सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, November 2, 2010
Allah in Indian scriptures वेद-उपनिषद में भी है अल्लाह का नाम - Anwer Jamal
आज़ाद देश के ये ग़ुलाम बाशिन्दे
इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन इन्सान खुद है। लोग समझते हैं कि समस्याओं का हल शिक्षा से संभव है लेकिन यह सिर्फ़ एक मुग़ालता है। आज जितने बड़े अपराधी हैं सभी शिक्षित हैं बल्कि देशों के प्रमुख तक हैं। उनके सलाहकार भी अपराधी ही हैं। मामूली अपराधी तो जेब काटते हैं या फिर लूटकर छोड़ देते हैं लेकिन ये अपराधी तो देशों पर हमले कर डालते हैं, मासूम बच्चों को अनाथ बना देते हैं और उस देश की संपदा ही नहीं लूटते बल्कि उसका गौरव भी लूट लेते हैं। ये लाखों लोगों को मार डालते हैं लेकिन इन्हें कोई आतंकवादी नहीं कह सकता बल्कि ये उन लोगों को आतंकवादी कहते हैं जिन्होंने इनके गिनती के लोग बदले में मार दिए होते हैं। पिछलग्गू देश अपनी ख़ैर मनाते हुए इनकी हां में हां मिलाते हैं और उनके बाशिन्दे इस ग़ुलामी पर फ़ख़्र करते हैं।
पूरा देश बंधक है विदेश में
इन ग़ुलामों में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहते हैं। इस समय दुनिया का हाल कुछ ऐसा ही नज़र आ रहा है। खि़लाफ़त का ख़ात्मा करने के बाद अंग्रेज़ और अमेरिकन मुस्लिम देशों को लूटते रहे। इन्होंने यूरोप को एक कर लिया और एशिया को बांट दिया। इन्होंने हिन्दुस्तान को बांट दिया। बंटे हुए हिन्दुस्तान में अब भी और ज़्यादा बंटने की मांग उठती रहती है। लोगों ने एक भ्रम खड़ा कर रखा है कि हिन्दुस्तान बहुत पावरफ़ुल होकर उभर रहा है। हालांकि यह एक हक़ीक़त है तब भी एक भ्रम है। भारत एक एटमिक शक्ति संपन्न देश है लेकिन उसके 22 नौजवानों को महीनों से सोमालियाई लुटेरों ने बंधक बनाकर रखा हुआ है। भारत न तो उन्हें छुड़ा पाया है और न ही उसके पास कोई योजना है उन्हें छुड़ाने की। वे सब आम लोगों के बच्चे हैं और सभी हिन्दू हैं। जर्मनी के इस जहाज़ के कैप्टन मुम्बई के महादेवल मकाने हैं और दूसरे नौजवान देश के अलग अलग इलाकों से हैं। ग़ाज़ियाबाद के चिराग़ हैं, सुल्तानपुर के शरद कुमार हैं, उड़ीसा के सुधांशु पांडेय हैं, देहरादून के संदीप डंगवाल हैं, राजस्थान के जितेन्द्र राठौर हैं, आदि आदि। देश के हरेक हिस्से का युवा बंधक है, देश के हरेक इलाक़े का प्रतिनिधि बंधक पड़ा है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा देश ही प्रतीकात्मक रूप से बंधक पड़ा है। एक-दो दिन से नहीं बल्कि 8 मई से बंधक पड़े हैं। पूरा देश कहीं विदेश में बंधक पड़ा है लेकिन उसे आज़ाद कराने की चिंता न देश के नेतृत्व को है और न ही उन्हें अपना प्रमुख चुनने वाली जनता को।
एक महाशक्ति का तौर तरीक़ा क्या होना चाहिए ?
राम के देश के लोग कहीं किसी रावण के हाथ में हैं लेकिन लोगों को उस रावण से लड़ने की कोई इच्छा तक नहीं है लेकिन वे कब के मर चुके रावण के फ़र्ज़ी काग़ज़ी पुतले बना रहे हैं। फिर वे उनमें आग लगाएंगे और अख़बारों में छापेंगे कि रावण बुराई का प्रतीक है उसे जलाने का मतलब है बुराई को नष्ट करने का संकल्प लेना। न जाने कब से खुद को धोखा देते आ रहे हैं, कब से जुआ खेलते आ रहे हैं। कब से रावण के पुतले जला रहे हो ? किसी एक भी बुराई को समाज से मिटा सके ?
सोमालिया के लुटेरे रावण बने हुए पूरे देश की शक्ति को चुनौती दे रहे हैं लेकिन क्या कोई लड़ने गया है उनसे अब तक ?
जब भारत ऐसी दयनीय दीनता का परिचय देगा तो क्या फ़ायदा उसे संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता लेकर ?
पहले जो शक्ति आपको हासिल है उसे इस्तेमाल करना तो सीख लीजिए।
देश बंधक पड़ा है विदेश में। उन नौजवानों के घरों में मातम है। लेकिन पूरा देश दीवाली की तैयारी करने में मगन है। एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी जा रही हैं।
किस बात की शुभकामनाएं हैं ये ?
असली रावण के मुक़ाबले से कतराने की ?
दुनिया में अपने देश की दुर्बलता के प्रदर्शन की ?
ऐसी ही बेग़ैरती के आलम में देश ने खेलगांव में ‘खेल‘ भी देखे ?
इनका दिल कैसे होता है किसी त्यौहार को मनाने का या कोई खेल देखने का ?
हां, ज़मीर मर चुका हो, अहसास और ग़ैरत रूख्सत हो चुकी हो तो कोई कुछ भी कर सकता है।
घर के शेर
सचमुच के विदेशी रावण के सामने पड़ने से भी घबराने वाले अपने घर में ज़रूर शेर हैं।
क्या कोई बता सकता है कि अपने घर में कौन शेर होता है ?
कहीं पता चल जाए कि कोई दलित किसी मरी हुई गाय की खाल उतार रहा है, बस उसमें ज़रूर आग लगा देंगे। सिक्खों को जला देंगे, ईसाईयों को जला देंगे और जब जलाने पर आएंगे तो ये गाय को भी जला देंगे बस शर्त यह है कि वह गाय होनी किसी मुसलमान की चाहिए। तोड़ने पर आएंगे तो ये अयोध्या के मंदिर भी तोड़ देंगे और लड़ने पर आएंगे तो इतना बहाना भी काफ़ी है कि उन्हीं के विस्फोटक उनकी ग़लती से ट्रेन के अंदर से जल जाएं और उनके कार्यकर्ता मारे जाएं।
अंग्रेज़ों की दया पर पलने वाले ये लोग उन पर हमला करते हैं जो सदा ही अंग्रेज़ों से लड़ते आए हैं। कहीं ये अंग्रेज़ों के एजेंट तो नहीं हैं ?
