सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Friday, December 30, 2011

मोक्ष के लिए आपको पुनर्जन्म और आवागमन में अंतर जानना होगा Salvation

साधना वैद जी की रचना देखिये 
कब तक तुझसे सवाल करेंगे
और कब तक तुझे
कटघरे में खड़ा करेंगे !
नहीं जानते तुझसे
क्या सुनने की
लालसा मन में
करवटें लेती रहती है !
ज़िंदगी ने जिस दहलीज तक
पहुँचा दिया है
वहाँ हर सवाल
गैर ज़रूरी हो जाता है
और हर जवाब बेमानी !
अब तो बस एक
कभी ना खत्म होने वाला
इंतज़ार है
यह भी नहीं पता
किसका और क्यों
और हैं मन के सन्नाटे में
यहाँ वहाँ
हर जगह फ़ैली
सैकड़ों अभिलाषाओं की
चिर निंद्रा में लीन
अनगिनत निष्प्राण लाशें
जिनके बीच मेरी
प्रेतात्मा अहर्निश
भटकती रहती है
उस मोक्ष की
कामना में
जिसे विधाता ने
ना जाने किसके लिये
आरक्षित कर
सात तालों में
छिपा लिया है !
-साधना वैद 


यह पीड़ा केवल एक साधना जी की ही नहीं है बल्कि बहुत से मन इस पीड़ा से कराह रहे हैं .
हमें हकीक़त का ज्ञान हो जाए तो यह पीड़ा निर्मूल जाती है .
हक़ीक़त  यह है कि ईश्वर ने हमें निष्पाप पैदा किया है।
ईश्वर का प्रेम हमारी आत्मा में रचा बसा हुआ है। यही वजह है कि ईश्वर, आत्मा और प्रेम यह तीनों शब्द दुनिया की हरेक भाषा में मिलते हैं।
हमारी आत्मा में जो प्रेम है वह ईश्वर के प्रेम का रिफ़्लेक्शन मात्र है।
वास्तव में ईश्वर हमसे प्रेम करता है इसीलिए हम उससे प्रेम करने पर मजबूर होते हैं।
वह ईश्वर हमसे प्रेम करता है। इसीलिए उसने हमें निष्पाप पैदा किया है। बच्चा हरेक मासूम है ,  पिछले पापों का कोई इतिहास किसी का भी नहीं है .
उसने हमें किन्हीं पिछले जन्मों का दंड भुगतने के लिए पैदा नहीं किया है और न ही वह हमें 84 लाख योनियों में गाय, बंदर और सुअर आदि बनाकर पैदा करता है।
आवागमन की कल्पना सबसे पहले छांदोग्य उपनिषद में पेश की गई थी। उससे पहले यह कल्पना भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं थी।
वेदों में पुनर्जन्म का वर्णन है लेकिन आवागमन का नहीं है। आवागमन का शब्द तक वेदों में नहीं है। जो शब्द वेदों में मौजूद ही नहीं है, वह एक पूरी अवधारणा बनकर भारतीय जनमानस में समा चुकी है केवल प्रचार के कारण।
पुनर्जन्म और आवागमन में अंतर यह है कि
पुनर्जन्म परलोक में प्रलय के बाद होता है, इसी दुनिया में नहीं।
पुनर्जन्म दो शब्दों का योग है
पुनः और जन्म
जिसका अर्थ है दोबारा जन्म
दोबारा जन्म की बात हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
स्वर्ग-नरक की बात भी हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
इसी संसार में बार बार जन्म लेना आवागमन कहलाता है.
पुनर्जन्म एक हक़ीक़त है जिसकी पुष्टि सारी दुनिया करती है और आवागमन एक कल्पना है जिसके बारे में उसे मानने वाले तक एकमत नहीं हैं। कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा पशु और वनस्पति दोनों में जाती है और कोई कहता है कि नहीं केवल मुनष्य योनि में ही जाती है औ कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा मानव योनिऔर पशु योनि दोनों में जाती है . आवागमन में विश्वास रखने वाले कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि आत्मा का वुजूद ही नहीं होता . गर्ज़ यह कि हरेक अपनी अटकल से बोल रहा है .
84 लाख योनियों में जन्म-मरण के चक्र से छुटकारे को मोक्ष कहा जाता है।
ईश्वर ने यह चक्र बनाया ही नहीं है, सो मोक्ष तो वह दे चुका है,
बस आपको इसका बोध हो जाए।
बोध करना आपका काम है।
अपना काम आपको करना है।
आप अपना काम करके तो देखिए आपको कितनी शांति मिलेगी ?

