’’ हर चीज़ जो इस ज़मीन पर है फ़ना (ख़त्म) हो जाने वाली है। और केवल तेरे रब की आला (उँची) और करम करने वाली हस्ती ही बाक़ी रहने वाली है। ’’ जो पैदा हुआ है उसे मरना अवश्य है। मौत कब आनी ह,ै और कैसे आनी है, यह भी पहले से निश्चित किया हुआ है। इस प्रकार से जो बात हमारे वश के बाहर है उस पर हम कुछ नहीं कर सकते। अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाह, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची है, का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता। उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है। मौत की आलोचना करने के बजाय इससे हमको सबक़ हासिल करना चाहिए। एक तो यह कि मौत कभी भी आ सकती है इसलिए हम को सदैव इसके लिये तैयार रहना चाहिए। तैयार ऐसे कि हम यह सोचें कि यदि अभी मर गए तो क्या हम किसी का कुछ बुरा तो नहीं चाह रहे है। किसी को हमसे कोइ्र्र कष्ट तो नहीं पहुंचा है, हमने किसी का दिल तो नहीं दुखाया है, आदि। इस प्रकार हमें सदैव अल्लाह को याद करते रहना चाहिए। ध्याान रहे अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलना ही अल्लाह को याद करना है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि, अल्लाह अल्लाह करते रहेें और ऐसे कार्य भी करते रहें जिनसे अल्लाह नाराज़ होता हो, यह अल्लाह को याद करना कदापि नहीं हो सकता। अल्लाह नें बच्ची के रूप में जो अमानत उसके माता-पिता को, उसके लालन-पालन के लिये, सौंपी थी वह वापस ले ली। संतोष करने में यह बात सहायक तो हो सकती है परन्तु इतने दिन साथ रहने, इस बच्ची के पालन-पोषण से जो लगाव, प्यार और और ममता के भाव उत्पन्न होते हैं, उनकी भरपाई तब तक सम्भव नहीं है जब तक अल्लाह इस बच्ची के माता-पिता, बहन, भाई आदि सम्बन्धित सभी लोगों को सब्र और सन्तोष न दे। आइए हम अल्लाह से दुआ करें कि वह अनम के परिवार वालों को सब्र दे। आमीन!
ईश्वर इस घड़ी में आपको हौंसला दे..अनवर जमाल साहब मैं खुदा, आल्लाह, ईसाह, और मेरे भगवान से उस मासूम फूल सी कोमल बच्ची कि आत्मा कि शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ.. भगवान् उस मासूम से बच्ची को स्वर्ग में स्थान दे.. और आपको हिम्मत दे.
श्री शरीफ जी ने दुनिया की सबसे संकीर्ण जाति के मिथकों में से एक उपदेश ढूंढने में सफलता पाई, परंतु नजर पड़ गई हमारी और हमने उनकी सफलता पर बेरियों के कांटे बिखेर दिये।झूठी है यह कहानी। 1-अगर गांधारी को भूख लगी थी तो किसी भी मृत राजा के रथ से भोजन लेकर खा सकती थी क्योंकि जो राजा लड़ने आये होंगे वे अपने साथ भोजन पानी भी तो लाए होंगे।2-सुज्ञ जैसे लोग बताते हैं कि महाभारत का युद्ध परमाणु अस्त्रों से लड़ा गया था। सो वहां तो परमाणु विकिरण ने सारे पेड़ और लाशें ही जला डाली होंगी। फिर वहां मृतक और बेरी का पेड़ होना असंभव है।3-इसके बावजूद यह सच्ची बात है कि भूख बहुत पीड़ा और अपमान देती है।