सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, June 16, 2010
Behaviour जिस इनसान के अन्दर ईमान की कैफ़ियत होगी उसके अन्दर विनम्रता भी ज़रूर होगी। ये दोनों चीजे़ कभी एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकतीं।
मानव धर्म : पैग़म्बर की वाणी में मौलाना वहीदुद्दीन ख़ाँ
ईमान वाले बन्दे की मिसाल ऐसे नर्म पौधे की सी है जिसके पत्ते सायादार होते हैं। जिस दिशा से भी हवा चलती है वह उसे झुका देती है। जब हवा रूकती है तो वह सीधा हो जाता है। यही हाल मोमिन का है जो लगातार आज़माइशों के भार से दबा रहता है और सत्य के इनकारी की मिसाल सख्त पेड़ (ठूंठ) की तरह है जो निश्चल एक हालत में खड़ा रहता है यहां तक कि परमेश्वर उसे जब चाहता है उखाड़कर फेंक देता है। (फ़तह-उल-बारी, किताबुत्तौहीद 13/55-454)
इस हदीस में पौधे की मिसाल के ज़रिये मोमिन बन्दे की उस सिफ़त को बताया गया है जिसको तवाज़ो (विनम्रता) कहा जाता है। विनम्रता मोमिन का एक गुण है। जिस इनसान के अन्दर ईमान की कैफ़ियत होगी उसके अन्दर विनम्रता भी ज़रूर होगी। ये दोनों चीजे़ कभी एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकतीं। मोमिन के अन्दर सूखी लकड़ी की तरह अकड़ नहीं होती। बल्कि नर्म पौधे की तरह लचक होती है। उससे कोई कोताही हो जाये तो फ़ौरन ही वह अपनी ग़लती मान लेता है। किसी से मामला पड़े तो वह हमेशा उसके साथ नर्मी का बर्ताब करता है। किसी से विवाद हो जाये तो वह एक तरफ़ा तौर पर सुलह के लिये तैयार रहता है। हक़ के झगड़े में वह अपना हक़ भी दूसरे को देने पर राज़ी हो जाता है ताकि मामला शिद्दत के मरहले तक न पहुँचे।
एक इनसान जब दूसरे इनसान के साथ शिद्दत का मामला करता है तो उसकी वजह यह होती है कि वह उसको अपने जैसे एक इनसान का मामला समझता है। यही सायकोलॉजी आदमी को सख्त बनाती है। लेकिन मोमिन इसके विपरीत हर मामले को ईश्वर का मामला समझता है। यह सायकोलॉजी उसके अन्दर शिद्दत का ख़ात्मा कर देती है। एक इनसान दूसरे इनसान के मुक़ाबले में बड़ा हो सकता है लेकिन ईश्वर के मुक़ाबले में कोई भी इनसान न तो बड़ा है और न ताक़तवर। इसी फ़र्क का यह नतीजा है कि इनसान और इनसान का मामला हो तो उनमें से कोई छोटा नज़र आता है और कोई बड़ा मगर जब इनसान और ईश्वर का मामला हो तो सारे इनसान बराबर हैसियत इख्तियार कर लेते हैं। अब बड़ा सिर्फ एक परमेश्वर होता है और बाकी तमाम इनसान उसके मुक़ाबले में छोटे।
अलरिसाला, उर्दू मासिक, अंक जून 2003, पृष्ठ 5
----------------------------------------------------------------------------------------------------
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. का वचन भी प्यारा है और उसकी व्याख्या भी। इस वचन को कोई अपने जीवन में उतारे या न उतारे लेकिन एक मोमिन को तो फ़ौरन ही इसे अपने अन्दर उतार लेना चाहिये। अक्सर लोगों में योग्यता की कमी नहीं होती लेकिन उनके अन्दर एक प्रकार की अकड़ पायी जाती है जिसकी वजह से वे अपने जीवन में कई तरह की समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। घर और ससुराल में भी उनका टकराव होता रहता है और रोज़गार के फ़ील्ड में भी। रिश्तेदारियों में तल्ख़ी पैदा हो जाती है और वर्किंग प्लेस में वे लोग नापसंदीदा बनकर रह जाते हैं। दूसरों के मुक़ाबले वे पिछड़ जाते हैं या फिर नौकरी ही उनको अलविदा कह देती है। इन हालात में भी वे अपने बर्ताव का जायज़ा लेने के बजाय यही कहते हैं कि ऐसा उनके साथ उनकी खुददारी की वजह से हो रहा है। दूसरे लोग चापलूस हैं इसलिये वे आगे बढ़ रहे हैं। ग़लत काम, बेशक न तो करना चाहिये और न ही होने देना चाहिये लेकिन जहां तक हो सके अंदाज़ नरमी का ही होना चाहिये। नसीहत के साथ नरमी न हो तो वह सामने वाली की इगो को ही हर्ट करेगी और फिर जो भी ताक़तवर होगा वह कमज़ोर पर सवार हो जायेगा। नेक नसीहत करने वाले खुददारों को इस पॉइंट का ख़ास ध्यान रखना चाहिये। ज़ुल्म के खि़लाफ़ आवाज़ उठानी चाहिये लेकिन लहजे में नरमी होनी ही चाहिये। इस एक बिन्दु का ध्यान रखने से भी बहुत सी समस्याओं का ख़ात्मा किया जा सकता है।
विनम्रता
