Pages

Saturday, July 31, 2010

The real Guide सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है . वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है। -Anwer Jamal

जनाब सतीश जी! मैंने लिखा है कि मस्जिद के लिए किसी इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। रामचन्द्र जी ने वनवास स्वीकार किया लेकिन लड़कर अपनी जन्मभूमि में न रहे।
पैग़म्बर साहब स. भी टकराव और खून ख़राबा टालने के लिये ही मक्का छोड़कर चले गये।
 हिन्दू श्री रामचन्द्र जी को अपना आदर्श मानते हैं और मुसलमान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. को । दोनों समुदायों के नेता इनमें से किसी को भी अपना आदर्श नहीं मानते और टकराव का माहौल तैयार करते रहते हैं। जबकि दोनों समुदायों के लोग आपस में प्यार से रहते हैं और रोज़ी रोटी कमाने में एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अगर दोनों समुदाय के आम लोग और नेता अपने आदर्श पुरूषों के जीवन से शिक्षा लेकर उसपर व्यवहार करें तो हरेक विवाद का हल शांतिपूर्वक हो सकता है।
ऐसा मैंने लिखा तो इसमें आपको मुझपर तरस खाने और ब्लॉग संसद पर मूर्ख बताने की कौन सी ज़रूरत आन पड़ी ?

सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है और जो हर चीज़ को देखता है मगर उसे कोई आंख नहीं देख सकती। वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है। मस्जिद में उसी की पूजा होती है। 
मंदिर में उसके अलावा की होती है। इस तरह समाज में अनिश्चितता का माहौल बनता है। जो कुछ भी ज्ञान नहीं दे सकते लोग उनसे प्रार्थना करके अपना समय , धन और जीवन नष्ट करते हैं।
क़ानून उन्हें अपनी मान्यता के अनुसार जीने की अनुमति देता है तो उन्हें वह करने दिया जाए जो वे करना चाहें लेकिन क़ानून हरेक को यह अधिकार देता है कि वह अपने विचार से जिस बात को सत्य मानता है दूसरों को उससे आगाह कर दे। मैंने मुसलमानों को टकराव से बचकर लोगों से ‘संवाद‘ की सलाह दी है जो कि आधुनिक दुनिया का बेस्ट मैथड है। इसमें आपको तरस क्यों आ गया ?

  • कृष्ण जी ने इन्द्र की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?

  • शिवजी ने ब्रह्मा की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?

  • बुद्ध और महावीर ने यज्ञों का विरोध किया , आपको उनपर तरस न आया ?

  • शंकराचार्य ने देशभर में घूम घूम कर बौद्धों और जैनियों के मतों का खण्डन करके अपने मत को प्रतिष्ठित किया , आपको उनपर तरस न आया ?

  • गुरू नानक ने ‘वेद पुरान सब कहानी‘ कहकर उनका खण्डन किया । सूर्य को जल चढ़ाते लोगों को शिक्षा देने के लिये पश्चिम की तरफ को मुंह करके अपने खेतों को पानी देने का अभिनय किया। आपको उनपर तरस न आया।

  • कबीर ने ‘पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूं पहार, तातै वा चक्की भली पीस खाय संसार‘ कहकर मूर्तिपूजा का खण्डन किया । आपको उनपन तरस नहीं आया ?

  • दयानंद जी ने पुराणों के मानने वालों का , उनके गुरूओं का दिल खोलकर मज़ाक़ उड़ाया। आपको उनपर तरस न आया ?

