सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, September 1, 2012

नफ़ाबख्श बनिए और लोगों के दिलों पर राज कीजिए Spiritual Love

मुसीबतें इंसान के जीवन का हिस्सा हैं। मुसीबतें कभी अपनी ग़लती की वजह से आती हैं और कभी दूसरों की वजह से। मुसीबतें जब दूसरों की ग़लतियों की वजह से आती हैं तो लोग बहुत शोर मचाकर बताते हैं कि फ़लां शख्स या फ़लां पार्टी बड़ा ज़ुल्म कर रही है लेकिन मुसीबतें जब ख़ुद उसकी अपनी ग़लती की वजह से आती हैं तो वह इक़रार तक नहीं करता कि यह मुसीबत मेरी ग़लती की वजह से आई है। यह इंसान की आम फ़ितरत है। आज के मुसलमानों का अमल भी यही है। यह एक बड़ी कमी है और इसका बुरा असर यह पड़ता है कि समस्या हमेशा ज्यों की त्यों बनी रहती है और वह समय के साथ बढ़ती भी रहती है।
दूसरे जो कर रहे हैं, उसे हम बदल नहीं सकते लेकिन अपने आप को हम जब चाहे तब बदल सकते हैं। अगर हम ख़ुद को बदल लेते हैं तो हमारे प्रति दूसरों का व्यवहार बदलने लगता है। यह भी एक सच्चाई है।
अपने आप को बदल कर हम दूसरों को बदल देते हैं। अपनी समस्याओं को हल करने का प्रैक्टिकल तरीक़ा यही है।

धरने प्रदर्शन समस्या का हल नहीं हैं
आप समस्या को कभी धरने प्रदर्शन और ग़ुस्से से हल नहीं कर सकते। आप राजनेताओं से मांग कर सकते हैं लेकिन वे जो भी फ़ैसला लेते हैं उसके पीछे जनता का लाभ और न्याय नहीं होता बल्कि उनका अपने राजनीतिक नफ़े-नुक्सान का गणित होता है। जिसे जिसके समर्थन में लाभ नज़र आता है। वह उसी का समर्थन करता है। आप देखेंगे कि एक लीडर हिन्दू है लेकिन वह मुसलमानों के समर्थन में खड़ा है और हिन्दुओं पर गोली चलवा रहा है और आप ऐसा भी पाएंगे कि एक लीडर मुसलमान है लेकिन वह मुसलमानों के खि़लाफ़ और हिन्दुओं के साथ खड़ा है। जब राजनीति का यह रूप बन चुका हो तो फिर न्याय तो किसी के साथ होना ही नहीं है। ऐसे में जिसके पास धन और संगठन की शक्ति होगी। उसी की बात ऊपर रहेगी। यह समाज के लिए कोई शुभ लक्षण नहीं है।

