सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, October 28, 2010

Give up your prejudices धर्म वही है जो हमें भगवान तक पहुंचा दे - Anwer Jamal

महकती है मेरे चमन की कली-कली

कल श्री होतीलाल जी के साथ एक ऐसे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में जाने का इत्तेफ़ाक़ हुआ जो गांव वालों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए गांव में ही क़ायम किया गया है। वापसी में हम दोनों एक जगह चाय के लिए रूक गए। चाय की यह दुकान जी. टी. रोड पर एक लोहे के खोके में बनी है जिस पर ‘ओम टी स्टाल‘ लिखा था। दुकान पर उस वक्त एक बहन थीं। वे हमारे लिए चाय बनाने लगीं तो मेरी नज़र उनके खोके की दीवार पर गई। उनके काउन्टर और दीवार पर कुछ अच्छी बातें लिखी थीं। मुझे अच्छी लगीं और मैंने तुरंत इन्हें लिख लिया।
1. धर्म और भगवान नित्य हैं।
2. धर्म वही है जो हमें भगवान तक पहुंचा दे।
3. भोग और संग्रह की इच्छा ही सारे पापों की जड़ है।
4. धन की प्यास कभी बुझती नहीं अतः संतोष ही परम सुख है।
5. शत्रु और रोग को कभी दुर्बल नहीं समझना चाहिए।
6. स्वार्थी मनुष्य को संसार में कोई अच्छा नहीं कहता।
7. संपन्नता मित्र बनाती है लेकिन उनकी परख विपदा के समय होती है।
8. पुण्य-पाप की सबसे बड़ी निर्णायक आत्मा है।
9. मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं।
10. कामनाएं सागर की भांति अतृप्त हैं।
11. आपत्तियां किसी को दृढ़ बनाती हैं और किसी को निर्बल।
12. दुख ही व्यक्ति को दयालु, सुहृदय और सामाजिक बनाता है।
13. शिक्षा मनुष्य चेतना को जिज्ञासु बनाती है।
इन सब के ऊपर ‘ऊँ‘ लिखा था और फिर लिखा था-
चित्रकूट के घाट पर, लगी संतन की भीर
चाय पी रहे बैठ कर, राजा रंक और फ़क़ीर
इसके बाद लिखा था-
‘स्मृति पीछे नज़र डालती है और आत्मा आगे‘
मुझे ये सभी बातें बहुत अच्छी लगीं और मुझे लगा कि इन बातों को तुरंत मान लेना चाहिए।
क्या ये बातें अच्छी नहीं हैं ?
मुझे लगा कि इतने ज्ञान की बातें हैं यह ज़रूर किसी ब्राह्मण की दुकान होगी। चाय का पेमेंट करते हुए जब मैंने उन बहन से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे खटीक जाति से हैं। मैंने उन बातों की तारीफ़ की और अपना ख़याल बताया तो वे बोलीं कि ज़रूरी नहीं है कि अच्छी बातें केवल ब्राह्मण ही बता सकता है। मैंने उनकी राय से इत्तेफ़ाक़ ज़ाहिर किया और उनका शुक्रिया भी।
क्या मेरे लिए इन बातों को न मानने के लिए यह कोई जायज़ वजह कहलाएगी कि
1. ये बातें उर्दू और अरबी में नहीं हैं ?
2. इन बातों को किसी मुस्लिम आलिम ने नहीं लिखा है ?
3. इन बातों को किसी हिन्दू ने लिखा है ?
4. हिन्दुओं में भी किसी फ़िलॉस्फ़र जाति के आदमी ने नहीं लिखा है ?
5. मैं शहर का आदमी हूं किसी देहाती की बातें क्यों मानूं ? आदि आदि
6. क्या इस तरह का विचार जायज़ है ?
7. क्या इस तरह का संकीर्ण विचार रखने के बाद मेरे कल्याण की कोई आशा शेष रह जाएगी ?
नहीं, बिल्कुल नहीं। इस तरह की बात मैं अपने लिए हितकारी नहीं मानता और जो चीज़ मैं अपने लिए पसंद नहीं करता वह किसी दूसरे के लिए भी पसंद नहीं करता, अपने विरोधी के लिए भी नहीं, अपने दुश्मन के लिए भी नहीं। ये सभी बातें चाहे कुरआन और हदीस में ठीक इन शब्दों में न आई हों तब भी हदीस में यह हिदायत साफ़ आई है कि ‘हिकमत अर्थात तत्वदर्शिता की बात जहां से भी मिले, ले लो।‘
अल्लामा इक़बाल अपनी नज़्म ‘राम‘ में कह चुके हैं कि ‘लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द‘ और हम देख रहे हैं कि हिन्दुस्तान के चायख़ाने की दीवार पर भी आरिफ़ाना कलाम मौजूद है। इस कलाम की सच्चाई को और हिन्दुस्तान की अज़्मत को जो न माने वह सिर्फ़ हठधर्म है और कुछ भी नहीं।
आज भी एक साहब के साथ एक ही गाड़ी पर आने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। वह जाट हैं और थाना दनकौर के गांव भट्टा पारसौल के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि हमारे गांव में मर्डर, लूट और चोरी नहीं होती। हमारे गांव में पुलिस आती है, हम उनका आदर करते हैं लेकिन हमारे गांव का कोई मुक़द्दमा थाने में नहीं लिखा जाता।
मैंने पूछा, तब तो आपके गांव की लड़कियां भी नहीं सताई जाती होंगी सुसराल में ?
उन्होंने बताया कि सवाल ही नहीं है। कहीं कोई शिकायत होती है तो तुरंत पहुंच जाते हैं ट्रैक्टर ट्रौली में भरकर सब के सब।

