सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Thursday, June 16, 2011
सच्चा गणेश कौन है ? Real Ganesh
गण + ईश = गणेश
जो गणों का स्वामी है वही गणेश है। यह ईश्वर का एक नाम है। यह संस्कृत का नाम है। क़ुरआन की सबसे आखि़री सूरा (114, 3) में भी अल्लाह को ‘इलाहिन्नास‘ कहा गया है।
इलाह = ईश
नास = गण
'इलाहिन्नास'
ईश्वर अल्लाह के नाम से ही हरेक जायज़ और शुभ काम को करने की परंपरा हिंदू मुसलमानों में पाई जाती है।
ईश्वर निराकार है अर्थात उसका आकार रूप गुण मनुष्य के चिंतन और उसकी कल्पना में पूरी तरह समा नहीं सकते।
हिंदू दार्शनिकों ने इस प्रॉब्लम को हल करने के लिए कल्पना और चित्र आदि का सहारा लिया तो गणेश का रूप कुछ से कुछ बन गया और अब आम जनता में यह प्रचलित हो गया कि गणेश पार्वती जी के बदन पर लगे उबटन और मैल से बने हैं। यह ईश्वर का घोर अपमान है कि जिसने सारी दुनिया को बनाया हो, वह किसी के बदन के मैल से बने और फिर किसी से लड़कर अपनी गर्दन कटवा बैठे।
इस तरह की कल्पनाओं ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है और हिंदू और मुसलमानों में दूरी डाल दी है।
मैं नमाज़ में और योगी अपने ध्यान में जिस अजन्मे अविनाशी परब्रहं परमेश्वर की ओर उन्मुख होता है, वही सच्चा गणेश है और वह सबका एक ही है। सबको उसी एक गणेश की आराधना करनी चाहिए।
जो गणों का स्वामी है वही गणेश है। यह ईश्वर का एक नाम है। यह संस्कृत का नाम है। क़ुरआन की सबसे आखि़री सूरा (114, 3) में भी अल्लाह को ‘इलाहिन्नास‘ कहा गया है।
इलाह = ईश
नास = गण
'इलाहिन्नास'
ईश्वर अल्लाह के नाम से ही हरेक जायज़ और शुभ काम को करने की परंपरा हिंदू मुसलमानों में पाई जाती है।
ईश्वर निराकार है अर्थात उसका आकार रूप गुण मनुष्य के चिंतन और उसकी कल्पना में पूरी तरह समा नहीं सकते।
हिंदू दार्शनिकों ने इस प्रॉब्लम को हल करने के लिए कल्पना और चित्र आदि का सहारा लिया तो गणेश का रूप कुछ से कुछ बन गया और अब आम जनता में यह प्रचलित हो गया कि गणेश पार्वती जी के बदन पर लगे उबटन और मैल से बने हैं। यह ईश्वर का घोर अपमान है कि जिसने सारी दुनिया को बनाया हो, वह किसी के बदन के मैल से बने और फिर किसी से लड़कर अपनी गर्दन कटवा बैठे।
इस तरह की कल्पनाओं ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है और हिंदू और मुसलमानों में दूरी डाल दी है।
मैं नमाज़ में और योगी अपने ध्यान में जिस अजन्मे अविनाशी परब्रहं परमेश्वर की ओर उन्मुख होता है, वही सच्चा गणेश है और वह सबका एक ही है। सबको उसी एक गणेश की आराधना करनी चाहिए।
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श्री रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी के लिंक पर उनके ब्लॉग पर पहुंचे और गणेश वंदना शीर्षक से उनकी पोस्ट देखी तो हमने यह बात कही है। निम्न लिंक पर आपको मेरा यह कथन एक टिप्पणी के रूप में मिलेगा।
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11 comments:
----हिन्दू-मुस्लिम हो या कोइ..एकता तो निश्चय ही अच्छी चीज है...सभी मानव-मानव भाई हैं व एक ही होमो-सेपियंस -या मनु..नूह...नोआ,, की संतान हैं...---परन्तु कठिनाई तब पैदा होती है जब एक भाई दूसरे को.... तू कम अक्ल है..तू कमजोर है..मेरी बात ही सच है ...मेरी तरह चल...मेरा ईश्वर अच्छा है...कहकर कटुता बढाता है व अत्याचार करता है....जैसे आप गणेश की अनुचित व्याख्या करके कर रहे हैं..
