सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Monday, August 23, 2010
Submission to God for salvation . समर्पण कीजिए , उद्धार पाईये - Anwer Jamal
हर चीज़ ईश्वर के अधीन है
इस ज़मीन पर अनगिनत लोग आबाद हैं। इनमें वे लोग भी होते हैं जो न तो अक्ल से काम लेते हैं और न ही वक्त रहते अपनी वाजिब ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हैं और इन्हीं लोगों के दरम्यान ऐसे इनसान भी होते हैं जो नज़र आने वाली चीज़ों पर विचार करके नज़र न आने वाली हक़ीकत को अपनी अक्ल से जान जाते हैं। चीज़ों में ग़ौर-फिक्र का अभ्यास उन्हें इस सच्चाई तक पहुँचा देता है कि ज़मीन और आसमान की हर चीज़ पर कोई एक ही अनन्त शक्तिशाली हस्ती कन्ट्रोल किये हुये है।
फिर वे देखते हैं कि आकाश में घूमते हुए सूरज चाँद सितारे हों या खुद ज़मीन हो, समुद में तैरने वाली नौकाएं हों या हवा के रूख़ पर उड़ते हुए बादल हों, बादलों से बरसने वाला पानी हो या पानी से ज़िन्दा होने वाली ज़मीन हो, रात और दिन का हेर फेर हो या ज़मीन पर आबाद जीवों की कोई भी किस्म हो, इनमें से कोई भी च़ीज ऐसी नहीं है कि उसका फ़ायदा इनसान को न पहुँच रहा हो। अगर इनमें से कोई एक भी चीज़ कम होती तो ज़मीन पर इनसान की ज़िन्दगी सम्भव न होती।
उसकी रहमत से है हर चीज़ का वजूद
इन चीज़ों का इन्तेज़ाम न तो खुद इनसानों के किसी लीडर वैज्ञानिक या संत-गुरू ने किया है और न ही खुद इन चीज़ों ने आपस में मशविरा करके यह व्यवस्था बनाई है और फिर यह व्यवस्था इत्तेफ़ाक़ से ख़ुद भी नहीं बन गई है क्योंकि यह सुन्दर व्यवस्था पूरे संतुलन के साथ निरन्तर बनी हुई है जबकि इत्तेफ़ाक़ एक-दो बार हो सकता है लगातार नहीं हो सकता। इस तरह तमाम चीज़ों का संतुलन जहाँ एक ही कुदरत वाले रब का पता देता है वहीं उन चीज़ों की नफ़ाबख्शी यह भी ज़ाहिर करती है कि वह मालिक सबका भला चाहने वाला और सबको नफ़ा पहुँचाने वाला है। वह रब रहमान व रहीम है, न तो उसकी कृपा की कोई हद है और न ही उसकी दया का सिलसिला कभी टूटता है।
ज्ञान की उत्पत्ति प्रेम' से है
इस ‘बोध’ के प्राप्त होते ही इनसान का दिल सच्चे ईमान के नूर से जगमगा उठता है। वह जान लेता है कि इस जगत में वह अनाथ नहीं है। उसका एक रब है जो सारी ताक़तों का मालिक है, जो उपसर हर पल अपनी रहमतों की बारिश करता रहता है। उसका दिल अपने दयालु दाता के प्रेम से इतना भर जाता है कि कोई भी चीज़ उस प्रेम से न तो आगे बढ़ पाती है और न ही उसके बराबर ही पहुँचती है। ‘प्रेम’ के ये ढाई अक्षर उसके ज्ञानचक्षु खोल देते हैं। अब उसे हर चीज़ उसी रूप में नज़र आती है जैसी कि वास्तव में वह होती है।
इनसान की कामयाबी का राज़ क्या है?
हर चीज़ को वह अपने मालिक की मिल्कियत के रूप में देखता है। हर जीव को वह एक ही मालिक का बन्दा जानता है। ऊँच-नीच और भेदभाव की दीवारें उसके लिए ढह जाती हैं। उसके लिए सब बराबर हो जाते है और वह सबके लिए नफ़ाबख्श बन जाता है। प्रेम और ज्ञान की जो दौलत उसके पास होती है वह उसे लोगों में बाँटना अपना फ़र्ज़ समझता है ताकि दूसरे भी अपने जीवन का सच्चा मक़सद समझ लें और अपना समय बर्बाद न करें।
इनसान की हकीकत इनसानियत है। इनसानियत से गिरकर आदमी कभी कामयाब नहीं हो सकता। जब इनसान लालच, नफ़रत, गुस्सा, प्रतिशोध और अहंकार के उन रूपों को धारण करता है जो ‘धारणीय’ नहीं हैं तो वह धर्म से हीन हो जाता है चाहे उसने किसी भी पवित्र माने गये रंग के कपड़े पहन रखे हों या उसकी दाढ़ी-चोटी कितनी ही लम्बी क्यों न हो?
