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Tuesday, April 13, 2010

वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?


भारत को अगर सबल बनाना है तो भारत में बसने वाले लोगों को अपने गिले शिकवे भुलाकर आपस में दूध चीनी की तरह रहना होगा और फिर बाक़ी दुनिया को भी इसी तरह रहना सिखाना होगा । इसके लिए जीवन के उस मक़सद को भी पाना होगा जो स्वयं ईश्वर द्वारा निर्धारित है और उस विधान को भी जानना समझना होगा जो उसके द्वारा अवतरित है ।
विकार चाहे मुसलमानों में हों या हिन्दुओं में , उन्हें अस्वीकार करना होगा , उन्हें त्यागना होगा । कोई भी बीमारी पुरानी होने से लाभदायक नहीं बन सकती । कौन सी चीज़ विकार है और कौन सी चीज़ अमृत ? , इसे मनुष्य की बुद्धि तय नहीं कर सकती । इसे केवल ईश्वर की वाणी से ही तय किया जा सकता है । आपके पास ईश्वर की वाणी के जो भी अवशेष हैं , आप उसमें टटोलिए । हमारे पास जो सुरक्षित वाणी है हम उसमें देखते हैं । अगर हम कल्याण की सच्ची इच्छा से मिलकर प्रयास करेंगे तो हमारा भला ज़रूर होगा । यह हमारी सोच है । हम भी इसी देश के वासी हैं और हम भी इसका भला चाहते सोचते और हदभर करते हैं । ताज़ा नक्सली हमले में मरने वाले दीगर भाइयों के साथ मुसलमान भी थे ।
ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।
किसी हमदर्द के समझाने से मैं शांत हो गया था । मैंने ऐलान 3 दिन के लिए किया था लेकिन मैंने और ज़्यादा मोहलत दी ।
लेकिन मेरी इस ख़ामोशी के अंतराल में एक विषपुरूष ने पूरी पोस्ट क्रिएट कर दी कि मुसलमान संगठित तरीक़े से हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना रहे हैं ।
बताइये , ऐसा क्यों किया गया ?
क्या ऐसे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला कभी समाप्त हो पाएगा ?
क्या ऐसे में मुझे जवाब देना चाहिये था या फिर मैं चुप लगा जाता ?
कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जाता लेकिन मजबूरन मुझे इन आरोपवादियों को सच्चाई बतानी पड़ी और उसमें मैंने जानबूझकर वेदों का नाम तक नहीं लिया ।
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
इस ब्लॉग पर आप ख़तना , लिंगाग्र, स्तंभन और वीकनेस का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं ?
आप अपने ब्लॉग का नाम बदलिए ।
मैं तो अमित शर्मा जी के अन्दर बिल्कुल मुल्ला मौलवियों जैसी शर्मो-हया देखकर दंग ही तो रह गया ।
सोचता रहा कि क्या जवाब दूं ?
क्या इन्होंने सचमुच वेद नहीं पढ़े ?
अगर पढ़े हैं तो लिंगाग्र जैसे नॉर्मल वर्ड्स पर इस तरह लजाने का नाटक क्यों कर रहे हैं ?
अगर कोई समस्या समाज में मौजूद है और उसका समाधान भी है , तो उसका ज़िक्र क्यों न किया जाएगा ?
हमने तो संक्षिप्त में ज़िक्र किया है , लेकिन कोर्स में तो पूरी संरचना दी गई है जिसे सभी भाई बहन पढ़ते हैं और मां बाप ऊँची फ़ीस देकर पढ़ाते हैं और खुश होते हैं कि हमारे बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं ।
क्या हमारे पूर्वज कुछ कम वैज्ञानिक थे ?
जिस लिंग की संरचना और कार्यों पर पश्चिमी वैज्ञानिक आज प्रकाश डाल रहे हैं उसकी विवेचना तो हमारे मनीषी हज़ारों या अरबों साल पहले ही कर चुके हैं ।
न सेशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते ,
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृद विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
ऋग्वेद 10-86-17
अर्थात वह मनुष्य मैथुन करने में सक्षम नहीं हो सकता , जिस के बैठने पर लोमयुक्त पुरूषांग बल प्रकाश करता है । वही समर्थ हो सकता है , जिसका पुरूषांग दोनों जांघों के बीच लंबायमान है ।
हमने तो वेदों में आर्य नारी को भी ‘ार्माते लजाते हुए नहीं देखा -
उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
अर्थात मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो । यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूं । मैं गांधारी मेषी ( भेड़ ) की तरह लोमपूर्णा ( रोमों से भरी हुई ) और पूर्ण अवयवा ( जिसके अंग पूर्ण यौवन प्राप्त हैं ) हूं ।
अफ़सोस श्री अमित शर्मा जी के हाल पर । मुझे तो लगता है कि उन्होंने शायद आज तक गर्भाधान संस्कार भी न किया होगा अन्यथा वे इस मन्त्र को ज़रूर जानते । सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।
ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1
अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।
देखा अमित जी ! आप तो मात्र वेदों की भावना को आत्मसात न कर पाने के कारण शर्मा रहे थे वर्ना ऐसी कोई बात नहीं है और न ही मुझे अपने ब्लॉग का नाम ही बदलने की ज़रूरत है ।
.... और चूंकि इसलाम पर ऐतराज़ करना ज़माने का दस्तूर बन चुका है तो हर आदमी लालायित सा रहता है कि इसलाम पर एक दो एतराज़ मैं भी जड़ दूं , चाहे अपने ग्रन्थ से किंचित भी वाक़फ़ियत न हो ।
बवाल जी भी कल निकाह में मह्र देने पर ऐतराज़ कर गये और हमें एक सुअवसर प्रदान कर गये वैदिक साहित्य की महान गहराई में एक और ग़ोता लगाने का , लेकिन आज का सारा समय तो मेरे मोहक मुस्कान स्वामी जी की नज़्र हो गया । सो आज के लिए तो सॉरी लेकिन ....
धार्मिक सामान्य ज्ञान बढ़ाएं -
प्रश्नों का उत्तर देकर पुण्य पाएं । पुण्य नक़द मिलता है ।
1 - मनु स्मृति के अनुसार विवाह के कुल कितने प्रकार हैं ?
2 - क्या मनु स्मृति कन्या को ख़रीदने को भी विवाह का ही एक प्रकार मानती है ?
3 - यदि हां , तो विवाह के उस प्रकार का नाम बताएं ?
4 - मनु स्मृति में वर्णित विवाह का कौन सा प्रकार इसलामी निकाह के सदृश है ?

