सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Sunday, February 28, 2010

एक हिन्‍दू संत का अदभुत करिशमा : anwer jamal

भारत का विश्‍वगुरू बनना अब कितना आसान ? एक ऐसी सच्‍चाई जिसे जानता हर कोई है लेकिन मानने के लिये वही तैयार होता है जिसका ज़मीर जिन्‍दा है, इस्‍लाम मारकाट आतंकवाद की शिक्षा देता है इस बात का प्रचार होने से अच्‍छे भले दिमाग में गलतफहमियां जड पकड चुकी हैं, जिसने हिन्‍दू मुस्लिम एकता को कमजोर ही किया है, स्‍वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने उन सभी गलतफहमियों के मूल पर प्रहार करके हिन्‍दू मुस्लिम एकता को मजबूत किया है,
जिस दिन दोनों समुदायों के बीच से गलत फहमियों और नफरतों का सफाया सचमुच हो जायेगा भारतीय जाति उसी दिन विश्‍व नायक पद पर आसन हो जायेगी,
अपनी गलती पर अज्ञानी अडता है जबकि ज्ञानी उसे स्‍वीकार करके उसका निराकरण करता है, इस किताब ने स्‍वामी जी के साफ मन और महान चरित्र को ही प्रकट किया है, भारतीय सन्‍तों की यह विशेषता सदा से चली आयी है,
भारत का भविष्‍य उज्‍जवल है, यह किताब इसी आशा को बल देती है





पुस्‍तक '''इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' '
लेखक-स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य
laxmishankaracharya@yahoo.in
ए-१६०१,आवास विकास कॉलोनी,हंसपुरम,नौबस्ता,कानपुर-२०८०२१

इस्लाम आतंक? या आदर्श- यह पुस्तक का नाम है जो कानपुर के स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने लिखी है। इस पुस्तक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य के साथ दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है। वे अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-मेरे मन में यह गलत धारणा बन गई थी कि इतिहास में हिन्दु राजाओं और मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मारकाट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है। मेरा दिमाग भ्रमित हो चुका था। इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझ इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी।इस्लाम,इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली-'इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ।पुस्तक में स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य आगे लिखते हैं-जब दुबारा से मैंने सबसे पहले मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढऩे के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी,तो मुझो कुरआन मजीद के आयतों का सही मतलब और मकसद समझाने में आने लगा।सत्य सामने आने के बाद मुझ अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इस कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब-'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझो हार्दिक खेद है

==नमूना====
पैम्‍फलेट में लिखी 8 वें क्रम की आयत हैः''हे 'ईमान' लाने वालो!......और 'काफिरों' को अपना मित्र मत बनाओ, अल्‍लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो'' सूरा 5, आयत 57Swami Laxmi Sankaracharya:यह आयत भी अधूरी दी गई है, आयत के बीच का अंश जान बूझकर छिपाने की शरारत की गई है, पूरी आयत है'ऐ ईमान लाने वालो! जिन लोगों को तुमसे पहले किताबें दी गई थीं, उन को और काफिरों को जिन्‍होंने तुम्‍हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है, मित्र न बनाओ और अल्‍लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो - कुरआन ,पारा6 , सूरा 5, आयत 57आयत को पढने से साफ है कि काफि़र कुरैश तथा उनके सहयोगी यहूदी और ईसाई जो मुसलमानों के धर्म की हंसी उडाया करते थे, उन को दोस्‍त न बनाने के लिये यह आयत आई, यह लडाई-झगडे के लिये उकसाने वाली या घृणा फैलाने वाली कहां से है ? इसके विपरीत पाठक स्‍वयं देखें कि पैम्‍फलेट में 'जिन्‍होंने तुम्‍हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है' को जानबूझकर छिपा कर उसका मतलब पूरी तरह बदल देने की साजिश करने वाले क्‍या चाहते हैं=======
स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में
मौलाना को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं-इस्लाम को नजदीक से ना जानने वाले भ्रमित लोगों को लगता है कि मुस्लिम मौलाना,गैर मुस्लिमों से घृणा करने वाले अत्यन्त कठोर लोग होते हैं। लेकिन बाद में जैसा कि मैंने देखा,जाना और उनके बारे में सुना,उससे मुझो इस सच्चाई का पता चला कि मौलाना कहे जाने वाले मुसलमान व्यवहार में सदाचारी होते हैं,अन्य धर्मों के धर्माचार्यों के लिए अपने मन में सम्मान रखते हैं। साथ ही वह मानवता के प्रति दयालु और सवेंदनशील होते हैं। उनमें सन्तों के सभी गुण मैंने देखे। इस्लाम के यह पण्डित आदर के योग्य हैं जो इस्लाम के सिद्धान्तों और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं,गुणों का सम्मान करते हैं। वे अति सभ्य और मृदुभाषी होते हैं।ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।
लक्ष्मीशंकराचार्य अपनी पुस्तक की भूमिका के अंत में लिखते हैं-मैं अल्लाह से,पैगम्बर मुहम्मद सल्ललल्लाहु अलेह वसल्लम से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं तथा अज्ञानता में लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। सभी जनता से मेरी अपील है कि 'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' पुस्तक में जो लिखा है उसे शून्य समझों।एक सौ दस पेजों की इस पुस्तक-इस्लाम आतंक? या आदर्श में शंकराचार्य ने खास तौर पर कुरआन की उन चौबीस आयतों का जिक्र किया है जिनके गलत मायने निकालकर इन्हें आतंकवाद से जोड़ा जाता है। उन्होंने इन चौबीस आयतों का अच्छा खुलासा करके यह साबित किया है कि किस साजिश के तहत इन आयतों को हिंसा के रूप में दुष्प्रचारित किया जा रहा है।उन्होंने किताब में ना केवल इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियों दूर करने की बेहतर कोशिश की है बल्कि इस्लाम को अच्छे अंदाज में पेश किया है।
अब तो स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य देश भर में घूम रहे हैं और लोगों की इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियां दूर कर इस्लाम की सही तस्वीर लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।
साभारः
'हमारी अन्‍जुमन'
http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/02/blog-post_25.html

