और वे कहते हैं कि हमारी इस दुनिया की ज़िंदगी के सिवा कोई और ज़िंदगी नहीं-हम मरते हैं और जीते हैं और हमें सिर्फ़ कालचक्र नष्ट करता है।और उन्हें इस विषय में कोई ज्ञान नहीं है , वे केवल कल्पना के आधार पर ऐसा कहते हैं । -अलजासिया,24
तज़्कीरूल-कुरआन, उर्दू से हिन्दी अनुवाद
हमेशा चीज़ें ज़ाहिर होती हैं और हक़ीक़त पोशीदा, गुप्त और रहस्य। घटनाएं दिखाई देती हैं और नियम उनके आवरण में छिपे होते हैं।
अक्सर लोगों की नज़र चीज़ों और घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाती है। बहुत कम लोग होते हैं जिनकी अक्ल-ओ-निगाह उनमें काम कर रहे नियमों और उनमें छिपी हक़ीक़तों तक पहुंचती है।
सेब का पेड़ से गिरना एक घटना है जिसे अरबों-खरबों इनसान हज़ारों साल से देखते चले आए हैं। न्यूटन ने भी यह घटना देखी और उसकी अक्ल-ओ-निगाह गुरूत्वाकर्षण के उस नियम तक पहुंच गई जिसके तहत यह घटना घटित होती है। यह नियम तो उस समय भी मौजूद था जब लोग उसे दरयाफ़्त नहीं कर पाए।
बुलन्द हक़ीक़तों तक बहुत कम अक्लें पहुंच पाती हैं।
सबसे ज़्यादा बुलन्द हक़ीक़त ईश्वर है। वह परम सत्य है।
प्रकृति प्रकट है और ईश्वर रहस्य। कुदरत नज़र के सामने है और कुदरत वाला नज़र की पहुंच से परे।
जो ईश्वर को नहीं मानता, कुदरत को तो वह भी मानता है।
प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ?
नियम और व्यवस्था की मौजूदगी खुद बता रही है कि प्रकृति के अलावा कोई ‘हस्ती‘ है जो व्यवस्थापक है, जिसकी बुद्धि और शक्ति अतुलनीय है। जगत की प्रोग्रैमिंग इसी ‘हस्ती‘ ने की है। इस परम सत्य तक बहुत कम लोगों की पहुंच हो सकी है। ज़्यादातर लोग उसका नाम लेने के बावजूद अपने आचरण से यही साबित कर रहे हैं कि जैसे वे किसी ‘स्वामी‘ के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। जब यही लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर के नाम की आड़ लेकर शोषण करते हैं तो इनके दुराचरण से घिन करने वालों को ईश्वर के वुजूद में भी शक होने लगता है। लेकिन यह भी केवल घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाना हुआ।
हक़ीक़त हमेशा गहरी होती है और उस तक गहरी नज़र वाले ही पहुंच पाते हैं। इन्हीं को तत्वदर्शी और आरिफ़ कहा जाता है। जो ज़ाहिर से आगे नहीं बढ़ना चाहते, हक़ीक़त कभी उनके हाथ नहीं आती और जिन्हें हक़ीक़त से कम मंज़ूर नहीं है वे कभी महरूम नहीं रहते।
मिलियन डॉलर क्वेश्चन यह है कि
आप खुद को टटोलें कि आपको क्या चाहिए ?
सिर्फ़ ज़ाहिर या कि हक़ीक़त ?
एक बेहतरीन सवाल आप ने उठाया है. फ़िक्र करने की ज़रुरत है. वैसे भी अल्लाह हिदायत हर एक को नहीं देता...
ReplyDeleteहिदायत उसी को मिलती है जो हिदायत पाने की कोशिश करता है।
ReplyDelete‘हरेक के लिये उसकी कोशिश के मुताबिक़ है।‘ यह उसूल पवित्र कुरआन में मज़्कूर है।
हकीकत हमेशा गहरी होती है और उसे गहरी नज़र वाले ही खोज पाते है
ReplyDeleteहम तो बस हक़ीक़त चाहते हैं
ReplyDeleteप्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ?