वह सबको बुलाता है ताकि वह हक़ीक़त का ज्ञान दे लेकिन केवल उसे शीश नवाने वाले और उसकी वाणी सुनने वाले कम ही हैं।
जीवन की सफलता और जीवन में शांति हक़ीक़त जान लेने पर ही निर्भर है।
शांति हमारी आत्मा का स्वभाव और हमारा धर्म है।
शांति ईश्वर-अल्लाह के आज्ञापालन से आती है।
नमाज़ इंसान को ईश्वर-अल्लाह का आज्ञाकारी बनाती है।
नमाज़ इंसान को शांति देती है, जिसे इंसान तुरंत महसूस कर सकता है।
जो चाहे इसे आज़मा सकता है और जब चाहे तब आज़मा सकता है।
उस रब का दर सबके लिए सदा खुला हुआ है। जिसे शांति की तलाश है, वह चला आए अपने मालिक की तरफ़ और झुका दे ख़ुद को नमाज़ में।
जो मस्जिद तक नहीं आ सकता, वह अपने घर में ही नमाज़ क़ायम करके आज़मा ले।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।

10 comments:

Amit Sharma said...

जमाल साहेब,
बहुत अच्छी धींगामस्ती कर लेतें है आप वेदादि-ग्रंथों के साथ :)
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के १६४ वें सूक्त को ही थोड़ी तसल्ली से समझने का प्रयास करते तो ............. लेकिन छोड़िये आपको समझना थोड़े ही है . समझ जायेंगे तो फिर कमाई कहा से होगी :(
वैसे यह आपका निजी ज्ञान है , या आपके नियंतागण जकारिया, और क्या कहतें है आप उनको सारथि जी नाम याद नहीं आ रहा - उनका है :)

खैर जो भी हो आपसे अनुराग रखने के कारण आपके विकारी ह्रदय की शांति के लिए उस "निर्विकार परमेश्वर " से प्रार्थना करता हूँ जो -----

एकदेशीय नहीं - सर्वव्यापी है .
जिसे अपना ज्ञान बांटने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं - बल्कि प्राणियों के शुद्ध ह्रदय में स्वतः प्रकाशित करता है .
जो निराकार कहलाकर भी कहारों द्वारा उठाए जाने वाले सिंहासन पर बैठकर न्याय नहीं करता - बल्कि अपने सर्व्सामार्थ्य के कारण प्रत्येक कण में अपने होने का प्रमाण देते हुए जीव के कर्मानुसार फल प्राप्ति का नियामक है .
जिसकी प्राप्ति के लिए किसी मनुष्य पर ईमान लाना अनिवार्य नहीं है - बल्कि शुद्ध ह्रदय से प्राणिमात्र के प्रति समभाव रखना अनिवार्य है.

ऐसे परमेश्वर से आपके और आप जैसे चिर-भटके जीवों की शांति की प्रार्थना करता हूँ.

Amit Sharma said...

जमाल साहेब,
बहुत अच्छी धींगामस्ती कर लेतें है आप वेदादि-ग्रंथों के साथ :)
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के १६४ वें सूक्त को ही थोड़ी तसल्ली से समझने का प्रयास करते तो ............. लेकिन छोड़िये आपको समझना थोड़े ही है . समझ जायेंगे तो फिर कमाई कहा से होगी :(
वैसे यह आपका निजी ज्ञान है , या आपके नियंतागण जकारिया, और क्या कहतें है आप उनको सारथि जी नाम याद नहीं आ रहा - उनका है :)

खैर जो भी हो आपसे अनुराग रखने के कारण आपके विकारी ह्रदय की शांति के लिए उस "निर्विकार परमेश्वर " से प्रार्थना करता हूँ जो -----

एकदेशीय नहीं - सर्वव्यापी है .
जिसे अपना ज्ञान बांटने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं - बल्कि प्राणियों के शुद्ध ह्रदय में स्वतः प्रकाशित करता है .
जो निराकार कहलाकर भी कहारों द्वारा उठाए जाने वाले सिंहासन पर बैठकर न्याय नहीं करता - बल्कि अपने सर्व्सामार्थ्य के कारण प्रत्येक कण में अपने होने का प्रमाण देते हुए जीव के कर्मानुसार फल प्राप्ति का नियामक है .
जिसकी प्राप्ति के लिए किसी मनुष्य पर ईमान लाना अनिवार्य नहीं है - बल्कि शुद्ध ह्रदय से प्राणिमात्र के प्रति समभाव रखना अनिवार्य है.

ऐसे परमेश्वर से आपके और आप जैसे चिर-भटके जीवों की शांति की प्रार्थना करता हूँ.

OneGod-OneWe said...

