सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, October 21, 2010

Ram in muslim poetry, second beam चराग़ ए हिदायत और इमाम ए हिन्द हैं राम - Anwer Jamal

                राम
लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द         
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्ता ए मग़रिब के राम ए हिन्द
यह हिन्दियों के फ़िक्र ए फ़लक रस का है असर
रिफ़अ़त में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम ए हिन्द
है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
तलवार का धनी था शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश ए मुहब्बत में फ़र्द था
      -बांगे दिरा मय शरह उर्दू से हिन्दी, पृष्ठ 467, एतक़ाद पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली 2
शब्दार्थ- लबरेज़-लबालब भरा हुआ, शराबे हक़ीक़त-तत्वज्ञान, ईश्वरीय चेतना, आध्यात्मिक ज्ञान, खि़त्ता ए मग़रिब-पश्चिमी देश, राम ए हिन्द-हिन्दुस्तान के अधीन (‘राम‘ यहां फ़ारसी शब्द के तौर पर आया है जिसका अर्थ है आधिपत्य), फ़िक्र ए फ़लक रस-आसमान तक पहुंच रखने वाला चिंतन, रिफ़अत-ऊंचाई, बामे हिन्द-हिन्दुस्तान का मक़ाम, मलक सरिश्त-फ़रिश्तों जैसा निष्पाप, अहले नज़र-तत्वदृष्टि प्राप्त ज्ञानी, इमाम ए हिन्द-हिन्दुस्तान का रूहानी पेशवा, ऐजाज़-चमत्कार, चराग़ ए हिदायत-धर्म मार्ग दिखाने वाला दीपक, रौशनतर अज़ सहर-सुबह से भी ज़्यादा रौशन, शुजाअत-वीरता, पाकीज़गी-पवित्रता, फ़र्द-यकता, अपनी मिसाल आप
गागर में सागर
अल्लामा इक़बाल की यह नज़्म ‘गागर में सागर‘ का एक बेहतरीन नमूना है। इस एक नज़्म की व्याख्या के लिए एक पूरी किताब चाहिए, यह एक हक़ीक़त है। मस्लन इसमें ‘शराबे हक़ीक़त‘ से हिन्दुस्तानी दिलो-दिमाग़ को भरा हुआ बताया गया है। इसे नज़्म पढने वाला पढ़ेगा और गुज़र जाएगा लेकिन इस एक वाक्य का सही अर्थ वह तब तक नहीं समझ सकता जब तक कि वह यह न जान ले कि ‘शराबे हक़ीक़त‘ होती क्या चीज़ है ?
विश्व गुरू है भारत
अल्लामा इक़बाल ने कहा है कि पश्चिमी दार्शनिक सब के सब भारत के अधीन हैं। इस वाक्य की गहराई जानने के लिए आदमी की नज़र पश्चिमी दर्शन पर होना ज़रूरी है और साथ ही उसे भारतीय दर्शन की भी गहरी जानकारी होना ज़रूरी है। तब ही वह अल्लामा के कथन की सच्चाई को जान पाएगा। उनका यह वाक्य केवल भारत का महिमागान नहीं है बल्कि एक तथ्य जिसे वे बयान कर रहे हैं। प्रोफ़ेसर आरनॉल्ड ने कहा है कि अल्लामा इक़बाल पूर्व और पश्चिम के सभी दार्शनिक मतों पर गहरी नज़र रखते थे। बांगे दिरा की शरह में प्रोफ़ेसर यूसुफ़ सलीम चिश्ती साहब ने लिखा है कि यूरोप के दार्शनिकों ने हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े के विभिन्न मतों से जिन्हें इस्तलाह में ‘दर्शन‘ कहते हैं, बहुत कुछ इस्तफ़ादह किया है। (पृष्ठ 468)
राम शब्द की व्यापकता
‘राम ए हिन्द‘ वाक्य में उन्होंने एक अजीब लुत्फ़ पैदा कर दिया है क्योंकि यहां उन्होंने ‘राम‘ शब्द को एक फ़ारसी शब्द के तौर पर इस्तेमाल किया है। फ़ारसी में ‘राम‘ कहते हैं किसी को अपने अधीन करने को। इस तरह वे ‘राम‘ शब्द की व्यापकता को भी बता रहे हैं और यह भी दिखा रहे हैं कि ‘राम‘ केवल हिन्दी-संस्कृत भाषा और हिन्दुस्तान की भौगोलिक सीमाओं में बंधा हुआ नहीं है।
निष्कलंक है राम का चरित्र
अल्लामा हिन्दुस्तानियों के चिंतन को ‘फ़लक रस‘ अर्थात आसमान तक पहुंचने की ताक़त रखने वाला बता रहे हैं और इसी की वजह से वे हिन्दुस्तान के मक़ाम को आसमान से भी ऊंचा कह रहे हैं। हिन्दुस्तान की शोहरत की एक वजह वे यह बता रहे हैं कि हिन्दुस्तान में केवल ऊंचे दर्जे का दर्शन ही नहीं है बल्कि सदाचार की मिसाल क़ायम करने वाले ऐसे लोग भी इस देश में हुए हैं जिनका व्यक्तित्व फ़रिश्तों जैसा निष्कलंक और निष्पाप था और उनकी तादाद भी दो-चार नहीं बल्कि हज़ारों है।
अल्लामा इस भूमिका के बाद मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी का परिचय कराते हैं। वे कहते हैं कि उनके वुजूद पर हिन्दुस्तान को नाज़ है। ‘अहले नज़र‘ उन्हें ‘इमाम ए हिन्द‘ समझते हैं। इस वाक्य को समझने के लिए आदमी को पहले ‘अहले नज़र‘ और ‘इमाम‘, इन दो शब्दों के अर्थ को समझना पड़ेगा। ‘अहले नज़र‘ का शाब्दिक अर्थ तो है ‘नज़र वाले आदमी‘ लेकिन यहां ‘नज़र‘ से तात्पर्य आंख की नज़र नहीं है बल्कि ‘रूहानी नज़र‘ है। ‘अहले नज़र‘ से मुराद ऐसे लोग हैं जिन्हें ‘बोध‘ प्राप्त है, जो सही बात को ग़लत बात से अलग करके देखने की योग्यता रखते हैं। ‘इमाम‘ का शाब्दिक अर्थ तो ‘नेतृत्व करने वाला‘ होता है लेकिन यहां ‘इमाम‘ से मुराद है ‘रूहानी पेशवा‘ जो लोगों को सच्चाई और नेकी का रास्ता दिखाए। ‘इमाम ए हिन्द‘ का अर्थ यह हुआ कि उनका आदर्श सारे हिन्दुस्तान को सच्चाई और नेकी का रास्ता दिखा रहा है।
राम को पहचानने के लिए चाहिए ‘ज्ञानदृष्टि‘
हक़ीक़त यह है कि श्री रामचन्द्र जी को ‘इमाम ए हिन्द‘ केवल वही समझ सकता है जो ‘अहले नज़र‘ है। जो ‘अहले नज़र‘ नहीं है वह सही बात को ग़लत बात से अलग करके नहीं देखेगा और इसके दो ही नतीजे होंगे।