आखि़र इनके लड़ाई दंगों का फ़ायदा देश को तो मिलने वाला है नहीं। देश की लड़ाई देश को खोखला ही कर रही है। जो लोग ‘जन गण मन‘ नहीं गाते क्योंकि उसे कभी जार्ज पंचम के लिए लिखा गया था तो ये ‘वन्दे मातरम्‘ क्यों गाते हैं ?
‘वन्दे मातरम्‘ भी अंग्रेज़ों के एक चापलूस नौकर ने ही लिखा है।
खुद को मिटाने का मक़सद क्या है ?
इनका मक़सद विवाद खड़ा करना है। लोगों को बांटना है। अगर लोग ‘जन गण मन‘ गा रहे हैं तो ये नहीं गाएंगे ताकि लोग बंटे। अगर जागरूक लोग ‘वन्दे मातरम्‘ नहीं गाना चाहते तो ये लोग ज़ोर डालेंगे कि ज़रूर गाना पड़ेगा। इनके पास सेना है, संगठन है, शक्ति है, अनुशासन है लेकिन किसी सचमुच के विदेशी रावण से लड़ने की हिम्मत इनमें भी नहीं है। अपनी शक्ति का प्रयोग ये केवल भस्मासुर की तरह करते हैं। खुद अपने ही देशवासियों को नष्ट करने में ये दक्ष और कुशल हैं। देश के मुसलमानों को पाकिस्तान का साबित करेंगे और जो सचमुच का पाकिस्तानी होगा उसे अपना प्रमुख बना लेंगे बल्कि उसे देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना सारा ज़ोर लगा देंगे।
इतना अंतर क्यों ?
क्या सिर्फ़ इसलिए कि वह मुसलमान नहीं है ?
लेकिन सोमालियाई लुटेरों की गिरफ़्त में बंधक पड़े नौजवान भी तो मुसलमान नहीं हैं। चलिए आप हिन्दुओं की ही फ़िक्र कर लीजिए। इन्हें न हिन्दुओं की कोई फ़िक्र है और न ही युवा शक्ति की। इन्हें बस फ़िक्र है अपनी शक्ति की। ये हिन्दुओं का , उनके युवाओं का इस्तेमाल करते हैं अपनी शक्ति बढ़ाने में। अपनी शक्ति का लाभ इनका उच्च वर्ग खुद उठाता है, किसी को लाभ पहुंचाता नहीं है। अयोध्या आंदोलन में मारे गए हिन्दू युवाओं की विधवाएं आज तक बेसहारा घूम रही हैं। धर्म इनके पास बचा नहीं है और संस्कृति के गुणगान से ये पीछे नहीं हटते। भारतीय संस्कृति का गुणगान करने वाले ये लोग जब कभी इकठ्ठा होते हैं तो पहनते हैं अंग्रज़ी स्टाइल का ख़ाकी नेकर ?
यह कौन सी संस्कृति है ?
इनके पास संस्कृति भी नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं कि राष्ट्रवाद केवल एक ढकोसला है। राष्ट्रवादियों को न तो देश के युवाओं की चिंता है और न ही भारतीय संस्कृति की। इन्हें केवल इस बात की चिंता है कि मुसलमानों का मनोबल कैसे डाउन रखा जाए ?
दबे-कुचले लोगों को समानता और मुक्ति का पाठ पढ़ाने वाले मुसलमानों, ईसाईयों और वामपंथियों को कैसे सबक़ सिखाया जाए ?
सफलता में असफलता
इन्होंने आंदोलन चलाए, लाखों लोग उजाड़ दिए। इनके आंदोलन की सफलता ही इनकी असफलता सिद्ध हुई। इन्हें उनके वोट मिलने बंद हो गए। ये खुद ही सत्ता से बेदख़ल हो गए। इनकी तबाही झेल चुके मुसलमानों के आपसी मतभेद ख़त्म हो गए। देश के शिया-सुन्नी एक हो गए। पाकिस्तान में शिया सुन्नी एक दूसरे की मस्जिदों में और दरगाहों में बम फोड़ रहे हैं और देश के हुक्मरां अपना सर फ़ोड़ रहे हैं कि इस ख़ून-ख़राबे को कैसे रोकें ?
लेकिन भारत के शिया सुन्नी चैन से जी रहे हैं। क्या वजह है इस चैन की ?
क्या भारत के शिया और सुन्नियों की आइडियोलॉजी कुछ अलग है वहां के शिया सुन्नियों से ?
बिल्कुल नहीं। दोनों ही जगह के लोगों की एक ही विचारधारा है।
दरअस्ल विचारधारा का नहीं बल्कि हालात का फ़र्क़ है। पाकिस्तान के हुक्मरां अपने देश के मुसलमानों को जो न दे सके, भारत के मुसलमानों को एकता का वह बेनज़ीर तोहफ़ा दिया है उनके वुजूद से नफ़रत करने वालों ने।
अल्लाह शर से भी ख़ैर पैदा कर देता है
अल्लाह का शुक्र है हर हाल में, बेशक वह हर हाल में मेहरबान है अपने बन्दों पर। वह किस तदबीर से बन्दों को क्या बख्शता है उसे कोई नहीं जान सकता। अल्लाह की यह मेहरबानी सिर्फ़ मुसलमानों पर ही नहीं है बल्कि हिन्दुओं पर भी है कि उनके देश में मुसलमान आबाद हैं, जिनके पास वास्तव में ‘धर्म‘ है। वह सनातन धर्म जिसे वे बहुत पहले खो चुके हैं।
इस्लाम वास्तव में सनातन धर्म है, यह इतना ज़्यादा स्पष्ट है कि अगर कोई हिन्दू निष्पक्षता से इस्लाम के बुनियादी अक़ीदों पर और उसके पांच स्तम्भों पर ही नज़र डाल ले तो वह आसानी से सत्य जान लेगा।
इस्लाम के बुनियादी अक़ीदे
1. तौहीद यानि एक परमेश्वर के प्रति निष्ठा और समर्पण रखना
2. रिसालत यानि एक ऐसे आदर्श पुरूष को गुरू बनाकर उसका अनुसरण करना जिसके अंतःकरण पर ईश्वर की वाणी का अवतरण हुआ हो।
3. आखि़रत यानि परलोक, एक ऐसा स्थायी जगत जहां मानव जाति को उसके सभी कर्मों का फल न्यायानुसार मिल सके।
इस्लाम के पांच स्तम्भ
1. कलिमा यानि ईश्वर को स्वामी और पूज्य मानना और हज़रत मुहम्मद साहब स. को उसका दास और दूत मानना।
2. नमाज़ यानि केवल एक परमेश्वर के सामने ही समर्पण करना और जो उसके नियम हैं, उसकी आज्ञाएं हैं उनका पालन करने का संकल्प लेना।
3. ज़कात यानि समर्थ लोगों द्वारा एक निश्चित राशि अनिवार्य रूप से समाज के ज़रूरतमंदों को दान देना।
4. रोज़ा यानि चांद के बारह महीनों में से एक निश्चित माह में उपवास रखना।
5. हज यानि तीर्थ यात्रा काबा की परिक्रमा करना। काबा एक तीर्थ है इसे हिन्दू भाई अच्छी तरह से जानते हैं।
धर्म एक है सबका
अब बताइये, इनमें ऐसी कौन सी बात है जिस पर हिन्दू भाई खुद विश्वास न रखते हों। हो सकता है वे हज़रत मुहम्मद साहब स. को रसूल और गुरू न मानते हों तब भी उन्हें गुरू की ज़रूरत वास्तव में है। वे उनके स्थान पर किसी और को गुरू बनाते हैं। गुरू और गुरूवाद में तो बहरहाल वे विश्वास रखते ही हैं। इन सभी बातों को वे मानते हैं चाहे उनके मानने की रीति थोड़ी अलग ही क्यों न हो ?