मुसलमानो ! हक़ अदा करो
यह मुसलमानों की ज़िम्मेदारी थी कि वे समाज में न्याय को आम करें।
हमें यह मिलना चाहिए, यह हमारा हक़ है लेकिन फ़लां समाज के लोग हमें हमारा हक़ नहीं मिलने देते। मुसलमानों की यह एक आम शिकायत है।
दूसरा समाज हमें हमारा हक़ नहीं मिलने दे रहा है लेकिन हम अपने आप को और अपनी औलाद को उनका जो हक़ ख़ुद दे सकते हैं। उसे उन्हें देने से कौन रोक रहा है ?
अल्लाह ने मां-बाप की जायदाद में लड़कों के साथ लड़कियों का हिस्सा भी रखा है और यह हिस्सा एक मुसलमान अपनी लड़कियों को जब चाहे तब दे सकता है।
क्या मुसलमान अपनी लड़कियों को अपनी जायदाद में हिस्सा देते हैं ?
अल्लाह ने निकाह के वक्त मुसलमान मर्द पर पत्नी को मेहर देना निश्चित किया है। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने और उनके साथियों ने हमेशा मेहर नक़द अदा किया है।
क्या हम अपनी पत्नी को मेहर की रक़म निकाह के वक्त देते हैं ?
जो मेहर निकाह के वक्त अदा होना चाहिए, उसे तलाक़ के वक्त अदा किया जाता है और तलाक़ के केस चंद होते हैं और बाक़ी केस में तो पत्नियों का मेहर शौहर पर उधार ही रह जाता है और इसी हाल में वह मर जाता है। मरने के बाद पत्नी उसे माफ़ न करे तो क्या करे ?
अपनी जायदाद में लड़कियों को हिस्सा देने वाले और निकाह के वक्त मेहर नक़द अदा करने वाले मुसलमान भी हमारे समाज में मौजूद हैं लेकिन वे बहुत कम हैं।
इसी तरह मस्जिद का भी हक़ है कि मुसलमान उसमें नमाज़ क़ायम करें।
क़ुरआन का भी हक़ है कि उसे पढ़ा जाए, उसे समझा जाए, उसके बताए रास्ते पर चला जाए।
हमारे माल का भी हम पर हक़ है कि हम उसमें से हर साल ज़कात निकालें और उसके बाद भी कोई रिश्तेदार और पड़ोसी हमें परेशान नज़र आए तो हम उसे सदक़ा (दान) और क़र्जे हसना दें, उसे उपहार दें। पड़ोसी का धर्म चाहे कुछ भी हो।
हमारे बच्चों का भी हम पर हक़ है कि हम उन्हें पढ़ाएं और उन्हें सही समझ दें।
हमारी सेहत का भी हम पर हक़ है कि हम बीमारों की सेवा करें।
हमारे दोस्तों, पड़ोसियों और हमारे रिश्तेदारों और सभी मिलने जुलने वालों का हम पर अल्लाह ने हक़ मुक़र्रर किया है।
हमें यह देखना होगा कि हम ये हक़ कितने और कैसे अदा कर रहे हैं ?

अगर हम नमाज़ पढ़ना चाहें, क़ुरआन पढ़ना चाहें, ज़कात और सदक़ा देना चाहें, अपनी बेटियों और अपनी पत्नियों को उनका हक़ देना चाहें, अपने पड़ोसियों से अच्छा बर्ताव करना चाहें, बीमारों की सेवा करना चाहें, अपने आप को बदलना चाहें तो कौन सा संघ, दल और परिषद आड़े आ रहा है ?
कोई भी नहीं, लेकिन फिर भी हम वे हक़ अदा नहीं करते , जिन्हें हम पर अल्लाह ने वाजिब और लाज़िम ठहराया है।
जब हम अपने अल्लाह की ही नहीं सुन रहे हैं तो फिर उसके बन्दे भला हमारी कैसे सुन सकते हैं ?