  • विवेकानंद के पास विदेश जाने के लिये रक़म नहीं थी। उन्होंने सहायता मांगी मगर वे विदेश गये। सब को ठीक कहते कहते भी भगिनी निवेदिता को भारतीय कल्चर में रंग डाला। आपको उनपर तरस न आया ?
प्रार्थना समाज, ब्रह्म समाज, राधा स्वामी , निरंकारी , स्वाध्याय परिवार, इस्कॉन, प्रणामी पंथ, रैदासी, उदासी, साकार विश्व हरि, मानव धर्म, हंसा मत, ब्रह्मा कुमारी, पतंजलि पीठ और बहुत से अन्य अनेक पंथों के संस्थापकों ने दूसरे पंथों की आलोचना की और अपने मत को ही सर्वश्रेष्ठ बताया। उनके अनुयायी यहां ब्लॉगजगत में भी सक्रिय हैं। आपको न तो उन संस्थापकों पर तरस खाते देखा गया और न ही उनके अनुयायियों पर, क्यों ?
पवित्र कुरआन पर आये दिन भंडाफोड़ू और उस जैसे कई ब्लॉगर्स बेबुनियाद इल्ज़ाम आयद करते रहते हैं और नामी ब्लॉगर्स उनकी वाह वाह करके उसे टॉप पर पहुंचा देते हैं तब आप धृतराष्ट्र का रोल करने लगते हैं, क्यों ?
उनकी ख़ैर ख़बर ली जाये और वास्तविकता स्पष्ट कर दी जाये तो आपको तरस आने लगता है , वह ब्लॉगर मूर्ख दिखने लगता है। क्यों ?
बुद्धिमान दिखने के लिये ज़ाकिर अली ‘रजनीश‘ और इरफ़ान आदि की तरह सब कुछ देखकर भी गांधी जी के बंदर की तरह गीत ग़ज़ल में मगन रहा जाये तो आप उसे उदारमना मान लेंगे। मैं जिस बात को सत्य मानता हूं उसे साफ़ कहता हूं । अब कोई मुझे जो कुछ भी समझे , मुझे परवाह नहीं , लेकिन मैं ईमानदारी का दम भरने वाले आप जैसे बुजुर्ग से यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि वही गुण , वही कार्य तो हज़ारों साल से इस पवित्र, पुण्य और कर्मभूमि भारत में होता आ रहा है, अब भी हो रहा है, तब सबको छोड़कर आपको तरस खाने के लिये मैं ही क्यों मिला ?
हौसला पस्त करने का यह भी एक तरीक़ा होता है। जो नाम के लिये लिखता है वह अपना नाम ख़राब होता देखकर उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ता।
क़ानून से अन्जान आदमी के लिये क़ानून एक डरावनी चीज़ है लेकिन जो मुझे पहचानते हैं वे जानते हैं कि क़ानून मेरी बुनियाद में दाखि़ल है।
वैसे अगर आपने कुछ क़ानूनी कार्रवाई कर भी दी तो क़ानून मेरा क्या बिगाड़ेगा ?
कौन सी बात मैंने ऐसी कही है जो क़ानून के विपरीत है ?
सरिता मुक्ता के ‘विश्वनाथ जी‘ पर दर्जनों बार मुक़द्दमे किये गये लेकिन उन्हें सज़ा एक दिन की भी न हुई। आपको उनपर भी कभी तरस न आया।
इमोशनल ब्लैकमेलिंग, क़ानून की धमकी सब मेरे ही लिए, आखि़र क्यों ?
और अगर आप या कोई दूसरा क़ानूनी कार्रवाई करता है तो वे सब ‘उत्साही युवा‘ चौड़े  में मारे जाएंगे जिन्होंने मेरे ब्लॉग पर इस्लाम और पैग़म्बर साहब स. के प्रति ‘हिन्दुत्ववादी टिप्पणियां‘ कर रखी हैं।
मैं तो चाहता हूं कि कोई तो करे क़ानूनी कार्रवाई । यहां आड़ में जाने कब से यह ग़लीज़ खेल खेला जा रहा था वह तो मीडिया के ज़रिये जगज़ाहिर होगा।
इस सबके बाद भी मुझे आपसे प्रेम ही है। इस जग से विदा होने वाले को किसी से रंजिश रखके करना भी क्या है ? 
जो टिप्पणी पढ़कर जनाब सतीश सक्सेना साहब मुझ पर तरस खाने को आमादा हुए वह निम्न है- 
जनाब शरीफ़ साहब ! आप स्वीकारते हैं कि मसले को जानबूझकर उलझाया गया है, आप यह भी जानते हैं कि वे बाअसर लोग हैं। वे ऐसे लोग हैं कि ‘अल्पसंख्यक‘ होने के बावजूद बहुसंख्यक पर राज कर रहे हैं। लोग जब कभी शांत चित्त हो जायेंगे वे जान लेंगे कि देश की संपदा पर नाजायज़ तरीक़े से कौन क़ाबिज़ है। वे चाहते हैं कि विवाद कभी न सुलझे, एक विवाद सुलझे तो दूसरा खड़ा कर दें। वास्तव में मसला मंदिर मस्जिद का है ही नहीं। मुसलमानों को डिमॉरेलाइज़ करने का है। ऐसे में मुसलमानों को किसी भी विवाद को हवा देना उचित नहीं है। जो लोग परलोक को नहीं मानते, ईश्वर के कल्याणकारी अजन्मे अविनाशी स्वरूप को नहीं जानते वे क्या न्याय देंगे ?
 ये लोग केवल कूटनीति जानते हैं कि कैसे मंथन के बाद निकले हुए अमृत का बंटवारा ‘केवल अपनों‘ में हो ?
 इस्लाम शांति का पैग़ाम है और यहां माहौल टकराव के लिए तैयार किया जा रहा है और मुसलमानों से लड़ाया जाएगा उन पिछड़ी जाति के लोगों को, जो खुद उनके अत्याचार से त्रस्त हैं ताकि जो भी मरे उनका एक दुश्मन कम हो। न्याय इस जगत में केवल बलशाली को ही मिलता है और मुसलमानों ने बहुत से फ़िरक़ों में बंटकर खुद को निर्बल बना लिया है।
कहावत है कि ‘ठाडै की दूर बला‘ ।

  • मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ?
  • मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ?
  • और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ?
        काम लम्बा है लेकिन दूसरा कोई शॉर्टकट नहीं है और मस्जिद के लिए इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। लोग जब समझेंगे तो खुद उस तरफ अपने क़दम बढ़ाएंगे जहां उन्हें अपना कल्याण नज़र आएगा। तब तक मुसलमानों को सब्र करना चाहिए क्योंकि हरेक हिन्दू उसका दुश्मन नहीं है और दुश्मन तो आर.एस.एस. के लोग भी नहीं होते लेकिन राजनीति और कूटनीति बुरी बला है और मुसलमानों की लीडरी करने वाले इन लोगों से मिले होते हैं।
 आजकल राहबर ही राहज़न बने हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद की आड़ में माल इकठ्ठा किया जा रहा है। आज़म खां की मिसाल सबके सामने है। अल्लाह ने हरेक उस आदमी को ज़लील कर दिया है जिसने उसके बन्दों को उसके नाम पर लड़ाया और नाम और दाम कमाया।
बहुसंख्यक हिन्दू और मुसलमान भोले हैं। आपस में प्यार से रहते हैं। यह प्यार बना रहे , बढ़ता रहे , ऐसी कोशिश करनी चाहिये।
खुद श्री रामचन्द्र जी ने वन में जाना पसंद किया लेकिन लड़कर राज्य न किया , उनके नाम को लड़ाई के लिये इस्तेमाल करना महापाप है।
खुद हज़रत मुहम्मद साहब स. ने मक्का छोड़कर मदीना जाना गवारा किया लेकिन अपने अनुयायियों को काबा पर क़ब्ज़ा करने के लिये न कहा।
हम जिन्हें अपना आदर्श कहते हैं, उनके जीवन से हमें व्यवहारिक शिक्षा लेनी चाहिये।
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/babri-masjid-sharif-khan.html?showComment=1280507284599#c2097935227089136194

26 comments:

  1. @डॉ अनवर जमाल ,
    कृपया मेरे कमेंट्स दुबारा पढ़ें और फिर उसका अर्थ निकालें , लगता है अभी आप गुस्से में हैं अतः मैं अब कुछ नहीं कहना चाहता !

    ध्यान रहे आपके प्रति मेरी भावना में कोई कमी नहीं आई है, हाँ अपने कहे पर मैं कायम हूँ ! कानून का सिर्फ सन्दर्भ दिया है और यह क़ानून उस समय नहीं थे जिसका आप जिक्र कर रहे हैं प्रकाशक को अपना दायित्व का ज्ञान होना ही चाहिए !

    दुसरे धर्म को खराब कहने वाले अज्ञानी हैं क्या आप इसे स्वीकार नहीं करते खैर ...
    आप मुझसे अधिक समझदार हैं और विद्वान् भी मैं आपको समझाने की ध्रष्टता नहीं करना चाहता कोशिश रहेगी कि भविष्य में आपके सन्दर्भ में कोई कमेंट्स न करूँ ! अगर आपका दिल दुख हो तो मूर्ख समझ कर क्षमा करें !