ऐसे ही अगर इनसान नशा, जुआ, व्यभिचार, चोरी, डाका, दंगा-फ़साद और हत्या जैसे न करने लायक़ काम करता है तो वह मानवता का अपराधी बन जाता है। चाहे उसे पब्लिक बहुत बड़ा लीडर या गुरू ही क्यों न मानती हो?
और वह मोटे-मोटे पोथे भी क्यों न बाँचता हो?
जुल्म का दरवाजा कौन खोलता है?
अक्सर लोग ऐसे होते हैं जो अपने चारों तरफ़ मौजूद चीज़ों को देखते ज़रूर हैं लेकिन वे उन चीज़ों के सिर्फ़ ज़ाहिर को देखते हैं। वे एक चीज़ को दूसरी चीज़ से जोड़कर और फिर सारी चीज़ों को एक साथ जोड़कर देखने का कष्ट भी उठाना पसन्द नहीं करते। जिन चीज़ों पर वे क़ब्ज़ा जमा सकते हैं उनपर वे क़ब्ज़ा जमा लेते हैं। उनको अपनी सम्पत्ति और जागीर मानकर दूसरों को उनसे वंचित कर देते हैं और फिर उन वंचितों को भी अपना सेवक और ग़ुलाम बना लेते हैं। उन्हें ज़िल्लत के ऐसे गड्ढे में उतार देते हैं कि फिर उससे वे कभी उबर नहीं पाते। ज्ञान, कौशल और सभ्यता का हर दरवाज़ा, हर झरोखा उन पर सदा के लिए बन्द कर देते हैं।
चीज़ों को उपास्य (माबूद) कौन बनाता है?
कुछ चीजे़ ऐसी भी होती हैं जिनपर उनका बस नहीं चलता लेकिन उनसे पहुँचने वाले नफ़े-नुक्सान से वे प्रभावित होते रहते हैं। ऐसी तमाम चीज़ों को वे अपने आप में खुद ही नफ़ा-नुक्सान पहुँचाने की शक्ति का मालिक मान बैठते हैं। ऐसी हर चीज़ का लाभ उन्हें आकर्षित भी करता है और उनसे पहुँचने वाला नुक्सान उन्हें डरने पर मजबूर भी कर देता है। सूरज, चाँद, सितारे, पेड़, पहाड़, नदियाँ, जल, वायु, अग्नि, पशु-पक्षी, उनका मल-मूत्र और खुद अपने यौनांगों की अनुभूतियाँ उन्हें बताती हैं कि उनके वजूद की पैदाइश और परवरिश इन्हीं पर निर्भर है। जिस ज़मीन पर वे बसते हैं और उसके अन्न-फल को वे खाते हैं उसकी सुन्दरता भी उन्हें मोह लेती है। वे चीज़ों पर रीझ जाते हैं और इन सब उपहारों के दाता को भुला देते हैं।
अपने रब के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव हरेक जीव के अवचेतन ( Subconcious ) में मौजूद होता है। जब आदमी अपने रब को भुला देता है तो फिर उसका यह जज़्बा उनके प्रति प्रकट होता है जिनसे वह सबसे बढ़कर प्रेम करता है। आदमी जिसे भी अपने जीवन का आधार मानकर सबसे ज़्यादा प्रेम करता है वही उसकी श्रद्धा और उसके समर्पण का केन्द्र बन जाता है। यही श्रद्धा, प्रेम और आदर अपने चरम बिन्दु को पहुँचने के बाद पूजा-उपासना के रूप में बदल जाते हैं।
समाज कैसे पथभ्रष्ट होता है?
पूरी श्रद्धा और पूरे समपर्ण का सच्चा हक़दार तो केवल एक ही मालिक है लेकिन जब यह हक़ बनने-बिगड़ने वाली चीजों को इनसान दे बैठता है तो उसका वर्तमान और भविष्य सब कुछ बिगड़ जाता है। जब तक सबका पूज्य एक प्रभु परमेश्वर था सबके मन एक थे सबमें प्रेम, सहयोग और सबके मंगल की भावना थी लेकिन जैसे ही उसे भुलाकर या उसके साथ दूसरों को भी उसके बराबर का दर्जा देे दिया गया तो अब वास्तविक पूज्य के साथ बहुत से फ़र्ज़ी पूज्यों की भीड़ लग गई। जिसको जो भाया वह उसी के गीत गाने लगा और उसे ही शीश नवाने लगा। गोबर-पत्थर से लेकर आग, पानी, नदियाँ और सूरज, चाँद, सितारों की, हर चीज़ की पूजा होने लगी। जिसके क़ब्जे में धरती का जितना हिस्सा था वह उसी का पुजारी बन गया। माता-पिता, आचार्य और जीवनसाथी को भी परमेश्वर का रूप या साक्षात परमेश्वर ही मान लिया गया। जब इतने सारे भी कुछ कम लगे तो फिर मर चुके लोगों की आत्माओं का भी आह्वान किया जाने लगा। जिन्नों और शैतानों की पूजा भी खुलेआम होने लगी। ये भी कम लगे तो अपनी कल्पना से ही नये-नये पूज्य बना लिये और फिर उनकी कवितामय कहानियाँ भी रच डालीं।
परमेश्वर कौन है?