ईमान वाले बन्दे की मिसाल ऐसे नर्म पौधे की सी है जिसके पत्ते सायादार होते हैं। जिस दिशा से भी हवा चलती है वह उसे झुका देती है। जब हवा रूकती है तो वह सीधा हो जाता है। यही हाल मोमिन का है जो लगातार आज़माइशों के भार से दबा रहता है और सत्य के इनकारी की मिसाल सख्त पेड़ (ठूंठ) की तरह है जो निश्चल एक हालत में खड़ा रहता है यहां तक कि परमेश्वर उसे जब चाहता है उखाड़कर फेंक देता है। (फ़तह-उल-बारी, किताबुत्तौहीद 13/55-454)
इस हदीस में पौधे की मिसाल के ज़रिये मोमिन बन्दे की उस सिफ़त को बताया गया है जिसको तवाज़ो (विनम्रता) कहा जाता है। विनम्रता मोमिन का एक गुण है। जिस इनसान के अन्दर ईमान की कैफ़ियत होगी उसके अन्दर विनम्रता भी ज़रूर होगी। ये दोनों चीजे़ कभी एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकतीं। मोमिन के अन्दर सूखी लकड़ी की तरह अकड़ नहीं होती। बल्कि नर्म पौधे की तरह लचक होती है। उससे कोई कोताही हो जाये तो फ़ौरन ही वह अपनी ग़लती मान लेता है। किसी से मामला पड़े तो वह हमेशा उसके साथ नर्मी का बर्ताब करता है। किसी से विवाद हो जाये तो वह एक तरफ़ा तौर पर सुलह के लिये तैयार रहता है। हक़ के झगड़े में वह अपना हक़ भी दूसरे को देने पर राज़ी हो जाता है ताकि मामला शिद्दत के मरहले तक न पहुँचे।
एक इनसान जब दूसरे इनसान के साथ शिद्दत का मामला करता है तो उसकी वजह यह होती है कि वह उसको अपने जैसे एक इनसान का मामला समझता है। यही सायकोलॉजी आदमी को सख्त बनाती है। लेकिन मोमिन इसके विपरीत हर मामले को ईश्वर का मामला समझता है। यह सायकोलॉजी उसके अन्दर शिद्दत का ख़ात्मा कर देती है। एक इनसान दूसरे इनसान के मुक़ाबले में बड़ा हो सकता है लेकिन ईश्वर के मुक़ाबले में कोई भी इनसान न तो बड़ा है और न ताक़तवर। इसी फ़र्क का यह नतीजा है कि इनसान और इनसान का मामला हो तो उनमें से कोई छोटा नज़र आता है और कोई बड़ा मगर जब इनसान और ईश्वर का मामला हो तो सारे इनसान बराबर हैसियत इख्तियार कर लेते हैं। अब बड़ा सिर्फ एक परमेश्वर होता है और बाकी तमाम इनसान उसके मुक़ाबले में छोटे।
अलरिसाला, उर्दू मासिक, अंक जून 2003, पृष्ठ 5
----------------------------------------------------------------------------------------------------
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. का वचन भी प्यारा है और उसकी व्याख्या भी। इस वचन को कोई अपने जीवन में उतारे या न उतारे लेकिन एक मोमिन को तो फ़ौरन ही इसे अपने अन्दर उतार लेना चाहिये। अक्सर लोगों में योग्यता की कमी नहीं होती लेकिन उनके अन्दर एक प्रकार की अकड़ पायी जाती है जिसकी वजह से वे अपने जीवन में कई तरह की समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। घर और ससुराल में भी उनका टकराव होता रहता है और रोज़गार के फ़ील्ड में भी। रिश्तेदारियों में तल्ख़ी पैदा हो जाती है और वर्किंग प्लेस में वे लोग नापसंदीदा बनकर रह जाते हैं। दूसरों के मुक़ाबले वे पिछड़ जाते हैं या फिर नौकरी ही उनको अलविदा कह देती है। इन हालात में भी वे अपने बर्ताव का जायज़ा लेने के बजाय यही कहते हैं कि ऐसा उनके साथ उनकी खुददारी की वजह से हो रहा है। दूसरे लोग चापलूस हैं इसलिये वे आगे बढ़ रहे हैं। ग़लत काम, बेशक न तो करना चाहिये और न ही होने देना चाहिये लेकिन जहां तक हो सके अंदाज़ नरमी का ही होना चाहिये। नसीहत के साथ नरमी न हो तो वह सामने वाली की इगो को ही हर्ट करेगी और फिर जो भी ताक़तवर होगा वह कमज़ोर पर सवार हो जायेगा। नेक नसीहत करने वाले खुददारों को इस पॉइंट का ख़ास ध्यान रखना चाहिये। ज़ुल्म के खि़लाफ़ आवाज़ उठानी चाहिये लेकिन लहजे में नरमी होनी ही चाहिये। इस एक बिन्दु का ध्यान रखने से भी बहुत सी समस्याओं का ख़ात्मा किया जा सकता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
35 comments:
यार डाक्टर साहेब, आप बिश्वास नहीं करोगे, मगर आज मेरा पहली बार आपकी पोस्ट की जमकर तारीफ़ करने का मूड था लेकिन फिर वही , आख़िरी पैराग्राफ ने मूड खराफ कर दिया ! समझ नहीं पाता कि मुस्लिम जगत के विद्धवान एक व्यावहारिक और सामाजिक पहलू में भी धर्म क्यों घुसेड देते है ! एक नेक बात बिना धर्म की आड़ लिए भी तो कही जा सकती है न ? हाँ अगर आपका यह लेख सिर्फ मुस्लिम पाठको को ध्यान में रखकर लिखा गया है तो फिर मैं आपसे पूर्ण सहमत !
