पैग़म्बर साहब स. भी टकराव और खून ख़राबा टालने के लिये ही मक्का छोड़कर चले गये।
हिन्दू श्री रामचन्द्र जी को अपना आदर्श मानते हैं और मुसलमान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. को । दोनों समुदायों के नेता इनमें से किसी को भी अपना आदर्श नहीं मानते और टकराव का माहौल तैयार करते रहते हैं। जबकि दोनों समुदायों के लोग आपस में प्यार से रहते हैं और रोज़ी रोटी कमाने में एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अगर दोनों समुदाय के आम लोग और नेता अपने आदर्श पुरूषों के जीवन से शिक्षा लेकर उसपर व्यवहार करें तो हरेक विवाद का हल शांतिपूर्वक हो सकता है।
ऐसा मैंने लिखा तो इसमें आपको मुझपर तरस खाने और ब्लॉग संसद पर मूर्ख बताने की कौन सी ज़रूरत आन पड़ी ?
सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है और जो हर चीज़ को देखता है मगर उसे कोई आंख नहीं देख सकती। वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है। मस्जिद में उसी की पूजा होती है।
मंदिर में उसके अलावा की होती है। इस तरह समाज में अनिश्चितता का माहौल बनता है। जो कुछ भी ज्ञान नहीं दे सकते लोग उनसे प्रार्थना करके अपना समय , धन और जीवन नष्ट करते हैं।
क़ानून उन्हें अपनी मान्यता के अनुसार जीने की अनुमति देता है तो उन्हें वह करने दिया जाए जो वे करना चाहें लेकिन क़ानून हरेक को यह अधिकार देता है कि वह अपने विचार से जिस बात को सत्य मानता है दूसरों को उससे आगाह कर दे। मैंने मुसलमानों को टकराव से बचकर लोगों से ‘संवाद‘ की सलाह दी है जो कि आधुनिक दुनिया का बेस्ट मैथड है। इसमें आपको तरस क्यों आ गया ?
- कृष्ण जी ने इन्द्र की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?
- शिवजी ने ब्रह्मा की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?
- बुद्ध और महावीर ने यज्ञों का विरोध किया , आपको उनपर तरस न आया ?
- शंकराचार्य ने देशभर में घूम घूम कर बौद्धों और जैनियों के मतों का खण्डन करके अपने मत को प्रतिष्ठित किया , आपको उनपर तरस न आया ?
- गुरू नानक ने ‘वेद पुरान सब कहानी‘ कहकर उनका खण्डन किया । सूर्य को जल चढ़ाते लोगों को शिक्षा देने के लिये पश्चिम की तरफ को मुंह करके अपने खेतों को पानी देने का अभिनय किया। आपको उनपर तरस न आया।
- कबीर ने ‘पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूं पहार, तातै वा चक्की भली पीस खाय संसार‘ कहकर मूर्तिपूजा का खण्डन किया । आपको उनपन तरस नहीं आया ?
- दयानंद जी ने पुराणों के मानने वालों का , उनके गुरूओं का दिल खोलकर मज़ाक़ उड़ाया। आपको उनपर तरस न आया ?
- विवेकानंद के पास विदेश जाने के लिये रक़म नहीं थी। उन्होंने सहायता मांगी मगर वे विदेश गये। सब को ठीक कहते कहते भी भगिनी निवेदिता को भारतीय कल्चर में रंग डाला। आपको उनपर तरस न आया ?
पवित्र कुरआन पर आये दिन भंडाफोड़ू और उस जैसे कई ब्लॉगर्स बेबुनियाद इल्ज़ाम आयद करते रहते हैं और नामी ब्लॉगर्स उनकी वाह वाह करके उसे टॉप पर पहुंचा देते हैं तब आप धृतराष्ट्र का रोल करने लगते हैं, क्यों ?
उनकी ख़ैर ख़बर ली जाये और वास्तविकता स्पष्ट कर दी जाये तो आपको तरस आने लगता है , वह ब्लॉगर मूर्ख दिखने लगता है। क्यों ?
बुद्धिमान दिखने के लिये ज़ाकिर अली ‘रजनीश‘ और इरफ़ान आदि की तरह सब कुछ देखकर भी गांधी जी के बंदर की तरह गीत ग़ज़ल में मगन रहा जाये तो आप उसे उदारमना मान लेंगे। मैं जिस बात को सत्य मानता हूं उसे साफ़ कहता हूं । अब कोई मुझे जो कुछ भी समझे , मुझे परवाह नहीं , लेकिन मैं ईमानदारी का दम भरने वाले आप जैसे बुजुर्ग से यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि वही गुण , वही कार्य तो हज़ारों साल से इस पवित्र, पुण्य और कर्मभूमि भारत में होता आ रहा है, अब भी हो रहा है, तब सबको छोड़कर आपको तरस खाने के लिये मैं ही क्यों मिला ?