परमेश्वर वह है जो मार्गदर्शन करता है, सद्मार्ग दिखाकर कष्टों को दूर करता है और इनसान को उसके स्वाभाविक इनसानी गुणों से सुशोभित करता है। लेकिन जब इनसान उसका दामन छोड़कर प्रकृति के तत्वों या अपने ही जैसे लोगों को अपना ‘परमपूज्य’ बना लेता है तो या तो वे सिरे से उसका कोई मार्गदर्शन ही नहीं करते या फिर जो लीडर या ढोंगी गुरू कुछ नियम-क़ायदे बनाते भी हैं तो न तो वे नियम इनसान की राजनीति, अर्थ व्यापार, घर-परिवार और अध्यात्म आदि सभी क्षेत्रों में रहनुमाई करते हैं और न ही वे गुरू खुद अपने उपदेशों पर अमल करके ही दिखाते हैं।
अपनी-अपनी ढपली अपना अपना राग
हरेक गुरू का अनुमान-फ़रमान दूसरे गुरू से अलग होता है। किसी का ख़याल है कि ईश्वर, आत्मा और पदार्थ सदा से हंै। किसी ने कहा कि आत्मा और पुद्गल (पदार्थ) ही होते हैं, इस कायनात का कोई क्रिएटर नहीं है। कोई बोला कि आत्मा भी नहीं होती बस पदार्थ ही होता है और किसी ने घोषणा कर दी कि जगत मिथ्या है यहाँ कुछ नहीं है, हर चीज़ नज़र का फ़रेब है।
यही हाल खान-पान का हुआ। किसी ने कहा कि जो खा सको खाओ शाक भी, माँस भी, मुर्दार भी और शराब भी। किसी ने शाकाहार के अलावा सबको तामसिक भोजन घोषित कर दिया और कुछ ने दूध, दही, शहद, अचार और अंजीर भी वर्जित कर दिए। कोई पूरा बदन ढकने लगा तो कोई लंगोट में घूमने लगा और किसी को लंगोट सीना-पहनना भी माया-मोह दिखने लगा। कोई परिवार पालते हुए भक्ति करने को श्रेष्ठ बताता तो कोई घर वालों को छोड़कर जंगल की ओर भाग निकला। कोई विधवा विवाह को पुण्य बताने लगा तो किसी ने विधवा विवाह को पाप और नियोग को पुण्य घोषित कर दिया और किसी ने तो कुंवारे लड़के लड़कियों के मन विवाह और मैथुन से ही फेर दिए। कोई दौलत का पुजारी बन गया और किसी को अपना जीवन भार और जगत निस्सार लगने लगा। जो अपने शरीर को कष्ट देने लगे उन्हें पहुँचा हुआ सिद्ध समझा जाने लगा और उनकी आत्महत्या के लिए मोक्ष और निर्वाण जैसे शब्द गढ़ लिए गये।
जन्म लेकर पछताना क्यों ?
ईश्वर, जीव और कर्तव्य-अकर्तव्य में भारी मतभेद रखने के बावजूद इस बात पर वे सभी एकमत हो गए कि संसार एक यातनागृह है जिसमें जीव पौधों, पशु-पक्षियोंें और मानव रूप में अपने कुकर्मों का दण्ड भोग रहे हैं। हरेक चीज़ पिछले अज्ञात जन्मों की भयंकर पापी है। उन्हें जन्म लेने देने से ही नफ़रत हो गई। किसी को अपने जन्म के पीछे, अपने माँ-बाप की ग़लती नज़र आने लगी और किसी को लगा कि इस गलती का ज़िम्मेदार ईश्वर है। मनुष्य को पैदा करके वह पछताया ज़रूर होगा। ज्ञान, कर्म, भक्ति का निचोड़ यह निकाला गया कि जैसे भी हो सके खुद को मिटा डालो।
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
ऐसे सभी लोग खुद को और दूसरों को दुष्ट पापी मानकर मनुष्य जन्म का उद्देश्य और उसकी गरिमा जानने से महरूम रह गये। उनके दिलों में दया, करूणा और उपकार की भावनाएं कमज़ोर पड़ गईं। जिसका नतीजा शोषण और अन्याय के रूप में प्रकट होना लाज़िमी था। कुछ लोग यह दावा लेकर भी सामने आये कि वे ईश्वर का अंश-वंश और रूप हैं। उनकी ईश्वर से सैटिंग है। जो उनकी शरण में आयेगा, उनकी सेवा करेगा उसे वे ईश्वर की यातना से बचा लेंगे, या फिर लोगों ने अपने ख्याल से ही किसी महापुरूष के बलिदान के बदले में हरेक पाप माफ़ मान लिया।
पतन के कारणों का निवारण ज़रूरी है
As a whole वे समाज को क्या देकर गये? उन्होंने समाज को इतने सारे मतों में बांट दिया कि समाज की एकता, शांति और उन्नति सब कुछ नष्ट हो गयी। हमारे प्यारे देश भारत महान का विश्व गुरू पद से पतन हो गया। जब तक पतन के कारणों को दूर करके वास्तविक प्रभु परमेश्वर से उपासना और मार्गदर्शन का सम्बन्ध फिर से स्थापित नहीं किया जाएगा तब तक न तो धर्म, कर्म और ज्ञान की प्राप्ति होगी और न ही भारत पुनः विश्व गुरू के पद पर आसीन हो सकता है।
पापनाशक ज्ञान क्या है?