Dear Amit bhai: I don't understand why u felt so angry that you used such abusive words against the author. DOes it mean you don't have any LOGICAL and FACTUAL refutation? If u can not understand the article then leave it; if u understand and still don't want to believe then also leave it. In civilized world the comments u used are really pathetic. Its up to you to believe in God and his teachings or reject it-choice is yours. But for God's sake be kind, polite and humble.

Amit Sharma said...

भाई "Peace For all" जी,

किसी भी चीज को समझने के लिए उसकी तह मे जाना आवश्यक होता है, मेरे और जमाल साहब के बीच संवाद की तह मे जब आप जाना चाहेंगे इसे जान जाएगे।

**************************

@ जमाल साहब आप कबसे कमेन्ट मिटाने लग गए :)
मेरा दोबार प्रकाशित कमेन्ट तो हटा देना सही था पर डा. श्याम गुप्त जी का कमेन्ट क्यों ?? शायद गलती से हट गया होगा, मैं दुबारा लिख देता हूँ आगे -----

डा. श्याम गुप्त has left a new comment on the post "मोक्ष के लिए आपको पुनर्जन्म और आवागमन में अंतर जान...":

-----अब क्या कहें...न जमाल साहब को ..न कविता लेखिका को मोक्ष के बारे में कोई ग्यान है अतः इस प्रकार की भ्रमित काविता लिखी गयी है...जिस पर जमाल जी अपना ही मत झाड रहे हैं....सही कहा है अमित ने यदि थोडा भी वेद-उपनिषदो का तत्वार्थ जाना होता तो मोक्ष आदि का अर्थ जान पायें..

DR. ANWER JAMAL said...

@ प्रिय अमित जी ! पोस्ट के विषय पर तथ्य न देकर पोस्ट लेखक पर आरोप लगाना केवल यही दर्शाता है कि कमेंट देने वाला कुंठित मानसिकता का शिकार है।
डा. श्याम गुप्ता जी के कमेंट में भी कोई तथ्य नहीं है और आपके कमेंट में भी केवल आरोप ही हैं। लिहाज़ा गुप्ता जी के कमेंट को कुछ घंटे का समय देकर हटा दिया गया और आपसे प्यार ज़्यादा है तो आपको समय ज़्यादा दिया गया है। हटाया इसे भी जाएगा।
आप पोस्ट की समीक्षा करें और उसकी आलोचना करें।
ऐसे विचार अवश्य प्रकाशित किए जाएंगे।
व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप से हासिल कुछ भी नहीं होता।
नया वर्ष आने वाला है,
खुद को कुंठाओं से मुक्त करें और सकारात्मक बनाएं।
धन्यवाद !

Amit Sharma said...

जमाल साहब ! आप स्वयं जितनी कुंठित मानसिकता से वेदादि शास्त्रों को लांछित करने का दुस्कृत्य करतें है वह छोड़ दें तो आपका नव वर्ष मानना सार्थक होगा.
रही बात पोस्ट से कमेन्ट के सम्बन्ध की तो इस पोस्ट में आपने सनातन धर्म की आधारभूत मान्यताओं में से एक "पुनर्जन्म" को विषय बनाकर उसे वेद-विरुद्ध कहने की कुचेष्ठा करी है, और उसी सन्दर्भ में आपको संकेत किया गया है की आप समझतें हुए भी सिर्फ ना समझों को और बहकाने के लिए ऐसा कह रहें है की "वेदों में पुनर्जन्म का वर्णन है लेकिन आवागमन का नहीं है।" उसी के लिए कहा है की "ऋग्वेद के प्रथम मंडल विशेषकर १६४ वें सूक्त को ही थोड़ी तसल्ली से समझने का प्रयास करते"
********************************************************************************
आपसे पहले भी निवेदन किया है की दूसरों की मान्यताओं की अनर्गल व्याख्या करने की बजाये इस्लाम की अच्छाइयों को इस्लाम से ही सिद्ध करके इस्लाम में आने की दावत दीजिये.
आप कर उलटा रहें है इस्लाम की शुद्ध शिक्षाएं और पैगम्बर साहेब का शुद्द चरित्र तो आपसे प्रचारित नहीं किया जा रहा, और कर रहें है अन्य ग्रंथों की उल-जुलूल व्याख्याएं और अर्थ का प्रचार और जब इन कुंठित मानसिकता से ग्रस्त आपके गलीच कार्यों का भंडा-फोड़ होता है तो आपका तो कुछ नहीं बिगड़ता उलटे श्रीमुहम्मद साहेब और उनके धर्म के बारे में गलत मान्यता फैलती है की इस्लाम में तो कुछ अच्छाई है नहीं और उसके प्रचारक झूंठ का सहारा लेकर दूसरों को उनके मत के प्रति घृणा -बोध देकर अपने मत में शामिल करना चाहतें है.

