सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, October 29, 2010
A reply to sister Divya मूर्तियों को बनाने,बहाने और जलाने में हर साल लगने वाला अरबों रूपया इनसानों की भलाई में, ग़रीबों की बेहतरी में लगे तो समाज का उत्थान भी होगा और ईश्वर भी प्रसन्न होगा - Anwer Jamal
बहन दिव्या, आपका स्वागत है। आप एक विचारशील और विदुषी लेडी हैं। आप शिक्षित हैं। आज हरेक शिक्षित व्यक्ति यह जानता है कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री साहिबा ने करोड़ों रूपया पार्क और सड़कों पर उन लोगों की मूर्तियां लगाने में ख़र्च कर दिए, जो दलितों की मुक्ति के लिए अपने समय के रावण से लड़े। राष्ट्रवादी विचारकों ने इसे जन-धन की बर्बादी बताया। इसी बात को वे उन लोगों की मूर्ति स्थापन के बारे में नहीं कहते, जो पुराने समय में सवर्णों लाभ पहुंचाने के लिए लड़े। यहां आकर उनकी ज़ुबान ख़ामोश हो जाती है। वे खुद बड़े-बड़े पुतले हर साल बनाते हैं और उनमें आग लगा देते हैं। अरबों रूपये पहले इन पुतलों को तैयार करने में लगाते हैं और फिर इन्हें जलाने में। अरबों रूपये आतिशबाज़ी में खर्च कर दिए जाते हैं। बहुत सारी मूर्तियां नदियों में बहा दी जाती हैं जो जल प्रवाह को भी अवरूद्ध करती हैं और पानी को प्रदूषित भी करती हैं। मूर्तियों को बनाने,बहाने और जलाने में हर साल लगने वाला अरबों रूपया इनसानों की भलाई में, ग़रीबों की बेहतरी में लगे तो समाज का उत्थान भी होगा और ईश्वर भी प्रसन्न होगा। तब नक्सलवाद जैसी समस्याएं भी पैदा नहीं होंगी जो देश की अखण्डता के लिए एक भारी ख़तरा बनी हुई है।
मूर्तियां व्यर्थ हैं। यह इतनी आसान बात है कि इसे एक अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सकता है। कबीर साहिब अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने भी ‘पाहन पूजा से हरि न मिलने‘ की बात कही। दयानन्द जी तो अपने बचपन में ही समझ गए थे कि ‘शिवलिंग‘ कुछ भी नहीं है। इसी लिए उन्होंने घर छोड़ दिया लेकिन मूर्तिपूजा न की। निरंकारी और राधास्वामी जैसे बहुत हिंदू मत मूर्तिपूजा को व्यर्थ बताते हैं। इनकी बात बड़े पते की बात मानी जाती है, इन्हें संत-महंत बल्कि ईश्वर से भी बड़ा माना जाता है और मुझे कुछ भी नहीं। मेरी बात को ‘मज़ाक़ करना‘ माना जाता है, आखि़र क्यों ?
मैंने कोई नई बात तो कही नहीं, फिर मेरी बात बेवज़्न क्यों और उनकी बात जानदार क्यों ?
चलिए, मेरी बात नहीं मानते, मत मानिए, उनकी बात तो मान लीजिए, जिनके बारे में आप कहते हैं कि ये भारतीय जाति के लिए पुनरोद्धार के लिए ही खड़े हुए थे।
मूर्ति की मज़ाक़ मैं नहीं बनाता बल्कि मूर्तिपूजक खुद अपनी मूर्तियों की मज़ाक़ बनाते हैं, जब वे नई मर्तियां घर में ले आते हैं और पुरानी बाहर कूड़े पर फेंक देते हैं या फिर पानी डुबा देते हैं और कहीं-कहीं मूर्तियां इतनी विशाल बना लेते हैं कि वे डूबने में ही नहीं आतीं। फिर इस पर वे खुद ही लेख लिखते हैं, उनके फ़ोटो खींचते हैं और दुनिया को दिखाकर उनकी मज़ाक़ उड़ाते हैं लेकिन जो लोग यहां ऐतराज़ करते हैं वे उनकी बात को मज़ाक़ नहीं बताते। इस लिंक
यह केसी आस्था कि हम अपने इष्ट को, अपने ईश्बर को पेरो मै रोंदे?
पर आप खुद देख सकते हैं कि मूर्तिपूजक अपनी मूर्ति को साष्टांग दण्डवत की हालत में छोड़कर चले गए। मूर्ति यहां पड़ी है और मूर्तिपूजक अपने घर पड़ा है। जब इसे फेंकना ही था तो इसे बनाया ही क्यों ?
क्या यह खुद एक मज़ाक़ नहीं है ?
@ भाई गिरी जी ! हरेक सवाल का जवाब दिया जाता है लेकिन आप उन पर विचार नहीं करते। अब आपको यह जवाब दिया गया है। आप विचार करके अपनी राय से ज़रूर आगाह करें, आपका अहसान होगा। धन्यवाद .
