सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, October 26, 2010
An english lady accepts Islam and veil पश्चिम में इस्लाम तेज़ी से क्यों फैल रहा है ? - Anwer jamal
खुशख़बरी
‘चेरी ब्लेयर की बहन ने इस्लाम कुबूल किया‘ आज सुबह उठा तो यह खुशख़बरी दिखाई दी। (हिन्दुस्तान, 26.10.2010, पृष्ठ 16)
‘डेली मेल‘ के अनुसार 43 साल की बूथ दो बच्चों की मां हैं। अब वह घर से बाहर निकलते समय हिजाब पहनती हैं। इसके साथ ही उन्होंने अब शराब पीना छोड़ दिया है और नियमित नमाज़ पढ़ने के साथ पवित्र कुरआन पढ़ती हैं। कभी ब्रिटेन में टेलीविज़न कलाकार रही बूथ अब ईरान के समाचार चैनल ‘प्रेस टीवी‘ के लिए काम कर रही हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि पश्चिम में इस्लाम तेज़ी से क्यों फैल रहा है ?
ख़ास तौर से औरतों में ?
वहां तो कोई औरंगज़ेब भी नहीं है और न ही इस्लाम कुबूल करने वाले ग़रीब और कमज़ोर वर्ग से हैं, तब भी वे धड़ाधड़ इस्लाम कुबूल कर रहे हैं, आखि़र क्यों ?
अमेरिका और यूरोप में आम आदमी भी इस्लाम कुबूल कर रहे हैं और ख़ास आदमी भी। चर्च बिक रहे हैं और उनमें मस्जिदें बन रही हैं। पिछले लगभग सवा सौ साल के अंदर ही ब्रिटेन में 1500 से भी ज़्यादा मस्जिदें बन चुकी हैं और लगातार बन रही हैं। टूटते हुए घरों और बिखरते हुए परिवारों को बचाने के लिए को बचाने के लिए लोग ईश्वर से जुड़ रहे हैं, ईश्वर से जुड़ने का एकमात्र अधिकृत मार्ग इस्लाम है। इसी धर्म का प्रचार पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. से पहले ईसा मसीह अ. ने किया था। इस बात को ईसाई दुनिया धीरे-धीरे जानती जा रही है।
सोहबत इन्सान के ज़हन के सोचने की दिशा बदल देती है
एक तरफ़ तो सच्चाई है कि जिन्होंने क्रिश्चिएनिटी में आंखे खोली वे औरतें नंगेपन को छोड़कर ‘हिजाब‘ अपना रही हैं और दूसरी तरफ बहन हमारी एक पत्रकार बहन ऐसी भी हैं जो इस्लाम जैसी दौलत की क़द्र न कर सकीं और खुद भी हिजाब छोड़ दिया और अपने पूरे घर की औरतों को बेहिजाब कर डाला और फिर इस पर गर्व भी किया और इसका प्रचार भी किया। ऐसा क्यों हुआ ?
लौरेन को अच्छी सोहबत मिली, वह अच्छी बन गई। पत्रकार बहन का रसूख़ अजमेर के बम धमाकेबाज़ों के कारण चर्चित किसी नेता से हो गया तो पर्दा उनके बदन से उतरकर उनके ज़हन पर पड़ गया और जैसी बातें ग़ैर-मुस्लिम करते हैं, इस्लाम के बारे में वैसी ही बातें वे करने लगीं। सोहबत इन्सान के ज़हन के सोचने की दिशा बदल देती है।
इन्सान की अक्ल पर अगर पर्दा पड़ जाए तो फिर वह सच को नहीं देख पाता। सच को झूठ साबित करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। ‘भंडाफोड़ू ब्लॉग के भाई बी. एन. शर्मा जी‘ भी एक ऐसे ही शख्स हैं जो अल्लामा इक़बाल बनने की सलाहियत रखते हैं लेकिन अपनी मेधा और ऊर्जा का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं।
हर रास्ता एक ही सच्चाई तक पहुंचाएगा
हज़रत मुहम्मद स. की सच्चाई को नकारने के लिए उन्होंने बाइबिल का सहारा लिया और बताया कि बाइबिल में हज़रत मुहम्मद स. को बुरा कहा गया है और माना कि बाइबिल की भविष्यवाणी उनके और उनके मानने वालों के बारे में पूरी हुई। हमें उनसे असहमति है लेकिन अगर वे बाइबिल की सच्चाई पर संतुष्ट हैं तो उन्हें यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करने में देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि अगर वे इस रास्ते पर भी चले तो वे देर-सवेर लौरेन बूथ की तरह अंतिम और शुद्ध सत्य को जान ही जाएंगे। लेकिन वे ईसाईयत को भी अपनाने वाले नहीं हैं क्योंकि उन्हें सच की तलाश नहीं है बल्कि इस्लाम के खि़लाफ़ भ्रम फैलाना है और इस्लाम के खि़लाफ़ नफ़रत में अंधे होकर वे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. के बारे में बाइबिल से उद्धरण ला रहे हैं, वे भी ग़लत और सिर्फ़ ग़लत। नफ़रत में वे इस क़दर अंधे हो चुके हैं कि जिस प्रकाशित वाक्य से वे उद्धरण ला रहे हैं एक तो वह किसी पैग़म्बर की या मसीह की वाणी नहीं है और दूसरे यह कि वे बातें पैग़म्बर साहब स. के बारे में नहीं कही गईं और तीसरे वह किताब बाइबिल की अंतिम किताब है।
बाइबिल की पहली किताब है ‘उत्पत्ति‘। उत्पत्ति में, बिल्कुल शुरू में ही लिखा है कि -
‘और नूह किसानी करने लगा, और उसने दाख की बारी लगाई। और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया। तब कनान के पिता हाम ने , अपने पिता को नंगा देखा और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बतला दिया। (उत्पत्ति, 9, 20-22)
हज़रत नूह कौन हैं ?
वैदिक साहित्य में इन्हें ‘जल प्रलय वाले मनु‘ के नाम से जाना जाता है। सारी दुनिया इन्हें अपना पिता मानती है, इन्हें आदर देती है। यहूदी इन्हें शराबी बता रहे हैं और शर्मा जी उनकी हां में हां मिला रहे हैं। ईश्वर का मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों का चरित्र बिगाड़ने में यहूदी और ईसाई दोनों एक से हैं। दोनों ने ही नबियों के चरित्र और उनकी शिक्षाओं को बिगाड़कर रख दिया। इन्होंने ईसा अ. के बारे में भी लिख दिया कि वे झूठ भी बोल दिया करते थे। (देखिए यूहन्ना, 7, 8-10)
यह अक्ल पर पर्दा पड़ना नहीं तो क्या है ?