4-इस बात को आप दलितों के जीवन की, बाबा साहब के जीवन की सच्ची घटनाओं के माध्यम से भी तो कह सकते थे, क्यों ?5-परंतु आपको तो सवर्णों के दिलों को जीतना है । उनकी कारों और कोठियों से आप रूआब खाते हो।6-आपको सच से सरोकार नहीं है बल्कि आपको तो बुढ़ापे में थोड़ी सी वाह वाह चाहिये।7-अरे वाह वाह तो दलित भी कर सकते हैं। थोड़ा आप उनकी तरफ कदम बढ़ाकर तो देखें।उस झूठी कहानी का एक भाग दिखाता हूं आप सभी लोगों को - महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कौरवों की मां गान्धारी अपने सभी सौ पुत्रों के मारे जाने के समाचार से आहत होकर युद्ध क्षेत्र का अवलोकन करने पहुंची और जब अपने एक पुत्र के शव को पड़े देखा तो बिलखकर रोने लगी। इस मन्ज़र को देखकर वहां उपस्थित लोगों के हृदय भी द्रवित हो गए परन्तु इसके पश्चात् जब उसका एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे शव से लिपटकर रोने का क्रम जारी हुआ तो इस हृदय विदारक दृश्य ने सभी उपस्थित जनों को विचलित कर दिया। वहां उपस्थित लोगों के आग्रह पर श्री कृष्ण ने इस शोकपूर्ण वातावरण को बदलने का उपाय इस प्रकार से किया कि गान्धारी को भूख का एहसास करा दिया। इस प्रकार वह भूख से इतनी विचलित हुई कि अपने पुत्रों की मृत्यु के दुःख को भूलकर पेट की भूख मिटाने का उपाय सोचने लगी। चारों ओर नजर दौड़ाने पर एक बेरी का वृक्ष दिखाई पड़ा जिसपर एक बेर लगा हुआ था। अपनी क्षुधापूर्ति हेतु गान्धारी ने उस बेर को तोड़ने का प्रयास किया परन्तु वहां तक हाथ न पहुंच पाया। हाथ बेर तक पहुंचे, इसके लिए जो तरकीब अपनाई गई उसका वर्णन रोंगटे खड़े करने देने वाला तो है ही साथ ही उससे यह भी ज़ाहिर होता है कि भूख से जो पीड़ा उत्पन्न होती है वह सारे दुःखों पर भारी है। वर्णन कुछ इस प्रकार है जब बेर तोड़ने के लिये गान्धारी का हाथ वहां तक नहीं पहुंच पाया तो नीचे ज़मीन पर पड़े हुए अपने एक पुत्र के शव को पेड़ के नीचे तक खींच कर लाई और उस पर चढ़कर प्रयास किया परन्तु हाथ फिर भी बेर तक न पहुंच पाया। फिर दूसरे पुत्र का शव खींच कर लाई और उसको पहले पुत्र के शव के ऊपर रखा परन्तु फिर भी सफल न हो पाई। चूंकि वहां आस पास उसी के पुत्रों के शव पड़े थे इसलिये वह उन्हीं को एक के बाद एक लाती रही और बेर तोड़ने का प्रयास करती रही। इस दिल हिला देने वाली घटना के बाद भूख को गान्धारी ने इस प्रकार से बयान है -
अर्थात् हे कृष्ण! बुढ़ापा स्वयं में एक कष्ट है। ग़रीबी उससे भी बड़ा कष्ट है। पुत्र का शोक महा कष्ट है परन्तु इन्तहा दर्जे की भूख सारे कष्टों से भी बड़ा कष्ट है। ध्यान रहे गान्धारी ने स्वयं यह सारे कष्ट झेले थे।
are baap re !
ReplyDeleteसौ फीसद सही!!!!
ReplyDeletebadhiya baat
ReplyDeleteडॉ. जमाल सहाब क्या अब और इश्वर के सन्देश्ता नहीं आयेंगे ?या पूरी उमर कब्रों को पूजते रहेंगे ?
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteइन्नालिल-लाहे-व-इन्ना-अलहे राजेऊन !!
ReplyDeleteबेशक हम सब को अल्लाह के पास वापस जाना हैं.
