सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Saturday, July 24, 2010
The way for mankind धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है जिसके बिना कल्याण संभव नहीं है। वह सदा से एक ही है। - Anwer Jamal
ईश्वर शाश्वत है , धर्म सनातन है , ईश्वर धर्म का मूल है। ईश्वर एक ही है। उसके गुण अनंत हैं। न तो ईश्वर के रूप की कल्पना संभव है और न ही उसके किसी गुण की। मनुष्य एक सामाजिक और नैतिक प्राणी है। उसका जीवन और यह लोक दोनों ही अस्थायी हैं। परलोक स्थायी है। मनुष्य का कर्म धर्मानुकूल ही होना चाहिये और धर्म ईश्वर द्वारा निर्धारित होता है। ज्ञानी और श्रेष्ठ सदाचारी लोगों के अन्तःकरण में ईश्वर अपनी वाणी का अवतरण करता है , वे उस पर अमल करते हैं और लोगों के सामने एक आदर्श और मिसाल पेश करते हैं। उनके काल में भी और बाद में भी बहुत से लोग उनका विरोध करते हैं। विरोध करने वालों में नादान और कम समझ लोग भी होते हैं और वे लोग भी होते हैं जिनकी चैधराहट पर आंच आ रही होती है। लोग उमूमन सुविधा पसंद होते हैं और होना भी चाहिये लेकिन यह बात तब अपराध बन जाती है जब धर्म की गद्दी पर बैठने वाले लोग अपनी इच्छाओं को धर्म के अधीन करने के बजाय धर्म को अपनी इच्छानुकूल बदलते रहते हैं। उसके मौलिक सिद्धांतों तक में भारी फेर बदल कर देते हैं।
वे न तो उपासना पद्धति को ही प्राचीन विधि के अनुकूल रहने देते हैं और न ही सामाजिक नियमों को।
धर्म केवल उपासना पद्धति और नाम जाप का ही नाम नहीं होता बल्कि वह मनुष्य को जीवन के हर पहलू में हर संकट में सही और सीधा मार्ग दिखाता है।
मनुष्य को ईश्वर ने पैदा किया है और इस कायनात की हरेक चीज़ को भी। कल्याणकारी सीधा मार्ग उस सच्चे स्वामी के सिवा और कोई नहीं जानता। उससे सीधे सन्मार्ग की विनती ही प्रार्थना का मूल है। यह प्रार्थना फलीभूत तब होती है जब केवल उसी एक पर पूरी निष्ठा रखते हुए उसके द्वारा अवतरित धर्म विधान का पालन किया जाए। इस विधान का पालन ही तय करता है कि कौन भक्त वास्तव में ईश्वर के प्रति निष्ठावान है ?
ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। उस धर्म की शिक्षा उसने अपनी वाणी वेद के माध्यम से दी और महर्षि मनु को आदर्श बनाया तो इस धर्म को वैदिक धर्म या मनु के धर्म के नाम से जाना गया और जब बहुत से लोगों ने वेद को छिपा दिया और इसके अर्थों को दुर्बोध बना दिया तो उसी परमेश्वर ने जगत के अंत में पवित्र कुरआन के माध्यम से धर्म को फिर से सुलभ और सुबोध बना दिया है।
ईश्वर अपनी वाणी कुरआन में स्वयं कहता है-
इन्नहु लफ़ी ज़ुबुरिल्-अव्वलीन ।
अर्थात बेशक यह कुरआन आदिग्रंथों में है।
इस ज़मीन पर ‘वेद‘ सबसे पुराने धार्मिक ग्रंथ हैं।
वेद सार ब्रह्म सूत्र है-
एकम् ब्रह्म द्वितीयो नास्ति , नेह , ना , नास्ति किंचन ।
अर्थात ब्रह्म एक है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, किंचित भी नहीं है।
पवित्र कुरआन के सार को कलिमा ए तय्यिबा कहा जाता है -
ला इलाहा इल्-लल्लाह
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई अन्य उपासनीय नहीं है।
वेद और कुरआन दोनों के मानने वाले ईश्वर की इच्छा से इस मुल्क में इकठ्ठे हो चुके हैं।
वेदों के बारे में वैदिक विद्वान भी एकमत नहीं हैं। कोई इनमें इतिहास बताता है और कोई इनमें इतिहास को सिरे से नकारता है। कोई इन्द्र का अर्थ राजा करता है और दूसरा कोई उसका अर्थ ईश्वर बताता है।
कोई ब्राह्मण ग्रंथों को वेदों का भाग बताता है और दूसरा वर्ग उसे मात्र व्याख्या बताता है। कोई उन्हें चार-पांच हज़ार साल पूर्व ऋषियों द्वारा रचित बताता है और कोई इन्हें तिब्बत में लगभग दो अरब वर्ष पूर्व का ज्ञान बताता है।
यही हाल जाति के अनुसार कर्म की है। नारी और शूद्रों के अधिकारों की है। विधवा नारियों की समस्याओं के समाधान की है। 100 वर्ष की आयु मानकर चार आश्रमों के पालन की है, यज्ञ और हवन की है। स्वर्ग और नर्क के विभागों की नाम सहित ऐसी व्याख्या भी यहां मिलेगी कि आदमी पढ़ते हुए समझेगा कि सारा दृश्य उसकी नज़रों के सामने है और फिर वहीं यह भी लिखा मिलेगा कि स्वर्ग नाम सुख का और नर्क नाम दुख का है दोनों वास्तव में अलंकार हैं।
ग़र्ज़ यह कि हज़ारों साल के दौरान बहुत से कवि और दार्शनिक पैदा हुए और उन्होंने अपनी अपनी बुद्धि से बहुत सा साहित्य रचा। उनमें कुछ बातें बहुत उच्च स्तर की हैं और बहुत सी ऐसी हैं जिनमें अत्याचार और अश्लीलता है।
अपनी इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति के लिये महापुरूषों और ऋषियों के चरित्र को ऐसा विकृत कर दिया गया कि महाभारत में अपने बाप से उत्पन्न आदमी को ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी समेत बहुत से महापुरूषों के जीवन चरित्र के साथ खिलवाड़ किया गया है। मानवता के सामने आज आदर्श का संकट है । वह किसे सही माने और किस के जीवन के अनुसार अपना जीवन ढाले। दोनों ही महापुरूष भारतीय जनमानस में अति लोकप्रिय है परंतु दोनों के ही जीवन चरित्र को लीला कह दिया गया।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस जगत में आने मानवता का सबसे बड़ा संकट उस दयालु ईश्वर ने हल कर दिया है। मुहम्मद साहब सल्ल. के अंतःकरण पर अवतरित ईश्वरीय वाणी ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित है। उनकी जीवनी भी सुरक्षित है। उनके बताये गये नियम पूर्णतः वेदानुकूल हैं, आज के समय में सरलतापूर्वक पालनीय हैं। उनके द्वारा बतायी गयी उपासना पद्धति भी सहज सरल और पालनीय है। कटते जंगल, बढ़ते ग्लोबल वॉर्मिंग और घटते घी के दौर में आज जब हवन