40 comments:

  1. Ved hi jeewan hai. kaise jite hain , ye aap ke upar nirbhar karta hai.

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  2. sirf ek vote de dene se kam nahi chalega. kam to tab chalega jab Hindu aur Musalman ek sath ek manch par khade honge. Aur ye kam tab hoga jab aap log bhartiya samaj ko apna loge.

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  3. वैसे आपने सही कहा विकार त्याग कर ही हम शांति और विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। दमदार लेखनी है। धर्म को लेकर अच्छी समझ है। आपके पोस्ट पढ़ना जैसे हमारे लिए एक महत्वपूर्ण कामों की सूची में शामिल हो गया है। एक बार फिर कहेंगे बहुत अच्छा लिखते हैं।

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  4. @ भाई तारकेश्वर जी ! इस वक़्त दूसरे कंप्यूटर पर हूँ , यहाँ से भी एक वोट करता हूँ . वहां से तो हो नहीं पाया था .
    @ जनदुनिया वालो ! आज आपके ब्लॉग को blogvani पर देखा , देखिये अभी आता हूँ . आपकी लेखनी भी सुलझी हुई है .

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  5. भारत को अगर सबल बनाना है तो भारत में बसने वाले लोगों को अपने गिले शिकवे भुलाकर आपस में दूध चीनी की तरह रहना होगा और फिर बाक़ी दुनिया को भी इसी तरह रहना सिखाना होगा । इसके लिए जीवन के उस मक़सद को भी पाना होगा जो स्वयं ईश्वर द्वारा निर्धारित है और उस विधान को भी जानना समझना होगा जो उसके द्वारा अवतरित है ।
    विकार चाहे मुसलमानों में हों या हिन्दुओं में , उन्हें अस्वीकार करना होगा , उन्हें त्यागना होगा

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  6. @ भाई अमित ! किसी ने आपके selection को यह रूप दे दिया है . इसके ज़रिये आप मेरा असली चेहरा दुनिया आसानी से दिखा सकते है . यह मेरी तरफ से आपको एक यादगार तोहफा है -
    हिन्दू नारी कितनी बेचारी ? women in ancient hindu culture
    क्या दयानन्द जी को हिन्दू सन्त कहा जा सकता है ? unique preacher
    कौन कहता है कि ईश्‍वर अल्लाह एक हैं
    क्या कहेंगे अब अल्लाह मुहम्मद का नाम अल्लोपनिषद में न मानने वाले ?
    गर्भाधान संस्कारः आर्यों का नैतिक सूचकांक Aryan method of breeding
    आत्महत्या करने में हिन्दू युवा अव्वल क्यों ? under the shadow of death
    वेदों में कहाँ आया है कि इन्द्र ने कृष्ण की गर्भवती स्त्रियों की हत्या की ? cruel murders in vedic era and after that
    गायत्री को वेदमाता क्यों कहा जाता है ? क्या वह कोई औरत है जो ...Gayatri mantra is great but how? Know .
    आखि़र हिन्दू नारियों को पुत्र प्राप्ति की ख़ातिर सीमैन बैंको से वीर्य लेने पर कौन मजबूर करता है ? Holy hindu scriptures
    वेद आर्य नारी को बेवफ़ा क्यों बताते हैं ? The heart of an Aryan lady .
    लंका दहन नायक पवनपुत्र महावीर हनुमान जी ने मन्दिर को टूटने से बचाना क्यों जरूरी न समझा ? plain truth about Hindu Rashtra .

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  7. वन्दे ईश्वरं ! शांति बेहतर है बहस से !!

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  8. गोत्र के पिशाच से सावधान ! यादगार लेख देखना हो तो यह देखो !

    http://jandunia.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html?showComment=1271180725853_AIe9_BH3dDD-iwTYL0oUcQAdlP3HP_v6dUgJnDoGh9ENqtFjyvjCsFHW4_aaeDw0ALsi6pq7WQVC_iFV6r7lAcaH0-VGD05sulHtODQlh9H3q1aPSqqE6Z-NJb_Ag14_nsMgXIkGDDc8heYCk91NeETc9zAcUaQU2V9gge5ear4hcJWMxFwHHm90JhpBmlB1jDPyEyvwBC7OwAcYUoztJEXfXY4tLSGe9g#c8398015310510227835

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  9. सही बात सभी को माननी चाहिए क्योँकि सत्य कभी विदेशी नही होता भारत की जनता हमेशा सत्याभिलाषी रही इसी लिए जब सत्य इस्लाम के रुप मे आया तो भारतीय जनता ने इसे स्वीकार किया और स्वागत किया जिसकी मिसाल भारत के बीस करोड़ से ज़्यादा मुसलमान है

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  10. विकार चाहे मुसलमानों में हों या हिन्दुओं में , उन्हें अस्वीकार करना होगा , उन्हें त्यागना होगा । कोई भी बीमारी पुरानी होने से लाभदायक नहीं बन सकती । कौन सी चीज़ विकार है और कौन सी चीज़ अमृत ? , इसे मनुष्य की बुद्धि तय नहीं कर सकती । इसे केवल ईश्वर की वाणी से ही तय किया जा सकता है । आपके पास ईश्वर की वाणी के जो भी अवशेष हैं , आप उसमें टटोलिए । हमारे पास जो सुरक्षित वाणी है हम उसमें देखते हैं ।

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  11. डॉ. साहब, हमें तो यह लगता है कि जब जब जिस जिस मज़हब में जो जो हुआ है वो देश-काल-परिस्थिति के तहत वाजिब ही हुआ होगा। वक्त बदलने के साथ हो सकता है अब हमें कुछ बातें अप्रासंगिक लगती हैं और नावाजिब भी। नज़रिए की आज़ादी तो ख़ैर अपनी जगह है ही। और जी हाँ, मेहर पर हमें ऐतराज़ कतई नहीं है साहब। हम तो दूबे जी के छोटे भाई के यहाँ का क़िस्सा बयान कर रहे थे। सल्लाहोअलैहेवसल्लम साहब की बातों इत्तेफ़ाक रखना ही चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे कन्हैयालाल जी की बातों से। शुक्रिया जी।
    रब ख़ैर करे।

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  12. Dr.SAHAB AAPKI NAZAR
    Tu Aaina Hai Mujhko Tera Khayal Rakhna Hai………..
    Kahin Tu Toot Na Jaiy Tujhay Sambhal Rakhna Hai….

