सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, October 15, 2013
क़ुरबानी, एक सनातन परम्परा kurbani aur haj
बक़रीद के अवसर पर हमारे सब पाठकों और ग़ैर पाठकों को बहुत बहुत शुभकामनाएं!
हमारे ब्लॉग के पाठक जानते ही हैं कि हमारे आदरणीय आर्यसमाजी भाई विजय कुमार सिंघल जी ने हमें वैदिक धर्म में वापस आने का न्यौता दिया था। इस पर हमने उनसे पूछा था कि
हमारे ब्लॉग के पाठक जानते ही हैं कि हमारे आदरणीय आर्यसमाजी भाई विजय कुमार सिंघल जी ने हमें वैदिक धर्म में वापस आने का न्यौता दिया था। इस पर हमने उनसे पूछा था कि
‘देश की शांति में बौद्धों और जैनियों के योगदान’ नामक पोस्ट पर भी चर्चा कर चुके हैं। हमारी दूसरी पोस्ट्स की तरह यह पोस्ट भी नवभारत टाइम्स के सुपर हिट पोस्ट और सबसे चर्चित पोस्ट का मक़ाम पा चुकी है। इस पोस्ट पर दिनांक 14 अक्तूबर 2013 को आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी ने एक कमेंट करते हुए कहा है-
डा. जमाल साहब, यह देखलर खुशी होती है कि आपको जैन और बौद्ध धर्मों के प्रति इतना सम्मान है. अब कृपया इनके मुख्य सिद्धांत अहिंसा का पालन करे और कराएं. बकरीद पर लाखों बकरो की जान बख्शें. जो कुर्बानी करना चाहे कद्दू या लौकी की कुर्बानी करें. अगर हज़रत इब्राहीम की परम्परा का पूरी तरह पालन करना है तो अपने-अपने बेटे की कुर्बानी करें. इससे बाप-बेटे दोनों सीधे जन्नत में जायेंगे.
धन्यवाद.
इसके जवाब में हमने उनसे विनम्रतापूर्वक यह निवेदन किया है-
आदरणीय विजय जी! आप तो हमारे द्वारा दिया गया सत्यार्थप्रकाश का हवाला देखकर अपने ब्लॉग पर जैन मूर्तियों के तोड़े जाने और शंकराचार्य द्वारा जैन मंदिरों में वेदों की पाठशाला खोले जाने को सही भी ठहरा चुके हैं और उसे समाज सेवा भी बता चुके हैं।
आप जानते ही हैं कि शंकराचार्य वेदों में पशु की बलि का विधान मानते हैं। वे जैनियों के मंदिरों में पशुबलि का पाठ आज तक पढ़ाते आ रहे हैं और आप इसे समाज सेवा ठहरा ही चुके हैं। अब आप हमसे कह रहे हैं कि हम समाज सेवा न करें ?
यह क्या बात हुई कि शंकराचार्य तो जैन मंदिर को समाज सेवा के काम में लाएं और हम अपने घर को भी समाज सेवा के काम में न लाएं।
ग़रीब ज़रूरतमंद लोगों को आज रोटी की ही नहीं बल्कि उत्तम क्वालिटी के प्रोटीन की भी सख्त ज़रूरत है। यज्ञ में पशुबलि के माध्यम से हमारे ऋषियों ने लोगों की इसी आवश्यकता को पूरा करके बड़ी समाज सेवा की है। इस विषय में यजुर्वेद का 23वां व 24वां अध्याय पढ़ें।
आप भी समाज सेवा की यह रीत अपना लें तो अच्छा है।
शुभकामनाएं।
आदरणीय विजय सिंघल जी का कमेंट पढ़कर हम यह सोचते रहे कि अज्ञानता का कैसा घोर अन्धकार लोगों की बुद्धियों पर छा गया है कि ख़ुद तो धर्म की सनातन वैदिक परम्परा का पालन करते ही नहीं हैं और जो दूसरे लोग करते हैं तो उन पर वैसे ही व्यंग्य करते हैं जैसे कि पहले कभी बौद्ध, जैन और नास्तिक वैदिक यज्ञों पर करते थे। वेदों में आस्था रखने वालों कर्म नास्तिकों के समान होने का कारण केवल इतिहास और परम्परा से ही नहीं बल्कि वेदों से भी अन्जान होना है। विजय सिंघल जी का तख़ल्लुस ‘अन्जान’ ही है। सिर्फ़ आदरणीय विजय सिंघल साहब ही नहीं बल्कि उन जैसे करोड़ों लोग वेदों के सत्य से अन्जान हैं।
वे जान ही नहीं पाए कि ऋषि वास्तव में कितने महान हैं और उन्होंने कितनी महान ऋचाओं की रचना की है?
