सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, September 15, 2010
Real praise for Sri Krishna श्री कृष्ण जी की बुलन्द और सच्ची शान को जानने के लिये कवियों की झूठी कल्पनाओं को त्यागना ज़रूरी है - Anwer Jamal
कवियों ने श्री कृष्ण जी का चरित्र लिखने में भी झूठी कल्पनाओं का सहारा लिया। श्री कृष्ण जी द्वारा गोपियों आदि के साथ रासलीला खेलने का बयान लिख दिया। यह भी कवि की कल्पना मात्र है। सच नहीं बल्कि झूठ है।
श्रीमद्भागवत महापुराण 10, 59 में लिख दिया कि उनके रूक्मणी और सत्यभामा आदि 8 पटरानियां थीं। एक अवसर पर उन्होंने भौमासुर को मारकर सोलह हज़ार एक सौ राजकन्याओं को मुक्त कराया और उन सभी को अपनी पत्नी बनाकर साधारण गृहस्थ मनुष्य की तरह उनके साथ प्रेमालाप किया और इनके अलावा भी उन्होंने बहुत सी कन्याओं से विवाह किये। इन सभी के 10-10 पुत्र पैदा हुए। इस तरह श्री कृष्ण जी के बच्चों की गिनती 1,80,000 से ज़्यादा बैठती है।
कॉमन सेंस से काम लेने वाला हरेक आदमी कवि के झूठ को बड़ी आसानी से पकड़ लेगा। मिसाल के तौर पर 10वें स्कन्ध के अध्याय 58 में कवि कहता है कि कोसलपुरी अर्थात श्री कृष्ण जी ने अयोध्या के राजा नग्नजित की कन्या सत्या का पाणिग्रहण किया। राजा ने अपनी कन्या को जो दहेज दिया उसकी लिस्ट पर एक नज़र डाल लीजिए।
‘राजा नग्नजित ने दस हज़ार गौएं और तीन हज़ार ऐसी नवयुवती दासियां जो सुन्दर वस्त्र तथा गले में स्वर्णहार पहने हुए थीं, दहेज में दीं। इनके साथ ही नौ हज़ार हाथी, नौ लाख रथ, नौ करोड़ घोड़े और नौ अरब सेवक भी दहेज में दिये।। 50-51 ।। कोसलनरेश राजा नग्नजित ने कन्या और दामाद को रथ पर चढ़ाकर एक बड़ी सेना के साथ विदा किया। उस समय उनका हृदय वात्सल्य-स्नेह उद्रेक से द्रवित हो रहा था।। 52 ।।‘
तथ्य- क्या वाक़ई अयोध्या इतनी बड़ी है कि उसमें नौ अरब सेवक, नौ करोड़ घोड़े और नौ लाख रथ समा सकते हैं ?
जिस महल में ये सब रहते होंगे, वह कितना बड़ा होगा?
इनके अलावा एक बड़ी सेना भी थी, उसकी संख्या भी अरबों में ही होगी। यह सब कवि की कल्पना में होना तो संभव है लेकिन हक़ीक़त में ऐसा होना संभव नहीं है। इतिहास में भी भारत के किसी एक राज्य की तो क्या पूरे भारत की जनसंख्या भी कभी इतनी नहीं रही।
कृष्ण बड़े हैं कवि नहीं। सत्य बड़ा है कल्पना नहीं। आदर प्रेम ज़रूरी है। श्री कृष्ण जी के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए हरेक आदमी की बात को मानने से पहले यह परख लेना वाजिब है कि इसमें कितना सच है ?
