सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, October 19, 2010
Ram in muslim poetry , first beam राम (नज़्म) - अल्लामा इक़बाल
लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्ता ए मग़रिब के राम ए हिन्द
यह हिन्दियों के फ़िक्र ए फ़लक रस का है असर
रिफ़अ़त में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलिक सरिश्त
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम ए हिन्द
है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
तलवार का धनी था शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश ए मुहब्बत में फ़र्द था
-बांगे दिरा मय शरह
शब्दार्थ- लबरेज़-लबालब भरा हुआ, शराबे हक़ीक़त-तत्वज्ञान, ईश्वरीय चेतना, आध्यात्मिक ज्ञान, खि़त्ता ए मग़रिब-पश्चिमी देश, राम ए हिन्द-हिन्दुस्तान के अधीन ,‘राम‘ यहां फ़ारसी शब्द के तौर पर आया है जिसका अर्थ है आधिपत्य, फ़िक्र ए फ़लक रस-आसमान तक पहुंच रखने वाला चिंतन, रिफ़अत-ऊंचाई,बामे हिन्द-मक़ामे हिंद , मलिक सरिश्त-फरिश्तों जैसे चरित्र वाले , अहले नज़र-नज़र वाले यानि जिन्हें अंतर्दृष्टि प्राप्त है , इमाम ए हिन्द-हिनुस्तान का नायक ,ऐजाज़-चमत्कार ,चराग़ ए हिदायत-हिदायत का चराग़ यानि ईश्वरीय मार्ग दिखने वाला ,रौशनतर अज़ सहर-सुबह से ज्यादा रौशन ,शुजाअत-वीरता , पाकीज़गी-पवित्रता , फ़र्द-यकता, अपनी मिसाल आप
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्ता ए मग़रिब के राम ए हिन्द
यह हिन्दियों के फ़िक्र ए फ़लक रस का है असर
रिफ़अ़त में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलिक सरिश्त
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम ए हिन्द
है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
तलवार का धनी था शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश ए मुहब्बत में फ़र्द था
-बांगे दिरा मय शरह
शब्दार्थ- लबरेज़-लबालब भरा हुआ, शराबे हक़ीक़त-तत्वज्ञान, ईश्वरीय चेतना, आध्यात्मिक ज्ञान, खि़त्ता ए मग़रिब-पश्चिमी देश, राम ए हिन्द-हिन्दुस्तान के अधीन ,‘राम‘ यहां फ़ारसी शब्द के तौर पर आया है जिसका अर्थ है आधिपत्य, फ़िक्र ए फ़लक रस-आसमान तक पहुंच रखने वाला चिंतन, रिफ़अत-ऊंचाई,बामे हिन्द-मक़ामे हिंद , मलिक सरिश्त-फरिश्तों जैसे चरित्र वाले , अहले नज़र-नज़र वाले यानि जिन्हें अंतर्दृष्टि प्राप्त है , इमाम ए हिन्द-हिनुस्तान का नायक ,ऐजाज़-चमत्कार ,चराग़ ए हिदायत-हिदायत का चराग़ यानि ईश्वरीय मार्ग दिखने वाला ,रौशनतर अज़ सहर-सुबह से ज्यादा रौशन ,शुजाअत-वीरता , पाकीज़गी-पवित्रता , फ़र्द-यकता, अपनी मिसाल आप
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17 comments:
आपकी बात और अल्लामा की बात दोनों की बात सही है लेकिन जो हुकूमत चाहते हैं वे परवाह नहीं करते किसी आदर्श की , किसी तालीम की .
आप अपना फ़र्ज़ नरमी और मुहब्बत से अदा करते रहें . मेरे पास वक़्त नहीं होता लेकिन आपकी मेल मिलते ही मैं कमेन्ट करने की कोशिश करता हूँ .
जज़ाकल्लाह
आपके ईसाई पादरी से हुए सवाल जवाब देख कर मैं भी एक लेख लिख रहा हूँ , जल्दी ही इंशा अल्लाह मंज़रे आम पर होगा .
है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
khoob hi kaha hai allama e mashriq ne .
गुड,
लेकिन अल्लामा इकबाल तो अब पाकिस्तानी मुस्लिम कहलायेंगे.
