सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Monday, March 5, 2012

अरब और हिंदुस्तान का ताल्लुक़ स्वयंभू मनु के ज़माने से ही है Makkah

काबा वह पहला घर है जो मालिक की इबादत के लिए बनाया गया है। इसे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने सबसे पहले बनाया था। आदम अलैहिस्सलाम को स्वयंभू मनु कहा जाता है। जब उनके बाद जल प्रलय आई तो उसका असर इस घर पर भी पड़ा था। इसके बाद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आज से लगभग 4 हज़ार वर्ष पहले काबा की जगह पर कुछ दीवारें ऊंची की थीं। छत वह डाल नहीं पाए क्योंकि तब यह इलाक़ा बिल्कुल निर्जन था। उन्होंने वहां अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को उनकी मां के साथ आबाद किया। उस समय उस घर में कोई मूर्ति वग़ैरह न थी। बस उस पैदा करने वाले मालिक को ही पूजा जाता था। तब हिंदुस्तान से भी लोग वहां जाते थे। मक्का को भारतीय लोग मख के नाम से जानते हैं। यज्ञ के पर्यायवाची के तौर पर ‘मख‘ शब्द भी बोला जाता है जैसा कि तुलसीदास ने विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हेतु श्री रामचंद्र जी के जाने का वर्णन करते हुए कहा है कि
*प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई॥
होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी॥1॥
भावार्थ:-सबेरे श्री रघुनाथजी ने मुनि से कहा- आप जाकर निडर होकर यज्ञ कीजिए। यह सुनकर सब मुनि हवन करने लगे। आप (श्री रामजी) यज्ञ की रखवाली पर रहे॥1॥

‘मख‘ शब्द वेदों में भी आया है और मक्का के अर्थों में ही आया है। यज्ञ को यज भी कहा जाता है। दरअस्ल यज और हज एक ही बात है, बस भाषा का अंतर है। पहले यज नमस्कार योग के रूप में किया जाता था और पशु की बलि दी जाती थी। काबा की परिक्रमा भी की जाती थी। बाद में यज का स्वरूप बदलता चला गया। हज में आज भी परिक्रमा, नमाज़ और पशुबलि यही सब किया जाता है और दो बिना सिले वस्त्र पहने जाते हैं जो कि आज भी हिंदुओं के धार्मिक गुरू पहनते हैं।
क़ुरआन ने यह भी बताया है कि मक्का का पुराना नाम बक्का है , 
मक्का का ज़िक्र बाइबिल में इसी नाम से आया है। देखिए किताब ज़बूर 84, 4 व 6
बाइबिल में यहां मक्का का नाम ‘बक्का‘ बताया गया है। 
‘बक्का‘ का अर्थ है रूलाने वाला। जो यहां आता है, वह यहां से वापस नहीं जाना चाहता और जब उसे लौटना पड़ता है तो वह रोता है। ‘बुक्का‘ शब्द उर्दू हिंदी में रोने के अर्थों में आज भी प्रचलित है।
संस्कृत में रूलाने वाले को रूद्र कहा जाता है। वेदों में कई रूद्रों का ज़िक्र आया है उनमें से एक मक्का है।
ऋग्वेद 5,56,1 में मरूतगण को रूद्र के पुत्र कहा गया है।
मरूतगण का अर्थ मरूस्थलवासी है।
इन मरूतगणों की वेदों में बहुत प्रशंसा आई है और इन्हें इंद्र से भी ज़्यादा महान कहा है।
यह सब बातें हमें याद हो आईं जैसे ही हमें पता चला कि देवबंद में काबा के इमाम डा. शैख़ अबू इब्राहीम अलसऊद तशरीफ़ ला रहे हैं। हमने उनका भाषण सुना जो कि अरबी में था और फिर उर्दू में भी उसका अनुवाद करके बताया कि उन्होंने यह कहा कि मुसलमान दीन की दावत का काम करें और लोगों के साथ नरमी का बर्ताव करें चाहे उनका अक़ीदा कुछ भी हो।
इस मौक़े पर इमामे हरम ने पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब स. की ज़िंदगी का एक वाक़या बताया कि मदीने की उनकी मस्जिद में एक आदमी आया और उसने वहां बैठकर पेशाब करना शुरू कर दिया। पैग़ंबर साहब के साथियों ने उसे रोकना चाहा तो आपने उन्हें रोक दिया और जब वह पेशाब कर चुका तो उस जगह को पानी मंगा कर धो दिया।
उनके इस बर्ताव से वह आदमी बहुत प्रभावित हुआ और उसकी ज़िंदगी उस दिन के बाद से पूरी तरह बदल गई।