श्री कृष्ण जी का आदर मुसलमान भी करते हैं बल्कि सच तो यह है कि उनका आदर सिर्फ़ मुसलमान ही करते हैं क्योंकि वे उनके बारे में न तो कोई मिथ्या बात कहते हैं और न ही मिथ्या बात सुनते हैं। उनकी शान में बट्टा लगाने वाली हरेक बात को कहना-सुनना पाप और हराम मानते हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराण 10, 59 में लिख दिया कि उनके रूक्मणी और सत्यभामा आदि 8 पटरानियां थीं। एक अवसर पर उन्होंने भौमासुर को मारकर सोलह हज़ार एक सौ राजकन्याओं को मुक्त कराया और उन सभी को अपनी पत्नी बनाकर साधारण गृहस्थ मनुष्य की तरह उनके साथ प्रेमालाप किया और इनके अलावा भी उन्होंने बहुत सी कन्याओं से विवाह किये। इन सभी के 10-10 पुत्र पैदा हुए। इस तरह श्री कृष्ण जी के बच्चों की गिनती 1,80,000 से ज़्यादा बैठती है।
कॉमन सेंस से काम लेने वाला हरेक आदमी कवि के झूठ को बड़ी आसानी से पकड़ लेगा। मिसाल के तौर पर 10वें स्कन्ध के अध्याय 58 में कवि कहता है कि कोसलपुरी अर्थात श्री कृष्ण जी ने अयोध्या के राजा नग्नजित की कन्या सत्या का पाणिग्रहण किया। राजा ने अपनी कन्या को जो दहेज दिया उसकी लिस्ट पर एक नज़र डाल लीजिए।
‘राजा नग्नजित ने दस हज़ार गौएं और तीन हज़ार ऐसी नवयुवती दासियां जो सुन्दर वस्त्र तथा गले में स्वर्णहार पहने हुए थीं, दहेज में दीं। इनके साथ ही नौ हज़ार हाथी, नौ लाख रथ, नौ करोड़ घोड़े और नौ अरब सेवक भी दहेज में दिये।। 50-51 ।। कोसलनरेश राजा नग्नजित ने कन्या और दामाद को रथ पर चढ़ाकर एक बड़ी सेना के साथ विदा किया। उस समय उनका हृदय वात्सल्य-स्नेह उद्रेक से द्रवित हो रहा था।। 52 ।।‘
तथ्य- क्या वाक़ई अयोध्या इतनी बड़ी है कि उसमें नौ अरब सेवक, नौ करोड़ घोड़े और नौ लाख रथ समा सकते हैं ?
जिस महल में ये सब रहते होंगे, वह कितना बड़ा होगा?
इनके अलावा एक बड़ी सेना भी थी, उसकी संख्या भी अरबों में ही होगी। यह सब कवि की कल्पना में होना तो संभव है लेकिन हक़ीक़त में ऐसा होना संभव नहीं है। इतिहास में भी भारत के किसी एक राज्य की तो क्या पूरे भारत की जनसंख्या भी कभी इतनी नहीं रही।
कृष्ण बड़े हैं कवि नहीं। सत्य बड़ा है कल्पना नहीं। आदर प्रेम ज़रूरी है। श्री कृष्ण जी के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए हरेक आदमी की बात को मानने से पहले यह परख लेना वाजिब है कि इसमें कितना सच है ?
श्री कृष्ण जी का आदर मुसलमान भी करते हैं बल्कि सच तो यह है कि उनका आदर सिर्फ़ मुसलमान ही करते हैं क्योंकि वे उनके बारे में न तो कोई मिथ्या बात कहते हैं और न ही मिथ्या बात सुनते हैं। उनकी शान में बट्टा लगाने वाली हरेक बात को कहना-सुनना पाप और हराम मानते हैं।
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67 comments:
Very Nice Post अनवर जी
अब कोई ज़रा यहाँ बताए की देवी-देवताओं या भगवान श्री कृष्ण का अपमान अनवर भाई ने किया है या ऐसी बकवास लिखने वाले कवियों ने ??
महक
एक लाजवाब पोस्ट
nice post
Mr. Mahak thanks 4 ur words . please see a new one .