करना लगभग साढ़े छः अरब मनुष्यों के लिये संभव नहीं है तब भी नमाज़ अदा करना आसान है, हरेक के लिये , ग़रीब के लिये भी और अमीर के लिये भी।
धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है जिसके बिना कल्याण संभव नहीं है। वह सदा से एक ही है। अलग अलग भाषाओं में उसके बहुत से नाम हैं। एक ही धर्म आज केवल विकारों के कारण बहुत से मतों की भीड़ में दब गया है लेकिन ‘तत्वदर्शी‘ उसे अपनी ज्ञानदृष्टि से आसानी से पहचान लेता है और मान भी लेता है।
विश्व के परिदृश्य में भारत एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। अगर हमने समझदारी से अपने मनमुटाव दूर कर लिये तो फिर यह विश्व की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति भी होगा। विश्व नेतृत्व पद हमारे सामने है लेकिन हमें खुद को उसके योग्य साबित करना होगा।
वे न तो उपासना पद्धति को ही प्राचीन विधि के अनुकूल रहने देते हैं और न ही सामाजिक नियमों को।
धर्म केवल उपासना पद्धति और नाम जाप का ही नाम नहीं होता बल्कि वह मनुष्य को जीवन के हर पहलू में हर संकट में सही और सीधा मार्ग दिखाता है।
मनुष्य को ईश्वर ने पैदा किया है और इस कायनात की हरेक चीज़ को भी। कल्याणकारी सीधा मार्ग उस सच्चे स्वामी के सिवा और कोई नहीं जानता। उससे सीधे सन्मार्ग की विनती ही प्रार्थना का मूल है। यह प्रार्थना फलीभूत तब होती है जब केवल उसी एक पर पूरी निष्ठा रखते हुए उसके द्वारा अवतरित धर्म विधान का पालन किया जाए। इस विधान का पालन ही तय करता है कि कौन भक्त वास्तव में ईश्वर के प्रति निष्ठावान है ?
ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। उस धर्म की शिक्षा उसने अपनी वाणी वेद के माध्यम से दी और महर्षि मनु को आदर्श बनाया तो इस धर्म को वैदिक धर्म या मनु के धर्म के नाम से जाना गया और जब बहुत से लोगों ने वेद को छिपा दिया और इसके अर्थों को दुर्बोध बना दिया तो उसी परमेश्वर ने जगत के अंत में पवित्र कुरआन के माध्यम से धर्म को फिर से सुलभ और सुबोध बना दिया है।
ईश्वर अपनी वाणी कुरआन में स्वयं कहता है-
इन्नहु लफ़ी ज़ुबुरिल्-अव्वलीन ।
अर्थात बेशक यह कुरआन आदिग्रंथों में है।
इस ज़मीन पर ‘वेद‘ सबसे पुराने धार्मिक ग्रंथ हैं।
वेद सार ब्रह्म सूत्र है-
एकम् ब्रह्म द्वितीयो नास्ति , नेह , ना , नास्ति किंचन ।
अर्थात ब्रह्म एक है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, किंचित भी नहीं है।
पवित्र कुरआन के सार को कलिमा ए तय्यिबा कहा जाता है -
ला इलाहा इल्-लल्लाह
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई अन्य उपासनीय नहीं है।
वेद और कुरआन दोनों के मानने वाले ईश्वर की इच्छा से इस मुल्क में इकठ्ठे हो चुके हैं।
वेदों के बारे में वैदिक विद्वान भी एकमत नहीं हैं। कोई इनमें इतिहास बताता है और कोई इनमें इतिहास को सिरे से नकारता है। कोई इन्द्र का अर्थ राजा करता है और दूसरा कोई उसका अर्थ ईश्वर बताता है।
कोई ब्राह्मण ग्रंथों को वेदों का भाग बताता है और दूसरा वर्ग उसे मात्र व्याख्या बताता है। कोई उन्हें चार-पांच हज़ार साल पूर्व ऋषियों द्वारा रचित बताता है और कोई इन्हें तिब्बत में लगभग दो अरब वर्ष पूर्व का ज्ञान बताता है।
यही हाल जाति के अनुसार कर्म की है। नारी और शूद्रों के अधिकारों की है। विधवा नारियों की समस्याओं के समाधान की है। 100 वर्ष की आयु मानकर चार आश्रमों के पालन की है, यज्ञ और हवन की है। स्वर्ग और नर्क के विभागों की नाम सहित ऐसी व्याख्या भी यहां मिलेगी कि आदमी पढ़ते हुए समझेगा कि सारा दृश्य उसकी नज़रों के सामने है और फिर वहीं यह भी लिखा मिलेगा कि स्वर्ग नाम सुख का और नर्क नाम दुख का है दोनों वास्तव में अलंकार हैं।
ग़र्ज़ यह कि हज़ारों साल के दौरान बहुत से कवि और दार्शनिक पैदा हुए और उन्होंने अपनी अपनी बुद्धि से बहुत सा साहित्य रचा। उनमें कुछ बातें बहुत उच्च स्तर की हैं और बहुत सी ऐसी हैं जिनमें अत्याचार और अश्लीलता है।
अपनी इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति के लिये महापुरूषों और ऋषियों के चरित्र को ऐसा विकृत कर दिया गया कि महाभारत में अपने बाप से उत्पन्न आदमी को ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी समेत बहुत से महापुरूषों के जीवन चरित्र के साथ खिलवाड़ किया गया है। मानवता के सामने आज आदर्श का संकट है । वह किसे सही माने और किस के जीवन के अनुसार अपना जीवन ढाले। दोनों ही महापुरूष भारतीय जनमानस में अति लोकप्रिय है परंतु दोनों के ही जीवन चरित्र को लीला कह दिया गया।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस जगत में आने मानवता का सबसे बड़ा संकट उस दयालु ईश्वर ने हल कर दिया है। मुहम्मद साहब सल्ल. के अंतःकरण पर अवतरित ईश्वरीय वाणी ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित है। उनकी जीवनी भी सुरक्षित है। उनके बताये गये नियम पूर्णतः वेदानुकूल हैं, आज के समय में सरलतापूर्वक पालनीय हैं। उनके द्वारा बतायी गयी उपासना पद्धति भी सहज सरल और पालनीय है। कटते जंगल, बढ़ते ग्लोबल वॉर्मिंग और घटते घी के दौर में आज जब हवन
