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Wednesday, August 4, 2010

I like Ramchandra ji श्री रामचन्द्र जी के प्रति मेरा अनुराग और चिंतन - Anwer Jamal


ब्लॉग जगत में बाबरी मस्जिद को लेकर बहस चल रही है तो राम मंदिर और अयोध्या का ज़िक्र तो आना ही है। ऐसे समय में मैं श्री रामचन्द्र जी के बारे में अपने अनुराग को साफ़ कर देना ज़रूरी समझता हूं।
जीवन की पाठशाला वाले भावेश जी ने बताया है कि पहले रामायण पत्तियों पर लिखी हुई थी, बाद में वे पत्तियां हिल गईं और कई जगह अर्थ का अनर्थ हो गया। जिन विद्वानों ने रामकथा पर रिसर्च की है वे प्रमाण सहित बताते हैं कि रामायण में व्यापक स्तर पर घटत-बढ़त हुई है। इसी कारण मैं रामायण को अक्षरशः सत्य नहीं मानता। न तो मैं श्री रामचन्द्र जी को सर्वज्ञ ईश्वर का अवतार मानता हूं और न ही मैं यह मानता हूं कि उन्होंने जीवन में किसी पर कभी जुल्म किया होगा , जैसा कि रामायण के आधार पर दलित बंधु या सरिता-मुक्ता का पब्लिशर मानता है।

मैं मानता हूं कि श्री रामचन्द्र जी अपने काल के एक आदर्श प्रजावत्सल राजा रहे होंगे। उनके काम की वजह से ही जनता ने उन्हें अपने दिल में जगह दी और वे मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। वे अपने जीवनकाल में कई बार ब्राह्मणों से भिड़े और एक ब्राह्मण वेदभाष्यकार राजा रावण का अंत भी किया। इसी कारण से ब्राह्मणों ने उनका जीना हराम कर दिया और उनके जीवन का अंत भी एक ब्राह्मण दुर्वासा के ही कारण हुआ। उनके बाद ब्राह्मणों ने उनकी जीवनी लिखने के नाम पर ऐसे प्रसंग उनके विषय में लिख दिये जिसकी वजह से नारी और समाज के कमज़ोर तबक़ों के अलावा बुद्धिजीवी भी उन पर आरोप लगाने लगे, उन्हें ग़लत समझने लगे। श्री रामचन्द्र जी ग़लत नहीं थे । ग़लत थे वे लोग जिन्होंने उनके बारे में मिथ्या बातें लिखीं। श्री रामचन्द्र जी अयोध्या में शांति चाहते थे और उन्होंने सारे राजपाट और वैभव को ठुकराकर यह बता भी दिया कि वे लालची और युद्धाकांक्षी नहीं हैं।
इस देश की जनता भोली है और नेता जैसे हैं उन्हें सब जानते हैं। जनता सुख चैन , रोज़गार और सुरक्षा चाहती है। नेता इसका वादा तो हमेशा करते हैं लेकिन दे आज तक नहीं पाये। यह जनता अपने स्वरूप का बोध न कर ले , एक न हो जाये , इसलिये इसे बांटना और आपस में लड़ाना उनकी मजबूरी है और अफ़सोस की बात यह है कि हम न चाहते हुए भी आपस में टकराते रहते हैं।
आज भारत अशांत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल और कठोर चीन से घिरा हुआ है। देश के अन्दर भी नक्सलवाद जैसे बहुत से हिंसक आंदोलन चल रहे हैं। हरेक सूबे नौजवान असंतुष्ट हैं। देश के हालात नाज़ुक हैं। धर्म मंच से जुड़े लोगों को ऐसे समय में लोगों को प्रेम और एकता का संदेश देना चाहिये। शैतान के दांव बहुत घातक होते हैं। उसके दांव-घात को नाकाम करना चाहिये।
हर चीज़ इतिहास के दायरे में नहीं आ सकती है। इनसानी आबादी इतिहास लेखन से भी पहले से इस ज़मीन पर आबाद है। हर क़ौम में नबी आये हैं, सुधारक और नेक आदमी हुए हैं, पवित्र कुरआन ऐसा कहता है। बाद के लोगों ने उनके बारे में बहुत अतिश्योक्ति से काम लिया और उन्हें बन्दगी के मक़ाम से उठाकर मालिक ही ठहरा दिया।
देवबंद के आलिम श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी का सम्मान करते हैं और कहते हैं कि हो सकता है कि वे अपने दौर के नबी रहे हों क्योंकि कुल 1,24,000 नबी हुए हैं। इसलाम में नबी का पद इनसानों में सबसे बड़ा होता है।
ईश्वर, धर्म और महापुरूषों ने सदा लोगों क्षमा,प्रेम और त्याग की तालीम दी है। उनके नाम पर लड़ना-लड़ाना खुद को मालिक की नज़र से गिराना है।
कोर्ट कुछ भी फ़ैसला दे या देश में आग लगाउ तत्व कुछ भी कहें, मुसलमान को यह देखना है कि वह शांति को कैसे क़ायम रखेगा क्योंकि शांति उसके धर्म ‘इसलाम‘ का पर्याय है, शांति भंग करना या उसे होते देखना स्वयं इसलाम पर चोट करना या होते देखना है, जिसे कोई मुसलमान कभी गवारा नहीं करता और न ही उसे करना चाहिये।
वक्त की ज़रूरत है शांति। शांति बनी रहे तो देश का बौद्धिक विकास मानव जाति को उस मक़ाम पर ले जाकर खड़ा कर देगा जहां वे सत्य का इन्कार न कर सकेंगे। बहुत से पाखण्ड तो हमारे देखते-देखते दम तोड़ भी चुके हैं और बाक़ी कुरीतियां अपने समय का इंतेज़ार कर रही हैं। मुसलमान भी सब्र करें और वे काम करें जो करने के काम हैं और उस पर फ़र्ज़ किये गये हैं।
इनमें सबसे पहला काम हरेक जुर्म और पाप से तौबा है, अपना सुधार निखार और विकास है , दूसरों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करना है जैसा कि एक मुसलमान अपने लिये पसंद करता है। देश उनका दुश्मन नहीं है और न ही सारे देशवासी और थोड़ा बहुत उठापटख़ तो हर घर में चलती ही है, उसे हिकमत और सूझबूझ से सुलझाना चाहिये।
देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को कोई समझे या न समझे मुसलमान को तो समझना ही चाहिये। श्री रामचन्द्र जी ने भी यही संदेश अपने आचरण से दिया है, उनके अच्छे आचरण को अपनाना उनके प्रति अपने अनुराग को प्रकट करने के लिये मैं सबसे उपयुक्त तरीक़ा मानता हूं।
हदीस पाक में आया भी है कि हिकमत मोमिन की मीरास है, जहां से भी मिले ले लो।