Thanks to a great swami भारतीय मुस्लिम जगत सदा शंकराचार्य जी का आभारी रहेगा कि उन्होंने पवित्र कुरआन की 24 आयतों के पत्रक छापकर नफ़रत फैलाने वाले गुमराहों की अंधेर दुनिया को सत्य के प्रकाश से आलोकित कर दिया है। - Anwer Jamal
http://mankiduniya.blogspot.com/2010/09/thanks-to-great-swami-24-anwer-jamal.html
महक जमाल से यह पूछने मे तुम्हे कष्ट क्यों हो रहा है कि "पैदा करने वाले ने अपनी बेटी से करोडो साल तक बलात्कार किया" का reference ग्रन्थ का नाम दें।
वैसे इन लोगो ने झूठ का इतना बडा साम्राज्य खडा किया हुआ है कि उसमे तुम्हारा खो जाना कोई बडी बात नही। तरुण विजय (पूर्व संपादक पांच्जन्य) के ना से आलेख छापा, reference पूछा तो मालूम नही। स्वामी विवेकानन्द के नाम से आलेख छापा, reference सारे फर्जी प्रेमचन्द के नाम से छापा, reference आधे अधूरे।
अभी तुम्हे एक लिंक दिया है, आदि गुरु शंकराचार्य ने इस्लाम / कुरान के सत्य का आभास किया, अगर तुम जरा भी IQ रखते हो तो तुम्हे मालूम होगा कि ११वी शताब्दी मे जन्मे शंकराचार्य हिन्दु धर्म के अद्वैतवाद के प्रवर्तक थे। और ११वी शताब्दी मे उनके सम्मुख इस्लाम कहीं नही था, उनका मुकाबला हिन्दु धर्म के ही अन्य मतावलंबियों से था। मेरा आग्रह तुम मानोगे मुझे मालूम नही पर अगर कुरान के बारे मे जानना हो तो जैसे एक मौलवी से मिलना चाहिये वैसे ही अगर तुम्हे हिन्दु धर्म की जानकारी चाहिए तो सत्यार्थ प्रकाश खरीदो और पढो। जितना मिले उतना स्वामी विवेकानन्द को पढो, तुम जानोगे कि यह कितना झूठ फैला रहे हैं।
महक एक गलती, आदि शंकराचार्य ११वीं नही ७वी सदी मे हुए थे।
महक भाई रविन्द्र जी की बात मानो और सत्यार्थ प्रकाश जरूर पढो, उससे तुम्हें पता लगेगा अगर तुम बच्चा पैदा नहीं कर सकते तो तुम्हारी पत्नि बच्चा पैदा कर सकती है कैसे जानो
नियोग और नारी
http://satishchandgupta.blogspot.com/2010/09/blog-post_12.html
पांच्जन्य के अखबार की इन्हें तारीख और हवाला दिया मानते नहीं जैसे हम पैदा करें
प्रेमचंद की इस्लाम से सम्बन्धित लेख की छोटी सीकिताब ही 100 रूपये सैंकडा मिलती है
कहें तो भेजी जाये
मांग ले रविन्द्र या
महक
महज जी जहां तक मैं समझा हूं रविन्द्र जी आपको शंकराचार्य जी की निम्न लिंक वाली पोस्ट पढने से रोकना चाहते हैं जो सबूत के साथ है, आप उनका कहना मानें और अच्छी पोस्ट पर बिल्कुल न जायें
इस्लाम आतंक ? या आदर्श
http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
@रवींद्र जी अनवर साहब ने24 आयतोँ पर ऐतराज का निराकरण करने वाले स्वामी श्री लक्ष्मी शंकराचार्य जी का शुक्रिया अदा किया है जो की अभी जीवित हैं आपने बिना लिंक देखें ही महक जी अलाहना देने की जल्दबाजी दिखा दी जो की गलत है आप खुद कनफ़यूज़ है क्योकि आप विवेकानंद जी और दयानंद जी को पढ़ने की सलाह एक साथ दे रहे हैं विवेकानंद जी वेदांती थे जबकि दयानंद जी ने वेदांतीयों के मत का खंडन किया है और अपने मत त्रैतवाद का समर्थन किया है दोनो एक साथ सही कैसे हो सकते है । ब्रह्मा जी द्वारा अपनी बेटी से ब्लातकार करने की बात कवि की झूठी कल्पना है जिसका हवाला पिछली पोस्ट पर दिया जा चुका है और अब फिर पेश है श्रीमद भागवत 3-12 जल्दबाजी आप देखते खुद नही और इल्ज़ाम देते हो कि हवाला नही दिया ।
मुसलमानों के खलीफा हज़रत अली की शहादत कैसे हुई ?