इस दुख की घड़ी में अल्लाह आप को सब्र करने की तौफ़ीक़ दे.( आमीन)
इस दुःख की घडी में मैं आपके साथ हूँ
ReplyDelete’’ हर चीज़ जो इस ज़मीन पर है फ़ना (ख़त्म) हो जाने वाली है। और केवल तेरे रब की आला (उँची) और करम करने वाली हस्ती ही बाक़ी रहने वाली है। ’’
ReplyDeleteजो पैदा हुआ है उसे मरना अवश्य है। मौत कब आनी ह,ै और कैसे आनी है, यह भी पहले से निश्चित किया हुआ है। इस प्रकार से जो बात हमारे वश के बाहर है उस पर हम कुछ नहीं कर सकते।
अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाह, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची है, का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता।
उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है।
मौत की आलोचना करने के बजाय इससे हमको सबक़ हासिल करना चाहिए। एक तो यह कि मौत कभी भी आ सकती है इसलिए हम को सदैव इसके लिये तैयार रहना चाहिए। तैयार ऐसे कि हम यह सोचें कि यदि अभी मर गए तो क्या हम किसी का कुछ बुरा तो नहीं चाह रहे है। किसी को हमसे कोइ्र्र कष्ट तो नहीं पहुंचा है, हमने किसी का दिल तो नहीं दुखाया है, आदि। इस प्रकार हमें सदैव अल्लाह को याद करते रहना चाहिए। ध्याान रहे अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलना ही अल्लाह को याद करना है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि, अल्लाह अल्लाह करते रहेें और ऐसे कार्य भी करते रहें जिनसे अल्लाह नाराज़ होता हो, यह अल्लाह को याद करना कदापि नहीं हो सकता।
अल्लाह नें बच्ची के रूप में जो अमानत उसके माता-पिता को, उसके लालन-पालन के लिये, सौंपी थी वह वापस ले ली। संतोष करने में यह बात सहायक तो हो सकती है परन्तु इतने दिन साथ रहने, इस बच्ची के पालन-पोषण से जो लगाव, प्यार और और ममता के भाव उत्पन्न होते हैं, उनकी भरपाई तब तक सम्भव नहीं है जब तक अल्लाह इस बच्ची के माता-पिता, बहन, भाई आदि सम्बन्धित सभी लोगों को सब्र और सन्तोष न दे।
आइए हम अल्लाह से दुआ करें कि वह अनम के परिवार वालों को सब्र दे। आमीन!
दुख की इस घड़ी मे आपसे सहानुभूति
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने, बेहतरीन, बहुत खूब!
ReplyDeleteईश्वर इस घड़ी में आपको हौंसला दे..अनवर जमाल साहब मैं खुदा, आल्लाह, ईसाह, और मेरे भगवान से उस मासूम फूल सी कोमल बच्ची कि आत्मा कि शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ.. भगवान् उस मासूम से बच्ची को स्वर्ग में स्थान दे..