1. अगर आदमी उनके बारे में लिखी गई बातों को ज्यों का त्यों सही मान लेगा तो वह उन्हें ईश्वर का अवतार अर्थात मानव रूप में स्वयं ईश्वर ही मान लेगा।
2. दूसरा नतीजा यह होगा कि वह श्री रामचन्द्र जी को औरतों और शूद्रों के साथ जुल्म और ज़्यादती करने वाला समझ बैठेगा। यह भी तभी होगा जबकि पाठक उनके बारे में लिखी गई हरेक बात को ज्यों का त्यों सही मान ले। दलित साहित्य में विशेषकर यही देखने में आता है।
राम मर्यादा पुरूषोत्तम थे, इमाम ए हिन्द थे
ये दोनों ही बातें ग़लत हैं। सच्चाई इनके दरम्यान है। श्री रामचन्द्र जी न तो ईश्वर थे और न ही कोई ज़ालिम या पक्षपाती राजा। वे ‘इमाम ए हिन्द‘ थे, वे हिन्दुस्तान के नायक थे, वास्तव में वे मर्यादा पुरूषोत्तम थे। अल्लामा इक़बाल द्वारा श्री रामचन्द्र जी को ‘इमाम ए हिन्द‘ कहा जाना यह सिद्ध करता है कि अल्लामा खुद भी ‘अहले नज़र‘ थे।
श्री रामचन्द्र जी के वुजूद पर हिन्दुस्तानियों को नाज़ है। यह सही है, हरेक आदमी यह दावा कर सकता है कि उसे भी उन पन नाज़ है, गर्व है क्योंकि साधारण हैसियत का आदमी अपनी किसी बात पर तो गर्व कर नहीं सकता। सो वह खुद को किसी बड़े आदमी से या किसी बड़ी चीज़ से जोड़ लेता है जिसकी बड़ाई को दुनिया मानती हो। इस तरह वह केवल अपने अहंकार को ही तुष्ट करता है लेकिन श्री रामचन्द्र जी केवल गर्व की चीज़ ही नहीं हैं बल्कि ‘इमाम ए हिन्द‘ भी हैं, वे अपने अमल से एक आदर्श भी पेश करते हैं जिसपर चलना अनिवार्य है। जो उनके मार्ग पर नहीं चलता वह उन्हें अपना आदर्श भी नहीं मानता। वह झूठा है, वह समाज को ही नहीं बल्कि खुद अपने आप को भी धोखा दे रहा है।
मां-बाप की आज्ञाकारिता से मिलते हैं बुलंद मर्तबे
श्री रामचन्द्र जी के आदर्श में बहुत सी खूबियां हैं लेकिन सबसे ज़्यादा उभरी हुई खूबी है उनका आज्ञाकारी होना। केवल अपने पिता का ही नहीं बल्कि अपनी माता का भी और केवल अपनी सगी मां का ही नहीं बल्कि अपनी सौतेली मां का भी। वे चाहते तो अपने माता-पिता की आज्ञा नहीं भी मान सकते थे बल्कि उनके पिता राजा दशरथ ने तो उन्हें जंगल में जाने की आज्ञा दी ही नहीं थी, वे चाहते तो रूक सकते थे अयोध्या में लेकिन वे नहीं रूके। वे जंगल में चले गए। इस तरह उन्होंने भाइयों के बीच के उस आपसी टकराव को टाल दिया जो उनके बहुत बाद महाभारत काल में दिखाई दिया। आज भी भाई का भाई से टकराव एक बड़ी समस्या है, सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में। यह टकराव टाला जा सकता है लेकिन बड़े भाई को वन में जाना होगा। ‘बड़ा भाई‘ आज वन में जाने के लिए तैयार नहीं है लेकिन फिर भी कहता है कि उसे गर्व है श्री रामचन्द्र जी पर, अजीब विडम्बना है।
चराग़ ए हिदायत हैं राम
अल्लामा ने श्री रामचन्द्र जी को ‘इमाम ए हिन्द‘ कहने के बाद ‘चराग़ ए हिदायत‘ भी कहा है। ‘हिदायत‘ का शाब्दिक अर्थ तो ‘मार्गदर्शन‘ है लेकिन यहां ‘हिदायत‘ से उनका तात्पर्य ‘ईश्वर के धर्म का मार्ग दिखाने‘ से है। वे कहते हैं कि यह श्री रामचन्द्र जी के व्यक्तित्व का ही प्रभाव है कि आज जब भारत का वैभव पहले जैसा नहीं रहा तब भी हिन्दुस्तान की शाम भी ज़माने भर की सुबह की ज़्यादा से रौशन है, तेजोमय है।
अपनी खूबियों में बेमिसाल हैं राम
अल्लामा इक़बाल श्री रामचन्द्र जी को ‘फ़र्द‘ कहते हैं वीरता में, पाकीज़गी में और मुहब्बत में और वे उन्हें तलवार का धनी भी बताते हैं। ‘फ़र्द‘ उस आदमी को कहा जाता है जो किसी खूबी में अपनी मिसाल आप हो, वह खूबी उस दर्जे में उस समय किसी में भी न पाई जाती हो। अल्लामा ने तीन गुण उनके गिनाए हैं वीरता, पवित्रता और प्रेम। दरअस्ल अल्लामा ने तीन गुण नहीं गिनाए हैं बल्कि सारे गुणों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन गुणों का ज़िक्र किया है। मस्लन वीरता से रक्षा करने का गुण भी जुड़ा हुआ है। पवित्रता के साथ ईश्वर और धर्म का बोध, कर्तव्य का बोध और निर्वाह भी लाज़िमी तौर पर जुड़ा हुआ है। प्रेम के साथ शांति और धैर्य भी स्वभाव में पाए जाएंगे क्योंकि इनके बिना प्रेम संभव ही नहीं है और प्रेमी त्याग और बलिदान के गुणों से युक्त भी मिलेगा क्योंकि प्रेम बलिदान मांगता है। जितना बड़ा बलिदान होगा उतना बड़ा दर्जा होगा प्रेम करने वाले का।
प्रेम और बलिदान से मिलती है अमरता
इनसान को अमर करने वाली चीज़ वास्तव में बलिदान ही है। प्रेम एक जज़्बा है, जो दिल में छिपा रहता है, दुनिया उसे देख नहीं सकती लेकिन दुनिया बलिदान को देख सकती है। देखी हुई चीज़ को भुलाना आदमी के लिए मुमकिन नहीं होता। यही कारण है कि श्री रामचन्द्र जी के बलिदान को भुलाना हिन्दुस्तानियों के लिए आज तक मुमकिन न हो सका। उनका बलिदान कोई मजबूरीवश किया गया काम नहीं था क्योंकि अल्लामा इक़बाल उन्हें ‘तलवार का धनी‘ कहते हैं। ‘तलवार का धनी‘ एक मशहूर हिन्दी कहावत है जिसे वीर सैनिक के लिए बोला जाता है। श्री रामचन्द्र जी को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने वाले यही गुण हैं।
