सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, November 7, 2010
What said about Dayanand ji स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है - Mohandas Karmchand Gandhi
ओबामा भारत आए। उन्होंने गांधी जी को याद किया। यह अच्छी बात है। इस बहाने उनकी बातों को याद तो किया जा रहा है।
क्यों न इस अलबेली बेला में हम भी उनके उन विचारों को सामने लाएं जो कि अक्सर लोगों की नज़रों से ओझल हैं ?
जब से मैंने मानव जाति की एकता के लिए
‘एक ईश्वर एक धर्म‘ का कॉन्सेप्ट लोगों के सामने रखा है तब से ही मेरा विरोध किया गया। यह विरोध उन लोगों द्वारा किया गया जो सत्य के बारे में भ्रमित हैं। इन लोगों में आर्य समाज के मानने वालों का नाम भी शामिल है।
आज हम यह जानेंगे कि गांधी जी उनके बारे में क्या विचार रखते थे ?
गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।
(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)
मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूं कि आज तक इन्होंने मेरी पोस्ट के विषय पर तर्क वितर्क नहीं किया।
मिंसाल के तौर पर मैंने पूछा कि ‘दर्शनों की रचना से पहले धर्म का स्रोत क्या था ?‘
किसी ने इस सवाल का जवाब देने का कष्ट गवारा न किया लेकिन पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. की शाने आली में गुस्ताख़ियां करने चले आए, जैसा कि दयानन्द जी ने उन्हें सिखाया है।
दयानन्द जी ने उन्हें तो गुरूकुल में पढ़ने के लिए और ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए भी कहा है। उन्हें चोटी और जनेऊ धारण करके दो समय यज्ञ करने के लिए भी कहा है और जो ऐसा न करे शूद्रवत उसका बहिष्कार करने के लिए भी कहा है। (सत्यार्थ प्रकाश, चतुर्थसमुल्लास)
दयानन्द जी ने इन्हें धर्म की संज्ञा दी है। जिसे दयानन्द जी ने धर्म निश्चित किया है, उस पर तो कोई आर्य समाजी बंधु अमल करने के लिए आज तैयार नहीं है लेकिन इस्लाम और पैग़म्बर साहब स. की मज़ाक़ उड़ाना ये आज भी ज़रूरी समझते हैं।
जो खुद अपने धर्म की नज़र में ‘शूद्र‘ अर्थात ‘मूर्ख और अनाड़ी‘ हों उन्हें क्या अधिकार है ‘सत्य सनातन धर्म‘ का मज़ाक़ उड़ाने का, लोगों को भ्रमित करने का ?
अगर ये लोग वास्तव में ही ज्ञानी हैं तो इन्हें मेरी पोस्ट पर उठाए गए सवालों जवाब देना चाहिए था। उनकी सुविधा के लिए मैं सिर्फ़ चन्द सवाल यहां पेश कर रहा हूं। उनके उत्तर से या उनके कन्नी काटकर भाग जाने से आप समझ सकते हैं कि इन्हें पास देने के लिए सिवाय नफ़रत और फ़साद के कुछ भी नहीं है।
कुछ सवाल आर्य समाजियों से
1. सृष्टि की रचना दयानंद जी के अनुसार कितने समय पहले हुई ?
2. वेदों को ईश्वर ने कब प्रकट किया ?
3. वेदों के कितने अरब साल बाद, दयानन्द जी के अनुसार, दर्शनों की रचना हुई ?
4. दर्शनों की रचना से पहले धर्म का आधार क्या था ?
5. दयानन्द जी के अनुसार यदि किसी धर्मग्रंथ में सत्य के साथ असत्य भी मिश्रित हो तो क्या करना चाहिए ?
क- उस ग्रंथ के असत्य भाग को निकाल कर सत्य ग्रहण कर लेना चाहिए ?
ख- उस ग्रंथ को ऐसे फेंक देना चाहिए जैसे कि विषयुक्त अन्न को पूरा का पूरा ही फेंक दिया जाता है ?
उनकी अच्छी बातें मैं स्वीकारने के लिए तैयार हूं लेकिन कोई ज्ञान की बात तर्क सहित बताए तो सही!!!