करना लगभग साढ़े छः अरब मनुष्यों के लिये संभव नहीं है तब भी नमाज़ अदा करना आसान है, हरेक के लिये , ग़रीब के लिये भी और अमीर के लिये भी।
धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है जिसके बिना कल्याण संभव नहीं है। वह सदा से एक ही है। अलग अलग भाषाओं में उसके बहुत से नाम हैं। एक ही धर्म आज केवल विकारों के कारण बहुत से मतों की भीड़ में दब गया है लेकिन ‘तत्वदर्शी‘ उसे अपनी ज्ञानदृष्टि से आसानी से पहचान लेता है और मान भी लेता है।
विश्व के परिदृश्य में भारत एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। अगर हमने समझदारी से अपने मनमुटाव दूर कर लिये तो फिर यह विश्व की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति भी होगा। विश्व नेतृत्व पद हमारे सामने है लेकिन हमें खुद को उसके योग्य साबित करना होगा।
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41 comments:
बेहतरीन लेख, हर बात एकदम सही.... बहुत खूब!
जमाल साहब आप वास्तव में गुरु हैं,लाजवाब लेख!!!! यह बात बिलकुल सच है,की धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है जिसके बिना कल्याण संभव नहीं है। इश्वर सदा से एक ही है।
जमाल साहब आप वास्तव में आप प्रशंसनिये हैं, मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं,
जय भीम
BAHUT KHOOB...
GOOD POST
बेहतरीन पोस्ट
प्रेम और विश्वास का वातावरण बनाइए ताकि भारत स्वर्ग का नमूना बने
एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति --------- यह ब्रह्म सर्व समर्थ है और सब जगह रम रहा है, तो इस बात का हौव्वा खड़ा करना बेतुका है की इतने देवता क्यों ................ उसकी शक्ति का प्रकटीकरण उसीके द्वारा उसीके इच्छा से सर्वत्र होता है ................. अगर ब्रह्म सर्वत्र प्रकट होने में असमर्थ है तो फिर वह ब्रह्म हम सबका स्वामी नहीं हो सकता है................... जीतने भी स्वरूपों की उपासना व्यक्ति अपनी भावना अनुसार करता है वह उसी ब्रह्म का स्वरुप मानकर करता है ............................. ब्रह्म,अल्लाह की एकरूपता का अर्थ बिलकुल स्पष्ट है की उपासना करने योग्य अखिल ब्राह्मांड नायक ब्रह्म एक ही है........................ लेकिन उपासना पद्दत्ति के धरातल पर कभी एक नहीं हो सकता और ना कभी किसी को जबरन किसी एक उपासना पदात्ति अपनाने को मजबूर करना उस परमात्मा की सच्ची उपासना हो सकती है ......................... उपासना पद्दतियों का नाम धर्मं कदापि नहीं है .............. धर्म तो केवल एक ही है मानवता की राह पे चलते हुए सदाचारी जीवन का निर्वाह करना.................. हाँ उपासना पद्दतियां अनेक है और अनेक ही रहेंगी ........................ उपासना पद्दतियों को धर्म का नाम देकर किसी पद्दत्ति विशेष को उत्कृष्ट बतलाकर उसका अनुयायी बनाने के लिए किसी भी तरह का जबरिया उपाय अपनाना निक्रष्ट्ता की पराकाष्ठता है ................
जमाल साहब हिन्दुओं के ग्रंथों ने तो इस्लाम से भी सस्ती, सस्ती क्या जी बिलकुल फ्री की उपासना पद्दत्ति इस युग के लिए बतलाई है ----- नामसंकीर्तन --------- इस उपासना में एक कौड़ी भी खर्च नहीं होती है ----------- आप परछिद्रान्वेषण की अपनी गलीच मानसिकता से क्यों नहीं उबर पायें है अभी तक ????????? बी.एन.शर्मा जी जो प्रमाण सहित बघियाँ उधेड़ रहें है उसके समाधान में अपनी उर्जा खर्च कीजिये, आपको तो उनका सामना जरूर करना चाहिये क्योंकि आपको तो दूसरी उपासना पद्दतियों का इतना ज्ञान है तो फिर जो उपासना पद्दति आपको जन्मजात मिलि है उसका तो आप तथ्य सहित निराकरण करेंगे ही ............. शर्मा जी को दोष ना देना शुरुवात आप ही की की हुयी है आप ही का बोया वृक्ष है जिसके फल आप के साथसाथ एक आम सदाचारी मोमिन को भी अपने उपासना प्रतिमानों के लिए प्रतिकूल पढना पढ़ रहा है
ए लोगो जो ईमान लाए(अल्लाह पर यकीन रखते हो, अल्लाह को मानते हो, उसकी इबादत करते हो) अपनी चिंता करो, किसी दूसरे की गुमराही से तुम्हारा कुछ नही बिगड़ता अगर तुम खुद सीधे रास्ते पर हो" (सुराह 5 : आयात 105)
अबू बक्र रजि. जो पहेले खलीफा थे ने अपने तक़रीर, भाषण मे इस आयात के बारे मे कहा "लोगो तुम इस आयत को पढ्ते और ग़लत मतलब निकालते हो, मैने रसूल स. से सुना है की जब लोगो का ये हाल हो जाए की वो बुराई को देखे और उसे बदलने की कोशिश ना करे, जालिम को ज़ुल्म करता देखे और उसका हाथ ना पकड़े तो ये असंभव नही की अल्लाह सबको अपने अज़ाब मे लपेट ले, तुमको ज़रूरी है की भलाई का उपदेश दो और बुराई से रोको वरना अल्लाह तुम पर ऐसे लोगो को नियुक्त कर देगा जो तुममे से सबसे बुरे होंगे और वे तुमको बड़ी तकलीफ़ पहुचाएँगे, फिर तुम्हारे नेक लोग अल्लाह से दुआ माँगेगे मगर वे दुआ कबूल नही होंगी"
क्या वर्तमान मे इस आयात और उसका विवरण की झलक आज के समाज मे दिखाई नही पड़त है ?