मूर्तियां व्यर्थ हैं। यह इतनी आसान बात है कि इसे एक अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सकता है। कबीर साहिब अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने भी ‘पाहन पूजा से हरि न मिलने‘ की बात कही। दयानन्द जी तो अपने बचपन में ही समझ गए थे कि ‘शिवलिंग‘ कुछ भी नहीं है। इसी लिए उन्होंने घर छोड़ दिया लेकिन मूर्तिपूजा न की। निरंकारी और राधास्वामी जैसे बहुत हिंदू मत मूर्तिपूजा को व्यर्थ बताते हैं। इनकी बात बड़े पते की बात मानी जाती है, इन्हें संत-महंत बल्कि ईश्वर से भी बड़ा माना जाता है और मुझे कुछ भी नहीं। मेरी बात को ‘मज़ाक़ करना‘ माना जाता है, आखि़र क्यों ?
मैंने कोई नई बात तो कही नहीं, फिर मेरी बात बेवज़्न क्यों और उनकी बात जानदार क्यों ?
चलिए, मेरी बात नहीं मानते, मत मानिए, उनकी बात तो मान लीजिए, जिनके बारे में आप कहते हैं कि ये भारतीय जाति के लिए पुनरोद्धार के लिए ही खड़े हुए थे।
मूर्ति की मज़ाक़ मैं नहीं बनाता बल्कि मूर्तिपूजक खुद अपनी मूर्तियों की मज़ाक़ बनाते हैं, जब वे नई मर्तियां घर में ले आते हैं और पुरानी बाहर कूड़े पर फेंक देते हैं या फिर पानी डुबा देते हैं और कहीं-कहीं मूर्तियां इतनी विशाल बना लेते हैं कि वे डूबने में ही नहीं आतीं। फिर इस पर वे खुद ही लेख लिखते हैं, उनके फ़ोटो खींचते हैं और दुनिया को दिखाकर उनकी मज़ाक़ उड़ाते हैं लेकिन जो लोग यहां ऐतराज़ करते हैं वे उनकी बात को मज़ाक़ नहीं बताते। इस लिंक
यह केसी आस्था कि हम अपने इष्ट को, अपने ईश्बर को पेरो मै रोंदे?
पर आप खुद देख सकते हैं कि मूर्तिपूजक अपनी मूर्ति को साष्टांग दण्डवत की हालत में छोड़कर चले गए। मूर्ति यहां पड़ी है और मूर्तिपूजक अपने घर पड़ा है। जब इसे फेंकना ही था तो इसे बनाया ही क्यों ?
क्या यह खुद एक मज़ाक़ नहीं है ?
@ भाई गिरी जी ! हरेक सवाल का जवाब दिया जाता है लेकिन आप उन पर विचार नहीं करते। अब आपको यह जवाब दिया गया है। आप विचार करके अपनी राय से ज़रूर आगाह करें, आपका अहसान होगा। धन्यवाद .
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43 comments:
अच्छी विचारणीय पोस्ट
समझने वालो के लिए सन्देश है , नासमझ के लिए धर्म विरुद्ध बातें ,
अच्छा प्रयास किया है आपने
dabirnews.blogspot.com
mujhe aap ka lekh bahut achcha laga. Aise hi ek lekh aap har saal macca jane par hone wale fizool kharch ko rokne ke liye bhi koyi lekh likhe. Har saal itni foreign currency is haj naam ki burai par kharch ho jati hai. ye paisa agar india mein use ho to kya baat hai.
बिल्कुल ठीक. पुतले बनाने, मन्दिर-मस्जिद-मजारे- मदरसे इत्यादि बनाने में लगने वाला पैसा गरीबों की मदद में ही लगना चाहिये.
आप खुद देख सकते हैं कि मूर्तिपूजक अपनी मूर्ति को साष्टांग दण्डवत की हालत में छोड़कर चले गए। मूर्ति यहां पड़ी है और मूर्तिपूजक अपने घर पड़ा है। जब इसे फेंकना ही था तो इसे बनाया ही क्यों ?
अच्छी विचारणीय पोस्ट
डॉ अनवर जमाल,
आपकी पिछली पोस्ट पर मैंने यह प्रश्न किया था आपसे, जिसका आपने उत्तर नहीं दिया। कृपया इसका उत्तर दें। और उस प्रश्न का सन्दर्भ भी आपकी पिछली पोस्ट में है।
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@--मूर्तिपूजा और दूसरे आडम्बरों...
डॉ अनवर ,
क्यूँ मज़ाक करते हैं ?
दुसरे धर्म सिर्फ आडम्बर हैं ? क्या इस्लाम दुसरे धर्मों का सम्मान करना नहीं सिखाता ?
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October 28, 2010 10:11 PM
First answer the above question with reference to your previous post.
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आपकी इस पोस्ट पर मेरा आपसे दूसरा प्रश्न है। जो इस प्रकार है --
आप एक विद्वान् व्यक्ति हैं, जिसने हिन्दू और इस्लाम के बहुत से ग्रन्थ पढ़े हैं। क्या इतना पढने लिखने के बाद भी एक इंसान सदियों तक दुसरे धर्म की कमियाँ ही गिनता रहता है ? क्या आप अपने धर्म से खुश नहीं हैं ? किसी दुसरे की आस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाना आपका प्रिय शगल है क्या ?
यदि हिन्दू जनता आपकी आस्था पर चोट करे तो कैसा लगेगा ?