क्यों न इस अलबेली बेला में हम भी उनके उन विचारों को सामने लाएं जो कि अक्सर लोगों की नज़रों से ओझल हैं ?
जब से मैंने मानव जाति की एकता के लिए
‘एक ईश्वर एक धर्म‘ का कॉन्सेप्ट लोगों के सामने रखा है तब से ही मेरा विरोध किया गया। यह विरोध उन लोगों द्वारा किया गया जो सत्य के बारे में भ्रमित हैं। इन लोगों में आर्य समाज के मानने वालों का नाम भी शामिल है।
आज हम यह जानेंगे कि गांधी जी उनके बारे में क्या विचार रखते थे ?
गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।
(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)
मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूं कि आज तक इन्होंने मेरी पोस्ट के विषय पर तर्क वितर्क नहीं किया।
मिंसाल के तौर पर मैंने पूछा कि ‘दर्शनों की रचना से पहले धर्म का स्रोत क्या था ?‘
किसी ने इस सवाल का जवाब देने का कष्ट गवारा न किया लेकिन पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. की शाने आली में गुस्ताख़ियां करने चले आए, जैसा कि दयानन्द जी ने उन्हें सिखाया है।
दयानन्द जी ने उन्हें तो गुरूकुल में पढ़ने के लिए और ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए भी कहा है। उन्हें चोटी और जनेऊ धारण करके दो समय यज्ञ करने के लिए भी कहा है और जो ऐसा न करे शूद्रवत उसका बहिष्कार करने के लिए भी कहा है। (सत्यार्थ प्रकाश, चतुर्थसमुल्लास)
दयानन्द जी ने इन्हें धर्म की संज्ञा दी है। जिसे दयानन्द जी ने धर्म निश्चित किया है, उस पर तो कोई आर्य समाजी बंधु अमल करने के लिए आज तैयार नहीं है लेकिन इस्लाम और पैग़म्बर साहब स. की मज़ाक़ उड़ाना ये आज भी ज़रूरी समझते हैं।
जो खुद अपने धर्म की नज़र में ‘शूद्र‘ अर्थात ‘मूर्ख और अनाड़ी‘ हों उन्हें क्या अधिकार है ‘सत्य सनातन धर्म‘ का मज़ाक़ उड़ाने का, लोगों को भ्रमित करने का ?
अगर ये लोग वास्तव में ही ज्ञानी हैं तो इन्हें मेरी पोस्ट पर उठाए गए सवालों जवाब देना चाहिए था। उनकी सुविधा के लिए मैं सिर्फ़ चन्द सवाल यहां पेश कर रहा हूं। उनके उत्तर से या उनके कन्नी काटकर भाग जाने से आप समझ सकते हैं कि इन्हें पास देने के लिए सिवाय नफ़रत और फ़साद के कुछ भी नहीं है।
कुछ सवाल आर्य समाजियों से
1. सृष्टि की रचना दयानंद जी के अनुसार कितने समय पहले हुई ?
2. वेदों को ईश्वर ने कब प्रकट किया ?
3. वेदों के कितने अरब साल बाद, दयानन्द जी के अनुसार, दर्शनों की रचना हुई ?
4. दर्शनों की रचना से पहले धर्म का आधार क्या था ?
5. दयानन्द जी के अनुसार यदि किसी धर्मग्रंथ में सत्य के साथ असत्य भी मिश्रित हो तो क्या करना चाहिए ?
क- उस ग्रंथ के असत्य भाग को निकाल कर सत्य ग्रहण कर लेना चाहिए ?
ख- उस ग्रंथ को ऐसे फेंक देना चाहिए जैसे कि विषयुक्त अन्न को पूरा का पूरा ही फेंक दिया जाता है ?
उनकी अच्छी बातें मैं स्वीकारने के लिए तैयार हूं लेकिन कोई ज्ञान की बात तर्क सहित बताए तो सही!!!
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31 comments:
जो खुद अपने धर्म की नज़र में ‘शूद्र‘ अर्थात ‘मूर्ख और अनाड़ी‘ हों उन्हें क्या अधिकार है ‘सत्य सनातन धर्म‘ का मज़ाक़ उड़ाने का, लोगों को भ्रमित करने का ?