वेद की ऋचाओं में अद्भुत ज्ञान है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने आज यह पता लगाया है कि इनसान की हेल्थ के लिए बेलेंस्ड डाइट की ज़रूरत है और बेलेंस्ड डाइट में मुर्ग़ा-मछली आदि होना बहुत ज़रूरी है। प्रोटीन के महत्व को हमारे ऋषियों ने प्राचीन काल में ही जान लिया था। इस महान ज्ञान को वह वेदों में हमारे लिए छोड़कर गए हैं।
हमारे महान ऋषियों ने केवल मौखिक ज्ञान ही नहीं दिया बल्कि यज के रूप में एक ऐसी परम्परा भी दी। जिससे आर्यों का कल्याण हो। यज में होने वाली पशुबलि ने आर्यों को महान शक्ति से पूर्ण किया।
कालान्तर में यज के रूप बदलते चले गए और वे लगातार जटिल होते चले गए। इसी के साथ ब्राह्मण वर्ग का एकछत्र राज्य हो गया और वे निरंकुश हो गए। उनमें अच्छे ब्राह्मण भी थे लेकिन वे कम रह गए थे। बौद्ध, जैन और चारवाक आदि ने यज्ञों मे पशुबलि का विरोध किया और जनसमर्थन उनके पक्ष में हो गया। ब्राह्मणों को यज्ञ और पशुबलि बंद करनी पड़ी। धार्मिक रीति रिवाजों में हेर फेर का अंजाम यही होता है। जब तक धर्म की रीति को बिना हेर फेर के संपन्न किया जाता रहा, तब तक जनता यज और बलि के समर्थन में ही रही।
यजुर्वेद के 25वें अध्याय के मंत्रों में भी घोड़े की बलि का वर्णन है। इस अध्याय के पहले मंत्र में घोड़े के दांतों से शाद देवता को, दंतमूल से अवका देवता को, दांतों की पछाड़ियों से मृद देवता को, दाढ़ों से तेग देवता को, तालु से आवक्रन्द देवता को, जिव्हा के अग्र भाग द्वारा सरस्वती को व इसी प्रकार घोड़े के अलग अलग अंगों के द्वारा अलग अलग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने की बात कही गई है।
यह पूरा अध्याय तो यहां लिखना संभव नहीं है। जिनके पास वेद हों, वे वेद में देख सकते हैं। एक मंत्र का अनुवाद यहां दिया जा रहा है-
‘वनिष्ठु से पूषा देवता को, स्थूल गुद से आंध्र सर्पों को, आंत से विह्रुत को, वस्ति से जल को, अण्ड से वृषण को, मेढ से वाजी को, वीर्य से अपत्य को पित्त से चाष देवता को, तृतीय भाग से प्रदरों को और शाकपिण्ड से कूष्मों को प्रसन्न करता हूं।’
-यजुर्वेद 25/7
यज की परम्परा को हज में आज भी देखा जा सकता है। मक्का में पशुओं की बलि बिना किसी बड़े तामझाम के ठीक वैसे ही दी जाती है जैसे कि आदिकाल में आर्य ऋषि वहां जाकर दिया करते थे। मक्का और काबा से आर्य जाति का बहुत पुराना संबंध है। हज में पशुबलि होती है और उसका मांस ग़रीब देशों को पैक करके भेज दिया जाता है।
बक़रीद के मौक़े पर भी जानवरों की क़ुरबानी होती है। क़ुरबानी का एक तिहाई गोश्त ग़रीब ज़रूरतमंदों को बांट दिया जाता है और एक तिहाई दोस्तों और रिश्तेदारों में और एक तिहाई अपने लिए रख लिया जाता है।
अब समय आ गया है कि वैदिक धर्म के लोग ऋषियों की प्राचीन परम्परा को प्राचीन रीति से ही मनाएं।
