सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, October 10, 2010
Utility of Christian rituals for pregnant ladies क्या ईसाईयों की औरतों को बच्चा जनते हुए अब प्रसव की पीड़ा नहीं होती ? - Anwer Jamal
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के रसूल थे, उसकी कुदरत के निशान थे। उन्होंने परमेश्वर की इच्छा के अनुसार खुद भी जीवन जिया और लोगों को भी जीना सिखाया। लोगों पर हुकूमत करने वालों की चापलूसी करने वालों को अपनी गद्दी ख़तरे में नज़र आई तो उन्हें हुकूमत का बाग़ी घोषित कर दिया और उनकी जान लेने की नाकाम कोशिश की। बाइबिल के अनुसार उनके विरोधी उनकी बात मानने के लिए तैयार नहीं थे और उनके मानने वालों में यहूदा इस्करियोती जैसे आस्तीन के सांप भी थे जिन्होंने उनकी मुख़बिरी की और पकड़वाया। मानने वालों में पतरस जैसे लोग भी थे जिसे मसीह ने शैतान कहा (मत्ती, 16, 23 )। उसने सामने मुसीबत को देखकर मसीह का साथी होने से इन्कार कर दिया। (मत्ती, 26, 34)
अपने पकड़वाये जाने के आखि़री लम्हों में मसीह बहुत उदास और व्याकुल थे।
यीशु ने उनसे कहा ,‘‘मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरा प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।‘‘(मत्ती, 26, 38)
वह चेलों के पास लौटे। उन्होंने देखा कि चेले सो रहे हैं। यीशु ने पतरस से कहा , ‘‘क्या तुम लोग मेरे साथ एक पल भी न जाग सके ? जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। (मत्ती, 26, 40 व 41)
मसीह इसी प्रकार अपने साथियों को बार-बार सावधान करते रहे लेकिन चेले सोते रहे। तीसरी बार लौटकर देखा तब भी वे चेले सो रहे थे जबकि मसीह परमेश्वर के सामने ‘दुख का कटोरा‘ हटाने की प्रार्थना अपने परमेश्वर से कर रहे थे।
तब यीशु चेलों के पास लौटे और उनसे कहा, तुम अब भी सो रहे हो और विश्राम कर रहे हो ? देखो समय आ पहुंचा है। मनुष्य का पु़त्र पापियों के हाथ पकड़वाया जा रहा है।‘‘ (मत्ती, 26, 45 व 46)
मसीह अभी यह कह ही रहे थे कि उनका शिष्य सिपाहियों को लेकर आ गया और उन्हें चूमा। उसने सिपाहियों को यही बता रखा था कि ‘जिसको मैं चूमूं , वही है, उसे पकड़ लेना।‘ (मत्ती, 26, 48)
इन लोगों की अवज्ञा और आलस्य से परेशान होकर ही आखि़री रात मसीह ने रोटी के टुकड़े अपने चेलों को देकर कहा था कि ‘लो खाओ। यह मेरी देह है।‘ (मत्ती, 26, 26)
इसी तरह उन्होंने दाखरस को अपना लहू कहकर अपने चेलों को पीने को दिया ताकि उन्हें अहसास हो कि वे किस प्रकार मसीह का खून पी रहे हैं और उनके पापों और कमज़ोरियों के कारण दुश्मनों की हिम्मत उन्हें सताने के लिए बढ़ती ही जा रही है। लेकिन उनके चेले उनकी दूसरी बहुत सी बातों की तरह इसे भी न समझ सके और उन्होंने इसे एक धार्मिक रीति मान ली और आज तक ‘रोटी‘ को ‘मसीह की देह‘ और ‘वाइन‘ को ‘उनका लहू‘ कहकर पी खा-रहे हैं।
जनाब राकेश लाल जी भी यही करते आये हैं और मुझसे कह रहे हैं कि ‘मैंने कुछ चखा नहीं है‘।
वाक़ई मैंने कभी मसीह अलैहिस्सलाम के मांस और लहू के प्रतीक के रूप में रोटी और शराब को नहीं चखा है। जो लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के क़ातिलों के आने के समय भी सो रहे थे उन्होंने उनकी तालीम को कितना सुरक्षित रखा होगा ?, समझा जा सकता है।
राकेश लाल जी यह समझकर आये थे कि दूसरे तो बस यूं ही हैं उन्हें सही-ग़लत की तमीज़ नहीं है। मैं मसीह को खुदावन्द कहूंगा और वे मान लेंगे। शायद उनकी बातचीत आज तक हिन्दू भाईयों से ही हुई होगी। हालांकि सभी हिन्दू भी सृष्टि को परमेश्वर मानने के लिए तैयार नहीं होते।
अब जब उनसे उनके दावे के हक़ में दलील मांगी गई तो कह रहे हैं कि ‘प्रिय भाई अनवर जमाल जी मैने ऐसा कब कहा कि आप हज़रात ईसा अलैहिस्सलाम को ईश्वर मान लें ?‘
अब वे अपनी जान छुड़ाने का उपाय ढूंढ रहे हैं। और धर्म को ‘चाय-कॉफ़ी‘ की मिसाल देकर कह रहे हैं कि जिसका दिल जो पीने को चाहे पी सकता है। बात यह नहीं कि कौन क्या पी सकता है ?