कुरआन से पता चलता है ऋषियों-नबियों का सच्चा चरित्र और उनका असली धर्म
अपने ऋषियों का चरित्र और शिक्षाएं बिगाड़ने में हिन्दुओं ने इन दोनों को भी मात कर दिया।
ब्राह्मणों से हमें अच्छी उम्मीदें हैं। उन्हें अपने पिता पर आरोप लगाने वालों के साथ नहीं खड़ा होना चाहिए बल्कि उन्हें उनका साथ देना चाहिए जो उनके पिता पर लगने वाले आरोपों का खंडन करता है और उनकी पवित्रता और उनकी महानता की गवाही देता है। आपने बाइबिल पढ़ ही ली है, अब आप कुरआन भी पढ़ लीजिए और उसमें ‘महर्षि मनु‘ का ज़िक्र पढ़ लीजिए कि किस तरह वह उन पर लगने वाले हरेक आरोप का खण्डन कर रहा है, आपकी सारी नफ़रतें दूर हो जाएंगी। इसके बावजूद भी अगर आप पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. की निन्दा और अपमान को ही अपना तरीक़ा बनाये रखते हैं तो अपने कर्मों के प्रति आप खुद जवाबदेह होंगे। तब आप ईश्वर से भी शर्मिंदा होंगे और अपने पिता मनु से भी।
यूहन्ना लैटिन भाषा जानते ही नहीं थे
भाई बी. एन. शर्मा जी ने जिस लैटिन शब्द के अंक 666 बनाए हैं। उसके बारे में भी यह जान लेना चाहिए कि जब यूहन्ना ने स्वप्न या दर्शन देखा था तो उसे उन्होंने आरामी या हिब्रू भाषा में बयान किया था न कि लैटिन में। लैटिन तो मसीह और उनके साथियों की भाषा थी ही नहीं। इसलिए अगर किसी नाम के अंक निकाले जाने चाहिएं तो वह नाम या शब्द हिब्रू भाषा का होना चाहिए न कि उसके अनुवाद की भाषा का। अगर अनुवाद की भाषाओं के शब्दों के अंक निकाले जाएंगे तो हरेक भाषा में अलग-अलग अंक मिलेंगे जो कि सिर्फ़ ग़लत होंगे जैसे कि आपके द्वारा निकाले गए अंक ग़लत हैं।
कीरोलोजी का आधार है ‘इल्मे जफ़र‘
दूसरी बात आपको यह भी जान लेनी चाहिए कि लैटिन अक्षरों के अंक ‘कीरो‘ ने निर्धारित किए हैं और उनके अक्षरों का मान निर्धारित करने के लिए उन्होंने हिब्रू और अरबी का अध्ययन किया क्योंकि इन भाषाओं में पहले से ही अक्षरों का मान निर्धारित चला आ रहा है। अरबी अंकशास्त्र के आधार पर अब कुछ ज्योतिषी साहिबान हिन्दी और संस्कृत के अक्षरों का भी मान निर्धारित करने की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया में सारी विद्याएं भारत से फैलने का दावा करने वाले देख सकते हैं कि भारतीय भाषाओं में से किसी भी भाषा के अंकों का मान निर्धारित नहीं है। मुसलमानों के पास यह इल्म ‘इल्मे जफ़र‘ के नाम से मौजूद है और आली मक़ाम इमाम जनाब हज़रत जाफ़र रह. के नाम पर इसका नाम ‘इल्मे जफ़र‘ पड़ा। इस इल्म में उनकी ख़ास महारत की वजह से ऐसा हुआ वर्ना यह इल्म उनसे पहले भी हरेक इमाम के पास मौजूद था।
ओउम के अंक क्या हैं ?
यही वजह है कि आज तक कोई हिन्दू ज्योतिषी या आचार्य यह नहीं बता सका कि ‘ओउम‘ शब्द के अंक कितने हैं जबकि यह नाम हिन्दू समाज में सबसे ज़्यादा बोला जाता है। एक मुसलमान जानता है कि ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम‘ के अदद 786 हैं। जो ज़्यादा जानता है वह आपको यह भी बता देगा कि ‘अल्लाह‘ नाम के अदद 66 हैं और ‘मुहम्मद‘ नाम के अदद 92 हैं। जो और ज़्यादा जानता है और भी ज़्यादा बता देगा बल्कि उन नामों के अदद भी बता देगा जिनके अदद आज तक किसी पण्डित और किसी ज्योतिषी ने न बताए हों।
ओउम के अंक हैं 47
जिन दिनों मैं ‘हाज़िरात का फ़न‘ सीख रहा था, उन दिनों मैं मुख्तलिफ़ नामों और आयतों के अंक निकाल कर उनके नक्श बनाया करता था और फिर अपने ‘मीडियम‘ पर उनका प्रयोग करता था। जो आत्मा, रूह और शैतान वग़ैरह को नहीं मानते वे इस अमल को देखकर यह जान सकते हैं कि हमारे अलावा भी कुछ चेतन शक्तियां हमारे चारों तरफ़ मौजूद रहती हैं।
बहरहाल वह एक अलग विषय है। अब से लगभग 10 साल पहले मैंने ‘ओउम‘ के अदद निकालने चाहे तो भारतीय ज्योतिष या साममुद्रिक शास्त्र से मुझे कोई मदद न मिली। तब मैंने ‘ओउम‘ को अरबी में लिखा तो तीन हरफ़ ज़ाहिर हुए- 1. अलिफ़, 2. वाओ, 3. मीम
अलिफ़ का मान 1 है, वाओ का मान 6 है और मीम का मान है 40, इस तरह ‘ओउम‘ शब्द का मान मैंने अरबी अंकशास्त्र से मालूम किया तो उसका मान 47 निकला। तब मैंने उसका नक्श बनाया और अपने रूहानी तजर्बात में उसका इस्तेमाल किया।
ओउम की मान-मर्यादा
हिन्दू भाईयों को न तो ‘ओउम‘ का मान पता है और न ही वे उसकी मान-मर्यादा का ध्यान रखते हैं। धूप, अगरबत्ती, बोरी-कट्टों और कैलेण्डर्स पर यह नाम लिख देते हैं और फिर उन्हें फेंक देते हैं कूड़े पर। मैं देखता रहता हूं और कुढ़ता रहता हूं। एक मुसलमान यह नहीं करता लेकिन मुसलमानों से हिन्दुओं को ऐलानिया कुछ सीखना नहीं है, उनकी अच्छी बात भी नहीं सीखनी। मैं उन नामों को भी आदर देता हूं जो अरबी में हैं और उन नामों को भी जो दूसरी भाषाओं में हैं। वे नाम चाहे मालिक के हों या सत्पुरूषों के। देवबंद की बात है, आज से तक़रीबन 17 साल पहले की। मैं मुन्सफ़ी के ढलान से उतर रहा था कि मैंने एक कैलण्डर को नाली में पड़े देखा जिसपर ओउम लिखा था। मैंने उसे बड़े जतन से बाहर निकाला और उसमें से ‘ओउम‘ शब्द को अलग करके उसे एक मैदान की दीवार में सैट कर दिया ताकि इधर उधर किसी के पैरों में न आए।
भारतीय संस्कृति की रक्षा का सही तरीक़ा
भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद की रक्षा के नाम पर यह सब दुष्प्रचार किया जा रहा है लेकिन उनके दावे में कोई सच्चाई नहीं है। पहली बात तो यह है कि भारतीय संस्कृति आदर करना सिखाती है, निरादर करना नहीं। दूसरी बात यह है कि राष्ट्रवाद के ज़्यादातर दावेदार झूठे हैं। अगर वे अपने दावे में सच्चे होते तो वे भारतीय संस्कृति को अपनाते। भारतीय संस्कृति गुरूकुल की संस्कृति है। वे अपने बच्चों का उपनयन संस्कार कराते, उन्हें गुरूकुलों में पढ़ाते, उन्हें वेद और वेदान्त पढ़ाते लेकिन ये लोग अपने बच्चों को वहां नहीं पढ़ाते बल्कि उन्हें पढ़ाने के लिए आॅस्ट्रेलिया भेजते हैं, जहां वे वैसी ज़िल्लत झेलते हैं जैसी कि कभी खुद वे दूसरों को दिया करते थे। ज़िल्लत झेलने और अपनी जान देने वे अपनी औलादों को गाय काटने और उसे खाने वालों के देश तो भेजते हैं लेकिन अपने देश के गुरूकुलों में नहीं भेजते। वहां भेजने से पहले वे देश में ईसाई मिशनरियों की देखरेख में चलने वाले स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं और उनकी महंगी फ़ीस देने की हैसियत नहीं रखते वे खुद स्कूल खोलते हैं लेकिन उन्हीं गाय खाने वाले वेद निन्दकों के पैटर्न पर। अपने बच्चों को वेद पढ़ने के लिए नहीं भेजेंगे तो वेद का लोप तो होगा ही।
हिन्दुओं के घरों से वेदों के लोप होने का कारण
आज आप सौ हिन्दुओं से मिलिए, उनमें से एक के घर में भी वेद नहीं मिलेगा। हज़ार में से एक हिन्दू के घर में भी आज वेद मुश्किल से ही मिलेगा। पढ़ नहीं सकते तब भी ख़रीदकर तो रख सकते हैं। एक मुसलमान चाहे वह कुरआन पढ़ना जानता हो या न जानता हो लेकिन उसके घर में कुरआन ज़रूर मिलेगा। यही वजह है कि कुरआन आज सुरक्षित है। जिसे कुरआन याद है वह भी कुरआन रखता है और जिसे कुरआन याद नहीं है वह भी कुरआन रखता है। जिस चीज़ को आप अपनी संस्कृति का मूल मानते हैं जब आप उसकी रक्षा नहीं करेंगे तो उसका तो लोप होना निश्चित है। इसके दोषी तो आप खुद हैं। सिक्ख अगर केश रखने छोड़ दें तो केश का लोप हो जाएगा। आपने चोटी रखनी और जनेऊ पहननी छोड़ दी तो उनका लोप हो गया। औरंगज़ेब के समय में भी बल्कि अंग्रेज़ों के समय तक आप चोटी रखते और जनेऊ पहनते थे। इनका लोप तो आपने खुद किया आज़ादी के बाद, अपनी संस्कृति को मिटाने के मुजरिम आप खुद हैं और इल्ज़ाम दे रहे हैं मुसलमानों को ?
मुजरिम खुद हैं और दोष देते हैं मुसलमानों को
अपनी संस्कृति पर खुद आचरण नहीं करेंगे तो संस्कृति का क्षरण तो खुद होगा। चलिए अपनी संस्कृति पर, तब ही आप उसकी रक्षा कर पाएंगे। मुसलमानों के खि़लाफ़ नफ़रत और भ्रम फैलाकर आप अपनी संस्कृति की रक्षा नहीं कर पाएंगे। आप तो ऐसे बलशाली भी नहीं हैं जैसे कि पश्चिमी देश हैं। जिन पश्चिमी देशों का अंधानुकरण आप कर रहे हैं, खुद वे अपना रहे हैं इस्लाम को। वहां इस्लाम के खि़लाफ़ दुष्प्रचार यहां से ज़्यादा है लेकिन तब भी जिसे सत्य की तलाश है उन्हें कोई झूठ रोक नहीं पाता। लौरेन बूथ इसकी ज़िन्दा मिसाल हैं। जो लोग बाइबिल पढ़ रहे हैं और क्रूसेड लड़ रहे हैं, वे खुद इस्लाम की तरफ़ बढ़ रहे हैं।
लोगों के विचार की क़द्र करता है पश्चिम
एक ख़ास बात यह भी देखने की है कि ब्रिटेन ईरान के खि़लाफ़ है। इसके बावजूद जब एक ताक़तवर राजनैतिक घराने की औरत वहां इस्लाम कुबूल कर लेती है और तुरंत ही उसके विरोधी देश की समाचार एजेंसी के लिए काम करने लगती है, तब भी न तो उसे कोई देश का ग़द्दार कहता है और न ही वहां के दक्षिणपंथी धड़े उससे देश की वफ़ादारी का सुबूत मांगते हैं। यह उनकी बहुत सी खूबियों में से एक हैं जिनकी वजह से वे दुनिया पर राज कर रहे हैं। अफ़सोस कि लोगों को ‘पश्चिम‘ केवल बुराईयों का अड्डा नज़र आता है लेकिन उनकी खूबियां वे देख नहीं पाते। लोग या तो पश्चिम को कोसते रहते हैं या फिर उनकी बुराईयों को अपना शौक़ बना लेते हैं, जिन्हें वे खुद छोड़ रहे हैं।
आने वाले का स्वागत है और बाद में आने वालों के लिए प्रार्थना
विश्व भर के 153 करोड़ की आबादी के मुस्लिम परिवार में शामिल होने के उनके फ़ैसले का हम स्वागत करते हैं और जो आने में अभी झिझक रहे हैं उनके कल्याण के लिए परमप्रधान परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं। मालिक हम सबको नफ़रत से मुक्ति दे और हमारे दिलों में अपना प्रेम दे और हमारे दिलों को सत्य के प्रकाश से जगमगा दे ताकि हम वह काम अंजाम दे सकें जिसके लिए उसने इस धरती पर हमें पैदा किया है।
‘चेरी ब्लेयर की बहन ने इस्लाम कुबूल किया‘ आज सुबह उठा तो यह खुशख़बरी दिखाई दी। (हिन्दुस्तान, 26.10.2010, पृष्ठ 16)
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर की सौतेली बहन लौरेन बूथ ईरान के दौरे पर गईं। उन्होंने वहां औरतों को देखा। वहां की सोसायटी में उनका आदर और उनकी सुरक्षा देखी। उनके पतियों को देखा कि न तो वे पीते हैं और न ही दीगर औरतों से अवैध संबंध वहां आम बात हैं। न वहां औरतें ही नंगी-अधनंगी घूमती हैं और न ही यूरोप की तरह अवैध संतानें वहां सोसायटी के लिए कोई मसला है। बलात्कार वहां होते नहीं और कोई कर ले वह ज़िन्दा बचता नहीं। उन्होंने देखा कि यह सब इस्लाम की बरकतें हैं। उन्होंने दौरे से वापस लौटकर इस्लाम कुबूल कर लिया। अख़बारों और न्यूज़ चैनल्स पर आज यही चर्चा का मुद्दा है।
पश्चिम में इस्लाम तेज़ी से क्यों फैल रहा है ?‘डेली मेल‘ के अनुसार 43 साल की बूथ दो बच्चों की मां हैं। अब वह घर से बाहर निकलते समय हिजाब पहनती हैं। इसके साथ ही उन्होंने अब शराब पीना छोड़ दिया है और नियमित नमाज़ पढ़ने के साथ पवित्र कुरआन पढ़ती हैं। कभी ब्रिटेन में टेलीविज़न कलाकार रही बूथ अब ईरान के समाचार चैनल ‘प्रेस टीवी‘ के लिए काम कर रही हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि पश्चिम में इस्लाम तेज़ी से क्यों फैल रहा है ?