इस्लाम ऐसी कौन सी बात उनसे मनवाना चाहता है जिसे वे पहले से ही न मानते हों ?
इस्लाम की विशेषता
इस्लाम तो उन्हें उन विपरीत विचारों और कुरीतियों से मुक्ति देता है जो ‘समन्वय‘ और ‘अनेकता में एकता‘ के चक्कर में मान्यता पाकर समाज को नुक्सान पहुंचा रही हैं। इस्लाम अगर एक ईश्वर की वंदना-उपासना के लिए कहता है तो फिर किसी मूर्ति की आरती की इजाज़त वह नहीं देता। वह रावण के काग़ज़ी पुतलों में धन और ऊर्जा बर्बाद करने के बजाए असली रावण को ठिकाने लगाने की प्रेरणा देता है। वह आग में घी डालने के बजाए इन्सान के पेट की आग बुझाने का रास्ता दिखाता है। वह पत्थर की मूर्तियों को दिखावटी भोग लगाने के बजाए हाड़-मांस की ईश्वरकृत जीवित मूर्तियों को सच्चा भोग कराने का हुक्म देता है। नर के रूप में नारायण की कल्पना तो सनातन धर्म में भी पाई जाती है। उसे वास्तव में सिद्ध करना केवल इस्लाम में ही संभव है। केवल इस्लाम ही बता सकता है कि कहां किस बात को अलंकार के अर्थ में लेना है और कहां उसे उसके शाब्दिक अर्थ में ?
इस्लाम आपका सहायक, आपका मुक्तिदाता
इस्लाम आपकी हज़ारों साल पुरानी उलझी हुई गुत्थियों को सुलझा सकता है। ऐसा धर्म हिन्दू लोगों को आज उनके अपने ही देश में सुलभ है। उन पर यह अल्लाह का ख़ास ईनाम है।
लेकिन जो लोग मुसलमानों की नफ़रत में अंधे हो चुके हैं उन्हें यह ईश्वरीय उपहार दिखाई नहीं दे रहा है। उन्हें तो ‘अल्लाह‘ नाम से भी घृणा है। इसी ब्लागजगत में ‘अल्लाह‘ के नाम की खिल्ली उड़ाई जा रही है। दुनिया जानती है कि ईश्वर अल्लाह एक ही स्रष्टा के नाम हैं दो अलग-अलग भाषाओं में लेकिन इन्कार करने वाले इस सच्चाई से इन्कार कर रहे हैं।
चलिए नहीं मानना है तो मत मानिए, अल्लाह के नाम का मज़ाक़ तो मत उड़ाइये।
शांति का कोई दिखावटपरस्त नहीं फटकता वहां समझाने के लिए, क्यों ?
क्या सिर्फ़ इसलिए कि यह हिन्दुस्तान है और मज़ाक़ उड़ाने वाला एक हिन्दू है ?
लेकिन यह हिन्दुस्तान भी अल्लाह ही का है। ज़मीन व आसमान अल्लाह ही का है। हर चीज़ उसी की है। किसी भी चीज़ को हक़ नहीं है कि वह अल्लाह की मज़ाक़ उड़ाए।
लोग नाम की मज़ाक़ उड़ाते हुए यह भूल जाते हैं कि नाम भले ही अलग हैं लेकिन ये सब नाम जिसके हैं वह तो एक ही है।
अल्लाह स्वामी है सब लोकों का
अरबी में ‘इलाह‘ का अर्थ पूज्य है। अरब के लोग अल्लाह को भी ‘इलाह‘ अर्थात पूज्य मानते थे और जब धर्म का लोप हो गया था तो वे दूसरी क़ौमों की नक़ल में कुछ और चीज़ों को भी ‘इलाह‘ कहने लगे थे जो कि वास्तव में इलाह नहीं थे। अल्लाह शब्द में ‘इलाह‘ खुद ही समाहित है। इलाह का अर्थ है पूज्य और ‘अल + इलाह‘ के योग से बने शब्द अल्लाह का अर्थ है ‘परमपूज्य‘।
कुरआन की पहली सूरत की बिल्कुल पहली ही आयत में उसका परिचय इस तरह मिलता है-
अल्-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल अ़ालमीन .