सवाल यह है कि क्या मसीह के नाम से बपतिस्मा लिए बिना आदमी की ‘मूल पाप‘ से मुक्ति संभव है ?
अगर धर्म प्रचार का शौक़ है तो आदमी के अन्दर हौसला भी होना चाहिए लेकिन राकेश लाल जी हौसला लाएंगे कहां से ? उन्होंने तो बस यह सीखा है कि जो भी आदमी उनके दावे की सत्यता का प्रमाण मांगे उसे कह दो कि ‘आपने अभी चखा नहीं है‘।
1.भाई आपने तो चख लिया है। अब बताइये कि क्या आपको परमेश्वर के श्राप से मुक्ति मिल गई है ?
2.क्या आपकी औरतों को बच्चा जनते हुए अब प्रसव की पीड़ा नहीं होती ?
3.क्या अब आपको रोटी के लिए मेहनत-मशक्क़त नहीं करनी पड़ती ?
4.अगर यह सब नहीं है तो फिर क्या फ़ायदा हुआ ‘एक खुदा को तीन मानने का‘?
अपने पकड़वाये जाने के आखि़री लम्हों में मसीह बहुत उदास और व्याकुल थे।
यीशु ने उनसे कहा ,‘‘मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरा प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।‘‘(मत्ती, 26, 38)
वह चेलों के पास लौटे। उन्होंने देखा कि चेले सो रहे हैं। यीशु ने पतरस से कहा , ‘‘क्या तुम लोग मेरे साथ एक पल भी न जाग सके ? जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। (मत्ती, 26, 40 व 41)
मसीह इसी प्रकार अपने साथियों को बार-बार सावधान करते रहे लेकिन चेले सोते रहे। तीसरी बार लौटकर देखा तब भी वे चेले सो रहे थे जबकि मसीह परमेश्वर के सामने ‘दुख का कटोरा‘ हटाने की प्रार्थना अपने परमेश्वर से कर रहे थे।
तब यीशु चेलों के पास लौटे और उनसे कहा, तुम अब भी सो रहे हो और विश्राम कर रहे हो ? देखो समय आ पहुंचा है। मनुष्य का पु़त्र पापियों के हाथ पकड़वाया जा रहा है।‘‘ (मत्ती, 26, 45 व 46)
मसीह अभी यह कह ही रहे थे कि उनका शिष्य सिपाहियों को लेकर आ गया और उन्हें चूमा। उसने सिपाहियों को यही बता रखा था कि ‘जिसको मैं चूमूं , वही है, उसे पकड़ लेना।‘ (मत्ती, 26, 48)
इन लोगों की अवज्ञा और आलस्य से परेशान होकर ही आखि़री रात मसीह ने रोटी के टुकड़े अपने चेलों को देकर कहा था कि ‘लो खाओ। यह मेरी देह है।‘ (मत्ती, 26, 26)
इसी तरह उन्होंने दाखरस को अपना लहू कहकर अपने चेलों को पीने को दिया ताकि उन्हें अहसास हो कि वे किस प्रकार मसीह का खून पी रहे हैं और उनके पापों और कमज़ोरियों के कारण दुश्मनों की हिम्मत उन्हें सताने के लिए बढ़ती ही जा रही है। लेकिन उनके चेले उनकी दूसरी बहुत सी बातों की तरह इसे भी न समझ सके और उन्होंने इसे एक धार्मिक रीति मान ली और आज तक ‘रोटी‘ को ‘मसीह की देह‘ और ‘वाइन‘ को ‘उनका लहू‘ कहकर पी खा-रहे हैं।
जनाब राकेश लाल जी भी यही करते आये हैं और मुझसे कह रहे हैं कि ‘मैंने कुछ चखा नहीं है‘।
वाक़ई मैंने कभी मसीह अलैहिस्सलाम के मांस और लहू के प्रतीक के रूप में रोटी और शराब को नहीं चखा है। जो लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के क़ातिलों के आने के समय भी सो रहे थे उन्होंने उनकी तालीम को कितना सुरक्षित रखा होगा ?, समझा जा सकता है।
राकेश लाल जी यह समझकर आये थे कि दूसरे तो बस यूं ही हैं उन्हें सही-ग़लत की तमीज़ नहीं है। मैं मसीह को खुदावन्द कहूंगा और वे मान लेंगे। शायद उनकी बातचीत आज तक हिन्दू भाईयों से ही हुई होगी। हालांकि सभी हिन्दू भी सृष्टि को परमेश्वर मानने के लिए तैयार नहीं होते।
अब जब उनसे उनके दावे के हक़ में दलील मांगी गई तो कह रहे हैं कि ‘प्रिय भाई अनवर जमाल जी मैने ऐसा कब कहा कि आप हज़रात ईसा अलैहिस्सलाम को ईश्वर मान लें ?‘
अब वे अपनी जान छुड़ाने का उपाय ढूंढ रहे हैं। और धर्म को ‘चाय-कॉफ़ी‘ की मिसाल देकर कह रहे हैं कि जिसका दिल जो पीने को चाहे पी सकता है। बात यह नहीं कि कौन क्या पी सकता है ?