क्या तलाक तलाक कहकर अपनी पत्नी को छोड़ देना उचित है ?
क्या बुर्के में बंद करके आप स्त्री के साथ कुछ ज्यादती नहीं कर रहे ?। क्या मान मर्यादा की रक्षा बुर्के में ढके रहने से होती है , या फिर परिवेश से मिले संस्कारों से ?
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अपना टाइम ख़राब मत करो आप
अनवर जी ने बड़ी किताबे पड़ी है
बस एक इंसानियत वाली छोड़ दी
वो भी इनकी मज़बूरी थी क्या करते कुरान ने जो मना कर दिया
"जो दुसरे धर्म की बुराई न करे वो मुसलमान ही क्या"
"पोथी पड़ पड़ जग्मुआ पंडित भया न कोई "
आप ने तो बस मुस्लिम महिलायों के बारे में क्या पूछा
अब तो आप के हिन्दू होने और उस पर आप पर धार्मिक अत्याचार होने के बहुत सवाल होगे
एक भी सवाल का जवाब मिल जाये तो बताएगा
अपना टाइम मत ख़राब करो
यहाँ बस मुस्लिम ही आते है
"वाह भाई क्या पोस्ट लिखी है" कह कर चले जाते है
दुसरे के यहाँ आना ही अपना टाइम खराब करना है
आज सभी धर्म के लोग किसी ना किसी प्रकार से केवल कुछ परमात्मा से पाने मैं लगे हुए हैं, और इसके लिए बहुत सारे रुपये भी बेवजह खर्च कर डालते हैं. परमात्मा को भगवान्, को अल्लाह के लिए कुछ करने और उसके बताए रास्ते पे चलने के लिए कोई तैयार नहीं.
अल्लाह के बनाए बन्दों की सेवा सबसे बड़ी सेवा है. उसमें पैसा खर्च करो... ना की खुद की सेवा के लिए पैसे लुटाओ.
डाक्टर अनवर साहब पिछली पोस्ट पर एक निवेदन बी.एन. शर्मा के साथ आपसे मैं ने भी क्या था उसका अभी तक उत्तर नहीं मिला
मुझे सत्यार्थ प्रकाश समीक्षा की समीक्षा का दूसरा एडिशन तैयार करना है, पहला एडिशन बहुत कामयाब रहा इस वेब लिंक पर जाकर देख सकते हैं, पाठकों को अपने बहुत से सवालों के जवाब भी वहां मिल जाएंगे
http://truthofhinduism.com/rebuttals/answering-satyarthprakash/satyarth-prakash-sameeksha-ki-sameeksha/
भाई फजूल खर्ची पर आपका लेख तो बहुत अच्छा है
इसको तीर्थ यात्रा जैसे खर्च से मेरे भाईयों का जोडना उचित नहीं, मैंने कभी ऐसी ही एक दोस्त से कह दिया था तो उसका जवाब था
हज करने वाले पर गुरबत नहीं आती, (यह शायद रसूल कह गये) यकीन न हो तो किसी हाजी से जो कि हर साल लाखों के हज पर जाने के कारण गली गली में मिल जाते हैं उन की आर्थिक स्थित देखना, हज के बाद बहतर हो चुकी होगी
मुझे विश्वास न हुआ बहुतों को देखा बात सच लगी
आप भी मिल लें 100 प्रतिशत सभी हाजी की हालत बहतर न पाओ, आजाना मुझे बताने आगे कभी किसी को दोस्त की कही यह बात न कहूंगा
जमाल भाई, आपकी बात से पुरी तरह सहमत...
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"दहशतगर्द कौन और गिरफ्तारियां किन की, अब तो सोचो......! "
"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में "
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
@ Zeal जी,
तीन बार तलाक कहने भर से तलाक नही होता है.... तलाक की कुछ शर्त होती है...
बुर्के के बहुत से फ़ायदे हैं....जिसे आज हिन्दुस्तान की हिन्दु लडकींया भी मानने लगी है तभी तो हर मौसम में आपको चेहरे और बदन पर दुपट्टा लपेटे लडकियां सडक पर मिल जायेंगी..॥
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"दहशतगर्द कौन और गिरफ्तारियां किन की, अब तो सोचो......! "
"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में "
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
Some Hindus/sects make a big campaign that Islam restricts the freedom of women. Let us compare the positions of the Hindu woman and the Muslim woman. These are based on practices and beliefs known to still exist widely within the large number of Hindu castes and sects, independent of the country laws that deal with them. See the following facts for comparison . You be the judge.
The Hindu Woman:
1. The laws and rights of marriage and divorce (if at all) are undefined or varied for the Hindu Woman leaving her with none or very little advantage.
2. The same applies for property or inheritance rights. Males make and absorb all claims.
3. Choice of partner is limited because she can only marry within her own caste; moreover her horoscope must match that of the intending bridegroom/family.
4. The family of the girl has to offer an enormous dowry to the bridegroom/family.
5. If her husband dies she loses value in the family/society. Sati (being cremated with her dead husband) is a possible exit/recommendation. Since today's law forbids Sati, society mainly punishes her in other "holy" ways (see below).
6. Remarriage is a big problem.
7. The widow is considered to be a curse and must not be seen in public. She cannot wear jewelry or colourful clothes. (She may not even take part in her children's marriage!)