ReplyDeleteGOOD POST
ReplyDeleteबिना दिमाग की प्रकृति अधिक संतुलित और नियमबद्ध होती है। क्यों कि वह प्रकृति के नियमों की अवहेलना नहीं करती।
ReplyDelete'बहुत कम लोग होते हैं जिनकी अक्ल-ओ-निगाह उनमें काम कर रहे नियमों और उनमें छिपी हक़ीक़तों तक पहुंचती है'....
ReplyDeleteअनवर जी,
हम सब बहुत कम देखते हैं...हम केवल चमतकारी चीजों को ही देखते हैं..साधारन वस्तु हमें नहीं लुभाती.....
हाँ ....एक बात कह देती हूँ....' हाइकु' पढ़ने और लिखने का अभ्यास हमें बहुत कुछ सिखाता है....
अगर आप भी कुछ रुचि रखते हैं...हिन्दी हाइकु पढ़ने आएँ....पता है....
http://hindihaiku.wordpress.com
हरदीप
(55.29)
ReplyDeleteऔर जो भी मखलूक आसमान व ज़मीन में हैं (सब) उसी से माँगते हैं वह हर वक्त एक नई शान में है
---Al Quraan
PLZ READ
ReplyDeleteعز ا ب قبر अज़ाब कब्र...the grave punishment http://deen-dunya.blogspot.com/2010/07/grave-punishment-true-story.html
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ReplyDelete.
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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,
आपने प्यार से बुलाया , तो आना ही था... वैसे यह पोस्ट पढ़ ली थी मैंने...या यों कहूं कि आपकी हर पोस्ट पढ़ता हूँ... पर कमेंट तभी देता हूँ जब कुछ हो मेरे पास उस बारे में कहने को...
अब आप का इस पोस्ट का सवाल... प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ?... यदि ऐसा है भी, (पहले तो है नहीं, अगर मानव के परिप्रेक्ष्य में ही लें तो रात-दिन आने वाले भूकंप, अल्प या अति वृष्टि, बाढ़-सूखा, महामारियाँ, अकाल...कैसा संतुलन है यह?) तो क्या इस संतुलन का कारक क्या कोई ऐसा 'अस्तित्व' है जिसने यह सब बनाया व खुद इस सब से बाहर है ?
'Emergence of order out of chaos/anarchy over a period of time' वह सूत्र है जो प्रकृति की इस तथाकथित योजना व संतुलन को बेहतर तरीके से समझा सकता है...उदाहरण के लिये आप दुनिया के सबसे बदतमीज, जाहिल, झगड़ालू, अपराधी और किसी भी नियम को तोड़ने में फख्र महसूस करने वाले इंसानों का घनी आबादी वाला एक शहर बसा दो...जहाँ कोई ट्रैफिक पुलिस भी न हो...क्या इस शहर में हमेशा जाम लगा रहेगा... नहीं, कुछ ही समय के बाद chaos से ही व्यवस्था जन्म लेगी... यही कुदरत है... किसी 'अनदेखे', 'अनजाने' का कोई हाथ नहीं इसमें...
प्रकृति में भी इसी तरह थोड़ा बहुत संतुलन आया है...ऐसा हमें लगता है केवल...मिसाल के तौर पर हमारी पृथ्वी को ही देखिये... अपनी धुरी पर और सूर्य के चारों ओर घूमने की इसकी रफ्तार (नगण्य ही सही) पर कम तो हो ही रही है... इसीलिये हर कुछ सालों में दुनिया की घड़ियों को एक लम्हा रोकने की कवायद होती है।
आशा है अपनी बात कह पाया...विषय गूढ़ है पर मैंने प्रयास करने की हिम्मत की है!
आभार!
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