अच्छाई के प्रतीक हैं राम
ये गुण आज भी ज़रूरी हैं। इन्हीं गुणों की बदौलत वे भारतीय समाज में अच्छाई के प्रतीक बन गये हैं और उनके विरूद्ध लड़ने वाले रावण को बुरा और बुराई का प्रतीक माना जाता है। राम की सराहना होती है और रावण की निन्दा। राम जी की बारात और जुलूस निकाले जाते हैं जबकि रावण को जलाया जाता है हर साल। हर साल रावण को जलाने बावजूद भारतीय समाज में जुर्म और पाप लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। यह नज़्म अंग्रेजी शासन काल में लिखी गई थी और आज भारत आज़ाद है लेकिन तब से अब तक जुल्म और गुनाह में इज़ाफ़ा ही हुआ है। ऐसा क्यों हुआ ?
बुराई में इज़ाफ़ा क्यों हुआ ?
ऐसा इसलिए हुआ कि लोगों ने सिर्फ़ प्रतीक को जलाया, रावण को नहीं। लोग अपनों से प्रेम न कर सके, अपने लालच की बलि न दे सके, वे राम के रास्ते पर दो पग भी न धर सके। वे राममय न हो सके। जीवन में वे राम के पक्ष में न लड़ सके। नतीजा यह हुआ कि रावण के सैनिक बनकर रह गए और वे रावण को बलवान बनाते चले गए और उन्हें इसकी चेतना भी न हो सकी। यही कारण बना भारत के पतन का, उसके गौरव सूर्य के अस्त होने का।
रामनीति से होगा भारत का पुनरूत्थान
भारत में ज्ञान की कमी नहीं है। हिन्दुस्तानी पात्र ‘शराबे हक़ीक़त‘ से लबालब भरा हुआ है। भारतीयों में संभावनाएं और योग्ताएं भी ऐसी हैं कि उनका चिंतन ‘आकाश‘ छू चुका है। जो पहले हो चुका है उसे फिर से दोहराना कुछ मुश्किल नहीं है लेकिन अपनी लड़ाई हमें आप लड़नी होगी। राम ने खुद संघर्ष किया, अब आपकी बारी है, आपको भी खुद ही संघर्ष करना होगा। संघर्ष तो करना ही होगा और हरेक इन्सान कर भी रहा है क्योंकि जीवन में संघर्ष के सिवा और है भी क्या ? लेकिन अगर वह संघर्ष रामनीति के तहत नहीं है, राम के पवित्र आदर्श को सामने रखकर नहीं किया जा रहा है तो वह रावण को बलशाली बना रहा है। वह राम के खि़लाफ़ लड़ रहा है और जो राम के खि़लाफ़ लड़ेगा वह कभी जीतने वाला नहीं क्योंकि वह राम के खि़लाफ़ नहीं बल्कि वास्तव में ईश्वर के खि़लाफ़ लड़ रहा है।
क्या है रामनीति ?
ईश्वर इस सारे ब्रह्माण्ड का राजा है। इन्सानों को उसी ने पैदा किया और उन्हें राज्य भी दिया और शक्ति भी दी। सत्य और न्याय की चेतना उनके अंतःकरण में पैवस्त कर दी। किसी को उसने थोड़ी ज़मीन पर अधिकार दिया और किसी को ज़्यादा ज़मीन पर। एक परिवार भी एक पूरा राज्य होता है और सारा राज्य भी एक ही परिवार होता है। ‘रामनीति‘ यही है। जब तक राजनीति रामनीति के अधीन रहती है, राज्य रामराज्य बना रहता है और जब वह रामनीति से अपना दामन छुड़ा लेती है तो वह रावणनीति बन जाती है।
सत्य के लिए संघर्ष करना ही जिहाद है
सत्य और न्याय हरेक मनुष्य की चेतना का अखण्ड भाग है। जो आदमी सत्य और न्याय के लिए लड़ता है, दरअस्ल वह ईश्वर के लिए लड़ता है, जिहाद की वास्तविकता भी यही है और जो आदमी उसके खि़लाफ़ लड़ता है दरअस्ल वह सत्य और न्याय के विरूद्ध लड़ता है, वह सत्य और न्याय की रक्षा का नियम बनाने वाले ईश्वर के विरूद्ध लड़ता है। जो अपनी आत्मा के विरूद्ध लड़ता है, वह परमात्मा के विरूद्ध लड़ता है, परमेश्वर के विरूद्ध लड़ता है क्योंकि ईश्वर सत्य है और जहां कहीं भी सत्य है वह ईश्वर की ही ओर से है। जो प्रकट सत्य के विरूद्ध खड़ा होगा वह नज़र की पकड़ से बुलन्द महान सत्य को कभी पा नहीं सकता, उसका हरेक यज्ञ, उसका हरेक कर्म अन्ततः असफल हो जाएगा और उसे केवल अपयश ही दिलाएगा। रावण को भी यही मिला था और जो आज उसके गुणधारी बने हुए हैं उनका अंजाम भी इसके सिवाय कुछ होने वाला नहीं है और यही हो रहा है।
प्रेम की शक्ति से प्रकट होते हैं राम
‘राम नाम मुक्ति देता है‘ यह सही बात है लेकिन कब और कैसे देता है यह राम नाम मुक्ति ?
राम का नाम राम की याद दिलाता है, उनके काम की याद दिलाता है। राम के नाम को उनके काम से जोड़कर देखना होगा और जब आपके सामने वैसी ही परिस्थिति आए तो आपको वही करना होगा जो कि श्री रामचन्द्र जी ने किया था। आप क्या खो रहे हैं यह नहीं देखना है बल्कि देखना यह है कि आप श्री राम को पा रहे हैं। श्री राम आपके दिल से निकल आपके कर्मों में प्रकट हो रहे हैं। प्रेम से ऐसे ही प्रकट होते हैं श्री राम। श्री राम ही क्या , एक प्रेमी अपने प्रेम की शक्ति से जिसे चाहे, जब चाहे प्रकट कर ले, लेकिन उसे देखने के लिए भी नज़र प्रेम की ही चाहिए। जिसके पास यह नज़र होती है उसे ही ‘अहले नज़र‘ कहा जाता है। जिसके पास यह नज़र नहीं है, वह अंधा है, वह ‘चराग़ ए हिदायत‘ की रौशनी से कुछ फ़ायदा नहीं उठा सकता।
घर को आग लग रही है घर के चराग़ से
अंधा आदमी चराग़ लेकर घर में घूमे तो घर भर में आग ज़रूर लगा देगा। शक्ति का एक पहलू सृजन का होता है और दूसरा विनाश का। अगर शक्ति से काम लेने वाला व्यक्ति कुशल नहीं है तो वह सृजन नहीं कर सकता अलबत्ता अपनी उल्टी-सीधी छेड़छाड़ के कारण विनाश और तबाही ज़रूर ले आता है।
