सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, August 16, 2012

एक दान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012

खुशियां बांटने का त्यौहार 

ईद-उल-फितर इस्लाम धर्म के अनुयायियों का प्रमुख पर्व है। ईद-उल-फितर अरबी भाषा का शब्द है। ईद का तात्पर्य है खुशी। फितर का अभिप्राय है दान। इस प्रकार ईद-उल-फितर ऎसा दान-पर्व है, जिसमें खुशी बांटी जाती है तथा जो आर्थिक दृष्टि से इतने कमजोर हैं कि जिन्हें रोटी-रोजी के भी लाले पड़े रहते हैं और खुशी जिनके लिए ख्वाब की तरह होती है, तो ऎसे वास्तविक जरूरतमंद लोगों को फितरा (दान) देकर उनके ख्वाब को हकीकत में बदला जाता है और वे भी खुशी मनाने के काबिल हो जाते हैं। फितरा अदा करने के शरीअत (इस्लामी धर्म-संहिता) के अनुसार निर्धारित मापदंड है। 

फितरा एक निश्चित वजन में अनाज (मुख्यत: गेहूं) के रूप में होता है अथवा उस अनाज की तत्कालीन कीमत के रूप में धन-राशि में। हर साहिबे-खैर (साधन-सम्पन्न) और साहिबे-जर (धन संपन्न) मुसलमान को फितरा अदा करना जरूरी है। यहां तक कि ईद-उल-फितर की नमाज के लिए जाने से पहले भी किसी औलाद का जन्म हो जाए, तो उस नवजात संतति का भी फितरा (निर्धारित मात्रा में अनाज अथवा उतनी कीमत के रूप में धनराशि) अदा करना होता है। हर सामथ्र्यवान मुसलमान का फर्ज है कि ईद-उल-फितर की नमाज के पहले फितरा अदा कर दे। फितरा अदा करने के पीछे जो आधार है, उसकी जड़ में जज्बा-ए-इंसानियत अर्थात् मानवता की भावना है।

ईद का मतलब चूंकि खुशी होता है और खुशी की सार्थकता तब ही है, जब इसमें भूखे को भोजन, प्यासे को पानी और निर्वस्त्र को वस्त्र मिल जाएं। धन-संपन्न के पास तो इतने साधन होते हैं कि वह सुविधाएं जुटा लेता है और खुशियों का पूरा बाजार ही अपने घर ले आता है, लेकिन निर्धन और निस्सहाय के लिए तो दो वक्त की रोटी नसीब होना ही मुश्किल होता है। नौकरी, आकाश-कुसुम (गुल-ए-फलक) हो गई है और मेहनतकशों के लिए मजदूरी का काम भी रेगिस्तान में पानी की तलाश की तरह हो गया है। ऎसे अभावग्रस्त लोगों के लिए रोटी, कपड़ा मुहैया कराने के लिए फितरा अर्थात दान की मानवीय व्यवस्था है। ताकि ईद की प्रासंगिकता सिद्ध हो सके। 

इस प्रकार ईद-उल-फितर खुशियों में शिरकत का त्योहार है। एक वाक्य में कहें, तो पवित्र रमजान माह की विदाई के बाद आने वाला त्योहार ईद-उल-फितर इंसानियत और बंधुत्व का बैंक है, जिसमें खुशियों के खातेदार और आनंद अंशधारक होते हैं। रूपक अलंकार या उपमा के धरातल पर कहें तो ईद-उल-फितर सदाशयता और सद्भावना की क्रियाशील "कंपनी" है, जिसमें प्रेम की पूंजी तथा शफक्कत (अपनत्व) के "शेयर" होते हैं। सारांश यह है कि ईद-उल-फितर में सौहार्द और सहयोग ही शेयर-होल्डर्स होते हैं, जो खुशियों की खनक के रूप में बंधुत्व का बोनस बांटते रहते हैं। वैसे भी सनातन सत्य तो यही है कि हम सभी परस्पर प्रेम और सद्भाव से रहें और मिलजुलकर तथा नेक कमाई से प्राप्त रोटी को आपस में बांटकर खाएं। ईद-उल-फितर रोटी को बांटकर खाने के साथ खुशियों में शिरकत तथा दु:ख-दर्द में साझेदारी का पैगाम देती है। 

पावन ऋग्वेद के दसवें मण्डल के एक सौ सत्रहवें सूक्त के छठे मंत्र में भी उल्लेख है "केवलाघो भवति केवलादी" अर्थात् जो अपनी रोटी अकेले खाता है, वह पाप करता है, अर्थात् रोटी बांटकर खाओ। इस प्रकार ईद-उल-फितर में निहित पवित्र कुरआन के संदेश और ऋग्वेद के मंत्र में बड़ी समानता है। 
अजहर हाशमी
प्राध्यापक व साहित्यकार
Source : http://www.patrika.com/article.aspx?id=20511

5 comments:

रविकर said...

ईश्वर एक है |
अच्छाइयां वन्दनीय हैं-

मनोज कुमार said...

प्रेम और भाईचारे का संदेश देते इस पर्व के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

Ayaz ahmad said...

Nice post.

मनोज कुमार said...

ईद मुबारक़!

virendra sharma said...

जानकारी की सौगात लिए है यह रचना .ख़ुशी की ईद लिए है यह रचना .गरीबों के लिए इमदाद और प्यार लिए है .बधाई ईद की ,देर आयद दुरुस्त आयद .