अर्थात विशेष प्रशंसा है परमपूज्य के लिए जो पालनहार है सभी लोकों का।
वेद-उपनिषद में भी है अल्लाह का नाम
अल्लाह नाम भी हिन्दुओं के लिए अजनबी नहीं है। अल्लोपनिषद में यह नाम आया है।
जो लोग अल्लोपनिषद को नहीं मानते। वे इस नाम में समाहित ‘इलाह‘ को थोड़े अंतर के साथ वेद में भी देख सकते हैं लेकिन वहां भी उसका अर्थ पूज्य ही है।
ऋग्वेद में ईश्वर के लिए जिन नामों को प्रयोग हुआ है, उनमें से एक नाम ‘इला‘ है जिसका मूल तत्व ‘इल‘ या ‘ईल‘ है और जिसका अर्थ है पूजा करना, स्तुति करना। ‘ईल्य‘ का धात्वर्थ है ‘पूजनीय‘। ऋग्वेद के बिल्कुल शुरू में ही यह शब्द प्रयुक्त हुआ है जिसका स्पष्ट अर्थ है कि ‘हे ईश्वर ! तू पूर्व और नूतन, छोटे और बड़े सभी के लिए पूजनीय है। तुझे केवल विद्वान ही समझ सकते हैं।‘ (ऋ. 1;1;1 )
यह नाम इतना पुरातन है कि लगभग 6 हज़ार साल पहले सुमेरिया की भाषा में ‘ईल‘ शब्द परमेश्वर के लिए बोला जाता था। सुमेरियन नगर ‘बाबिलोन‘ शब्द दरअस्ल ‘बाबेईल‘ था अर्थात ईश्वर का द्वार, हरिद्वार । यही वह शब्द है जो किसी न किसी रूप में इब्रानी, सुरयानी तथा कलदानी भाषाओं में ईश्वर के अस्तित्व के लिए इस्तेमाल होता आया है। जिस वुजूद के लिए यह नाम हमेशा से इस्तेमाल होता आया है वह सबका मालिक है। सबका मालिक एक है।
अल्लाह का नाम, एकता का आधार
इस पवित्र नाम से सब लोकों को और सब लोगों को इस बात यक़ीन हासिल हो सकता है। उस मालिक के सभी नाम अच्छे हैं लेकिन जो ख़ासियत ‘इलाह‘ और ‘अल्लाह‘ नाम में है वह किसी और में नहीं है। इसी लिए उस मालिक ने इस्लाम का जो कलिमा निश्चित किया है, उसमें इन दोनों नामों का इस्तेमाल किया है।
‘ला इलाहः इल-लल्लाह‘
अर्थात अल्लाह के अतिरिक्त कोई अन्य इलाह नहीं है, परमपूज्य के अलावा कोई पूज्य नहीं है। जो सच्चाई की तलाश में है, जो अपने गं्रथ का जानकार है, वह जानता है कि यह बात सच है। आज लोगों ने बहुत सी चीज़ों को पूज्य बना रखा है बल्कि परमपूज्य भी कहते हैं, मां को, बाप को, गुरू को बल्कि जानवरों तक को। हर चीज़ को परमपूज्य बना लिया। परमपूज्य का स्थान जब वे किसी और से भर चुके हैं तो अब वे कैसे जान पाएंगे कि दौलत परमपूज्य नहीं है, ज्ञान और ज्ञानी परमपूज्य नहीं है बल्कि परमपूज्य वह है जो इन सबका दाता है।
दौलत के पुजारी
अब दीवाली आ रही है। रावण जलाया जा चुका है और अब ‘लक्ष्मी‘ पूजी जाएगी। जिस समाज में दौलत की पूजा आम हो, वहां केवल दौलतमंद को ही जीने का अधिकार शेष रह जाता है। दीवाली तो उनकी दीवाली है जो पूरे देश का दिवाला निकाल रहे हैं। उन्हें किसी की शुभकामनाओं की ज़रूरत नहीं है। देश में जो भी शुभ था सब उन्होंने समेट लिया है। ग़रीब लोगों का गुज़र कोरी शुभकामनाओं से होता नहीं। धर्म और ईश्वर से कटने के बाद शुभकामनाएं देना केवल एक फ़िज़ूल रस्म है जिससे किसी का कुछ भी शुभ नहीं होता।
सोमालिया में पकड़े गए नौजवान अगर 22 न होकर 1 भी होता लेकिन होता वह किसी दौलतमंद नेता के घर से तो उसे छुड़ाने के लिए वह सब कुछ किया जाता जो कि नहीं भी करना चाहिए था। रूबिया सईद की रिहाई की कोशिशें इसकी मिसाल हैं। तब यह भी नहीं देखा जाता कि जिसके लिए कोशिशें की जा रही हैं वह एक मुसलमान है। हिन्दू मुसलमान का भेद तब ख़त्म हो जाता है यहां। एक दौलतमंद मुसलमान नेता की लड़की को छुड़ाने के लिए सौदेबाज़ी की जा चुकी है लेकिन मध्यमवर्गीय हिन्दू युवाओं को छुड़ाने के लिए किसी के माथे पर चिंता की कोई लकीर तक नहीं है।
मुसलमान भी इस पर ध्यान दें
मुसलमान जो अपने साथ भेदभाव की शिकायत करते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि बेचारे हिन्दू किससे शिकायत करें ?
हिन्दू मुसलमान के भेद केवल राजनीति की दुकानें करने के लिए फैलाया जाता है वर्ना समाज में दौलत को ही खुदा का, ईश्वर का दर्जा दिया जा चुका है। वासना इनका धर्म है, ऐश इनका मक़सद है और अपराध इनका पेशा है। ये लोग समाज पर लदे हुए हैं। समाज को यही लोग तबाह कर रहे हैं। समाज के लोग ईश्वर को भुलाने का दण्ड भुगत रहे हैं तरह तरह की समस्याओं के रूप में। तमाम समस्याओं का हल सही नेता और समुचित योजना का चुनाव करने से ही हो सकता है। सही नेता चुनने के लायक़ समाज तब बनता है जब वह ‘सही‘ का चुनाव करना सीख लेता है। जो समाज सही तरीक़े से सच्चे ईश्वर को चुनने के लायक़ न हो वह सही नेता का चुनाव कैसे कर सकता है ?
सच क्या है ?
सच केवल इस्लाम है, अल्लाह का नाम है .
जो मानना चाहे मान ले, यही मेरा पैग़ाम है .
हालात इजाज़त नहीं देते इसलिए मैं किसी को भी ‘दीपावली की शुभकामनाएं‘ नहीं कह सकता। रस्म के तौर पर कह देना फ़िज़ूल है और सच में मुल्क के हालात शुभ हैं नहीं।
प्रार्थना पर टिकी हैं भविष्य की आशाएं
फिर भी ...
ईश्वर अल्लाह से हम शुभमति और सन्मति की प्रार्थना तो कर ही सकते हैं क्योंकि कोई नहीं जानता कि वह भविष्य में हम पर कैसे मेहरबान हो जाए ?