http://aqyouth.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
@Dr. Ayaz Ahmad: मैने लिंक देखा, वहां कही भी नही बताया है कि कौन से शंकराचार्य, तभी टिप्पणी लिखी। स्वामी दयानन्द ने वेदों का ही प्रचार किया है जीवन भर, स्वामी विवेकानन्द भी निराकार पूजन के ही समर्थक रहे, बाद मे साकार को भी मान्यता दी। पुनःश्च त्रैतवाद कुछ भी नही है, मात्र इश्वर को समझने और समझाने के लिये एक तरीका, एक को ऐसे समझ मे आता है दूसरे (इस्लाम समर्थको) को नही। हिन्दु एक मार्ग को पकड कर नही बैठते, और इश्वर प्राप्ति का एक ही मर्ग हो सकता ऐसा नही मानते। भिन्नताएं इस्लाम मे भी हैं इसीलिए सुन्नी और शिया झगडे भी हैं। ब्रह्मा जी द्वारा अपनी बेटी से ब्लातकार करने की बात आपने जिस भी भागवत मे पढी है वो फर्जी है।
विश्व गौरव (कैरानवी), अगर पांचजन्य की बात कर रहे हो तो इस्के web site का ही लिन्क दो कहीं और से नही, अन्यथा मैं भी कुरान के उदाहरण देने लगूगा तो उत्तर देते नही बनेगा। प्रेमचन्द की किताब १०० रुपय सैकडा, मतलब फी किताब १ रुपया, बढिया है, मालूम पडता है कि नया प्रेमचन्द पैदा हो गया है।
महक एक प्रश्न और -->अपने गुरुजी से पूछना "श्री कृष्ण जी का आदर करने वाले मुसलमान" उनके जन्मस्थल पर मंदिर तोड कर जो मस्जिद बनाया है उसको वापस कब दे रहे हैं।
एक लाजवाब पोस्ट
रविन्द़ जी.. जमात इस्लामी की साइट पर वह तब्सरा आप पढ सकते हैं, अगर आपको विश्वास नहीं है तो इस तारीख का अखबार आप पेश किजिए कि उसमें निम्न कमेंटस नहीं है तब सारा इस्लामी जगत झूठा हो जाएगा
तरुण विजय सम्पादक, हिन्दी साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पत्रिका)
‘‘...क्या इससे इन्कार मुम्किन है कि पैग़म्बर मुहम्मद एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा? उन्होंने इतिहास की काया पलट दी और हमारे विश्व के हर क्षेत्र पर प्रभाव डाला। अतः अगर मैं कहूँ कि इस्लाम बुरा है तो इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में रहने वाले इस धर्म के अरबों (Billions) अनुयायियों के पास इतनी बुद्धि-विवेक नहीं है कि वे जिस धर्म के लिए जीते-मरते हैं उसी का विश्लेषण और उसकी रूपरेखा का अनुभव कर सवें$। इस धर्म के अनुयायियों ने मानव-जीवन के लगभग सारे क्षेत्रों में बड़ा नाम कमाया और हर किसी से उन्हें सम्मान मिला...।’’
‘‘हम उन (मुसलमानों) की किताबों का, या पैग़म्बर के जीवन-वृत्तांत का, या उनके विकास व उन्नति के इतिहास का अध्ययन कम ही करते हैं... हममें से कितनों ने तवज्जोह के साथ उस परिस्थिति पर विचार किया है जो मुहम्मद के, पैग़म्बर बनने के समय, 14 शताब्दियों पहले विद्यमान थे और जिनका बेमिसाल, प्रबल मुक़ाबला उन्होंने किया? जिस प्रकार से एक अकेले व्यक्ति के दृढ़ आत्म-बल तथा आयोजन-क्षमता ने हमारी ज़िन्दगियों को प्रभावित किया और समाज में उससे एक निर्णायक परिवर्तन आ गया, वह असाधारण था। फिर भी इसकी गतिशीलता के प्रति हमारा जो अज्ञान है वह हमारे लिए एक ऐसे मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता।’’ ‘‘पैग़म्बर मुहम्मद ने अपने बचपन से ही बड़ी कठिनाइयाँ झेलीं। उनके पिता की मृत्यु, उनके जन्म से पहले ही हो गई और माता की भी, जबकि वह सिर्प़$ छः वर्ष के थे। लेकिन वह बहुत ही बुद्धिमान थे और अक्सर लोग आपसी झगड़े उन्हीं के द्वारा सुलझवाया करते थे। उन्होंने परस्पर युद्धरत क़बीलों के बीच शान्ति स्थापित की और सारे क़बीलों में ‘अल-अमीन’ (विश्वसनीय) कहलाए जाने का सम्मान प्राप्त किया जबकि उनकी आयु मात्रा 35 वर्ष थी। इस्लाम का मूल-अर्थ ‘शान्ति’ था...। शीघ्र ही ऐसे अनेक व्यक्तियों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया, उनमें ज़ैद जैसे गु़लाम (Slave) भी थे, जो सामाजिक न्याय से वंचित थे। मुहम्मद के ख़िलाफ़ तलवारों का निकल आना कुछ आश्चर्यजनक न था, जिसने उन्हें (जन्म-भूमि ‘मक्का’ से) मदीना प्रस्थान करने पर विवश कर दिया और उन्हें जल्द ही 900 की सेना का, जिसमें 700 ऊँट और 300 घोड़े थे मुक़ाबला करना पड़ा। 17 रमज़ान, शुक्रवार के दिन उन्होंने (शत्रु-सेना से) अपने 300 अनुयायियों और 4 घोड़ों (की सेना) के साथ बद्र की लड़ाई लड़ी। बाक़ी वृत्तांत इतिहास का हिस्सा है। शहादत, विजय, अल्लाह की मदद और (अपने) धर्म में अडिग विश्वास!’’
—आलेख (‘Know thy neighbor, it’s Ramzan’
अंग्रेज़ी दैनिक ‘एशियन एज’, 17 नवम्बर 2003 से उद्धृत
more:
http://www.islamdharma.org/article.aspx?ptype=B&menuid=36&arid=73
रविन्द़ जी..प्रेमचंद जी का लेख ‘‘इस्लामी सभ्यता’’ को पाकेट साइज में मधुर सन्देश संगम ने छापा है
आप पेश किजिए यह उनका लेख और साबित किजिए उसमें उन्होंने नहीं कहा
‘‘हिन्दू-समाज ने भी शूद्रों की रचना करके अपने सिर कलंक का टीका लगा लिया। पर इस्लाम पर इसका धब्बा तक नहीं। गुलामी की प्रथा तो उस समस्त संसार में भी, लेकिन इस्लाम ने गुलामों के साथ जितना अच्छा सलूक किया उस पर उसे गर्व हो सकता है।’’ पृष्ठ 10
‘‘हमारे विचार में वही सभ्यता श्रेष्ठ होने का दावा कर सकती है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक उठने का अवसर दे। इस लिहाज से भी इस्लामी सभ्यता को कोई दूषित नहीं ठहरा सकता।’’ पृष्ठ 11
‘‘हम तो याहं तक कहने को तैयार हैं कि इस्लाम में जनता को आकर्षित करने की जितनी बडी शक्ति है उतनी और किसी सस्था में नही है। जब नमाज़ पढते समय एक मेहतर अपने को शहर के बडे से बडे रईस के साथ एक ही कतार में खडा पाता है तो क्या उसके हृदय में गर्व की तरंगे न उठने लगती होंगी। उसके विरूद्ध हिन्दू समाज न जिन लोगों को नीच बना दिया है उनको कुएं की जगत पर भी नहीं चढने देता, उन्हें मंदिरों में घुसने नहीं देता।’’ पृष्ठ 14
रविन्द्र चाचा बडा शौक है सबूत अखबार देखने का लो बाबरी मस्जिद और तुम्हारा सबूत देखने का शौक इस पोस्ट पर पूरा हो जाएगा,
मास्टर मुहम्मद आमिर (बलबीर सिंह, पूर्व शिवसेना युवा शाखा अध्यक्ष) से एक मुलाकात - Interview
इसे पढ कर बताना हमें बाबरी मसिजद चाहिए या यह तोडने वाला जो सबसे आगे था
नव- मुस्लिम डाक्टर मुहम्मद हुज़ेफा (डी. एस. पी. रामकुमार) से मुलाकात interview 5
मुहम्मद इसहाक (पूर्व बजरंग दल कार्यकर्त्ता अशोक कुमार) से एक दिलचस्प मुलाकात Interview 2
बाबरी मस्जिद गिराने के लिये 25 लाख खर्च करने वाला सेठ रामजी लाल गुप्ता अब "सेठ मुहम्मद उमर" interview 3
जनाब अब्दुर्रहमान (शास्त्री अनिलराव आर्य समाजी) से मुलाकात Interview-4
मैं खुदा हूँ - इस्लाम और वैदिक अद्वैतवाद (सूफीवाद के परिपेक्ष्य में)
http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html#more
मैं खुदा हूँ - इस्लाम और वैदिक अद्वैतवाद (सूफीवाद के परिपेक्ष्य में)
सूफीवाद में समय-समय पर कुछ हिला देने वाले विचारक भी पैदा हुए! जिन्होंने इस्लाम में वैदिक अद्वैत को पुष्ट करने की कोशिश की !