क्षमा चाहता हूँ , लेकिन एक बात मैं आपके इस लेख को आधार बनकार इसलिए कहना चाहता हूँ क्योंकि वे सज्जन, जिन्होंने जागो हिन्दू जागो ब्लॉग पर अपनी टिपण्णी इस धमकी के साथ छोडी है कि इस तरह देश विभाजित हो जाएगा तो मैं उन सज्जन को यहाँ पर यह बताना चाहता हूँ कि मिंया चित भी आपकी और पट भी आपकी क्यों ? और धर्मों के मानने वाले क्या बेवकूफ है ? जिस लेख पर आपने यह टिपण्णी दी उसमे कहीं भी हिन्दुस्तानी मुसलमानों का जिक्र नहीं था ! बात सिर्फ उस अन्याय की थी जिसमे यु ये ई सरकार ने एक बेहद द्वेषपूर्ण फैसले के तहत भारत के १७ नागरिको को सिर्फ इसलिए फासी पर लटकाने का हुक्म दिया है क्योंकि उन्होंने एक पाकिस्तानी शराब तस्कर को मार डाला था ( ऐसा सिर्फ आरोप लगा है ) अभी याद होगा आपको कि जब यहाँ ब्लॉग जगत पर शहरोज भाई की मुसीबतों की बात उठी तो सबने एक स्वर में इस पर अफ़सोस जताया बिना यह देखे कि वो हिन्दू है या फिर मुसलमान ! तो फिर आपने कैसे एक पाकिस्तानी का पक्ष लिया सिर्फ इसलिए कि वह मुसलमान था ? और ये भी ध्यान रखिये कि जिस तरह हर बात पर आप लोग देश विभाजन का फिर से मुद्दा उठा लेते है तो अगर अबके यह नौबत आई तो १९४७ वाली गलती नहीं दोहराई जायेगी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सीनियर ब्लॉगर गोदियाल जी! आपने शायद ग़ौर नहीं किया कि इस ब्लॉग का नाम ही ‘वेद कुरआन‘ है और आज पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के एक वचन को आप लोगों के सामने पेश किया गया है और उसकी व्याख्या भी एक मशहूर इसलामी विद्वान द्वारा की गयी है सो इसमें आलरेडी धर्म शामिल है, इसमें धर्म ज़बरदस्ती घुसेड़ा नहीं गया है।
मैंने सभी से और मुस्लिम भाइयों से विशेष विनती की है कि विनम्रता को अपनायें। इससे पहले आप भी इसी ब्लॉग पर टिप्पणी कर चुके हैं कि अगर व्यवहार नहीं कर सकते तो ‘इस्लाम‘ की रट छोड़ दीजिये।
आप की शिकायत बिल्कुल दुरूस्त है। दूसरे ब्लॉग पर कोई आदमी क्या कह कर आया है उसका ज़िम्मेदार तो मैं नहीं हो सकता।
पृथ्वी सदा से एक ही ग्रह है। उसकी राजनीतिक सीमाएं हमेशा बदलती रही हैं। मुसलमानों के आने से पहले हज़ारों हिन्दू राजे रजवाड़े इस देश के छोटे छोटे से टुकड़े किये बैठे थे मुस्लिम सुल्तानों ने और बाद में मुग़लों ने इस बिखरे इुए देश को एक किया। हिन्दू मुसलमानों और दीगर समुदायों ने बाद में अपनी एकता के बल पर इसे अंग्रेज़ो से आज़ाद करवाया। दुखद है कि पाकिस्तान बना। जब हमारे घर का बंटवारा हुआ। आंगन में दीवार उठी तो उस लम्हे को आज तक मैं भुला न सका। ठीक हमारे घर की तरह देश के बंटवारे को भी हिन्दुस्तान में रहने वाले मुसलमान आज तक भुला नहीं पाये हैं। दारूल उलूम देवबंद के उलेमा सहित अक्सर मुस्लिम आलिमों ने पाकिस्तान निर्माण का विरोध किया था। पाकिस्तान निर्माण का दुख हमें भी है और आपको भी। ऐसे में जब हम आप पर अपना क्रोध नहीं उतारते तो आप नाहक़ क्यों हम पर ख़फ़ा हो रहे हैं?