मालिक हमारे हर दिन को खुशियों से भर दे।
आप सबके दिल को मुहब्बत से भर दे।
आप सबके घर को प्यार भरे रिश्तों की सच्ची दौलत से भर दे।
आप सबके साथ जो भी अच्छाई वह मालिक करे वही मेरे साथ भी हो।
आमीन, तथास्तु।
ओउम शांति।
श
इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन इन्सान खुद है। लोग समझते हैं कि समस्याओं का हल शिक्षा से संभव है लेकिन यह सिर्फ़ एक मुग़ालता है। आज जितने बड़े अपराधी हैं सभी शिक्षित हैं बल्कि देशों के प्रमुख तक हैं। उनके सलाहकार भी अपराधी ही हैं। मामूली अपराधी तो जेब काटते हैं या फिर लूटकर छोड़ देते हैं लेकिन ये अपराधी तो देशों पर हमले कर डालते हैं, मासूम बच्चों को अनाथ बना देते हैं और उस देश की संपदा ही नहीं लूटते बल्कि उसका गौरव भी लूट लेते हैं। ये लाखों लोगों को मार डालते हैं लेकिन इन्हें कोई आतंकवादी नहीं कह सकता बल्कि ये उन लोगों को आतंकवादी कहते हैं जिन्होंने इनके गिनती के लोग बदले में मार दिए होते हैं। पिछलग्गू देश अपनी ख़ैर मनाते हुए इनकी हां में हां मिलाते हैं और उनके बाशिन्दे इस ग़ुलामी पर फ़ख़्र करते हैं।
पूरा देश बंधक है विदेश में
इन ग़ुलामों में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहते हैं। इस समय दुनिया का हाल कुछ ऐसा ही नज़र आ रहा है। खि़लाफ़त का ख़ात्मा करने के बाद अंग्रेज़ और अमेरिकन मुस्लिम देशों को लूटते रहे। इन्होंने यूरोप को एक कर लिया और एशिया को बांट दिया। इन्होंने हिन्दुस्तान को बांट दिया। बंटे हुए हिन्दुस्तान में अब भी और ज़्यादा बंटने की मांग उठती रहती है। लोगों ने एक भ्रम खड़ा कर रखा है कि हिन्दुस्तान बहुत पावरफ़ुल होकर उभर रहा है। हालांकि यह एक हक़ीक़त है तब भी एक भ्रम है। भारत एक एटमिक शक्ति संपन्न देश है लेकिन उसके 22 नौजवानों को महीनों से सोमालियाई लुटेरों ने बंधक बनाकर रखा हुआ है। भारत न तो उन्हें छुड़ा पाया है और न ही उसके पास कोई योजना है उन्हें छुड़ाने की। वे सब आम लोगों के बच्चे हैं और सभी हिन्दू हैं। जर्मनी के इस जहाज़ के कैप्टन मुम्बई के महादेवल मकाने हैं और दूसरे नौजवान देश के अलग अलग इलाकों से हैं। ग़ाज़ियाबाद के चिराग़ हैं, सुल्तानपुर के शरद कुमार हैं, उड़ीसा के सुधांशु पांडेय हैं, देहरादून के संदीप डंगवाल हैं, राजस्थान के जितेन्द्र राठौर हैं, आदि आदि। देश के हरेक हिस्से का युवा बंधक है, देश के हरेक इलाक़े का प्रतिनिधि बंधक पड़ा है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा देश ही प्रतीकात्मक रूप से बंधक पड़ा है। एक-दो दिन से नहीं बल्कि 8 मई से बंधक पड़े हैं। पूरा देश कहीं विदेश में बंधक पड़ा है लेकिन उसे आज़ाद कराने की चिंता न देश के नेतृत्व को है और न ही उन्हें अपना प्रमुख चुनने वाली जनता को।
एक महाशक्ति का तौर तरीक़ा क्या होना चाहिए ?
राम के देश के लोग कहीं किसी रावण के हाथ में हैं लेकिन लोगों को उस रावण से लड़ने की कोई इच्छा तक नहीं है लेकिन वे कब के मर चुके रावण के फ़र्ज़ी काग़ज़ी पुतले बना रहे हैं। फिर वे उनमें आग लगाएंगे और अख़बारों में छापेंगे कि रावण बुराई का प्रतीक है उसे जलाने का मतलब है बुराई को नष्ट करने का संकल्प लेना। न जाने कब से खुद को धोखा देते आ रहे हैं, कब से जुआ खेलते आ रहे हैं। कब से रावण के पुतले जला रहे हो ? किसी एक भी बुराई को समाज से मिटा सके ?
सोमालिया के लुटेरे रावण बने हुए पूरे देश की शक्ति को चुनौती दे रहे हैं लेकिन क्या कोई लड़ने गया है उनसे अब तक ?
जब भारत ऐसी दयनीय दीनता का परिचय देगा तो क्या फ़ायदा उसे संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता लेकर ?
पहले जो शक्ति आपको हासिल है उसे इस्तेमाल करना तो सीख लीजिए।
देश बंधक पड़ा है विदेश में। उन नौजवानों के घरों में मातम है। लेकिन पूरा देश दीवाली की तैयारी करने में मगन है। एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी जा रही हैं।
किस बात की शुभकामनाएं हैं ये ?
असली रावण के मुक़ाबले से कतराने की ?
दुनिया में अपने देश की दुर्बलता के प्रदर्शन की ?
ऐसी ही बेग़ैरती के आलम में देश ने खेलगांव में ‘खेल‘ भी देखे ?
इनका दिल कैसे होता है किसी त्यौहार को मनाने का या कोई खेल देखने का ?
हां, ज़मीर मर चुका हो, अहसास और ग़ैरत रूख्सत हो चुकी हो तो कोई कुछ भी कर सकता है।
घर के शेर
सचमुच के विदेशी रावण के सामने पड़ने से भी घबराने वाले अपने घर में ज़रूर शेर हैं।
क्या कोई बता सकता है कि अपने घर में कौन शेर होता है ?
कहीं पता चल जाए कि कोई दलित किसी मरी हुई गाय की खाल उतार रहा है, बस उसमें ज़रूर आग लगा देंगे। सिक्खों को जला देंगे, ईसाईयों को जला देंगे और जब जलाने पर आएंगे तो ये गाय को भी जला देंगे बस शर्त यह है कि वह गाय होनी किसी मुसलमान की चाहिए। तोड़ने पर आएंगे तो ये अयोध्या के मंदिर भी तोड़ देंगे और लड़ने पर आएंगे तो इतना बहाना भी काफ़ी है कि उन्हीं के विस्फोटक उनकी ग़लती से ट्रेन के अंदर से जल जाएं और उनके कार्यकर्ता मारे जाएं।
अंग्रेज़ों की दया पर पलने वाले ये लोग उन पर हमला करते हैं जो सदा ही अंग्रेज़ों से लड़ते आए हैं। कहीं ये अंग्रेज़ों के एजेंट तो नहीं हैं ?
आखि़र इनके लड़ाई दंगों का फ़ायदा देश को तो मिलने वाला है नहीं। देश की लड़ाई देश को खोखला ही कर रही है। जो लोग ‘जन गण मन‘ नहीं गाते क्योंकि उसे कभी जार्ज पंचम के लिए लिखा गया था तो ये ‘वन्दे मातरम्‘ क्यों गाते हैं ?
‘वन्दे मातरम्‘ भी अंग्रेज़ों के एक चापलूस नौकर ने ही लिखा है।
खुद को मिटाने का मक़सद क्या है ?
इनका मक़सद विवाद खड़ा करना है। लोगों को बांटना है। अगर लोग ‘जन गण मन‘ गा रहे हैं तो ये नहीं गाएंगे ताकि लोग बंटे। अगर जागरूक लोग ‘वन्दे मातरम्‘ नहीं गाना चाहते तो ये लोग ज़ोर डालेंगे कि ज़रूर गाना पड़ेगा। इनके पास सेना है, संगठन है, शक्ति है, अनुशासन है लेकिन किसी सचमुच के विदेशी रावण से लड़ने की हिम्मत इनमें भी नहीं है। अपनी शक्ति का प्रयोग ये केवल भस्मासुर की तरह करते हैं। खुद अपने ही देशवासियों को नष्ट करने में ये दक्ष और कुशल हैं। देश के मुसलमानों को पाकिस्तान का साबित करेंगे और जो सचमुच का पाकिस्तानी होगा उसे अपना प्रमुख बना लेंगे बल्कि उसे देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना सारा ज़ोर लगा देंगे।
इतना अंतर क्यों ?
क्या सिर्फ़ इसलिए कि वह मुसलमान नहीं है ?