बायजीद बिस्तामी (मृत्यु: ८७४) ने इस्लामिक नेताओं को, और पैगम्बर के नाम पर मौज करने वालों को खुली चुनौती दे दी !
सबसे अधिक चौंका देने वाला, साहस की सीमायें तोडने वाला और इस्लामी क़ानून को चुनौती देने वाला एक प्रसिद्द नाम है - हुसैन बिन मनसूर अल-हल्लाज (AL-HALLAJ) का !
उनके शब्द उनके लिए मौत का कारण बन गए - ९१३ में उनकों जेल में डाल दिया गया, प्रताड़ित भी किया गया, तौबा करने को कहा गया, परन्तु जो इस मिटटी के शरीर को मिथ्या मान चुका हो उस पर यातनाओं का क्या प्रभाव पडना था, इसलिए बाद में अल ह्ल्लाज को २६ मार्च ९२२ से सलीब पर चढ़ा दिया गया गया
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मैं खुदा हूँ जैसे लव्ज़ इस्लाम मैं शिर्क की हैसीयत रखते हैं. इसको मना खुद अल्लाह ने कुरआन मैं किया है. अल्लाह की नाफ़रमानी करने वाले के लिए यह तसव्वुर करना की वोह अल्लाह के इतना करीब है की अल्लाह जैसा हो गया , एक मज़ाक लगता है. अल्लाह अपनी ताक़त अपने बन्दों को अता करता है यह सच्च है. और बंद उसपे अल्लाह का शुक्र अदा करता है , और खुद को बन्दा ए खुदा कहता है. इसकी बेहतरीन मिसाल हज़रत अली (र.अ) की शक्सियत है..जिसने खुद को हमेशा बन्दा ए खुदा कहा, लेकिन एक कौम नुसहरी उनको खुदा कहा करते हैं, उसकी ताक़त और मुआज्जात को देख कर.बन्दा ए खुदा हो तो अली (र.अ.) जैसा हो..
अगर कोई अंजान है और अपने को खुदा कहता है (जो कि एक तरह से सही भी है, क्योंकि प्रत्येक कण मे ईश्वर विद्यमान है) तो उसके लिये शांति और प्रेम फैलाने का अमर ग्रन्थ सूली की सजा मुकर्रर करता है।
विश्व गौरव (कैरानवी) पिछले पोस्ट मे man जि ने पूछा था कि अरब भारतियों के विषय मे क्या ख्याल रखते हैं वो तो तुमसे बताते बना नही अब मुझे चाचा बोल कर लॉलीपाप लेने की कोशिश कर रहे हो, समझ सकता हूँ जब तर्क और शब्द चुक जाते हैं व्यक्ति इसी प्रकार की हरकतें करता है। कभी कभी तो पागल भी हो जाता है, इसलिए अब तुम इस वार्ता से तनिक दूर ही रहना और मानसिक चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना।
रविन्द्र चाचा, अरब भारतियों के विषय में क्या खयाल रखते हैं या हम उनके बारे में क्या खयाल करते हैं इससे हमारे पेट में मरोड नहीं उठता
हां इतना जाने हैं हर भारतीय मुसलमान कमसे कम एक बार अरब जाना चाहता है
फिर बार बार जाना चाहता है
पंकज जी ये लोग भला क्या बताएगें इस्लाम के बारे मे? यह कहते हैं कि इस्लाम लोग खुशी खुशी स्वीकार करते हैं, शायद इन सबके घर मे अखबार नही आता और TV तो यह सब देखते नही होगे - कुफ्र है ना। तो इनको कैसे मालूम पडेगा कि कश्मीर घाटी मे सिखों को इस्लाम कबूलने की धमकी दी गई है। अगर इस पर बात करो तो यह कैरानवी फालतु की बातें बताएगा जैसे - सुनीता विलियम्स ने इस्लाम अपनाया, नील आर्मस्ट्रांग ने इस्लाम अपनाया। देखो न मेरे प्रश्नो के उत्तर मे फाल्तु के link दे रखे हैं इसने।
पोस्ट से हम तो दूर हैं कुछ रौशनी डालो लिखा हैः
क्या अयोध्या इतनी बड़ी है कि उसमें नौ अरब सेवक, नौ करोड़ घोड़े और नौ लाख रथ समा सकते हैं ?