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
nice post
very good
मेरा मानना है कि धर्म और धार्मिक स्थानों पर हमले करना और फिर उनकी सौदेबाज़ी करना देश के लिए घातक है. इस सम्बन्ध में मुझे आपके विचार चाहियें अपने प्रस्तुत लेख पर
A question to so called nationalists क्या कृषण जन्म भूमि की वैल्यू कम है राम जन्म भूमि से ?
अल्लामा इकबाल सियालकोट, पंजाब, ब्रिटिश भारत में पैदा हुआ था, एक कश्मीरी शेख परिवार में पांच भाई बहन की सबसे बड़ी [6] [7] इकबाल पिता शेख नूर मुहम्मद एक समृद्ध दर्जी, अच्छी तरह से अपने इस्लाम को मजबूत भक्ति, और के लिए जाना जाता था. परिवार गहरी धार्मिक ग्राउंडिंग के साथ अपने बच्चों को उठाया. अपने दादा सहज राम सप्रू श्रीनगर जो अपने परिवार के साथ इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया से एक कश्मीरी पंडित था, इस प्रक्रिया में शेख मुहम्मद रफीक के मुस्लिम नाम अपनाया. रूपांतरण के बाद, वह पंजाब के सियालकोट पश्चिम में अपने परिवार के साथ चले गए
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मुग़ल, खासकर अकबर के बाद से, गैर-मुस्लिमों पर उदार रहे थे लेकिन औरंगज़ेब उनके ठीक उलट था। औरंगज़ेब ने जज़िया कर फिर से आरंभ करवाया, जिसे अक़बर ने खत्म कर दिया था। उसने कश्मीरी ब्राह्मणों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर किया। कश्मीरी ब्राह्मणों ने सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर से मदद मांगी। तेगबहादुर ने इसका विरोध किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। इस दिन को सिक्ख आज भी अपने त्यौहारों में याद करते हैं।
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टेलिविजन पर एक इंटरव्यू के दौरान श्री राम जेठमलानी जी ने इसी गजल का जिक्र करते हुऐ श्रीराम को 'इमामे हिन्द' बताते हुऐ सभी हिन्दुस्तानियों से राम का मंदिर बनाने के लिये आगे आने की बड़ी भावुक अपील की थी... राम जेठमलानी जी का बहुत सम्मान करता हूँ खास तौर पर Underdog का साथ देने के उनके इतिहास के कारण... तब से इस गजल को ढूँढ रहा था... और इत्तेफाक देखिये कि आज पाया कि आप ब्लॉग इस से सजा हुआ है...
क्या यह पूरी रचना है या इसके आगे और भी है ?
बहुत बहुत धन्यवाद आपका !
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ज्ञान विज्ञानं के मोती
@ जनाब प्रवीण शाह साहब ! 'आपको नज़्म की तलाश थी और आपको मेरे पेश करने से पहले यह नज़्म नहीं मिल पा रही थी ?' यह मैं क्या सुन रहा हूँ जनाब ? आप तो नेटसागर की तह से ज्ञान विज्ञानं के मोती ढूंढ कर लाने में माहिर हैं . अगर आपने कोशिश की होती तो आपको दर्जनों जगह यह नज़्म मिल जाती , देखिये यहाँ पर . यह रचना पूरी है .
१-बहरहाल आपकी ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया, सुना है आजकल आप आत्मा पर चिंतन कर रहे है ?
उम्मीद है कि सही नतीजे तक पहुँच ही जायेंगे , कमी मेरी तरफ से है , मैं आपके लिए दुआ नहीं कर पा रहा हूँ , गोदियाल जी के लिए और बहुत से दोस्तों के लिए दुआ नहीं कर पा रहा हूँ . आपकी हक़तलफी कर रहा हूँ , उम्मीद है कि अपना हक़ माफ़ कर देंगे . आपने मुझे डराया था एक दिन , आज भी सिहरन सी दौड़ जाती है सोचकर खुद को जहन्नम में, अपने मुजरिम होने में कुछ भी शक नहीं है मुझे, बख्शिश के लिए सिर्फ उसकी रहमत पर ही भरोसा है. रहमत कि दुआ ही करता हूँ अपने साथ आपके और दीगर लोगों के हक़ में.