पवित्र कुरआन ही वह ईश्वरीय ज्ञान है जो अज्ञान के तमाम अंधेरों को मिटा डालता है। इसकी एकेश्वरवादी शिक्षा के प्रकाश में चीजें उसी रूप में दिखाई देने लगती हैं जैसी कि हक़ीक़त में वे होती हैं। जिन चीज़ों की हक़ीक़त अक्लमन्द आदमी आज जान लेता है, वही हक़ीक़त मरने के बाद अक्ल से काम न लेने वले अत्याचारी पापी भी जान जाऐंगे कि चीज़ें तो पालन-पोषण का निमित्त भर थीं जिनके ज़रिये पालने वाला केवल एक प्रभु परमेश्वर था। तब दुनिया में लोगों को बहकाने वाले लीडरों और नक़ली गुरूओं की बोलती बन्द हो जाएगी और वे अपने अंधभक्तों से विरक्त हो जाएंगे। उनके अनुयायी भी तमन्ना करेंगे कि काश उन्होंने उनके बहकावे में आकर खून-खराबा और फ़साद न किया होता या काश उन्हें अपनी ग़लती सुधारने के लिए एक बार फिर दुनिया में भेज दिया जाए लेकिन तब उनकी ख्वाहिश बेकार होगी। अपने पापकर्मो का फल भुगतने के लिए उन्हें नरक की आग में सदा के लिए झोंक दिया जाएगा।
उद्धार का अवसर
जो लोग अभी जीवित हैं उनके लिए अभी अवसर है कि वे समय रहते चेत जाएं और खुद को सारी शक्ितयों के स्वामी के अधीन कर दें। उसी से मार्गदर्शन लें। उसकी बताई हुई हदों में रहें। खुद को प्रेम, ज्ञान, दया, न्याय और क्षमा आदि इनसानी गुणों से युक्त करें। सबका भला चाहें। खुद को नकारात्मक सोच से बचायें, निराशा से बचें, भारत और विश्व के बेहतर भविष्य की आशा रखें। मालिक से दुआ भी करें। ज्ञान को फैलाएं, नादानों के व्यंग्य और उपहास को नज़र अन्दाज़ करें। एक वक्त आयेगा जब वे जान लेंगे कि आप वास्तव में उनकी भलाई के लिए ही काम कर रहे थे।
सच्चाई की ओर बढ़ते क़दम
सबका पूज्य प्रभु एक है। वह मालिक आज भी धरती पर फूल खिलाता है, पानी बरसाता है और बच्चे पैदा करता है। इसका मतलब यह है कि वह न तो इनसान से निराश हुआ है और न ही उसने इनसान के लिए अपनी रहमत का दरवाज़ा बन्द किया है। ज्ञान-विज्ञान का दायरा भी लगातार बढ़ रहा है और नई नस्लों की बुद्धिमत्ता का स्तर ( I. Q. ) भी। सांइटिफ़िक एप्रोच बढ़ रही है। लोग जज़्बात के प्रभाव से निकलकर चीज़ों को उनके वास्तविक रूप में समझने का अभ्यास कर रहे हैं।
प्रलय के लक्षण
एक तरफ़ तो यह हो रहा है और दूसरी तरफ़ इनसान के हाथों की कमाई तबाही का रूप धारण कर चुकी है। भूकम्प, सैलाब और तेज़ाबी बारिशें हो रही हैं। वनस्पति और पशु-पक्षियों की नस्लें लुप्त हो रही हैं और बाक़ी पर भी ख़तरा मंडरा रहा है। पहले भी हज़रत नूह अलै0 (महर्षि मनु) के काल में धरती पर जल प्रलय हुई थी और अब फिर होने को तैयार है। पहले भी पापी दुराचारी डूबे थे, वही अब डूबेंगे। पहले भी ईश्वर ने अपने भक्तों की रक्षा की थी। वही ईश्वर अब भी करेगा।
उद्धार का मूल्य है निष्ठा और समर्पण
फै़सले की घड़ी क़रीब आ गयी है। आप भी जल्दी फैसला कर लीजिये कि आप खुद को किन लोगों में शामिल करना चाहते हैं, डूबने वालों में या उद्धार पाने वालों में ?