लेकिन सोमालियाई लुटेरों की गिरफ़्त में बंधक पड़े नौजवान भी तो मुसलमान नहीं हैं। चलिए आप हिन्दुओं की ही फ़िक्र कर लीजिए। इन्हें न हिन्दुओं की कोई फ़िक्र है और न ही युवा शक्ति की। इन्हें बस फ़िक्र है अपनी शक्ति की। ये हिन्दुओं का , उनके युवाओं का इस्तेमाल करते हैं अपनी शक्ति बढ़ाने में। अपनी शक्ति का लाभ इनका उच्च वर्ग खुद उठाता है, किसी को लाभ पहुंचाता नहीं है। अयोध्या आंदोलन में मारे गए हिन्दू युवाओं की विधवाएं आज तक बेसहारा घूम रही हैं। धर्म इनके पास बचा नहीं है और संस्कृति के गुणगान से ये पीछे नहीं हटते। भारतीय संस्कृति का गुणगान करने वाले ये लोग जब कभी इकठ्ठा होते हैं तो पहनते हैं अंग्रज़ी स्टाइल का ख़ाकी नेकर ?
यह कौन सी संस्कृति है ?
इनके पास संस्कृति भी नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं कि राष्ट्रवाद केवल एक ढकोसला है। राष्ट्रवादियों को न तो देश के युवाओं की चिंता है और न ही भारतीय संस्कृति की। इन्हें केवल इस बात की चिंता है कि मुसलमानों का मनोबल कैसे डाउन रखा जाए ?
दबे-कुचले लोगों को समानता और मुक्ति का पाठ पढ़ाने वाले मुसलमानों, ईसाईयों और वामपंथियों को कैसे सबक़ सिखाया जाए ?
सफलता में असफलता
इन्होंने आंदोलन चलाए, लाखों लोग उजाड़ दिए। इनके आंदोलन की सफलता ही इनकी असफलता सिद्ध हुई। इन्हें उनके वोट मिलने बंद हो गए। ये खुद ही सत्ता से बेदख़ल हो गए। इनकी तबाही झेल चुके मुसलमानों के आपसी मतभेद ख़त्म हो गए। देश के शिया-सुन्नी एक हो गए। पाकिस्तान में शिया सुन्नी एक दूसरे की मस्जिदों में और दरगाहों में बम फोड़ रहे हैं और देश के हुक्मरां अपना सर फ़ोड़ रहे हैं कि इस ख़ून-ख़राबे को कैसे रोकें ?
लेकिन भारत के शिया सुन्नी चैन से जी रहे हैं। क्या वजह है इस चैन की ?
क्या भारत के शिया और सुन्नियों की आइडियोलॉजी कुछ अलग है वहां के शिया सुन्नियों से ?
बिल्कुल नहीं। दोनों ही जगह के लोगों की एक ही विचारधारा है।
दरअस्ल विचारधारा का नहीं बल्कि हालात का फ़र्क़ है। पाकिस्तान के हुक्मरां अपने देश के मुसलमानों को जो न दे सके, भारत के मुसलमानों को एकता का वह बेनज़ीर तोहफ़ा दिया है उनके वुजूद से नफ़रत करने वालों ने।
अल्लाह शर से भी ख़ैर पैदा कर देता है
अल्लाह का शुक्र है हर हाल में, बेशक वह हर हाल में मेहरबान है अपने बन्दों पर। वह किस तदबीर से बन्दों को क्या बख्शता है उसे कोई नहीं जान सकता। अल्लाह की यह मेहरबानी सिर्फ़ मुसलमानों पर ही नहीं है बल्कि हिन्दुओं पर भी है कि उनके देश में मुसलमान आबाद हैं, जिनके पास वास्तव में ‘धर्म‘ है। वह सनातन धर्म जिसे वे बहुत पहले खो चुके हैं।
इस्लाम वास्तव में सनातन धर्म है, यह इतना ज़्यादा स्पष्ट है कि अगर कोई हिन्दू निष्पक्षता से इस्लाम के बुनियादी अक़ीदों पर और उसके पांच स्तम्भों पर ही नज़र डाल ले तो वह आसानी से सत्य जान लेगा।
इस्लाम के बुनियादी अक़ीदे
1. तौहीद यानि एक परमेश्वर के प्रति निष्ठा और समर्पण रखना
2. रिसालत यानि एक ऐसे आदर्श पुरूष को गुरू बनाकर उसका अनुसरण करना जिसके अंतःकरण पर ईश्वर की वाणी का अवतरण हुआ हो।
3. आखि़रत यानि परलोक, एक ऐसा स्थायी जगत जहां मानव जाति को उसके सभी कर्मों का फल न्यायानुसार मिल सके।
इस्लाम के पांच स्तम्भ
1. कलिमा यानि ईश्वर को स्वामी और पूज्य मानना और हज़रत मुहम्मद साहब स. को उसका दास और दूत मानना।
2. नमाज़ यानि केवल एक परमेश्वर के सामने ही समर्पण करना और जो उसके नियम हैं, उसकी आज्ञाएं हैं उनका पालन करने का संकल्प लेना।
3. ज़कात यानि समर्थ लोगों द्वारा एक निश्चित राशि अनिवार्य रूप से समाज के ज़रूरतमंदों को दान देना।
4. रोज़ा यानि चांद के बारह महीनों में से एक निश्चित माह में उपवास रखना।
5. हज यानि तीर्थ यात्रा काबा की परिक्रमा करना। काबा एक तीर्थ है इसे हिन्दू भाई अच्छी तरह से जानते हैं।
धर्म एक है सबका
अब बताइये, इनमें ऐसी कौन सी बात है जिस पर हिन्दू भाई खुद विश्वास न रखते हों। हो सकता है वे हज़रत मुहम्मद साहब स. को रसूल और गुरू न मानते हों तब भी उन्हें गुरू की ज़रूरत वास्तव में है। वे उनके स्थान पर किसी और को गुरू बनाते हैं। गुरू और गुरूवाद में तो बहरहाल वे विश्वास रखते ही हैं। इन सभी बातों को वे मानते हैं चाहे उनके मानने की रीति थोड़ी अलग ही क्यों न हो ?
इस्लाम ऐसी कौन सी बात उनसे मनवाना चाहता है जिसे वे पहले से ही न मानते हों ?