‘राम नाम में अपार शक्ति मौजूद है‘ लेकिन अक्ल के अंधे इससे वैमनस्य और विध्वंस फैला रहे हैं। अक्ल को अंधा बनाता है लालच। लालच में अंधा होने के बाद आदमी अपने भाई को भी नहीं पहचानता। जो लोग आज कुर्सी और शोहरत के लालच में राम-नाम ले रहे हैं, उन्हें जानना चाहिए कि इन चीज़ों को तो खुद श्री राम ने त्याग दिया था। इस त्याग से ही लालच का अंत होता है, अक्ल का अंधापन दूर होता है। तभी आदमी ‘राम नाम की अपार शक्ति‘ का सही इस्तेमाल कर पाता है।
क्या है राम नाम की अपार शक्ति ?
भौतिक शक्ति में अभी तक परमाणु की शक्ति को सबसे बड़ी शक्ति माना जाता है लेकिन यह शक्ति केवल दुनिया में उजाला फैला सकती है लेकिन इन्सान के अंदर उजाला फैलाने की ताक़त इसमें नहीं है। ‘राम नाम‘ इन्सान के अंदर भी उजाला कर देता है। ‘हिदायत‘ खुद एक नूर है और श्री राम ‘हिदायत‘ के चराग़ हैं। अभी तक कोई ऐसी भौतिक शक्ति नहीं है जो आदमी का दिल बदल दे, उसे बुरे इन्सान से एक अच्छा इन्सान बना दे। ‘राम नाम‘ में यह ताक़त मौजूद है कि एक बुरे इन्सान को एक बिल्कुल नया इन्सान बना दे। खुद श्री रामचन्द्र की ज़िन्दगी में जो उजाला था वह भी ‘राम नाम‘ ही उजाला तो था।
राम नाम का रौशन रहस्य
‘राम नाम‘ के साथ ‘चन्द्र‘ शब्द जुड़ने के बाद उनका नाम बनता है। चन्द्रमा उजाला देता है रात में जबकि लोग भटक रहे होते हैं अंधकार में। चन्द्रमा दिशा और रास्ता भी बताता है रात में। चन्द्रमा रौशनी देता है लेकिन यह रौशनी उसकी अपनी नहीं होती बल्कि वह स्वयं रौशनी लेता है सूर्य से। सूर्य अर्थात सविता जो कि परमेश्वर का नाम है और ‘राम‘ भी उसी का नाम है। नाम अपने अंदर पूरी कथा समाए हुए है। यह भी ‘राम नाम‘ की अद्भुत महिमा है।
राजा दशरथ के चार पुत्र थे।
1. रामचन्द्र 2. लक्ष्मण 3. भरत 4. शत्रुघ्न
क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि रखने को तो नाम केवल ‘राम‘ भी रखा जा सकता था उनका जैसे ‘भरत‘ नाम भी एक पुत्र का उन्होंने रखा था। एक शब्द को छोड़कर दो शब्दों को योग क्यों रखा राजा दशरथ ने या जिस भी ज्ञानी ने उन्हें यह नाम सुझाया हो, उसने आसान नाम को छोड़कर जटिल नाम क्यों रखा ?
आज भी जनता अपने मुख-सुख के लिए उन्हें ‘राम‘ ही तो कहती है।
आज उनका नाम ‘रामचन्द्र‘ होने के बावजूद लोग श्रद्धा में अति करके उन्हें ईश्वर कह रहे हैं अगर उनका नाम ‘राम‘ ही होता तो फिर लोगों के भ्रमित होने की एक वजह और बढ़ जाती। इसीलिए राजा दशरथ को जिस भी ज्ञानी ने उनका नाम ‘रामचन्द्र‘ रखने की सलाह दी, उसकी सलाह बिल्कुल सही थी और उनके व्यक्तित्व के लिए यह नाम बिल्कुल उपयुक्त है। चन्द्र का आधार सूर्य है, रामचन्द्र जी का आधार परमेश्वर है। ईशमय जीवन, राममय जीवन ही जीवन है। रामचन्द्र जी का जीवन राममय था तभी वे ‘चराग़ ए हिदायत‘ बन सके।
एक भूल जिसे दुनिया में बार बार दोहराया गया
इस देश में हज़ारों ‘मलक सरिश्त‘ अर्थात निष्पाप और एक ईश्वर के प्रति समर्पित लोग हुए हैं, श्री रामचन्द्र जी को अल्लामा इक़बाल ने उन्हीं लोगों में से एक बताया है। बहुत बार ज़माने में ऐसा हुआ कि लोगों ने फ़रिश्तों और देवताओं को ईश्वर ही कह दिया। अपने राजाओं को ईश्वर कह दिया, अपने महापुरूषों को ईश्वर कह दिया। जो उनके प्रति श्रद्धावान थे उन्होंने अपनी श्रद्धा में अति की और ऐसा भी हुआ कि जो उनसे विपरीत मत रखते थे उन्होंने दुनिया भर के ऐब उनसे जोड़कर प्रचारित कर दिए, यहां तक कि उन्हें सामान्य आदमी जैसे चरित्र का समझना भी दुश्वार हो गया। श्री रामचन्द्र जी के साथ भी ज़माने ने यही किया। कुछ लोगों ने उन्हें ईश्वर का अवतार कह डाला और कुछ लोगों ने ग़लत फ़ैसलों और जुल्म को उनसे जोड़कर उनपर सितम कर दिया। अब जो साहित्य उपलब्ध है, उसमें ये दोनों बातें मौजूद मिलती हैं लेकिन कोई भी ‘अहले नज़र‘ इनसे परेशान नहीं होता क्योंकि उसे ज़माने के दस्तूर का पता होता है कि वह हमेशा से ‘मलक सरिश्त‘ लोगों के साथ यही तो करता आया है।
श्री रामचन्द्र जी का ज़माना बहुत पुराना है बल्कि ठीक से तय ही नहीं किया जा सकता है कि वे कब और किस जगह पैदा हुए थे ?
ज्ञान पाने के लिए चाहिए एक निष्पक्ष विवेचना
उन्हें समझने के लिए हम दूसरे ‘मलक सरिश्त‘ लोगों का इतिहास देखते हैं तो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी पर नज़र जाती है। उनके मानने वालों ने उन्हें ईश्वर का पुत्र और ईश्वर ही बना दिया और उनके विरोधियों ने उनपर ईशनिन्दा का इल्ज़ाम ‘साबित‘ कर दिया। (मरकुस, 14, 64)
उनका इतिहास लिखने वालों ने यही बातें उनके इतिहास में लिख डालीं। ऐसा केवल अति के कारण हुआ। एक वर्ग ने उनके साथ प्रेम करने में अति की और दूसरे वर्ग ने अपने लालच में उनसे नफ़रत में अति की। दोनों ही सच्चाई से दूर जा पड़े। लेकिन ‘अहले नज़र‘ जानते हैं कि सच्चाई वास्तव में क्या है ?
इतिहास के विकृत हो जाने से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की शान में कोई कमी नहीं आ जाती। वह तो वैसी ही रहती है लेकिन लोगों के ज्ञान की परीक्षा ज़रूर हो जाती है। परीक्षा ज्ञान के बल पर ही दी जा सकती है और सफल भी केवल ज्ञानी ही हो सकता है। पुस्तकों को मात्र पढ़ लेना ही ‘ज्ञान‘ नहीं होता। बहुत कुछ ‘बिटवीन द लाइन्स‘ होता है, उसे भी समझना होता है। ‘ज्ञान‘ एक ईश्वरीय वरदान है जिसके लिए सच्ची लगन और सतत् अभ्यास चाहिए, तथ्यों की निष्पक्ष विवेचना करने के लिए मन को तैयार करना पड़ता है, तब कहीं जाकर प्रकट होता है ‘ज्ञान‘।