इमामे हरम के इस्तक़बाल में जो अरबी काव्य पढ़ा गया, उसे सुनकर भी बहुत लुत्फ़ आया और अरबी में इतने सारे भाषण सुनकर ऐसा लगने लगा था मानो हम मक्का की ही एक गली में बैठे हैं।
बहुत ज़्यादा भीड़ थी। मस्जिद ए रशीद के आस पास की गलियां मुसलमानों से भरी हुई थीं। लोग अपने अपने घरों की छतों और दुकानों में भी नमाज़ के लिए बैठे हुए थे।
अरब और हिंदुस्तान का ताल्लुक़ आज से नहीं है बल्कि पहले दिन से है, इस बात को वही लोग जानते हैं जो कि तत्व को जानते हैं।
देखें इस मौक़े की एक रिपोर्ट-

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Shikah al-Shuraim Admires Deoband & Leads Zuhr Salah

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This was historic day in Deoband. The Imam of Ka'ba, Shaikh Abu Ibrahim Sa'ud ibn Ibrahim ibn Muhammad ash-Shuraim visited Darul Uloom Deoband today on 4 March 2012 Sunday.

He arrived in Darul Uloom Deoband via helicopter and landed here around 1 O'clock. Mufti Abul Qasim Nomani presented him Words of Thanks in the grand Jama Rashid and welcomed him in Deoband. The Imam also addressed the gathering and admired Deoband for its important role in the cause of Islam. He conveyed a message of peace and uity and invited the Muslims to pay attention to Dawah and Tabligh. Maulana Arshad Madani summarized the essence of his speech in Urdu for the common audience.

Later, the Imam al-Shurain led the Zuhar Salah and lakhs of Muslims offered the prayer behind him. All the streets leading to Darul Uloom and around were packed with the crowd of people gathered to welcome the Imam and to perform Zuhar Salah behid him.

Imam Ka'ba Shaikh al-Shurain had lunch with the Ulama in Darul Uloom Guest House and flew back from Deoband at around 3:30 pm.
Source : http://ahsaskiparten.blogspot.in/2012/03/makka.html

21 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति ||

दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

कुमार राधारमण said...

धर्मस्थल आविष्ट होते हैं। आप बेमन से वहां जाएं,तो भी लाभान्वित होते हैं। लाभ की आकांक्षा न हो,तो लाभ और अधिक होता है। हां,भीड़ एक समस्या है। असली बात एकांत में ही घटती है।

मनोज कुमार said...

अद्भुत!
काफ़ी शोध कर लिखा गया आलेख हमें कई महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर गया।

डा श्याम गुप्त said...

---मक्का निश्चय ही ’मख’ का अपभ्रन्श रूप होसकता है....अति-पुरा काल में सारा अरब प्रदेश, अफ़्रीका, तिब्बत , साइबेरिया , एशिया एक ही भूखन्ड था..जन्बू द्वीप या भरत खन्ड...भारत...अत:भारत का उत्तर-पश्चिमी भाग ... अरबप्रदेश वाला भारतीय भूभाग मानव का प्रथम पालना रहा होगा जहां से मानव इतिहास की प्रथम सन्स्क्रिति व प्रथम यग्य प्रारम्भ हुई होगी ..शायद जल-प्रलय से पहले ..

"मरूतगण का अर्थ मरूस्थलवासी है।"---सही नही है ...मरुत..वायुदेव को कहते हैं..मरुतगण का वायु देव की सेना ..जिसमें मेघ,वर्षा आदि भी सम्मिलित हैं...
--वैदिक युग में यग्य में पशु बलि नहीं दी जाती थी ...बाद में असन्स्कारित, अवैदिक सन्स्क्रिति के लोगों ने यह पशु वध आदि प्रारम्भ किया होगा....
---काबा को सही में ही हम एक रुद्र( शिव मन्दिर) मान सकते हैं क्योंकि वहां शिवलिन्ग मौज़ूद है....

DR. ANWER JAMAL said...

