सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, June 13, 2010
Muslim means ? मैं मज़ार पर नहीं जाता और न ही मुझे इस पर गर्व है कि मैं मुस्लिम हूं।
1- यहां सब शांति शांति है। तो क्यों न ऐसे में जनाब सतीश सक्सेना साहब को ही छेड़ लिया जाये। रोते हुए बच्चों को हंसाने की ज़िम्मेदारी भी तो उन्हीं के सिर है। जनाब पेरिस गये तो वहां से भी किसी बच्चे की फ़ोटो खींच लाए। बचपन खोते ज़िम्मेदार बच्चों की गिनती दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। ख़ैर, बच्चे ही क्या बड़े भी रोते हैं तो जनाब उनके लिए भी अपील जारी कर देते हैं। ब्लॉगर्स पर बिल्कुल चित्रगुप्त स्टाइल में नज़र रखते हैं और यह बिल्कुल स्वाभाविक भी है क्योंकि माना जाता है कि चित्रगुप्त जी से उनकी बिरादरी का रिश्तेदारी का लिंक है।
बहरहाल बहुत पहले उनकी एक पोस्ट का शीर्षक किसी ने मुझे फ़ोन पर बताया था तभी मेरे मन में अपने लिए यह लाइन उभरी थी कि मैं मज़ार पर नहीं जाता और न ही मुझे इस पर गर्व है कि मैं मुस्लिम हूं।
ऐसा इसलिए है कि सभी बुजुर्गों के मज़ारों पर जाना इस्लाम में नहीं है। इस्लाम का अर्थ है समर्पण और मुस्लिम वह है जो अपने विचार और कामों को सच्चे मालिक के हुक्म के अधीन कर दे।
मैं जब भी अपना जायज़ा लेता हूं तो मुझे अपनी कमियां ही नज़र आती हैं अभी तक समर्पण के उस वांछित स्तर तक मैं नहीं पहुंचा जिसका आदर्श मनु महाराज, हज़रत इबराहीम और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. ने हमारे सामने रखा है और जिसे उनके पवित्र सत्संगियों ने प्रत्यक्ष करके दिखाया है। इस्लाम मेरे लिए गर्व यानि फ़ख्र की नहीं बल्कि फ़िक्र की बात है। फ़िक्र इस बात की कि क्या मैं इस्लाम अर्थात समर्पण के अपने दावे में सच्चा हूं ?
मोमिन की तो 2 ही हालतें हैं कि मोमिन मुश्किलों और आज़माईशों पर सब्र करता है और नेमत पर शुक्र। फ़ख्र करने की तालीम इस्लाम नहीं देता इसीलिये मैं इस्लाम पर गर्व नहीं करता। अक्सर लोगों ने वे काम तो छोड़ दिये जिन्हें करना था और उन कामों को करने लगे जिन्हें नहीं करना था, गर्व करना भी उन्हीं में से एक है।
2- पेरिस रिटर्न जनाब सतीश जी आजकल कुछ फ़ुर्सत में नज़र आ रहे हैं क्योंकि ताज़ा पोस्ट को उन्होंने तब पब्लिश किया जबकि दो तिहाई रात गुज़र चुकी थी।
एक निस्तेज से नौजवान को देखकर उन्होंने कुछ ऐसा लिखा कि हम पढ़ते ही उनके मौहल्ले की तरफ़ दौड़ लिये। हस्बे मामूल सांकल लगी हुई थी फिर भी अपनी चिठ्ठी दरवाज़े के नीचे से अन्दर सरका ही दी। ख़ैर जनाब ने उसे पढ़ा भी और दुनिया को पढ़वाया भी और फिर क़हक़हा मारकर बताया कि मैं तो वाइन पीता ही नहीं।
ठीक है साहब, नहीं पीते तो अच्छा है लेकिन सुबह की चाय तो भाभी के साथ पी लिया कीजिये। आप रात को 4.00 बजे सोयेंगे तो फिर उठेंगे कब ?
फिर अगर वे आपको चाय बनाकर न दें और आप बर्दाश्त कर लें तो आपका क्या कमाल ?