जिस महल में ये सब रहते होंगे, वह कितना बड़ा होगा?
इनके अलावा एक बड़ी सेना भी थी, उसकी संख्या भी अरबों में ही होगी। यह सब कवि की कल्पना में होना तो संभव है लेकिन हक़ीक़त में ऐसा होना संभव नहीं है। इतिहास में भी भारत के किसी एक राज्य की तो क्या पूरे भारत की जनसंख्या भी कभी इतनी नहीं रही।
यह हिन्दुओं मे ऊंच नीच की बात करते हैं फिर किस मुँह से मुस्लिमों के लिये आरक्षण की बात करते हैं, उनमे तो कोइ नीच है नहीं। अगर यह भी आरक्षण माँगते हैं अर्थात यह मानते हैं कि इनमे भी भेद-भाव है। पर उस समय रणनीतिक चुप्पी ओढ लेते हैं यह सब।
कैरानवी तुम बताओ कि घाटी मे सिखों को जो धमकी दि गई है उस पर तुम्हारा क्या मत है? रही बात तुम्हारे पेट मे मरोड की, तो वो सबको मालूम पड रहा है।
और बेटा ज्यादा देर मम्मी से दूर नही रहते जाओ घर जाओ।
जो लोग जाना चाहते हैं कि अरब मे भारतीयों कि स्थिति (भारती मुस्लिम भी इनमे आते हैं) http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5420055.cms पढे, एक मुस्लिम की जुबानी
@ प्रिय रवीन्द्र जी ! श्रीमद्भागवत महापुराण की जो प्रति मेरे पास है वह बिल्कुल असली है क्योंकि वह गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है। उसके प्रकरणों पर मेरी समीक्षा भी सही है क्योंकि तथ्यों पर आधारित है। श्री दयानन्द जी भी मुझसे सहमत हैं। इससे पता चलता है कि उन्होंने भी भागवत की असली प्रति ही पढ़ी थी, मेरी तरह। लेकिन उनकी भाषा मेरी तरह शिष्ट नहीं है भागवतकार के बारे में। आप सत्यार्थप्रकाश पढ़ते हैं और दयानन्द जी को ज्ञानी मानते हैं सो उनके ग्रंथ से हवाला दे रहा हूं। उम्मीद है कि आप उनकी बात तो मान ही लेंगे।
इन भागवतादि पुराणों के बनाने हारे जन्मते ही क्यों न गर्भ में ही नष्ट हो गये ?