    Harr Ek Masley Ka Teray; Hal Nikaal Rakhna Hai…….
    Zahanat Se Apni Tujhay Hairat Main Daal Rakhna Hai

    Gar Jo Kabhi Tu Tark-e-Talluq Ki Baat Karay…………
    Rok Kar Tujhay Kal Pe Taal Rakhna Hai………………

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  13. गुरु भाई तुस्सी ग्रेट हो

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  14. chatka lagane ko sheekh lena chahiye sabhi ko...

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  15. ओहो जमाल साहब फिर वही अधकचरी बात-
    सबसे पहले तो आपको और आप जैसे दुसरे बंधुओं को यह समझना आवश्यक है की "वेद" सिर्फ किसी किताब या मन्त्रों का ही नाम नहीं है. वेद का मतलब है ज्ञान और ज्ञान कभी आधा-अधुरा नहीं होता उसमें जीवन के संपूर्ण व्यवहारों का निरूपण होता है. वेद मानव को पुरषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति के सूत्र बतलाता है पुरषार्थ चतुष्टय तो जानते ही होंगे आप - "धर्म,अर्थ काम और मोक्ष". जब मानव मात्र का उद्देश्य ही ये चार पुरषार्थ निश्चित किये गए है तो,और इनको सम्यक रूप से किस प्रकार जीवन में प्राप्त किया जाये इसका निर्देशन वेद करता है.(याद रखिये "सम्यक रूप" से किसी भी तरह की अस्म्यकता का वेद निषेध करता है). और जब वेद जीवन को किस रूप में किस तरह जिया जाये का निर्देशन कर रहें है तो यह तो मुर्ख से मुर्ख प्राणी के भी समझ में आने वाली बात है की उसके हर मंत्र में "धर्म,अर्थ काम और मोक्ष" सम्बन्धी अर्थ निकलेंगे . यहाँ आप यह भी ध्यान रखिये की धर्म के साथ काम का वेद ने निषेद नहीं किया है,धर्म के साथ काम तो मानव के परम लक्ष्यों में शामिल है. लेकिन वही काम- क्रोध,मद,लोभ जैसे दुर्गुणों के साथ ताज्य है.
    वेद सम्पूर्ण सत्य है,और सत्य को जो जिस भावना से देखेगा वोह उसको उसी रूप में दिखलाई देगा,ज्ञानमार्गी को ज्ञान,तो काममार्गी को काम
    "जाकी रही भावना जैसे प्रभु मूरत तिन देखी तैसी"
    जिसका जो स्वभाव होता है,उसको उसके प्रदर्शन का नाटक नहीं करना पड़ता ,क्योंकि व्यक्ति का असली स्वाभाव तो देर-सबेर उजागर हो ही जाता है. इसका अंदाजा तो ज्ञानीजन आपकी पोस्टो की शब्दावली और उनपे हमारी कमेंट्स की शब्दावली से अपने आप ही लगालेंगे.
    यों काम विषयक शब्दों पे लजाने का तो सवाल ही नहीं है क्योंकि यह तो पुरषार्थ चतुष्टय की अंग है, लेकिन बात वही की उस काम का प्रयोग कहाँ और किस प्रकार हो रहा है, हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.
    अब हर जगह वासना युक्त कामुक नजरों से देखने काही तो परिणाम है की आप तो भगिनी शब्द को भी स्त्री योनी से जोड़ बैठे. सोच सोच कर हैरान हूँ की कैसे आप की बुद्धि के घोड़े माँ-बहिनों के योंनांगो की शरण लेने लगतें है,आपके अहंकारी मन की बात को शब्द देने के लिए.

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  16. और बार बार किसी धर्म के ग्रंथों को जाली होने सम्बन्धी अपनी रागिनी को बंद करने की कोशिश कीजिये क्यों की मुझे भी शक है की वर्तमान में जिस किताब को पवित्र कुरआन कहा जाता है, वही असल कुरान है, जिसे परमेश्वर ने श्रीमोहम्मद साहब पे नाजिल किया था. क्योंकि श्रीमोहम्मद साहब की जीवनी पढते हुए उल्लेख मिलता है की श्रीमोहम्मद साहब के जनाजे में काफी कम लोग शामिल हुए थे. क्योंकि उनके अनुयायी खलीफा पद की लड़ाई में उलझ गए थे. अब बताइए की जो अनुयायी आज तक उनके ऊपर शांति होने की प्रार्थना करते है, वो उनकी पार्थिव देह को भी शांति से नहीं सुपुर्दे-खाक ना कर सके. तो जो लोग अपने मसीहा की लाश को भी उचित सम्मान नहीं दे पाए और सत्ता के लिए लड़ने लगे हों,क्या उन्होंने सत्ता के लिए श्रीमोहम्मद साहब की शिक्षाओं की की हत्या करके कुरआन में सत्ता प्राप्ति की सहायक आयतों का समावेश नहीं किया होगा.
    श्रीमोहम्मद साहब ने तत्कालीन अरब में फैली बर्बर कबीलाई परम्पराओं को तोड़ते हुए शुद्ध वैदिक धर्म की महिमा का पुनर्स्थापन किया था. जिसे उनके अनुयायियों ने अपनी वासनाओं,और हैवानियत की राह में रोड़ा मानते हुए, पवित्र कुरआन में बर्बर और अनर्गल आयातों का समावेश कर दिया, जिससे की उन्हें खलीफा पद के रूप में कौम की बादशाहत, और लुटेरों के रूप में दुनिया की बेशुमार दौलत प्राप्त हो सकें.