ख़ास तौर से औरतों में ?
वहां तो कोई औरंगज़ेब भी नहीं है और न ही इस्लाम कुबूल करने वाले ग़रीब और कमज़ोर वर्ग से हैं, तब भी वे धड़ाधड़ इस्लाम कुबूल कर रहे हैं, आखि़र क्यों ?
अमेरिका और यूरोप में आम आदमी भी इस्लाम कुबूल कर रहे हैं और ख़ास आदमी भी। चर्च बिक रहे हैं और उनमें मस्जिदें बन रही हैं। पिछले लगभग सवा सौ साल के अंदर ही ब्रिटेन में 1500 से भी ज़्यादा मस्जिदें बन चुकी हैं और लगातार बन रही हैं। टूटते हुए घरों और बिखरते हुए परिवारों को बचाने के लिए को बचाने के लिए लोग ईश्वर से जुड़ रहे हैं, ईश्वर से जुड़ने का एकमात्र अधिकृत मार्ग इस्लाम है। इसी धर्म का प्रचार पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. से पहले ईसा मसीह अ. ने किया था। इस बात को ईसाई दुनिया धीरे-धीरे जानती जा रही है।
सोहबत इन्सान के ज़हन के सोचने की दिशा बदल देती है
एक तरफ़ तो सच्चाई है कि जिन्होंने क्रिश्चिएनिटी में आंखे खोली वे औरतें नंगेपन को छोड़कर ‘हिजाब‘ अपना रही हैं और दूसरी तरफ बहन हमारी एक पत्रकार बहन ऐसी भी हैं जो इस्लाम जैसी दौलत की क़द्र न कर सकीं और खुद भी हिजाब छोड़ दिया और अपने पूरे घर की औरतों को बेहिजाब कर डाला और फिर इस पर गर्व भी किया और इसका प्रचार भी किया। ऐसा क्यों हुआ ?
लौरेन को अच्छी सोहबत मिली, वह अच्छी बन गई। पत्रकार बहन का रसूख़ अजमेर के बम धमाकेबाज़ों के कारण चर्चित किसी नेता से हो गया तो पर्दा उनके बदन से उतरकर उनके ज़हन पर पड़ गया और जैसी बातें ग़ैर-मुस्लिम करते हैं, इस्लाम के बारे में वैसी ही बातें वे करने लगीं। सोहबत इन्सान के ज़हन के सोचने की दिशा बदल देती है।
इन्सान की अक्ल पर अगर पर्दा पड़ जाए तो फिर वह सच को नहीं देख पाता। सच को झूठ साबित करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। ‘भंडाफोड़ू ब्लॉग के भाई बी. एन. शर्मा जी‘ भी एक ऐसे ही शख्स हैं जो अल्लामा इक़बाल बनने की सलाहियत रखते हैं लेकिन अपनी मेधा और ऊर्जा का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं।
हर रास्ता एक ही सच्चाई तक पहुंचाएगा
हज़रत मुहम्मद स. की सच्चाई को नकारने के लिए उन्होंने बाइबिल का सहारा लिया और बताया कि बाइबिल में हज़रत मुहम्मद स. को बुरा कहा गया है और माना कि बाइबिल की भविष्यवाणी उनके और उनके मानने वालों के बारे में पूरी हुई। हमें उनसे असहमति है लेकिन अगर वे बाइबिल की सच्चाई पर संतुष्ट हैं तो उन्हें यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करने में देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि अगर वे इस रास्ते पर भी चले तो वे देर-सवेर लौरेन बूथ की तरह अंतिम और शुद्ध सत्य को जान ही जाएंगे। लेकिन वे ईसाईयत को भी अपनाने वाले नहीं हैं क्योंकि उन्हें सच की तलाश नहीं है बल्कि इस्लाम के खि़लाफ़ भ्रम फैलाना है और इस्लाम के खि़लाफ़ नफ़रत में अंधे होकर वे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. के बारे में बाइबिल से उद्धरण ला रहे हैं, वे भी ग़लत और सिर्फ़ ग़लत। नफ़रत में वे इस क़दर अंधे हो चुके हैं कि जिस प्रकाशित वाक्य से वे उद्धरण ला रहे हैं एक तो वह किसी पैग़म्बर की या मसीह की वाणी नहीं है और दूसरे यह कि वे बातें पैग़म्बर साहब स. के बारे में नहीं कही गईं और तीसरे वह किताब बाइबिल की अंतिम किताब है।
बाइबिल की पहली किताब है ‘उत्पत्ति‘। उत्पत्ति में, बिल्कुल शुरू में ही लिखा है कि -
‘और नूह किसानी करने लगा, और उसने दाख की बारी लगाई। और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया। तब कनान के पिता हाम ने , अपने पिता को नंगा देखा और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बतला दिया। (उत्पत्ति, 9, 20-22)
हज़रत नूह कौन हैं ?
वैदिक साहित्य में इन्हें ‘जल प्रलय वाले मनु‘ के नाम से जाना जाता है। सारी दुनिया इन्हें अपना पिता मानती है, इन्हें आदर देती है। यहूदी इन्हें शराबी बता रहे हैं और शर्मा जी उनकी हां में हां मिला रहे हैं। ईश्वर का मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों का चरित्र बिगाड़ने में यहूदी और ईसाई दोनों एक से हैं। दोनों ने ही नबियों के चरित्र और उनकी शिक्षाओं को बिगाड़कर रख दिया। इन्होंने ईसा अ. के बारे में भी लिख दिया कि वे झूठ भी बोल दिया करते थे। (देखिए यूहन्ना, 7, 8-10)
यह अक्ल पर पर्दा पड़ना नहीं तो क्या है ?