क़ुरान की एक आयात बयान है उनकी ज़बानी जिन्होने क़ुरान मुहम्मद रसूल स.से सीखा और फिर लोगो को सिखाया और उन्होने आगे आने वाली नस्लो को सिखाया,
इस तरह क़ुरान की तालीम सुरक्षित रही और लोग बुराइयो से बचते रहे और भलाई का हुक्म देना अपना अहम फ़र्ज़ समझते रहे लेकिन जब लोगो ने क़ुरान की सही तालीम प अमल करने की बजाए इधर उधर ताका झाँकी करनी शुरू की तो उन्हे कुछ भी हासिल ना हुआ और ना हो सकेगा
विश्व के परिदृश्य में भारत एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। अगर हमने समझदारी से अपने मनमुटाव दूर कर लिये तो फिर यह विश्व की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति भी होगा। विश्व नेतृत्व पद हमारे सामने है लेकिन हमें खुद को उसके योग्य साबित करना होगा।
आज इसी बात की ज़रूरत है , जमाल भाई बेहतरीन लेख
महक भाई से सहमत
आज इसी बात की ज़रूरत है , जमाल भाई बेहतरीन लेख
@ प्रिय बंधु अमित ! इतने सारे देवताओं का हौव्वा खड़ा हमने नहीं बल्कि आपने किया है और फिर खुद ही ब्रह्मा जी की पूजा का निषेध भी कर दिया। इन्द्र की पूजा श्री कृष्ण जी ने रूकवाई। जिसके कारण इन्द्र ने उनकी गर्भवती स्त्रियों की हत्या कर दी और उनके अनुयायियों को भी डुबाने की पूरी कोशिश की। देवी भागवत में भी देवताओं की पूजा से रोका गया है और उनकी पूजा करने वालों को जो कुछ कहा गया है वह भी आपसे छिपा नहीं है।
देवता खुद अपने सिवा दूसरों की पूजा होते देखकर रूष्ट होते माने जाते हैं। यदि सभी कुछ ब्रह्म की इच्छा से हो रहा है तो ब्रह्मा का सिर क्यों काटा गया ?
ऋषियों ने दारू वन में शाप देकर शिव जी का लिंग क्यों गिरा दिया ?
परमेश्वर ने कहीं लिंग पूजा करने का आदेश दिया हो या मात्र अनुमति ही दी हो तो कृपया हमें दिखायें ?
गौतम बुद्ध को स्वयं विष्णु जी ने ही पापावतार घोषित कर दिया है। नर्क के ख़ाली रह जाने की शिकायत सुनकर उन्होंने कहा कि मैं लोगों को पापी बनाकर नर्क में भेजूंगा जबकि अवतार का उद्देश्य तो धर्म की और वह भी वर्णाश्रम धर्म की स्थापना बताया गया है ।
सदाचारी बनने के लिए भी उसके विधान का पालन करना पड़ता है। समाज को चलाने के लिये ईश्वर द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना पड़ता है। शूद्र को सम्पत्ति संग्रह और ईशवाणी के अध्ययन और उपनयन से रोक देना सदाचार नहीं कदाचार है।
नारी के लिए विवाह को हिन्दू धर्म में एक संस्कार घोषित किया गया है। नारी के लिए सदाचार यह है कि पति की मृत्यु के बाद वह या तो सती हो जाए या बाल मुंडवाकर ऐसे ही रूखा सूखा खाकर मौत से बदतर जीवन जिए और मर जाए।
शूद्र और नारी समाज का अधिकांश भाग हैं। वे सदाचारी बनने के लिए ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं।
उपासना और सदाचार के बारे में गोल मोल बातें करना भ्रमजाल बनाना है। आपने जो कुछ कहा , उसका प्रमाण हिंदू धर्म की पुस्तकों से दीजिये , वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता और व्यवहारिकता सिद्ध कीजिये। मैं जो कुछ कहता हूं सप्रमाण कहता हूं , जहां प्रमाण न दिया हो आप मांगिये मैं देने को बाध्य हूं।
और रह गई बात बी. एन. शर्मा जी की , तो वह मेरी ज्ञान वाटिका के ख़रगोश हैं, उनकी उछल-कूद से हमारा दिल भी बहलता है और कुरआन पर बहस भी हॉट में रहती है। उनको जवाब देने वाले सदा वहां मौजूद रहते हैं। कभी कभी मैं खुद भी पहुंच जाता हूं ताकि शर्मा जी लगे रहें और उन्हें देखकर दूसरे भी प्रेरित हों।
केवल मानने के लिये तो मोटे तौर की जानकारी से भी काम चल जाता है लेकिन जिस विचार में कोई कमी न हो उसमें दोष ढूंढने के लिये बहुत गहराई तक जाना पड़ता है । जब आदमी गहराई में उतर जाता है तो सत्य देर सवेर उसपर प्रकट हो जाता है । मेरे मिलने वालों में कई लोग ऐसे हैं जो इस रास्ते पर चले मगर वे सत्य को देर तक अस्वीकार न कर सके। उन्हीं में से एक
‘कान्ति‘ मासिक व सात्ताहिक , डी-314, अबुल फ़ज़्ल एन्कलेव , नई दिल्ली - 110025 के संपादक डा. मुहम्मद अहमद साहब हैं
आप चाहें तो उनसे मिल सकते हैं या फिर इस पते पर पत्र भेजकर उनकी पत्रिकाओं की नमूना कॉपी मुफ़्त मंगा सकते हैं।
हे समय समय पर अपने धर्म में प्रभुत्वशाली जातियों की संस्कृति के अनुरूप आमूल चूल परिवर्तन करने वालों ! बदलते बदलते आप वही बनेंगे जिससे बचने के लिये यह सब प्रपंच किया जा रहा है।
यदि मेरी बात ग़लत लगती है तो हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हिन्दू समाज को जीने के लिये तैयार करके दिखाइये।
आप सदाचार के लिये किस का अनुसरण करना चाहेंगे ?