मोमिन देखता है खुदा के नूर से
एक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ही क्या, आज किसी भी ‘मलिक सरिश्त‘ आदमी की जीवनी पढ़ लीजिए जिसे उनके मानने वालों ने ही लिखा हो, इस तरह की बातें आपको सब जगह मिल जाएंगी। ‘अहले नज़र‘ इनमें मौजूद ‘तत्व‘ को पहचानते हैं। वे पहचानने में भूल नहीं करते क्योंकि वे ‘खुदा के नूर‘ से देखते हैं।
हज़रत मुहम्मद स. ने फ़रमाया-‘इत्तक़ू फ़िरासतिल मोमिन फ़इन्नहु यन्ज़ुरू बिनूरिल्लाह‘ अर्थात ईमान वाले की पहचानने की सलाहियत से डरो क्योंकि वह ‘अल्लाह के नूर‘ से देखता है। अल्लाह का नूर है कुरआन, जो फ़ुरक़ान भी है अर्थात सही और ग़लत में फ़र्क़ करने वाली कसौटी, इसमें पिछली क़ौमों के हाल भी हैं और उनके आमाल भी। पिछले नबियों और नेक लोगों का ज़िक्र भी है और उनकी क़ौमों ने उनके जाने के बाद क्या किया ? यह सब भी उसमें मौजूद है और इसी के साथ यह बिल्कुल साफ़ साफ़ लिखा है कि हक़ीक़त क्या है ?, सत्य क्या है ?
कुरआन खुदा का नूर है
जिनके चिंतन का आधार परमेश्वर का ज्ञान हो वे सही और ग़लत में भेद करने की सलाहियत भी रखते हैं और सत्य की कसौटी भी और सबसे बढ़कर पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. के रूप में एक आदर्श मार्गदर्शक भी जो खुद एक ‘मलिक सरिश्त‘ इन्सान थे। जो उन्हें नहीं जानता वह किसी ‘मलिक सरिश्त‘ को कभी उसकी सही हैसियत और उसके सही रूप में पहचान ही नहीं सकता। यह मानव जाति का सौभाग्य है ‘परमेश्वर का ज्ञान‘ कुरआन के रूप में सुरक्षित है और जो चाहे वह ‘परमेश्वर का प्रकाश‘ में चीज़ों को उनके वास्तविक रूप में देख सकता है।
शायरी के लिबास में हक़ीक़त का इज़्हार 
अल्लामा इक़बाल ने श्री रामचन्द्र की तारीफ़ में जो कुछ कहा है, उसे महज़ एक शायर की बड़ कहकर नहीं टाला जा सकता। जो लोग इक़बाल रह. से वाक़िफ़ हैं वे जानते हैं कि वे एक मोमिन थे और एक सच्चे आशिक़े रसूल भी। कुरआन उनकी चिंतन की बुनियाद था और उसी की तरफ़ वे लोगों को बुलाते रहे। अपने दौर के उतार चढ़ाव को वे हमेशा खुदाई उसूलों की रौशनी में देखा करते थे। शिया-सुन्नी और हनफ़ी-सलफ़ी सभी मस्लकों के आलिम अल्लामा इक़बाल के क़द्रदान हैं। मुसलमानों के साथ ही वे हिन्दुस्तान के हरेक तबक़े में लोकप्रिय हैं। पश्चिमी देशों में भी अल्लामा इक़बाल को खूब सराहना मिली और अब तक मिल रही है। यह नज़्म उनके शुरूआती दौर की रचना भी नहीं है। इन सब बातों के मद्दे नज़र इक़बाल के कथन की अहमियत को समझा जाना चाहिए। 
ईमान वाले ब्राह्मण थे अल्लामा इक़बाल
इक़बाल एक मोमिन तो थे ही, नस्ल से ब्राह्मण भी थे। बारीक बातों को समझने में एक ब्राह्मण को ख़ास क़ाबिलियत हासिल होती है। सदियों का इतिहास खुद उसके वुजूद में ही पैवस्त होता है। ‘ज्ञान‘ को समझने के लिए उसके अंदर एक ख़ास योग्यता होती है। अल्लामा इक़बाल एक ब्राह्मण की इल्मी क़ाबिलियत का खुला सुबूत हंै। उनकी क़ाबिलियत उनकी नज़्म के वज़्न को और भी ज़्यादा बढ़ा देता है। जो बात उन्होंने कही है उसे केवल इक़बाल ही कह सकते थे, किसी और के बस की बात भी नहीं है क्योंकि मामला निहायत नाजुक है। मामले की नज़ाकत को एक मोमिन और एक शायर बखूबी समझता है।
निष्कर्ष यह है कि यह नज़्म ‘शराबे हक़ीक़त‘ से लबरेज़ है। अगर इसके अर्थों पर ग़ौर किया जाए तो भारत में एक नई सुबह का आग़ाज़ हो सकता है।
नज़्म में पोशीदा है भारत के गौरव की वापसी का पूरा प्लान
खुद अल्लामा इक़बाल उस नई सुबह की पहली किरण हैं। उनकी शख्सियत के अंदर एक ब्राह्मण और एक मुसलमान एक साथ जमा हैं। हिन्दू चिंतन और इस्लामी गुणों को एक जगह कैसे जमा किया जाए ? इस पर एक लम्बे अर्से से विचार किया जा रहा है और बहुत से ‘गुरूओं‘ की कोशिशें भी कीं, जिनके कारण बहुत से मतों के संस्करण भी हिन्दुस्तानी समाज में ज़ाहिर हुए हैं लेकिन उनकी वजह से समाज में एकता नहीं आई बल्कि एक नया मत और बढ़ गया। इस काम को सबसे ज़्यादा खूबसूरती से अल्लामा इक़बाल ने अंजाम दिया है। उनकी वजह से कोई नया मत खड़ा नहीं हुआ। अल्लामा का यह एक ऐसा कारनामा है जिस पर अभी तक शायद किसी की नज़र नहीं गई है। इसे ज़ाहिर होने में शायद अभी वक्त लगेगा।
अल्लामा इक़बाल एक रामप्रेमी ब्राह्मण मुसलमान हैं, उनकी अनोखी शख्सियत भी वास्तव में ‘फ़र्द‘ है। उन्होंने इस नज़्म की शक्ल में उर्दू शायरी को एक बेमिसाल रचना दी है। यह रचना जब तक रहेगी तब तक वह उर्दू-हिन्दी और हिन्दू-मुस्लिम के दरम्यान उठने वाली दीवारों की बुनियाद को हिलाती रहेगी। यहां तक कि ये दीवारें आखि़रकार गिरेंगी और बिखरी हुई भारतीय जाति अपने ‘एकत्व‘ को जान ही लेगी। अपने गौरवमयी अतीत की वापसी के लिए छटपटाती भारतीय जाति के लिए यह नज़्म चराग़ ए हिदायत की हैसियत रखती है लेकिन इसे केवल ‘अहले नज़र‘ ही जान सकते हैं।