कुरआन से पता चलता है ऋषियों-नबियों का सच्चा चरित्र और उनका असली धर्म
अपने ऋषियों का चरित्र और शिक्षाएं बिगाड़ने में हिन्दुओं ने इन दोनों को भी मात कर दिया।
ब्राह्मणों से हमें अच्छी उम्मीदें हैं। उन्हें अपने पिता पर आरोप लगाने वालों के साथ नहीं खड़ा होना चाहिए बल्कि उन्हें उनका साथ देना चाहिए जो उनके पिता पर लगने वाले आरोपों का खंडन करता है और उनकी पवित्रता और उनकी महानता की गवाही देता है। आपने बाइबिल पढ़ ही ली है, अब आप कुरआन भी पढ़ लीजिए और उसमें ‘महर्षि मनु‘ का ज़िक्र पढ़ लीजिए कि किस तरह वह उन पर लगने वाले हरेक आरोप का खण्डन कर रहा है, आपकी सारी नफ़रतें दूर हो जाएंगी। इसके बावजूद भी अगर आप पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. की निन्दा और अपमान को ही अपना तरीक़ा बनाये रखते हैं तो अपने कर्मों के प्रति आप खुद जवाबदेह होंगे। तब आप ईश्वर से भी शर्मिंदा होंगे और अपने पिता मनु से भी।
यूहन्ना लैटिन भाषा जानते ही नहीं थे
भाई बी. एन. शर्मा जी ने जिस लैटिन शब्द के अंक 666 बनाए हैं। उसके बारे में भी यह जान लेना चाहिए कि जब यूहन्ना ने स्वप्न या दर्शन देखा था तो उसे उन्होंने आरामी या हिब्रू भाषा में बयान किया था न कि लैटिन में। लैटिन तो मसीह और उनके साथियों की भाषा थी ही नहीं। इसलिए अगर किसी नाम के अंक निकाले जाने चाहिएं तो वह नाम या शब्द हिब्रू भाषा का होना चाहिए न कि उसके अनुवाद की भाषा का। अगर अनुवाद की भाषाओं के शब्दों के अंक निकाले जाएंगे तो हरेक भाषा में अलग-अलग अंक मिलेंगे जो कि सिर्फ़ ग़लत होंगे जैसे कि आपके द्वारा निकाले गए अंक ग़लत हैं।
कीरोलोजी का आधार है ‘इल्मे जफ़र‘
दूसरी बात आपको यह भी जान लेनी चाहिए कि लैटिन अक्षरों के अंक ‘कीरो‘ ने निर्धारित किए हैं और उनके अक्षरों का मान निर्धारित करने के लिए उन्होंने हिब्रू और अरबी का अध्ययन किया क्योंकि इन भाषाओं में पहले से ही अक्षरों का मान निर्धारित चला आ रहा है। अरबी अंकशास्त्र के आधार पर अब कुछ ज्योतिषी साहिबान हिन्दी और संस्कृत के अक्षरों का भी मान निर्धारित करने की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया में सारी विद्याएं भारत से फैलने का दावा करने वाले देख सकते हैं कि भारतीय भाषाओं में से किसी भी भाषा के अंकों का मान निर्धारित नहीं है। मुसलमानों के पास यह इल्म ‘इल्मे जफ़र‘ के नाम से मौजूद है और आली मक़ाम इमाम जनाब हज़रत जाफ़र रह. के नाम पर इसका नाम ‘इल्मे जफ़र‘ पड़ा। इस इल्म में उनकी ख़ास महारत की वजह से ऐसा हुआ वर्ना यह इल्म उनसे पहले भी हरेक इमाम के पास मौजूद था।
ओउम के अंक क्या हैं ?
यही वजह है कि आज तक कोई हिन्दू ज्योतिषी या आचार्य यह नहीं बता सका कि ‘ओउम‘ शब्द के अंक कितने हैं जबकि यह नाम हिन्दू समाज में सबसे ज़्यादा बोला जाता है। एक मुसलमान जानता है कि ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम‘ के अदद 786 हैं। जो ज़्यादा जानता है वह आपको यह भी बता देगा कि ‘अल्लाह‘ नाम के अदद 66 हैं और ‘मुहम्मद‘ नाम के अदद 92 हैं। जो और ज़्यादा जानता है और भी ज़्यादा बता देगा बल्कि उन नामों के अदद भी बता देगा जिनके अदद आज तक किसी पण्डित और किसी ज्योतिषी ने न बताए हों।
ओउम के अंक हैं 47
जिन दिनों मैं ‘हाज़िरात का फ़न‘ सीख रहा था, उन दिनों मैं मुख्तलिफ़ नामों और आयतों के अंक निकाल कर उनके नक्श बनाया करता था और फिर अपने ‘मीडियम‘ पर उनका प्रयोग करता था। जो आत्मा, रूह और शैतान वग़ैरह को नहीं मानते वे इस अमल को देखकर यह जान सकते हैं कि हमारे अलावा भी कुछ चेतन शक्तियां हमारे चारों तरफ़ मौजूद रहती हैं।
बहरहाल वह एक अलग विषय है। अब से लगभग 10 साल पहले मैंने ‘ओउम‘ के अदद निकालने चाहे तो भारतीय ज्योतिष या साममुद्रिक शास्त्र से मुझे कोई मदद न मिली। तब मैंने ‘ओउम‘ को अरबी में लिखा तो तीन हरफ़ ज़ाहिर हुए- 1. अलिफ़, 2. वाओ, 3. मीम
अलिफ़ का मान 1 है, वाओ का मान 6 है और मीम का मान है 40, इस तरह ‘ओउम‘ शब्द का मान मैंने अरबी अंकशास्त्र से मालूम किया तो उसका मान 47 निकला। तब मैंने उसका नक्श बनाया और अपने रूहानी तजर्बात में उसका इस्तेमाल किया।
ओउम की मान-मर्यादा
हिन्दू भाईयों को न तो ‘ओउम‘ का मान पता है और न ही वे उसकी मान-मर्यादा का ध्यान रखते हैं। धूप, अगरबत्ती, बोरी-कट्टों और कैलेण्डर्स पर यह नाम लिख देते हैं और फिर उन्हें फेंक देते हैं कूड़े पर। मैं देखता रहता हूं और कुढ़ता रहता हूं। एक मुसलमान यह नहीं करता लेकिन मुसलमानों से हिन्दुओं को ऐलानिया कुछ सीखना नहीं है, उनकी अच्छी बात भी नहीं सीखनी। मैं उन नामों को भी आदर देता हूं जो अरबी में हैं और उन नामों को भी जो दूसरी भाषाओं में हैं। वे नाम चाहे मालिक के हों या सत्पुरूषों के। देवबंद की बात है, आज से तक़रीबन 17 साल पहले की। मैं मुन्सफ़ी के ढलान से उतर रहा था कि मैंने एक कैलण्डर को नाली में पड़े देखा जिसपर ओउम लिखा था। मैंने उसे बड़े जतन से बाहर निकाला और उसमें से ‘ओउम‘ शब्द को अलग करके उसे एक मैदान की दीवार में सैट कर दिया ताकि इधर उधर किसी के पैरों में न आए।
भारतीय संस्कृति की रक्षा का सही तरीक़ा
भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद की रक्षा के नाम पर यह सब दुष्प्रचार किया जा रहा है लेकिन उनके दावे में कोई सच्चाई नहीं है। पहली बात तो यह है कि भारतीय संस्कृति आदर करना सिखाती है, निरादर करना नहीं। दूसरी बात यह है कि राष्ट्रवाद के ज़्यादातर दावेदार झूठे हैं। अगर वे अपने दावे में सच्चे होते तो वे भारतीय संस्कृति को अपनाते। भारतीय संस्कृति गुरूकुल की संस्कृति है। वे अपने बच्चों का उपनयन संस्कार कराते, उन्हें गुरूकुलों में पढ़ाते, उन्हें वेद और वेदान्त पढ़ाते लेकिन ये लोग अपने बच्चों को वहां नहीं पढ़ाते बल्कि उन्हें पढ़ाने के लिए आॅस्ट्रेलिया भेजते हैं, जहां वे वैसी ज़िल्लत झेलते हैं जैसी कि कभी खुद वे दूसरों को दिया करते थे। ज़िल्लत झेलने और अपनी जान देने वे अपनी औलादों को गाय काटने और उसे खाने वालों के देश तो भेजते हैं लेकिन अपने देश के गुरूकुलों में नहीं भेजते। वहां भेजने से पहले वे देश में ईसाई मिशनरियों की देखरेख में चलने वाले स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं और उनकी महंगी फ़ीस देने की हैसियत नहीं रखते वे खुद स्कूल खोलते हैं लेकिन उन्हीं गाय खाने वाले वेद निन्दकों के पैटर्न पर। अपने बच्चों को वेद पढ़ने के लिए नहीं भेजेंगे तो वेद का लोप तो होगा ही।
हिन्दुओं के घरों से वेदों के लोप होने का कारण
आज आप सौ हिन्दुओं से मिलिए, उनमें से एक के घर में भी वेद नहीं मिलेगा। हज़ार में से एक हिन्दू के घर में भी आज वेद मुश्किल से ही मिलेगा। पढ़ नहीं सकते तब भी ख़रीदकर तो रख सकते हैं। एक मुसलमान चाहे वह कुरआन पढ़ना जानता हो या न जानता हो लेकिन उसके घर में कुरआन ज़रूर मिलेगा। यही वजह है कि कुरआन आज सुरक्षित है। जिसे कुरआन याद है वह भी कुरआन रखता है और जिसे कुरआन याद नहीं है वह भी कुरआन रखता है। जिस चीज़ को आप अपनी संस्कृति का मूल मानते हैं जब आप उसकी रक्षा नहीं करेंगे तो उसका तो लोप होना निश्चित है। इसके दोषी तो आप खुद हैं। सिक्ख अगर केश रखने छोड़ दें तो केश का लोप हो जाएगा। आपने चोटी रखनी और जनेऊ पहननी छोड़ दी तो उनका लोप हो गया। औरंगज़ेब के समय में भी बल्कि अंग्रेज़ों के समय तक आप चोटी रखते और जनेऊ पहनते थे। इनका लोप तो आपने खुद किया आज़ादी के बाद, अपनी संस्कृति को मिटाने के मुजरिम आप खुद हैं और इल्ज़ाम दे रहे हैं मुसलमानों को ?
मुजरिम खुद हैं और दोष देते हैं मुसलमानों को
अपनी संस्कृति पर खुद आचरण नहीं करेंगे तो संस्कृति का क्षरण तो खुद होगा। चलिए अपनी संस्कृति पर, तब ही आप उसकी रक्षा कर पाएंगे। मुसलमानों के खि़लाफ़ नफ़रत और भ्रम फैलाकर आप अपनी संस्कृति की रक्षा नहीं कर पाएंगे। आप तो ऐसे बलशाली भी नहीं हैं जैसे कि पश्चिमी देश हैं। जिन पश्चिमी देशों का अंधानुकरण आप कर रहे हैं, खुद वे अपना रहे हैं इस्लाम को। वहां इस्लाम के खि़लाफ़ दुष्प्रचार यहां से ज़्यादा है लेकिन तब भी जिसे सत्य की तलाश है उन्हें कोई झूठ रोक नहीं पाता। लौरेन बूथ इसकी ज़िन्दा मिसाल हैं। जो लोग बाइबिल पढ़ रहे हैं और क्रूसेड लड़ रहे हैं, वे खुद इस्लाम की तरफ़ बढ़ रहे हैं।
लोगों के विचार की क़द्र करता है पश्चिम
एक ख़ास बात यह भी देखने की है कि ब्रिटेन ईरान के खि़लाफ़ है। इसके बावजूद जब एक ताक़तवर राजनैतिक घराने की औरत वहां इस्लाम कुबूल कर लेती है और तुरंत ही उसके विरोधी देश की समाचार एजेंसी के लिए काम करने लगती है, तब भी न तो उसे कोई देश का ग़द्दार कहता है और न ही वहां के दक्षिणपंथी धड़े उससे देश की वफ़ादारी का सुबूत मांगते हैं। यह उनकी बहुत सी खूबियों में से एक हैं जिनकी वजह से वे दुनिया पर राज कर रहे हैं। अफ़सोस कि लोगों को ‘पश्चिम‘ केवल बुराईयों का अड्डा नज़र आता है लेकिन उनकी खूबियां वे देख नहीं पाते। लोग या तो पश्चिम को कोसते रहते हैं या फिर उनकी बुराईयों को अपना शौक़ बना लेते हैं, जिन्हें वे खुद छोड़ रहे हैं।
आने वाले का स्वागत है और बाद में आने वालों के लिए प्रार्थना
विश्व भर के 153 करोड़ की आबादी के मुस्लिम परिवार में शामिल होने के उनके फ़ैसले का हम स्वागत करते हैं और जो आने में अभी झिझक रहे हैं उनके कल्याण के लिए परमप्रधान परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं। मालिक हम सबको नफ़रत से मुक्ति दे और हमारे दिलों में अपना प्रेम दे और हमारे दिलों को सत्य के प्रकाश से जगमगा दे ताकि हम वह काम अंजाम दे सकें जिसके लिए उसने इस धरती पर हमें पैदा किया है।
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23 comments:
@ भतीजे हुजूर जनाब फ़ारिक़ ! आपकी ख्वाहिश का अहतराम ज़रूर किया जाएगा लेकिन थोड़ा वक्त लग सकता है। फिरऔन की लाश एक बहुत बड़ा निशान है कुरआन की सच्चाई का जिसे देखकर इन्सान रास्ता और मंज़िल पा सकता है।
यह तो ठीक है कि एक औरत ने इश्लाम कबूल किया है परंतु जितनी खुशी की बात यह है उससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उसकी जाति ने अभी ईरान की घेराबंदी बंद नहीं कर दी है।
अगर आप बुरा न मानें तो क्या मुझे यह कह देना चाहिए कि ...
चलो नहीं कहना मुझे, क्या पता आपको बुरा लग ही जाए ?, आप खुस तो हम खुस।
बात यह नहीं कि कौन इस्लाम में दाखिल हुआ या कौन गया, बात यह है कि जो लोग इस्लाम के दुश्मन होते हैं, अक्सर उनके घर अथवा करीबी ही इस्लाम की सच्चाई को कुबूल करते हैं और इस लिहाज़ से यह ख़ुशी की बात हुई.