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  17. दुष्ट न छोड़े दुष्टता कैसे हूँ सुख देत |
    धोये हूँ सौ बार के काजर हॉट न सेत ||

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  18. दुष्ट न छोड़े दुष्टता कैसे हूँ सुख देत |
    धोये हूँ सौ बार के काजर होत न सेत ||

    !! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!

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  19. @ अनवर जमाल साहब.... बाद भाई अमित जी के निर्देश पर गुरूजी संबोधन समाप्त !!!

    सत्य तो बड़ा सूक्ष्म होता है !! जो कम से कम आपको नहीं पता !! निकालते रहिये गंदंगी अपने भीतर से इससे आपको सत्य समझाने में हमें आसानी होगी !!
    कुछ समय दीजिये - अपनी परीक्षा बाद यहीं सत्य का निर्धारण कर देंगे !!

    आपके अल्लाह और मेरे भी की और से आपको और आपके चमचों को चैलेंज - हिंदुत्व एक सार्वभैमिक और अनंतकालिक और सदा युवा धर्म है और इस्लाम इसी का एक छोटा सा बच्चा जो अब बूढ़ा हो रहा है !!

    भारत की जय के बीच में यदि इस्लाम आड़े आता है तो उसके साथ क्या किया जाना चाहिए ?

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  20. कल अपने 'आतंकवादी भाई जान',सलीम खान,सुरेश जी और फिरदौस जी के नाम का सहारा ले रहे थे पाठको कि गिनती बढाने के लिए,और आज अपने 'डॉक्टर साहब' अमित जी का!भाई इस्लाम है,मेरा मतलब सलाम है आपकी कोशिशो को.....



    कुंवर जी,

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  21. amit ji nirdesh is tarah tha -

    भैया मेरा देश मेरा धर्म जी ,
    बजरंगदल वालों को ग़लतफ़हमी हो गयी है की आप श्रीहनुमत लालजी के बारे में कुछ उल्टा-सीधा कह रहें है. इसका कारण मैंने आपको बताया ही था की,शब्दों को थोडा खुला छोड़ते हुए अपनी बात कहें, जल्दबाजी में अर्थ-का अनर्थ हो रहा है.
    और सबसे बड़ा भ्रम जमाल साहब को आपके "गुरूजी" वाले संबोधन से भी होता है . अच्छी बात है बड़े तो गुरु सामान ही होते है. उन्हें गुरु कहने में कोई बुराई नहीं है. पर आपकी एक सार्वजानिक छवि बन चुकी है,इसलिए ऐसे संबोधन गले की फांस भी बन जाते है.बाकी आप समझदार है.

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  22. @@@@@@@@@ DR. ANWER JAMAL said...
    प्रश्नों का उत्तर देकर पुण्य पाएं । पुण्य नक़द मिलता है ।
    1 - मनु स्मृति के अनुसार विवाह के कुल कितने प्रकार हैं ?
    2 - क्या मनु स्मृति कन्या को ख़रीदने को भी विवाह का ही एक प्रकार मानती है ?
    3 - यदि हां , तो विवाह के उस प्रकार का नाम बताएं ?
    4 - मनु स्मृति में वर्णित विवाह का कौन सा प्रकार इसलामी निकाह के सदृश है ?

    http://www.scribd.com/doc/29891159/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE

    =========================================================================================================
    http://www.scribd.com/forallover

    आधी बातों से पूरा ज्ञान नहीं होता हम आपको मनु स्मृति ही उपहार स्वरुप दें रहें हैं !! मेरे ईश्वर इसका सारा पुण्य आप को ही दें, क्योंकि हम तो उसके विरूद्ध कोई काम करते ही नहीं इससे पाप होता ही नहीं तो पुण्य की जरूरत ही नहीं पड़ती !!!!

    http://www.scribd.com/doc/29891159/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE

    !!! भगवान् आपको सद्बुद्धि दे !!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!

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  23. @ अमित जी ! आप जितने भी रूपों में इस ब्लॉग पर पधार रहे हैं , उनको मैं जानता हूँ .
    1 - हमने आपसे पूछा था कि अगर वैदिक काल में लड़की को शुभ और भाग्यवती माना jata था to vedon में putri ke paida hone कि prarthna karne bajay log putra paida hone की prarthna kyun karte nazar aate हैं ?
    2- kya ved nashe और jua varjit batate हैं ?
    3- sanyasi dharm arth kaam और moksh में kya sidhh kar pata है ?
    4- bheekh mangne ke baare में ved kya batate हैं ?
    APNE KAHA HAI - हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.
    5- AB HAM puchhte हैं कि rishi bhardwaj ne bharat जी कि sena को mor , murghe ka maans khilaya , madira pilayi और harek sainik को kai kai ladkiyan भी deen . yahan kaun sa garbhadan sanskar chal raha था . khud को zyada saaf mat dikhao . yeh kam lage to shri mad bhagwat में shri krishna जी कि lila padh lijiye , aise hi kisi ne likh diya कि vishnu जी ne jalandhar detya कि patni ke saath uske pati ka roop bana kar balatkar kiya था . मैं to in baton को jhoot samajhta हूँ आप inhen kyun sach manne pe tule hue हैं ?
    6- अगर mantra sanhita ka naam ved nahin है to phir iska naam भी आप bata dijiye ?

    @ mera desh mera dharm ! आपका naam hi है chhadm . Hindu naam ka Dharm आप bata रहे ho , koi kehta है कि yeh Dharm nahin ek culture है ? pls koi batayega की ye है kya ? kya KARNA ismen compulsory है और kya KARNA मना है ?
    @ SAFAT BHAI ! SHUKRIYA .