अब तो उस विधि पर विचार करना चाहिये जिससे भारत के ये बिखरे हुए टुकड़े फिर से एक हो जायें। यक़ीन मानिये मेरे पास इसकी पूरी कार्ययोजना है। अगर यूरोप एक हो सकता है तो वृहत्तर भारत फिर से अखण्ड क्यों नहीं हो सकता।
कृप्या आवेश में न आयें और अपने देश और मानवता के लिये जो भी बेहतर बन पड़े आप करें और जो भी सहयोग हमसे चाहें हम देंगे।
आपने मेरे लेख की तारीफ़ करनी चाही और वह भी जमकर। आपके इतना कह देने भर से ही हमारी तो तबियत बाग़ बाग़ हो गई, सच। खुदा वह दिन भी लायेगा जब आपसे तारीफ़ मिलेगी।
मैं आपके लेख पढ़ता हूं और वे मुझे पसंद आते हैं। आपके लेख से ज़्यादा मुझे आपकी डैशिंग पर्सनैल्टी पसंद है। मालिक ने आपको हुस्न भी भरपूर दिया है। आपको अपने रचयिता का शुक्रगुज़ार होना चाहिये। आप बड़े हैं आप लोगों को कल्याण का मार्ग दिखायेंगे, ऐसी मैं आपसे आशा करता हूं और मालिक से इस आशय की प्रार्थना।
शब बख़ैर, शुभ रात्रि ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/06/true-spirituality.html?showComment=1276534286660#c5227924293092983292
@गोदियाल जी मैं आपसे यह उम्मीद नही कर सकता कि आप पोस्ट का टाईटल देखे बिना ही पोस्ट पढ़ लेते है उस पोस्ट के टाईटल से सामप्रदायिकता साफ झलक रही थी अब आपने टाईटल पर एक मुस्लिम और 23 हिंदु और सिखो का जिक्र आपने नही देखा तो कोई क्या कर सकता है आपने तो इस ब्लाग का नाम वेद क़ुरआन भी नही देखा था
hello call me 1467300099.
गोदियाल जी ! इस लेख का उन्वान ही " ईमान " शब्द लिए है , आखरी पैराग्राफ की बात तो बाद में आयेगी . वैसे आप धर्म के नाम से चिढ़ते क्यों हैं ?
ईश्वर की वंदना से एक होगा हिंदुस्तान .
Nice post.आपका कहना कि ईश्वर की वंदना से एक होगा हिंदुस्तान . लेकिन एक ईश्वर की बात कब मानेगा हिंदुस्तान ?
एक ईश्वर की बात तब मानेगा हिंदुस्तान , जब उसे इन्सान के बनाये दर्शनों की हकीक़त का इल्म हो जायेगा . भारत के लोग जागरूक हैं , अब ज्यादा वक़्त लगने वाला नहीं है हकीम साहब .
आपने मौलाना का मज़मून देकर लोगों के सामने एक राह को रौशन कर दिया है , जो चाहे इस पर चल सकता है .
http://boletobindas.blogspot.com/2010/06/why-suicide-rohit.html
DR. ANWER JAMAL...