22 comments:

Dr. Jameel Ahmad said...

Nice post .

Dr. Jameel Ahmad said...

यह नज़्म ‘शराबे हक़ीक़त‘ से लबरेज़ है। अगर इसके अर्थों पर ग़ौर किया जाए तो भारत में एक नई सुबह का आग़ाज़ हो सकता है।

Anwar Ahmad said...

अल्लामा इक़बाल ने श्री रामचन्द्र की तारीफ़ में जो कुछ कहा है, उसे महज़ एक शायर की बड़ कहकर नहीं टाला जा सकता। जो लोग इक़बाल रह. से वाक़िफ़ हैं वे जानते हैं कि वे एक मोमिन थे और एक सच्चे आशिक़े रसूल भी।

Anwar Ahmad said...

अल्लाह का नूर है कुरआन, जो फ़ुरक़ान भी है अर्थात सही और ग़लत में फ़र्क़ करने वाली कसौटी, इसमें पिछली क़ौमों के हाल भी हैं और उनके आमाल भी। पिछले नबियों और नेक लोगों का ज़िक्र भी है और उनकी क़ौमों ने उनके जाने के बाद क्या किया ? यह सब भी उसमें मौजूद है और इसी के साथ यह बिल्कुल साफ़ साफ़ लिखा है कि हक़ीक़त क्या है ?, सत्य क्या है ?

well wisher said...

ईमान वाले ब्राह्मण थे अल्लामा इक़बाल ???
What does it mean sir ???

Aslam Qasmi said...

ठीक कहते हो नज़्म में पोशीदा है भारत के गौरव की वापसी का पूरा प्लान

Fariq Zakir Naik said...

good

Fariq Zakir Naik said...

nice

Dead body of FIRON - Sign of Allah
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs
विडियो

Ejaz Ul Haq said...

यह रचना जब तक रहेगी तब तक वह उर्दू-हिन्दी और हिन्दू-मुस्लिम के दरम्यान उठने वाली दीवारों की बुनियाद को हिलाती रहेगी।

महेन्‍द्र वर्मा said...

अपने विचारों से आप पावन संदेश प्रसारित कर रहे हैं ...आपका यह प्रयास स्तुत्य है।

S.M.Masoom said...

अच्छी रामायण है

Ayaz ahmad said...

वाह अनवर साहब वाह

Anonymous said...

पोस्ट की जायदातर बातो से असहमत ! कबीले कबूल नहीं !

SANSKRITJAGAT said...

सबसे पहले तो आपको साधुवाद दूँगा आपकी इस नेकनीयती पर, आप ने अपने इस लेख में अपने उत्‍तम मस्तिष्‍क का परिचय भी दिया है ।
पर एक बात सोंचने पर आपने मजबूर भी कर दिया है, जब आप इतना अच्‍छा लिख सकते हैं, इतने सुन्‍दर सौहार्दपूर्ण सन्‍देश को प्रसारित कर सकते हैं तो भला आप सनातन हिन्‍दू धर्म के विषय में दुष्‍प्रचार क्‍यूँ करते हैं ।
अपने धर्म का प्रचार करना बुरा नहीं है किन्‍तु किसी अन्‍य के विषय में बुरा कहना तो बहुत गलत है ।
अभी निरामिष पर आपकी टिप्‍पणियों से आहत होकर आ रहा हूँ, वहाँ आपके दुराग्रह के कारण से आहत हो आपको बहुत बुरा-भला भी कहा है, किन्‍तु यहाँ आकर आपके प्रति सारा विषाद दूर हुआ । आपसे पुन: अनुरोध करना चाहता हूँ, आप अपनी उर्जा को इसी तरह के रचनात्‍मक लेखों के लिये करें, भले ही आप मात्र इस्‍लाम की तारीफ में लिखें पर किसी अन्‍य धर्म का उल्‍लेख बडे-छोटे, अच्‍छा-बुरा आदि तौर पर न करें । इससे उक्‍त धर्मावलम्बियों की भावनाओं को ठेस पहुँचती है और मेरी ही भाँति हर व्‍यक्ति आहत हो बुरा-भला कहता है ।

आशा है आप इसी तरह का व्‍यवहार भविष्‍य में भी बनाए रखेंगे ।

धन्‍यवाद

आनन्‍द पाण्‍डेय
संस्‍कृतजगत्

रविकर said...

वाह भाई जान ||
आपका ज्ञान और प्रस्तुति का अंदाज पूर्णता को प्राप्त करता जा रहा है ||
बधाई ||

डा श्याम गुप्त said...

----बातें कथन के तौर पर अच्छी हैं....वही इकबाल भारत छोडकर पकिस्तान के समर्थक बन गये...इसे क्या कहेंगे?
---ये सारी बातें हज़ारों शायरों कवियों ने कही हैं, कोई नयी बात नहीं है...
----राम का नाम रामचन्द्र नहीं रखा गया था...सिर्फ़ राम ही है ....चन्द्र तो बाद में राजा बनने पर श्रद्धा-भक्ति वश प्रचलन में आया....

DR. ANWER JAMAL said...

@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपने पूछा है कि अल्लामा इक़बाल भारत छोड़कर पाकिस्तान समर्थक बन गए थे, इसे क्या कहेंगे ?
हम तो इसे परिस्थितियों की विडंबना ही कहेंगे।

2. दूसरी बात आपने यह कही है कि रामचन्द्र जी का नाम राम ही रखा गया था।
आपके पास इस बात के हक़ में कोई दलील हो तो ज़रूर दीजिए, हम ग़ौर करेंगे।
बिना दलील के आपकी बात कोई हैसियत नहीं रखती।

DR. ANWER JAMAL said...