कमाल तो हमारी मां समान भाभी का है इंजीनियर साहब कि आपका कम्प्यूटर अभी तक सलामत है और सिर आदि भी।
क्या मैं यहां थोड़ा सा मुस्कुरा सकता हूं ? ---:)
मैं तो अपनी हालत जानता हूं कि कैसे अपनी बीवी की फटकार झेलता हूं और इसी पर आपकी हालत को क़यास कर सकता हूं। अब तो बच्चे भी मुझे कम्प्यूटर वाले अब्बू कहने लगे हैं।
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18 comments:
कमाल है, आप में से किसी भी बुद्धिजीवी ने मेरे इससे पिछली पोस्ट में उठाये गए प्रश्नों का जवाब नहीं दिया .
@जमाल भाई
आप तो इस ब्लॉग के स्वामी हैं , आप ही दे दीजिये उन प्रश्नों के उत्त्तर ताकि जो भी confusions हैं वो दूर हो सकें .
साथ ही मेरी बुरका समर्थक अन्य बुद्धिजीवियों से भी अपील है की वे भी उनका उत्तर देने का कष्ट करें
महक
मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब से सवाल किया गया कि मुहब्बत ए इलाही क्या है ?जवाब में उन्होंने कहा कि मोमिन सबसे ज़्यादा मुहब्बत अल्लाह से करता है।
Greatest concern of Islam is Allah
खुद को जांचिये कि क्या आपका सुप्रीम कन्सर्न अल्लाह है ?
मौलाना ने यह भी बताया कि मेरी दरयाफ़्त ‘इज्ज़‘ है। जब तक आप अपने इज्ज़ को दरयाफ़्त न कर लें तब तक आप न तो आला दर्जे की दुआ कर सकते हैं और न ही आला दर्जे की इबादत कर सकते हैं।इज्ज़ एक गुण है जो घमण्ड का विलोम है।हक़ीक़त तो यही है कि आदमी को चाहिये कि वह अपने आपको जांचता परखता रहे ताकि बेहतरी की तरफ़ उसका सफ़र जारी रह सके।
http://www.goodwordbooks.com/images/product/main/49_1260557292_taz-quran-hindi.jpg
मोमिन सबसे ज़्यादा मुहब्बत अल्लाह से करता है।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/06/blog-post_13.html
मुझे एक बात समझ में नहीं आती की आखिर हमें इस बुर्के वगैरह की ज़रुरत ही क्या है ?, महिलायों को जो वस्त्र (भद्दे एवं अश्लील वस्त्रों के अलावा ) अच्छे एवं सुविधाजनक लगें वो पहनें, इसमें चेहरा ढकने को क्यों compulsory किया जाता है ? और साथ ही बिलकुल same concept पुरुषों पर क्यों नहीं लागू होता ?, उन्हें भी फिर चेहरा ढकने के लिए बुर्के का इस्तेमाल compulsory करें . कमाल है ! लोगों को इतनी सी बात भी समझ में नहीं आती की जिसे जो वस्त्र ( भद्दे एवं अश्लील वस्त्रों के अलावा ) सुविधाजनक लगें चाहे महिला हों या पुरुष वो पहनें .
महक
@ महक भाई! मौलाना ने बताया है कि ‘चेहरा ढकना आवश्यक नहीं है।‘
लेकिन अगर कोई औरत चेहरा ढकना चाहे यह उसकी इच्छा और उसका अधिकार है।
मर्द को भी अधिकार है कि चाहे तो अपना चेहरा ढक ले लेकिन उसके लिये भी चेहरा ढकना अनिवार्य नहीं है।
इसमें कन्फ़्यूझन है कहां?
बहुत खूब पकड़ा है आपने आज सतीश साहब को।
बीबियां तो सभी की परेशान हैं इस मुए इंटरनेट से।
बीबियां तो सभी की परेशान हैं इस मुए इंटरनेट से।
Nice Post .
Behtreen Post!