उद्धार पाने वालों में।
तो फिर अभी सच्चे दिल से खुद को पूरी तरह एक परमेश्वर के प्रति समर्पित कर दीजिये और पूरी निष्ठा और प्रेम से उसी की भक्ति कीजिए, उसी का उपकार मानिए और उसी के गुण गाइये। उसकी दया को आप हर पल अपने साथ पाऐंगे।
इस ज़मीन पर अनगिनत लोग आबाद हैं। इनमें वे लोग भी होते हैं जो न तो अक्ल से काम लेते हैं और न ही वक्त रहते अपनी वाजिब ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हैं और इन्हीं लोगों के दरम्यान ऐसे इनसान भी होते हैं जो नज़र आने वाली चीज़ों पर विचार करके नज़र न आने वाली हक़ीकत को अपनी अक्ल से जान जाते हैं। चीज़ों में ग़ौर-फिक्र का अभ्यास उन्हें इस सच्चाई तक पहुँचा देता है कि ज़मीन और आसमान की हर चीज़ पर कोई एक ही अनन्त शक्तिशाली हस्ती कन्ट्रोल किये हुये है।
फिर वे देखते हैं कि आकाश में घूमते हुए सूरज चाँद सितारे हों या खुद ज़मीन हो, समुद में तैरने वाली नौकाएं हों या हवा के रूख़ पर उड़ते हुए बादल हों, बादलों से बरसने वाला पानी हो या पानी से ज़िन्दा होने वाली ज़मीन हो, रात और दिन का हेर फेर हो या ज़मीन पर आबाद जीवों की कोई भी किस्म हो, इनमें से कोई भी च़ीज ऐसी नहीं है कि उसका फ़ायदा इनसान को न पहुँच रहा हो। अगर इनमें से कोई एक भी चीज़ कम होती तो ज़मीन पर इनसान की ज़िन्दगी सम्भव न होती।
उसकी रहमत से है हर चीज़ का वजूद
इन चीज़ों का इन्तेज़ाम न तो खुद इनसानों के किसी लीडर वैज्ञानिक या संत-गुरू ने किया है और न ही खुद इन चीज़ों ने आपस में मशविरा करके यह व्यवस्था बनाई है और फिर यह व्यवस्था इत्तेफ़ाक़ से ख़ुद भी नहीं बन गई है क्योंकि यह सुन्दर व्यवस्था पूरे संतुलन के साथ निरन्तर बनी हुई है जबकि इत्तेफ़ाक़ एक-दो बार हो सकता है लगातार नहीं हो सकता। इस तरह तमाम चीज़ों का संतुलन जहाँ एक ही कुदरत वाले रब का पता देता है वहीं उन चीज़ों की नफ़ाबख्शी यह भी ज़ाहिर करती है कि वह मालिक सबका भला चाहने वाला और सबको नफ़ा पहुँचाने वाला है। वह रब रहमान व रहीम है, न तो उसकी कृपा की कोई हद है और न ही उसकी दया का सिलसिला कभी टूटता है।
ज्ञान की उत्पत्ति प्रेम' से है
इस ‘बोध’ के प्राप्त होते ही इनसान का दिल सच्चे ईमान के नूर से जगमगा उठता है। वह जान लेता है कि इस जगत में वह अनाथ नहीं है। उसका एक रब है जो सारी ताक़तों का मालिक है, जो उपसर हर पल अपनी रहमतों की बारिश करता रहता है। उसका दिल अपने दयालु दाता के प्रेम से इतना भर जाता है कि कोई भी चीज़ उस प्रेम से न तो आगे बढ़ पाती है और न ही उसके बराबर ही पहुँचती है। ‘प्रेम’ के ये ढाई अक्षर उसके ज्ञानचक्षु खोल देते हैं। अब उसे हर चीज़ उसी रूप में नज़र आती है जैसी कि वास्तव में वह होती है।
इनसान की कामयाबी का राज़ क्या है?
हर चीज़ को वह अपने मालिक की मिल्कियत के रूप में देखता है। हर जीव को वह एक ही मालिक का बन्दा जानता है। ऊँच-नीच और भेदभाव की दीवारें उसके लिए ढह जाती हैं। उसके लिए सब बराबर हो जाते है और वह सबके लिए नफ़ाबख्श बन जाता है। प्रेम और ज्ञान की जो दौलत उसके पास होती है वह उसे लोगों में बाँटना अपना फ़र्ज़ समझता है ताकि दूसरे भी अपने जीवन का सच्चा मक़सद समझ लें और अपना समय बर्बाद न करें।
इनसान की हकीकत इनसानियत है। इनसानियत से गिरकर आदमी कभी कामयाब नहीं हो सकता। जब इनसान लालच, नफ़रत, गुस्सा, प्रतिशोध और अहंकार के उन रूपों को धारण करता है जो ‘धारणीय’ नहीं हैं तो वह धर्म से हीन हो जाता है चाहे उसने किसी भी पवित्र माने गये रंग के कपड़े पहन रखे हों या उसकी दाढ़ी-चोटी कितनी ही लम्बी क्यों न हो?
ऐसे ही अगर इनसान नशा, जुआ, व्यभिचार, चोरी, डाका, दंगा-फ़साद और हत्या जैसे न करने लायक़ काम करता है तो वह मानवता का अपराधी बन जाता है। चाहे उसे पब्लिक बहुत बड़ा लीडर या गुरू ही क्यों न मानती हो?