अपने आदर्श पुरूष का नाम बताइये ?
क्या उनके आदर्श पर चलना संभव है ?
बी. एन. शर्मा जी की छोड़िये , हमें तो आपसे उम्मीद है क्योंकि आप एक विचारशील आदमी हैं ।
VERY LOGICAL & CLEAR THOUGHT.
अमित शर्मा तो ऐसे बोल रहा है जैसे हम भंदाफोदू के ब्लॉग से दुखी हैं. अरे हमें तो उसमें बहुत मज़ा आ रहा है जो हिंदी के मज़मून को भी उल्टा समझ बैठता है, और दावा करता है अरबी और फ़ारसी का विद्वान होने का. जिस मज़मून में लिखा है की सूरे फातिहा में तहरीफ़ हो ही नहीं सकती उसे पढ़कर कह रहा है की सूरे फातिहा में तहरीफ़ हो गई. हा हा हा!
हम तो अमित शर्मा जी को प्रिय बन्धु कह रहे हैं और शर्मा जी हमारे ब्लॉग पर ऐसा कमेन्ट कर रहे हैं - "अमित शर्मा has left a new comment on your post "The way for mankind धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है...":
अब ये जमालघोटा अमित को दिए जवाब को ही अपनी पोस्ट बना लेगा फिर मैं अमित को समझाता हूँ की अपनी उर्जा इस जमाल घोटे को पिने में मत बर्बाद कर "
पता नहीं बेचारे किस आई डी से कमेन्ट कर रहे होंगे ?
और भूल से कर बैठे अपनी ही आई डी से ,फिर मिटाना पड़ा . हमें ये कमेन्ट अपने ईमेल अकाउंट में पड़ा मिला .पहले भी ये हमारे ब्लॉग पर मराठी बन्धु को ताना दे चुके हैं . तब ये बोले थे कि इनके साथी नवरतन जी कर दिया था . हो सकता है इस बार किसी अकबर या बीरबल या तानसेन आ कर उनकी आई डी से कमेन्ट कर गए हों ?
मौलवियों को बुरा कहने वाले पंडित जी की हरकत जनाब सतीश सक्सेना जी को बहुत निराश करेगी क्योंकि वे तो उन्हें जन्म देने के कारण उनके मान बाप तक को धन्य कह चुके हैं . धन्य जी महाराज ये कर रहे हैं ब्लॉग जगत में ..... और बातें करते हैं ब्रहम की , कि वह हर जगह राम रहा है . बातें करते हैं सदाचार की. देखो सदाचारी जी महाराज का कदाचार .
कुरान पूरी तरह सुरक्षित है . अगर उसकी किसी एक भी सूरत से छेड़छाड़ की गयी होती तो उसका गणितीय संगठन खंडित हो जाता . शिया सुन्नी इस पर एकमत हैं . http://islamdharma.blogspot.com/2010/07/miracle-of-quran.html
जमाल साहब इस कमेन्ट के बाबत मैने आपको मेल किया था, आदत से मजबूर अपना कम्प्यूटर खुला छोड़ पीछे प्रोडक्शन प्लांट में चला गया था,
इसी बीच इतना कुछ हो गया है, ईश्वर साक्षी है की ऐसा मैं नहीं करता और ना कभी किसी ने मेरे मुहँ से किसी के लिए गाली छोड़ तू सुना है.
आपके पे कमेन्ट 8:44 PM पे हुयी थी, और मैंने 9:19 PM पे आपको अपनी पीड़ा से मेल पर अवगत कराया था.
श्री जमाल साहब,
आपके ब्लॉग पर मेरी आईडी से एक कमेन्ट था, मुझे नहीं मालूम की कैसे था. पिछली घटना को याद कर नवरतन जी से भी पूछताछ की लेकिन वे भी साफ़ मुकर रहें है. पर मेरा मन नहीं मान रहा की वे आज सच कह रहे हैं. उस कमेन्ट की भाषा जो मुझे ही नहीं सुहा रही, मैं मान सकता हूँ की आपको तो ठेष पहुँचाने वाली ही है उसके लिए मैं आपसे हार्दिक माफ़ी चाहता हूँ.
जमाल साहब अगर आपको लगता है की मैं ऐसा कर सकता हूँ तो आप जरूर इस बात को उजागर कीजियें, नहीं तो आपसे याही आशा है की उस गलीच भाषी कमेन्ट को आप मुझसे नहीं जोड़ेंगें. आशा है आप मेरे प्रति जो स्नेह प्रदर्शन करते रहें है उस स्नेह को वैचारिक मतभेदों के धरातल पर कुर्बान नहीं करेंगे.
बाकी ब्लॉग-जगत जो चाहे सजा के लिए प्रस्तुत हूँ
शर्मा साहब की मन की असली बात उनके घटिया कमेँट से सामने आ गई है
इन लोगो की घटिया मानसिकता की जानकारी तो हमें पहले से ही है आप सब को भी समझ मे आ गया होगा
अनवर भाई मुझे भी लगता है कि अमित शर्मा जी जैसे विद्वान ऐसी घटिया बात कभी नही लिख सकते ये किसी और की गड़बड़ है पर आप उस गलती करने वाले को भी माफ कर दें । ईश्वर ऐसा घटिया लिखने वाले को सदबुद्धि दे और उसे सही रास्ता दिखाए और उस पर चलने की हिम्मत दे।
जमाल साहब हर गलती कीमत मांगती है, और मैं भी अपनी गलती की कीमत चुकाऊंगा ही. मेरी गलती की मैंने अपना अकाउंट खुला छोड़ा और मेरी आईडी से आपके ब्लॉग पर अभद्र कमेन्ट हुयी. अब इसकी कीमत आप जो वसूल रहें है, तहेदिल से प्रस्तुत हूँ.