धर्म की प्राचीन परम्पराओं को प्राचीन रीति से ही मनाया जाए तो हिन्दू और मुसलमानों को एक होते देर नहीं लगेगी। इस एकता से उस महान शक्ति का उदय होगा, जिसकी कल्पना भी मुश्किल है। यह एकता केवल पशुओं की बलि से ही संभव नहीं है बल्कि इसके लिए हमें अपने अहंकार और अपनी पाश्विक प्रवृत्तियों का बलिदान करना होगा। पशुबलि का एक मक़सद यह भी है बल्कि यही मक़सद पशुबलि का सबसे बड़ा मक़सद है। अपने अहंकार और पशु प्रवृत्ति का दान करने वाला वास्तव में ही आत्म बलिदान करता है। ऐसा ही मनुष्य दुष्टों से धर्म और सत्य की रक्षा कर सकता है।
जिन लोगों ने इस बलिदान को हीन समझा और इसकी निन्दा की। वे अपने दुश्मनों से अपने राज्य की तो क्या अपनी भी रक्षा न कर पाए और सदा के लिए अपने दुश्मनों के ग़ुलाम बनकर रह गए। अपना सब कुछ लुटवा कर भी वे यह न समझ पाए कि अति हर चीज़ की बुरी होती है। अहिंसा की अति भी बुरी होती है। हिंसा के भी रचनात्मक प्रयोग समाज में देखे जा सकते हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि अहिंसा कायरता न बन जाए और हिंसा ज़ुल्म न बन जाए।
यज मे पशुबलि के माध्यम से ऋषियों ने इस अति को संतुलित करके दिखाया है।
धन्यवाद.
इसके जवाब में हमने उनसे विनम्रतापूर्वक यह निवेदन किया है-
आदरणीय विजय जी! आप तो हमारे द्वारा दिया गया सत्यार्थप्रकाश का हवाला देखकर अपने ब्लॉग पर जैन मूर्तियों के तोड़े जाने और शंकराचार्य द्वारा जैन मंदिरों में वेदों की पाठशाला खोले जाने को सही भी ठहरा चुके हैं और उसे समाज सेवा भी बता चुके हैं।
आप जानते ही हैं कि शंकराचार्य वेदों में पशु की बलि का विधान मानते हैं। वे जैनियों के मंदिरों में पशुबलि का पाठ आज तक पढ़ाते आ रहे हैं और आप इसे समाज सेवा ठहरा ही चुके हैं। अब आप हमसे कह रहे हैं कि हम समाज सेवा न करें ?
यह क्या बात हुई कि शंकराचार्य तो जैन मंदिर को समाज सेवा के काम में लाएं और हम अपने घर को भी समाज सेवा के काम में न लाएं।
ग़रीब ज़रूरतमंद लोगों को आज रोटी की ही नहीं बल्कि उत्तम क्वालिटी के प्रोटीन की भी सख्त ज़रूरत है। यज्ञ में पशुबलि के माध्यम से हमारे ऋषियों ने लोगों की इसी आवश्यकता को पूरा करके बड़ी समाज सेवा की है। इस विषय में यजुर्वेद का 23वां व 24वां अध्याय पढ़ें।
आप भी समाज सेवा की यह रीत अपना लें तो अच्छा है।
शुभकामनाएं।
आदरणीय विजय सिंघल जी का कमेंट पढ़कर हम यह सोचते रहे कि अज्ञानता का कैसा घोर अन्धकार लोगों की बुद्धियों पर छा गया है कि ख़ुद तो धर्म की सनातन वैदिक परम्परा का पालन करते ही नहीं हैं और जो दूसरे लोग करते हैं तो उन पर वैसे ही व्यंग्य करते हैं जैसे कि पहले कभी बौद्ध, जैन और नास्तिक वैदिक यज्ञों पर करते थे। वेदों में आस्था रखने वालों कर्म नास्तिकों के समान होने का कारण केवल इतिहास और परम्परा से ही नहीं बल्कि वेदों से भी अन्जान होना है। विजय सिंघल जी का तख़ल्लुस ‘अन्जान’ ही है। सिर्फ़ आदरणीय विजय सिंघल साहब ही नहीं बल्कि उन जैसे करोड़ों लोग वेदों के सत्य से अन्जान हैं।
वे जान ही नहीं पाए कि ऋषि वास्तव में कितने महान हैं और उन्होंने कितनी महान ऋचाओं की रचना की है?