जब से मैंने मानव जाति की एकता के लिए
‘एक ईश्वर एक धर्म‘ का कॉन्सेप्ट लोगों के सामने रखा है तब से ही मेरा विरोध किया गया। यह विरोध उन लोगों द्वारा किया गया जो सत्य के बारे में भ्रमित हैं।
मेरा भी विरोध किया गया क्योंकि मैंने आपका समर्थन किया. मुझे बहुत बुरा कहा है.--- जैसा कि दयानन्द जी ने उन्हें सिखाया है।
Nice article.
अल्लाह ने हर इंसान को एक जैसी ना तो अक्ल दी है और ना ही सलाहियत. बे ऐब ज़ात सिर्फ खुदा की है या उनकी है, जिन्हें अल्लाह ऐब से बचा लेना चाहे. अलग अलग तरह के विचारों की उत्पत्ति और उनके अनुसार धर्म का चुनाव भी इंसान की अक्ल की देन हैं. कम अक्ल काले इन्सान को आप हिदायत नहीं दे सकते. किसी भी धर्म को मानने वाला इंसान उस धर्म को सत्य मानता है.आएना दिखाना अपना काम, हिदायत देना अल्लाह का काम.
@ मासूम साहब ! इमाम अली अलै. के अक़वाल देखिए मेरे ब्लाग पर।
http://sunehribaten.blogspot.com/2010/11/lectures.html
http://jaishariram-man.blogspot.com/2010/11/blog-post_07.html......please read it
Acchi post hai sachchai ko samne late rehna chahiye jisse sab sach jan len.
मुझे भी गांधी जी के इन विचारों की तलाश थी, गांधीवादी की जानकारी में शायद यह बातें नहीं होंगी
यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है
मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है।
wah sab copy paste
अपने प्रारम्भ से ही इस्लाम दुनिया के लिए विनाश का कारण बना हुआ है .इस्लाम की शिक्षा के कारण कई देश बर्बाद हो गए और करोड़ों निर्दोष लोग मारे गए हैं .आज भी यह सिलसिला जारी है .पहिलेजो लोग अपने अपने धर्म और सदाचार का पालन करते थे .उन्हें सब धार्मिक कहते थे .और उनका आदर करते थे .
लेकिन जब मुहम्मद ने इस्लाम बनाया तो ,एक ही झटके में दुनिया की तत्कालीन आबादी की 90 प्रतिशत को काफिर और मुशरिक घोषित कर दिया .मुहम्मद ने कुरान में ऎसी ऎसी परिभाषाएं गढ़ दीं जिसके अनुसार काफिरों और मुशरिकों (गैर मुस्लिमों )के लिए सिर्फ दो ही विकल्प हैं ,कि यी तो वे इस्लाम कबूल करें या क़त्ल कर दिए जाएँ .चाहे उन्होंने अल्लाह और मुहम्मद का कुछ भी नहीं बिगाड़ा हो .इस्लामी कानून के अनुसार फाफिर और मुशरिक "बाजिबुल क़त्ल "हैं हम आपको काफिर और मुशरिक की परिभाषा दे रहे हैं -
1 -कुफ्र और काफिर -
विसे तो काफिर का अर्थ नास्तिक Infidels या Non beliebers भी होता है .लेकिन इस्लाम में काफिर उसे कहते है ,जो अल्लाह को नहीं मानता हो .चाहे वह ईश्वर या God को मानता हो .अगर कोई अल्लाह के साथ रसूल ,आखिरत ,और कुरआन को नहीं माने तो वह भी काफ़िर होगा और अगर कोई अल्लाह की सिफात (गुणों )से इंकार करे तो वह भी काफिर होगा .
2 -शिर्क और मुशरिक -
शिर्क का अर्थ वहुदेववाद Polytheism है .इसके अनुसार अल्लाह के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु की उपासना करना ,उसकी स्तुति करना या उसका वंदन करना शिर्क है "Association of Allah with non divine beings and worship and honour such beings .इसके अलावा अल्लाह के सिवा किसी दुसरे की शपथ (swearing )भी शिर्क है .जो भी शिर्क करता है उसे मुशरिक कहा जाता है .