@ संस्कृत जगत उर्फ़ आनंद पांडेय जी !
आपके मन में हमारे प्रति जो विषाद था वह दूर हो गया। यह एक अच्छी ख़बर है।
हम श्री रामचंद्र जी आदि महापुरूषों का आदर सम्मान दिल से करते हैं। यह तो आपने देख ही लिया है। अब आप यह भी जान लीजिए कि निरामिष ब्लॉग पर हमने हिंदू धर्म के प्रति कोई दुष्प्रचार नहीं किया है।

निरामिष ब्लॉग पर सुज्ञ जी द्वारा लिखा गया कि कुरआन में पशुओं की कुरबानी का कोई ज़िक्र ही नहीं है।
हमने बताया कि ऐसा न कहें। क़ुरआन के भाष्यकार इस बात पर एकमत हैं कि कुरआन में पशुओं की कुरबानी है।

इसी तरह उन्होंने वैदिक यज्ञ के बारे में कहा कि वैदिक यज्ञ में पशुओं की बलि नहीं दी जाती थी।
हमने वहां मनु स्मृति का हवाला दिया और बताया कि यज्ञ में पशु बलि का विधान है।
यज्ञाय जग्धिर्मांसस्येत्येष दैवो विधिः स्मृतः।
अतोन्यथा प्रवृत्तिस्तु राक्षसो विधिरूच्यते ।।
क्रीत्वा स्वयं वाप्युत्वाद्य परोपकृतमेव वा ।
देवान्पितृंश्चाचार्चयित्वा खादन्मांसं न दुष्यति।।
मनु स्मृति 5, 31-32

अर्थात यज्ञ के लिए मांस भक्षण को दैवीविधि बताया है, इसके अतिरिक्त मांस खाना राक्षसी प्रवृत्ति है। ख़रीद कर , कहीं से लाकर या किसी के द्वारा उपहार में प्राप्त मांस देवता और पितरों को अर्पण करके खाने से दोषभागी नहीं होता।

मनु स्मृति के इन श्लोकों का अनुवाद हमने खुद नहीं किया है बल्कि यह अनुवाद डा. चमन लाल गौतम जी ने किया है और यह संस्कृति संस्थान बरेली से प्रकाशित है।

इसी के साथ हमने स्वामी विवेकानंद जी के कथन को उद्धृत किया है जो कि वैदिक संस्कृति के एक महान प्रचारक माने जाते हैं।
वह भी यज्ञवादी वैदिक संस्कृति में पशु बलि और मांसाहार के समर्थक हैं।

अगर ये संदर्भ किताब में न पाए जाते तो आप हमारी बात को दुष्प्रचार की संज्ञा दे सकते थे लेकिन हिंदू मनीषियों के कथन और अनुवाद को उद्धृत करने वाले को इल्ज़ाम देना अनुचित है।
हम शास्त्रानुसार मांसाहार को पाप नहीं समझते बल्कि पुण्य समझते हैं।

हम तो यह मानते हैं कि इस्लाम ही सनातन धर्म है, लिहाज़ा हम सनातन धर्म के खि़लाफ़ दुष्प्रचार कैसे कर सकते हैं ?

आप हमारे दिए गए हवाले चेक कर लीजिए। वे सभी आपको वैदिक साहित्य में मिल जाएंगे।

विभावरी रंजन said...

पूरी तरह से असहमत,ये जो बारंबार आपने "अल्लामा इकबाल ने कहा है" की झड़ी लगाई है ये बिल्कुल मूर्खतापूर्ण है।
जैसा डा० श्याम गुप्त ने कहा है कि राम का नाम राम ही था,तो डा० साहब ठीक ही कहते हैं,काश आप ये निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़ लेते तो शायद दिग्भ्रमित नहीं होते----
"अतीत्यैकादशाहं तु नामकर्म तथाकरोत्।
ज्येष्ठं रामं महात्मानं भरतं कैकयीसुतम्॥
सौमित्रि लक्ष्मणमिति शत्रुघ्नमपरं तथा।
वसिष्ठः परमप्रीतो नामानि कुरुते तदा॥
इन पंक्तियों का अर्थ तो समझ ही रहे हैं न देवभाषा का ज्ञान तो श्रीमान् को पूरा होगा ऐसी आशा है खैर आपके "अल्लामा इक़बाल" जो भी कह गये हैं उसकी लकीर पीटते रहिए,आपको कोई सुबूत नहीं दिया है क्योंकि सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं।आपलोगों का जो मुख्य काम है आपलोग वही कर रहे हैं,ठीक ठाक बात तो ये होती कि आप केवल इस्लाम का ही महिमामंडन करते या वो काम करते जिसमें कुछ पकड़ हो,अल्लोपनिषद् की तरह किसी और उपनिषद् की रचना कर डालते लेकिन आप पर शायद ज़ाकिर नाइक की तरह वोही वाला भूत सवार है और दोचार किताबें पढ़कर लगे स्वयं को विवेचक समझने,
"-- क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि रखने को तो नाम केवल ‘राम‘ भी रखा जा सकता था उनका जैसे ‘भरत‘ नाम भी एक पुत्र का उन्होंने रखा था। एक शब्द को छोड़कर दो शब्दों को योग क्यों रखा राजा दशरथ ने या जिस भी ज्ञानी ने उन्हें यह नाम सुझाया हो, उसने आसान नाम को छोड़कर जटिल नाम क्यों रखा ?-- " हद है महाराज आप ऐसी लाइनें भी लिख जाते हैं?आपका ज्ञान तो क्या कहने और आप चलते हैं लोगों को गौर करवाने अजी साहब ये रामायण है और आपकी समझ से बहुत ऊपर की चीज़ है।आपकी समझ सिर्फ़ इतनी है कि कुछ रोचक लिख देना है ताकि एक ख़ास धर्मविशेष उसको पसंद करे,आपकी प्रशंसा करे और अंत में आपको ऐसे ही किसी शिक्षासम्मेलन में बुलाकर सम्मानित करदिया जाए,किसी जाहिल के बता देने से या रेलवे स्टेशनों पर बिकने वाली किताबों को पढ़कर कृपया हिन्दू धर्म य उसके देवताओं के बारे में अपने विचारों को यूँ प्रकट ना करें।
बेशक लखनऊ के शिक्षासम्मेलन में आपको ये अभूतपूर्व अवार्ड मिल गया लेकिन श्रीमान् जी ये हिन्दू धर्म की गाय हिन्दू के खूँटे पे बँधी छोड़ दीजिए।क्या ज़रूरत है इतनी मेहनत की?बड़ा पुराना धर्म है और इसके बारे अगर "आप" कुछ कहेंगे तो ये ज़्यादती होगी ना सरकार,शुरु से हिन्दू ही अपने धर्म की बातें हैन्डिल करते आये हैं,आपलोगों को क्या ज़रूरत है दिमाग़ लगाने की,सीधी सी बात है कि आप अपने ही धर्म की बात करें तो ही ठीक होगा परन्तु आप लगते हैं मनुस्मृति,वेदों,शास्त्रों और उपनिषदों की चर्चा करने और किस अन्दाज़ में करते हैं ये सबको पता है।
आपका ब्लौग वेद-कुरान तो सीधा एक ख़ास धर्म को श्रेष्ठ बताता है,अजीब अजीब ग्रन्थों के नाम बता कर दूसरे धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है,आपके ब्लौग की क्या बात की जाये यहाँ तक कि आपके सेलेब्रिटी धर्मगुरु और धर्मप्रचारक श्री ज़ाकिर नाइक जी कहते हैं कि आपका इस्लाम सबसे बेहतर है,साक्षात् दूसरे धर्मों को आध्यात्मिक रूप से पिछड़ा साबित करने में लगे हुए हैं,वो भी इतनी मेहनत कर रहे हैं लेकिन कुछ जाने माने लोग उनको कहते हैं fostered a spirit of separateness and reinforced prejudice(सुशी दास,द एज),कि वो पूर्वाग्रह से ग्रस्त और अलगाववादी विचारधारा के पक्षधर हैं।
ख़ैर भगवान् राम के बारे में तो आपने अपने "अल्लामा इक़बाल" के कहने में आकर ये बोल दिया--"आज उनका नाम ‘रामचन्द्र‘ होने के बावजूद लोग श्रद्धा में अति करके उन्हें ईश्वर कह रहे हैं अगर उनका नाम ‘राम‘ ही होता तो फिर लोगों के भ्रमित होने की एक वजह और बढ़ जाती।"--,वस्तुतः भगवान् राम का ये नाम "रामचंद्र" ही लोग श्रद्धातिरेक में लेते हैं,जैसे रघुवर और रघुवीर सरीखे नाम हैं और आपका कथन सही नहीं है,पहले आपको भगवान् राम के चरित के बारे में पूरी गहराई से अध्य्यन करना चाहिये तब औनलाइन कुछ लिखने की कोशिश करनी चाहिये।अभी क़ुरान पर ही प्रकाश डालिये तो ही सही होगा ताकि लोगों का भ्रम दूर हो सके।जो बात क़ुरान में लिखी हुई है उसको बिना एडिट किये अक्षरशः उसका अनुवाद कीजिये ताकि जन कल्याण हो सके,सच कह रहा हूँ बड़ा मज़ा आयेगा।जो करना चाहिये वो तो आप कर नहीं रहे हैं बेवजह दूसरे के कामों में खुद को फ़ँसा रहे हैं।