वेद की ऋचाओं में अद्भुत ज्ञान है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने आज यह पता लगाया है कि इनसान की हेल्थ के लिए बेलेंस्ड डाइट की ज़रूरत है और बेलेंस्ड डाइट में मुर्ग़ा-मछली आदि होना बहुत ज़रूरी है। प्रोटीन के महत्व को हमारे ऋषियों ने प्राचीन काल में ही जान लिया था। इस महान ज्ञान को वह वेदों में हमारे लिए छोड़कर गए हैं।
हमारे महान ऋषियों ने केवल मौखिक ज्ञान ही नहीं दिया बल्कि यज के रूप में एक ऐसी परम्परा भी दी। जिससे आर्यों का कल्याण हो। यज में होने वाली पशुबलि ने आर्यों को महान शक्ति से पूर्ण किया।
कालान्तर में यज के रूप बदलते चले गए और वे लगातार जटिल होते चले गए। इसी के साथ ब्राह्मण वर्ग का एकछत्र राज्य हो गया और वे निरंकुश हो गए। उनमें अच्छे ब्राह्मण भी थे लेकिन वे कम रह गए थे। बौद्ध, जैन और चारवाक आदि ने यज्ञों मे पशुबलि का विरोध किया और जनसमर्थन उनके पक्ष में हो गया। ब्राह्मणों को यज्ञ और पशुबलि बंद करनी पड़ी। धार्मिक रीति रिवाजों में हेर फेर का अंजाम यही होता है। जब तक धर्म की रीति को बिना हेर फेर के संपन्न किया जाता रहा, तब तक जनता यज और बलि के समर्थन में ही रही।
यजुर्वेद के 25वें अध्याय के मंत्रों में भी घोड़े की बलि का वर्णन है। इस अध्याय के पहले मंत्र में घोड़े के दांतों से शाद देवता को, दंतमूल से अवका देवता को, दांतों की पछाड़ियों से मृद देवता को, दाढ़ों से तेग देवता को, तालु से आवक्रन्द देवता को, जिव्हा के अग्र भाग द्वारा सरस्वती को व इसी प्रकार घोड़े के अलग अलग अंगों के द्वारा अलग अलग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने की बात कही गई है।
यह पूरा अध्याय तो यहां लिखना संभव नहीं है। जिनके पास वेद हों, वे वेद में देख सकते हैं। एक मंत्र का अनुवाद यहां दिया जा रहा है-
‘वनिष्ठु से पूषा देवता को, स्थूल गुद से आंध्र सर्पों को, आंत से विह्रुत को, वस्ति से जल को, अण्ड से वृषण को, मेढ से वाजी को, वीर्य से अपत्य को पित्त से चाष देवता को, तृतीय भाग से प्रदरों को और शाकपिण्ड से कूष्मों को प्रसन्न करता हूं।’
-यजुर्वेद 25/7
यज की परम्परा को हज में आज भी देखा जा सकता है। मक्का में पशुओं की बलि बिना किसी बड़े तामझाम के ठीक वैसे ही दी जाती है जैसे कि आदिकाल में आर्य ऋषि वहां जाकर दिया करते थे। मक्का और काबा से आर्य जाति का बहुत पुराना संबंध है। हज में पशुबलि होती है और उसका मांस ग़रीब देशों को पैक करके भेज दिया जाता है।
बक़रीद के मौक़े पर भी जानवरों की क़ुरबानी होती है। क़ुरबानी का एक तिहाई गोश्त ग़रीब ज़रूरतमंदों को बांट दिया जाता है और एक तिहाई दोस्तों और रिश्तेदारों में और एक तिहाई अपने लिए रख लिया जाता है।
अब समय आ गया है कि वैदिक धर्म के लोग ऋषियों की प्राचीन परम्परा को प्राचीन रीति से ही मनाएं।
