सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, July 22, 2010

Absolute submission बन्दा ख़ुदा से राज़ी हो तो कोई ग़म उसके बन्दे पर हावी नहीं होता - Anwer Jamal



http://www.quranhindi.com/


12 comments:

Saleem Khan said...

are baap re !

Ejaz Ul Haq said...

सौ फीसद सही!!!!

Unknown said...

badhiya baat

Man said...

डॉ. जमाल सहाब क्या अब और इश्वर के सन्देश्ता नहीं आयेंगे ?या पूरी उमर कब्रों को पूजते रहेंगे ?

सहसपुरिया said...

इन्नालिल-लाहे-व-इन्ना-अलहे राजेऊन !!
बेशक हम सब को अल्लाह के पास वापस जाना हैं.
इस दुख की घड़ी में अल्लाह आप को सब्र करने की तौफ़ीक़ दे.( आमीन)

सहसपुरिया said...

इस दुःख की घडी में मैं आपके साथ हूँ

Sharif Khan said...

’’ हर चीज़ जो इस ज़मीन पर है फ़ना (ख़त्म) हो जाने वाली है। और केवल तेरे रब की आला (उँची) और करम करने वाली हस्ती ही बाक़ी रहने वाली है। ’’
जो पैदा हुआ है उसे मरना अवश्य है। मौत कब आनी ह,ै और कैसे आनी है, यह भी पहले से निश्चित किया हुआ है। इस प्रकार से जो बात हमारे वश के बाहर है उस पर हम कुछ नहीं कर सकते।
अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाह, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची है, का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता।
उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है।
मौत की आलोचना करने के बजाय इससे हमको सबक़ हासिल करना चाहिए। एक तो यह कि मौत कभी भी आ सकती है इसलिए हम को सदैव इसके लिये तैयार रहना चाहिए। तैयार ऐसे कि हम यह सोचें कि यदि अभी मर गए तो क्या हम किसी का कुछ बुरा तो नहीं चाह रहे है। किसी को हमसे कोइ्र्र कष्ट तो नहीं पहुंचा है, हमने किसी का दिल तो नहीं दुखाया है, आदि। इस प्रकार हमें सदैव अल्लाह को याद करते रहना चाहिए। ध्याान रहे अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलना ही अल्लाह को याद करना है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि, अल्लाह अल्लाह करते रहेें और ऐसे कार्य भी करते रहें जिनसे अल्लाह नाराज़ होता हो, यह अल्लाह को याद करना कदापि नहीं हो सकता।
अल्लाह नें बच्ची के रूप में जो अमानत उसके माता-पिता को, उसके लालन-पालन के लिये, सौंपी थी वह वापस ले ली। संतोष करने में यह बात सहायक तो हो सकती है परन्तु इतने दिन साथ रहने, इस बच्ची के पालन-पोषण से जो लगाव, प्यार और और ममता के भाव उत्पन्न होते हैं, उनकी भरपाई तब तक सम्भव नहीं है जब तक अल्लाह इस बच्ची के माता-पिता, बहन, भाई आदि सम्बन्धित सभी लोगों को सब्र और सन्तोष न दे।
आइए हम अल्लाह से दुआ करें कि वह अनम के परिवार वालों को सब्र दे। आमीन!

सत्य गौतम said...

दुख की इस घड़ी मे आपसे सहानुभूति

Shah Nawaz said...

बिलकुल सही कहा आपने, बेहतरीन, बहुत खूब!

Anonymous said...

ईश्वर इस घड़ी में आपको हौंसला दे..अनवर जमाल साहब मैं खुदा, आल्लाह, ईसाह, और मेरे भगवान से उस मासूम फूल सी कोमल बच्ची कि आत्मा कि शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ.. भगवान् उस मासूम से बच्ची को स्वर्ग में स्थान दे..
और आपको हिम्मत दे.

सत्य गौतम said...
This comment has been removed by the author.
सत्य गौतम said...

