सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Friday, October 4, 2013

क्या वेद 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हज़ार साल से ज़्यादा पुराने हैं? Vedas

धरती पर मानव का आगमन कब हुआ?
स्वामी दयानंद जी ने सृष्टि का आदि 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 52 हज़ार 9 सौ 76 वर्ष पुराना बताया है और मनुस्मृति को सृष्टि के आदि में होना माना है।
ये दोनों ही बातें ग़लत हैं।
हमारी आकाशगंगा की आयु वैज्ञानिकों के अनुसार 13.2 अरब वर्ष से ज़्यादा है और इससे भी ज़्यादा आयु वाली आकाशगंगाएं सृष्टि में मौजूद हैं। धरती की उम्र भी लगभग 4.54 अरब वर्ष है। वैज्ञानिकों धरती पर 1 अरब वर्ष पहले तक भी किसी मानव सभ्यता का चिन्ह नहीं मिला।
देखिए वैज्ञानिक तथ्यों को प्रदर्षित करता एक चित्र, जिसमें वैज्ञानिकों ने दर्शाया गया है कि एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष पहले धरती पर मनुष्य नहीं पाया जाता था।

 

स्वामी जी सृष्टि की उत्पत्ति का काल जानने में भी असफल रहे
‘चारों वेद सृष्टि के आदि में मिले।’ स्वामी जी ने बिना किसी प्रमाण के केवल यह कल्पना ही नहीं की बल्कि उन्होंने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, अथ वेदोत्पत्तिविषयः, पृष्ठ 16 पर यह भी निश्चित कर दिया कि वेदों और जगत की उत्पत्ति को एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख बावन हज़ार नौ सौ छहत्तर वर्ष हो चुके हैं।
स्वामी जी इस काल गणना को बिल्कुल ठीक बताते हुए कहते हैं-
‘...आर्यों ने एक क्षण और निमेष से लेके एक वर्ष पर्यन्त भी काल की सूक्ष्म और स्थूल संज्ञा बांधी है।’ (ऋग्वेदादिभाष्य., पृष्ठ 17)
‘जो वार्षिक पंचांग बनते जाते हैं इनमें भी मिती से मिती बराबर लिखी चली आती है, इसको अन्यथा कोई नहीं कर सकता।’ (ऋग्वेदादिभाष्य., पृष्ठ 19)
यह बात सृष्टि विज्ञान के बिल्कुल विरूद्ध है।

स्वामी जी ज्योतिष के फलित को ग़लत और उसके गणित को सही माना है। वह ज्योतिष की काल गणना पर विश्वास करके धोखा गए। बाद के वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला कि जगत और मनुष्य की उत्पत्ति के विषय में आर्य ज्योतिषियों की काल गणना बिल्कुल ग़लत है। स्वामी जी कह रहे हैं कि आर्यों ने एक एक क्षण का हिसाब ठीक से सुरक्षित रखा है लेकिन हक़ीक़त यह है कि आर्यों ने सृष्टि की जो काल गणना की है, उसमें 11 अरब वर्ष से ज़्यादा की गड़बड़ है।
वेदों का काल जानने में भी असफल रहे स्वामी जी
सही जानकारी के अभाव में उन्होंने यह कल्पना कर ली कि चारों वेद परमेश्वर की वाणी हैं। परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ में एक एक ऋषि के अंतःकरण में एक एक वेद का प्रकाश किया। अपनी इस कल्पना की पुष्टि में उन्हें कोई प्रमाण न मिला। तब उन्होंने शतपथ ब्राह्मण से एक उद्धरण दिया और उसका अर्थ अपनी कल्पना से यह बनाया-
‘अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेदः सूर्यात्सामवेदः।।शत.।।
प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा इन ऋषियों के आत्मा में एक एक वेद का प्रकाश किया।’ (सत्यार्थप्रकाश, सप्तमसमुल्लास, पृष्ठ 135)
इस श्लोक में ‘प्रथम सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा’ वेद देने की बात नहीं आई है। स्वामी जी ने अपनी कल्पना को इस श्लोक में आरोपित करके यह अर्थ निकाला है। इस श्लोक में चौथे ऋषि अंगिरा को एक वेद मिलने की बात नहीं आई है। यह भी स्वामी जी की कल्पना है।
जो बात इस श्लोक में कही गई है। वह स्वामी जी ने बताई नहीं। इस श्लोक में अग्नि का संबंध ऋग्वेद से, यजुर्वेद का संबंध वायु से और सामवेद का संबंध सूर्य से दर्शाया गया है। यह संबंध स्वामी जी ने अपने अनुवाद या भावार्थ में दर्शाया ही नहीं।
वेदों का सही अर्थ न जानने के कारण स्वामी दयानंद जी यह भी नहीं जान पाए कि वेदों की रचना कब और कैसे हुई ?
हमारा मक़सद स्वामी जी के कामों में कमियां निकालना नहीं है लेकिन हमें वास्तव में पता होना चाहिए कि वेदों की रचना किसने की, कब की और उनकी रचना करने वाले ऋषियों का इतिहास क्या था?

हमारी कोशिश का मक़सद
वेद किसी की बपौती नहीं हैं। वेद सबके हैं। हम वेदों का आदर करते हैं। हम महान सत्कर्मी ऋषियों का भी आदर करते हैं। हम स्वामी दयानन्द जी का भी अनादर नहीं करते। उनके प्रयास से वेद भारत में सबको सुलभ हुए। उनके इस काम की तारीफ़ होनी चाहिए लेकिन उन्होंने वेदों के बारे में जो कुछ समझ लिया है। वह सब सही नहीं है।
उन्हें वेदों के बारे में शोध करने का बहुत ज़्यादा समय भी नहीं मिल पाया। जो जानकारियां आज हमें उपलब्ध हैं। वह उन्हें अपने ज़माने में सुलभ नहीं थीं। उनकी मेहनत को सामने रखते हुए हमें भी अपने हिस्से की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। हमारी कोशिश का मक़सद यही है।
---
इस विषय पर हुई चर्चा को देखने के लिये क्लिक करें-

क्या वेद 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हज़ार साल से ज़्यादा पुराने हैं?

1 comment:

रविकर said...

अच्छी पड़ताल-
आभार भाई जी-