---इसीलिये हिन्दू धर्म में इतने ईश्वर हैं..जो ईश्वर के( वास्तव में आदर्श भाव के ) विभिन्न गुणों के रूप=प्रतिरूप हैं .और उसका अर्थ है कि चाहे जिस रूप में ईश्वर को पूजो वह पत्थर, लकड़ी, शिव, विष्णु,गणेश .विभिन्न रूप रंग के .यहाँ तक कि वह मानव स्वयं ही ईश्वर है....कण कण सभी में है ...ताकि इस विषय पर लोग न लड़ें.....
--अतः गणेश का अर्थ सिर्फ वह नहीं जो आप कह रहे हैं अपितु शिव, ब्रह्मा, राम, कृष्ण,आदि की भांति गणेश के भाव-रूप का भी एक गहन अर्थ है जो एक गणेश में क्या क्या गुण होने चाहिए इसके प्रतीक हैं........
---विषद वर्णन अपने ब्लॉग पोस्ट पर करूँगा...
---कुरआन में गणेश का नाम बिलकुल होसकता है ...क्योंकि गणेश कुरआन से बहुत पहले के हैं....सिर्फ शब्दों व भाषा का अंतर है....
@ डा. श्याम गुप्त जी ! मैंने अपने शोध में जो पाया वह लिख दिया है। अगर आप उससे सहमत नहीं हैं तो आप की मर्ज़ी।
एक तरफ़ तो आप कह रहे हैं कि किसी की मान्यता को कमतर नहीं कहना चाहिए और उसी टिप्पणी में तुरंत ही आप मेरी बात को कमतर ही नहीं बल्कि बिल्कुल ग़लत भी कह रहे हैं। यह एक विरोधाभास है कि नहीं ?
आप कण कण में ईश्वर मानते हैं तो आपके अनुसार तो मैं भी ईश्वर ही हूं।
जब मैं ईश्वर हूं तो मेरी बात ग़लत कैसे हो सकती है ?
कृप्या विचार करें।
आपकी मान्यता का आधार का धर्म का ज्ञान नहीं है बल्कि वेदान्त दर्शन है जो कि मनुष्य के मन की उपज है।
जमाल भाई,
मेरे अध्यात्मिक गुरूजी एक मुसलमान ही थे। मेरे साथ एक प्रॉब्लम है। मैं जब कभी भी किसी धार्मिक स्थल के सामने से गुजरता हूँ ना, तो स्वत: मेरा सर झुक जाता है। अब चाहे वो मस्जिद हो, मंदिर, गुरूद्वारा या चर्च। क्योंकि मैं लाख कोशिशों के बावजूद ऊपरवाले में फ़र्क नहीं खोज पाया यार। मेरे इस महापाप पर मैं सारे जमाने से माफ़ी माँगता हूँ।
ऐ जमाने सबके ऊपरवाले को बाँट दो चाहो तो।
मेरे ऊपरवाले को बक्श देना यार।
आ रहे हैं वो देखो मुहम्मद जिनके कांधे पे कमली है काली।
किलर झपाटा फ़र्क़ ऊपर वाले में नहीं होता बल्कि नीचे वालों की समझ में होता है। नीचे वाले समझते हैं कि ऊपर वाला केवल यह चाहता है कि उसका नाम लिया जाय, उसकी पूजा की जाए, उसे सिर झुकाया जाए। या फिर कुछ लोग कहते हैं कि हमें अच्छे-अच्छे काम करने करने चाहिएं लेकिन यहां हरेक मत अच्छे-बुरे कामों की सूची अलग-अलग बताता है। अंतर यही से पैदा होता है। यही चीज़ मानवता को बांटती है। यही चीज़ शनि को एक ग्रह से देवता बनाती है और उससे डराती है। यहीं से बहुत से शोषणकर्ता धर्म में ग़लत परंपराएं पैदा करके धर्म का स्वरूप बिगाड़ देते हैं। धर्म का सच्चा स्वरूप जानने के लिए केवल ईश्वर की वाणी ही एकमात्र स्रोत है। हरेक ग़लत परंपरा के उन्मूलन के लिए और सत्य पाने के लिए यही एक मात्र स्रोत है। जो ऐसा करता है वही अपने जन्म के मक़सद को पाने के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
---अगर आपने वास्तव में शास्त्रों का गहन शोध किया होता तो गणेश के बारे में उचित ज्ञान होगया होता ......