इस्लाम की विशेषता
इस्लाम तो उन्हें उन विपरीत विचारों और कुरीतियों से मुक्ति देता है जो ‘समन्वय‘ और ‘अनेकता में एकता‘ के चक्कर में मान्यता पाकर समाज को नुक्सान पहुंचा रही हैं। इस्लाम अगर एक ईश्वर की वंदना-उपासना के लिए कहता है तो फिर किसी मूर्ति की आरती की इजाज़त वह नहीं देता। वह रावण के काग़ज़ी पुतलों में धन और ऊर्जा बर्बाद करने के बजाए असली रावण को ठिकाने लगाने की प्रेरणा देता है। वह आग में घी डालने के बजाए इन्सान के पेट की आग बुझाने का रास्ता दिखाता है। वह पत्थर की मूर्तियों को दिखावटी भोग लगाने के बजाए हाड़-मांस की ईश्वरकृत जीवित मूर्तियों को सच्चा भोग कराने का हुक्म देता है। नर के रूप में नारायण की कल्पना तो सनातन धर्म में भी पाई जाती है। उसे वास्तव में सिद्ध करना केवल इस्लाम में ही संभव है। केवल इस्लाम ही बता सकता है कि कहां किस बात को अलंकार के अर्थ में लेना है और कहां उसे उसके शाब्दिक अर्थ में ?
इस्लाम आपका सहायक, आपका मुक्तिदाता
इस्लाम आपकी हज़ारों साल पुरानी उलझी हुई गुत्थियों को सुलझा सकता है। ऐसा धर्म हिन्दू लोगों को आज उनके अपने ही देश में सुलभ है। उन पर यह अल्लाह का ख़ास ईनाम है।
लेकिन जो लोग मुसलमानों की नफ़रत में अंधे हो चुके हैं उन्हें यह ईश्वरीय उपहार दिखाई नहीं दे रहा है। उन्हें तो ‘अल्लाह‘ नाम से भी घृणा है। इसी ब्लागजगत में ‘अल्लाह‘ के नाम की खिल्ली उड़ाई जा रही है। दुनिया जानती है कि ईश्वर अल्लाह एक ही स्रष्टा के नाम हैं दो अलग-अलग भाषाओं में लेकिन इन्कार करने वाले इस सच्चाई से इन्कार कर रहे हैं।
चलिए नहीं मानना है तो मत मानिए, अल्लाह के नाम का मज़ाक़ तो मत उड़ाइये।
शांति का कोई दिखावटपरस्त नहीं फटकता वहां समझाने के लिए, क्यों ?
क्या सिर्फ़ इसलिए कि यह हिन्दुस्तान है और मज़ाक़ उड़ाने वाला एक हिन्दू है ?
लेकिन यह हिन्दुस्तान भी अल्लाह ही का है। ज़मीन व आसमान अल्लाह ही का है। हर चीज़ उसी की है। किसी भी चीज़ को हक़ नहीं है कि वह अल्लाह की मज़ाक़ उड़ाए।
लोग नाम की मज़ाक़ उड़ाते हुए यह भूल जाते हैं कि नाम भले ही अलग हैं लेकिन ये सब नाम जिसके हैं वह तो एक ही है।
अल्लाह स्वामी है सब लोकों का
अरबी में ‘इलाह‘ का अर्थ पूज्य है। अरब के लोग अल्लाह को भी ‘इलाह‘ अर्थात पूज्य मानते थे और जब धर्म का लोप हो गया था तो वे दूसरी क़ौमों की नक़ल में कुछ और चीज़ों को भी ‘इलाह‘ कहने लगे थे जो कि वास्तव में इलाह नहीं थे। अल्लाह शब्द में ‘इलाह‘ खुद ही समाहित है। इलाह का अर्थ है पूज्य और ‘अल + इलाह‘ के योग से बने शब्द अल्लाह का अर्थ है ‘परमपूज्य‘।
कुरआन की पहली सूरत की बिल्कुल पहली ही आयत में उसका परिचय इस तरह मिलता है-
अल्-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल अ़ालमीन .
अर्थात विशेष प्रशंसा है परमपूज्य के लिए जो पालनहार है सभी लोकों का।
वेद-उपनिषद में भी है अल्लाह का नाम
अल्लाह नाम भी हिन्दुओं के लिए अजनबी नहीं है। अल्लोपनिषद में यह नाम आया है।
जो लोग अल्लोपनिषद को नहीं मानते। वे इस नाम में समाहित ‘इलाह‘ को थोड़े अंतर के साथ वेद में भी देख सकते हैं लेकिन वहां भी उसका अर्थ पूज्य ही है।
ऋग्वेद में ईश्वर के लिए जिन नामों को प्रयोग हुआ है, उनमें से एक नाम ‘इला‘ है जिसका मूल तत्व ‘इल‘ या ‘ईल‘ है और जिसका अर्थ है पूजा करना, स्तुति करना। ‘ईल्य‘ का धात्वर्थ है ‘पूजनीय‘। ऋग्वेद के बिल्कुल शुरू में ही यह शब्द प्रयुक्त हुआ है जिसका स्पष्ट अर्थ है कि ‘हे ईश्वर ! तू पूर्व और नूतन, छोटे और बड़े सभी के लिए पूजनीय है। तुझे केवल विद्वान ही समझ सकते हैं।‘ (ऋ. 1;1;1 )
यह नाम इतना पुरातन है कि लगभग 6 हज़ार साल पहले सुमेरिया की भाषा में ‘ईल‘ शब्द परमेश्वर के लिए बोला जाता था। सुमेरियन नगर ‘बाबिलोन‘ शब्द दरअस्ल ‘बाबेईल‘ था अर्थात ईश्वर का द्वार, हरिद्वार । यही वह शब्द है जो किसी न किसी रूप में इब्रानी, सुरयानी तथा कलदानी भाषाओं में ईश्वर के अस्तित्व के लिए इस्तेमाल होता आया है। जिस वुजूद के लिए यह नाम हमेशा से इस्तेमाल होता आया है वह सबका मालिक है। सबका मालिक एक है।
अल्लाह का नाम, एकता का आधार
इस पवित्र नाम से सब लोकों को और सब लोगों को इस बात यक़ीन हासिल हो सकता है। उस मालिक के सभी नाम अच्छे हैं लेकिन जो ख़ासियत ‘इलाह‘ और ‘अल्लाह‘ नाम में है वह किसी और में नहीं है। इसी लिए उस मालिक ने इस्लाम का जो कलिमा निश्चित किया है, उसमें इन दोनों नामों का इस्तेमाल किया है।
‘ला इलाहः इल-लल्लाह‘
अर्थात अल्लाह के अतिरिक्त कोई अन्य इलाह नहीं है, परमपूज्य के अलावा कोई पूज्य नहीं है। जो सच्चाई की तलाश में है, जो अपने गं्रथ का जानकार है, वह जानता है कि यह बात सच है। आज लोगों ने बहुत सी चीज़ों को पूज्य बना रखा है बल्कि परमपूज्य भी कहते हैं, मां को, बाप को, गुरू को बल्कि जानवरों तक को। हर चीज़ को परमपूज्य बना लिया। परमपूज्य का स्थान जब वे किसी और से भर चुके हैं तो अब वे कैसे जान पाएंगे कि दौलत परमपूज्य नहीं है, ज्ञान और ज्ञानी परमपूज्य नहीं है बल्कि परमपूज्य वह है जो इन सबका दाता है।
दौलत के पुजारी
अब दीवाली आ रही है। रावण जलाया जा चुका है और अब ‘लक्ष्मी‘ पूजी जाएगी। जिस समाज में दौलत की पूजा आम हो, वहां केवल दौलतमंद को ही जीने का अधिकार शेष रह जाता है। दीवाली तो उनकी दीवाली है जो पूरे देश का दिवाला निकाल रहे हैं। उन्हें किसी की शुभकामनाओं की ज़रूरत नहीं है। देश में जो भी शुभ था सब उन्होंने समेट लिया है। ग़रीब लोगों का गुज़र कोरी शुभकामनाओं से होता नहीं। धर्म और ईश्वर से कटने के बाद शुभकामनाएं देना केवल एक फ़िज़ूल रस्म है जिससे किसी का कुछ भी शुभ नहीं होता।
सोमालिया में पकड़े गए नौजवान अगर 22 न होकर 1 भी होता लेकिन होता वह किसी दौलतमंद नेता के घर से तो उसे छुड़ाने के लिए वह सब कुछ किया जाता जो कि नहीं भी करना चाहिए था। रूबिया सईद की रिहाई की कोशिशें इसकी मिसाल हैं। तब यह भी नहीं देखा जाता कि जिसके लिए कोशिशें की जा रही हैं वह एक मुसलमान है। हिन्दू मुसलमान का भेद तब ख़त्म हो जाता है यहां। एक दौलतमंद मुसलमान नेता की लड़की को छुड़ाने के लिए सौदेबाज़ी की जा चुकी है लेकिन मध्यमवर्गीय हिन्दू युवाओं को छुड़ाने के लिए किसी के माथे पर चिंता की कोई लकीर तक नहीं है।
मुसलमान भी इस पर ध्यान दें
मुसलमान जो अपने साथ भेदभाव की शिकायत करते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि बेचारे हिन्दू किससे शिकायत करें ?