और वह मोटे-मोटे पोथे भी क्यों न बाँचता हो?
जुल्म का दरवाजा कौन खोलता है?
अक्सर लोग ऐसे होते हैं जो अपने चारों तरफ़ मौजूद चीज़ों को देखते ज़रूर हैं लेकिन वे उन चीज़ों के सिर्फ़ ज़ाहिर को देखते हैं। वे एक चीज़ को दूसरी चीज़ से जोड़कर और फिर सारी चीज़ों को एक साथ जोड़कर देखने का कष्ट भी उठाना पसन्द नहीं करते। जिन चीज़ों पर वे क़ब्ज़ा जमा सकते हैं उनपर वे क़ब्ज़ा जमा लेते हैं। उनको अपनी सम्पत्ति और जागीर मानकर दूसरों को उनसे वंचित कर देते हैं और फिर उन वंचितों को भी अपना सेवक और ग़ुलाम बना लेते हैं। उन्हें ज़िल्लत के ऐसे गड्ढे में उतार देते हैं कि फिर उससे वे कभी उबर नहीं पाते। ज्ञान, कौशल और सभ्यता का हर दरवाज़ा, हर झरोखा उन पर सदा के लिए बन्द कर देते हैं।
चीज़ों को उपास्य (माबूद) कौन बनाता है?
कुछ चीजे़ ऐसी भी होती हैं जिनपर उनका बस नहीं चलता लेकिन उनसे पहुँचने वाले नफ़े-नुक्सान से वे प्रभावित होते रहते हैं। ऐसी तमाम चीज़ों को वे अपने आप में खुद ही नफ़ा-नुक्सान पहुँचाने की शक्ति का मालिक मान बैठते हैं। ऐसी हर चीज़ का लाभ उन्हें आकर्षित भी करता है और उनसे पहुँचने वाला नुक्सान उन्हें डरने पर मजबूर भी कर देता है। सूरज, चाँद, सितारे, पेड़, पहाड़, नदियाँ, जल, वायु, अग्नि, पशु-पक्षी, उनका मल-मूत्र और खुद अपने यौनांगों की अनुभूतियाँ उन्हें बताती हैं कि उनके वजूद की पैदाइश और परवरिश इन्हीं पर निर्भर है। जिस ज़मीन पर वे बसते हैं और उसके अन्न-फल को वे खाते हैं उसकी सुन्दरता भी उन्हें मोह लेती है। वे चीज़ों पर रीझ जाते हैं और इन सब उपहारों के दाता को भुला देते हैं।
अपने रब के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव हरेक जीव के अवचेतन ( Subconcious ) में मौजूद होता है। जब आदमी अपने रब को भुला देता है तो फिर उसका यह जज़्बा उनके प्रति प्रकट होता है जिनसे वह सबसे बढ़कर प्रेम करता है। आदमी जिसे भी अपने जीवन का आधार मानकर सबसे ज़्यादा प्रेम करता है वही उसकी श्रद्धा और उसके समर्पण का केन्द्र बन जाता है। यही श्रद्धा, प्रेम और आदर अपने चरम बिन्दु को पहुँचने के बाद पूजा-उपासना के रूप में बदल जाते हैं।
समाज कैसे पथभ्रष्ट होता है?
पूरी श्रद्धा और पूरे समपर्ण का सच्चा हक़दार तो केवल एक ही मालिक है लेकिन जब यह हक़ बनने-बिगड़ने वाली चीजों को इनसान दे बैठता है तो उसका वर्तमान और भविष्य सब कुछ बिगड़ जाता है। जब तक सबका पूज्य एक प्रभु परमेश्वर था सबके मन एक थे सबमें प्रेम, सहयोग और सबके मंगल की भावना थी लेकिन जैसे ही उसे भुलाकर या उसके साथ दूसरों को भी उसके बराबर का दर्जा देे दिया गया तो अब वास्तविक पूज्य के साथ बहुत से फ़र्ज़ी पूज्यों की भीड़ लग गई। जिसको जो भाया वह उसी के गीत गाने लगा और उसे ही शीश नवाने लगा। गोबर-पत्थर से लेकर आग, पानी, नदियाँ और सूरज, चाँद, सितारों की, हर चीज़ की पूजा होने लगी। जिसके क़ब्जे में धरती का जितना हिस्सा था वह उसी का पुजारी बन गया। माता-पिता, आचार्य और जीवनसाथी को भी परमेश्वर का रूप या साक्षात परमेश्वर ही मान लिया गया। जब इतने सारे भी कुछ कम लगे तो फिर मर चुके लोगों की आत्माओं का भी आह्वान किया जाने लगा। जिन्नों और शैतानों की पूजा भी खुलेआम होने लगी। ये भी कम लगे तो अपनी कल्पना से ही नये-नये पूज्य बना लिये और फिर उनकी कवितामय कहानियाँ भी रच डालीं।
परमेश्वर कौन है?