दुनिया वालों के दिल अल्लाह की मुठ्ठी में हैं
तुम एक अल्लाह के सामने झुकोगे तो सारी दुनिया के दिल तुम्हारे लिए नर्म हो जाएंगे।
ग़लती मुसलमानों की अपनी है और उसे सुधारना भी हमें ख़ुद ही है।
परेशानी यह नहीं है कि मुसीबतें आ रही हैं बल्कि सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि अपनी तबाही के लिए ज़िम्मेदार हम ख़ुद हैं लेकिन दोष दे रहे हैं दूसरों को।
हमारे मां-बाप हमसे ख़ुश होते, वे हमें दुआएं दे रहे होते। अपनी बहनों को हम अपने मां-बाप से अपने घर, खेत और खलिहान में हिस्सा दिलवा रहे होते, अपनी बीवी और बेटियों को अपनी जायदाद में हिस्सा दे रहे होते, अपने बच्चों को पढ़ा रहे होते, अपने पड़ोसियों के हम कुछ काम आ रहे होते तो ये सब काम हमें और हमारे परिवार को मज़बूत कर चुके होते। ये काम हमारी छवि को भी समाज में बेहतर बनाते।
हम मज़बूत होते तो हम पर ज़ुल्म कौन कर पाता ?
अपनी कमज़ोरी के ज़िम्मेदार हम ख़ुद हैं
हमें मानना होगा कि ख़ुद को कमज़ोर बनाने वाले हम ख़ुद हैं।
हमें मानना होगा कि एक इसलाम में दर्जनों फ़िरक़े खड़े करने वाले हम ख़ुद हैं।
हमें मानना होगा कि सारी फ़िरक़ेबंदी और जहालत को दूर करने वाले ‘क़ुरआन,सीरत और सुन्नत‘ को न समझने वाले और उनके खि़लाफ़ चलने वाले हम ख़ुद हैं।
दीन की सही समझ रखने वाले और हक़ अदा करने वाले मुसलमान भी हमारे दरम्यान हैं लेकिन वे कम हैं। नेकी और भलाई का रिवाज और सही-ग़लत की तमीज़ आज भी उन्हीं की वजह से बाक़ी है। हरेक तबक़ा और हरेक समुदाय उन्हें आदर देता हुआ मिल जाएगा।
ये वे लोग हैं जो मुसलमानों को हमेशा सियासी पार्टियों का मोहरा न बनने के लिए और बुराईयों से तौबा करने के लिए कहते हैं। बुराईयों से तौबा हमने की नहीं और सारी सियासी पार्टियों के झंडे हमने और पकड़ लिए। मज़हबी फ़िरक़ेबंदी के साथ मुसलमानों में सियासी अखाड़ेबाज़ी भी होने लगी। बंटे हुए लोग अब और बंट गए।
इसलाम हमें एकता और भाईचारा सिखाता है और हमारा हरेक क़दम इसी के खि़लाफ़ उठ रहा है।

दोस्त-दुश्मन सबके लिए दुआ करो
किसी संघ, दल और परिषद के लोग हौआ नहीं हैं। ये लोग भी आम इंसान हैं। इनमें से कुछ हमारे टीचर हैं। जो हमें ईमानदारी से पढ़ाते हैं। इनमें से कुछ लोग हमारे साथ कारोबार करते हैं। जो ईमानदारी से हमें हमारा पेमेंट देते हैं। इनमें से कुछ लोग डॉक्टर हैं। जो हमारा इलाज करते हैं। ये लोग हमारी शादियों में आते हैं और हम इनकी ख़ुशी और ग़म में शरीक होते हैं। ये लोग हमारे पड़ोसी हैं। जो बात दूसरे इंसानों को प्रभावित करती है, वह इन्हें भी प्रभावित करती है।
अच्दा बर्ताव हमेशा अच्छा असर छोड़ता है। हमने कब इनके लिए अपनी नमाज़ में दुआ की ?, कब इनके साथ हमने अच्छा बर्ताव किया ?
हमने इनके लिए दुआ की होती और इनसे कहा होता कि हम आपकी अमानत आपकी सेवा में लाए हैं तो इनसे हमारे रिश्तों की कैफ़ियत आज कुछ और होती।

बुराई को भलाई से दूर करो
हम इनसे डर रहे हैं और इनके पास जाकर देखो तो पता चलता है कि ये बेचारे हमसे डरे हुए हैं। नुक्सान का डर नफ़रत और ग़ुस्सा पैदा करता है। ग़ुस्सा अक्ल को खा जाता है। ऐसे में जो भी फ़ैसला लिया जाता है, वह ग़लत होता है और उसका नतीजा भी ग़लत ही निकलता है। उनका फ़ैसला भी ग़लत और हमारा फ़ैसला भी ग़लत और अंजाम देश की तबाही। गेहूं के साथ घुन की तरह दूसरे भी पिस रहे हैं।
क़ुरआन (23:96) कहता है कि ‘बुराई को उस ढंग से दूर करो जो सबसे उत्तम हो।‘
इन्हें ईद पर अपने घर बुलाओ। इन्हें शीर सिवईं खिलाओ। ये पास आएंगे तो इनके दिल का डर निकलेगा। डर जाएगा तो नफ़रत और ग़ुस्सा भी जाएगा और साथ में बहुत सी ग़लतफ़हमियां भी चली जाएंगी लेकिन उनकी कुछ शिकायतें तो जायज़ भी होंगी। उन्हें दूर करना होगा।