हिन्दू मुसलमान के भेद केवल राजनीति की दुकानें करने के लिए फैलाया जाता है वर्ना समाज में दौलत को ही खुदा का, ईश्वर का दर्जा दिया जा चुका है। वासना इनका धर्म है, ऐश इनका मक़सद है और अपराध इनका पेशा है। ये लोग समाज पर लदे हुए हैं। समाज को यही लोग तबाह कर रहे हैं। समाज के लोग ईश्वर को भुलाने का दण्ड भुगत रहे हैं तरह तरह की समस्याओं के रूप में। तमाम समस्याओं का हल सही नेता और समुचित योजना का चुनाव करने से ही हो सकता है। सही नेता चुनने के लायक़ समाज तब बनता है जब वह ‘सही‘ का चुनाव करना सीख लेता है। जो समाज सही तरीक़े से सच्चे ईश्वर को चुनने के लायक़ न हो वह सही नेता का चुनाव कैसे कर सकता है ?
सच क्या है ?
सच केवल इस्लाम है, अल्लाह का नाम है .
जो मानना चाहे मान ले, यही मेरा पैग़ाम है .
हालात इजाज़त नहीं देते इसलिए मैं किसी को भी ‘दीपावली की शुभकामनाएं‘ नहीं कह सकता। रस्म के तौर पर कह देना फ़िज़ूल है और सच में मुल्क के हालात शुभ हैं नहीं।
प्रार्थना पर टिकी हैं भविष्य की आशाएं
फिर भी ...
ईश्वर अल्लाह से हम शुभमति और सन्मति की प्रार्थना तो कर ही सकते हैं क्योंकि कोई नहीं जानता कि वह भविष्य में हम पर कैसे मेहरबान हो जाए ?
मालिक हमारे हर दिन को खुशियों से भर दे।
आप सबके दिल को मुहब्बत से भर दे।
आप सबके घर को प्यार भरे रिश्तों की सच्ची दौलत से भर दे।
आप सबके साथ जो भी अच्छाई वह मालिक करे वही मेरे साथ भी हो।
आमीन, तथास्तु।
ओउम शांति।
श
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सोमालिया
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16 comments:
अच्छी पोस्ट
अल्लाह का नाम पाक है जो उसका अदब न करे वह नापाक है नामुराद है ।
NICE POST .
अफसोस है ऐसे लोगों के हाल पर ; बस दुआ करें .
अल्लाह स्वामी है सब लोकों का
अरबी में ‘इलाह‘ का अर्थ पूज्य है। अरब के लोग अल्लाह को भी ‘इलाह‘ अर्थात पूज्य मानते थे और जब धर्म का लोप हो गया था तो वे दूसरी क़ौमों की नक़ल में कुछ और चीज़ों को भी ‘इलाह‘ कहने लगे थे जो कि वास्तव में इलाह नहीं थे। अल्लाह शब्द में ‘इलाह‘ खुद ही समाहित है। इलाह का अर्थ है पूज्य और ‘अल + इलाह‘ के योग से बने शब्द अल्लाह का अर्थ है ‘परमपूज्य‘।
कुरआन की पहली सूरत की बिल्कुल पहली ही आयत में उसका परिचय इस तरह मिलता है-
अल्-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल अ़ालमीन .
अर्थात विशेष प्रशंसा है परमपूज्य के लिए जो पालनहार है सभी लोकों का।
Nice Post
tusi great ho ( lajawab post )
nice post again
nice post
Dead body of FIRON - Sign of Allah
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs
विडियो
Happy Deepawali
http://jaishariram-man.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
Shandar post.
Shandar post.
Answer Bhaibade adab k sath puchna chahti hu kyaapke dimag me khalal h ???ya hamare dimag me apko khalal lagra h?? Ik trf fb PR aap bolte h k Vedo ko kuch log eeshwadi batare h ye bat sabit krne k liye koi ik Nam bataen Jo Quran me Aya ho ya Allah ki trhan ka koi Nam Vedo use hua ho ,r dusri traf is post me khud likhre h k Allah ki trha ka ik Nam ved me Aya h ,,Kya bolna chahre h aap thoda dubara soch kr phr see bataiye,r bat wajeh dotk kijiye (,on the point ) ye khamkha ka Alam gullam Milana mozu se bhatkane jesa h apki bat wazeh km hoti h pecheeda zyada hoti h ,,ye Allah ka Gyan h aesi zanban r andaz me likhiye k km aqal ko smjh ajae .
वेदों मैं इले है
यह लेख डा० अनवर जमाल का पुराना लेख है। इसमें वहीं बातें दोहराई गई हैं, जो 'अगर अब न जागे तो...' पुस्तक में लिखी हैं। इस लेख के बाद डा० अनवर जमाल ने आगे और अधिक रिसर्च की और बताया कि वेद परमेश्वर की वाणी नहीं है क्योंकि इसमें परमेश्वर ने अपने किसी असंदिग्ध निज नाम के साथ अपना परिचय नहीं दिया है और सनातनी वेदभाष्य के अनुसार वेदों में आग व सूर्य आदि की उपासना है।
वेद वास्तव में ऋषियों का रचा हुआ काव्य है।
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