चाचा जी पेशगी धन्वाद
Dead body of FIRON - Sign of Allah
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs
विडियो
इतना कुछ लिख देते हो बस nice post लिखने के अलावा हमारे पास रह क्या जाता है
काश आप जैसा इन्सान मुझे कुछ पहले मिल गया होता फिर मुझ से वह खता न होती जिसके लिए मैं जितनी अल्लाह से माफी मागूं कम है
लाजवाब पोस्ट!
फिरौं के घर मैं हज़रत मूसा पले , उसको पता तक नहीं चला. अब टोनी ब्लेयर के घर मैं ही इस्लाम कुबूल करने वाले पैदा हुए.बात तो आश्चर्य की नहीं. बस यह सवाल दिल मैं आया की क्या इस्लाम ज़ोर और ज़बरदस्ती से फैला है? अकबर की बीवी जोधाबाई ने इस्लाम कुबूल नहीं किया और टोनी ब्लेयर की साली से कर लिया. इस्लाम के बारे मैं जो जान जाएगा , वोह इसको पसंद करेगा.
अगर मुसलमान आतंकवादी होते तो टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर की सौतेली बहन लौरेन बूथ इस्लाम कभी कुबूल ना करती. कहां गया टोनी ब्लेयर का इस्लाम को मानने वालों को आतंकवादी बताना.?
अनवर साहब
बहुत अच्छी खबर सुनाई आपने...शुक्रिया
आपसे एक शिकायत है..मैं आपको एक जगह सही करना चाहुंगा.....
बिस्मिल्लाह का मतलब 786 नही होता है
पढे ये लेख
http://islam.simplycodes.com/2009/08/786-786-does-not-mean-bismillah-myth-of.html
================
"हिन्दुओं ने राम मन्दिर के लिये बाबरी मस्ज़िद तो तोड दी। शिव मन्दिर के लिये "ताजमहल" कब तोड रहे हैं? "
"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में Download Quran Hindi Translation in .MP3 Format Playlist Friendly"
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
अच्छी पोस्ट
आने वाले का स्वागत है और बाद में आने वालों के लिए प्रार्थना
विश्व भर के 153 करोड़ की आबादी के मुस्लिम परिवार में शामिल होने के उनके फ़ैसले का हम स्वागत करते हैं और जो आने में अभी झिझक रहे हैं उनके कल्याण के लिए परमप्रधान परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं। मालिक हम सबको नफ़रत से मुक्ति दे और हमारे दिलों में अपना प्रेम दे और हमारे दिलों को सत्य के प्रकाश से जगमगा दे ताकि हम वह काम अंजाम दे सकें जिसके लिए उसने इस धरती पर हमें पैदा किया है।
@ काशिफ़ आरिफ़ साहब !
अनवर साहब ने कहाँ लिखा है कि 786 का मतलब बिस्मिल्लाह होता है .
उन्होंने लिखा है कि ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम‘ के अदद 786 हैं।
लोगों के विचार की क़द्र करता है पश्चिम
एक ख़ास बात यह भी देखने की है कि ब्रिटेन ईरान के खि़लाफ़ है। इसके बावजूद जब एक ताक़तवर राजनैतिक घराने की औरत वहां इस्लाम कुबूल कर लेती है और तुरंत ही उसके विरोधी देश की समाचार एजेंसी के लिए काम करने लगती है, तब भी न तो उसे कोई देश का ग़द्दार कहता है और न ही वहां के दक्षिणपंथी धड़े उससे देश की वफ़ादारी का सुबूत मांगते हैं। यह उनकी बहुत सी खूबियों में से एक हैं जिनकी वजह से वे दुनिया पर राज कर रहे हैं। अफ़सोस कि लोगों को ‘पश्चिम‘ केवल बुराईयों का अड्डा नज़र आता है लेकिन उनकी खूबियां वे देख नहीं पाते। लोग या तो पश्चिम को कोसते रहते हैं या फिर उनकी बुराईयों को अपना शौक़ बना लेते हैं, जिन्हें वे खुद छोड़ रहे हैं।
आने वाले का स्वागत है और बाद में आने वालों के लिए प्रार्थना
Dear Mr. Anwar
you are in paradise of fools.
Be happy.
मुझे नही लगता इससे जायदा कुछ शेर्मनाक हो सकता
कि किसी आदमी की मज़बूरी का फयदा उठाकर उसका धर्म बदल दिया जाये
मुस्लिम धर्म में एसी कोई खूबी नही है ,जिसके कारण किसी ईसाई या हिन्दू अपना धर्म बदल ले
बुराईया किसी धर्म में नही उसके मानाने वालो में होती है
कुछ लोग बात को तोड़ मरोड़ केर अपना उल्लू सिद्ध करते है
अभी कुछ आदिवासी हिन्दुओ को ईसाई बना दिया गया
कारण वो जाति बंधन से परेशान थे
तो जाति बंधन हिन्दू गुरुओ या किताबो ने सुरु किया है ये कुछ गलत लोगो की देन है
जैसे जैसे लोग शिछित होते जायेगे की ये बुराई भी दूर हो रही है
तो क्या हम उनका धर्म बदल देगे
अगर कुछ करना ही था तो उनकी शिछित और आथिर्क हालत में सुधार के लिए प्रयास करते
ये क्या बात हुई आप उन्हें भड़काकर उनका धर्म ही बदल दे
क्या धर्म बदल देने से या उन्हें कुछ प्रलोभन देने से उनके जीवन में क्या सुधार होगा
वो तो वैसे के वैसे ही रहेगे
"आप हिन्दू गुरुओ को क्यों नही देखते .जिनके पास लाखो कि संख्या में ईसाई लोग आते है
वो संत उनकी जिज्ञासा और मन दोनों को शांत करते है बिना कोई धर्म पेरिवेर्तन के"
"अब मुस्लिमो कि ये आदत हो गयी है कि २ दिन उनके पास बैठो ३से दिन यही रटने लगते है
कि तुमारे धर्म ने ये बुराई है एसा करो आप मुस्लिम हो जाओ "
क्या धर्म बदले से उसकी सोच ,उसके कर्म बदल जाते है
आह दुनिया में हर जगह मुस्लिम आतंकवाद फैलाते है
बहुत से देशो का विकास ही नही हो पा रह इस आतंकवाद के कारण
वो भी अपने धर्म का वास्ता देते है कि वो अच्छे काम कर रहे है
मै इस बात कोई नही मानता कि कोई धर्म आतंकवाद के लिए प्रेरित करता है
तो क्या हम सारे मुस्लिम्नो को हिन्दू बना देने से उनका आतंकवाद रूक जायेगा ?
उनके धर्म परिवतन में कोई राजनीति रही होगी
उनको धर्म कि नही वोट की जरूरत है
आप जैसे लोगो को इस बात में खुसी होती है ?