डा. श्याम गुप्त जी ! अथर्ववेद के 11वें कांड के 8वें सूक्त में स्वयंभू मनु के जन्म का बहुत सुंदर वर्णन आया है। यहां उन्हें मन्यु कहा गया है और उनकी पत्नी को ‘आद्या‘ कहा गया है आद्या का अर्थ है पहली। आद्या शब्द ‘आद्य‘ से बना है और आद्य कहते हैं पहले को और ‘आद्य‘ धातु से ही आदिम् शब्द बना है और यही शब्द अरबी में पहुंचकर आदम बन गया है।
दरअस्ल जो इलाक़ा आज भारत कहलाता है और जो इलाक़ा आज अरब कहलाता है, यह सारा इलाक़ा हमारे शोध के अनुसार एक साथ ही आबाद हुआ था।
हदीस के अनुसार आदम और हव्वा इस धरती पर पैदा नहीं हुए थे बल्कि वह दूसरी जगह से यहां अवतरित हुए थे।
अथर्ववेद 11,8,7 में भी यही बताया गया है कि मन्यु और आद्या का विवाह वर्तमान पृथ्वी पर नहीं हुआ था बल्कि विगत पृथ्वी पर हुआ था।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. की हदीसों में यह बयान मिलता है कि परमेश्वर ने आदम और हव्वा की रचना स्वर्ग में की और फिर आदम को हिंद में और हव्वा को जददा में उतारा। इसके बाद हव्वा को ढूंढते हुए आदम जददा पहुंचे और फिर वे पृथ्वी की नाभि पर यानि काबा की जगह पहुंचे जहां आदम ने परमेश्वर की भक्ति-उपासना के लिए एक घर बनाया।
इसके बाद भी आदम अलैहिस्सलाम हिंद आ गये और उन्होंने हिंदुस्तान से पैदल चलकर 40 बार हज किया। इस तरह वर्तमान भारत से लेकर वर्तमान मक्का तक जो तीर्थ यात्रा आदम अलैहिस्सलाम अर्थात स्वयंभू मनु ने की, उसकी वजह से यह पूरा मार्ग आबाद होता चला गया। उनके बाद भी उनकी संतान मक्का की तीर्थ यात्रा करती रही और इस मार्ग के आस पास उनकी औलाद के आबाद होने से यह मार्ग आबाद होता चला गया। फिर यहां से लोग विभिन्न कारणों से धरती के दूसरे हिस्सों में भी फैलते चले गए।
लोग यह जान लें कि हम सब एक ही माता पिता की संतान हैं तो हमारे बीच में स्वाभाविक रूप से ही प्रेम उत्पन्न हो जाता है और इससे यह भी पता चलता है कि वास्तव में वसुधैव कुटुंबकम् क्यों कहा गया है ?
सभ्यता के शुरू में सारी मानव जाति एक ही परिवार थी।

‘मरूतगण‘ के विषय में ऋग्वेद 4,56,1 व 2 में कहा गया है कि
‘समान गृहवासी अश्व वाले रूद्र के यह पुत्र कौन हैं ?
इनके जन्म को यह स्वयं जानते हैं, अन्य कोई नहीं जानता।‘
अनुवाद पं. श्री राम शर्मा आचार्य

Anita said...

सुंदर प्रस्तुति...

sandeep Bansal said...

DR. Anwar Jmal जी अथर्ववेद के 11वें कांड के 8वें सूक्त में किसी मनु नाम के व्यक्ति के जन्म का कोई विवरण नहीं है बल्कि उसमे यह लिखा है कि किस तरह इश्वर ने पहले मनुष्य शरीर उत्तपन किया फिर उसमे प्राण शक्ति डाली । वेदों में किस्से कहानियो के लिए कोई जगह नहीं है । न ही मनु स्व्य्भू है
। स्व्य्भू केवल इश्वर है

DR. ANWER JAMAL said...

@ Sandeep ji ! आप पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य का अनुवाद पढने के लिये
‘देखिए मनु की उत्पत्ति और उनके विवाह का वर्णन, वेद में‘
यहाँ आपको पूरी जानकारी मिल जायेगी-

sandeep Bansal said...

अनवर जमाल जी आप दयानंद जी का भाष्य पढ़ें और सच को जाने
http://www.aryasamajjamnagar.org/atharvaveda_v2/atharvaveda.htm

DR. ANWER JAMAL said...