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  24. @@@@DR. ANWER JAMAL said...

    http://www.scribd.com/forallover

    आधी बातों से पूरा ज्ञान नहीं होता हम आपको मनु स्मृति ही उपहार स्वरुप दें रहें हैं !! मेरे ईश्वर इसका सारा पुण्य आप को ही दें, क्योंकि हम तो उसके विरूद्ध कोई काम करते ही नहीं इससे पाप होता ही नहीं तो पुण्य की जरूरत ही नहीं पड़ती !!!!

    आपने पढ़ा की नहीं पढ़ा पता नहीं लिंक देखने से ही आपको पुण्य मिल गया तभी तो मेरा कंप्यूटर खुला है !!

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  25. @@@@@@ @@@@DR. ANWER JAMAL said...

    आपको कमेंट्स मिल ही रहें हैं - समय की कमी है नहीं तो कमेंट्स की बौछार कर देते !!
    इस धर्म - करम के मामले में मैं पड़ना नहीं चाहता था - लेकिन भारत की जय-जय के लिए इसमें भी पड़ना पडा !! क्यों? ये सब आप को बाद में समझ आएगा !!
    छदम नाम की बात नहीं है, बात सिर्फ इतनी सी है की मेरा देश ही मेरा धर्म जो इसका है वहीँ मेरा है - बाकी मेरा फ़ोन न. 9873165482

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  26. suresh chipulkar ji ne ek ek bat udaharan saheet samjhaihe chachha...unka her ek lekh jivant he..saboot saheet likhate he...toom pata nahikya vyaktigat uljhte jaa raho ...chmachhh toomahara intzaar karte rahate he...

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  27. @@@@@@@@@@DR. ANWER JAMAL said..

    Hindu naam ka Dharm आप bata रहे ho , koi kehta है कि yeh Dharm nahin ek culture है ? pls koi batayega की ye है kya ? kya KARNA ismen compulsory है और kya KARNA मना है ?

    -----------------------------------
    रिलिजन क्या है ? (http://27amit.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html)

    क्या हिन्दू धर्म एक पंथ(रिलिजन) है?
    (http://27amit.blogspot.com/2010/04/blog-post_4994.html)
    -----------------------------------

    हिंदुत्व एक सार्वभैमिक और अनंतकालिक और सदा युवा धर्म है !!! #\\\][[][]

    दिमाग पर ज्यादा जोर न डाले लेख पूरा पढ़ कर ही बात करें !!

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  28. अनवर जमाल - @ अमित जी ! आप जितने भी रूपों में इस ब्लॉग पर पधार रहे हैं , उनको मैं जानता हूँ
    अमित शर्मा - आपकी सबसे बड़ी कमी ही यही है की आप स्वयं को सर्वज्ञानी मानते है,जबकि वस्तुस्थिति ठीक उलट है, आपको हर चीज के बारे में महाभ्रम है हिन्दू धर्मग्रंथों के प्रति हो ,चाहे मेरे
    .प्रति. आप मुझसे इतना क्यों घबरा रहें है की,अब हर किसी के रूप में मै ही मै दिखाई देने लगा हूँ.यदि मेरी जगह हर किसी में परमात्मा का दर्शन करते तो शायद अब तक आप कल्याण की राह पे चल चुके होते.

    अनवर जमाल - 1 - हमने आपसे पूछा था कि अगर वैदिक काल में लड़की को शुभ और भाग्यवती माना जाता था तो वेदों में पुत्री के पैदा होने कि प्रार्थना करने के बजे लोग पुत्र पैदा होने की प्रार्थना क्यूँ करते नज़र आते हैं ?

    अमित शर्मा - बड़ी सीधी सी बात है जब लड़की को शुभ और भाग्यवती माना जाता है ,और यह पता
    है की ये शुभता और भाग्य की खान विवाह के बाद दूसरें घर विदा हो जाएगी.
    तो कोई पुत्र प्राप्त कर पुत्र वधु के रूप में शुभता और सौभाग्यता को अपने घर क्यों नहीं लाना .चाहेगा. और दूसरी बात की शास्त्रों में मनुष्य पे पितृ ऋण बताया गया है उससे उऋण होने के लिए भी पुत्र प्राप्ति की कामना करता है.

    अनवर जमाल - 2- क्या वेद नशे और जुआ वर्जित बताते हैं ?
    अमित शर्मा - बिलकुल बताते है जनाब ऋग्वेद के दसवें मंडल का 34 वाँ सूक्त तो जुए की बुराइयों पे
    ही है.और नशे का समर्थन वेदों या अन्य शास्त्रों में कहा आया है आप बतला दीजिये. सोमरस और मद्य का अंतर मालूम करके फिर लिखयेगा जनाब .

    अनवर जमाल - 3- सन्यासी धर्म अर्थ काम और मोक्ष में क्या सिध्ह कर पता है ?
    अमित शर्मा - अरे भाईजी हिन्दू धर्म में चार आश्रम बतलाये गए है ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और संन्यास. कोई व्यक्ति जब प्रथम तीन आश्रमों में पहिले तीन पुरषार्थ सिद्ध कर लेगा. तब संन्यास आश्रम में मोक्ष ही तो सिद्ध करने का साधन करेगा.

    अनवर जमाल - 4- भीख मांगने के बारे में वेद क्या बताते हैं ?
    अमित शर्मा - आजकल वाली भीख का तो पता नहीं बाकी, ब्रह्मचारियों,वानप्रस्थियों और सन्यासियों के लिए भिक्षाअन्न का निर्देश जरूर है ताकि ये तीनो अनावश्यक संग्रह ना करें और गृहस्थ अश्र्मियों के लिए निर्देशित दान देने के कर्तव्य का पालन सम्यक रूप से होता रहे.