अनुकरणीय उदाहरण
उन्होंने यह भी बताया कि जब हमारे गांव में किसी ग़रीब आदमी की बेटी का ब्याह होता है तो हरेक घर से उसे चावल और कपड़ा वग़ैरह दिया जाता है। इसी तरह की उन्होंने और भी बातें बताईं जो कि वास्तव में अनुकरणीय हैं।
क्या उन्हें केवल इसलिए नहीं माना जाएगा कि बताने वाला आदमी जाट जाति से है ?
उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने बाबा रामदेव के बताए तरीक़े से अनुलोम-विलोम और कपालभांति प्राणायाम किया और उनका चश्मा उतर गया, उनका पेट भी ठीक हो गया।
ऐरौबिक्स और ऐनारौबिक्स एक्सरसाईज़ की तरह योग भी वाक़ई मुफ़ीद है बल्कि उनसे ज़्यादा मुफ़ीद है। यह केवल तन पर ही नहीं बल्कि मन पर भी असर डालता है। यूरोप और अमेरिका में हुई से रिसर्च से भी इस बात की तस्दीक़ हो चुकी है।
क्या योग को केवल इसलिए नकार दिया जाए कि इसे एक सन्यासी सिखा रहा है ?
लोग अपनी समस्याओं से परेशान हैं। उनकी समस्या का हल अगर योग में है तो क्यों न योग को अपनाया जाए ?
इसी तरह अगर इस्लाम के एकेश्वरवाद से मूर्तिपूजा और दूसरे आडम्बरों से मुक्ति मिल सकती है, विधवाओं का पुनर्विवाह आसान हो सकता है तो इस्लाम को अपनाने से क्यों हिचका जाए ?

13 comments:

S.M.Masoom said...

क्या योग को केवल इसलिए नकार दिया जाए कि इसे एक सन्यासी सिखा रहा है ? Good Question Janab Anwer Jamal sahab.

ZEAL said...

.

@--मूर्तिपूजा और दूसरे आडम्बरों...

डॉ अनवर ,

क्यूँ मज़ाक करते हैं ?

दुसरे धर्म सिर्फ आडम्बर हैं ? क्या इस्लाम दुसरे धर्मों का सम्मान करना नहीं सिखाता ?

.

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

बहुत अच्छा लेख जमाल भाई,

आपकी बात से पुरी तरह सहमत.....

जात पात के लिये इस्लाम में जगह नहीं है..एक सफ़ में कंधे से कंधा मिलाकर राजा और फ़कीर नमाज़ पढते है...