आप जैसे दीनदारों के कारण ही इस्लाम खतरें में है

OneGod-OneWe said...

I sicnerely believe that none of our forefathers are transformed as plants, animals etc. :)) The concept of Awagaman or Transmigration of souls is Against common sense, against logic, against nature, against science and against the scripture. Its really surprising how our hindu brethren believe in such concept which has no place in the mind of any person with common sense. Hindu scholars like Dr.Rahul sankrityanan and S. radhakrishnan have mentioned clearly that this concept is against the vedas and its later day invention. For any unbiased mind please go through the article: http://khurshidimam.blogspot.com/2010/06/what-will-happen-after-death-awagaman.html

DR. ANWER JAMAL said...

आदमी पैदाइशी तौर पर ही मुक्त है
@ प्रिय अमित जी ! आपने कमेंट तो 3 कर दिए और बात एक भी नहीं बताई पोस्ट के विषय में, क्यों ?

आपने अपने ताज़ा कमेंट में हम पर यह आरोप लगा दिया है कि हम ‘पुनर्जन्म‘ को वेद-विरूद्ध कहने की कुचेष्टा कर रहे हैं।

भाई, पहले ठंडे दिमाग़ से पोस्ट तो पढ़ ली होती।
‘पुनर्जन्म‘ तो वेद के अनुकूल है। वेदों से पनर्जन्म सिद्ध है और हम इस मान्यता को सत्य मानते हैं।
ऐसे में आपका आरोप बिल्कुल ही ग़लत है।

हमने कहा है कि ‘आवागमन‘ का शब्द तक वेदों में नहीं मिलता और न ही 84 लाख योनियों में मनुष्य की आत्मा के पैदा होते रहने का कोई ज़िक्र है।
अब अगर आपको लगता है कि हमारी बात ग़लत है तो आप हमें बता दीजिए कि फ़लां सूक्त और फ़लां मंत्र में ‘84 लाख योनियों में आवागमन‘ का वर्णन है।
हम आपकी बात मान लेंगे।

ऋग्वेद 1, 164 में आवागमन का कोई ज़िक्र आया हो तो कृप्या उसका अनुवाद आप यहां दे दें,
आपकी अति कृपा होगी।

जो सत्य है वह सबके लिए है और असत्य किसी के लिए भी नहीं है,
हमारा मत यही है। आपका मत भी यही होना चाहिए।

दूसरा और पराया कौन है यहां ?
हमें तो सभी अपने लगते हैं।
हमारी कोशिश है कि लोग जान लें कि जब वह पैदा हुए थे तो उनकी आत्मा पर पिछले जन्मों के गुनाहों का कोई बोझ नहीं था।
अतः उस बोझ को उतारने के लिए संसार को निस्सार मानने, इससे भागने या कठिन तपस्या आदि की कोई ज़रूरत नहीं है।
आदमी पैदाइशी तौर पर ही मुक्त है।
उसका कर्तव्य बस यही है कि वह अपने मुक्त होने को जान ले और कोई ऐसा काम न करे जो ईश्वर की आज्ञा के विरूद्ध हो।
जब मनुष्य का परलोक में पुनर्जन्म होगा तो ईश्वर कर्तव्य का पालन करने वालों को विशेष पुरस्कार देगा।
हम सब उसका पुरस्कार पाएं,
कोई भी वंचित न रहे,
हमारी कामना बस यही है।

dinesh aggarwal said...

आदरणीय डॉ.अनवर जी,सादर प्रणाम। नये वर्ष
की शुभकामनायें स्वाकृत करते हुये,कुछ शंकाओं
के समाधान की अपेक्षा रखता हूँ।
जितना ईश्वर धर्म को जाना,
उतना ही विश्वास उठा है।
ऐसा एक प्रमाण न पाया,
ईश्वर गोड या कोई खुदा है।
मंदिर मस्जिद जब टूटे थे,
बतलाओ तब कहाँ था ईश्वर।
मंदिर,मस्जिद चर्च हैं खोजे,
मुझको सचमुच नहीं मिला है।
सचमुच ज्ञात आपको अनवर,
तो मुझको फिर बतला देते।
धर्म ग्रंथों में भी खोजा था,
नहीं कहीं पर लिखा पता है।
डर आज्ञान से जन्मा ईश्वर,
ईश्वर नच में नहीं ये क्या हे

DR. ANWER JAMAL said...

@ Respected Dinesh Aggarwal !
When we behold a magnificent machine for the first time, we immediately become aware of the skill of its manufacturer.

In the same way, if we observe the world, and ponder over the wonders it contains, then the Creator Himself will appear before us;
we will gaze on creation and see there the face of the Lord.