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  29. अनवर जमाल to amit - अपने कहा है हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.
    5- अब हम पूछते हैं कि ऋषि भरद्वाज ने भारत जी कि सेना को मोर, मुर्ग्हे का मांस खिलाया, मदिरा पिलाई और हरेक सैनिक को कई कई लड़कियां भी दीन. यहाँ कौन सा गर्भादान संस्कार चल रहा था. खुद को ज्यादा साफ़ मत दिखाओ. यह काम लगे तो श्रीमद भगवत में श्री कृष्ण जी कि लीला पढ़ लीजिये, ऐसे ही किसी ने लिख दिया कि विष्णु जी ने जालंधर देत्या कि पत्नी के साथ उसके पति का रूप बना कर बलात्कार किया था. मैं तो इन बैटन को झूट समझता हूँ आप इन्हें क्यूँ सच मानने पे तुले हुए हैं ?
    अमित शर्मा - ज़वाब मेरी इस पोस्ट में देखे -- http://27amit.blogspot.com/2010/04/blog-post_4994.html

    अनवर जमाल - 6- अगर मंत्र संहिता का नाम वेद नहीं है तो फिर इसका नाम भी आप बता दीजिये ?
    अमित शर्मा -- -- "वेद" सिर्फ किसी किताब या मन्त्रों का ही नाम नहीं है.-- इसमें मैंने कहाँ कहा है की मंत्र वेद के अंग नहीं है या मंत्र सहिंता का नाम वेद नही है. यही तो कमी है आप लोगों की शब्दार्थ की पूंछ पकड़ते हो, भाव तो छोड़िये शब्दों के ही अर्थ का अनर्थ कर डालते हो आप लोग बात क्या समझोगे

    अनवर जमाल - @ मेरा देश मेरा धर्म ! आपका नाम ही है छद्म . हिन्दू नाम का धर्म आप बता रहे हो , कोई कहता है कि यह धर्म नहीं एक कल्तुरे है ? प्लस कोई बताएगा की ये है क्या ? क्या करना इसमें कोम्पुल्सोरी है और क्या करना मना है ?

    अमित शर्मा -- जो बात सबसे ऊपर कह आया हूँ उसे अब क्या दोहराऊ. की आप मुझसे इतना क्यों हडबडा रहें है की हर किसी में आपको अमित शर्मा ही दिखलाई दे रहा है. यदि मेरी जगह हर किसी में परमात्मा का दर्शन करते तो शायद अब तक आप कल्याण की राह पे चल चुके होते.
    और हिन्दू धर्म की क्यों टेंशन ले रहे है आप. आप तो ये बताओ की क्या उपलब्ध कुरआन ही असली कुरआन है जिसे परमेश्वर ने हमारे पूजनीय श्रीमुहम्मद साहब को प्रदान किया था,

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  30. @Amit Sharma
    आप तो ये बताओ की क्या उपलब्ध कुरआन ही असली कुरआन है जिसे परमेश्वर ने हमारे पूजनीय श्रीमुहम्मद साहब को प्रदान किया था .
    जी हाँ अमित जी. और इसकी वजह स्वयें कुरआन का वह चैलेन्ज है की तमाम दुनिया मिलकर चाहे तो इसके जैसा दूसरा नहीं बना सकती.
    जो चीज़ बदली या फर्जी गढ़ी जा सकती है वह श्रीमुहम्मद साहब की हदीसें (कथन) हैं. इसी लिए हदीसों पर मुसलमान एकमत नहीं हैं किन्तु कुरआन पर एकमत है.

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  31. chachaa too suresh chipulakaarr ke samne too koochh nahee...kaval burai karne aata he hindu dharam ki ...vo bhi sareeta ke poorane ank dekh dekh .....bakee suresh jee har cheej ka gyan rakhte he ...takaniki ...poltical current..affair..home domestic..diplomatic...since..relegon...midia..bakee too kis cheej ka doctor he ...bihar se khreedi hogee digaree...laloo ke time....keval trancelate vaid padha ker apne ko gyani samjhne lag gaya....suresh ji her baat ko parmanit karte he bakee too baat ko apne hisab se artha laga ke tod marodta he...yanhi teri doctory ka pata lag jata he...do char chammachh paida kar liye .jo jee hujur jee hujur karte rahate...reply to de rovanee shakal ke ..paida hi ese huaa yaa kisi ne peet ke photo khanchee he

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  32. यह इस देश की विडंबना है कि अपने देश में इस्लाम पर कोई शास्त्रीय चर्चा नहीं की जा सकती। उस पर केवल और केवल राजनीतिक बहस ही संभव है। परंतु मैं यहां इस्लाम पर एक शास्त्रीय बहस छेड़ने की कोशिश कर रहा हूं। बात इस्लाम के सिध्दांतों के बारे में की गई थी, परंतु लोगों ने देश में रह रहे मुसलमानों के बारे में चर्चा शुरू कर दी। सवाल मुसलमानों का नहीं है। सवाल इस्लाम के मूल सिध्दांतों का है। इस्लाम के सिध्दांतों और आम मुसलमानों के व्यवहार को अलग-अलग करके देखना होगा। सामान्यत: आम मुसलमान एक शांत जीवन से अधिक की इच्छा नहीं करते और उनमें भी अन्य सामान्य मनुष्यों के समान ही गुण व दोष होते हैं। परंतु उनका मत यानी कि इस्लाम उनके दैनन्दिन जीवन को एक नैतिक आधार व पांथिक कर्मकांड प्रदान करता है, जो इस तरह की मानसिक व बौध्दिक सीमाएं व बाधाएं खड़ी करता है, जिससे मुक्त होना सहज नहीं होता। सवाल यह है कि क्या इस्लाम के मूल चरित्र में असहिष्णुता और हिंसा है? क्या उसके कारण समाज में किसी प्रकार की समस्या पैदा हो सकती है? यदि है तो फिर उसका उपाय क्या है? इन प्रश्नों पर विचार करने के लिए ही हमें इस्लाम को एक व्यक्ति के नाते मुसलमानों से अलग करके, उस पर एक सिध्दांत के रूप में चर्चा करनी होगी।