Bahut Achcha Laga aap ki Post Padh Kar
nice post, nice comments, nice VOTEs
GOOD POST
+1 vote always
keep it up
dr anwar
आपकी बात से पहली बार काफी हद तक सहमत। नरमी का दामन पकड़ कर रखना चाहिए। पर ये भी समझना चाहिए की आज के जमाने में लोगो का ईगो इतना बड़ा हो गया है कि निश्क्षल राय को भी अपने खिलाफ समझने लगते हैं। बिना किसी दुर्भावना के दी गई राय से भी लोग दुश्मन बन जाते हैं। ऐसे लोगो की हालत उस चींटी के समान है जिसके गले में नमक का ढला था जिसके कारण चीनी खाने पर भी उसे चीनी का स्वाद नमकीन लग रहा था। दूसरे शब्दों में कहें तो सावन के अंधे को हरा ही हरा सुझता है। ये बात मेरी समझ में काफी देर से आयी। उसके बाद तरक्की के सोपान मेरे सामने खुलने लगे हैं। पर कोई भी सोपान सिर्फ इसलिए नहीं चढ़ता कि वो व्यक्ति मेरे से अब खुश है।
जहां तक एक ईश्वर की बात है. हर हिंदू भले ही पूजा किसी की करे मानता है कि ईश्वर एक ही है। औऱ उसके मानने को लेकर झगड़ा उचित नहीं है। जो जिस तरीके से भगवान को पूजता है उसे उसी तरीके से ईश्वर भक्ति में लीन रहने देना चाहिए।
एक औऱ शिकायत है जनाब . कि शहरोज भाई की पोस्ट लिखने पर ही आप मेरे ब्लॉग पर आए अन्यथा किसी औऱ पोस्ट पर आपकी टिप्पणी नहीं देखी। इसे क्या समझूं। भले ही मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए धर्म व्यक्तिगत है। मगर इसे लेकर कोई दुराग्रह करता है तो गुस्सा तो आएगा ही। वैसे में आपको शायद पहले ही बता चुका हूं कि मैं शम्स नवेद उस्मानी जी से 22 साल पहले से ही वाकिफ था। वो मेरे घर आए थे। मैं रामपुर जा चुका हूं तीन चार बार। न ही मेरे लिए तारिक भाई अनजान हैं। बचपन से ही मुझे वेद-कुरान संस्था के बारे में पता था। मुजफ्फर उल्ला खां के संपादन में जब ये पत्रिका छपती थी तो मेरे घर भी नियमित तौर पर आती थी। कई मुद्दो पर मतभेद हैं मेरे, पर मनभेद किसी से नहीं। यही अगर कई लोग समझ लें तो क्या बात है।
मतभेद का एक उदाहरण देता हूं।
भारत को मुसलमानों ने ही एकजुट किया ये गलत जानकारी है आपको भी। ठीक उसी तरह जैसे महाभारत एक कथा नहीं हकीकत रही है इस देश की। जो इसे कल्पित बताते हैं वो अज्ञानी हैं। देश मगध के अंतर्गत कम से कम 700 साल एक रह चुका है। उसके बात चोल वंशों के राज में लगभग आधे से ज्यादा भारत एक शासन सूत्र में था। आपको ये भी मालूम होगा की भारत में कई राज्य कितने भी रहे हों पर धर्म के नाम पर जंग 1947 से पहले कभी नहीं हुई। औऱ न ही जाजिया लगाया गया था कभी। जो इस्लामी शासन में ही लगा. अकबर औऱ मुहम्मद बिन तुगलक के समय को छोड़कर।
profile में फोटो बदल दिया है....आपको email भेजा था जवाब का इन्तेज़ार है.........
Bahut hi badhiya post, maja aa gaya.
डॉ अनवर जमाल साहब ,
बहुत बढ़िया लेख और उससे भी अच्छी आपकी गोदियाल साहब के प्रति की हुई टिप्पणी लगी ! शुभकामनायें ! जितना मैं जानता हूँ, गोदियाल साहब, (जितना मैंने उन्हें पढ़ा है के अनुसार) बहुत अच्छे दिल के इंसान हैं ! अन्याय के प्रति उनके लेखों में हमेशा एक आक्रोश होता है ! आशा है दोनों धर्मों की बराबर का सम्मान देते हुए परस्पर संवाद चलता रहेगा ! दोनों पक्षों से कुछ भड़काने वाले कमेन्ट अक्सर देखे जाते हैं आशा है उन्हें तूल नहीं देंगे ! या ऐसी प्रतिक्रियाओं को प्रकाशित करने से ही रोक दें तो शायद अधिक भला हो , मगर यह आपका अधिकार है !
सादर !
@ Boletobindas!आपकी आमद का शुक्रगुज़ार हूं। आपके साथ ही पांचजन्य के पूर्व संपादक श्री तरूण विजय भी आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब के घर जा चुके हैं। दीगर भाइयों को भी आप देख ही चुके हैं। मैं ज्ञान और चरित्र की उस पराकाष्ठा तक अभी नहीं पहुंचा हूं। मैं दूसरों के ब्लॉग मात्र इस कारण से नहीं पढ़ता कि सायबर कैफ़े में अपने काम में ही सारा समय बीत जाता है। फिर भी दूसरों तक पहुंचने की कोशिश करता हूं। आपके ब्लॉग तक भाई शहरोज़ का नाम खींच कर ले गया। उनका नाम एक बिछुड़े भाई से मिलने का ज़रिया बन गया।
आपने लिखा कि जो जिस तरीक़े से ईश्वर की भक्ति में लीन रहना चाहे उसे उसी तरह से लीन रहने देना चाहिये। क़ानून और लोक व्यवस्था की नज़र से यह बात दुरूस्त है लेकिन फिर भी लोगों के सामने यह बात अब प्रकट होनी ही चाहिये कि ईश्वर दुनिया में सुअर,कछुआ,मछली और बौना आदि बनकर नहीं आता और न ही वह भांग पीता है। सृष्टि की उत्पत्ति के लिये उसे अपनी बेटी से बलात्कार करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। ईश्वर के बारे में जो भी आदमी भजन में ऐसी बातें गाता है वह उसकी स्तुति नहीं वरन् निन्दा करता है। इस कारण उसे कोई पुण्य मिलने वाला नहीं है , हां उसके खाते में यह पापकर्म के कॉलम में ज़रूर लिखा जायेगा। लोग मुझसे नाराज़ हो जायेंगे, मुझे गालियां देंगे, मेरे दुश्मन बन जाएंगे, यह सोचकर मैं अपने भाइयों को सही बात से अन्जान नहीं रख सकता। एक समय आयेगा जब वे मेरे प्रेम को पहचानेंगे और उसकी क़द्र करेंगे।
आपने मतभेद होने की बात कही है , मैं खुद जनाब तारिक़ भाई के सभी विचारों को समझ नहीं पाया हूं और जब समझा ही नहीं हूं तो सहमत ही कैसे होता!