परमेश्वर वह है जो मार्गदर्शन करता है, सद्मार्ग दिखाकर कष्टों को दूर करता है और इनसान को उसके स्वाभाविक इनसानी गुणों से सुशोभित करता है। लेकिन जब इनसान उसका दामन छोड़कर प्रकृति के तत्वों या अपने ही जैसे लोगों को अपना ‘परमपूज्य’ बना लेता है तो या तो वे सिरे से उसका कोई मार्गदर्शन ही नहीं करते या फिर जो लीडर या ढोंगी गुरू कुछ नियम-क़ायदे बनाते भी हैं तो न तो वे नियम इनसान की राजनीति, अर्थ व्यापार, घर-परिवार और अध्यात्म आदि सभी क्षेत्रों में रहनुमाई करते हैं और न ही वे गुरू खुद अपने उपदेशों पर अमल करके ही दिखाते हैं।
अपनी-अपनी ढपली अपना अपना राग
हरेक गुरू का अनुमान-फ़रमान दूसरे गुरू से अलग होता है। किसी का ख़याल है कि ईश्वर, आत्मा और पदार्थ सदा से हंै। किसी ने कहा कि आत्मा और पुद्गल (पदार्थ) ही होते हैं, इस कायनात का कोई क्रिएटर नहीं है। कोई बोला कि आत्मा भी नहीं होती बस पदार्थ ही होता है और किसी ने घोषणा कर दी कि जगत मिथ्या है यहाँ कुछ नहीं है, हर चीज़ नज़र का फ़रेब है।
यही हाल खान-पान का हुआ। किसी ने कहा कि जो खा सको खाओ शाक भी, माँस भी, मुर्दार भी और शराब भी। किसी ने शाकाहार के अलावा सबको तामसिक भोजन घोषित कर दिया और कुछ ने दूध, दही, शहद, अचार और अंजीर भी वर्जित कर दिए। कोई पूरा बदन ढकने लगा तो कोई लंगोट में घूमने लगा और किसी को लंगोट सीना-पहनना भी माया-मोह दिखने लगा। कोई परिवार पालते हुए भक्ति करने को श्रेष्ठ बताता तो कोई घर वालों को छोड़कर जंगल की ओर भाग निकला। कोई विधवा विवाह को पुण्य बताने लगा तो किसी ने विधवा विवाह को पाप और नियोग को पुण्य घोषित कर दिया और किसी ने तो कुंवारे लड़के लड़कियों के मन विवाह और मैथुन से ही फेर दिए। कोई दौलत का पुजारी बन गया और किसी को अपना जीवन भार और जगत निस्सार लगने लगा। जो अपने शरीर को कष्ट देने लगे उन्हें पहुँचा हुआ सिद्ध समझा जाने लगा और उनकी आत्महत्या के लिए मोक्ष और निर्वाण जैसे शब्द गढ़ लिए गये।
जन्म लेकर पछताना क्यों ?
ईश्वर, जीव और कर्तव्य-अकर्तव्य में भारी मतभेद रखने के बावजूद इस बात पर वे सभी एकमत हो गए कि संसार एक यातनागृह है जिसमें जीव पौधों, पशु-पक्षियोंें और मानव रूप में अपने कुकर्मों का दण्ड भोग रहे हैं। हरेक चीज़ पिछले अज्ञात जन्मों की भयंकर पापी है। उन्हें जन्म लेने देने से ही नफ़रत हो गई। किसी को अपने जन्म के पीछे, अपने माँ-बाप की ग़लती नज़र आने लगी और किसी को लगा कि इस गलती का ज़िम्मेदार ईश्वर है। मनुष्य को पैदा करके वह पछताया ज़रूर होगा। ज्ञान, कर्म, भक्ति का निचोड़ यह निकाला गया कि जैसे भी हो सके खुद को मिटा डालो।
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
ऐसे सभी लोग खुद को और दूसरों को दुष्ट पापी मानकर मनुष्य जन्म का उद्देश्य और उसकी गरिमा जानने से महरूम रह गये। उनके दिलों में दया, करूणा और उपकार की भावनाएं कमज़ोर पड़ गईं। जिसका नतीजा शोषण और अन्याय के रूप में प्रकट होना लाज़िमी था। कुछ लोग यह दावा लेकर भी सामने आये कि वे ईश्वर का अंश-वंश और रूप हैं। उनकी ईश्वर से सैटिंग है। जो उनकी शरण में आयेगा, उनकी सेवा करेगा उसे वे ईश्वर की यातना से बचा लेंगे, या फिर लोगों ने अपने ख्याल से ही किसी महापुरूष के बलिदान के बदले में हरेक पाप माफ़ मान लिया।
पतन के कारणों का निवारण ज़रूरी है
As a whole वे समाज को क्या देकर गये? उन्होंने समाज को इतने सारे मतों में बांट दिया कि समाज की एकता, शांति और उन्नति सब कुछ नष्ट हो गयी। हमारे प्यारे देश भारत महान का विश्व गुरू पद से पतन हो गया। जब तक पतन के कारणों को दूर करके वास्तविक प्रभु परमेश्वर से उपासना और मार्गदर्शन का सम्बन्ध फिर से स्थापित नहीं किया जाएगा तब तक न तो धर्म, कर्म और ज्ञान की प्राप्ति होगी और न ही भारत पुनः विश्व गुरू के पद पर आसीन हो सकता है।
पापनाशक ज्ञान क्या है?