============
"हिन्दुओं ने राम मन्दिर के लिये बाबरी मस्ज़िद तो तोड दी। शिव मन्दिर के लिये "ताजमहल" कब तोड रहे हैं? "

"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में Download Quran Hindi Translation in .MP3 Format Playlist Friendly"

Simply Codes

Attitude | A Way To Success

Fariq Zakir Naik said...

वाकई अच्छी बातों को तुरंत मान लेना चाहिए।
ये बातें अच्छी

Fariq Zakir Naik said...

good post

Dead body of FIRON - Sign of Allah
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs
विडियो

Ayaz ahmad said...

इस्लाम के एकेश्वरवाद से मूर्तिपूजा और दूसरे आडम्बरों से मुक्ति मिल सकती है, विधवाओं का पुनर्विवाह आसान हो सकता है तो इस्लाम को अपनाने से क्यों हिचका जाए

Satish Chand Gupta said...

भाई अनवर साहब, आप दयानन्‍द जी पर एक अच्‍छी किताब लिख चुके हैं मेरी किताब भी आप तक पहुंच चुकी, अब उसके सिलसिले में शर्मा जी को एक खत लिखा है वैसी ही निवेदन आपसे भी है

बी. एन. शर्मा जी
आर्य समाज मैं अपनी जिन्‍दगी गुजरी फिर सच्‍चा और सीधा रास्‍ता मिलता चला गया, आपसे निवेदन था कि मेरी किताब जिसक पहला एडिशन फोरन खत्‍म होगया दूसरे एडिशन की तैयारी है, इधर उधर हजारों तक किताब पहुंचायी किधर से भी कोई आवाज नहीं सब चुप्‍पी मार गये, आप जैसा ज्ञानी कुछ मीन मेख निकाल सके तो मुझे दूसरे एडिशन में उसको दूर करने में आसानी रहेगी,
कृपा करें पधारें

book: सत्‍यार्थ प्रकाश : समीक्षा की समीक्षा

स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती द्वारा प्रतिपादित महत्‍वपूर्ण विषयों और धारणाओं को सरल भाषा में विज्ञान और विवेक की कसौटी पर कसने का प्रयास

http://satishchandgupta.blogspot.com/


विषय सूची

1. प्राक्कथन
2. सत्यार्थ प्रकाशः भाषा, तथ्य और विषय वस्तु
3. नियोग और नारी
4. जीव हत्या और मांसाहार
5. अहिंसां परमो धर्मः ?
6. ‘शाकाहार का प्रोपगैंडा
7. मरणोत्तर जीवनः तथ्य और सत्य
8. दाह संस्कारः कितना उचित?
9. स्तनपानः कितना उपयोगी ?
10. खतना और पेशाब
11. कुरआन पर आरोपः कितने स्तरीय ?
12. क़ाफ़िर और नास्तिक
13. क्या पर्दा नारी के हित में नहीं है ?
14. आक्षेप की गंदी मानसिकता से उबरें
15. मानव जीवन की विडंबना
16. हिंदू धर्मग्रंथों में पात्रों की उत्पत्ति ?
17. अंतिम प्रश्न

सतीश चंद गुप्‍ता का ब्‍लाग

Satish Chand Gupta said...

आपके आखरी पेरा को समझने की कोशिश कर रहा हूं जिस पर

ZEAL साहिबा का सवाल
दुसरे धर्म सिर्फ आडम्बर हैं? क्या इस्लाम दुसरे धर्मों का सम्मान करना नहीं सिखाता?

सम्‍भव हो तो इसका उत्‍तर पढना चाहुंगा

Aslam Qasmi said...

nice post

test is good

सलीम खान said...

great!

Taarkeshwar Giri said...

Islam sirf khud ki ijjat karna sikhata hai, dusare dharmo ki nahi.


ye bat in logo ke lekh se aur inki mansa se saf jahir hoti hai. jaisa ki ek sajjan ne likha hai ki Islam ko apnaiye- islam hi vidhwa vivah ki anumati deta hai , etc.


Jara Kuran thik se padhiye aur sachhe dill se GEETA bhi.

Taarkeshwar Giri said...

kya muslim samaj Yog ko apnayega

Taarkeshwar Giri said...

sawal ka jaba ye log nahi dete hain.