श्री शरीफ जी ने दुनिया की सबसे संकीर्ण जाति के मिथकों में से एक उपदेश ढूंढने में सफलता पाई, परंतु नजर पड़ गई हमारी और हमने उनकी सफलता पर बेरियों के कांटे बिखेर दिये।झूठी है यह कहानी। 1-अगर गांधारी को भूख लगी थी तो किसी भी मृत राजा के रथ से भोजन लेकर खा सकती थी क्योंकि जो राजा लड़ने आये होंगे वे अपने साथ भोजन पानी भी तो लाए होंगे।2-सुज्ञ जैसे लोग बताते हैं कि महाभारत का युद्ध परमाणु अस्त्रों से लड़ा गया था। सो वहां तो परमाणु विकिरण ने सारे पेड़ और लाशें ही जला डाली होंगी। फिर वहां मृतक और बेरी का पेड़ होना असंभव है।3-इसके बावजूद यह सच्ची बात है कि भूख बहुत पीड़ा और अपमान देती है।4-इस बात को आप दलितों के जीवन की, बाबा साहब के जीवन की सच्ची घटनाओं के माध्यम से भी तो कह सकते थे, क्यों ?5-परंतु आपको तो सवर्णों के दिलों को जीतना है । उनकी कारों और कोठियों से आप रूआब खाते हो।6-आपको सच से सरोकार नहीं है बल्कि आपको तो बुढ़ापे में थोड़ी सी वाह वाह चाहिये।7-अरे वाह वाह तो दलित भी कर सकते हैं। थोड़ा आप उनकी तरफ कदम बढ़ाकर तो देखें।उस झूठी कहानी का एक भाग दिखाता हूं आप सभी लोगों को - महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कौरवों की मां गान्धारी अपने सभी सौ पुत्रों के मारे जाने के समाचार से आहत होकर युद्ध क्षेत्र का अवलोकन करने पहुंची और जब अपने एक पुत्र के शव को पड़े देखा तो बिलखकर रोने लगी। इस मन्ज़र को देखकर वहां उपस्थित लोगों के हृदय भी द्रवित हो गए परन्तु इसके पश्चात् जब उसका एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे शव से लिपटकर रोने का क्रम जारी हुआ तो इस हृदय विदारक दृश्य ने सभी उपस्थित जनों को विचलित कर दिया। वहां उपस्थित लोगों के आग्रह पर श्री कृष्ण ने इस शोकपूर्ण वातावरण को बदलने का उपाय इस प्रकार से किया कि गान्धारी को भूख का एहसास करा दिया। इस प्रकार वह भूख से इतनी विचलित हुई कि अपने पुत्रों की मृत्यु के दुःख को भूलकर पेट की भूख मिटाने का उपाय सोचने लगी। चारों ओर नजर दौड़ाने पर एक बेरी का वृक्ष दिखाई पड़ा जिसपर एक बेर लगा हुआ था। अपनी क्षुधापूर्ति हेतु गान्धारी ने उस बेर को तोड़ने का प्रयास किया परन्तु वहां तक हाथ न पहुंच पाया। हाथ बेर तक पहुंचे, इसके लिए जो तरकीब अपनाई गई उसका वर्णन रोंगटे खड़े करने देने वाला तो है ही साथ ही उससे यह भी ज़ाहिर होता है कि भूख से जो पीड़ा उत्पन्न होती है वह सारे दुःखों पर भारी है। वर्णन कुछ इस प्रकार है जब बेर तोड़ने के लिये गान्धारी का हाथ वहां तक नहीं पहुंच पाया तो नीचे ज़मीन पर पड़े हुए अपने एक पुत्र के शव को पेड़ के नीचे तक खींच कर लाई और उस पर चढ़कर प्रयास किया परन्तु हाथ फिर भी बेर तक न पहुंच पाया। फिर दूसरे पुत्र का शव खींच कर लाई और उसको पहले पुत्र के शव के ऊपर रखा परन्तु फिर भी सफल न हो पाई। चूंकि वहां आस पास उसी के पुत्रों के शव पड़े थे इसलिये वह उन्हीं को एक के बाद एक लाती रही और बेर तोड़ने का प्रयास करती रही। इस दिल हिला देने वाली घटना के बाद भूख को गान्धारी ने इस प्रकार से बयान है -

वसुदेव जरा कष्टम् कष्टम दरिद्र जीवनम्।
पुत्रशोक महाकष्टम् कष्टातिकष्टम परमाक्षुधा।।

अर्थात् हे कृष्ण! बुढ़ापा स्वयं में एक कष्ट है। ग़रीबी उससे भी बड़ा कष्ट है। पुत्र का शोक महा कष्ट है परन्तु इन्तहा दर्जे की भूख सारे कष्टों से भी बड़ा कष्ट है। ध्यान रहे गान्धारी ने स्वयं यह सारे कष्ट झेले थे।