२-मूर्ति वाला मंदिर बनाने कि ज़िम्मेदारी हिन्दू सम्राटों ने खुद ही ले डाली जबकि वेद मना करते हैं इस टाइप के काम करने से. रोना इसी बात का है कि हिन्दू और मुसलमान दोनों उन कामों में लगे हुए है जिनसे मालिक ने रोका था और जो करने के लिए कहा थ वे काम करते नहीं. दोनों लड़ते हैं तो नास्तिक और संशयवादी समझते हैं कि धर्म लड़ाता है .
औरंगज़ेब ने मंदिरों को जागीरें दी हैं
@ भाई गिरी जी ! यह आप ही कर सकते थे और आपने ही किया भी कि पूरी नज़्म पर तो अपने एक लाइन न लिखी कि कैसी लगी और अल्लामा इक़बाल का शजरा बयान कर डाला.
रही बात सिक्खों के याद करने की, वे तो भिंडरावाले को भी याद करते हैं. सरकार उसे आतंकवादी बताती है और सिक्ख समाज उसे संत कहता है, अगर हिन्दू खालिस्तान नहीं बनने देना चाहते तो औरंगज़ेब ही देश का बंटवारा क्यों होने देता . औरंगज़ेब का मिशन देश की अखंडता था, जिसके लिए वह आजीवन लड़ता रहा सबसे , मुसलमानों से भी. उसने कभी धर्म परिवर्तन नहीं कराया बल्कि मंदिरों को उसने जागीरें दी हैं , आप उमर साहब से तस्दीक कर सकते हैं . एक किताब बी. एन. पण्डे जी की उनके ब्लॉग पर पड़ी है.
अनवर जमाल जी
आप के ब्लोग पर आपका लेख अल्लामा इकबाल की नज़्म के हवाले से पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ ,ठीक हे की सर इक़बाल ने राम को इमाम ए हिंद कहा हे ,ग़ालिब अगर शराब की तारीफ करे तो शराब कोई अच्छी चीज़ नहीं बन जा एगी , इक़बाल का कलाम एक शायर की लफ्फाजी हे तो आप की बातें केवल चापलोसीऔर तुष्टिकरण के सिवा कुछ नहीं ,अल्लामा इक़बाल ने राम को इमाम ए हिंद कहा हे तो आज बहुत से तताकथित राम भक्त राम को आदर्श बतलाते हैं ,लेकिन इन में से कोई यह नहीं बतलाता की राम आदर्श केसे हें ? उनकी कोनसी बात को आज यह लोग आदर्श बना सकते हें? क्या यह लोग बता सकते हें की राम राज्य में जो वर्ण व्यवस्था थी और एक शूद्र को धर्म कार्य करने की भी अनुमति नहीं थी ,क्या यह व्यवस्था आज के समय में आदर्श हो सकती हे ? या राम ने अपनी पत्नी की अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी उसे घर से निकाल दिया था ,यह बात आदर्श हो सकती हे ? यह वह शिकार खेलते और हर्द्याविनोद की खातिर भी हिरन आदि को मारते फिरते थे यह बात आदर्श हो सकती हे ?या जब शूर्पनखा उनके पास शादी का प्रस्ताव लेकर आई और उन्हों ने झूट बोलते हुए कहा कि मेरे छोटे भाई की शादी नहीं हुई हे तुम उन से शादी का प्रस्ताव रखो ,जब कि उनके इस छोटे भाई कि शादी भी राम के विवाह के साथ ही हो गई थी , तो क्या यह झूट आदर्श हो सकता हे ? या उस भाई को एक मामूली बात पर घर से निकाल देना आदर्श हो सकता हे जिसने जीवन भर अपना सुख त्याग कर राम की सेवा की ,,,,,,,,सोचो आखिर कब सोचोगे ,,,
@ Dr. Anwar Jamaal. Probably you have not gone through the links you have provided. Aurangzeb had destroyed hindu temples is very much mentioned in the blog/wikipedia link provided by you. Your mentality is not understood, you desire to prove all the wrong doings opf a king goo, only because he was incidently a muslim in addition to being a vice king?