25 comments:

PARAM ARYA said...

bahut badhiya . iska matlab ab hamare sant bhi tumhare saath ho gaye. lekin abhi hum jinda hain.

Unknown said...

nice post

DR. ANWER JAMAL said...

अपनी गलती पर अज्ञानी अडता है

Unknown said...

achhi baat he,,khelo swami ji ke naam pe HOLI swami ji ne achha kiya isse pyar badhega

DR. ANWER JAMAL said...

@Dr. Hashim sahib ko dhanyavad.

Anonymous said...

thought provoking but i need to study this book. from where can i get it?

Unknown said...

स्‍वामी जी सहित आप डाक्‍टर जी बधाई के पात्र हैं, प्रेम बढाने वाली बात पढने को मिलि, शुभ कामनाएं

HAKEEM SAUD ANWAR KHAN said...

aise insan bhi is duniya men abhi maujood hain? apni ankhon par yaeen nahin hota.

khalid khan said...

dr. sahb hamne bhot pehle ye kitab padhi thi, aapne sach kaha he asi prem ki baton se hi bharat vishw guru ban sakta he

Gyan Darpan said...

कोई भी धर्म नफरत फ़ैलाने की शिक्षा नहीं देता शायद इस्लाम भी नहीं | फिर भी आज विश्व में सबसे ज्यादा अराजकता वहीँ बनी हुई है जहाँ इस्लाम के अनुयायी सबसे ज्यादा है |

Anonymous said...

bahut shubh sankait hai,lagta hai hamara desh vishv naresh padd ki oar agrsar ho chala hai,ab wo din door nahi jab sab desh vasi mil kar satya ki mashal le kar chalenge.

Anonymous said...

swami ji vastav mai satyawadi aur gyani vyekti hain, maine swami ji ki ye pustak padd li hai,pustak ko pad kar "islam" aur "jihad" se sambandhit sari bhrantiyan mitt gaen aur mai islam ke sahi swaroop ko samajh paya.

Mohammed Umar Kairanvi said...

हिन्‍दू मुस्लिम एकता को मजबूती देने वाली पुस्‍तक की जानकारी देने पर आप को बधाई, वाकई भारत का भविष्‍य उज्‍जवल है, यह किताब इसी आशा को बल देती है

इस्लामिक वेबदुनिया said...