सवाल यह है कि क्या मसीह के नाम से बपतिस्मा लिए बिना आदमी की ‘मूल पाप‘ से मुक्ति संभव है ?
अगर धर्म प्रचार का शौक़ है तो आदमी के अन्दर हौसला भी होना चाहिए लेकिन राकेश लाल जी हौसला लाएंगे कहां से ? उन्होंने तो बस यह सीखा है कि जो भी आदमी उनके दावे की सत्यता का प्रमाण मांगे उसे कह दो कि ‘आपने अभी चखा नहीं है‘।
1.भाई आपने तो चख लिया है। अब बताइये कि क्या आपको परमेश्वर के श्राप से मुक्ति मिल गई है ?
2.क्या आपकी औरतों को बच्चा जनते हुए अब प्रसव की पीड़ा नहीं होती ?
3.क्या अब आपको रोटी के लिए मेहनत-मशक्क़त नहीं करनी पड़ती ?
4.अगर यह सब नहीं है तो फिर क्या फ़ायदा हुआ ‘एक खुदा को तीन मानने का‘?
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20 comments:
@ अनवर जमाल साहब !
आपने अच्छे सवाल उठाये हैं लेकिन राकेश लाल जी हैं कहाँ ?
1.भाई आपने तो चख लिया है। अब बताइये कि क्या आपको परमेश्वर के श्राप से मुक्ति मिल गई है ?
2.क्या आपकी औरतों को बच्चा जनते हुए अब प्रसव की पीड़ा नहीं होती ?
अब जब उनसे उनके दावे के हक़ में दलील मांगी गई तो कह रहे हैं कि ‘प्रिय भाई अनवर जमाल जी मैने ऐसा कब कहा कि आप हज़रात ईसा अलैहिस्सलाम को ईश्वर मान लें ?‘
अब वे अपनी जान छुड़ाने का उपाय ढूंढ रहे हैं। और धर्म को ‘चाय-कॉफ़ी‘ की मिसाल देकर कह रहे हैं कि जिसका दिल जो पीने को चाहे पी सकता है। बात यह नहीं कि कौन क्या पी सकता है ?
सवाल यह है कि क्या मसीह के नाम से बपतिस्मा लिए बिना आदमी की ‘मूल पाप‘ से मुक्ति संभव है ?
वाह अनवर साहब कमाल कर दिया
ऐसे ही अच्छा अच्छा लिखते रहें
अच्छी पोस्ट
@ राकेश लाल जी कुछ तो कहिए !
मेरी कविता भी पढ़ें
Nice Post.
I am very impressed to know that you have good knowledge of Christianity and Bible also.
Post is very clear to understand for the truth seekers.
Allah Hafiz
Iqbal Zafar
Nice Post.
I am very impressed to know that you have good knowledge of Christianity and Bible also.
Post is very clear to understand for the truth seekers.
Allah Hafiz
Iqbal Zafar
अगर यह सब नहीं है तो फिर क्या फ़ायदा हुआ ‘एक खुदा को तीन मानने का‘
bahut khoob
डाक्टर साहब,
इससे पहले की आपकी पोस्ट में मुझे भी सम्बोधित किया गया था, और टिप्पणी द्वारा मैने प्रश्न भी पुछे थे, जिसका प्रत्युत्तर 'एज़ाज़-उल-हक़' साहब ने दिया था।
मेरा प्रश्न है,'एज़ाज़-उल-हक़'का प्रत्युत्तर आपका ही उत्तर समझा जाय?
उसी के पुन: प्रत्युत्तर में मैने कुरआन आदि में आहार की सामुहिक उपदेशित मेनू(सुचि) प्रस्तूत करने का आग्रह किया था, जो अभी तक जवाब देना तक गवारा न हुआ। उन्होने इसी टिप्पणी को अपनी पोस्ट बनाकर भी निरूत्तर रहे, तो क्या मैं यह मानुं आप दोनों के पास जवाब नहिं?
@सुज्ञ जी - आपको इस पर भी कोइ शक है क्या?