@ संजीव जी !
अगर आपने बी. एन. पण्डे नाम पर ध्यान दिया होता तो आपको लेखक की मानसिकता समझने में आसानी रहती उनके दिए गए लिंक में ही आपको मिल जाता कि औरेंगज़ेब हिन्दू मंदिरों को जागीरें दिया करता था. मंदिर तोड़ने के कारण मोदी को भी हिन्दुओं की नाराज़गी झेलनी पड़ी लेकिन हम जानते हैं कि मोदी द्वारा मंदिरों को तोड़ा जाना एक शासकीय मजबूरी थी, औरंगजेब के शासनकाल में भी जिस बड़े मंदिर का तोड़ा जाना ज़िक्र किया जाता है उसे तोड़ने वाले भी मोदी की तरह ही हिदू राजा थे, उन्हें मंदिरों के महंतों पर गुस्सा क्यों आया और उन्होंने मंदिर क्यों तोड़ा ? यह जानने के लिए आपको पढ़नी होगी बी. एन. पण्डे की किताब.
@ गिरी जी !
नज़्म है राम जी की तारीफ़ में. इसका दूर तक भी कोई सम्बन्ध औरंगजेब से नहीं है, अल्लामा इक़बाल के दादा तो औरंगज़ेब के काल में पैदा ही नहीं हुए थे. इसके बावजूद आपने इस पोस्ट पर औरंगजेब को ला खड़ा किया, ताज्जुब है !!!.
@ असलम क़ासमी साहब !
आप कहते हैं कि इक़बाल एक शायर था मैं उसकी बात नहीं मानता, बाल्मीकि और तुलसी भी तो शायर हैं फिर आप उनकी बात क्यों मान रहे हैं, आपने राम कथा के जितने भी हवाले दिए हैं वे सब शायरों के ही हवाले हैं , और हिन्दू विद्वानों ने बताया है कि समय-समय पर इनमें भरी फेर बदल किये गए हैं.
मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रहमतुल्लाह अलैहि ने भी श्री रामचन्द्र जी के निरादर से बचने की ताकीद की है
@आदरणीय असलम क़ासमी साहब! यह एक साबितशुदा हक़ीक़त है कि रामकथा में समय के साथ बहुत से फेरबदल होते रहे हैं। इसलिए अगर आज रामकथा में कुछ ऐसी बातें पाई जाती हैं जिन पर आपत्ति की जा सकती है तो आसानी से समझा जा सकता है कि स्वार्थी तत्वों ने कौन सी बातें बाद में मिलाई होंगी। इस तरह की मिलावटें बहुत सी किताबों में की गई हैं।
जो मोमिन बन्दा इंसानियत के दुश्मनों की ऐसी करतूतों को जानता है वह हक़ और बातिल को अलग करने की सलाहियत रखता है। यही वजह है कि मुस्लिम आलिमों ने कभी श्री रामचन्द्र जी के बारे में ऐसी ग़लत बातों को तस्लीम नहीं किया है।
आप क़ासमी हैं यानि कि आप दारूल उलूम देवबन्द से फ़ारिग़ुत्तहसील आलिम हैं। इस संस्था के संस्थापक मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रहमतुल्लाह अलैहि ने भी श्री रामचन्द्र जी के निरादर से बचने की ताकीद यह कहते हुए की है कि हो सकता है कि वह अपने ज़माने के नबी रहे हों।
श्री रामचन्द्र जी का ज़माना पुराना है और वर्ण व्यवस्था उनके बहुत बाद की देन है। बाद की बुराईयों के लिए श्री रामचन्द्र जी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसीलिए अल्लामा इक़बाल ने उनकी तारीफ़ की है और इसीलिए हम करते हैं।
डॉ अनवर जमाल जी कृपया करके इस बात पर भी प्रकाश डालिए कि गुरु गोविन्द सिंह के दोनों बेटो को औरंगजेब से दीवार में क्यों चिनवा दिया था ये इस क्रूर शासक का कौन रूप था जो अपने पिता को ही इस तरह कैद करके मरने के लिए छोड़ दे वो किसी और के लिए कैसे रहमदिल हो सकता है
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