@ जमाल भाई
आपका बहुत-२ शुक्रिया confusion clear करने के लिए .मौलाना जी से मुझे कोई परेशानी नहीं .बल्कि मेरे दिल में तो उनके लिए काफी सम्मान पैदा हुआ है आपकी और शहनवाज़ भाई की पोस्ट्स पढ़कर .उनका तहे दिल से आदर करता हूँ .मैं यही जानना चाहता था की इस्लाम में ये औरत की इच्छा पर निर्भर करता है या फिर उस पर compulsion मतलब ज़बरदस्ती थोपता है क्योंकि इस्लाम और anti -muslim लोगों के तर्कों में से ये भी एक होता है की इस्लाम में औरतों की इच्छा और स्वंतन्त्रता का बिलकुल ख़याल नहीं रखा जाता. लेकिन जैसा की आपने बताया है की ये औरत और मर्द की इच्छा पर निर्भर है तो इससे तो फिर किसी को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. इसी तरह की और भी बहुत सी भ्रांतियां हैं इस्लाम के बारे में, आपसे आगे कभी उन शंकाओं का भी निवारण चाहूंगा .लेकिन अभी के लिए ये doubt clear करने के लिए आपको एक बार फिर से धन्यवाद .
महक
लगता है महक जी आप भी इन लोगो की बातो मे आ गए
अनवर भाई !
आपने तो आज पूरी पोस्ट ही एक छोटे से इंसान पर लिख दी इसे आपकी दरियादिली मानता हूँ हालांकि मैं अपने आप को इस काबिल बिलकुल नहीं मानता कि जनाब अनवर जमाल मुझपर ( मेरी हरकतों पर ) पोस्ट लिखें :-)
डरता हूँ आपकी तीखी निगाह से ...वाइन तक तो पंहुच ही गए, खुदा खैर करे ... !
शहरोज़ के घर सुबह गया था , उनसे कोई गृह उद्योग जैसे कोचिंग, सिलाई अथवा पैकिंग इंडस्ट्री से रिलेटेड मशीन लगाने के लिए कहा है ! अगर वे अपने परिवार के साथ मिलकर यह कार्य करती हैं तो आवश्यक धन की व्यवस्था करवाने का प्रयत्न करूंगा !
चूंकि शहरोज़ की पोस्ट मैंने देर रात में ही पढी जब मैं सोने की तैयारी कर रहा था ...सो यह अपील निकालने में देरी हुई ! :-) शहरोज़ मिया की अपील मार्मिक थी, और हम लोगों के होते हुए हमारा अपना कोई साथी समस्याग्रस्त हो तो हमारा यह फ़र्ज़ है की हम खुद ना सोयें ....
आदर सहित
डा० साहब आज की पोस्ट का वाक़ई जवाब नही. ये आपकी सतीश भाई के लिए मुहब्बत का सबूत बन गयी है. वैसे भी आज के दोर मैं सतीश भाई जैसे प्यारे लोग बहुत कम हैं. मुझे भी बहुत अरमान है सतीश भाई से मिलने का.
मोमिन मुश्किलों और आज़माईशों पर सब्र करता है और नेमत पर शुक्र। फ़ख्र करने की तालीम इस्लाम नहीं देता.
KEEP IT UP
बड़ा ही दुखद है,किसी असहाय एवं उसके मददगार पर व्यंग्य करना। भले कितने ही सभ्य तरीके से किया जाय
@ Nitin जी
मैं इनकी या उनकी किसी की भी बातों में नहीं आता ,मैं हमेशा सही बात का साथ देता हूँ , गलत का विरोध करता हूँ और जिसमें शंका हो या मेरा ज्ञान किसी विषय के बारे में कम हो तो उसके बारे में confirm करता हूँ, अगर कोई भी व्यक्ति सही बात कहता है तो सिर्फ इसलिए की वो किसी धर्मविशेष या जातिविशेष का है मैं उसकी सही बात को भी नकार दूं तो ये तो सच से आँख चुराने वाली बात होगी . हम सबको "कौन सही है " की बजाये " क्या सही है " पर ध्यान देना चाहिए.
महक
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