37 comments:

  1. इकबाल कह गए:
    है राम के वजूद प हिन्दुस्तान को नाज़
    अहले नज़र समझते हैं इनको इमाम ए हिंद

    समय हो तो पढ़ें:
    शहर आया कवि गाँव की गोद में
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_04.html

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  2. Bahut hi behtreen lekh Anwar Bhai, kash sabhi log is baat ko samjhe aur aapas kee kheechtaan aur ladai kee batein samapt ho..... ameen!

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  3. मामला गर कोर्ट के अधीन है तो निर्णय जोभी आये उसे दोनों पक्षों को सम्मान करना चाहिए!!

    आप के हम क़ायल हुए !! निसंदेह यह जमाल है !!

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  4. @आदरणीय एवं गुरुतुल्य अनवर जी

    आपकी पूरी पोस्ट पढकर बहुत खुशी हुई और महसूस हुआ की चलो कोई तो है जो बेकार के वाद -विवाद ना खड़ा करके समझदारी का परिचय दे रहा है ,जो दोनों धर्मों के बीच में दूरी बढाने की बजाये दूरी कम करने का प्रयास कर रहा है

    इसने ये किया ,उसने वो किया ,इस मुस्लिम ने हिंदुओं को मारा ,उनके मंदिर तोड़े ,उस हिंदू ने मुस्लिमों को मारा आदि आदि बातों से कुछ नहीं मिलना
    जो चीजें इतिहास में हुई उनका नतीजा उन्हें ही भुगतने दिया जाए जो उस समय थे ,वो वर्तमान की पीढ़ी यानी के हम सब क्यों भुगते और क्यों अपना समय व्यर्थ करें उस पर ?
    हमें इतिहास की बजाये अपना वर्तमान ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि भविष्य में हमारा उदहारण देकर कोई ये ना कह सके की इस मुस्लिम ने ऐसा किया था और इस हिंदू ने ऐसा किया था

    please let us now unite as Indians not as Hindus or Muslims

    अगर हम एक हो गए तो दोनों धर्मों में जो भी नफरत फैलाने वाले तत्व हैं वो अपने आप पराजित हो जायेंगे क्योंकि उनकी सफलता सिर्फ एक ही चीज़ पर टिकी हुई है -हमारी अनेकता पर
    जिस दिन ये अनेकता सम्पूर्ण रूप से एकता में तब्दील होगी उस दिन एक भी कट्टरपंथी या नफरत फैलाने वाला हिम्मत नहीं कर सकेगा ऐसा करने की