    मैं आपके दिए सम्मान का नाजायज़ फायदा नहीं उठाऊंगा !
    सादर

    ReplyDelete
  2. ठीक है जनाब , मैं दोबारा पढ़ता हूं।

    ReplyDelete
  3. सतीश जी और अनवर जी, भावनाओं में बहने की जगह यथार्थ में बातें करें, वैसे अगर आपको लगता है कि कोई कुछ गलत कह रहा है तो हर एक गलत कहने वाले को गलत कहना चाहिए. किसी एक को गलत कहना और दुसरे के कहे पर पुरे ब्लॉग जगत का चुप होना किसी भी हालत में जायज़ नहीं है. मेरे जानकारी के अनुसार तो अनवर जमाल ने कभी किसी दुसरे के धर्म ग्रंथो को बुरा नहीं कहा, हाँ अगर किसी ने बुरा बनाने की अथवा किसी की छवि बिगाड़ने की कोशिश की है तो अवश्य ही उसका विरोध किया है. लेकिन हर्फे गलत और भन्दा फोडू जैसे कुछ लोग तो सरे आम और रोजाना और बिना किसी सबूत के ताल थोक कर इस्लाम के खिलाफ उल्टा-सीधा लिख रहे हैं... क्या किसी ने हिम्मत की उनके खिलाफ कानून की बात करने की? या कानून केवल मुसलमानों के लिए ही हैं?

    मैं हमेशा ही किसी भी दुसरे धर्म के खिलाफ लिखे जाने वाले लेखों की हमेशा भर्त्सना करता हूँ, लेकिन केवल एक पक्ष की भर्त्सना करना अथवा धमकाना और दुसरे को समर्थन करने जैसा कार्य मैंने आज तक नहीं किया है. और ऐसा करने वालो के मैं हमेशा खिलाफ रहता हूँ. मैं मानता हूँ कि आपने भी कभी ऐसा नहीं किया है, और हमेशा ही सत्य का साथ दिया है, लेकिन बहुत से बड़े कहलाने वाले ब्लोगर ऐसा करते हैं... आपका और ब्लॉग जगत के अन्य बंधुओं का आक्रोश अगर गन्दगी फ़ैलाने वाले अन्य ब्लोग्गर के खिलाफ होता तो इन्साफ की बात होती.

    ReplyDelete
  4. आपने ठीक प्रश्न उठाए अनवर भाई ! आप किसी का दबाव न मानकर सच पर कायम रहते है इसकी मेरी तरफ से बधाई ।

    ReplyDelete
  5. कृष्ण जी ने इन्द्र की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?

    शिवजी ने ब्रह्मा की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?

    बुद्ध और महावीर ने यज्ञों का विरोध किया , आपको उनपर तरस न आया ?

    शंकराचार्य ने देशभर में घूम घूम कर बौद्धों और जैनियों के मतों का खण्डन करके अपने मत को प्रतिष्ठित किया , आपको उनपर तरस न आया ?

    गुरू नानक ने ‘वेद पुरान सब कहानी‘ कहकर उनका खण्डन किया । सूर्य को जल चढ़ाते लोगों को शिक्षा देने के लिये पश्चिम की तरफ को मुंह करके अपने खेतों को पानी देने का अभिनय किया। आपको उनपर तरस न आया।

    कबीर ने ‘पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूं पहार, तातै वा चक्की भली पीस खाय संसार‘ कहकर मूर्तिपूजा का खण्डन किया । आपको उनपन तरस नहीं आया ?

    दयानंद जी ने पुराणों के मानने वालों का , उनके गुरूओं का दिल खोलकर मज़ाक़ उड़ाया। आपको उनपर तरस न आया ?

    ReplyDelete
  6. शंकराचार्य ने देशभर में घूम घूम कर बौद्धों और जैनियों के मतों का खण्डन करके अपने मत को प्रतिष्ठित किया , आपको उनपर तरस न आया ?