लेकिन इतना आप तारकेश्वर गिरिजी, विचारशुन्यजी, प्रतुल जी से मालूम कर सकते हैं जिनसे मेरी अक्सर फोन पर बात होती रहती है, और महफूज़ भाई से भी जिनसे एक बार बात हुयी थी की बात चीत में जब कभी भी आपका प्रसंग उठा मैंने हमेशा आपके लिए जमाल साहब ही संबोधन प्रयोग किया है. जब हमारी परस्पर बातचीत में ही मैंने आपके लिए या और किसी के लिए भी सम्मानजनक शब्द प्रयोग करता हूँ. तो ईश्वर भी साक्षी है की मैं आपने हाथों से आपके लिए ही नहीं किसी के लिए भी अपशब्दों का प्रयोग नहीं करूँगा, छिप कर तो बिलकुल नहीं.
बाकी आप सबहीं पर है मैं अपनी गलती की सजा के लिए प्रस्तुत हूँ. यह आपको तय करना है की आप मेरी गलती कौन सी मानेंगे ....... मैंने अपना अकाउंट चालू छोड़ा यह........ या यही मानेंगे की यह गलीच कमेन्ट मेरा ही किया हुआ है............. आपकी मर्ज़ी है
प्रिय अमित जी ! मुझे यकीन है कि अप सच बोल रहे हैं . इसे ग़लती के बजाय चूक कहा जाता है . मुझे आपसे कोई भी शिकायत नहीं है . आप हमेशा कि तरह मेरे छोटे भाई हैं . आप थोडा सतर्क रहें , ऐरे गैरे उचक्के आपको बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं . आप मैं मुद्दे पर अपना विचार रखें कि " सदाचार का आदर्श मॉडल क्या है ? और उसे किसने साकार करके दिखाया ? और वर्तमान में मानवजाति सरलतापूर्वक किसका अनुसरण कर सकती है , उपासना में , सामाजिक नियमों में , राजनीती में , आर्थिक निति में , पारिवारिक संबंधों में ?
शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति
पुराणों में इसकी उत्पत्ति की कथाएं विभिन्न स्थानों पर विभिन्न रूपों में लिखी हुई मिलती हैं , देखिये हम यहां कुछ उदाहरण उन पुराणों से पेश करते हैं , यथा
1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।
यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।
उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -
‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘
यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा , तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘
उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ ।
इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता ।
यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513
2- शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया । - साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15
3- शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।
यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।
- वामनपुराण खण्ड 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक
4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।
यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे । - डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43
शिवजी की उत्पत्ति
1- शिवजी स्वयं उत्पन्न हुए ।
- गीता प्रेस शिवपुराण विन्धयेश्वर संहिता पृष्ठ 57
2- शिवजी , विष्णु जी की नासिका के मध्य से उत्पन्न हुए ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण द्वितीय रूद्र संहिता अध्याय 15 पृष्ठ 126
3- शिव का जन्म विष्णु के शिर से माना जाता है ।
- डायमंड प्रेस ब्रह्म पुराण पृष्ठ 141
4- शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए ।
- डायमंड प्रेस कूर्म पुराण पृष्ठ 26
औघड़ मत का पूजा विधान
औघड़ मत में भैरवी चक्र नाम का एक पर्व होता है , जिसमें एक पुरूष को नंगा करके उसके लिंग की स्त्रियां पूजा करती हैं और दूसरे स्थान पर एक स्त्री को नंगा खड़ा कर पुरूषों द्वारा उसकी भग अर्थात योनि की पूजा की जाती है ।
- सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11 , पृष्ठ 192 , डिमाई साईज़ @ डायमंड प्रेस , अग्नि पुराण , पृष्ठ 41
शिवजी ओघड़ थे
1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ ।
- साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140
2- सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं ।
- डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39/साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19
शिवजी का भेष
1- मुण्डों की माला धारण करते हैं ।
- पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324
शिवजी का निवास
1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं ।
- डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160
शिवजी का आहार
1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - ‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना सन्तुष्ट नहीं होता‘‘ । - वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 47
2- शिव जी अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235
शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध
1- सभी लोग लिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध करते हैं । -गीता प्रेस ,शिव पुराण , पृष्ठ 69, श्लोक 14
2- शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुएं ग्रहण करना शास्त्र सम्मत नहीं है ।
3- शिव जी को आहुति देने वाले अपवित्र हो जाएंगे । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110
शिवजी के सम्बंध में पुराणों की बातें
1- शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है । -कला प्रेस , सर्व सिद्धान्त संग्रह, पृष्ठ 13
2- जो लोग शिव को संसार की रक्षा करने वाला मानते हैं , वे कुछ भी नहीं जानते हैं । -देवी भागवत पुराण, खण्ड 1, श्लोक 6, पृष्ठ 13
3- जैसे कलि युग का प्रचार होगा वैसे ही शिव मत का प्रचार बढ़ेगा । -सूर्य पुराण, श्लोक 54, पृष्ठ 162
शिवजी सन्ध्या करते थे
सूत जी बोले - शिव जी सन्ध्या करते हैं । -पद्म पुराण खण्ड 1, श्लोक 201, पृष्ठ 328
शिवाजी की पत्नी का नाम ‘पार्वती‘ है । -ठाकुर प्रेस,शिव पुराण , तृतीय पार्वती खण्ड , अध्याय 5 , पृष्ठ 275
पार्वती के अनेक नाम
काली , कालिका , कामाख्या , भद्रकाली , उमा , भगवती , अम्बा , चण्डिका , चामुण्डा , विजया , मुण्डा , जया , जयन्ती , आदि ‘पार्वती‘ के ही नाम हैं । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, द्वितीय, रूद्र संहिता, पृष्ठ 128
काली की उत्पत्ति
1- रूद्र की जटा से काली उत्पन्न हो गई । -गीता प्रेस,
शिव पुराण,रूद्र संहिता, पृष्ठ 151
2- नारायण की हड्डियों से काली उत्पन्न हो गई । -डायमण्ड प्रेस मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 108
काली का आहार
1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 371
2- अम्बिका मदिरा अर्थात शराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 250
3- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248
‘शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश
लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार
प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001
मूल्य : 5 रूपये मात्र
माननीय जमाल जी ! आपको केवल ये ज्ञान था कि भोले बाबा का लिंग ऋषियों के श्राप के कारण गिरा था लेकिन सच्चाई ये है कि उसे ऋषियों ने डंडे पत्थर मारकर गिराया था . तभी से वह भारतवासियों से दुखी होकरभोले जी भारत छोड़ कर चीन चले गए थे और मानसरोवर पर रहने लगे थे . हिन्दू ये भी मानते हैं कि भोले भंडारी काबा में रहते हैं . हो सकता है कुछ काल के लिए वहां भी रहे हों ? यहाँ पहले लिंग काटा जाता है , लिंग वाले बाबा जी को कष्ट पहुँचाया जाता है और फिर उसकी पूजा कि जाती है .
हमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है .
बेटा कामदर्शी ! ये ज्ञान तुझे आर्य समाज के शोध पत्र से मिला है . बन्दर को मिल गयी हल्दी की गाँठ और वह खुद पंसारी समझने लगा . तू और अनवर एक जैसे हो . मेरे ब्लॉग पर आ, ज्ञान तुझे वहां मिलेगा .
शरीफ़ साहब ने जो मुद्दा उठाया है, वाक़ई उसपर तवज्जो दी जानी चाहिये। लेकिन इस देश के लोगों को जाने क्या हो गया है कि अपनी परंपराओं को छोड़कर उन पश्चिमी लोगों के रिवाज अपना रहे हैं जिन्हें देश से निकालने के लिये लोगों ने अपनी जानें दीं अपने परिवार तबाह कर लिये। अपनी परंपराओं में विश्वास नहीं है और उन्हें छोड़कर दूसरी परंपरा अपनानी है तो फिर इस्लामी परंपरा को अपनाना चाहिये। जिसमें व्यभिचार को रोकने के लिये संपूर्ण उपाय हैं। मैंने इस सब्जेक्ट पर कई बार लिखा है जो मेरे ब्लॉग पर देखा जा सकता है। इसलाम से नफ़रत इस देश को तबाह कर देगी। इसलाम को समझो और अपनाओ। यह ईश्वरीय है, सरल है, वर्तमान समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप है। जीवन के हरेक पक्ष में यह रास्ता दिखाता है। सन्यास लेना इसलाम में वर्जित है। जीवन की ज़िम्मेदारियां सही ढंग से पूरी करना ही जन्नत की गारंटी है। यहां न भोग में अति है और न ही वैराग्य में। हरेक चीज़ में संतुलन है , सौंदर्य है। सेक्स को इस्लाम में घृणित नहीं माना गया है। सेक्स ईश्वर का वरदान है, एक रचनात्मक ताक़त है। इसका सम्यक उपयोग केवल इस्लाम सिखाता है। आज के मां बाप अगर अपने लड़के लड़कियों को सेक्सुअली तबाह होने बचाना चाहते हैं तो उन्हें अपने बच्चों को सेक्स के संबंध में इसलाम के नियमों का ज्ञान करवाना चाहिये। इस लाजवाब पोस्ट के लिये आपको बधाई। http://haqnama.blogspot.com/2010/07/swarg-nark-sharif-khan.html?showComment=1280238207380#c6622047464932614072
@परम आर्य जी! आप कभी चमकते हैं तो रोज़ चमकते हैं और कभी लंबे अर्से तक नदारद रहते हैं। आप मेरे लेख देखें उसके बाद कामदर्शी जी से मेरी तुलना करें।
@कामदर्शी जी !अगर आपको यह कथा मुझसे ज़्यादा अच्छे तरीक़े से पता है तो आपको इसे अपने ब्लॉग पर सजानी चाहिये थी। किस बात से आप डरते हैं ?
सच कहना और लोगों से भयभीत रहना, अपनी पहचान छिपाना एक साथ दोनों काम नहीं किये जा सकते। फिर भी आपके लेख से मेरी पोस्ट सशक्त हुई , आपका आभार । आशा है आगे भी आप पहले की तरह इस ब्लॉग पर पधारते रहेंगे।
डॉ.जमाल सहाब ,कुल,मिला के आप को खुशी इस बात से होती हे की कोई बदजात हिन्दू गर्न्थोकी मनचाही व्याक्ख्य करे ,और आप सशक्त हो ?आप का इरादा तो शुरू से ही पता हे आप भी कर्बला यकीनी हो ?कभी कंही किसी पोस्ट में आप ने इस्लामिक टोर्चेर को उद्यत नहीं किया हे ?आज गुजरात के कोंग्रेस राज में रोज होने वाले दंगे ,उन्न्नते में दब्दील हो चुके हे |
जमाल क्यों धोखा दे रहा है जनता को. यह तस्वीर में ढोंगी शंकराचार्य को दिखाने से कुछ नहीं होने वाला. और अपने जाहिल मजहब को हिन्दू सनातन धर्म से जोड़ कर तू लोगो को बरगलाना चाहता है.
यहाँ अपनी असलियत देख --
Islam-Analysis
Quran And Vedas
जनाब शरीफ़ साहब ! आप स्वीकारते हैं कि मसले को जानबूझकर उलझाया गया है, आप यह भी जानते हैं कि वे बाअसर लोग हैं। वे ऐसे लोग हैं कि ‘अल्पसंख्यक‘ होने के बावजूद बहुसंख्यक पर राज कर रहे हैं। लोग जब कभी शांत चित्त हो जायेंगे वे जान लेंगे कि देश की संपदा पर नाजायज़ तरीक़े से कौन क़ाबिज़ है। वे चाहते हैं कि विवाद कभी न सुलझे, एक विवाद सुलझे तो दूसरा खड़ा कर दें। वास्तव में मसला मंदिर मस्जिद का है ही नहीं। मुसलमानों को डिमॉरेलाइज़ करने का है। ऐसे में मुसलमानों को किसी भी विवाद को हवा देना उचित नहीं है। जो लोग परलोक को नहीं मानते, ईश्वर के कल्याणकारी अजन्मे अविनाशी स्वरूप को नहीं जानते वे क्या न्याय देंगे ?