जब मुस्लिम भारत में दाखि़ल हुए तो भारत बेशुमार टुकड़ों में बंटा हुआ था, यह एक हक़ीक़त है। मैंने इसी का ज़िक्र किया है। महाभारत नाम का कोई छोटा मोटा युद्ध ज़रूर हुआ, मानता हूं लेकिन इतिहास किसी ऐसे युद्ध का ज़िक्र नहीं करता जिसमें 1 अरब 66 करोड़ लोग मारे गये हों।
बहरहाल महाभारत के युद्ध से सीखने की बात तो यह थी कि युद्ध से कभी कल्याण नहीं होता चाहे उसे श्रीकृष्ण जी के नेतृत्व में ही क्यों न लड़ा जाये।
अब करने का काम यह है कि भारत को विश्व का सिरमौर बनाने के लिये आपसी बैर भाव मिटाना होगा। सती प्रथा की तरह ही मूर्ति पूजा को भी छोड़ना होगा। किसी भी मुजरिम को या ज़रूरतमंद को हिन्दू मुस्लिम के नज़रिये से नहीं बल्कि न्याय की दृष्टि से देखना होगा। ठीक ऐसे ही ताज़िया निकालना, बारावफ़ात का जुलूस निकालना, कुरआन की तालीम के खि़लाफ़ जाकर तलाक़ देना या हलाला करना, महापुरूषों के नाम की आड़ लेकर देवदासियां बनाना, रासलीलाएं खेलना, सन्यास ले लेना, नंगे घूमना, शाही स्नान के नाम पर आतंक का नंगा नाच करना, तंत्र मंत्र के नाम पर मासूमों की बलि देना वग़ैरह कुरीतियों को हिन्दू मुस्लिम के ख़ाने में रखे बिना विचार करना होगा। जो कल्याणकारी है वही धर्म है । सूद लेना धर्म नहीं हो सकता। शोषण न कभी पहले धर्म था और न ही आज है। दान और ज़कात ही पहले भी धर्म था और आज भी है। आपसे आपके ऋषि मनु का सही जीवन चरित्र और आदेश निर्देश खोये जा चुके हैं , वे कुरआन में आज भी सुरक्षित हैं। अपने ही ऋषि के मार्ग को अपनाने से आखि़र संकोच क्यों ?
blogvani behaviour 46 पाठक, +8पसंद 19 कमेंटस फिर भी हाट(x) , डूब मर ब्लागवाणी लौटा भर पानी ने मिले तो बता, तुझे भेजा जाये
नाईस कमेँट
तुम ज़माने मे बुरे हो ज़ाहिद कोई बकता है तो बक लेने दो
ब्लोगवाणी , तू है बेईमानो की नानी , लगा ले तेल पी ले पानी .
मुस्लिम दुश्मन पोस्ट को रखे दोस्त और सच के साथ करे तू कारस्तानी .
अनवर भाई, मेरे ख्याल में दरगाहों पर जाना, ताजियादारी करना या बारावफात का जुलूस उठाना एक नजरिये से सही है और दूसरे नजरिये से गलत. अगर मकसद इबादत का है यानी उस मजारवाले की इबादत या ताजिये की इबादत, फिर तो यह हराम हो गया, क्योंकि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं. लेकिन अगर हम उन बुजुर्गों की ताजीम में, उनकी याद में यह कर रहे हैं तो फिर ठीक है. और इसके पीछे एक मकसद भी है. क्योंकि ऐसे प्रोग्राम्स में हर धर्म के लोग आते हैं, और जब उन्हें मालूम होता है की ये बुज़ुर्ग इस्लाम धर्म को मानने वाले थे तो उनके जीवन के बारे में जानने की उनमें जिज्ञासा पैदा होती है और यहाँ से उन्हें इस्लाम की सही तालीमात की खबर होती है, वरना हर्फ़...जैसे लोग इस्लाम की बदनामी ही करवाया करते हैं. शायद उर्स वगैरह का मकसद भी यही था. खराबी तब पैदा होती है जब इसमें गलत बातें शामिल हो जाती हैं. जैसे नाच गाना, किसी को तकलीफ पहुंचाना या अपने जुलूस के लिए किसी का रास्ता रोक देना वगैरह.