शिर्क ऐसा महा पाप या अपराध है जिसे अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा .देखिये कुरआन क्या कहती है-
"जो अल्लाह का प्रतिद्वंदी ठहराएगा ,जहन्नम में जाएगा .सूरा -इब्राहीम 14 :30
"अरब लोगों में बात बात पर कसम खाने की आदत थी .वे अपने देवताओं ,और माँ बाप की कसम खाते थे ,मुहम्मद ने उनको रोका और कहा कि अल्लाह के सिवा किसी और की कसम खाना शिर्क है .और गुनाह है .देखिये हदीस -
"अब्दुल रहमान बिन समूरा से रिवायत है कि रसूल ने कहा कि अलाह के अलावा किसी की कसम खाना शिर्क है .
सहीह मुस्लिम किताब 15 हदीस 4043
रसूल ने ऊमर बिन खाताब से कहा कि अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारे माँ बाप की कसम खाने से मना किया है .जब भी कसम खाओ तो अलाह की खाओ .किसी दुसरे की कसम खाना शिर्क है .बुखारी जिल्द 8 किताब 78 हदीस 641 "
इसी तरह और हदीसें हैं ,जिन में अल्लाह के अलावा किसी और की कसम खाना शिर्क बताया गया है -देखिये
बुखारी जिल्द 3 किताब 48 हदीस 844
बुखारी जिल्द 5 किताब 58 हदीस 177
अब आप यह ध्यान से पढ़ने के बाद दी जा रही बातों पर फैसला करिए -
1 -फरिश्तों ने इंसान (आदम )को सिजदा किया
"हमने फरिश्तों से कहा कि आदम (एक मनुष्य )को सिजदा करें ,सबने सिजदा किया .सूरा -बकरा 2 :34
"सभी फरिश्तों ने आदम को सिजदा किया .सूरा -अल हिज्र 15 :30
2 -जादूगरों ने मूसा (एक नबी )को सिजदा किया -
"और जादूगर मूसा के आगे सिजदे में गिर पड़े .सूरा अल आराफ 7 :120
3 -यूसुफ (एक नबी )ने माँ बाप को सिजदा किया .
'जब वह मिस्र पहुंचे तो अपने माँ बाप को सिंहासन पर बिठाया और उनके सामने सिजदे में झुक गए .सूरा -यूसुफ 12 :100
(यूसुफ इब्राहीम के बेटे इशाक का नाती और याकूब का बेटा था यह सभी रसूल या नबी थे )
4 -मुहमद अल्लाह के साथ अपनी स्तुति "तस्बीह "करवाता है -
"तुम लोग अल्लाह के साथ उसके रसूल पर ईमान लाओ .और उसकी मदद करो, और उसकी (रसूल की )प्रतिष्ठा बढाओ.औए सवेरे शाम उसकी तसबीह (स्तुति )करते रहो .सूरा -अल फतह 48 :95 -अल्लाह खुद अन्य वस्तुओं की कसम खाता है -अलाह दूसरोको किसी अन्य वस्तु की कसम खाने से रोकता है ,लेकिन खुद इसका उलटा करता है .अल्लाह को बात बात पर कसम खाने की लत पड़ी है ,वह अपनी कसम नही खाकर दूसरी चीजों की कसम खाता है .देखिये -
तारों की कसम .सूरा अन नज्म 53 :1
सूरज की कसम सूरा शम्श 91 :1 -2
आकाश की कसम सूरा -अल बुरूज 85 :1
रात की कसम सूरा -अत तारिक 86 :1
जब खुद अल्लाह और उसके फ़रिश्ते ,उसके नबी और मुहम्मद सब शिर्क कर रहे हैं .तो गई मुस्लिमों को मुस्लिमों को मुशरिक का काफिर क्यों कहा जाता है .इस्लाम में यह दोगली नीति क्यों है ?
प्रस्तुतकर्ता बी एन शर्मा
@ Mindwassup Aryasamaji ! मेहरबानी करके पोस्ट में पूछे गए सवालों के जवाब दीजिए अगर पता हों तो ...
फ़ालतू बकवास से कोई फ़ायदा नहीं है ।
wakai me aap ne bahut kam ki jankari di h masaallah allah aapko hosla jazba de aamin
wakai me aap ne bahut kam ki jankari di h masaallah allah aapko hosla jazba de aamin
right boss !