@ संदीप जी ! जब आपने ही उनका भाष्य नहीं पढ़ा है तो आप मुझे क्यों पढवाना चाहते हैं ?
अगर आप इस सूक्त का अर्थ पढ चुके हैं तो आप सच बता दीजिये.

sandeep Bansal said...

डॉ अनवर जमाल जी मैंने पढ़ा है इसीलिए कह रहा हूँ कि वेदों में किस्से कहानिया नहीं है जैसा की आप कह रहे हैं । सच जानना है तो जो लिंक मैंने आप को दिया है उसे खोल कर पढ़ ले सच पता चल जायेगा की इस सूक्त का असली अर्थ क्या है

DR. ANWER JAMAL said...

@ प्यारे भाई संदीप ! हमने दयानंद जी का वेद भाष्य पढ़ा है. वह वेद का वास्तविक अर्थ न समझ सके इसलिए उनहोंने कहा है कि वेदों में इतिहास नहीं है.
उसी बात को आप दोहरा रहे हैं.

sandeep Bansal said...

आदरणीय डॉ जमाल जी द्यांनद जी का भाष्य ही अब तक के भाष्यों में सबसे सटीक है और दयानन्द जी ही वेदों के सबसे बड़े जानकार हैं और न ही अब तक उनके भाष्य और वेदों पर उनकी समझ को कोई चुनौती दे सका है इसलिए हम केवल उनके भाष्य पर ही विश्वास करते हैं और आप भी करें और किसी भी तरह गलतफ़हमी से दूर रहें

Unknown said...

अच तोह दयानंद वेद का वास्तिक अर्थ नहीं समझ पाए आप सही अर्थ समझाने की चेष्टा करोगे ..........विनती है आपसे मित्र ..
ओम

Unknown said...

मित्र ............दयानंद जी को वेद का वास्तविक अर्थ समझ नहीं आया .......
मित्र आपको समझ आगया क्या ......?

Unknown said...

आप किसका भाष्य इस्तेमाल कर रहे है ..

DR. ANWER JAMAL said...

@ आदरणीय संदीप जी! स्वामी दयानन्द जी ‘वेद‘ को भी सही ढंग से न समझ पाये थेे। उदाहरणार्थ, दयानन्दजी एक वेदमन्त्र का अर्थ समझाते हुए कहते हैं-
‘इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।‘ (ऋग्वेदादि0, पृष्ठ 107)
(20) परमेश्वर ने चन्द्रमा को पृथ्वी के पास और नक्षत्रलोकों से बहुत दूर स्थापित किया है, यह बात परमेश्वर भी जानता है और आधुनिक मनुष्य भी। फिर परमेश्वर वेद में ऐसी सत्यविरूद्ध बात क्यों कहेगा?
स्वामी जी के वेदार्थ को सही माना जाए तो वेद ईश्वरीय वचन सिद्ध नहीं होता या फिर इस मन्त्र का सही अर्थ कुछ और है और स्वामी जी ने अपनी कल्पना के अनुसार इसका ग़लत अर्थ निकाल लिया । इसकी पुष्टि एक दूसरे प्रमाण से भी होती है, जहाँ दयानन्द जी ने यह कल्पना कर डाली है कि सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रादि सब पर मनुष्यादि गुज़र बसर कर रहे हैं और वहाँ भी वेदों का पठन-पाठन और यज्ञ हवन, सब कुछ किया जा रहा है और अपनी कल्पना की पुष्टि में ऋग्वेद (मं0 10, सू0 190) का प्रमाण भी दिया है-
‘जब पृथिवी के समान सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र वसु हैं पश्चात उनमें इसी प्रकार प्रजा के होने में क्या सन्देह? और जैसे परमेश्वर का यह छोटा सा लोक मनुष्यादि सृष्टि से भरा हुआ है तो क्या ये सब लोक शून्य होंगे?‘ (सत्यार्थ., अष्टम. पृ. 156)
(21) क्या यह मानना सही है कि ईश्वरोक्त वेद व सब विद्याओं को यथावत जानने वाले ऋषि द्वारा रचित साहित्य के अनुसार सूर्य व चन्द्रमा आदि पर मनुष्य आबाद हैं और वे घर-दुकान और खेत खलिहान में अपने-अपने काम धंधे अंजाम दे रहे हैं?