Blogvani = Sanghvani
मैं चुल्लू भर पानी की जगह आज ब्लागवाणी को लौटा भेज रहा था, लेकिन आपकी पोस्ट तो HOT में ले आयी, फिर सही, लौटा तैयार रखना पडेगा, इसका चुल्लू भर पानी में काम नहीं चलेगा
जिस इनसान के अन्दर ईमान की कैफ़ियत होगी उसके अन्दर विनम्रता भी ज़रूर होगी।
बेशक... और बहुत ही बेहतरीन तरीके से कही गई पोस्ट...
@Dr. Ayaz ahmad
बैसे हमने आपकी टिप्णी का जबाब दे दिया है यहां भी लिख रहे हैं। क्योंकि आपने हमारी पोस्त का जिकर इस बलाग पर किया है बरना हम हर वक्त छदम तरीके से भारतीय संस्कृति का अपमान करने वाले अनबर जमाल जैसे लोगों को कष्ट नहीं देते अपनी टिप्णियों को मिटाने का।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वो पोस्ट हमने पूरी तरह से कैद हिन्दू-सिखों पर अमानवीय अत्याचार करने वाले मुसलमानों व उनके समर्थकों को सम्बोधित की थी न कि खुद को भारतीय मानने वाले मुसलमानों को।
पर जब अपाने अलगाववाद का राग छेड़ ही दिया तो हमारा जबबा भी पढ़ लो।
अयाज एहमद जी जगह-जगह बम विसफोट तुम करो,बन्देमातरम का विरोध तुम करो,जनशंख्या निती का विरोध तुम करो ,हिन्दूओं के आस्था के प्रतीकों का अपमान तुम करो,आतंकवादियों को शरण तुम दो,कशमीरघाटी में छोटे-छोटे बच्चों को हलाल तुम करो,संविधान का विरोध तुम करो ,जिस पतर में खा रहे हो इसी में छेद तुम करो,नमक हरामी और गद्दारी तुम करो ,अलगाववाद को बढ़ाबा तुम दो और हम सिर्फ लोगों को उसकी जानकारी भर दे दें तो आप हम पर नफरत फैलाने का आरोप लगा दो और आप से उमीद भी क्या की जा सकती है।
बैसे Dr. Ayaz ahmad जी हमरा मानना है हिन्दूओं की दयनीय स्थिति के लिए आप जैसे लोगों से कहीं जयादा जिम्मेदार तो धर्मनिरपेक्षता के चोले में छुपे जयचन्द को वसंज वो सेकुलर हिन्दू हैं जिन्हें भारती संस्कृति का हरवक्त अपमान करने वाले बलागों पर जाकर उसका समर्थन करने व वहां टिप्पणी करने का तो वक्त मिल जाता है पर हिन्दूओं पर हो रहे अत्याचारों पर संवेदना वयक्त करने का वक्त व साहस उनके पास नहीं।
पर आप सब एक मुसलमना की बो बात जरूर याद रखना जिसमें उस मुसलमान ने इन सेकुलर गद्दारों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि जो हिन्दू होकर हिन्दूओं के न हुए वो मुसलमानों के क्या खाक होंगे।
अनवर जी अगर आप अपने लेखों में छदम व सीधे रूप से भारतीय संसकृति का अपमान करना छोड़ दें तो आपकी बहुत सी बातें लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं ।
आप इसलाम का प्रचार प्रसार करो कौन रोक रहा है पर हमें ये समझ नहीं आता कि इसलाम का प्रचार प्रसार करने के लिए हिन्दूओं के आस्था के केन्द्रों पर प्रहार करना क्यों जरूरी है?
क्या हिन्दू आस्था के केन्द्रों पर ये प्रहार इस आरोप को ठीक सिद्ध नहीं करता कि इसलाम अपने सिवाय किसी और के अस्तित्व को सवीकार नहीं करता जिसके परिमामस्वारू गैर मुसलमानों के कतल के लिए आतंकवाद पनपता है मदरसों व मस्जिदों में।
अन्त में आपको पूरा हक है हमारी टिप्पणियों को मिटाने का क्योंकि कम से कम आपकी दो टिप्णीयां हमने भी मिटाई थी।
प्यारे भाई सुनील दत्त ! यह नाम ही हमें प्यारा है। इस नाम का आदमी इन्सानियत और भाईचारे के लिये के लिये जाना जाता है। मुसलमानों के प्रति आपका आक्रोश जायज़ ही होगा। मैं मुसलमानों के पक्ष में लड़ने के लिये यहां नहीं बैठा हूं। आपका उददेश्य भारत को सशक्त बनाना मालूम होता है। मेरा मानना है कि भारत के सशक्तिकरण के लिये हमें आपस का बैर भाव ख़त्म करना होगा। मुसलमान भारत की एक बड़ी आबादी हैं, उनके साथ मन मुटाव बढ़ाना धर्म की दृष्टि से तो क्या किसी नीति के अनुसार भी उचित नहीं है।
आपकी यह शिकायत भी दुरूस्त हो सकती है कि मैंने हिन्दुओं की आस्था पर चोट की है। कृपया निशानदेही करें कि कब किस लेख में मैंने ऐसी बात कह दी जो मुझसे पहले किसी ‘प्रातः वन्दनीय‘ हिन्दू महापुरूष ने नहीं कही है ?