ये लोग केवल कूटनीति जानते हैं कि कैसे मंथन के बाद निकले हुए अमृत का बंटवारा ‘केवल अपनों‘ में हो ? इस्लाम शांति का पैग़ाम है और यहां माहौल टकराव के लिए तैयार किया जा रहा है और मुसलमानों से लड़ाया जाएगा उन पिछड़ी जाति के लोगों को, जो खुद उनके अत्याचार से त्रस्त हैं ताकि जो भी मरे उनका एक दुश्मन कम हो। न्याय इस जगत में केवल बलशाली को ही मिलता है और मुसलमानों ने बहुत से फ़िरक़ों में बंटकर खुद को निर्बल बना लिया है। कहावत है कि ‘ठाडै की दूर बला‘ ।
मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? काम लम्बा है लेकिन दूसरा कोई शॉर्टकट नहीं है और मस्जिद के लिए इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। लोग जब समझेंगे तो खुद उस तरफ अपने क़दम बढ़ाएंगे जहां उन्हें अपना कल्याण नज़र आएगा। तब तक मुसलमानों को सब्र करना चाहिए क्योंकि हरेक हिन्दू उसका दुश्मन नहीं है और दुश्मन तो आर.एस.एस. के लोग भी नहीं होते लेकिन राजनीति और कूटनीति बुरी बला है और मुसलमानों की लीडरी करने वाले इन लोगों से मिले होते हैं।
आजकल राहबर ही राहज़न बने हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद की आड़ में माल इकठ्ठा किया जा रहा है।
आज़म खां की मिसाल सबके सामने है। अल्लाह ने हरेक उस आदमी को ज़लील कर दिया है जिसने उसके बन्दों को उसके नाम पर लड़ाया और नाम और दाम कमाया।
बहुसंख्यक हिन्दू और मुसलमान भोले हैं। आपस में प्यार से रहते हैं। यह प्यार बना रहे , बढ़ता रहे , ऐसी कोशिश करनी चाहिये।
खुद श्री रामचन्द्र जी ने वन में जाना पसंद किया लेकिन लड़कर राज्य न किया , उनके नाम को लड़ाई के लिये इस्तेमाल करना महापाप है।
खुद हज़रत मुहम्मद साहब स. ने मक्का छोड़कर मदीना जाना गवारा किया लेकिन अपने अनुयायियों को काबा पर क़ब्ज़ा करने के लिये न कहा।
हम जिन्हें अपना आदर्श कहते हैं, उनके जीवन से हमें व्यवहारिक शिक्षा लेनी चाहिये।
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/babri-masjid-sharif-khan.html?showComment=1280507284599#c2097935227089136194
धर्म केवल उपासना पद्धति और नाम जाप का ही नाम नहीं होता बल्कि वह मनुष्य को जीवन के हर पहलू में हर संकट में सही और सीधा मार्ग दिखाता है।
shahroz
एक बार फिर से बेहतरीन लेख़ जमाल साहब. इसे भी पढ़ें
sch or behtrin sch he . akhtar khan akela kota rajsthan
EK BHI SACCHA HINDU PURAN NAHI MANTA. KAHI PARMESWAR KA MANDIR DEKHA HAI? PARMESHAR TO MAN MANDIR ME RAHATA HAI. SACHCHA HINDU HI SACHCHA MUSLMAN HAI. PARMESWAR KI ARDHANA SHOWBIZZ NAHI HAI KI USKO DIKHAKAR YA BATAKER KIYA JAY.
@ चन्द्र जी ! क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जो हिन्दू भाई पुरानों को मानते हैं वो सच्चे हिन्दू नहीं हैं ?
2-अगर मनुष्य का मार्गदर्शन परमेश्वर ने अपनी वाणी के द्वारा न किया होता तो इंसान को आज किसी नैतिक मूल्य में यक़ीन न होता। यह सच है कि वेद और बाइबिल में संग्रहीत ईश्वाणी में मिलावट पाई जाती है और इसी कारण जगत के अंत से पहले परमेश्वर ने कुरआन को अवतरित किया है ताकि अगर हक अपने विचार और कर्म में सुधार और संतुलन क़ायम कर लें तो प्रकृति का संतुलन ठीक हो जाए। बाहर की दुनिया को हमारे कर्म प्रभावित करते हैं और कर्मों के पीछे हमारी नीयतें और नीतियें होती हैं। नीयत पाक हो, नीति ठीक और संतुलित हो तो समाज से हरेक जुर्म का सफ़ाया मुमकिन है।
पवित्र कुरआन में आज तक कोई मिलावट नहीं हो सकी है।
यह एक ऐतिहासिक सत्य है।
आप खुद भी इस चमत्कार को देख सकते हैं। कुरआन के अवतरण से ही आज तक लाखों कुरआन को ज़बानी याद करने वाले लोग हर देश में मौजूद हैं। जिन्हें हाफ़िज़े कुरआन कहा जाता है। इसके अलावा ख़लीफ़ाओं के ज़माने में लिखी गई कुरआन की प्रतियों में कई आज भी विश्व के अलग अलग म्यूज़ियम में रखी हैं।
पवित्र कुरआन में एक अद्भुत गणितीय योजना भी आज सामने आई है। एक अनपढ़ व्यक्ति तो क्या विश्व के सारे वैज्ञानिकों के लिए भी ऐसी गणितीय योजना बनाना असंभव है।
http://islamdharma.blogspot.com/2010_05_01_archive.html
bahut achha prernaaspad post
bahut sundar post
dr.sahab
aap ka coment pad kar bahut achha laga allah aap ko aur behtar comment karne ki tauofiq de
aamin summa aamin
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