8. Child and infant marriage is encouraged.
9. A woman is brought up to believe that she must look upon her husband as a god (Pati Parmeshwar).
The Muslim Woman:
"Their Lord responded to them: "I never fail to
reward any worker among you for any
work you do, be you MALE OR FEMALE,
YOU ARE EQUAL TO ONE ANOTHER…"
Quran 3:195
1.The Muslim woman has the same right as the Muslim man in all matters including divorce.Quran 3:195
2. She enjoys property and inheritance rights. (Which other religion grants women these rights?). She can also conduct her own separate business.Quran 4:7
3. She can marry any Muslim of her choice. If her parents choose a partner for her, her consent must be taken. Quran 4:24-25
4. The dowry in Islam is a gift from a husband to his wife .Quran 4:4
5. A Muslim widow is allowed to remarry, and her remarriage is the responsibility of the Muslim society. Quran 2:234
6.Mixed marriage is encouraged and is a mean to prevent racism creeping in society.Quran 4:25
7. A Muslim mother (and father) is given the highest form of respect. Quran 17:23
8. Marriage is between consenting adults. Since marriage is a more significant institution than a financial one which needs maturity, see 4:6. Maturity and understanding is required for marriage as much.
9.God teaches clearly in the Quran "…do not reverence human beings; you shall reverence Me (God) instead…." Quran 5:44, 9:18
The Hindus are trying to claim that Muslims do not give freedom to their women. You be the judge.
सतीश जी आपका धन्यवाद , आपने ठीक कहा था उधर वाकई बहुत सारे जवाब हैं आपके दिए लिंक पर आपकी किताब में तो मेरी कोई रूची नहीं थी लेकिन नारियों सम्बन्धित बहुत से सवालों के जवाब उधर मिल गये
पाठकों को लाभान्वित होने के लिए लिंक है
http://truthofhinduism.com/category/women/
@- Iqbal,
You are living in illusions. People are of cosmopolitan views , They do not bother about caste . So choice for right partner is not an issue anymore.
Hindu women do not have to face tortures like 'burka'
Dowry and Sati-pratha is nomore in practice now.
Time is changing. People are far more educated and aware. They do not believe in such foolishness.
One should not be fundamentalist.
All I want to convey is that one should not be prejudiced.
Criticizing and condemning one's faith is not an healthy habit. One must refrain from doing so.
Educated people must keep themselves engaged in something constructive.
talking too much about religion has become nauseating now.
Regards,
Divya.
.
अच्छी पोस्ट
यह फ़िज़ूलखर्ची है
जी हाँ, सही फ़रमाया आपने..
यह मैं भी मानता और कहता आया हूँ
पर यह हमारे घर की अपनी बात है, हम खुद सँभाल लेंगे
मैं दूसरों के पत्तल के छेद देखने को नेकनीयती नहीं मानता, और.. कुछ ?
यह फ़िज़ूलखर्ची है
जी हाँ, सही फ़रमाया आपने..
यह मैं भी मानता और कहता आया हूँ
पर यह हमारे घर की अपनी बात है, हम खुद सँभाल लेंगे
मैं दूसरों के पत्तल के छेद देखने को नेकनीयती नहीं मानता, और.. कुछ ?
यह फ़िज़ूलखर्ची है
जी हाँ, सही फ़रमाया आपने..
यह मैं भी मानता और कहता आया हूँ
पर यह हमारे घर की अपनी बात है, हम खुद सँभाल लेंगे
मैं दूसरों के पत्तल के छेद देखने को नेकनीयती नहीं मानता, और.. कुछ ?
यह फ़िज़ूलखर्ची है
जी हाँ, सही फ़रमाया आपने..
यह मैं भी मानता और कहता आया हूँ
पर यह हमारे घर की अपनी बात है, हम खुद सँभाल लेंगे
मैं दूसरों के पत्तल के छेद देखने को नेकनीयती नहीं मानता, और.. कुछ ?
'वन्दे मातरम्' का विरोध करने वालों को देशद्रोही कहने वालों, अब बाबा रामदेव को कब देशद्रोही कहने जा रहे हो जिसने राष्ट्र गान 'जन गन मन' का विरोध किया है?
हा हा हा...आपको कबीर का वह दोहा याद है क्या ?
कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय। ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।
मुझे तो आप बहुत पसंद हनी |आप joke बहुत अच्छा मारते हैं.. आपका हास्य ब्लॉग बहुत अच्छा लगता है....
कभी धर्म से ऊपर उठ कर सोचिये देश में और भी बहुत कुछ है लिखने के लिए...
आपके जैसे लोगों के लिए एक post लिखा है जरूर पढियेगा...
लानत है ऐसे लोगों पर....
@ शेखर सुमन जी !
एक पोस्ट इस पर भी लिखना कि क्या एक पुरुष का गर्भवती होना उचित है भारतीय समाज में ? यह कमेन्ट इसके लिंक पर जाकर देखें.
इस्लाम में हर तरह कल्याण है
@आलोक मोहन जी !
