सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Sunday, September 23, 2012

वैदिक साहित्य और क़ुर'आन में प्रलय और स्वर्ग नरक की समानता Swarg Narak


जिस प्रकार इस लोक मे प्रत्येक वस्तु का एक अंत हैं, उसी प्रकार इस वर्तमान जगत् का भी एक अंत हैं। इस संसार के इस अंत और इस महा विनाश को प्रलय कहा गया हैं। अरबी मे इसको कियामत कहा जाता है। कुरआन मे प्रलय अर्थात कियामत की चर्चा संक्षिप्त मे कर्इ स्थान पर आर्इ हैं किन्तु र्इश-दूत (पैगम्बर) हजरत मुहम्मद (स0) के वचनों के संकलन (हदीस) मे वह सविस्तार वर्णित हैं। इसी प्रकार भारतीय धर्मग्रन्थों में भी प्रलय (कियामत) की चर्चा बार-बार और सविस्तार विद्यमान है।यथा: प्रलय का समय निकट आने पर मानव-समाज की स्थिति क्या होगी? प्रलय के निकट समय मे क्या चिहन प्रकट होंगे? इत्यादि। 
  
जब प्रलय का समय नजदीक आ जाएगा तो नरसिघा को फूंका जाएगा। आरंभ मे तो सुरीली आवाज आएगी और लोग गाने-बजाने के रसिया हो जाने के कारण के उस आवाज की ओर लपकेंगे। धीरे-धीरे वह आवाज तेज होती जाएगी। यहां तक कि लोग घबराकर उससे भागने लगेंगे। फिर वह असहय हो जाएगी और लोग घबराहट मे मरने लगेंगे। एक बार फिर नरसिंघा में फूंक मारी जाएगी, तो ब्रहम्माण्ड की यह सारी व्यवस्था बिगड़ जाएगी। धरती-आकाश सब टूट-फूट जाएंगे। फिर एक फूक मारी जाएगी, तो एक दूसरी बहुत धरती तांबे की धातु से बनी खड़ी होगी और संसार मे जन्मे प्रथम मानव के समय से अंतिम समय तक के सारे लोग, धरती मे उनके जहां-जहां भी शरीरांश बिखरे पड़े होंगे, सब एकत्रित होकर शरीर-धारण कर लेंगे। प्रलय के बाद के जीवनकाल को परलोक (आखिरत) कहा जाता हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण (12/4/14-18) के अनुसार जल, वायु, इत्यादि सब अपने उत्पादकों तत्व मे लीन होकर नष्ट हो जाएंगे। सबके नष्ट हो जाने के बाद शुद्ध , निर्लेप, मात्र ब्रह्म रह जाएगा। शेष संसार अव्यक्त रूप में परिवर्तित हो जाएगा। कुरआन का भी यही कहना हैं कि-

‘‘इस पृथ्वी पर जो कुछ या कोई है वह सब मिट जाएगा। एक कृपाशील प्रभु पालनहार का प्रतापवान स्वरूप ही शेष रह जाएगा।’’ 

उत्पादक तत्व मे लीन हो जाने की बात गुरू नानक जी ने भी कही हैं, किन्तु वह यह लय परमात्मा मे हो जाती हैं, मानते हैं। उनकी यह बात पता नहीं कि अपने मौलिक रूप में हैं या बाद मे बदल दी गर्इ है। मुझे यह दूसरी बात प्रतीत होती हैं। तत्वों का तत्वों में लीन होना समझ में आता हैं, परन्तु परमात्मा में लीन होने का अर्थ यह हैं कि मनुष्य और अन्य सम्पूर्ण वस्तुएं परमात्मा के शरीर का अंश हैं और उसी से निकली है। यह धारणा किसी प्रकार से सही नहीं हैं। तथ्य यह हैं कि सब कुछ परमात्मा की सृष्टि हैं, न कि स्वयं परमात्मा या उसका कोई अंश।

श्रीमदभागवत महापुराण के द्वादस स्कन्ध में प्राकृतिक प्रलय होने की बात आर्इ हैं। उल्लिखित है कि उस समय सैकड़ो वर्ष तक वर्षा नहीं होगी, जिससे मनुष्यादि जीव तड़प-तड़प कर कर विनष्ट हो जाएंगे अनन्तर भगवान के मुख से भड़की हुई अग्नि समस्त चराचर को फूंक डालेगी।

इस प्रकार यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रलय मे विश्वास इहलोक और परलोक के बीच की एक सीढ़ी है, यह उसी प्रकार कि जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन के बाद मृत्यु के बाद यमलोक(पितरलोक) फिर परलोक है। 

परलोक (अंतिम दिन) 
प्रलय के बाद जो लोक या जगत् अस्तित्व मे आएगा उस लोक या जगत को भारतीय ग्रन्थों मे परलोक और इस्लाम मे आखिरत के नाम से उल्लेख किया गया है । समस्त मनुष्य इहलाके के आरंभ से अंत तक जो मृत्यु पाकर पितरलोक मे प्रवेश करेंगे। उस लोक के तीन चरण है।