    ReplyDelete
  7. प्रार्थना समाज, ब्रह्म समाज, राधा स्वामी , निरंकारी , स्वाध्याय परिवार, इस्कॉन, प्रणामी पंथ, रैदासी, उदासी, साकार विश्व हरि, मानव धर्म, हंसा मत, ब्रह्मा कुमारी, पतंजलि पीठ और बहुत से अन्य अनेक पंथों के संस्थापकों ने दूसरे पंथों की आलोचना की और अपने मत को ही सर्वश्रेष्ठ बताया। उनके अनुयायी यहां ब्लॉगजगत में भी सक्रिय हैं। आपको न तो उन संस्थापकों पर तरस खाते देखा गया और न ही उनके अनुयायियों पर, क्यों ?

    ReplyDelete
  8. क़ानून से अन्जान आदमी के लिये क़ानून एक डरावनी चीज़ है लेकिन जो मुझे पहचानते हैं वे जानते हैं कि क़ानून मेरी बुनियाद में दाखि़ल है।

    ReplyDelete
  9. आप किसी का दबाव न मानकर सच पर कायम रहते है इसकी मेरी तरफ से बधाई ।

    ReplyDelete
  10. anvr bhaayi bhut khub aapkaa jmaal to bhut kmal kr rhaa he mere paaas is khbsurt prstuti pr tippni ke liyen alfaaz nhin he so maafi chaahungaa. akhtar khan akela kota rajsthan

    ReplyDelete
  11. बहुत दिनों बाद मजेदार बहस पढने को मिली , मजा आ गया, लेकिन अनवर भाई आप इतने गुस्से में क्यों हैं, और फिर आपने वही अपनी वाली सुरु कर दिया कृष्ण ने ये किया , इन्द्र ने वो किया, शिव ने फ़ला कि पूजा बंद करवा दी, शंकराचार्य पुरे देश में घूम घूम कर के वो करते रहे.


    ये अच्छी बात थोड़े ही हैं, थोडा धीरज रखा करे श्रीमान

    ReplyDelete
  12. हम आह ही करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
    वह क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता !!

    ReplyDelete
  13. @भाई तारकेश्वर गिरी जी ! आप अपनी आदत के मुताबिक़ पोस्ट पर बस सरसरी नज़र दौड़ाकर ही कमेंट कर देते हैं। पूरी पोस्ट पढ़ते तो आप जान लेते कि अनवर को ‘सुधारगृह‘ भेजने की धमकी नहीं चेतावनी दी जा रही है। मैं तो हिन्दू महापुरूषों के नाम के साथ कभी ‘जी‘ लगाये बिना बात नहीं करते और लोग-बाग कह रहे हैं कि मैं उनका सम्मान नहीं करता। सम्मान करने के नाम पर मैं उनसे जुड़ी ऐसी बातें तो नहीं मान सकता जिन्हें आज खुद बहुत से हिन्दू नहीं मानते।
    जनाब सतीश सक्सेना जी की टिप्पणी आपकी सुविधा के लिये यहां दे रहा हूं-
    @अनवर जमाल !
    "मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? "
    बेहद अफ़सोस जनक लिखा है आज डॉ अनवर जमाल ने , मैं यह उनसे उम्मीद नहीं करता था ! किसी भी धर्म के अनुयायियों को दूसरों की आस्था पर कहने का अधिकार नहीं होना चाहिए ! दूसरों को छोटा और ख़राब और अपने को अच्छा बताने वाले कभी अच्छे नहीं हो सकते !दो अलग आस्थाओं कि तुलना करने वाले क्या देना चाहते हैं इस देश में ....??
    मुझे ऐसे लोगो की बुद्धि पर तरस आता है ! ऐसा करने वाले सिर्फ दूसरों के दिलों में नफरत ही बोयेंगे ! और यह नफरत हमारे मासूमों के लिए जहर का काम करेगी ! मुझे नहीं लगता कि इस्लाम में कहीं भी यह लिखा है कि काफिरों को समझाओ कि तुम्हारा ईमान ख़राब है ....
    बेहद दुखी हूँ ऐसे अफ़सोस जनक वक्तव्य के लिए !

