सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Saturday, June 12, 2010
भाई तारकेश्वर गिरी ने बुरक़े और परदे के बारे में लिखकर सवाल भेजा तो मौलाना ने जवाब दिया -‘ नबी स. के ज़माने बुरक़ा नहीं था। हनफ़ी आलिम कहते हैं कि तीन चीज़ें Exempted हैं .
भाई तारकेश्वर गिरी ने बुरक़े और परदे के बारे में लिखकर सवाल भेजा तो भाई रजत मल्होत्रा ने उसे पढ़कर मौलाना को सुनाया।
मौलाना ने जवाब दिया -‘ नबी स. के ज़माने बुरक़ा नहीं था। हनफ़ी आलिम कहते हैं कि तीन चीज़ें Exempted हैं-
1- वज्ह यानि चेहरा
2- कफ़्फ़ैन यानि दोनों हाथ गटटों तक
3- क़दमैन यानि दोनों पैर टख़नों तक
‘ख़ातूने इस्लाम‘ में मैंने इस पर लिखा है।
भाई शाहनवाज़ सिददीक़ी ने इससे पहले सवाल किया था कि क्या सब्र के ज़रिये आतंकवाद से लड़ा जा सकता है ?
मौलाना साहब ने गांधी जी की मिसाल देकर कहा कि बिल्कुल लड़ा जा सकता है।
मौलाना ख़ान साहब की उम्र लगभग 100 साल है और उसके बावजूद उनकी सेहत क़ाबिले रश्क है। मौलाना अंग्रेज़ी अल्फ़ाज़ का बेतकल्लुफ़ इस्तेमाल करते हैं और सवालों का स्वागत करते हैं, जिसकी वजह से आधुनिक शिक्षा प्राप्त नई नस्ल उनसे बेहिचक सवाल करती है। उनकी मजलिस में वे मर्द औरतें भी होती हैं जो बरसों से उनसे सीख रहे हैं और वे लड़के लड़कियां भी होते हैं जो बिल्कुल पहली ही बार आये हुए होते हैं। हिजाब की पाबन्दी करने वाली औरतों और लड़कियों के साथ बिना हिजाब के नज़र आने वाली लड़कियां भी होती हैं। धीरे धीरे लोगों की ज़िंदगियां बदलती चली जाती हैं। मौलाना उनकी सोच और अमल में यह बदलाव उन्हें ज्ञान देकर लाते हैं और हमेशा खुद भी कुछ नया सीखने के लिये तैयार रहते हैं।
मौलाना कहते हैं कि मैं आज भी पूरे दिन मौक़ा ढूंढता रहता हूं कि मैं कह सकूं कि I was wrong .
ताकि फ़रिश्तों के रिकॉर्ड में मेरा नाम दर्ज हो जाये।
मौलाना में विनय का यह भाव लोगों की सोच को पहली ही मुलाक़ात में बदल देता है।
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25 comments:
मौलाना नए बिलकुल सही फ़रमाया. लेकिन यह बुर्का ,नकाब, हिजाब, चादर का क्या मसला पैदा हो गया? इस्लाम में जिस्म और बाल छुपाने का हुक्म है, जो जैसे चाहे वैसे छिपे. अब अगेर में यह कह दूँ की नबी स. के ज़माने सलवार सूट नहीं था। तोह बात सही है लेकिन बे मायने लगती है, क्यूं की सलवार थी या सारी मसला नहीं, कपडे पहन नए का दस्तूर था यह काफी है
सार्थक पोस्ट
मौलाना से प्रश्न पूछा गया कि कुरआन की आयतों को समझें कि उसे हिफ़्ज़ यानि कंठस्थ करें।
जवाब- कुरआन को विचार करके पढ़ो। जिसे रमज़ान में तरावीह पढ़ानी हो वह हिफ़्ज़ करे।
मौलाना के कहने का तात्पर्य यह था कि जीवन को दिशा तभी मिलेगी जबकि उसे समझकर पढ़ा जाये। कुरआन एक उपदेश और नसीहत है और उपदेश और नसीहत पर अमल तभी मुम्किन है जबकि उसे समझकर पढ़ा जाये।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/06/blog-post_3727.html
Nice post .