ReplyDeleteऔर आपको हिम्मत दे.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteश्री शरीफ जी ने दुनिया की सबसे संकीर्ण जाति के मिथकों में से एक उपदेश ढूंढने में सफलता पाई, परंतु नजर पड़ गई हमारी और हमने उनकी सफलता पर बेरियों के कांटे बिखेर दिये।झूठी है यह कहानी। 1-अगर गांधारी को भूख लगी थी तो किसी भी मृत राजा के रथ से भोजन लेकर खा सकती थी क्योंकि जो राजा लड़ने आये होंगे वे अपने साथ भोजन पानी भी तो लाए होंगे।2-सुज्ञ जैसे लोग बताते हैं कि महाभारत का युद्ध परमाणु अस्त्रों से लड़ा गया था। सो वहां तो परमाणु विकिरण ने सारे पेड़ और लाशें ही जला डाली होंगी। फिर वहां मृतक और बेरी का पेड़ होना असंभव है।3-इसके बावजूद यह सच्ची बात है कि भूख बहुत पीड़ा और अपमान देती है।4-इस बात को आप दलितों के जीवन की, बाबा साहब के जीवन की सच्ची घटनाओं के माध्यम से भी तो कह सकते थे, क्यों ?5-परंतु आपको तो सवर्णों के दिलों को जीतना है । उनकी कारों और कोठियों से आप रूआब खाते हो।6-आपको सच से सरोकार नहीं है बल्कि आपको तो बुढ़ापे में थोड़ी सी वाह वाह चाहिये।7-अरे वाह वाह तो दलित भी कर सकते हैं। थोड़ा आप उनकी तरफ कदम बढ़ाकर तो देखें।उस झूठी कहानी का एक भाग दिखाता हूं आप सभी लोगों को - महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कौरवों की मां गान्धारी अपने सभी सौ पुत्रों के मारे जाने के समाचार से आहत होकर युद्ध क्षेत्र का अवलोकन करने पहुंची और जब अपने एक पुत्र के शव को पड़े देखा तो बिलखकर रोने लगी। इस मन्ज़र को देखकर वहां उपस्थित लोगों के हृदय भी द्रवित हो गए परन्तु इसके पश्चात् जब उसका एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे शव से लिपटकर रोने का क्रम जारी हुआ तो इस हृदय विदारक दृश्य ने सभी उपस्थित जनों को विचलित कर दिया। वहां उपस्थित लोगों के आग्रह पर श्री कृष्ण ने इस शोकपूर्ण वातावरण को बदलने का उपाय इस प्रकार से किया कि गान्धारी को भूख का एहसास करा दिया। इस प्रकार वह भूख से इतनी विचलित हुई कि अपने पुत्रों की मृत्यु के दुःख को भूलकर पेट की भूख मिटाने का उपाय सोचने लगी। चारों ओर नजर दौड़ाने पर एक बेरी का वृक्ष दिखाई पड़ा जिसपर एक बेर लगा हुआ था। अपनी क्षुधापूर्ति हेतु गान्धारी ने उस बेर को तोड़ने का प्रयास किया परन्तु वहां तक हाथ न पहुंच पाया। हाथ बेर तक पहुंचे, इसके लिए जो तरकीब अपनाई गई उसका वर्णन रोंगटे खड़े करने देने वाला तो है ही साथ ही उससे यह भी ज़ाहिर होता है कि भूख से जो पीड़ा उत्पन्न होती है वह सारे दुःखों पर भारी है। वर्णन कुछ इस प्रकार है जब बेर तोड़ने के लिये गान्धारी का हाथ वहां तक नहीं पहुंच पाया तो नीचे ज़मीन पर पड़े हुए अपने एक पुत्र के शव को पेड़ के नीचे तक खींच कर लाई और उस पर चढ़कर प्रयास किया परन्तु हाथ फिर भी बेर तक न पहुंच पाया। फिर दूसरे पुत्र का शव खींच कर लाई और उसको पहले पुत्र के शव के ऊपर रखा परन्तु फिर भी सफल न हो पाई। चूंकि वहां आस पास उसी के पुत्रों के शव पड़े थे इसलिये वह उन्हीं को एक के बाद एक लाती रही और बेर तोड़ने का प्रयास करती रही। इस दिल हिला देने वाली घटना के बाद भूख को गान्धारी ने इस प्रकार से बयान है -
ReplyDeleteवसुदेव जरा कष्टम् कष्टम दरिद्र जीवनम्।
पुत्रशोक महाकष्टम् कष्टातिकष्टम परमाक्षुधा।।
अर्थात् हे कृष्ण! बुढ़ापा स्वयं में एक कष्ट है। ग़रीबी उससे भी बड़ा कष्ट है। पुत्र का शोक महा कष्ट है परन्तु इन्तहा दर्जे की भूख सारे कष्टों से भी बड़ा कष्ट है। ध्यान रहे गान्धारी ने स्वयं यह सारे कष्ट झेले थे।