1- आप जाति से दलित हैं और साथ ही खुशनसीब भी कि आप आज़ाद भारत में पैदा हुए जिसके लिए हैदर अली और टीपू सुल्तान पहले लड़े और बाद में कोई और । अंग्रेज़ों के दौर में पैदा हुए होते तो आपको पता चलता कि एक दलित होना क्या होता है ? और हिन्दू संत अपने पास आने वालों को क्या करने की प्रेरणा देते हैं ?
ज़्यादा नहीं तो शूद्रों के बारे में केवल आदि शंकराचार्य जी और दयानन्द जी के विचार ही पढ़ लीजिए। जिनके पास सामाजिक समस्याओं का हल वास्तव में नहीं है, वे किसी को क्या हल बताएंगे ?
और अगर बताने की कोशिश करेंगे तो वह ग़लत होगा जैसे कि दोनों ही हिन्दू विचारकों ने विधवा के लिए पुनर्विवाह करना मना कर दिया। दयानन्द जी ने उनके प्रति दया दिखाई भी तो उन्हें ‘नियोग‘ करने की सलाह दी है। हिन्दू आजकल अपनी विधवा बेटियों का पुनर्विवाह ही करते हैं, जो कि समस्या का एक इस्लामी हल है। एक मुसलमान यही चाहता है कि आप अपने जीवन को सही तरीक़े से जिएं और उसकी समस्याओं को इस्लामी तरीक़े से हल करें। इसमें तो कुछ भी ग़लत नहीं है। स्वामी विवेकानंद जी ने भी सिस्टर निवेदिता की आस्था और कल्चर सभी कुछ बदल डाला था जबकि इस्लाम ‘संस्कृति‘ बदलने के लिए नहीं कहता।
लौरेन बूथ ने इस्लाम ग्रहण किया क्योंकि ईरान गईं और वे समझ गईं कि इस्लाम अपनाने में कल्याण है। अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी मलेशिया गए और वे भी समझ गए कि इस्लाम की ग़ैर सूदी बैंकिंग व्यवस्था अपनाने में कल्याण है। इस्लाम में हर तरह कल्याण है।
हर साल मूर्तियां बनाकर नदी में बहा देते हैं। इससे धन की बर्बादी और समय की बर्बादी होती है। नदियों में कबाड़ बढ़ता है, उसका प्रवाह अवरूद्ध होता है। मूर्तियों के कैमिकल से मछलियां मर जाती हैं और सारी इकोलोजी नष्ट हो जाती है। इस्लाम को मानने वाले आदमी नदियों के लिए कोई प्राब्लम नहीं बनते और जो लोग आतंकवाद फैला रहे हैं वे इस्लाम में नहीं बल्कि अपनी ख्वाहिश में जी रहे हैं लेकिन उनके पाप किसी ऐसे बुद्धिजीवी को भ्रम में नहीं डाल पाते जिसे वास्तव में सत्य की तलाश है जैसे लौरेन बूथ , हालांकि इस्लामी आतंकवाद ‘शब्द‘ उन्हीं की क़ौम का ईजाद किया हुआ है। जब वे ही नहीं बहक रहे हैं तो आप खामख्वाह क्यों बहक रहे हैं ?
इस्लाम मर्दों को गर्भवती होने के ख़तरों से भी बचाता है।
2. अभी थोड़े दिन पहले आपने एक तथाकथित हिन्दू बाबा के बारे में पोस्ट लिखी थी कि वह किसी दूसरे बाबा का चमत्कारी फल खाकर गर्भवती हो गया। आपने उसका खण्डन भी किया था और मुझे उसका लिंक भी भेजा था। पता नहीं उसने फल ही खाया था या फिर कुछ हुआ था, सच्चाई जो भी हो और मुसलमान कुछ ग़लती भी चाहे कर गुज़रे लेकिन गर्भवती होने की ग़लती कभी नहीं करता। इस्लाम मर्दों को गर्भवती होने के ख़तरों से भी बचाता है। आप ख़तरे में है, ज़रा ऐसे हिन्दू बाबाओं से बचकर रहना। पता नहीं कौन बाबा क्या सिद्धि लिए घूम रहा हो ?
बुरका बुलेट प्रूफ जाकिट का नाम दिया जा सकता है, नारी जो नहीं दिखाना चाहती वह ना दिखे, बुर्के वाली के हम तुम हर कहीं नजर नहीं डाल सकते, बल्कि कहीं भी नहीं डाल सकते, जबकि सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की
अब जमाना बदल रहा है, हमारी निगाहें नहीं बदली
मिसाल के तौर पर
सानिया तो जानती ही नहीं कि जब वह खेलती है तो हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की,
दिव्या जी, बुरका,हिजाब,परदा विषय पर कई बार बहस हो चुकी आपकी आसानी के लिए कुछ उठा लाया हूं, अल्लाह से उम्मीद करता हूं आप मुतमईन हो जाएंगी
फिर भी आप की तसल्ली न हो तो जमाल साहब से गुजारिश करेंगे
Why does Islam degrade women by keeping them behind the veil?