    ReplyDelete
  14. @जनाब सतीश सक्सेना जी ! मैंने दो बार आपकी टिप्पणी पढ़ी और यही समझा कि आप कह रहे हैं कि सब धर्म बराबर हैं। आप किसी धर्म की आलोचना न करें, सबको बराबर और सत्य समझें, जो जिस धर्म को मान रहा है आप उसे अपने धर्म के बारे में बताएं लेकिन उसे सर्वश्रेष्ठ घोषित न करें। दूसरे इस्लाम पर कीचड़ उछालें , उन्हें उछालने दो, चुपचाप देखते रहो जैसे कि मैं देखता रहता हूं। अगर ऐसा नहीं करोगे तो देश के क़ानून की भयानक धाराओं की जकड़ में आकर छटपटाते रहोगे। मैं केवल क़ानून का संदर्भ दे रहा हूं , मैं भले ही कुछ न करूं लेकिन देर सवेर कोई न कोई यह काम ज़रूर अंजाम देगा।
    आप यही तो कहना चाहते हैं न ?
    उसी का जवाब मैंने आपको इस पोस्ट में दिया है।
    @अख्तर ख़ान ‘अकेला‘ जी ! आप जब भी आते हैं तो अपने साथ दो को ज़रूर लाते हैं फिर आप अकेले कैसे हैं ? , प्लीज़ समझाइये।

    ReplyDelete
  15. "बहुसंख्यक हिन्दू और मुसलमान भोले हैं। आपस में प्यार से रहते हैं। यह प्यार बना रहे , बढ़ता रहे , ऐसी कोशिश करनी चाहिये।"

    ReplyDelete
  16. अब क्या कहें? सब कुछ तो आपने कह ही दिया है. बहुत खूब..

    ReplyDelete
  17. इतने पर भी न समझ सकें तो क्या किया जा सकता है.

    ReplyDelete
  18. मै जो भी लिख रही हु सिर्फ एक जिग्यासा के लिये | कोई और अर्थ ना लगाया जाय |

    मै समझ नही पा रही हु कि एक जो " इस्लाम और पैगम्बर मुहम्मद" के बारे मे उदाहरण सहित लिखा है | और भी कई किताब पढा | जिसमे साफ ही लिखा है कि इस्लाम मे औरतो को अपने अधिकारो से पुर्णतया वन्चित किया गया है| भारत के इतिहाश मे मुगल बन्श को क्या इस्लाम नहि आता था या इस्लाम का कोई और किताब पढते थे कि पुरे हिन्दुस्तान मे खुन खराबे और जबरदस्ति हिन्दुओ को मुसलमान बनाया और जो नही बना उसे जान से मार दिया गया| क्या इस्लाम के धार्मिक किताब मे यही लिखा है| आज के दौर मे भी क्यो पुरे विश्व मे आतन्कवादी मुसल्मान ही क्यो होते है| हिन्दु क्यो नहि इसाई क्यो नही|क्या उन्हे शान्ति नाम का कोई ग्यान नहि था|

    क्रिपय दिये गये लिन्क पर से किताब को डाउनलोड करे | धन्यबाद
    DOWNLOAD AND READ CAREFULLY
    http://hindusthangaurav.com/books/islamkamvasnaaurhinsa.pdf

    Email : radhasuper@rediffmail.com

    ReplyDelete
  19. @संजय बेंगाणी जी की बात सोलह आने सही है। जो सुबूतों से साबित हो उसे मानना ही देशप्रेमी नागरिकों का कर्तव्य है। जो लोग कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी उसका इन्कार करें वे न धार्मिक हैं और न ही सही नागरिक। ईमान शब्द ही अम्न के माद्दे से बना है , अम्न को क़ायम रखने की ज़िम्मेदारी दूसरों से ज़्यादा मुस्लिमों की है,बेगुनाह इन्सान की जान हरेक इमारत से ज़्यादा क़ीमती है चाहे वह इमारत किसी मस्जिद की ही क्यों न हो ?
    धर्म का काम है कल्याण करना और धार्मिक संतों का काम है धर्म के अनुसार मार्गदर्शन करना। देश के हिन्दू मुस्लिम संतों आलिमों को चाहिये कि वे नेताओं को धर्म के नाम पर आग भड़काकर अपनी अपनी पार्टी के तवे पर राजनीति की रोटी सेकने से रोकें। अगर धर्मपुरूषों के रहते हुए भी धर्म के नाम पर ‘चर्मण्वती‘ जैसी खून की नदियां देश में बहती रहीं तो फिर देश को धर्म और संतों से क्या फ़ायदा मिलेगा ? इसे देखकर तो नास्तिकों की शंकाओं को और ज़्यादा बल मिलेगा।