    श्री राम जी के बारे में फैली हुई मिथ्या धारणाओं का खंडन करने के लिए भी धन्यवाद

    आपने बिलकुल सही कहा है की हम सभी को महापुरषों के आचरण को अपने अंदर ग्रहण करना चाहिए बिना ये देखे की वे हिंदू थे या मुस्लिम

    एक बेहद सच्ची पोस्ट लिखने के लिए बहुत-२ आभार

    महक

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  5. वक्त की ज़रूरत है शांति। शांति बनी रहे तो देश का बौद्धिक विकास मानव जाति को उस मक़ाम पर ले जाकर खड़ा कर देगा जहां वे सत्य का इन्कार न कर सकेंगे। बहुत से पाखण्ड तो हमारे देखते-देखते दम तोड़ भी चुके हैं और बाक़ी कुरीतियां अपने समय का इंतेज़ार कर रही हैं। मुसलमान भी सब्र करें और वे काम करें जो करने के काम हैं और उस पर फ़र्ज़ किये गये हैं।

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  6. Hai kaash! hum samajh paate ki hum ek hi Pita ki Santan hai, Dharm/Majhhub to bus Libaas hai

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  7. जमाल साहब पूरा लेख बहुत अच्छा है, अंतिम चार लाइनें बहुत उम्दा होने का साथ-साथ शिक्षाप्रद भी हैं

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  8. शुक्रिया अनवर भाई आपने श्रीरामचंद्र जी के बारे मे देवबंद के आलिमो का नजरिया पेश किया । ये काम सचमुच आप ही कर सकते थे क्योकि आप इस ब्लागजगत की ज़रूरत समझते है और फिर इसी ज़रूरत के हिसाब से आप लेख लिखते है ये लेख आज के समय की ज़रूरत है ।एक बार फिर शुक्रिया

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  9. बहुत सही बात कही है आपने.
    मसला ये है लोग पोस्ट पढे बग़ैर ही कॉमेंट करने लगते है. और बात का बतंगड़ बना देते हैं.

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  10. देवबंद के आलिम श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी का सम्मान करते हैं और कहते हैं कि हो सकता है कि वे अपने दौर के नबी रहे हों क्योंकि कुल 1,24,000 नबी हुए हैं। इसलाम में नबी का पद इनसानों में सबसे बड़ा होता है।

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  11. "वे अपने जीवनकाल में कई बार ब्राह्मणों से भिड़े और एक ब्राह्मण वेदभाष्यकार राजा रावण का अंत भी किया। इसी कारण से ब्राह्मणों ने उनका जीना हराम कर दिया और उनके जीवन का अंत भी एक ब्राह्मण दुर्वासा के ही कारण हुआ। उनके बाद ब्राह्मणों ने उनकी जीवनी लिखने के नाम पर ऐसे प्रसंग उनके विषय में लिख दिये जिसकी वजह से नारी और समाज के कमज़ोर तबक़ों के अलावा बुद्धिजीवी भी उन पर आरोप लगाने लगे, उन्हें ग़लत समझने लगे"
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    @ जमाल साहब, शब्दों का मायाजाल रचने में आप सिद्धहस्त लगते हैं, तभी कुछ लोग आपकी इस पोस्ट के वास्तविक मंतव्य को समझे बगैर आपकी शान में कसीदे पढ गए.
    जनाब पहली बात तो ये कि यहां इस पोस्ट में शब्दाडम्बर का सहारा ले जो आप अपने आप को दर्शाने की नाकाम सी कौशिश कर रहे हैं. कोई आँख का अंधा या मूर्ख ही होगा जो समझ न पाएगा. काशमी और एयाज जैसे लोगों की पोस्ट पर आप जो राम के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा रहे थे, क्या वो किसी को दिखाई नहीं दिया/ जनाब आचार, व्यवहार का ये दोगलापन आप जैसे पढे लिखे, विद्वान आदमी को शोभा नहीं देता/
    दूसरी मुख्य बात ये कि आपने उपरोक्त इंगित की गई चन्द पंक्तियों के जरिए ही ये खेल खेलने का नाटक रचा है/
    बताईये क्या श्री राम नें रावण के प्राण उसके ब्राह्मण होने के कारण लिए?
    बताईये कौन से ग्रन्थ में लिखा है कि रावण का अन्त करने के कारण ब्राह्मणों नें उनका जीना हराम कर दिया ?