एक सार्थक तथा तर्क से परिपूर्ण लेख
धन्यवाद के पात्र
dabirnews.blogspot.com
ajabjazab.blogspot.com
Maulana Sanaullah Amritsari. Babu Dharam Pal burned all his anti-Islam books and embraced Islam with the name Ghazi Mahmood. His famous acceptance of Islam was published in Newsletter Al-Muslim in July 1914.
Anyway this was only a gist. Besides his Maulana Amritsari has written a dozen other books on Islam and Arya Samaj.
one book here
urdu book: ویداور سوامی دیانند
غازی محمود دھرم پال
online reading
http://www.scribd.com/Ved-Aur-Swami-Dayananda-Mehmood-Dharmpal-ghazi/d/41514707
easy download
http://www.4shared.com/get/mxmJYvww/ved-aur-swami-dayananda-writer.html
डाक्टर बाबू कभी ऐसी समाज के आने वाली पोस्ट भी बनाईये जैसी डॉ.कविता वाचक्नवी ने
Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श) ब्लाग पर ''बच्चियों के खत्ना के खिलाफ अपील' दी है
http://streevimarsh.blogspot.com/2010/06/blog-post_17.html
@ muk आर्य समाजी ! क्या डा. कविता आर्य समाजी ने कोई पोस्ट नियोग के विषय पर भी लिखी है ?
इधर उधर की बात करने से बेहतर है पोस्ट के सवालों के जवाब देना, अगर ज्ञान का दावा करते हो तो ...
हा हा हा हा हा हा
कसम से "चला बंदर हीरो बनाने "
1. सृष्टि की रचना दयानंद जी के अनुसार कितने समय पहले हुई ?
2. वेदों को ईश्वर ने कब प्रकट किया ?
3. वेदों के कितने अरब साल बाद, दयानन्द जी के अनुसार, दर्शनों की रचना हुई ?
4. दर्शनों की रचना से पहले धर्म का आधार क्या था ?
5. दयानन्द जी के अनुसार यदि किसी धर्मग्रंथ में सत्य के साथ असत्य भी मिश्रित हो तो क्या करना चाहिए ?
क- उस ग्रंथ के असत्य भाग को निकाल कर सत्य ग्रहण कर लेना चाहिए ?
ख- उस ग्रंथ को ऐसे फेंक देना चाहिए जैसे कि विषयुक्त अन्न को पूरा का पूरा ही फेंक दिया जाता है ?
ये सब सवाल तुम अगर किसी खगोल शास्त्री से पूछते तो शायद पता चल जाता है
मुझे नही लगता इन बातो का धर्म से कोई लेना देना है धर्मका मतलब अच्छी बातो का घारण करना
पर अभी तक तुम धर्म की जेरो सीडी पर हो जो दुसरो की कमी बताकर अपने को महान बताता है
मेरा गुरु ने सनातन और इस्लाम के बारे में बताया मुझे सब एक जैसा ही लगा
तुम शायद कीचड़ से से कीचड़ साफ़ करने में लगे हो
तुन्ह्मे शायद नियोग के अतिरिक्त कोई विषय ही न मिले स्वामी जी के बारे में क्योकि तुम्हे उनका काट खोजना है
पर हिन्दू परिवारों ने शायद इस सब्द को ही ना सुना हो ,प्रोयोग तो दूर की बात है
जिन बुराई की बात करते हो वो सब मुस्लिम अपना रहे है
आज हर मुस्लिम परिवार में मुस्लिम भाई बहेन "नियोग" को अपना रहे है
वास्तविक को देखो न की किताबो को
जो शर्मा जी ने लिखा है वो इस्लाम के बारे में वो निहायत ही शमनाक है
पहले उसका उत्तर दो वरना शर्मा जी तो स्वामी जी से जायदा बेज्यती कर रहे है
किताबो का रट्टा मार कर ज्ञानी बन सकते हो
बुद्धिमान नही
कोई बना हो तो याद करके बताना
डाक्टर मुo असलम क़ासमी
कहते है धर्म मूर्खो के लिए नही होता
शायद इसी लिए धरती जनम के इतने साल बाद भी संतो के कुछ चंद नाम ही गिने जा सकते है
जरा इनकी बातो पर गौर फरमाइए
ये भारत को हिन्दू राष्ट बनाने का विरोध करते है और तर्क क्या देते है
क्या है अश्वमेघ यज्ञ?