1 . मन-मेल के लिए पहले मन का मैल निकलना जरूरी है। यहाँ पढ़ें
2 . जमाल साहब ! 'ले लो' सुज्ञ जी के ( सवालों ) का भी नंबर, राकेश मसीह जी को भी थोड़ा रेस्ट मिल जायेगा ।
उर्दू किताब'मखजन' नाम से आती है जिसमें सभी तरह के खाने पीने की चीजों नुक्सान फायदे के साथ, उसमें लगभग सभी जानवर या पक्षियों के गोश्ात-मीट बारे उसके खाने से लाभ और हाणि के साथ-साथ हलाल और हराम का भी विवरण होता है
आहार से सम्बन्धित कुरआन में कुछ आयतें भी बात काफी साफ कर देती हैं
कह दो, "जो कुछ मेरी ओर प्रकाशना की गई है, उसमें तो मैं नहीं पाता कि किसी खानेवाले पर उसका कोई खाना हराम किया गया हो, सिवाय इसके लिए वह मुरदार हो, यह बहता हुआ रक्त हो या ,सुअर का मांस हो - कि वह निश्चय ही नापाक है - या वह चीज़ जो मर्यादा से हटी हुई हो, जिसपर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो। इसपर भी जो बहुत विवश और लाचार हो जाए; परन्तु वह अवज्ञाकारी न हो और न हद से आगे बढ़नेवाला हो, तो निश्चय ही तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील, दयाबान है।"॥6:145॥
ऐ लोगों! धरती में जो हलाल और अच्छी-सुथरी चीज़ें हैं उन्हें खाओ और शैतान के पदचिह्नों पर न चलो। निस्संदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है॥2:168॥
वे तुमसे पूछते है कि "उनके लिए क्या हलाल है?" कह दो, "तुम्हारे लिए सारी अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल है और जिन शिकारी जानवरों को तुमने सधे हुए शिकारी जानवर के रूप में सधा रखा हो - जिनको जैस अल्लाह ने तुम्हें सिखाया हैं, सिखाते हो - वे जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़े रखे, उसको खाओ और उसपर अल्लाह का नाम लो। और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह जल्द हिसाब लेनेवाला है।"॥5:4॥
भाई मै बहुत समय से इन्तजार कर रहा था कि आप पूछे गये सवालों बतायेगें। कई दिनांे से मेरा मन बेचैन था मैने सोचा चलो मै ही पूछ लेता हूं
अनवर जी क्या ये बात नीचे जो लिखी है सही लिखी है।
अगर यह बात सही है तो ऐसे में क्या होगा मुझे रास्ता बतांयें।
इब्ने सऊद कहते हैं कि हजरत मोहम्मद ने फरमाया है कि जब जहन्नम मे दाखिल होंगें और हजरत मोंहम्मद किसी को भी नजात नही दे सकते हैं कयामत के रोज मोहम्मद साहब कहेंगें कि ऐ कुरैष के लोगो ऐ अबद मुनाफ बेटों, ऐ अब्बास मुतालिब के बेटों, ऐ मेरी फूफी, मै तुमको खुदा से और कयामत के अजाब से नही बचा सकता हंू तुम अपनी फिक्र आप ही कर लो। ऐ मेरी बेटी फातिमा तू मेरे माल से सवाल कर सकती हो, परन्तु मै तुमको खुदा से नही बचा सकता हूं। तुम अपनी फिक्र आप ही कर लो। तब मोहम्मद साहब के मित्र अबुहुरेरा पूछते हैं कि ऐ असल्लम हजरत मोहम्मद क्या आप भी नही बच सकते, तब उन्होने कहा बेषक मै भी नही बच सकता। बुखारी सफा 702
@2 . जमाल साहब ! 'ले लो' सुज्ञ जी के ( सवालों ) का भी नंबर, राकेश मसीह जी को भी थोड़ा रेस्ट मिल जायेगा ।
सार्थक चर्चा के लोभ में लगता है कुतर्कियों में फ़ंस गया।
एजाज साहब,
जवाब तो आपनें दे दिये थे, मुझे तो अनवर साहब का उस जवाब पर स्वीकृति चाहिए थी।
उस अनुत्तरित सवाल के बाद किसे चाहिए, सच्चा जवाब?
सुज्ञ जी ! आप अपने लिए केवल 'ले लो' सुज्ञ जी के सवालों का भी नंबर , पर भी ऐतराज़ करते हैं और खुद ईश्वर के बारे में दोगला शब्द यूज़ करते हैं ,
निहायत दुःख की बात है .अपने सम्मान की इतनी फ़िक्र और ईश्वर के आदर की ज़रा भी नहीं .
सुज्ञजी आप अपने धार्मिक ज्ञान को बढाएं, देखिये चमगादड़ कैसी होती है.
very nice post
अल्लाह हम सब का सही मार्गदर्शन करे
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