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  12. क्या यह पोस्ट वास्तव में डा जमाल साहब की है?
    जो कल तक राम की जन्म तिथि जानने को आतुर थे।
    या अनाम का विश्लेषण सही है ?

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  13. हमारे यहा के कुछ मुसलमान जो अपने को असली मानते है कहते है यह पैगम्बर कुछ नही है सीधे अल्लाह ही सब कुछ है

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  14. "हिकमत मोमिन की मीरास है, जहां से भी मिले ले लो।"
    एक और Quote,
    "इल्म जब तक मोमिन के दिल में नहीं आता, बेचैन रहता है, क्योंकि मोमिन का दिल ही उसकी सही जगह है." ---- हज़रत अली (अ.स.)

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  15. अल्लाह, खुदा, ईश्वर, God को लेकर काफ़ी भ्रांतिया है समझने के लिहाज से इसे तीन हिस्सो मे मैने बाँट लिया है अगर मै इसको समझ पाया तो शायद दूसरा भी समझ पाए
    1. इस्लामी विचारधारा
    2. गैर इस्लामी विचारधारा
    3. नास्तिक

    तीनो विचारधारा वाले लोग किसी ना किसी शक्ति को मानते है शक्ति, शक्तिमान,सर्वशक्तिमान

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  16. तीसरी विचारधारा वाले लोग विज्ञान और उसके बनाए गये नियमो के आधार पर साबित करते है कि दुनिया मे शक्ति तो है (force, power) लेकिन शक्तिमान और सर्वशक्तिमान को नकार देते है कि इन force, power को कंट्रोल करने वाला कोई है !

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  17. दूसरी विचारधारा मे इस्लाम के अलावा जो भी मज़हब, धर्म है उनमे ये विचारधारा प्रचलित है वे लोग सर्वशक्तिमान को तो मानते है साथ मे दूसरे शक्तिमानो को भी मानते है(जिसे वो सर्वशक्तिमान क हिस्सा मानते है जैसे हिंदू देवी देवताओ को, ईसाई ईसा को खुदा क़ा बेटा मानते है)

    इसी विचारधारा के लोग ये भी मानते है कि सर्वशक्तिमान हर जगह मौजूद है, ज़र्रे ज़र्रे मे, हर कण और परमाणु मे वो मौजूद है या ये सब उसी क़ा अंश है,

    ऐसी विचारधारा मसलमानो मे सूफ़ी लोगो कि भी है जिसे वाहादताल वुजूद कहा जाता है, इबने अरबी ने तो यहाँ तक कहा कि जो आबिद और माबूद (खुदा और बंदा)को अलग अलग माने वो काफ़िर है, इसी विचारधारा को मानने वालो मे अशरफ अली थानवी, अहमद रज़ा, मुहम्मद ज़कारिया व्गैराह शामिल है जो देवबंद और बरेलवी के बड़े आलिम कहलाते है!

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  18. भारत में कई तरह के इंसान हैं, कुछ श्री राम को ईश्वर मानते हैं, कुछ भगवान मानते हैं, कुछ महापुरुष, कुछ केवल पुराने ज़माने का राजा और कुछ ऐसे भी हैं जो मानते ही नहीं हैं.

    मैं उनको केवल महापुरुष और अनेकों खूबियों वाला एक इंसान मानता हूँ. उनको मर्यादा पुरषोत्तम मानता हूँ और मानता हूँ कि जो कुछ लोगो ने उनकी छवि को खराब करने के लिए भ्रांतियां फ़ैलाने की कोशिश की हैं वह गलत हैं. जो इंसान अपने पिता के आदेश को मानते हुए 14 साल वन वास काट सकता है, उनमे बुराइयों का होना संभव नहीं सकती है. मैं उनका इसलिए भी सम्मान करता हूँ कि वह हमारे पूर्वज थे और अपने पूर्वजो का सम्मान करना भी चाहिए. उनके होने या ना होने पर सवाल उठाना मेरे विचार से ठीक नहीं है. क्योंकि आज से ६-७ लाख पहले पैदा हुए किसी भी महापुरुष का होना भी कोई साबित नहीं कर सकता है और ना होना भी कोई भी साबित नहीं कर सकता है. वैसे भी श्री राम का अस्तित्व साबित होने अथवा ना होने से ऊपर है. क्योंकि वह करोडो लोगों के दिलों में बसते हैं.