प्रमाण मिलते ही मैं आपसे सार्वजनिक रूप से क्षमा मांग लूंगा।
लेकिन अगर वे सभी बातें हिन्दू सुधारकों के मुख से आप पहले ही सुन चुके हैं और उनके क़लम की तहरीरों की शक्ल में भी आप पढ़ चुके हैं और आपने उन्हें महापुरूष का दर्जा दे रखा है तो फिर चाहे आप मुझे महापुरूष का दर्जा तो न दें लेकिन यह तो समझ ही सकते हैं कि मेरा उददेश्य भी अंधविश्वास और पाखण्ड का सफ़ाया करना ही है , जोकि भारत के सशक्तिकरण के लिये आवश्यक है।
मैं एक आम इन्सान हूं , ग़लतियों से पाक नहीं हूं। अपने सुधार के लिये हर समय तैयार हूं। बहुत जल्द मौत मुझे उचक कर ले जायेगी और मालिक के दरबार में ले जाकर खड़ा कर देगी जहां धर्म-कर्म देखा जाता है साम्प्रदायिकता नहीं। उस सर्वशक्तिमान प्रभु के सामने मैं एक निरीह जीव मात्र हूं। मेरे मन का द्वेष और अहंकार मुझे नरक का ही पात्र बनायेगा। मैं डरता हूं अपने मालिक के प्रकोप से और आपको भी उसके आदेश निर्देश सुनाने का मक़सद केवल यही है, आपकी हमदर्दी और ख़ैरख्वाही। आपके पास जो भी ख़ैर और भलाई की बात हो उसे हमें बताएं। अच्छी बातें हरेक से हर समय सीखनी चाहियें। आप भी एक अच्छे लेखक हैं। ईश्वर को साक्षी मानकर लेखन करेंगे तो आपके ओजस-तेजस में भी वृद्धि होगी और कई तरह के दोष भी दूर हो जायेंगे।
आपने इतना समय देकर इतनी सुन्दर टिप्पणियां की हैं। इन्हें मैं मिटाना मुनासिब नहीं समझता, चाहे इनसे मैं असहमत ही क्यों न होऊं।
@ bhai sahapuriya ! It's for you .
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/b/post-preview?token=Bzh9SCkBAAA.Mhn177jkpQWzkwYCdMDZJA.yCEy5y85aQGLssmIuX9x4Q&postId=5383245427380423156&type=POST
anvar tumne likhaa ki
@सती प्रथा की तरह ही मूर्ति पूजा को भी छोड़ना होगा। सन्यास ले लेना, नंगे घूमना, शाही स्नान के नाम पर आतंक का नंगा नाच करना,
Beta anvar teri maain kaa bhosada, saale gadhhar kii aulaad. tune ye kaise likh diya kii mooorti pooja mat karo. Saale tum murdon kii pooja karo. Saale ek KHOONI ALLAH ne pata nahi kitne logo ko marva diya. Allah naam ka koi hai bhii nahi, pagamber ne tum saalo ko daraa ke rakha hain, ki yadi tum meri baat nahii manoge, to marne ke baad main tumhaari maroonga, kaayar kahiin ke
MUSALMAAN chaahe kitne bhii safed rang kaa cholaa pahanle , saale apni aukaat dikha hi deta hain.
Duniya kii Sabse gadhhar dharm MUSALMAAN hain
oopar kii post se tumhaara aslii(musalmaano ) cheharaa nazar aa gaya hain, ki doosre dharm ko galat kaho.
QURAN ka bas ek hi maksad hain , kishi bhii tarah musalmaano mein doosre dharm ke prati nafarat phailana, vahi kaam tum yahaan kar rahe ho, ISLAM ek DHARAM nahi ek ADHARAM, jiskii siksha adharmic hain
@ Anonymous ! सीता मेरी माँ , पार्वती मेरी माँ और आपकी माँ को भी मैं अपनी माँ समान ही मानता हूँ . आपने पैगम्बर साहब के लिए जो कुछ कहा उससे उनकी सच्चाई ही साबित होती है . शैतान अपने मिशन को फ़ना होते देख कर ऐसे ही भड़काया करता है . आपकी कुविचारधारा का अंत हो चुका है .
Post a Comment