कितने ही केस ऐसे हैं कि जब हम संघ, दल और परिषद के लोगों को मुसलमानों के काम आते हुए देखते हैं। ये वे मुसलमान होते हैं जिन्हें वे पर्सनली जानते हैं। वे मुसलमानों के ही नहीं बल्कि इसलाम के काम भी आते हैं। वे मस्जिद की तरफ़ भी आते हैं और वे मस्जिदें भी बनाते हैं। उनका यह हाल तो तब है जबकि अभी हमने उन्हें ढंग बुलाया ही नहीं। अल्लाह की मर्ज़ी, वह अपनी मस्जिदों को जिनसे चाहे आबाद कर दे।

हमें अपना नज़रिया बदलना होगा
कमी संघ, दल और परिषद के लोगों की नहीं है। अगर हम उन्हें अपने व्यवहार से प्रभावित नहीं कर पाए हैं तो कमी हमारी ख़ुद की है।
उनमें से कितने ही लोग हैं जो मुसलमान सूफ़ियों के पास जाते हैं बल्कि वे तो सैकड़ों साल से सूफ़ियों के मज़ार पर फूल और चादरें चढ़ा रहे हैं। उन्हें सूफ़ियों के मज़ारों से श्रद्धा है लेकिन हमसे नहीं है तो वजह सिर्फ़ यही है हमारा चरित्र और हमारा अमल उनसे मैच नहीं करता।
संघ, दल और परिषद के लोगों में श्रद्धा है लेकिन हमारे लिए नहीं है तो इसमें कमी उनकी नहीं है बल्कि हमारी अपनी है।
ये लोग भी नफ़रत के क़ाबिल नहीं हैं, ये लोग भी पराए नहीं हैं।
ये भी आदम की औलाद और उसी एक मालिक के बंदे हैं जिसके कि हम हैं। ये हमारे भाई और बहन हैं। अपने परिवार के किसी सदस्य से शिकायतों के बावजूद भी हम उसे सरे आम रूसवा कभी नहीं करते लेकिन संघ, दल और परिषद के लोगों के लिए हमारे जज़्बात बदल जाते हैं।
इसकी वजह सिर्फ़ यही है कि हम उन्हें अपने भाई और बहन की नज़र से, अपने परिवार की नज़र से नहीं देखते। राजनीतिक स्वार्थ ने हमारी नज़र बदल दी है। हमें अपनी नज़र और अपने नज़रिए को दुरूस्त करने की ज़रूरत है।
हर वक्त हम यही सोचते रहते हैं कि बस हमारा भला हो जाए।
मुसलमान का काम यह नहीं है बल्कि यह सोचना है कि हमसे दूसरों का भला हो जाए।

जो सेवा करता है, वह स्वयं ही महान हो जाता है। जो महान होता है, उसके सामने दूसरों का क़द ख़ुद कम हो जाता है।
अपना क़द ऊंचा दिखाने के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि दूसरों का सिर काट दिया जाए बल्कि इसका तरीक़ा यही है कि अपने आपको ऊंचा उठाया जाए।