    एक मुसलमान होने के नाते महापुरुषों का अनादर करने का मुझे हक भी नहीं है, क्योंकि अल्लाह (ईश्वर) ने कुरआन में फ़रमाया है कि उसने हर क्षेत्र और समाज में अपने संदेष्ठा (नबी) भेजें हैं. इसलिए हमारे बड़े हमें किसी भी महापुरुष के खिलाफ बोलने को मन करते हैं. क्योंकि हो सकता हो कि वह भी संदेष्ठा रहे हों.

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  19. @अनाम साहब हमने तो अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए सिर्फ एक प्रश्न पूछा था क्योकि सभी लोग मानते है कि श्रीरामचंद्र जी पैदा हुए तो उनके जन्म की तारीख क्या है यह पूछने मात्र से श्रीराम जी के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह कहाँ लगता है । प्रश्नचिन्ह तो आप लोगो की बुद्धिमता पर लगता है। जो एक तरफ तो भारत को फिर विश्व गुरु बनाने की बात करते है पर सिर्फ एक प्रश्न से बोखला जाते है और अभद्रता करने पर उतारु हो जाते है ।

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  20. आपके एक भाई बंधु कह रहे हैं की राम तो हुए ही नहीं !

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  21. मिश्रा जी आप अपने बंधुओ के नाम तो गिनवाओ । हमारे बंधु की संख्या तो बता दी

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  22. अयाज़ साहब,

    उस प्रश्न से कहां एतराज़ है, एतराज़ तो प्रश्नकर्ता की मंशा से है,नियत से है।
    समझदार है वे तो सीधा ही समझेंगे की भावार्थ क्या है।

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  23. @ अयाज साहब,
    आप जो हैं, जो अपने आपको दिखाना चाहते हैं और जो आप लोगों की मंशा है----इन सब से समूचा ब्लागजगत बखूबी वाकिफ है. खाल ओढकर भेडों में शामिल होने का चाहे जितना प्रयास कर लें लेकिन वो कोई मूर्ख ही होगा जो आपकी फितरत को पहचान न पाएगा. आपकी ये "हुव्वाँ-हुव्वाँ" ही आपकी फितरत बखूबी जाहिर कर डालती है. इसलिए ये नौटंकी करने की कोई जरूरत नहीं है. अरे! एक घर तो डायन भी छोड देती है. लेकिन आप लोगों नें तो उसे भी पीछे छोड दिया.

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  24. हमारी मंशा तो ठीक लेकिन आप जैसे बुद्धिजीवी लोगो की सोच गलत है जो आप बदलना नही चाहते । आप लोग पहले तो मुसलमानो को बदलने के लिए कहते है फिर मुसलमान अपने आपको बदलने के लिए आपसे सवाल पूछता है तो आप लोग नाराज़ हो जाते हो । हमारे मन मे तो कोई खोट नही ,हम तो सिर्फ अपने पूर्वजो के बारे मे आपसे जानना चाहते है जिनका आप अपने आपको सही वारिस बताते है । हम तो यही मानते है कि श्रीराम और श्रीकृष्ण हमारे पूर्वज है । जिनका हमें आदर करना चाहिए

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  25. अयाज़ साहब,
    यदि श्रीराम और श्रीकृष्ण आपके भी पूर्वज है तो किसे पुछ रहे हैं? अपने ही पूर्वजों की जन्म तिथि और अपना ही इतिहास?

    आज आपका होना ही आपके पूर्वजों के अस्तित्व का सबूत है।

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  26. देवबंद के आलिम श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी का सम्मान करते हैं और कहते हैं कि हो सकता है कि वे अपने दौर के नबी रहे हों क्योंकि कुल 1,24,000 नबी हुए हैं।


    I Agree With above topic

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  27. इस्लामी विचारधारा के बारे मे बात करने से पहेले कुछ बिंदुओ और बातो को जानना और समझना ज़रूरी है और इन पर विचार करना ज़रूरी समझता हुँ

    पहेली बात अगर ये माना जाता है कि शक्ति है तो उसके कुछ नियम है यदि कोई उन नियमो का पालन नही करे तो उस से नुकसान होगा अथवा कोई लाभ नही होगा!