शर्म है आप लोगो पर
आप जैसे गन्दी सोच वालो की वजह से एक साधारण इंसान को इस्लाम से नफरत हो रही है
जो गलत को सही बता कर उसे धर्म से जोड़ देते है
इस्लाम में हर तरह कल्याण है
@आलोक मोहन जी !
1- आप जाति से दलित हैं और साथ ही खुशनसीब भी कि आप आज़ाद भारत में पैदा हुए जिसके लिए हैदर अली और टीपू सुल्तान पहले लड़े और बाद में कोई और । अंग्रेज़ों के दौर में पैदा हुए होते तो आपको पता चलता कि एक दलित होना क्या होता है ? और हिन्दू संत अपने पास आने वालों को क्या करने की प्रेरणा देते हैं ?
ज़्यादा नहीं तो शूद्रों के बारे में केवल आदि शंकराचार्य जी और दयानन्द जी के विचार ही पढ़ लीजिए। जिनके पास सामाजिक समस्याओं का हल वास्तव में नहीं है, वे किसी को क्या हल बताएंगे ?
और अगर बताने की कोशिश करेंगे तो वह ग़लत होगा जैसे कि दोनों ही हिन्दू विचारकों ने विधवा के लिए पुनर्विवाह करना मना कर दिया। दयानन्द जी ने उनके प्रति दया दिखाई भी तो उन्हें ‘नियोग‘ करने की सलाह दी है। हिन्दू आजकल अपनी विधवा बेटियों का पुनर्विवाह ही करते हैं, जो कि समस्या का एक इस्लामी हल है। एक मुसलमान यही चाहता है कि आप अपने जीवन को सही तरीक़े से जिएं और उसकी समस्याओं को इस्लामी तरीक़े से हल करें। इसमें तो कुछ भी ग़लत नहीं है। स्वामी विवेकानंद जी ने भी सिस्टर निवेदिता की आस्था और कल्चर सभी कुछ बदल डाला था जबकि इस्लाम ‘संस्कृति‘ बदलने के लिए नहीं कहता।
लौरेन बूथ ने इस्लाम ग्रहण किया क्योंकि ईरान गईं और वे समझ गईं कि इस्लाम अपनाने में कल्याण है। अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी मलेशिया गए और वे भी समझ गए कि इस्लाम की ग़ैर सूदी बैंकिंग व्यवस्था अपनाने में कल्याण है। इस्लाम में हर तरह कल्याण है।
हर साल मूर्तियां बनाकर नदी में बहा देते हैं। इससे धन की बर्बादी और समय की बर्बादी होती है। नदियों में कबाड़ बढ़ता है, उसका प्रवाह अवरूद्ध होता है। मूर्तियों के कैमिकल से मछलियां मर जाती हैं और सारी इकोलोजी नष्ट हो जाती है। इस्लाम को मानने वाले आदमी नदियों के लिए कोई प्राब्लम नहीं बनते और जो लोग आतंकवाद फैला रहे हैं वे इस्लाम में नहीं बल्कि अपनी ख्वाहिश में जी रहे हैं लेकिन उनके पाप किसी ऐसे बुद्धिजीवी को भ्रम में नहीं डाल पाते जिसे वास्तव में सत्य की तलाश है जैसे लौरेन बूथ , हालांकि इस्लामी आतंकवाद ‘शब्द‘ उन्हीं की क़ौम का ईजाद किया हुआ है। जब वे ही नहीं बहक रहे हैं तो आप खामख्वाह क्यों बहक रहे हैं ?
इस्लाम मर्दों को गर्भवती होने के ख़तरों से भी बचाता है।
2. अभी थोड़े दिन पहले आपने एक तथाकथित हिन्दू बाबा के बारे में पोस्ट लिखी थी कि वह किसी दूसरे बाबा का चमत्कारी फल खाकर गर्भवती हो गया। आपने उसका खण्डन भी किया था और मुझे उसका लिंक भी भेजा था। पता नहीं उसने फल ही खाया था या फिर कुछ हुआ था, सच्चाई जो भी हो और मुसलमान कुछ ग़लती भी चाहे कर गुज़रे लेकिन गर्भवती होने की ग़लती कभी नहीं करता। इस्लाम मर्दों को गर्भवती होने के ख़तरों से भी बचाता है। आप ख़तरे में है, ज़रा ऐसे हिन्दू बाबाओं से बचकर रहना। पता नहीं कौन बाबा क्या सिद्धि लिए घूम रहा हो ?
अनवर भाई, इस्लामिक बैंकिंग पर प्रधानमन्त्री के बयान पर एक पूरी पोस्ट लिखें!
आप की जानकारी के लिया बता दू
मै दलित नही सामान्य वेर्ग में आता हु
वैसे मै इन चीजो में यकीन नही रखता
सब भगवान् की संतान है
आप को एक और बात याद दिलाना चाहता हु
आप मुझे ये फालतू को अपने मेल भेजना बंद कर दो
तुमारे जैसे २ टके के writer को पड़ने का सौक नही है मुझे
बात का उत्तर भी दिया करो लोगो को न उनके प्रश् पर प्रश्न दिया करो
ये मेरा नही तुमारे जैसे का नसीब है
जो इंडिया में रह कर जो मन आता है बकते रहते हो
चीन जैसे देश में होते तो कब के काट के फेक दिए गए होते
@ अलोक मोहन जी !
आज हरेक शिक्षित व्यक्ति यह जानता है कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री साहिबा ने करोड़ों रूपया पार्क और सड़कों पर उन लोगों की मूर्तियां लगाने में ख़र्च कर दिए, जो दलितों की मुक्ति के लिए अपने समय के रावण से लड़े। राष्ट्रवादी विचारकों ने इसे जन-धन की बर्बादी बताया। इसी बात को वे उन लोगों की मूर्ति स्थापन के बारे में नहीं कहते, जो पुराने समय में सवर्णों लाभ पहुंचाने के लिए लड़े। यहां आकर उनकी ज़ुबान ख़ामोश हो जाती है। वे खुद बड़े-बड़े पुतले हर साल बनाते हैं और उनमें आग लगा देते हैं। अरबों रूपये पहले इन पुतलों को तैयार करने में लगाते हैं और फिर इन्हें जलाने में। अरबों रूपये आतिशबाज़ी में खर्च कर दिए जाते हैं। बहुत सारी मूर्तियां नदियों में बहा दी जाती हैं जो जल प्रवाह को भी अवरूद्ध करती हैं और पानी को प्रदूषित भी करती हैं। मूर्तियों को बनाने,बहाने और जलाने में हर साल लगने वाला अरबों रूपया इनसानों की भलाई में, ग़रीबों की बेहतरी में लगे तो समाज का उत्थान भी होगा और ईश्वर भी प्रसन्न होगा। तब नक्सलवाद जैसी समस्याएं भी पैदा नहीं होंगी जो देश की अखण्डता के लिए एक भारी ख़तरा बनी हुई है।
http://vedquran.blogspot.com/2010/10/english-lady-accepts-islam-and-veil.html
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