रतन सिंह जी
इस्लाम अराजकता को बढ़ाता नहीं बल्कि उसे खत्म करता है। शायद आप स्वामी जी की यह किताब पूरी पढ़ोगे तो समझा आ जाएगी कि जो इस्लाम और पैगम्बर अराजकता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ते रहे,उन्हें ही आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया गया। रही बात जहां इस्लाम के अनुयायी ज्यादा है,वहां अराजकता ज्यादा है उसके लिए जिम्मेदार इस्लाम नहीं बल्कि सियासत है। चाहे वह सियासत मुल्क की अंदरूनी हो या फिर दूसरे देशों की उस मुल्क में दिलचस्पी को लेकर सियासत।

ab inconvinienti said...

सच है!
गलत स्वार्थी मुस्लिम हो सकते हैं, पर उनके कारण इस्लाम बदनाम होता है.

rahul said...

यह स्‍वामी बडा नामाकूल है हमारी सैंकडों वर्ष के परिश्रम पर इसने पानी फेर दिया, प्रभु करे इसमें कीडे पडें साथ में तुम भी कीडे पडें

दीपक 'मशाल' said...

इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...

होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Dear fiend,I want to know more about ISLAM.
Kindly send me this book on add given below-
Dr.Bhoopendra Singh
Flat no 6,Gopalpur Tower ,
Tala House Campus ,
REWA MP 486001

شہروز said...

हिन्‍दू मुस्लिम एकता को मजबूती देने वाली पुस्‍तक

nadeem said...

bhhot khoob

प्रकाश पाखी said...

स्वागत योग्य,
पूर्वाग्रह को पूरी तरह खत्म करने के बाद ही कोई राय या नजरिया कायम करना चाहिए.इस्लाम के बारे में बिना जाने उसके बारे में राय बनाना उचित नहीं है.सियासत को धर्म से जोड़ कर देखना भी सही नहीं है.सभ्यताओं के कथित युद्ध में सबसे ज्यादा दोषी यूरोपियन अमेरिकन समाज है.पुनर्जागरण के लाभ उठाते हुए इसने पहले तो तीन सौ वर्ष तक शेष विश्व का औपनिवेशिक शोषण किया फिर दो विश्वयुद्धो में झोंक कर इंसानियत को तबाह कर दिया.हद तो तब हो गई जब शीत युद्ध के दौर में इसने यूरोपियन अमेरिकन समुदाय को छोड़ शेष विश्व को आपसी लड़ाई में उलझा कर हथियार बेचे और इस्लामिक कट्टरवाद को अपनी प्रभुसत्ता बनाए रखने का औजार बनाया.पिछड़े देशों के खनिज संसाधनों और तेल क्षेत्रों पर अधिकार बाने रखने की कोशिश में इरान ईराक,भारत पाक,और ऐसे न जाने कितने देशों को आपस में उलझाए रखकर अपने हित साधन किये.हाँ ,पिछड़े देशों में एक इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसपर लोगों ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा छोड़ कर एक जुट हो कर अंग्रेजों की सैकड़ों साल से चली आरही इस नीति का विरोध किया है.इन अर्थों में आतंक वाद भी अंग्रेजो की देन है यह अलग बात है कि अंग्रेज इससे प्रभावित अब होने लगे है.इस सियासत को पहचाने बिना इस्लाम का विरोध करना अपने आप को अंग्रेजों के हितसाधन का औजार बनाने जैसा होगा.
आतंकवाद अनुचित था है और आगे भी रहेगा पर इस्लाम उतना ही नेक धर्म है जितना कि एक सच्चे धर्म को होना चाहिए.स्वामीजी ने इस्लाम के करीब जाकर इसके प्रति पूर्वाग्रहों को दूर करने की कोशिश की वे साधुवाद के पात्र है.
आप की इस विचारोत्तेजक पोस्ट के लिए आपका आभार.

DR. ANWER JAMAL said...

आप सब का आभार.

सलीम खान said...

हिन्‍दू मुस्लिम एकता को मजबूती देने वाली पुस्‍तक

Unknown said...

मानव जिंदा रहेंगे तो मानवता और धर्म जिंदा रहेंगे। इस लिए सबको आपसी सद्भाव और प्रेम के साथ रहना चाहिए और रहना भी होगा।
मानव मात्र एक समान।
जन्म किस धर्म और किस जाति में लेना है ये मनुष्य के हाथ में नहीं है। इसलिए हम सब लोग ऐप्स में सबका सम्मान करें।

Unknown said...

Sir पुस्तक कहां से मिली है?