    जैसे बिजली एक शक्ति है और उसका नियम है कि उसका उपयोग हेतु फेस और न्यूट्रल होना चाहिए और बीच मे कुछ लोड हो,

    जहाँ शक्ति है वहाँ नियम है अगर नियम नही तो शक्ति अनियंत्रित होगी अथवा नही होगी अर्थात नियमो का पालन ज़रूरी है अत: सब शक्ति से उपर सर्वशक्तिमान को मानना है तो उसके भी नियम तो ही होने चाहिए !

    दूसरी बात अब अगर कोई अपने आपको नास्तिक कहता है तो उसके लिए ये ज़रूरी है कि वो शक्तिमान (देवी देवता, खुदा का बेटा, या हर चीज़ मे खुदा ईश्वर है)और सर्वशक्तिमान का इनकार करे, केवल शक्ति को मानना और ना मानना से नास्तिक होने मे कोई फ़र्क नही पड़ेगा,उसके बावजूद नास्तिक भी नियम विशेष मे बँधा होगा चाहे वो प्रकर्ती के हो, देश के रास्ट्र के हो, राज्ये के शाहर के, सड़क के हो, घर के हो

    इसी तरह अगर कोई ईसाई बनना चाहता है तो उसे सर्वशक्तिमान और ईसा और मरियम (मदर मैरी) और बाइबल (किताब) और जो कुछ बाइबल मे है उसे मानना ज़रूरी होगा वरना वो ईसाई नही होगा चाहे किसी ईसाई घर मे पैदा हो,

    अगर हिंदू है तो उसे सर्वशक्तिमान के साथ दूसरे शक्तिमान (देवी देवता) को और धर्मग्रंथो को मानना पड़ेगा अगर कोई नही मानता तो नास्तिक ही कहलाता है !


    आस्तिक के लिए सर्वशक्तिमान को मानने उसका अस्तित्व स्वीकार करने के बाद सर्वशक्तिमान अथवा शक्तिमान कि इबादत, पूजा आवशयक अंग होती है, सीके अलावा नियम भी होते है जिसे उसका पालन करना ज़रूरी है इसके जैसे हर मामले मे ये देखा जाता है क्या वैध क्या अवैध ईसाई माँस को वैध और हिंदू अवैध बताता है, ईसाई गो मूत्र को अवैध और हिंदू वैध, इसी प्रकार धर्म विशेष के मानने वालो के लिए परिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नियम भी है, जब कोई अपने को सेकुलर, धर्म निरपेक्ष, धर्म से अलग कहता है तो वो ना तो सर्वशक्तिमान को मानता है ना शक्तिमान को ना ही वो कोई पूजा इबादत करता है और ना ही वो धर्म के बाकी नियम, क़ानून को मानता है, उसके अनुसार मानव अपने नियम खुद बनाए ! लोकतंत्र मे देश व राज्ये को सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है अर्थात लोकतंत्र देश कि विचारधारा मे ये बात समाहित है कि देश या राज्ये ये नही मानता कि कोई अल्लाह, ईश्वर, God है लेकिन ये देश के हर नागरिक को ये अधिकार देता है कि हर वयक्ति किसी को भी सर्वशक्तिमान, देवी देवता मानकर उसकी इबादत और पूजा कर सकता है !

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  28. इस्लामी विचारधारा के बारे मे बात करने से पहेले कुछ बिंदुओ और बातो को जानना और समझना ज़रूरी है और इन पर विचार करना ज़रूरी समझता हुँ

    पहेली बात अगर ये माना जाता है कि शक्ति है तो उसके कुछ नियम है यदि कोई उन नियमो का पालन नही करे तो उस से नुकसान होगा अथवा कोई लाभ नही होगा!

    जैसे बिजली एक शक्ति है और उसका नियम है कि उसका उपयोग हेतु फेस और न्यूट्रल होना चाहिए और बीच मे कुछ लोड हो,

    जहाँ शक्ति है वहाँ नियम है अगर नियम नही तो शक्ति अनियंत्रित होगी अथवा नही होगी अर्थात नियमो का पालन ज़रूरी है अत: सब शक्ति से उपर सर्वशक्तिमान को मानना है तो उसके भी नियम तो ही होने चाहिए !