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई विभावरी रंजन जी ! ‘अल्लामा इक़बाल‘ का नाम बारंबार लेने को आपने मूर्खतापूर्ण क़रार दिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
जो आदमी श्री रामचंद्र जी को आदर सम्मान दे, हम उसका नाम बारंबार लेंगे ही। उनकी रचना की व्याख्या करते हुए बारंबार उनका नाम आना स्वाभाविक है।
आपके कथन में ईर्ष्या, द्वेष और घुटन झलक रही है।
बहुत से हिंदू भाई इस्लाम के बारे में लिख रहे हैं। आपने उनसे कभी नहीं कहा कि वे केवल अपने धर्म पर लिखें।
हम तो राम का नाम जानते भी न थे।
हमें तो स्कूल में हमारे ‘पूर्वज‘ नामक किताब में और इसी तरह की पाठ्य पुस्तकों में रामकथा जबरन पढ़ाई गई और अगर हमने दिल लगाकर नहीं पढ़ी तो टीचर्स ने हमारी पिटाई की।
जब कुछ बड़े हुए तो भगवा ब्रिगेड ने कहा कि ‘हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्री राम कहना होगा‘
उन्होंने मुसलमानों के साथ जो किया वह आप जानते ही हैं।
इस तरह हमारे दिलो-दिमाग़ में आप लोगों ने जबरन यह नाम बिठा दिया। तब हमने शोध किया कि आखि़र इस नाम की हक़ीक़त क्या है ?
जो हमने पाया वही हमने लिख दिया।
अब आप कहते हैं कि हम राम का नाम तक न लें।

भाई ! अब ऐसा संभव नहीं है।
आओ, आप भी राम नाम हमारे साथ मिलकर लो और सही तरीक़े से लो।

जो जन्म लेता है वह अजन्मा नहीं होता।
और जो मर जाए वह परमेश्वर नहीं होता।

जो कठिनाईयां झेले और त्याग-तपस्या करे वह महापुरूष ही होता है।
श्री रामचंद्र जी को महापुरूष मानने वाले करोड़ों हिंदू हैं जो उन्हें परमेश्वर नहीं मानते।

आप उनसे तर्क वितर्क करने आज तक न गए और इधर दौड़े चले आए ?
विभाजनकारी संकीर्ण मानसिकता आत्मिक कल्याण में बाधक है।
जो सत्य है वह सबके लिए है और उसे मानने से किसी को रोकना ठीक नहीं है।
पूर्वजों से काटने का आपका प्रयास अच्छा नहीं कहा जाएगा।
हिंदुत्व के विचारकों ने भी मुसलमानों को हिंदू कहा है।
ऐसे में आपके पास कोई आधार ही नहीं बचता, भाई।

कृप्या विचार करें !

मनोज कुमार said...

हमें तो यह आलेख अच्छा लगा। जानकारी परक भी।

आजकल एक प्रवृत्ति सी हो गई है कि हर बात पर विवाद शुरु कर दो। अगर मतभेद है तो बात शालीनता से भी रखी जा सकती है।

कोई पाकिस्तान चला गया, या पाकिस्तान की वकालत करने लगा इसका मतलब कि उसके हिन्दुस्तान के प्रति योगदान को हम नकार दें। सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान कहनेवाला भी तो, सुना है कि पाकिस्तान चला गया।

भाई मुझे तो गांधी जी की बात याद आ रही है
ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम
सबको सन्नमति दे भगवान!

डा श्याम गुप्त said...

विभावरे जी ने पहक्ले ही एक सटीक उदाहरण दे दिया है जो आलेख लेखक के अग्यान को बताता है .... हम या विभावरी जी किसी से लदने क्यों जायें जो अनाधिकार चेस्टा कर रहा है उसी को सम्झाना होता है....
---मनोज जी यह शुतुरमुर्ग वाली प्रव्रत्ति है....कोई न्रप होय बाली...इस अतिवादी सहिष्णुता से धर्म का बहुत ह्रास हुआ है....बात सारे जहां से अच्छा वाले की ही हो रही है...जो स्वार्थ के लिये अपनी औकात दिखा गया...
---उपरोक्त श्लोक में मांस-भक्षण का प्रसन्ग है ही नहीं अपितु तत्वार्थ सिर्फ़ यह है कि... यग्य द्वारा अर्थात स्वयं परिश्रम पूर्वक उपाज्य अन्न का जीवन के लिये उपयोग ही देवीय( सर्वश्रेष्ठ) विधि है...अन्यथा( छीन कर, बलातहरण , बिना परिश्रम, मांगकर आदि) राक्षसीय विधियां हैं। क्रय करके, उपहार में प्राप्त वस्तु का उपयोग देवता/ पितरों को अर्पण करके ही उपयोग करना चाहिये( यह मध्यम विधि है अतः दोश नहीं लगता ।...हां निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ विधि नहीं...