सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Saturday, January 28, 2012
वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप God in Ved & Quran

देवी देवताओं की पूजा उन लोगों का मौलिक अधिकार है जो कि उनकी पूजा में विश्वास रखते हैं। लेकिन जब इस पूजा और विश्वास को इस महान देश की ज्ञान परंपरा में देखा जाता है तो पता चलता है कि वैदिक परंपरा में मूर्ति पूजा बाद के काल में शामिल हुई।
जो लोग ज्ञानी हैं वे जानते हैं कि अनंत ज्ञान का स्वामी ईश्वर नर और नारी नहीं है। जब इस धरती पर ज्ञान का आलोक था तब यहां मूर्ति पूजा भी नहीं थी। तत्व की बात तो यह है कि इस सृष्टि का संचालन कोई देवी देवता नहीं कर रहा है बल्कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर ही कर रहा है। जो लोग उसके बनाये नियमों का पालन करते हैं उन्हें वह ज्ञान देता है और जो लोग उसके नियमों की अवहेलना करते हैं, वे ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
आज भारत के युवा विदेशों में जाते हैं ज्ञान पाने के लिए, शिक्षा पाने के लिए जबकि विदेशों में शारदा और सरस्वती की वंदना-पूजा-उपासना सिरे से ही नहीं होती। वे लक्ष्मी और कुबेर की पूजा भी नहीं करते लेकिन वर्ल्ड बैंक पर क़ब्ज़ा उनका ही है और भारत के लोग उनसे आर्थिक सहायता पाने की गुहार लगाते रहते हैं।
ज्ञान, शिक्षा और धन विदेशियों को क्यों मिला और देवियों के पुजारियों से भी ज़्यादा क्यों मिला ?
‘तत्व ज्ञानी‘ आज भी यही बताते हैं कि सारी चीज़ों का स्वामी केवल एक परमेश्वर है और उसके गुणों को देवी और देवता बताने वाली बातें केवल कवियों की कल्पनाएं हैं. जब ईश्वर के सत्य स्वरूप को भुला दिया गया तो ईश्वर ने अरब के लोगों को अपने सत्य स्वरूप का बोध कराया. हमारी सफलता इसमें है कि हम परमेश्वर के मार्गदर्शन में चलें जो कि वास्तव में ही ज्ञान का देने वाला है। उसका परिचय वेद और क़ुरआन में इस तरह आया है-
1. हुवल अव्वलु वल आखि़रु वज़्-ज़ाहिरु वल्-बातिनु, व हु-व बिकुल्लि शैइन अलीम.
वही आदि है और अन्त है, और वही भीतर है और वही बाहर है, और वह हर चीज़ का ज्ञान रखता है.
(पवित्र क़ुरआन, 57,3)
त्वमग्ने प्रथमो अंगिरस्तमः ...
अर्थात हे परमेश्वर ! तू सबसे पहला है और सबसे अधिक जानने वाला है.
(ऋग्वेद, 1,31,2)
2. ...लै-इ-स कमिस्लिहि शैउन ...
अर्थात उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है.
(पवित्र क़ुरआन, 42,11)
न तस्य प्रतिमा अस्ति ...
उस परमेश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती.
(यजुर्वेद, 32,3)
क़ुरआन में ईश्वर के स्वरूप का वर्णन देखकर जाना जा सकता है कि वह उसी ईश्वर की उपासना की शिक्षा देता है जिसकी उपासना सनातन काल से होती आ रही है। सनातन धर्म यही है। सनातन सत्य को सब मिलकर थामें तो बहुत सी दूरियां ख़ुद ब ख़ुद ही ख़त्म हो जाएंगी।
जो चीज़ लोगों को बांटती है वह धर्म नहीं होती।
जो चीज़ लोगों को ज्ञान के मार्ग से हटा दे, वह भी धर्म नहीं होती।
सत्य को जानेंगे तो हम सब एक बनेंगे।
एकता में शक्ति होती है।
3. क़द तबय्यनर्रूश्दु मिनल ग़य्यि, फ़मयं-यकफ़ुर बित्ताग़ूति व-युअमिम्-बिल्लाहि फ़-क़दिस्-तम-सका बिल् उर्वतिल वुस्क़ा...
सही बात नासमझी की बात से अलग होकर बिल्कुल सामने आ गई है, अब जो ताग़ूत (दानव) को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान ले आए उस ने एक बड़ा सहारा थाम लिया.
(पवित्र क़ुरआन, 2,256)
दृष्ट्वारूपेव्याकरोत् सत्यानृते प्रजापतिः अश्रद्धांमनृते दधाच् छृद्धां सत्ये प्रजापतिः
अर्थात परमेश्वर ने सत्य और असत्य के तथ्य को समझकर सत्य को असत्य से अलग कर दिया. उसकी आज्ञा है कि (हे लोगो) सत्य में श्रद्धा करो, असत्य में अश्रद्धा करो.
(यजुर्वेद, 19,77)
ईश्वर के कल्याणकारी सत्य स्वरूप का ज्ञान केवल ईश्वर की वाणी के माध्यम से ही पाया जा सकता है।
ईश्वर का सत्य स्वरूप और उसका आदेश आप सबके सामने है, अब जो मानना चाहे वह मान ले।
परमेश्वर अपनी वाणी क़ुरआन में कहता है कि
निश्चय ही यह (क़ुरआन) सारे संसार के रब की अवतरित की हुई चीज़ है. इसको स्पष्ट अरबी भाषा में लेकर तुम्हारे ह्रदय पर एक विश्वसनीय आत्मा उतरी है ताकि तुम सावधान करने वाले बनो. और निस्संदेह यह पिछले लोगों की किताब में भी मौजूद है.
(पवित्र क़ुरआन, 26,192-196)
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1 comment:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
आज चर्चा मंच पर देखी |
बहुत बहुत बधाई ||
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