HIJAAB FOR WOMEN
The status of women in Islam is often the target of attacks in the secular media. The ‘hijaab’ or the Islamic dress is cited by many as an example of the ‘subjugation’ of women under Islamic law. Before we analyze the reasoning behind the religiously mandated ‘hijaab’, let us first study the status of women in societies before the advent of Islam
1. In the past women were degraded and used as objects of lust
The following examples from history amply illustrate the fact that the status of women in earlier civilizations was very low to the extent that they were denied basic human dignity:
a. Babylonian Civilization:
The women were degraded and were denied all rights under the Babylonian law. If a man murdered a woman, instead of him being punished, his wife was put to death.
c. Greek Civilization:
Greek Civilization is considered the most glorious of all ancient civilizations. Under this very ‘glorious’ system, women were deprived of all rights and were looked down upon. In Greek mythology, an ‘imaginary woman’ called ‘Pandora’ is the root cause of misfortune of human beings. The Greeks considered women to be subhuman and inferior to men. Though chastity of women was precious, and women were held in high esteem, the Greeks were later overwhelmed by ego and sexual perversions. Prostitution became a regular practice amongst all classes of Greek society.
d. Roman Civilization:
When Roman Civilization was at the zenith of its ‘glory’, a man even had the right to take the life of his wife. Prostitution and nudity were common amongst the Romans.
e. Egyptian Civilization:
The Egyptian considered women evil and as a sign of a devil.
f. Pre-Islamic Arabia:
Before Islam spread in Arabia, the Arabs looked down upon women and very often when a female child was born, she was buried alive.
2. Islam uplifted women and gave them equality and expects them to maintain their status.
Islam uplifted the status of women and granted them their just rights 1400 years ago. Islam expects women to maintain their status.
HIJAB FOR MEN
People usually only discuss ‘hijaab’ in the context of women. However, in the Glorious Qur’an, Allah (swt) first mentions ‘hijaab’ for men before ‘hijaab’ for the women. The Qur’an mentions in Surah Noor:
"Say to the believing men that they should lower their gaze and guard their modesty: that will make for greater purity for them: and Allah is well acquainted with all that they do."
[Al-Qur’an 24:30]
The moment a man looks at a woman and if any brazen or unashamed thought comes to his mind, he should lower his gaze.
Hijaab for women
The next verse of Surah Noor, says:
"And say to the believing women that they should lower their gaze and guard their modesty; that they should not display their beauty and ornaments except what (must ordinarily) appear thereof; that they should draw veils over their bosoms and not display their beauty except to their husbands, their fathers, their husbands’ fathers, their sons..."
[Al-Qur’an 24:31]
3. Hijaab includes conduct and behaviour among other things
Complete ‘hijaab’, besides the six criteria of clothing, also includes the moral conduct, behaviour, attitude and intention of the individual. A person only fulfilling the criteria of ‘hijaab’ of the clothes is observing ‘hijaab’ in a limited sense. ‘Hijaab’ of the clothes should be accompanied by ‘hijaab’ of the eyes, ‘hijaab’ of the heart, ‘hijaab’ of thought and ‘hijaab’ of intention. It also includes the way a person walks, the way a person talks, the way he behaves, etc.
4. Hijaab prevents molestation
The reason why Hijaab is prescribed for women is mentioned in the Qur’an in the following verses of Surah Al-Ahzab:
"O Prophet! Tell thy wives and daughters, and the believing women that they should cast their outer garments over their persons (when abroad); that is most convenient, that they should be known (as such) and not molested. And Allah is Oft-Forgiving, Most Merciful."
[Al-Qur’an 33:59]
The Qur’an says that Hijaab has been prescribed for the women so that they are recognized as modest women and this will also prevent them from being molested.
5. Example of twin sisters
Suppose two sisters who are twins, and who are equally beautiful, walk down the street. One of them is attired in the Islamic hijaab i.e. the complete body is covered, except for the face and the hands up to the wrists. The other sister is wearing western clothes, a mini skirt or shorts. Just around the corner there is a hooligan or ruffian who is waiting for a catch, to tease a girl. Whom will he tease? The girl wearing the Islamic Hijaab or the girl wearing the skirt or the mini? Naturally he will tease the girl wearing the skirt or the mini. Such dresses are an indirect invitation to the opposite sex for teasing and molestation. The Qur’an rightly says that hijaab prevents women from being molested.
6. Capital punishment for the rapists
Under the Islamic shariah, a man convicted of having raped a woman, is given capital punishment. Many are astonished at this ‘harsh’ sentence. Some even say that Islam is a ruthless, barbaric religion! I have asked a simple question to hundreds of non-Muslim men. Suppose, God forbid, someone rapes your wife, your mother or your sister. You are made the judge and the rapist is brought in front of you. What punishment would you give him? All of them said they would put him to death. Some went to the extent of saying they would torture him to death. To them I ask, if someone rapes your wife or your mother you want to put him to death. But if the same crime is committed on somebody else’s wife or daughter you say capital punishment is barbaric. Why should there be double standards?
7. Western society falsely claims to have uplifted women
Western talk of women’s liberalization is nothing but a disguised form of exploitation of her body, degradation of her soul, and deprivation of her honour. Western society claims to have ‘uplifted’ women. On the contrary it has actually degraded them to the status of concubines, mistresses and society butterflies who are mere tools in the hands of pleasure seekers and sex marketers, hidden behind the colorful screen of ‘art’ and ‘culture’.