-----क्या धर्म व ईश्वर स्वयं मानव -मस्तिष्क की उपज नहीं हैं....कण कण में ईश्वर है परन्तु उस ईश्वर को पहचानना होता है....आप में ईश्वर है....पर आवश्यक नहीं कि आप उसे पहचान पायें ...आप ईश्वर हैं परन्तु आवश्यक नहीं कि आप स्वयं को जान पायें ......इसीलिये हिन्दू --सनातन--वैदिक दर्शन कहता है कि ...अपने को पहचानो ...और उसके लिए अपने अर्थात ईश्वर के गुणों को जो वेदों में वर्णित हैं -जानना -पहचानना-अमल करना जरूरी है.....बुद्ध ने भी कहा..... अप्प दीपो भव....कबीर ने कहा...अंतर के पट खोल रे तोहि पिया मिलेंगे....
----एक ब्रह्म भाषे कण कण , माया भ्रम सबकी अँखियाँ ....यह विरोधाभाष नहीं द्वैत है........यह भ्रम का पर्दा हटाने पर ही जीव , ईश्वर बन पाता है....यूंही नहीं होजाता कोइ ईश्वर ...
---खुदी को कर बुलंद इतना....तभी आप खुदा बन सकते हैं.....सिर्फ खुदा...खुदा चिल्लाने से नहीं ....
----वेदान्त दर्शन....ईश्वर व .धर्म की व्याख्या करने वाला सर्वश्रेष्ठ दर्शन है.....विद अर्थात ज्ञान का.. आज तक का अंतिम व मोस्ट एडवान्स्ड दर्शन है....इसीलिये उसका नाम ..वेदान्त है...
---kilar jeee---यह तो बहुत अच्छी बात है.....ऊपरवाला तो एक ही है ...धर्म, दर्शन आदि ऊपरवाले का नहीं मानव-व्यवहार की बातें करते हैं ...जो निश्चय ही देश कालानुसार...व्यक्ति व्यक्ति के अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं ..(गधे-घोड़े सब एक से कैसे हो सकते हैं )....शेर को बकरी न्याय से बचाने के लिए जो मानव की फितरत है ...यही माया कहलाती है...अद्यात्म में जिससे बचने के रास्ते ही...धर्म, दर्शन, क़ानून, नीति-नियम , अनुशासन आदि होते हैं....
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपने कहा है कि
‘क्या धर्म व ईश्वर स्वयं मानव -मस्तिष्क की उपज नहीं हैं ?‘
इसका जवाब है कि नहीं। इंसान का मन बना इंसान के पैदा होने के बाद जबकि ईश्वर इंसान के मन के वुजूद में आने से पहले भी था।
2. आपने दावा किया है कि
वेदान्त दर्शन....ईश्वर व .धर्म की व्याख्या करने वाला सर्वश्रेष्ठ दर्शन है।‘
यह अजीब बात है कि आप ख़ुद दावा कर रहे हैं कि वेदान्त सर्वश्रेष्ठ है और अगर कोई दूसरा आदमी अपने धर्मग्रंथ के सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करता है तो आपको शिकायत पैदा हो जाती है ?
आप कह रहे हैं कि मैं ईश्वर हूं लेकिन बिना कुछ विशेष साधनाएं किए मैं अपने ईश्वर होने को जान नहीं पाऊंगा, चलिए मैं न सही लेकिन आप तो जान ही गए हैं कि आप ईश्वर हैं ?
ईश्वर होकर भी आप बिना चश्मे पढ़ नहीं सकते और भारत के लोगों की प्रार्थनाएं स्वीकार करके उनके लिए दो जून की रोटी और दवा का इंतज़ाम नहीं कर सकते तो फिर हमें इससे क्या फ़ायदा कि आपने अपने आप को ईश्वर मान लिया या जान लिया ?
अपने ईश्वर होने के भ्रम से निकलिए और ठीक तरह केवल इंसान ही बन जाइये।
great
एक शहद की मक्खी होती है वह फूलों के ऊपर बैठती है क्योंकी उसका विवेक उसके साथ रहता है और इसका परिणाम है कि वह मधु प्रदान करती है. एक होती है घरेलू मक्खी वह इधर उधर भिन-भिनाती रहती है, वह गन्दगी और साफ जगह बिना विवेक के बैठती है इसलिए जहाँ भी बैठती है केवल गन्दगी फैलाती है. तत्त्व जानने के लिये मधु मक्खी बनाना पड़ता है और गन्दगी फैलाने के लिए सदा घरेलू मक्खी का जीवन और दृष्टिकोण कोई भी बिना विचारे अपना सकता है.
dr anwer sb
Good replies.
Jazak ALLAH khair
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