण तथा रामायण व महाभारत ये दो इतिहास भी माने जाते हैं।
सही लिखा है अनवर भाई. बहुत खूब!
सही लिखा है अनवर भाई. बहुत खूब!
nice post
भाई अनुवाद सिंह बुद्धि इस लिये दी गयी है कि चन्द्रगुप्त को गद्दी पर जाने से रोक सको तो रोक लो
इसलाम का यह बुनियादी सबक़ है कि ईमान वाला अपनी अक्ल को हमेशा अलर्ट रखे।
KEEP IT UP ALWAYS
Kafi badhiy likha hai aapne. magar iman wale hai kitne. kafi had tak to dikhawa karne wale hain.
(30:41)
वह उससे पाक व पाकीज़ा और बरतर है खुद लोगों ही के अपने हाथों की कारस्तानियों की बदौलत ख़ुश्क व तर में फसाद फैल गया ताकि जो कुछ ये लोग कर चुके हैं अल्लाह उन को उनमें से बाज़ करतूतों का मज़ा चखा दे ताकि ये लोग अब भी बाज़ आएँ
पागल है तू
डाक्टर नहीं कसाई है तू
वह भी नहीं तो लुगाई है तू
इस लेख नकारने वाला इन्सान नहीं हो सकता .
nice post
अब्बू जैसा प्यार इस्लाम से सीखें
शाहजहाँ प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाय ,८००० ओरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। मुमताज के बाद शाहजहाँ ने अगर किसी को टूट कर चाहा तो वो थी उसकी बेटी जहाँआरा। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।
http://quranved.blogspot.com/
बढ़िया पोस्ट हे दो. धन्य वाद
मैं ने देखा कि तुम मेरा ही एक टुकड़ा हो, बल्कि जो मैं हूं वही तुम हो। यहां तक कि अगर तुम पर कोई आफ़त आए तो गोया मुझ पर आई है, और तुम्हें मौत आए तो गोया मुझे आई है। इस से मुझे तुम्हारा उतना ही ख्याल हुआ जितना अपना हो सकता है। लिहाज़ा मैं ने यह वसीयत नामा तुम्हारी रहनुमाई में इसे मुअय्यन समझते हुए तहरीर किया है। ख्वाह इस के बाद में ज़िन्दा रहूं या दुनिया से उठ जाऊं।
मैं तुम्हें वसीयत करता हूं कि अल्लाह से डरते रहना, उस के अहकाम की पाबन्दी करना, उस के ज़िक्र से कल्ब को आबाद रखना, और उसी की रस्सी को मज़बूती से तामे रहना। तुम्हारे और अल्लाह के दरमियान जो रिश्ता है उस से ज़ियादा मज़बूत रिश्ता और हो भी क्या सकता है ? बशर्ते की मज़बूती से उसे थामे रहो। वअज़ व पन्द से दिल को ज़िन्दा रखना, और ज़हद से उस की ख़्वाहिशों को मुर्दा। यक़ीन से उसे सहारा देना, और हुकूमत से उसे पुर नूर बनाना। मौत की याद से उसे क़ाबू में करना, फ़ना के इक़रार पर उसे ठहराना। दुनिया के हादिसे उस के सामने लाना, गर्दिशे रोज़गार से उसे ड़राना। गुज़रे हुओं के वाक़िआत उस के सामने रखना। तुम्हारे पहले वालों पर जो बीती है उसे याद दिलाना। उन के घरों और खण्डरों में चलना फिरना, और देखना कि उन्हों ने क्या कुछ किया, कहां से कूच किया, कहां उतरे, और कहां ठगरे हैं। देखोगे तो तुम्हें साफ़ नज़र आयेगा कि वह दोस्तों से मुंह मोड कर चल दिये हैं, और पर्देस के घर में जा कर उतरे हैं, और वह वक्त दूस नहीं कि तुम्हारा शुमार भी उन में होने लगे। लिहाज़ा अपनी अस्ल मंज़िल का इन्तिज़ाम करो। और अपनी आख़िरत का दुनिया से सौदा न करो। जो चीज़ जानते नहीं हो उस के मुतअल्लिक बात न करो। और जिस चीज़ का तुम से तअल्लुक नहीं है उस के बारे में ज़बान न हिलाओ। जिस राह में भटक जाने का अंदेशा हो उस राह में क़दम न उठाओ। क्यों कि भटकने की सरगर्दियां दोख कर क़दम रोक लेना खतरात मोल लेने से बेहतर है। नेकी की तलक़ीन करो ताकि खुद भी अहले खैर में महसूब हो। हाथ और ज़बान के जरीए बुराई को रोकते रहो। जहां तक हो सके बुरों से अलग रहो। खुदा की राह में जिहाद का हक़ अदा करो, और उस के बारे में किसी मलामत करने वाले की मलामत का असर न लो। हक़ जहां हो सख्तियों में फ़ांद कर उस तक पहुंच जाओ। दीन में सूझ बूझ पैदा करो। सख्तियों को झेल जाने के खूगर बनो। हक़ की राह में सब्र की शिकेबाई बेहतरीन सीरत है। हर मुआमले में अपने को अल्लाह के हवाले कर दो। क्यों कि ऐसा करने से तुम अपने को एक मज़बूत पनाह गाह और क़वी मुहाफ़िज़ के सिपुर्द कर दोगे। सिर्फ अपने पर्वरदिगार से सवाल करो, क्यों कि देना और न देना बस उसी के इख्तियार में है। अपने अल्लाह से ज़ियादा से ज़ियादा भलाई के तालिब हो। मेरी वसीयत को समझो और उस से रु गर्दानी न करो। अच्छी बात वही है जो फ़ायदा दे, और उस इल्म में कोई भलाई नहीं जो फ़ायदा रसां न हो। जिस इल्म का सीखना सज़ावार न हो उस से कोई फायदा भी नहीं उठाया जा सकता।
http://www.alhassanain.com/hindi/book/book/ethics_and_supplication/various_books/maktoobat/004.html
Post a Comment