सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Friday, March 12, 2010
गायत्री को वेदमाता क्यों कहा जाता है ? क्या वह कोई औरत है जो ...Gayatri mantra is great but how? Know .

क्या गायत्री नाम की सचमुच कोई देवी है ? वेद माता कहलाने का गौरव इस अकेले मन्त्र को ही क्यों मिला ?
रिलैक्स द्विवेदी जी रिलैक्स !
हक़ीक़त आगाह जनाब वकील साहब , सादर प्रणाम
अल्लाह का अरबी में एक गुणवाचक नाम है वकील अर्थात कारसाज़ । यही नाम आपका भी है । आप ज्ञान परम्परा से समृद्ध एक गौरवशाली वंश का अंश भी हैं । आप मेरे बुजुर्ग हैं । आपका मैं सम्मान करता हूं और इन्शा अल्लाह सदा करता रहूंगा ।
मेरे ब्लॉग पर आकर आपने मेरा मान बढ़ाया है। मैं आपका तहे दिल से आभारी हूं । जैसे कि आप दूसरों से काफ़ी अलग हैं तो मेरा भी फ़र्ज़ है कि आपके सामने अपने दिल रूपी सीप में बन्द वह अनमोल विचार रूपी मोती रखंू जिसे मैंने आज तक किसी को नहीं दिखाया । आज पहली बार आपके सामने प्रकट कर रहा हूं ।
आप क़द्रदान हैं उम्मीद है कि क़द्र करेंगे ।
मनुष्य ने जब कभी ईश्वर को या उसके किसी गुण को या किसी मन्त्र की कल्पना मानवरूप में की तो उसे प्रकट करने के लिए उसने अलंकार का प्रयोग किया जो कालान्तर में जनमानस में एक स्वतन्त्र देवी या देवता के रूप में रूढ़ हो गयी । गायत्री मन्त्र के साथ भी यही हुआ।
क्यों सर मैं कुछ ग़लत तो नहीं कह रहा हूं ?
गायत्री मन्त्र वास्तव में एक महान मन्त्र है । इसकी महानता इतनी स्पष्ट है कि उसे समझने के लिए केवल इस पर एक दृष्टि डालना ही काफ़ी है ।
गायत्री मन्त्र
ओं भूर्भुव स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
अलग अलग वेदविदों ने इस मन्त्र का अर्थ अलग अलग तरह किया है । उनकी समीक्षा करके उनमें से किसी के ठीक और किसी के ग़लत होने का निश्चय करना हमारा आज का विषय नहीं है ।
आज का विषय है ‘ गायत्री के महात्म्य ‘ के वास्तविक कारण को आत्मसात करना ।
छंद के कुल 7 में से एक प्रकार का नाम है गायत्री । इस मन्त्र की रचना इसी छंद में हुई है ।
ऋग्वेद में कुल 2450 मन्त्रों की रचना इस छंद में हुई है तो भी प्रायः यह छंद जाना इसी मन्त्र की वजह से जाना जाता है । हालाँकि यह निचृद छंद ( लंगड़ा छंद ) कहलाता है । लेकिन इसके मात्रात्मक गुण दोष की विवेचना करना भी आज हमारा अभीष्ट नहीं है ।हमारा मक़सद यह भी नहीं है कि हम यह तय करें कि वास्तव में सविता का अर्थ परमात्मा है या कि सूरज ?
इस मन्त्र की महत्ता जानने के लिए आप इसके ‘ धियो यो नः प्रचोदयात ‘ पर ध्यान दीजिये ।
इसमें आप क्या पाते हैं ?
यह एक ऐसे आदमी की वाणी है जो ‘ बुद्धि ‘ से युक्त है । यह स्वर एक ऐसी प्रज्ञा से उद्भूत है जो जीवन को निरूद्देश्य बिताने और व्यर्थ गंवाने के लिए तैयार नहीं है । सारी ‘शक्तियां जिस ‘ बुद्धि ‘ के अधीन हैं । वह उस बुद्धि को दिव्य चेतना से आप्लावित कर देना चाहता है ताकि वह उस महान कर्म को सम्पन्न कर सके जो कि वास्तव में उसकी उत्पत्ति से सृष्टिकत्र्ता को वांछित है ।
सविता का अर्थ चाहे सूर्य हो या फिर परमात्मा , यह विषय आज गौण है । मुख्य चीज़ वह तड़प ,वह दर्द है जो इस मन्त्रकत्र्ता के दिल को व्यथित कर रहा है ।
गायत्री छंद में रचे गये इस मन्त्र का सबसे बड़ा सरमाया मेरी नज़र में यही दर्द है । यही दर्द एक मनुष्य के हृदय में ज्ञान के आलोक को जन्म देता है और तभी मनुष्य को वह मार्ग स्पष्ट दिखाई देता है जो वास्तव में मानवता का मार्ग है । इसी मार्ग को धर्म के नाम से भी जाना जाता है ।
धर्म से ही मनुष्य को अपने गुण रूचि स्वभाव और योग्यता के अनुसार कर्म करने की प्रेरणा मिलती है । मनुष्य की रचना ईश्वर ने कर्म के लिए ही तो की है । पर कौन सा कर्म ?