इस यज्ञ में एक ‘ाक्तिशाली घोड़े को दौड़ा दिया जाता था, जो भी
राजा उसको पकड़ लेता उससे युद्ध किया जाता और उसके राज्य को अपने राज्य
में मिला लिया जाता था।
प्रश्न
यह है कि क्या ‘ाान्तिपूर्ण रह रहे पड़ोसी के क्षेत्र में घोड़ा छोड़कर
उसे युद्ध पर आमादा करना जायज़ होगा? और ‘आ बैल मुझे मार’ वाली कहावत पर
अमल करते हुए ‘ाान्ति से रह रहे पड़ोसी से युद्ध कर के उसके क्षेत्र पर
कब्ज़ा कर लेना, यह कौन सी नैतिकता होगी? और क्या अन्तर्राष्ट्रीय कानून
इस की अनुमति देगा?
ये आर्यावर्त में फैले एक राजपरम्परा थी न की हिन्दू परम्परा
इसी तरह अग्रेजो ने नीति चलायी थी की जिस राजा के संतान नही होगी उसको वो अपने राज्य में मिला लेगे
दुनिया के हर कोने में इस तरह की परम्परा थी
अब इनको क्या लगा की यदि हिन्दू राष्ट हो गया तो भारत का प्रधानमंती एक घोडा छोड़ेगा .जो अगर पकिस्तान या चीन में घुस गया
तो वह से हमें लड़ाई करनी पड़ेगे
सही मायने में भारत ने आज तक कभी लड़ाई की पहल ही नही की ,सदेव बचाव किया है
लड़ाई सदेव इस्लाम धर्म के ठेकेदार पकिस्तान ने किया है और जो भी इस्लाम राष्ट है उनकी हालत कुत्तो से भी बेबतर है
हा हा हा हा हा हा हा
@ Mindwassup Aryasamaji ! अगर मेरे सवालों का संबंध धर्म से है ही नहीं और वे बेकार हैं तो दयानंद जी ने इन सवालों के जवाब क्यों लिखे सत्यार्थ प्रकाश में ?
क्या वह बेकार की बातें किया करते थे ?
लगता है आपने सत्यार्थ प्रकाश ही नहीं पढ़ा अभी तक ?
नियोग को अधर्म कहने से भी यही पता चलता है ।
आर्य समाज की प्रौपर्टी पर क़ब्ज़ा पाकिस्तान ने नहीं बल्कि आर्य समाजियों ने कर रखा है , उसे तो बचाया न जा सका , देश बचाएंगे ?
ऊल जलूल बातों के अलावा कुछ नहीं आता आर्य समाजियों को , यह बात एक बार फिर साबित हो गई है ।
पोस्ट के सवालों के जवाब सत्यार्थ प्रकाश में हैं, शायद मुझे ही सामने लाने पड़ेंगे क्योंकि आपने तो उसे पढ़ा नहीं लेकिन मैंने पढ़ा है ।
शूद्र ही साबित हुए न ?
mai jan gaya tum bahut hosiyar ho
bahut ratta mara h .pahle islaam ka sahi roop layo
warna jo b.n. sharma bata rehe hai wahi sahi hai
satyrth prakash ki tum jaise log vakhya karege
kya baat hai,
jo ghr ghr niyog tumare bacche ker rehe hai ,usko ban kero
तेरी सारी जिन्दगी दयानद को गलत साबित करने में जाएगी
पर अफ़सोस कुछ हासिल होगा उल्टा इस पुस्तक का प्रचार हो गया
इतनी शक्ति इन कथ्मुलाओ को सुधरने लगते इस्लाम की छवि सुधरते
पहले वो गलत प्रूफ करो जो जो शर्मा जी बता रहे है
हजारो लोग उनका ब्लॉग पडकर बड़ी अच्छी छावी अपने मन में बना रहे होगे
सत्यार्थ प्रकाश तो वैसे भी कितने पड़ते है ??
तुमारी हालत बड़ी ख़राब है इन २-४ बेवकूफों की तारीफ़ से बात में दम नही आती
@ Mindwassup Aryasamaji ! अगर मेरे सवालों का संबंध धर्म से है ही नहीं और वे बेकार हैं तो दयानंद जी ने इन सवालों के जवाब क्यों लिखे सत्यार्थ प्रकाश में ?