धर्म की प्राचीन परम्पराओं को प्राचीन रीति से ही मनाया जाए तो हिन्दू और मुसलमानों को एक होते देर नहीं लगेगी। इस एकता से उस महान शक्ति का उदय होगा, जिसकी कल्पना भी मुश्किल है। यह एकता केवल पशुओं की बलि से ही संभव नहीं है बल्कि इसके लिए हमें अपने अहंकार और अपनी पाश्विक प्रवृत्तियों का बलिदान करना होगा। पशुबलि का एक मक़सद यह भी है बल्कि यही मक़सद पशुबलि का सबसे बड़ा मक़सद है। अपने अहंकार और पशु प्रवृत्ति का दान करने वाला वास्तव में ही आत्म बलिदान करता है। ऐसा ही मनुष्य दुष्टों से धर्म और सत्य की रक्षा कर सकता है।
जिन लोगों ने इस बलिदान को हीन समझा और इसकी निन्दा की। वे अपने दुश्मनों से अपने राज्य की तो क्या अपनी भी रक्षा न कर पाए और सदा के लिए अपने दुश्मनों के ग़ुलाम बनकर रह गए। अपना सब कुछ लुटवा कर भी वे यह न समझ पाए कि अति हर चीज़ की बुरी होती है। अहिंसा की अति भी बुरी होती है। हिंसा के भी रचनात्मक प्रयोग समाज में देखे जा सकते हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि अहिंसा कायरता न बन जाए और हिंसा ज़ुल्म न बन जाए।
यज मे पशुबलि के माध्यम से ऋषियों ने इस अति को संतुलित करके दिखाया है।
हर साल बक़रीद आती है। इस साल भी आई है। आईये इस बक़रीद के अवसर पर यह संकल्प लें कि हम धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अपने हिंसा और अहिंसा भाव को पशुबलि अर्थात क़ुरबानी के ज़रिये वैसे ही संतुलित करेंगे जैसे कि हमारे पूर्वज ऋषि और पैग़म्बर किया करते थे।
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Silver: 4986
[1]बकरीद की किस बात की शुभकामनाये क्यापशु हत्या नाम पर खून खराबा की शुभकामनाये
[2] अगर पशु हत्या अच्छी होती तो मस्जिदो मे पशु हत्या क्यो नही करते मस्जिद भी पवित्र कहलाती है पशु हत्या भी इस्लाम मे पवित्र है फिर दो पवित्र काम मे इतना भेद भाव क्यो है
[3] मुस्लिम महिलाये व कन्याये भी तो [ ईमान वाली] मुस्लिमकहलाई जाती है,वह क्यो नही गाय भैंस बकरा ऊँट की कुर्बानी देने मे अगुवाई करती है सिर्फ मुस्लिम पुरुष ही हत्या जैसा कार्य करते है?
[4] मुस्लीमबंधु भी इस देश मे अल्पसंख्यक कहलाये जाते है और छोटी सांख्या वाले जैन समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुये,इस देश का मुस्लिम समुदाय क्यो नहीपशु हत्या बंद कर देते है ! एक ओर तो इस्लाम की यह "नारे बाजी" होतीहै की इस्लाम पड़ोसी का दिल मत दुखाओ कहताहै और दूसरी ओर शाकाहरियो के सामने पशुहत्या की जाती है ? जब आप यह कहते है की गरीब देशो मे एक तिहाई मांस भेजा जाता है तब क्यो नही बकरीद के नाम पर वही मांस आप सबमुस्लिम मंगवा लेते ? जब देवबन्द का फ़तवा गाय हत्या हिन्दू भावनाओ के विषय मे आ सकता है तब जैन समुदाय की भावनाओ का खयाल रखकर मुस्लिम समुदाय स्वता पशु हत्या बंद करके कर सकता है.