8. USA has one of the highest rates of rape
United States of America is supposed to be one of the most advanced countries of the world. It also has one of the highest rates of rape in any country in the world. According to a FBI report, in the year 1990, every day on an average 1756 cases of rape were committed in U.S.A alone. Later another report said that on an average everyday 1900 cases of rapes are committed in USA. The year was not mentioned. May be it was 1992 or 1993. May be the Americans got ‘bolder’ in the following years.
Consider a scenario where the Islamic hijaab is followed in America. Whenever a man looks at a woman and any brazen or unashamed thought comes to his mind, he lowers his gaze. Every woman wears the Islamic hijaab, that is the complete body is covered except the face and the hands upto the wrist. After this if any man commits rape he is given capital punishment. I ask you, in such a scenario, will the rate of rape in America increase, will it remain the same, or will it decrease?
9. Implementation of Islamic Shariah will reduce the rate of rapes
Naturally as soon as Islamic Shariah is implemented positive results will be inevitable. If Islamic Shariah is implemented in any part of the world, whether it is America or Europe, society will breathe easier. Hijaab does not degrade a woman but uplifts a woman and protects her modesty and chastity.
Wah Anwar Bhai Kya Mudda Uthaya hai apne, Maja Aa gaya.
Main Khud iske khilaf hun Lekin kya aap :----
Haz par hone wale arbo rupaye ko rok sakte hain aap.
shayad nahi.
Zeal Ji : ye sirf sawal karte hain, UTTAR ki ummed chhod de aap.
@ Iqbal ji,
You answered the questions quite logically and they are indeed convincing as well. But how many Muslims are aware of the facts you mentioned here.
why you compared the two sisters with extreme attires ? One with hizaab and other with mini skirt ? Do you think Muslim women maintain dignity by wearing Burka and Hindu women are all exposed in Sari ?
wearing revealing dress is indeed not acceptable but it's not wise to believe that all women other than Muslim ones wear mini skirt.
Among Hindus , try to see the beautiful traditional dresses in Rajasthaan, Gujraat, North India, South India , Bengal and Punjab etc. Do you think our traditional dresses are too revealing ?. Mini skirts and body hugging attires are westernization of our culture. It is not a part of Indian culture.
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Every time advocating Islam and condemning other's faith , doesn't suit a learned man like my brother Dr Anwar Jamaal.
We have far more bigger issues to deal with, for the progress of our nation. Isn't it wise to unite for the sake of humanity and brotherhood ?
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@ Iqbal ,
Can we [ Hindu and Muslim ] ever unite ?
If YES, Then how?
Kindly mention the ways.
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@ Tarkeshwar Giri ji ,
He will realize his errors one day.
He needs introspection. !
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आप एक विद्वान् व्यक्ति हैं, जिसने हिन्दू और इस्लाम के बहुत से ग्रन्थ पढ़े हैं। क्या इतना पढने लिखने के बाद भी एक इंसान सदियों तक दुसरे धर्म की कमियाँ ही गिनता रहता है ? क्या आप अपने धर्म से खुश नहीं हैं ? किसी दुसरे की आस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाना आपका प्रिय शगल है क्या ?
Kindly answer my above question .
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yahan charcha ke vishya acche hote hain.....
yahan pratikriya bhi acchi aati hai..
yahan ek hi vishya ko baar-baar dohraya jata hai......
lekin....yahan kabhi bhi masle ka hal
nahi hota....
ek regular pathak hote hue bhi aaj
tak yahan koi doosra mudda nahi dikha shivaya (dharm) ke .........
jo apne ap me .... o kya kahte hain...han yaad aya hafim.........
bahutere gyanijan yahan aakar apna
gyan....chuk jane tak jame rahe...
phir khet ho liye.................
likhne bolne ke liye(panditya)yane
je tarjsashtri hone chahiye.......
aur chup rahne ke liye gyan(chintak)hone chahiye.........
@anwar bhai.....janab nikliye is afim ki kheti se....jitna khad-biz
dalenge.....niklega ganja aur charas hi.......
padhe likhe to aap hain hi........
sadar
मैंने पहले भी कहीं लिखा है, आज यहाँ भी लिख रहा हूँ. कम या अधिक सभी धर्मों मैं इंसान, खुद के फाएदे पैसे बर्बाद किया करता है. यह मुराद पूरी हो जाए तो सोने का यह चढाऊंगा , वोह हो जाए तो ऐसा करूंगा.
इश्वेर ने बनाया इंसान और इस इंसान की सेवा करो, इसकी मदद करो और देखो कैसे आप की मुरादें पूरी हुआ करते हैं. इश्वेर इंसानों की मदद से खुश हुआ करता है, बड़े बड़े चढ़ावों से नहीं और यह चढ़ावे हर धर्म मैं मौजूद हैं.
हज्ज या तीर्थ यात्रा पे जाता एक नेम काम है, लेकिन अगर रास्ते मैं कोई भूखा, ज़रुरत मंद , ग़रीब दिख जाए तो उसकी मदद करना उस से बड़ा धर्म है.
ऐसी बुराइयां हर एक धर्म मैं मौजूद हैं.
Dear Zeal,
If any sensible and caring person gets some good knowledge and comes to know the truth of this life. He is bound to spread it to other people just out of love and care. And he never intends to hurt other's feelings. Just give a deep and serious thought to every issue raised in these blogs and I assure you that you will find the undeniable truths of this life and so many evils found in our society.