    सामान्यत: यह कहा जाता है कि इस्लाम के मूल चरित्र में कोई कट्टरता, असहिष्णुता और हिंसा नहीं है। यह सब विकृतियां हैं और दिग्भ्रमित लोगों द्वारा की गईं गलत व्याख्याएं हैं। परंतु सोचने की बात यह है कि यदि मूल विचार में हिंसा नहीं हो तो क्या केवल उसकी गलत व्याख्या के कारण इतने बड़े पैमाने नरसंहार संभव है? उदाहरण के लिए हम सनातन वैदिक धर्म को देखें। सनातन वैदिक धर्म में भी विकृतियां आईं और उसकी काफी विकृत मीमांसाएं भी की गईं, परंतु उसके कारण कभी भी बड़े तो क्या छोटे स्तर पर भी नरसंहार नहीं हुआ। उन विकृतियों व गलत व्याख्याओं के कारण समाज में भेदभाव और छुआछूत तो फैला और उसके कारण अत्याचार भी बहुत हुए, परंतु देश के आजाद होने तक उसके कारण सामूहिक हत्याकांड कभी नहीं हुआ। देश के आजाद होने के बाद जब देश में सामाजिक व जातीय आधार पर सामूहिक हत्याकांड करनेवाले विदेशी समूहों यथा साम्यवादियों व नक्सलवादियों के सक्रिय होने के बाद कुछेक स्थानों पर सामूहिक हत्याकांड हुए हैं। परंतु विदेशी हस्तक्षेप से पहले देश में कभी भी जातीय या पांथिक आधार पर कोई सामूहिक नरसंहार नहीं हुआ।

    इसका कारण भी बड़ा स्पष्ट है। सनातन वैदिक धर्म के मूल चरित्र में हिंसा नहीं है। इसलिए तमाम विकृतियों के बावजूद भी उसने कभी भी हिंसा नहीं फैलाया या फिर हिंसा का समर्थन नहीं किया। महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में भी जो हिंसा का वर्णन है, वह हिंसा मात्र न हो कर अच्छाई बनाम बुराई का संघर्ष है। वास्तव में मतभिन्नता के कारण किसी भी प्रकार की हिंसा को सनातन वैदिक धर्म ने किसी भी स्वरूप में मान्यता नहीं दी। यही कारण है कि घोर आस्तिक राजा दशरथ के दरबार में घोर नास्तिक ऋषि भी हुआ करते थे। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि जब तक किसी भी संप्रदाय के मूल चरित्र में हिंसा नहीं हो, तब तक केवल उसकी गलत व्याख्या के आधार पर इतनी हिंसा नहीं फैलाई जा सकती। इससे यह तो स्पष्ट होता है कि इस्लाम के मूल सिध्दांतों और चरित्र में किसी न किसी रूप में हिंसा को मान्यता दी गई है।
    कुरआन के सामान्य अध्ययन से ही यह बात पता चल जाती है कि कुरआन में स्थान-स्थान पर इस्लामविरोधियों व इस्लामद्रोहियों को मार डालने का आदेश दिया गया है। काफिरों से निरंतर युध्द जारी रखने और उन्हें देखते ही मार डालने का आदेश कुरआन में आम है। इसके लिए प्रेरणा के रूप में जन्नत का प्रलोभन दिया गया है। जन्नत में उन्हें हूरें मिलने की आशा दिखाई जाती है। इसके बारे में प्रसिध्द विद्वान अनवर शेख ने अपनी पुस्तकों में काफी कुछ लिखा है। यहां उसके कुछ उध्दरण प्रस्तुत हैं। इन उध्दरणों में अनवर शेख ने इस्लाम के सिध्दांतों में व्याप्त हिंसा और उसकी प्रेरणा देने के लिए दिए जाने वाले प्रलोभनों का वर्णन किया है। यहां मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैंने स्वयं भी व्यक्तिगत रूप से कुरान का अध्ययन किया है और इन आयतों को इसी रूप में वहां पाया है।..............

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  33. .........इस्लाम ही एक ऐसा धर्म है जिसने मानव समाज को दो स्थायी पारस्परिक युठ्ठ करने वाले समूहों में बाँट रखा है। इनमें से जो अल्लाह और पैगम्बर मुहम्मद में विश्वास करते हैं, वे अल्लाह की पार्टी वाले कहलाते हैं और जो ऐसा नहीं मानते हैं, वे शैतान की पार्टी वाले हैं (58:19,22)। इनमें से पहले वर्ग वालों का सबसे पवित्रतम कर्त्तव्य यह है कि वे दूसरे वर्ग वालों को पराधीन करके समाप्त कर दें। यह उद्देश्य इतना आवश्यक है कि उसके लिए इस्लाम अपने अनुयायियों को न केवल गैर-ईमान वालों की हत्या, लूट और उनकी स्त्रियों को पराधीन करने को उत्साहित करता है, बल्कि इस प्रकार की हत्या, लूट और शील भ्रष्टीकरण को सबसे बड़ा पुण्य कार्य तक घोषित करता है। इस्लाम इसे ‘जिहाद’ कहता है जोकि किसी मुजाहिद (इस्लाम का पवित्र सैनिक) को उद्धार और ‘जन्नत’ में स्थान देने की गारंटी देता है।
    अपने अनुयायियों को निर्दयी लुटेरा बनाने के लिए, वह उन्हें बार-बार अपने संभावित पीडितों यानी गैर-मुसलमानों के प्रति घृणा पैदा करने के लिए प्रेरित करता है।
    1. ”निश्चय ही (भूमि) पर चलने वाले सबसे बुरे जीव अल्लाह की दृष्टि में वे लोग हैं जिन्होंने ‘कुफ्र’ किया फिर वे ‘ईमान’ नहीं लाते”। (इस्लाम नहीं स्वीकारते) (8:55)।
    2. ”तो इन काफ़िरों पर अल्लाह की फिटकार है”। काफ़िरों (गैर-मुसलमानों) के लिए अपमानित करने वाली यातना है।” (2:89-90)
    3. ”जो काफ़िर हैं, जालिम वही हैं”। (2:254)
    4. ”हे ईमानवालो! उन काफ़िरों से लड़ो जो तुम्हारे आस-पास हैं और चाहिए कि वे तुम में सख्ती पाएँ।” (9:123)
    5. ”किताब वाले” (यहूदी-ईसाई) जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं और न अन्तिम दिन पर और न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके ‘रसूल’ ने हराम ठहराया है और सच्चे ‘दीन’ को अपना दीन बनाते हैं उनसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित होकर अपने हाथ से ज़िज़िया देने लगें।” (9:29)
    क्योंकि यह लूट ही थी कि जिसके परिणामस्वरूप इस्लाम का प्रसार हुआ, यहाँ तक कि जिन चीज़ों को स्वयं पैगम्बर ने पवित्र घोषित किया, उनकी मान्यता समाप्त हो गई, जब वे बातें उन्हें असुविधाजनक लगीं। उदाहरण के लिए
    ”जब हराम (पवित्र) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो और उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और ‘नमाज’ कायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो।” (9:5)
    ”क्या तुम ऐसे लोगों से नहीं लड़ोगे जिन्होंने अपनी कसमों को तोड़ा और ‘रसूल’ को निकाल देने की फिक्र की और उन्होंने ही तुमसे पहले छेड़ भी की। क्या तुम उनसे डरते हो? यदि तुम ‘ईमान’ वाले हो तो अल्लाह इस बात का ज्यादा हकदार है कि उससे डरो। उनसे लड़ो! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा और ‘ईमान’ वाले लोगों के दिल ठण्डे करेगा” (9:13-14)
    ”हे नबी! ‘ईमानवालों’ को लड़ाई पर उतारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे। और यदि तुम में सौ हों तो वे एक हजार काफ़िरों पर भारी रहेंगे।” (8:65)