[5] कुरान की वह आयत बतलाये जिसमे मुस्लिमो को इब्राहीम जी की तरह पशु हत्या की बात कही गयी हो ![
[6] शंकराचार्य जी ने कब जैन मंदिरो मे पशु हत्या की बात की
[7] शंकराचार्य जी ने जैन मत का विरोध कियालेकिन यज्ञो मे पशुहत्या का कब समर्थन किया यह आप साबित करे!
[8] मनुस्मृति के धर्म के 10 लक्षणो मे पशु हत्या का विधान क्यो नही है.,जबकि आप सनातन धर्मका विधान पशु बलि बातला रहे है
[9] महर्षी पतंजलि जी ने भी अपने योगशास्त्र 2/30,32 मे यम नियम की बात की है उसमे अहिंसा का भी नियम है फिर सनातन धर्म मेहिंसा पशु बाकी किबात कैसे है ? आपका पक्ष मजबूत कैसे हुआ
[10] यजुर्वेद 25/7मे भी यज्ञो मे पशु बलि की बात कहाँ है?
[11] दुनिया की आर्थिक समस्या "रोटी" है , न की मांस? आज संसार मांस "भी" खाता है ,लेकिन रोटी को अनदेखा नही करसक्ता
[12] मांस अनाज से बहुत ज्यादा महंगा क्यो है ! कल्पित अल्लाह ने उसको सस्ता,सर्वसुलभ अनाज जैसा "अभी तक" क्यो नही किया?
[13] गरीब को रोटी की जरूरत है मांस की नही, प्रोटीन की नही, चाहे तो गरीबो मे सर्वे करवा लीजिये ! [जारी]
[2] अगर पशु हत्या अच्छी होती तो मस्जिदो मे पशु हत्या क्यो नही करते मस्जिद भी पवित्र कहलाती है पशु हत्या भी इस्लाम मे पवित्र है फिर दो पवित्र काम मे इतना भेद भाव क्यो है
[3] मुस्लिम महिलाये व कन्याये भी तो [ ईमान वाली] मुस्लिमकहलाई जाती है,वह क्यो नही गाय भैंस बकरा ऊँट की कुर्बानी देने मे अगुवाई करती है सिर्फ मुस्लिम पुरुष ही हत्या जैसा कार्य करते है?
[4] मुस्लीमबंधु भी इस देश मे अल्पसंख्यक कहलाये जाते है और छोटी सांख्या वाले जैन समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुये,इस देश का मुस्लिम समुदाय क्यो नहीपशु हत्या बंद कर देते है ! एक ओर तो इस्लाम की यह "नारे बाजी" होतीहै की इस्लाम पड़ोसी का दिल मत दुखाओ कहताहै और दूसरी ओर शाकाहरियो के सामने पशुहत्या की जाती है ? जब आप यह कहते है की गरीब देशो मे एक तिहाई मांस भेजा जाता है तब क्यो नही बकरीद के नाम पर वही मांस आप सबमुस्लिम मंगवा लेते ? जब देवबन्द का फ़तवा गाय हत्या हिन्दू भावनाओ के विषय मे आ सकता है तब जैन समुदाय की भावनाओ का खयाल रखकर मुस्लिम समुदाय स्वता पशु हत्या बंद करके कर सकता है.
[5] कुरान की वह आयत बतलाये जिसमे मुस्लिमो को इब्राहीम जी की तरह पशु हत्या की बात कही गयी हो ![
[6] शंकराचार्य जी ने कब जैन मंदिरो मे पशु हत्या की बात की
[7] शंकराचार्य जी ने जैन मत का विरोध कियालेकिन यज्ञो मे पशुहत्या का कब समर्थन किया यह आप साबित करे!
[8] मनुस्मृति के धर्म के 10 लक्षणो मे पशु हत्या का विधान क्यो नही है.,जबकि आप सनातन धर्मका विधान पशु बलि बातला रहे है
[9] महर्षी पतंजलि जी ने भी अपने योगशास्त्र 2/30,32 मे यम नियम की बात की है उसमे अहिंसा का भी नियम है फिर सनातन धर्म मेहिंसा पशु बाकी किबात कैसे है ? आपका पक्ष मजबूत कैसे हुआ
[10] यजुर्वेद 25/7मे भी यज्ञो मे पशु बलि की बात कहाँ है?