Thanks & Best Regards
Iqbal Zafar
मासूम साहब
"एकदम सही बात .इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है"
जमाल .मुर्तयो को बनाकर बेचने का सबसे बड़ा फायदा यही है कि गरीब कलाकारों को थोडा हर साल पैसा मिल जाता है
वरना वो बेचारे मूर्तिकार कहाँ जायेगे
मिटटी पानी में जाने से प्रदुसन नही फैलता
गरीबो कि रोटी धर्म के नाम पर क्यों छीन रहे हो
वरना खाने को भी तरस जाओगे उनकी हाय लगी तो
महापुरशो कि मूर्ति बनाए से यही फायदा है कि आने वाली पीडी उन्हें याद रखे और उनसे प्रेरणा ले
मुस्लिम भी वो चबूतरा बना बना कर नस्त करते है
और हज के नाम पर सरकार कुछ मुसलमानों पर उपर करोडो रूप खेर्च करती है
शिवलिंग मुस्लिम खूब चुमते है मक्का में
मुस्लिम उसे खुदा और हिन्दू उसे शम्भू अर्थात शिव कहते है
किसके सगे हो तुम न हिन्दू के न मुस्लिम के
हिन्दू किसे कहते हैं ?
‘हिन्दू‘ शब्द की जो भी परिभाषा आप तय करेंगे, वह आपसे पहले मुझमें घटित होगी, इन्शा अल्लाह। पहले इसे भौगोलिक सीमाओं से जोड़कर बयान किया जाता था लेकिन आजकल ‘हिन्दू‘ शब्द को भू-सांस्कृतिक अवधारणा के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। आर. एस. एस. के विचारकों ने भी मुसलमानों को ‘हिन्दूपने‘ से ख़ारिज नहीं किया है। उन्होंने मुसलमानों को ‘मुहम्मदी हिन्दू‘ कहा है। इस सर्टिफ़िकेट के बाद भी आप क्यों चाहती हैं कि मैं हिन्दू धर्म को अपना नहीं बल्कि दूसरों का धर्म समझूं और उसके बारे में सोचना और बोलना छोड़ दूं ?
आप में से कौन है जो खुद को ‘मनुवादी हिन्दू‘ कहने को तैयार हो ?
आप में से कौन है जो मनु के मौलिक धर्म को आज भी प्रासंगिक मानता हो और उसका पालन करता हो ?
आप में से कौन है जो कहता हो कि हिन्दू धर्म में एक भी कमी नहीं है ?
मैं अपने आप में ‘यूनिक हिन्दू‘ हूं
ऐसा आप में से एक भी नहीं है लेकिन मैं एक ऐसा ही हिन्दू हूं। आपको चाहिए था कि मेरा अनुसरण करते लेकिन आप मुझ पर आरोप लगाने लगीं कि मैं ‘दूसरों के धर्म में कमियां‘ गिनता रहता हूं।
‘कमियां‘ बहुवचन है ‘कमी‘ शब्द का। जब मैं हिन्दू धर्म में एक भी कमी नहीं मानता तो बहुत सारी कमियां कैसे मान लूंगा ? और उन्हें गिनूंगा कैसे ?
हिन्दू समाज मेरे अपने लोगों का समाज है, मेरे पूर्वजों का समाज है, मेरा अपना समाज है। उन्हें संकट में घिरा देखकर मेरा दुखी होना स्वाभाविक है। इनसान के संकटों से उसके कर्मों का सीधा संबंध है। अगर आज नक्सलवादी रोटी और रोज़गार के लिए आतंक मचा रहे हैं, अगर 2 लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, अगर अकेले उत्तर प्रदेश में मलेरिया से हज़ारों मर चुके हैं और ग़रीबों को रोटी और इलाज मयस्सर नहीं है तो पत्थर की
मूर्तियों पर अरबों-खरबों रूपये बर्बाद करना राष्ट्रद्रोह भी है और संवेदनहीनता भी। ईश्वर की बनाई जीवित मूर्तियां तड़प-तड़प कर मर रही हों और लोग अपनी बनाई बेजान मूर्ति के आगे खुशी से नाचते हुए बाजे बजा रहे हों ?
यह धर्म नहीं है बल्कि अपने मन से निकाली गईं परंपराएं हैं जिन्हें धर्म के नाम पर किया जाता है। इस तरह की परंपराओं को वैदिक ऋषियों ने कभी न तो खुद किया और न ही कभी समाज से करने के लिए कहा, जिन्हें हिन्दू धर्म का आदर्श समझा जाता है। तब ‘धन उड़ाऊ और जग डुबाऊ‘ परंपराओं को क्यों किया जाए ?
कोई रीज़न तो दीजिए।
ऋषि मार्ग से हटने के बाद हिन्दू समाज भटक गया है। इस भटकाव में ही वह यह सब कर रहा है जिससे मैं उसे रोक रहा हूं और आप मुझे रोकने से रोक रही हैं। सही बात बताना मेरा फ़र्ज़ है और उसे मानना आपका। मैं अपना फ़र्ज़ अदा कर रहा हूं, आप भी अपना फ़र्ज़ अदा कीजिए।
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