अल्लाह से ऊंचा कौन होगा ?
और उसके अलावा कौन है जो इंसान को ऊंचा उठने का रास्ता दिखा सके ?
जो अल्लाह की तरफ़ बढ़ता है, वह ख़ुद ही ऊंचा उठता चला जाता है। हिन्दा ने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु को क़त्ल करवाया और उनका सीना चीरकर उनका कलेजा चबाया। कितना बड़ा ज़ुल्म और कैसी ग़ैर इंसानी हरकत की गई लेकिन जब वे पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम विजय के बाद मक्का में दाखि़ल हुए तो उन्होंने उनके साथ क्या किया ?
उन्होंने उसे माफ़ कर दिया। उसकी तरह दूसरे भी थे जिन्होंने उनके सैकड़ों साथियों को बेवजह क़त्ल कर दिया था। पैग़म्बर मुहम्मद साहब स. ने उन तमाम क़ातिलों को माफ़ कर दिया। मक्का में आबाद हज़ारों जानी दुश्मनों को उन्होंने न सिर्फ़ माफ़ कर दिया बल्कि वह सम्पत्ति भी उनसे वापस न ली, जिसे उन्होंने मुसलमानों से जबरन हथिया लिया था। इसका नतीजा यह हुआ कि दुश्मन भी उनके दोस्त हो गए।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब स. ने हमें नफ़रत के बजाय प्रेम और प्रतिशोध के बजाय माफ़ी का तरीक़ा सिखाया है। हम ख़ुद भी इसी तरीक़े पर चलें और दूसरों को भी यही तरीक़ा सिखाएं तो क्या हमारा कोई दुश्मन बाक़ी बचेगा ?
देखिए अल्लाह क्या हुक्म दे रहा है-
‘और भलाई और बुराई बराबर नहीं हो सकती, तुम बुराई को उस तरह दूर करो जो सबसे बेहतर हो, उस सूरत में तुम देखोगे कि तुम्हारे और जिस व्यकित के बीच दुश्मनी थी, मानो वह गहरा दोस्त बन गया है; और यह चीज़ केवल उन लोगों को मिलती है जो सब्र करते हैं और जो बड़े भाग्यशाली हैं।‘
-क़ुरआन 41,34-35
अल्लाह हमें भाग्यशाली बनने का रास्ता दिखा रहा है और हम हैं कि उसके दिखाए रास्ते पर क़दम बढ़ाने के लिए तैयार ही नहीं हैं।

कलिमे का अर्थ
कलिमा ‘ला इलाहा इल्-लल्लाह, मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह‘ (अर्थात अल्लाह के सिवाय कोई इबादत के लायक़ नहीं है, मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।)
पढ़ने का मतलब यही है कि हम अल्लाह के हुक्म पर चलें और उसके पैग़म्बर स. के तरीक़े पर चलें।
दुनिया और आखि़रत (परलोक) में कामयाबी का सूत्र यही है और आज से नहीं है बल्कि हमेशा से यही है।
क़ुरआन में ही नहीं बल्कि बाइबिल और वेद-उपनिषद में भी यही लिखा है।
नफ़ाबख्श बनिए और लोगों के दिलों पर राज कीजिए।
आज ज़मीन पर क़ब्ज़े के लिए मारामारी मची हुई है लेकिन दिल वीरान पड़े हैं,
दुश्मन भी दिल रखता है और दिल हमेशा प्यार का प्यासा होता है।
कौन है जो इस प्यास को बुझाए ?
कौन है जो लोगों के दिलों पर हुकूमत करे ?
ज़माने भर के दिलो-नज़र किसी का इन्तेज़ार कर रहे हैं।
दिल जीतने के लिए क़दम बढ़ाईये।

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

आदमी की बात आदमी समझे
अल्लाह भगवान से लिपटता है तो निपटे !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूब!

एक लम्बे अंतराल के बाद कृपया इसे भी देखें-

जमाने के नख़रे उठाया करो

Unknown said...

salam, beautiful and practical lovely

Unknown said...

one Saint said, will burn Sawarg/Narkh because nobody love to God for both on them Or fear of it.
everybody on earth is partial part of God. he/she has to complete him/her self. when we completely mixed in it. everybody on earth existence upto only when we hide god and showing
our self. but exactly he has to hide him/her and display to God.
Spirituality doesn’t belong to any religions. The religion is the first step to go there nothing else Or this is the way only.