1-    पुनर्जीवित होकर ईश्वर के समक्ष एकत्रित होना
2-    कर्मो की जॉच, तौल और फैसला 
3-    कर्मानुसार स्वर्ग या नरक मे प्रवेश पाना जैसा कि वृहदारण्यकोपनिषद की बात आ चुकी है कि मनुष्य के लिए दो ही स्थान हैं। एक इहलाके, दूसरा परलोक। तीसरे बीच वाले का नाम संध्या है। इसी प्रकार आदि शंकराचार्य ने भी अपने भाष्य मे यही बात कही हैं। पारलौकिक जीवन को वेदों मे दिव्य-जन्म कहा गया है। ऋग्वेद (1/44/6) के ये शब्द हम नही भूल सकते ‘‘प्रतिरन्नायुर्जीवसें नमस्या दैव्यं जनमं’’ अर्थात तुम्हें फिर से आयु एवं जीवन प्राप्त होना निश्चित है। स्पष्ट हैं कि मृत्यु के पश्चात केवल एक और जीवन हैं, न कि इसी लोक मे शारीरिक बदलाव बार-बार होते रहना हैं।

ऋग्वेद (1/58/6) मे एक स्थान पर कितनी साफ बात कही गर्इ हैं: होतारमग्ने अतिथि वरेण्यं मित्र न शेवं दिव्याय।।अर्थात हे अग्नि, दिव्य जन्म हवन करनेवाले को नही, प्रत्येक समय संसार के मित्र (परमेश्वर) का वरण करनेवाले को हैं। अत: वर्तमान जन्म के बाद केवल एक और जन्म है और वह दिव्य जन्म हैं। एक स्थान पर द्विजन्माने का शब्द आया हैं, अर्थात दोनो को माननेवाले। इस प्रकार दिव्य जन्म, अंतिम दिन, दिव्याय जन्मने जैसे शब्दों से पुन: जीवित होने एवं परलोक की धारणा की पुष्टि स्पष्टता: होती हैं और साथ ही इसी दुनिया मे बार-बार जन्म लेने की धारणा अवैदिक ठहरती हैं। वेदो के पूर्व में आए महर्षि (दूत) भी केवल दो ही जन्म की बात करते रहे है, कर्इ जन्मों की नही। इस प्रकार यही विश्वास सत्य ठहरता है। अन्य दूसरें बड़े धर्म इस्लाम और ईसाई (Christian) भी दो ही जीवन मानते हैं-इहलौकिक एवं पारलौकिक जीवन। कई विद्वान इस प्रश्न पर दार्शनिकीय धोखा खा चुके है। हम धोखा न खाएं। 

शतपथ ब्राह्मण में कहा गया हैं कि उस लोक मे कर्मो को तराजू पर रखा जाएगा और पलड़े में जो कर्म भारी होगा, मनुष्य उसी को प्राप्त होगा। जो इस रहस्य को समझता है वह इस लोक मे अपने को जांचता रहता हैं कि उसके कौन-से कर्म हलके और कौन-से भारी हो रहे है। सतर्क लोग उपर उठ जाते हैं, महान बन जाते हैं। कारण यह कि वे सदैव अच्छे कर्म करने का प्रयास करते हैं और अच्छे कर्म अर्थात पुण्य कर्म सदैव प्रबल यानी भारी होते है और पाप के कर्म हलके (11/2/7/33)। मनुस्मृति में भी कहा गया हैं कि आत्मा-स्वरूप् पुरूष (देवा) मनुष्य के कर्मो को देखते रहते हैं, हालांकि मनुष्य यह समझता है कि उसे अकेले मे कोई नही देखता। पुराणों मे उन आत्मा-स्परूप् पुरूषों को चित्रगुप्त का नाम दिया गया हैं औ कुरआन में ‘किरामज कातिबीन’ कहा गया हैं। कुरआन में हैं कि जिसके सुकर्मो का पलड़ा भारी होगा, वह सुखदायक जीवन पाएगा और जिसका पलड़ा हलका हो गया तो उसका ठिकाना हावियां हैं। हाविया के विषय मे कुरआन मे ही स्पष्ट किया गया हैं कि वह दहकती हुई आग अर्थात नरकाग्नि है। (कुरआन 101/6-11)