कर्म की संज्ञा मनुष्य की हरेक क्रिया को नहीं दी जा सकती ।जब तक मनुष्य की बुद्धि ईश्वरीय प्रेरणा से संपन्न नहीं होती है तब तक उसे कर्म का भी ज्ञान नहीं होता । कर्म का तात्पर्य सत्कर्म से है । एक सत्कर्मी व्यक्ति कभी कुकर्म नहीं कर सकता और हालात के दबाव में या अल्पज्ञता के कारण यदि वह कुछ ग़लत कर भी गुज़रता है तो भी वह उसे अपना मार्ग बनाने वाला नहीं है । क्योंकि जो ज्ञान उसने पाया है उसने उसे पाने के लिए असह्य कष्ट उठाया है ।
अपने बच्चे के लिए एक मां को कुर्बान होने तक के लिए जो चीज़ तैयार करती है वह एक दर्द ही तो है । यही दर्दमन्द दिल हक़ीक़त में दरकार है । इससे निकलने वाली हर पुकार मालिक को स्वीकार है । ऐसा दर्द आपके और मेरे दिल में जाग जाए । गायत्री मन्त्र के कत्र्ता का हेतु यही है । यदि हम इस भाव से रिक्त होकर मात्र इसका जाप करते रहे तो हमारा अभीष्ट कभी सिद्ध होने वाला नहीं है । न ही मन्त्रकत्र्ता ने कभी ऐसा किया है और न ही कहीं किसी को करने के लिए कहा है ।
सवाल यह नहीं है कि हम गायत्री को कितना जपते हैं ?
बल्कि सवाल यह है कि हम गायत्री को कितना जी पाते हैं ?
मैं गायत्री को जपता भी हूं और जीता भी हूं और आप ...?
यही भावना हमें अज्ञान से और भारत को पतन से मुक्ति दिलाएगी । यही मन्त्र भाव हमें मार्ग दिखाएगा । लोक परलोक की सफलता इससे सिद्ध हो सकती है । क्या इसमें किसी को कोई ‘शक है ?
यही भावना हमें अज्ञान से और भारत को पतन से मुक्ति दिलाएगी । यही मन्त्र भाव हमें मार्ग दिखाएगा । लोक परलोक की सफलता इससे सिद्ध हो सकती है । क्या इसमें किसी को कोई ‘शक है ?
जिसे मार्ग मिल जाए उसे मंज़िल ज़रूर मिलती है ।
मानवता आज अपनी मंज़िल को तलाश रही है । वह अपनी मंज़िल पा सकती है बशर्ते कि वह गायत्री पर विचार करे और उसके उस दर्द को उस तड़प को अपने दिल में जगा सके जो कि ज्ञान को जन्म देता है। ज्ञान को वेद कहते हैं ।
सर्वसमाधानकारी सर्वहितकारी ब्रह्म निज ज्ञान वेद को भी परमेश्वर ने जब कभी प्रकट किया तो किसी नेक पाक और इनसानियत के दर्दमन्द दिल पर ही प्रकट किया । आज भी वेद रहस्य को केवल वही समझ सकता है जिसके दिल में मानवता का दर्द है ।
गायत्री मन्त्र उस वेदना भाव को जगाता है जिससे वेद प्रसूत होता है । इसी कारण इसे वेदमाता कहते हैं ।
मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कहा वकील साहब ?
कृपया पाठक वर्ग भी हमें अपने ख़याल से आगाह करे ।
Check your spiritual G.K.
गायत्री मन्त्र चारों वेदों में केवल ऋग्वेद दो जगह में पाया जाता है ।
लेकिन कहां कहां पाया जाता है ?
और दोनों के अक्षरों में क्या अन्तर है ?
मैं चाहूंगा कि ये जानकारी यहां पधारने वाले ब्लॉगर्स बन्धु दें ताकि सार्थक संवाद की एक मिसाल क़ायम हो ।
जिसे जिस ज्ञानी का अनुवाद पसन्द हो लाए और सबको दिखाए ।
गायत्री मन्त्र की अज़्मत को देखते हुए इसे एक दिन से ज़्यादा दिन दिया जाना उचित है ।
कितने दिन ?
यह आप तय करेंगे ।
जब आपकी टिप्पणियां मिलनी बन्द हो जाएंगी । तभी मैं इस ब्लॉग पर नई पोस्ट क्रिएट करूंगा ।
मैं गायत्री का जी भर कर आनन्द लेना चाहता हंू ।
आज मैं न तो किसी अन्य का नाम लूंगा और न ही कोई विषय ही छेड़ूंगा ।
हे परम प्रधान प्रभु पालनहार हमें सन्मार्ग दिखा ।
ग़ज़ल
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा ख़ुदा देगा ।
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।
हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।
इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘
अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।
सुदर्शन फ़ाक़िर
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