हौसला पस्त करने का यह भी एक तरीक़ा होता है। जो नाम के लिये लिखता है वह अपना नाम ख़राब होता देखकर उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ता।
क़ानून से अन्जान आदमी के लिये क़ानून एक डरावनी चीज़ है लेकिन जो मुझे पहचानते हैं वे जानते हैं कि क़ानून मेरी बुनियाद में दाखि़ल है।
वैसे अगर आपने कुछ क़ानूनी कार्रवाई कर भी दी तो क़ानून मेरा क्या बिगाड़ेगा ?
कौन सी बात मैंने ऐसी कही है जो क़ानून के विपरीत है ?
सरिता मुक्ता के ‘विश्वनाथ जी‘ पर दर्जनों बार मुक़द्दमे किये गये लेकिन उन्हें सज़ा एक दिन की भी न हुई। आपको उनपर भी कभी तरस न आया।
इमोशनल ब्लैकमेलिंग, क़ानून की धमकी सब मेरे ही लिए, आखि़र क्यों ?
और अगर आप या कोई दूसरा क़ानूनी कार्रवाई करता है तो वे सब ‘उत्साही युवा‘ चौड़े में मारे जाएंगे जिन्होंने मेरे ब्लॉग पर इस्लाम और पैग़म्बर साहब स. के प्रति ‘हिन्दुत्ववादी टिप्पणियां‘ कर रखी हैं।
मैं तो चाहता हूं कि कोई तो करे क़ानूनी कार्रवाई । यहां आड़ में जाने कब से यह ग़लीज़ खेल खेला जा रहा था वह तो मीडिया के ज़रिये जगज़ाहिर होगा।
इस सबके बाद भी मुझे आपसे प्रेम ही है। इस जग से विदा होने वाले को किसी से रंजिश रखके करना भी क्या है ?
जो टिप्पणी पढ़कर जनाब सतीश सक्सेना साहब मुझ पर तरस खाने को आमादा हुए वह निम्न है-
जनाब शरीफ़ साहब ! आप स्वीकारते हैं कि मसले को जानबूझकर उलझाया गया है, आप यह भी जानते हैं कि वे बाअसर लोग हैं। वे ऐसे लोग हैं कि ‘अल्पसंख्यक‘ होने के बावजूद बहुसंख्यक पर राज कर रहे हैं। लोग जब कभी शांत चित्त हो जायेंगे वे जान लेंगे कि देश की संपदा पर नाजायज़ तरीक़े से कौन क़ाबिज़ है। वे चाहते हैं कि विवाद कभी न सुलझे, एक विवाद सुलझे तो दूसरा खड़ा कर दें। वास्तव में मसला मंदिर मस्जिद का है ही नहीं। मुसलमानों को डिमॉरेलाइज़ करने का है। ऐसे में मुसलमानों को किसी भी विवाद को हवा देना उचित नहीं है। जो लोग परलोक को नहीं मानते, ईश्वर के कल्याणकारी अजन्मे अविनाशी स्वरूप को नहीं जानते वे क्या न्याय देंगे ?
ये लोग केवल कूटनीति जानते हैं कि कैसे मंथन के बाद निकले हुए अमृत का बंटवारा ‘केवल अपनों‘ में हो ?
इस्लाम शांति का पैग़ाम है और यहां माहौल टकराव के लिए तैयार किया जा रहा है और मुसलमानों से लड़ाया जाएगा उन पिछड़ी जाति के लोगों को, जो खुद उनके अत्याचार से त्रस्त हैं ताकि जो भी मरे उनका एक दुश्मन कम हो। न्याय इस जगत में केवल बलशाली को ही मिलता है और मुसलमानों ने बहुत से फ़िरक़ों में बंटकर खुद को निर्बल बना लिया है।
कहावत है कि ‘ठाडै की दूर बला‘ ।
- मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ?
- मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ?
- और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ?
आजकल राहबर ही राहज़न बने हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद की आड़ में माल इकठ्ठा किया जा रहा है। आज़म खां की मिसाल सबके सामने है। अल्लाह ने हरेक उस आदमी को ज़लील कर दिया है जिसने उसके बन्दों को उसके नाम पर लड़ाया और नाम और दाम कमाया।
बहुसंख्यक हिन्दू और मुसलमान भोले हैं। आपस में प्यार से रहते हैं। यह प्यार बना रहे , बढ़ता रहे , ऐसी कोशिश करनी चाहिये।
खुद श्री रामचन्द्र जी ने वन में जाना पसंद किया लेकिन लड़कर राज्य न किया , उनके नाम को लड़ाई के लिये इस्तेमाल करना महापाप है।
खुद हज़रत मुहम्मद साहब स. ने मक्का छोड़कर मदीना जाना गवारा किया लेकिन अपने अनुयायियों को काबा पर क़ब्ज़ा करने के लिये न कहा।
हम जिन्हें अपना आदर्श कहते हैं, उनके जीवन से हमें व्यवहारिक शिक्षा लेनी चाहिये।
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/babri-masjid-sharif-khan.html?showComment=1280507284599#c2097935227089136194