    दूसरी बात अब अगर कोई अपने आपको नास्तिक कहता है तो उसके लिए ये ज़रूरी है कि वो शक्तिमान (देवी देवता, खुदा का बेटा, या हर चीज़ मे खुदा ईश्वर है)और सर्वशक्तिमान का इनकार करे, केवल शक्ति को मानना और ना मानना से नास्तिक होने मे कोई फ़र्क नही पड़ेगा,उसके बावजूद नास्तिक भी नियम विशेष मे बँधा होगा चाहे वो प्रकर्ती के हो, देश के रास्ट्र के हो, राज्ये के शाहर के, सड़क के हो, घर के हो

    इसी तरह अगर कोई ईसाई बनना चाहता है तो उसे सर्वशक्तिमान और ईसा और मरियम (मदर मैरी) और बाइबल (किताब) और जो कुछ बाइबल मे है उसे मानना ज़रूरी होगा वरना वो ईसाई नही होगा चाहे किसी ईसाई घर मे पैदा हो,

    अगर हिंदू है तो उसे सर्वशक्तिमान के साथ दूसरे शक्तिमान (देवी देवता) को और धर्मग्रंथो को मानना पड़ेगा अगर कोई नही मानता तो नास्तिक ही कहलाता है !


    आस्तिक के लिए सर्वशक्तिमान को मानने उसका अस्तित्व स्वीकार करने के बाद सर्वशक्तिमान अथवा शक्तिमान कि इबादत, पूजा आवशयक अंग होती है, सीके अलावा नियम भी होते है जिसे उसका पालन करना ज़रूरी है इसके जैसे हर मामले मे ये देखा जाता है क्या वैध क्या अवैध ईसाई माँस को वैध और हिंदू अवैध बताता है, ईसाई गो मूत्र को अवैध और हिंदू वैध, इसी प्रकार धर्म विशेष के मानने वालो के लिए परिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नियम भी है, जब कोई अपने को सेकुलर, धर्म निरपेक्ष, धर्म से अलग कहता है तो वो ना तो सर्वशक्तिमान को मानता है ना शक्तिमान को ना ही वो कोई पूजा इबादत करता है और ना ही वो धर्म के बाकी नियम, क़ानून को मानता है, उसके अनुसार मानव अपने नियम खुद बनाए ! लोकतंत्र मे देश व राज्ये को सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है अर्थात लोकतंत्र देश कि विचारधारा मे ये बात समाहित है कि देश या राज्ये ये नही मानता कि कोई अल्लाह, ईश्वर, God है लेकिन ये देश के हर नागरिक को ये अधिकार देता है कि हर वयक्ति किसी को भी सर्वशक्तिमान, देवी देवता मानकर उसकी इबादत और पूजा कर सकता है !

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  29. sugh साहब क्या किसी की जन्म तिथि पूछना उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाना है ? हम जो बात मालूम नही वह आप जैसे बुद्धिजीवियों से मालूम करने मे कौन सा पाप है आखिर आप के पूर्वज भी वही है जो हम अपने होने का दावा कर रहे हैं । फिर आपको बताने मे क्या एतराज ?

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  30. sundar lekh aur ati-sundar vichar aapko salaam

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  31. @ मिश्रा जी ! हमारे बंधु को कन्फ़्यूज़ तो आपके ही बंधुओं के कथन-प्रवचन कर रहे हैं। ख़ैर शिकवा छोड़िये यह बताइये कि यह पोस्ट कैसी लगी । इसके बाद इस पोस्ट पर भी अपने विचार दें तो अच्छा लगेगा। http://mankiduniya.blogspot.com/2010/08/tolerance-in-india-anwer-jamal.html

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  32. राम और रामचन्द्र जी में अन्तर है , कृपया अजन्मे ईश्वर और जन्म लेने वाले दशरथपुत्र को आपस में गड्डमड्ड न करें। सर्वज्ञ ईश्वर ही उपासनीय है वही सृष्टिकर्ता है । रामचन्द्र जी उपासक थे , उपासनीय नहीं। यह बात हिन्दू धर्मग्रंथों से ही प्रमाणित है।

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  33. जय श्री राम

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  34. Very Nice Post.
    May Allah shower his bounties for your hard and honest work.
    Iqbal Zafar.

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