परलोक  मे फैसले से पूर्व कर्मो को तौलने की एक प्रक्रिया होगी।इससे मनुष्य अपने बारे मे स्वंय समझ सकेगा कि हमारी वास्तविक स्थिति क्या है। फिर कुरआन के अनुसार मनुष्य को उसके बड़े-बड़े दुष्कर्मो को सार्वजनिक रूप् से सुनाया जाएगा और उसको अपना जवाब देने का अवसर दिया जाएगा। यदि वह किसी भी बुरे कर्म के चार्ज को झुठलाएगा तो तुरन्त र्इश्वर उसके हाथ, पैर, जिहवा इत्यादि अंगो को शक्ति दे देगा  िकवे बोले। मनुष्य ने जिन अंगो को उस बुरे कर्म में प्रयोग किया होगा, वे अंग तत्काल उसके विरूद्ध गवाही देने लगेंगे। उनकी गवाहियों को सुनकर वह सटपटा जाएगा। कुछ बुरे कर्म व्यक्ति के स्वयं से संबंधित और कुछ अन्य से संबंधित हो सकते हैं। अन्य से संबंधित दुष्कर्म मे जिन व्यक्तियों के खिलाफ उसने गलत काम किया होगा, वे बुलाए और वे अपनी गवाहियां पेश करेंगे। फिर तुरन्त उनके सामने चित्रगुप्त (पवित्र लेखक फरिश्तों) द्वारा क्षण-क्षण का तैयार किया गया रिकार्ड सामने रख दिया जाएगा। जीवन का सम्पूर्ण रिकार्ड देखकर मनुष्य बोल उठेगा कि भला यह कैसा रिकार्ड हैं जो तैयार हो गया और हमे जान भी न सके। इसमें तो छोटी-बड़ी कोर्इ ऐसी चीज नही हैं जो हमने अंजाने मे भी की हो और वह दर्ज होने से छूट गर्इ हो (कुरआन, 18: 49)। इतने विस्तृत रिकार्ड को देखकर व्यक्ति कायल हो जाएगा  िकवह इसका भागी हैं। बुरा व्यक्ति अपने को कोसेगा। वह कहेगा कि काश! मुझे पुन: सांसारिक जीवन देकर भेज दिया जाता, तो अवश्य ही अच्छे कर्म करके आता (कुरआन, 39:58)। किन्तु यह तो मात्र उसकी इच्छा ही होगी। उसी समय नरक या स्वर्ग का फैसला सुना दिया जाएगा।

यही फैसले का वह अंतिम दिन है, जिसकी ओर समस्त ईश-दूत (महर्षिगण अर्थात पैग़म्बर) ध्यान दिलाते रहे। लेकिन मनुष्य ने ध्यान नही दिया और वह इसी सांसारिक जीवन को सब कुछ समझता रहा । वह इस भ्रम मे पड़ा रहा कि मरने के बाद पुन: इसी संसार में जीवन पाना है। ऐसा व्यक्ति कैसी-कैसी यातनाओ से पीड़ित होगा, आज वह उसकी कल्पना भी नही सकता। इसी प्रकार जिसने उस दिन मे विश्वास करके सतर्क जीवन बिताया और दूतों को कहना माना, सुकर्म किया उसके लिए स्वर्गलोक का शाश्वत सुखधाम हैं, जिसमें सुख ही सुख हैं।अथर्ववेद मे कहा गया: स्वर्गा लोका अमृतेन विष्ठा (18/4/4)

अर्थात स्वर्गलोक अमरता से परिपूर्ण हैं। 
वेदों मे स्वर्गलोक का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋग्वेद (9/113/11)मे यह कामना की गई हैं कि आनन्द और स्नेह जिस लोक मे वर्तमान रहते है, और जहां सभी कामनाएं इच्छा होते ही पूर्ण होती हैं। उसी अमरलोक में मुझे जगह दो।

इसी प्रकार की कामना अथर्ववेद (4/34/6) में भी की गई हैं। इसमें कहा गया हैं कि घी के प्रवाहवाली मधुरस के तटवाली, निर्मल जल से युक्त जल, दही और दूध्र से परिपूर्ण धाराएं मुझे प्राप्त हो। ऋग्वेद में यह भी कहा गया हैं कि अच्छा व्यक्ति स्वर्ग मे सुन्दर नारी प्राप्त करता है।

इसी प्रकार नरक का भी चित्र मिलता है। कहा गया हैं कि नरक अत्यन्त यातना का लोक है। वेदों, मनुस्मृति, भागवत महापुराण इत्यादि में नरक की भयानकता और विकरालता पढ़ कर मन अत्यंत भयाकुल हो उठता हैं और उससे बचने की विकलता पैदा हो जाती हैं। यही भावना मूल्यावान भी हैं और इसके बिना हम इहलोक मे भी शान्ति नहीं पा सकते हैं।



श्रीमद्भागवत महापुराण के पंचम स्कन्ध के अनुसार अट्ठाईस प्रकार के नरक है। आत्मा का हनन करनेवाले, दुराचारी, पापी, असत्य-गामी लोग नरक को प्राप्त होते है। (ऋ0 4/5/5 एवं यजु0 40/3) यह नियमगत स्थिति मृत्यु के प्श्चात आत्मा की है।नरक को कौन लोग जाते हैं और स्वर्ग को कौन? इन विषयों पर धर्मग्रन्थों में काफी विस्तृत चर्चा है। कुरआन तो इस विषय मे अनुपम है।कुरआन बार-बार नरक के दृश्य को सामने लाता है और तर्क देकर मनुष्य को सत्यमार्गी बनाना है। काश! सारे मनुष्य इस ग्रन्थ को पढ़ते और समझने का यत्न करते।

लेखक : डा0 मकसूद आलम सिद्दीक
Source : http://www.islamsabkeliye.com/info-details?id=205

2 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

Anonymous said...



प्रिय ब्लॉगर मित्र,

हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम

http://indiantopblogs.com

पुनश्च:

1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।