¤ क्या परमेश्वर भी कभी असफल हो सकता है?
‘परमेश्वर का कोई भी काम निष्प्रयोजन नहीं होता तो क्या इतने असंख्य लोकों में मनुष्यादि सृष्टि न हो तो सफल कभी हो सकता है?‘ (सत्यार्थ., अष्टम. पृ. 156)
(22) स्वामी जी ने परमेश्वर की सफलता को सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्रों पर मनुष्यादि के निवास पर निर्भर समझा है। इन लोकों में अभी तक किसी मनुष्यादि प्रजा का पता नहीं चला है, तो क्या परमेश्वर को असफल और निष्प्रयोजन काम करने वाला समझ लिया जाये? या यह माना जाए कि स्वामी जी इन सब लोकों की उत्पत्ति से परमेश्वर के वास्तविक प्रयोजन को नहीं समझ पाए?
अतः ज्ञात हुआ कि स्वामी जी ईश्वर, जीव और प्रकृति के बारे में सही जानकारी नहीं रखते थे।

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई अनिकेत पोखरियाल जी ! हमने सबसे पहले स्वामी दयानन्द जी का वेदभाष्य पढ़ा था। उसके बाद पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का वेदभाष्य पढ़ा। दूसरे विद्वानों का थोड़ा थोड़ा भाग पढ़ा है, जितना मिल पाया।
हम वेद के हरेक मंत्र को तो नहीं समझ सकते लेकिन हां, मालिक की कृपा से वेदमाता गायत्री मंत्र को हमने ज़रूर समझ लिया है। इसीलिए हमारा अनुवाद गायत्री मंत्र के अब तक किए सभी अनुवादों और भावार्थ से ज़्यादा सटीक है। जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं-
गायत्री मंत्र रहस्य भाग 3 The mystery of Gayatri Mantra 3

Anita said...

पठनीय शोधपरक आलेख

sandeep Bansal said...

आदरनीय जमाल जी
//इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।‘ (ऋग्वेदादि0, पृष्ठ 107)
ल जी //
इस मन्त्र का आपने जो refrence दिया है वो सही नहीं है कृपया सही रेफरेंस दीजिये जैसे यह मन्त्र कौनसे मंडल के कौन से सूक्त में है ?
// (मं0 10, सू0 190)// यह रेफरेंस भी सही नहीं है इसमें सूक्त संख्या नहीं बताई गयी है

सूर्ये चन्द्र आदि लोकों में प्रजा का होना असम्भव नहीं है दयानंद जी ने इसके साथ यह भी कहा है कि जरूरी नहीं वो हमारे जैसे ही दिखते हों तो ज़ाहिर सी बात है कि जिस जिस लोक में जैसे जैसे प्राणी होंगे उसी वातावरण के अनुरूप शरीर वाले होंगे और वैसे ही काम धंधो को करने वाले होंगे
और रही बात आधुनिक विज्ञानं की तो Alians के अस्तित्व को तो हमारा आधुनिक विज्ञानं भी स्वीकार करता है तो यह Alians खुले अन्तरिक्ष में तो विचर नहीं रहे हैं किसी ग्रेह अथवा लोक में ही रह रहे होंगे और वैसे भी आधुनिक विज्ञानं की शोध खत्म नहीं हुई हो सकता है आधुनिक विज्ञानं आगे जाकर दयानंद जी की इस बात पर भी मुहर लगा दे

DR. ANWER JAMAL said...

@ आदरणीय संदीप जी ! दयानन्दजी अपनी पुस्तक ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका मे एक वेदमन्त्र का अर्थ समझाते हुए ऐसा लिखा है-
‘इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।‘ (ऋग्वेदादि0, पृष्ठ 107)
इसमें क्या अस्पष्ट रह गया है ?
आप उनकी पुस्तक ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका के पृष्ठ संख्या 107 पर देख लें.
(मं0 10, सू0 190) लिख कर मंडल और सूक्त, दोनों की सांख्या लिख दी है. शेष जानकारी आपको ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका में मिल जायेगी. वहां न मिले तो आप हमसे संपर्क करें.
आप सूर्य पर मनुष्यों का रहना संभव मानते हैं. बड़ी अजीब बात है. वहां आर्य गाय के घी को कैसे सुरक्षित रखते होंगे ?
हवन के लिये लकडियाँ कहाँ से लाते होंगे ?
चांद पर हवन हुआ करता तो हमारे छोड़े गये उपग्रह उसके धुएँ का चित्र ज़रूर दिखाते.

कृपया दोबारा विचार करें.