क्या वह बेकार की बातें किया करते थे ?
लगता है आपने सत्यार्थ प्रकाश ही नहीं पढ़ा अभी तक ?
नियोग को अधर्म कहने से भी यही पता चलता है ।
आर्य समाज की प्रौपर्टी पर क़ब्ज़ा पाकिस्तान ने नहीं बल्कि आर्य समाजियों ने कर रखा है , उसे तो बचाया न जा सका , देश बचाएंगे ?
ऊल जलूल बातों के अलावा कुछ नहीं आता आर्य समाजियों को , यह बात एक बार फिर साबित हो गई है ।
पोस्ट के सवालों के जवाब सत्यार्थ प्रकाश में हैं, शायद मुझे ही सामने लाने पड़ेंगे क्योंकि आपने तो उसे पढ़ा नहीं लेकिन मैंने पढ़ा है ।
शूद्र ही साबित हुए न ?
I repeat again .
देखो आर्य जनो (?) की बदतमीज़ी का सुबूत । दयानन्द नाम के साथ जी तक लगाने की सभ्यता नहीं है इन्हें ।
आर्य नहीं बल्कि सरासर शूद्र हैं ये ।
मैंने जहाँ भी उनका नाम लिखा है साथ में जी ज़रुर लिखा है सम्मान भी दिया है ।
आर्य वास्तव एक मुस्लिम ही हो सकता है जैसे कि मैं हूँ ।
Hindu Revivalism and Education in North-Central India
I have profound respect for Dayanand Saraswati. I think that he has rendered great service to Hinduism. His bravery was 'unquestioned. But he made his Hinduism narrow. I have read Satyarth Prakash, the Arya Samaj Bible. Friends sent me three copies of it whilst I was residing in the Yarvada Jail. I have not read a more disappointing book from a reformer so great. He has claimed to stand for truth and nothing else. But he has unconsciously misrepresented Jainism, Islam, Christianity and Hinduism itself. One having even a cursory acquaintance with these faiths could easily discover the errors into which the great reformer was betrayed. He has tried to make narrow one of the most tolerant and liberal of the faiths on the face of the earth. And an iconoclast though he was, he has succeeded in enthroning idolatry in the subtlest form. For he has idolised the letter of the Vedas and tried to prove the existence in the Vedas of everything known to science. The Arya Samaj flourishes, in my humble opinion, not because of the inherent merit of the teachings of Satyarth Prakash, but because of the grand and lofty character of the founder.
Gandhi1
http://dsal.uchicago.edu/books/socialscientist/text.html?objectid=HN681.S597_209_006.gif
सवाल के उत्तरः
1. वर्तमान सृष्टि की रचना दयानंद जी के अनुसार लगभग १ अरब ९६ करोड वर्ष पहले हुई ।
2. वेदों को ईश्वर सृष्टि के आरम्भ में प्रकट करता । वैसे ईश्वर के ज्ञान में वेद नित्य विद्यमान रहता है ।
3. दयानन्द जी के अनुसार वेदों के कई साल बाद अर्थात् आज से लगभग ५-१० सहस्र वर्ष पूर्व दर्शनों की (सांख्य, न्याय आदि दर्शन शास्त्रों की) रचना हुई । हा, वेद में दर्शनों का मूल अवश्य है ।
4. धर्म का आधार ईश्वर और ईश्वरीय ज्ञान ही माना जाता है । दर्शनों की रचना से पहले भी धर्म का आधार वही था ।
5. दयानन्द जी के अनुसार यदि किसी धर्मग्रंथ में सत्य के साथ असत्य भी मिश्रित हो तो सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करना चाहिए ।
= भावेश
In islam every depends upon intention. I.e if you think that somebody is god and bow before him this Bowing is shirk, but if this bowing is just out of respect it is not shirk. The bowing of angels before Adam was out of respect and above all at the order of god itself. The bowing of Yusuf before his parents was out of respect. The bowing of magicians before moses was out of respect. Hope you got the answer. Wallah Alam.
Are Sudra mtlab pta bhi h tumhe
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