@ Voice of people ! Maulana ne yahi to samjhaya hai . Bahut se logon ko malum nahin hai hai ki chehra satr men nahin aata .
Nice method . मौलाना उनकी सोच और अमल में यह बदलाव उन्हें ज्ञान देकर लाते हैं
ऐसा कुछ घटित हो जाता है कि हम उन्हें भूल ही नहीं पाते हैं .मौलाना में विनय का यह भाव लोगों की सोच को पहली ही मुलाक़ात में बदल देता है।
सही फ़रमाया. कुरआन को विचार करके पढ़ो।
Seekhne Wali Batai
@ search true Islam दीन मे बुर्का था नही तो इसे लिया किस कल्चर से ?
deen mein burqa nahi se matlab burqa nami wo libas jo ab pehna jata hai wo nahi tha , lekin pard tha, or huzur se pehle jo mahol tha , jo halat the unhe deen nahi kaha ja sakta, deen ki sahi tasweer huzur s.a.w. ke nabi banne ke baad bani hai, jo aaj tak qayem hai.
@ search true Islam !
अपने प्रश्न का समाधान देख मेरे ब्लाग पर । आ जा ।
@ search true Islam !
अपने प्रश्न का समाधान देख मेरे ब्लाग पर । आ जा ।
@ Altamash ! बुर्का किस हिजरी वर्ष से प्रचलित हुआ ?
GOOD
मौलाना की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मुस्लिम बुद्धिजीवियों को आगे आने की जरुरत है अकेले मौलाना कितना अँधेरा दूर पाएंगे ?
मुझे एक बात समझ में नहीं आती की आखिर हमें इस बुर्के वगैरह की ज़रुरत ही क्या है ?, महिलायों को जो वस्त्र (भद्दे एवं अश्लील वस्त्रों के अलावा ) अच्छे एवं सुविधाजनक लगें वो पहनें, इसमें चेहरा ढकने को क्यों compulsory किया जाता है ? और साथ ही बिलकुल same concept पुरुषों पर क्यों नहीं लागू होता ?, उन्हें भी फिर चेहरा ढकने के लिए बुर्के का इस्तेमाल compulsory करें . कमाल है ! लोगों को इतनी सी बात भी समझ में नहीं आती की जिसे जो वस्त्र ( भद्दे एवं अश्लील वस्त्रों के अलावा ) सुविधाजनक लगें चाहे महिला हों या पुरुष वो पहनें .
महक
anwar jamal bhai jankari ke liye thanks
@ Param दीन मे हिजाब है जिसका अर्थ होता है "ढकना" "अलग करना" "छुपाना"
बुर्का शब्द फ़ारसी का है कुछ शब्द कोष और भाषा विशेषग इसे अरबी का बताते है लेकिन कहते यही है की ये शब्द अरबी मे भी फ़ारसी भाषा से आया है,
अपने शरीर को ढकने के लिए औरतो ने अपने देश के अनुसार पोशाके बना ली जिनके नाम भी अलग अलग पढ गये, जैसे जिलबाब, निकाब, बुर्का, चादरा,
@@@ searchtruepath....
Kalaa chasmaa to musalmaano ne pahan rakha, jinhe kaala chasme se charo taraf hara colour hii nagar aata, unko jahan bhii SAFRON or WHILE colour najar aata hain u nkii sulag jaati hain.
Chasmaa badlne or QURAN ko badlne kii jaroorat to musalmaano ko hain , eshi kii vajah se tum log saarii duniya ko kahte ki " My Name is Khan , I im Not Terorrist"
Jis paudhe ki jad ko KHOON se seecha jata hai vah logo kaa KHOON hi karega, vaise hi QURAN mein kewal MAAR KAAT or KHOON kharaba, doosre dharm ke prati Naphrat se jyaada kuchh bhii to nahii , to duniya tum logo se kya ummd kar saktii hain,
QURAN musalmaano mein doosre dharm ke prati Naphrat phailatii hain
Anvar jabar dasti VEDON ko quran se jod rahe hain, apne uloo seedha karne ke liye.