[11] दुनिया की आर्थिक समस्या "रोटी" है , न की मांस? आज संसार मांस "भी" खाता है ,लेकिन रोटी को अनदेखा नही करसक्ता
[12] मांस अनाज से बहुत ज्यादा महंगा क्यो है ! कल्पित अल्लाह ने उसको सस्ता,सर्वसुलभ अनाज जैसा "अभी तक" क्यो नही किया?
[13] गरीब को रोटी की जरूरत है मांस की नही, प्रोटीन की नही, चाहे तो गरीबो मे सर्वे करवा लीजिये ! [जारी]
प्यारे भाई राज हैदराबादी जी!
1. धर्म की परम्परा आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है। यह हर्ष का विषय है। इस बात की बधाई।
2. यह ज़रूरी नहीं है कि जिस काम को मस्जिद में न किया जा सके। वह धर्म का काम नहीं होता। मिसाल के तौर पर पति पत्नी आपस में रिश्ता क़ायम करते हैं। वे यह रिश्ता मस्जिद में क़ायम नहीं कर सकते लेकिन फिर भी उनका कर्म धर्म और पुण्य है।
3. मुस्लिम औरतें भी जानवर हलाल कर सकती हैं लेकिन उनकी ज़िम्मेदारी पकाने पर है। वे अपने काम में ज़्यादा बिज़ी रहती हैं।
4. मुसलमानों को बक़रीद अपने जैन भाईयों और शाकाहारी भाईयों की भावना का ध्यान रखत हुए ही मनाना चाहिए लेकिन दूसरे की भावना का ध्यान रखने का मतलब यह नहीं होता कि अपने रीति रिवाज को त्याग दिया जाए। दूसरों की भावना का ध्यान रखने का ऐसा मतलब तो जैन आचार्य भी नहीं मानते। जैन आचार्यों को पता है कि मुसलमानों में नंगे बदन घूमना अधर्म और पाप माना जाता है लेकिन इसके बावुजूद वे मुसलमानों मुहल्लों से नंगे बदन ही गुज़रते हैं। उन्होंने कभी यह नहीं किया कि वे मुसलमानों की भावना का ध्यान रखते हुए कपड़े पहनकर निकल जाया करते। देवबन्द के आलिमों ने गाय के बजाय दूसरे जानवर की क़ुरबानी करने के लिए कहा है न कि क़ुरबानी को पूरी तरह बन्द करने के लिए।
5. आप सूरा ए कौसर पढ़ लीजिए।
6. शंकराचार्य जी का वेदभाष्य पढ़ लीजिए। आपको पता चल जाएगा कि वह जैन मंदिरों को क़ब्ज़ाने के बाद क्या शिक्षा दिया करते थे।
7. शंकराचार्य जी वैदिक यज्ञों में पशुबलि का समर्थन करते थे। यह बात उनके वेद भाष्य से सिद्ध है। आप उसे पढ़ लीजिए।
8. आप मनुस्मृति के एक श्लोक पर ही क्यों अटक कर रह गए। मनुस्मृति के पांचवे अध्याय में पशुबलिक का विधान देखिए। आपको पूरा ब्यौरा मिल जाएगा।
9. योगशास्त्र की वही बात मानी जाएगी जो कि वेदानुकूल होगी। वैसे भी वेदानुसार की गई हिंसा वास्तव में अहिंसा ही होती है। ऐसा वेद विद्वानों ने कहा है कि वैदिकी हिंसा हिंसा न भवतिः
10. यजुर्वेद 25/7 का अनुवाद आपके सामने है। अगर आप इससे सहमत नहीं हैं तो आप बताईये कि इस मंत्र का सही अनुवाद आपकी नज़र में क्या है? बिना प्रमाण दिए दावा मत कीजिए कि इस मंत्र में पशुबलि नहीं है।
11. दुनिया की समस्या कुपोषण भी है और खाद्यान्न की कमी भी। रोटी के साथ मांस के कॉम्बिनेशन से ये दोनों समस्याएं हल करके हमारे ऋषि पहले ही दिखा चुके हैं।
12. अच्छी नीति के अभाव में मांस महंगा हो गया है और लोगों के पास धन का अभाव।
13. ग़रीबों को संतुलित आहार की और प्रोटीन की ज़रूरत नहीं है। इसे जानने के लिए किसी सर्वे की ज़रूरत नहीं है। संतुलित आहार की ज़रूरत सबको है।
आपका शुक्रिया!