    @ भाई वत्स जी की बात भी ठीक है । बामियान के विशाल बुत को गिराना भी ग़लत और निंदनीय है। इसे तो महमूद ग़ज़नवी ने भी न ढहाया था क्योंकि वह तो सोना चांदी पर हाथ साफ़ करने का आदी था और यहां तो सिर्फ पत्थर था। इसमें भी सोमनाथ के बुत की तरह हीरे मोती , सोना चांदी भरा होता तो इसे भी तोड़कर वह अपने ख़ज़ाने में भर लेता।

    ***,अब आप लोग पोस्ट के मूल विषय पर भी अपने विचार रखें कि श्री रामचन्द्र जी अयोध्या में अब से कितने समय पहले पैदा हुए थे ?
    यह काल निर्धारण बहुत ज़रूरी है, इससे मीर बाक़ी के काम के सही या ग़लत होने का बड़ा संबंध है। उम्मीद है कि इस सवाल को अब और घुमाने-टलाने का प्रयास नहीं किया जाएगा।
    http://drayazahmad.blogspot.com/2010/08/drayaz-ahmad.html?showComment=1280754860134#c1697085336790605246

    ReplyDelete
  20. @संजय बेंगाणी जी की बात सोलह आने सही है। जो सुबूतों से साबित हो उसे मानना ही देशप्रेमी नागरिकों का कर्तव्य है। जो लोग कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी उसका इन्कार करें वे न धार्मिक हैं और न ही सही नागरिक। ईमान शब्द ही अम्न के माद्दे से बना है , अम्न को क़ायम रखने की ज़िम्मेदारी दूसरों से ज़्यादा मुस्लिमों की है,बेगुनाह इन्सान की जान हरेक इमारत से ज़्यादा क़ीमती है चाहे वह इमारत किसी मस्जिद की ही क्यों न हो ?
    धर्म का काम है कल्याण करना और धार्मिक संतों का काम है धर्म के अनुसार मार्गदर्शन करना। देश के हिन्दू मुस्लिम संतों आलिमों को चाहिये कि वे नेताओं को धर्म के नाम पर आग भड़काकर अपनी अपनी पार्टी के तवे पर राजनीति की रोटी सेकने से रोकें। अगर धर्मपुरूषों के रहते हुए भी धर्म के नाम पर ‘चर्मण्वती‘ जैसी खून की नदियां देश में बहती रहीं तो फिर देश को धर्म और संतों से क्या फ़ायदा मिलेगा ? इसे देखकर तो नास्तिकों की शंकाओं को और ज़्यादा बल मिलेगा।

    @ भाई वत्स जी की बात भी ठीक है । बामियान के विशाल बुत को गिराना भी ग़लत और निंदनीय है। इसे तो महमूद ग़ज़नवी ने भी न ढहाया था क्योंकि वह तो सोना चांदी पर हाथ साफ़ करने का आदी था और यहां तो सिर्फ पत्थर था। इसमें भी सोमनाथ के बुत की तरह हीरे मोती , सोना चांदी भरा होता तो इसे भी तोड़कर वह अपने ख़ज़ाने में भर लेता।

    ***,अब आप लोग पोस्ट के मूल विषय पर भी अपने विचार रखें कि श्री रामचन्द्र जी अयोध्या में अब से कितने समय पहले पैदा हुए थे ?
    यह काल निर्धारण बहुत ज़रूरी है, इससे मीर बाक़ी के काम के सही या ग़लत होने का बड़ा संबंध है। उम्मीद है कि इस सवाल को अब और घुमाने-टलाने का प्रयास नहीं किया जाएगा।
    http://drayazahmad.blogspot.com/2010/08/drayaz-ahmad.html?showComment=1280754860134#c1697085336790605246

    ReplyDelete
  21. Please read a story on my new blog createdfor litrature -
    http://mankiduniya.blogspot.com/2010/08/law-and-order-anwer-jamal.html

    ReplyDelete