पवित्र कुरआन ही वह ईश्वरीय ज्ञान है जो अज्ञान के तमाम अंधेरों को मिटा डालता है। इसकी एकेश्वरवादी शिक्षा के प्रकाश में चीजें उसी रूप में दिखाई देने लगती हैं जैसी कि हक़ीक़त में वे होती हैं। जिन चीज़ों की हक़ीक़त अक्लमन्द आदमी आज जान लेता है, वही हक़ीक़त मरने के बाद अक्ल से काम न लेने वले अत्याचारी पापी भी जान जाऐंगे कि चीज़ें तो पालन-पोषण का निमित्त भर थीं जिनके ज़रिये पालने वाला केवल एक प्रभु परमेश्वर था। तब दुनिया में लोगों को बहकाने वाले लीडरों और नक़ली गुरूओं की बोलती बन्द हो जाएगी और वे अपने अंधभक्तों से विरक्त हो जाएंगे। उनके अनुयायी भी तमन्ना करेंगे कि काश उन्होंने उनके बहकावे में आकर खून-खराबा और फ़साद न किया होता या काश उन्हें अपनी ग़लती सुधारने के लिए एक बार फिर दुनिया में भेज दिया जाए लेकिन तब उनकी ख्वाहिश बेकार होगी। अपने पापकर्मो का फल भुगतने के लिए उन्हें नरक की आग में सदा के लिए झोंक दिया जाएगा।
उद्धार का अवसर
जो लोग अभी जीवित हैं उनके लिए अभी अवसर है कि वे समय रहते चेत जाएं और खुद को सारी शक्ितयों के स्वामी के अधीन कर दें। उसी से मार्गदर्शन लें। उसकी बताई हुई हदों में रहें। खुद को प्रेम, ज्ञान, दया, न्याय और क्षमा आदि इनसानी गुणों से युक्त करें। सबका भला चाहें। खुद को नकारात्मक सोच से बचायें, निराशा से बचें, भारत और विश्व के बेहतर भविष्य की आशा रखें। मालिक से दुआ भी करें। ज्ञान को फैलाएं, नादानों के व्यंग्य और उपहास को नज़र अन्दाज़ करें। एक वक्त आयेगा जब वे जान लेंगे कि आप वास्तव में उनकी भलाई के लिए ही काम कर रहे थे।
सच्चाई की ओर बढ़ते क़दम
सबका पूज्य प्रभु एक है। वह मालिक आज भी धरती पर फूल खिलाता है, पानी बरसाता है और बच्चे पैदा करता है। इसका मतलब यह है कि वह न तो इनसान से निराश हुआ है और न ही उसने इनसान के लिए अपनी रहमत का दरवाज़ा बन्द किया है। ज्ञान-विज्ञान का दायरा भी लगातार बढ़ रहा है और नई नस्लों की बुद्धिमत्ता का स्तर ( I. Q. ) भी। सांइटिफ़िक एप्रोच बढ़ रही है। लोग जज़्बात के प्रभाव से निकलकर चीज़ों को उनके वास्तविक रूप में समझने का अभ्यास कर रहे हैं।
प्रलय के लक्षण
एक तरफ़ तो यह हो रहा है और दूसरी तरफ़ इनसान के हाथों की कमाई तबाही का रूप धारण कर चुकी है। भूकम्प, सैलाब और तेज़ाबी बारिशें हो रही हैं। वनस्पति और पशु-पक्षियों की नस्लें लुप्त हो रही हैं और बाक़ी पर भी ख़तरा मंडरा रहा है। पहले भी हज़रत नूह अलै0 (महर्षि मनु) के काल में धरती पर जल प्रलय हुई थी और अब फिर होने को तैयार है। पहले भी पापी दुराचारी डूबे थे, वही अब डूबेंगे। पहले भी ईश्वर ने अपने भक्तों की रक्षा की थी। वही ईश्वर अब भी करेगा।
उद्धार का मूल्य है निष्ठा और समर्पण
फै़सले की घड़ी क़रीब आ गयी है। आप भी जल्दी फैसला कर लीजिये कि आप खुद को किन लोगों में शामिल करना चाहते हैं, डूबने वालों में या उद्धार पाने वालों में ?
उद्धार पाने वालों में।
तो फिर अभी सच्चे दिल से खुद को पूरी तरह एक परमेश्वर के प्रति समर्पित कर दीजिये और पूरी निष्ठा और प्रेम से उसी की भक्ति कीजिए, उसी का उपकार मानिए और उसी के गुण गाइये। उसकी दया को आप हर पल अपने साथ पाऐंगे।
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