    इस बात की सच्चाई की पुष्टि निम्नलिखित हदीस से होती है
    ”मुझे (काफ़िरों) लोगों से तब तक युद्ध करने की आज्ञा दी गई है जब तक कि वे यह स्वीकार न करें कि अल्लाह के सिवा अन्य कोई पूज्य नहीं है और (मुहम्मद) को अल्लाह का पैगम्बर न माने; और जब वे ऐसा कर लें तो उनका जीवन परिवार (सहित) और सम्पत्ति की मेरी ओर से सुरक्षा की गारंटी है, इसके अलावा जो भी कानूनन सही हो”। (सहीद मुस्लिम खंड 1 : 31 पृ. 20-21)

    इन उध्दरणों और उदाहरणों से यह सिध्द होता है कि इस्लाम का मूल ग्रंथ कुरआन ही आस्था के आधार पर हिंसा का समर्थन करता है। आस्था के आधार पर हिंसा के इतने खुले समर्थन को नजरअंदाज किया जाना कठिन है। इसे आप केवल कुछेक विकृतियां कहकर नहीं टाल सकते। इसलिए सवाल यही है कि क्या इस्लाम के व्याख्याता और सेकुलरवाद के पैरोकार इस्लाम की इन सैध्दांतिक विडंबनाओं पर विचार करने के लिए तैयार हैं?

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  34. मुझे भी शक है की वर्तमान में जिस किताब को पवित्र कुरआन कहा जाता है, वही असल कुरान है, जिसे परमेश्वर ने श्रीमोहम्मद साहब पे नाजिल किया था. क्योंकि श्रीमोहम्मद साहब की जीवनी पढते हुए उल्लेख मिलता है की श्रीमोहम्मद साहब के जनाजे में काफी कम लोग शामिल हुए थे. क्योंकि उनके अनुयायी खलीफा पद की लड़ाई में उलझ गए थे. अब बताइए की जो अनुयायी आज तक उनके ऊपर शांति होने की प्रार्थना करते है, वो उनकी पार्थिव देह को भी शांति से नहीं सुपुर्दे-खाक ना कर सके. तो जो लोग अपने मसीहा की लाश को भी उचित सम्मान नहीं दे पाए और सत्ता के लिए लड़ने लगे हों,क्या उन्होंने सत्ता के लिए श्रीमोहम्मद साहब की शिक्षाओं की की हत्या करके कुरआन में सत्ता प्राप्ति की सहायक आयतों का समावेश नहीं किया होगा.
    श्रीमोहम्मद साहब ने तत्कालीन अरब में फैली बर्बर कबीलाई परम्पराओं को तोड़ते हुए शुद्ध वैदिक धर्म की महिमा का पुनर्स्थापन किया था. जिसे उनके अनुयायियों ने अपनी वासनाओं,और हैवानियत की राह में रोड़ा मानते हुए, पवित्र कुरआन में बर्बर और अनर्गल आयातों का समावेश कर दिया, जिससे की उन्हें खलीफा पद के रूप में कौम की बादशाहत, और लुटेरों के रूप में दुनिया की बेशुमार दौलत प्राप्त हो सकें.

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  35. sleem
    वो चिलुनकर किधर से ग्यानी हो गया. अंग्रेजी साइटें टीप टीपकर अपने ब्लॉग पे चेंप्ता रहता है. वो तो जोक भी लिखता है तो टीपा हुआ.

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  36. बृहदारण्यक उपनिषद , 6-4-7 के अनुसार
    स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे । इतने पर भी यदि वह मैथुन न करने दे तो उसे डंडे या हाथ से ( थप्पड़ , घंूसा आदि ) मारकर उसके साथ बलपूर्वक समागम करे । यदि यह भी संभव न हो तो ‘मैं तुझे शाप दे दूंगाा , तुम्हें वंध्या अथवा भाग्यहीना बना दूंगा ‘ - ऐसा कहकर ‘इंद्रियेण‘ इस मंत्र का पाठ करते हुए उसके पास जाए । उस अभिशाप से वह ‘दुर्भगा‘ एवं वंध्या कही जाने वाली अयशस्विनी ( बदनाम ) ही हो जाती है ।
    अब कहिये , क्या यही है गर्भाधान की सम्यक रीति ?
    अरे भाई , क्यों देवताओं की तरह कामातुर हो रहे हो ?
    पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ?
    पहले अपनी पत्नी के मन को समझना सीखो । फिर वे न किसी इच्छाधारी के पास जायेंगी और न किसी मुसलमान के पास । तब आपके दिमाग़ से लव जिहाद का फ़र्ज़ी डर भी निकल जाएगा ।
    कृप्या अपनी लड़कियों को बदनाम न करें , उन्हें अच्छी बातें सिखायंे ।
    लेकिन आप अच्छी बातें सिखाएंगे किस किताब से ?
    सब जगह तो उपरोक्त सामग्री भरी पड़ी है ।

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