Haqiqat yehii hain, esliye ye SER or SHAYARI karne se koi phayada nahi, Pahle QURAN ko DEMOCRATIC banao, doosre dharm kaa aadar karna seekho, Lekin jis din tumne doosre dharm kaa aadar karna seekh liye, tumko Jahanum miljaayegi ( QURAN ke anusaar), problem to yehii hain,
Salman Khan ne Ganesh Pooje kii thii, Salmaan Khan ke prati FATWA jaarii ho gayaa ki vo SACHHA musalmaan nahii,
es SACHHE Musalmaan ne hii to poori duniya kii le rakhii hain ,
Saale GADHHR
SACHHA MUSALMAAN kya hota hain ?
Salman Rushdi or Tasleema Nasrin, फ़िरदौस जी Kya Sachhe Musalmaan nahii hain?
Esliye chasma utaaro duniya ko apnii nagar se dekho, QURAN kii nagar se nahii, Nahi to tumhaara vahii haal hoga jo Sadam Husain ka hua. 2 mahine tak gatar ke andar tha
@ Anonymous आपकी बाते अर्थ हीन है एक तरफ आप कहते है कि सलमान के खिलाफ कुफ्र का फतवा है दूसरी तरफ कहते है कि मेरा हाल सद्दाम जैसा होगा ( इसलिए कि आप मुझे सच्चा मुस्लिम मानते है) परंतु क्या आपको मालूम है सद्दाम के खिलाफ भी कुफ्र का फतवा दिया गया है ? तो फिर मेरा हाल उसके जैसा कैसे होगा ?
रुश्दी, तसलीमा नसरीन का नाम तो सुना था लेकिन ये फ्रीदौस कौन है?
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Aap sachhe musalmaan hain ki nahii RAM jaane. Lekin MUSLIM dharm ke anusaar "Doosre dharm kii pooja karne wale sachhe musalmaan nahi ho sakte, doosre dharm kii pooja karna yaane allah ke saath gadhhari karna hota hain. yehi ISLAMM kii soch hain. Yehi Paigamber ne likha doosre dharm wale kafire hain , Kafire ko ya to maro or unka dharm parivartan karo. Quran mein Christian and Jews dharm ke logo ko maarne ke liye likha hain".
Lekin ISRAEL or AMERICA ne musalmaano ki baja ke rakhii hain
Tum log sachha musalmaan banna chhod do, SACHHA INSAAN bano. Saare dharmo kii man se ijjat karo. Samanya Jeevan jiyo, andhon kii tarah allah ke peeche bhagna chhod do, allah, allah karne se kisi allah nahi milega, paigamber ne sabko quran ke madhyam se daraa rakha hain. Bin laden ko america ne dara rakha haon , bin laden pahle allah, allah chilata tha, ab vo bachao bachao karke pahadon mein ghoom rahara haon. Na jaane aur kitne log pahado yaa jelon mein sad rahe honge.
Tum ye shabd Kafir, Nafrat, Jannat, fatwa, allah kaa hukm, taliban aadi shabd chhod do. Jis din tum en shabdo ke peeche bhagna chhod doge, us din poori duniya mein Santi hogi
महक भाई! मौलाना ने बताया है कि ‘चेहरा ढकना आवश्यक नहीं है।‘
लेकिन अगर कोई औरत चेहरा ढकना चाहे यह उसकी इच्छा और उसका अधिकार है।
मर्द को भी अधिकार है कि चाहे तो अपना चेहरा ढक ले लेकिन उसके लिये भी चेहरा ढकना अनिवार्य नहीं है।
इसमें कन्फ़्यूझन है कहां?
Aaj ka shahri mahaula jaisa hai us hisab se prada jaruri hai.
महक साहेब भद्दे एवं अश्लील वस्त्रों के अलावा ही पर्दा है और आप जिस चेहरा ढकने की बात कह रहे हैं वोह दस्तूर और यह दस्तूर बहुत से इस दुनिया में इसका इस्लाम से क्या लेना देना.
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