1. धर्म की परम्परा आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है। यह हर्ष का विषय है। इस बात की बधाई।
2. यह ज़रूरी नहीं है कि जिस काम को मस्जिद में न किया जा सके। वह धर्म का काम नहीं होता। मिसाल के तौर पर पति पत्नी आपस में रिश्ता क़ायम करते हैं। वे यह रिश्ता मस्जिद में क़ायम नहीं कर सकते लेकिन फिर भी उनका कर्म धर्म और पुण्य है।
3. मुस्लिम औरतें भी जानवर हलाल कर सकती हैं लेकिन उनकी ज़िम्मेदारी पकाने पर है। वे अपने काम में ज़्यादा बिज़ी रहती हैं।
4. मुसलमानों को बक़रीद अपने जैन भाईयों और शाकाहारी भाईयों की भावना का ध्यान रखत हुए ही मनाना चाहिए लेकिन दूसरे की भावना का ध्यान रखने का मतलब यह नहीं होता कि अपने रीति रिवाज को त्याग दिया जाए। दूसरों की भावना का ध्यान रखने का ऐसा मतलब तो जैन आचार्य भी नहीं मानते। जैन आचार्यों को पता है कि मुसलमानों में नंगे बदन घूमना अधर्म और पाप माना जाता है लेकिन इसके बावुजूद वे मुसलमानों मुहल्लों से नंगे बदन ही गुज़रते हैं। उन्होंने कभी यह नहीं किया कि वे मुसलमानों की भावना का ध्यान रखते हुए कपड़े पहनकर निकल जाया करते। देवबन्द के आलिमों ने गाय के बजाय दूसरे जानवर की क़ुरबानी करने के लिए कहा है न कि क़ुरबानी को पूरी तरह बन्द करने के लिए।
5. आप सूरा ए कौसर पढ़ लीजिए।
6. शंकराचार्य जी का वेदभाष्य पढ़ लीजिए। आपको पता चल जाएगा कि वह जैन मंदिरों को क़ब्ज़ाने के बाद क्या शिक्षा दिया करते थे।
7. शंकराचार्य जी वैदिक यज्ञों में पशुबलि का समर्थन करते थे। यह बात उनके वेद भाष्य से सिद्ध है। आप उसे पढ़ लीजिए।
8. आप मनुस्मृति के एक श्लोक पर ही क्यों अटक कर रह गए। मनुस्मृति के पांचवे अध्याय में पशुबलिक का विधान देखिए। आपको पूरा ब्यौरा मिल जाएगा।
9. योगशास्त्र की वही बात मानी जाएगी जो कि वेदानुकूल होगी। वैसे भी वेदानुसार की गई हिंसा वास्तव में अहिंसा ही होती है। ऐसा वेद विद्वानों ने कहा है कि वैदिकी हिंसा हिंसा न भवतिः
10. यजुर्वेद 25/7 का अनुवाद आपके सामने है। अगर आप इससे सहमत नहीं हैं तो आप बताईये कि इस मंत्र का सही अनुवाद आपकी नज़र में क्या है? बिना प्रमाण दिए दावा मत कीजिए कि इस मंत्र में पशुबलि नहीं है।
11. दुनिया की समस्या कुपोषण भी है और खाद्यान्न की कमी भी। रोटी के साथ मांस के कॉम्बिनेशन से ये दोनों समस्याएं हल करके हमारे ऋषि पहले ही दिखा चुके हैं।
12. अच्छी नीति के अभाव में मांस महंगा हो गया है और लोगों के पास धन का अभाव।
13. ग़रीबों को संतुलित आहार की और प्रोटीन की ज़रूरत नहीं है। इसे जानने के लिए किसी सर्वे की ज़रूरत नहीं है। संतुलित आहार की ज़रूरत सबको है।
आपका शुक्रिया!
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