इस भागवत वाले ने अनुचित मनमाने दोष लगाये हैं। दूध, दही, मक्खन आदि की चोरी ; और कुब्जादासी से समागम, परस्त्रियों से रासमण्डल क्रीड़ा आदि मिथ्या दोष श्रीकृष्ण जी में लगाये हैं। इस को पढ़-पढ़ा सुन-सुना के अन्य मत वाले श्रीकृष्ण जी की बहुत सी निन्दा करते हैं। जो यह भागवत न होता तो श्रीकृष्ण जी के सदृश महात्माओं की झूठी निन्दा क्योंकर होती ? (सत्यार्थप्रकाश, 11वां समुल्लास, पृ. 275-276)
वाह रे वाह ! भागवत के बनाने वाले लाल बुझक्कड़ ? क्या कहना । तुझ को ऐसी-ऐसी मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शर्म न आई, निपट अन्धा ही बन गया। स्त्री पुरूष के रजवीर्य के संयोग से मनुष्य तो बनते ही हैं परमेश्वर की सृष्टिक्रम के विरूद्ध पशु, पक्षी, सर्प, आदि कभी उत्पन्न नहीं हो सकते। और हाथी, ऊँट, सिंह, कुत्ता, गधा और वृक्षादि का स्त्री के गर्भ में स्थित होने का अवकाश कहां हो सकता है ? और सिंह आदि उत्पन्न होकर अपने मां-बाप को क्यों न खा गये ? और मनुष्य-शरीर से पशु पक्षी वृक्षादि का उत्पन्न होना क्यों कर सम्भव हो सकता है ?
शोक है, इन लोगों की रची हुई इस महाअसम्भव लीला पर जिसने संसार को अभी तक भ्रमा रक्खा है। भला इन महाझूठ बातों को वे अन्धे पोप और बाहर भीतर की फूटी आंखों वाले उन के चेले सुनते और मानते हैं। बड़े ही आश्चर्य की बात है कि ये मनुष्य हैं वा अन्य कोई !! इन भागवतादि पुराणों के बनाने हारे जन्मते ही क्यों न गर्भ में ही नष्ट हो गये ? वा जन्मते समय मर क्यों न गये ? क्योंकि इन पापों से बचते तो आर्यावत्र्त देश दुखों से बच जाता।
(सत्यार्थप्रकाश, 11वां समुल्लास, पृ. 271)
झूठे हैं वेदान्ती
वाह रे झूठे वेदान्तियो ! तुमने सत्यस्वरूप, सत्यकाम, सत्यसंकल्प परमात्मा को मिथ्याचारी कर दिया। क्या यह तुम्हारी दुर्गति का कारण नहीं है ? (सत्यार्थप्रकाश, 9वां समुल्लास, पृ. 195 )
अनवर जमाल कोई नई या झूठी बात नहीं कहता और न ही किसी महापुरूष की मज़ाक़ उड़ाता है, वह तो केवल आपको सत्य का बोध कराता है। उस सत्य का जिसे उससे पहले के लोगों ने भी सत्य ही कहा है। ताकि जिसे सत्य की खोज है, ज्ञान की प्यास है उसकी मुराद पूरी हो जाये और वह जीवन की शाश्वतता और अपनी मंज़िल को पहचान ले। जो लोग भावनाओं के ज्वार में बहते हैं और निष्पक्ष होकर तथ्यों पर विचार नहीं करते वे कभी सत्य को नहीं पा सकते। ऐसे लोग अनवर का कुछ भी नहीं बिगाड़ रहे हैं बल्कि सत्य पाने का एक अनमोल अवसर गंवा रहे हैं। वह घड़ी भी जल्द ही आ जायेगी जब वे अपने मालिक के सामने पेश किये जाएंगे तब वे उसे क्या जवाब देंगे ?
अनवर की बात इसलिये नहीं मानी कि वह एक मुसलमान है, यह कोई उचित कारण नहीं है। इसे कोई सही न कहेगा, न तो इस लोक में और न ही परलोक में।
आओ, सच को जानो, सच को मानो।
जमाल मैं इस विषय को अधिक नही खींचना चाहता, तुमने कहा "श्री कृष्ण जी का आदर मुसलमान भी करते हैं बल्कि सच तो यह है कि उनका आदर सिर्फ़ मुसलमान ही करते हैं" तो जरा यह भी बता दो कि श्रीकृष्ण की जन्मस्थली पर जबरन कब्जा कर बनाई मस्जिद श्रीकृष्ण जी के परम हितैषी मुस्लिम बंधु कब हटा रहे हैं।
अनवर की बात मैं इसलिए नहीं मानता क्योंकि मुझे वह सही नहीं लगती, मैं बचपन से धार्मिक पुस्तकें पढता आ रहा हूँ, भागवत पुराण ४-५ बार पढी है, मुझे वो सब प्रसंग नही दिखे आज तक जो आपके पास उपलब्ध दुर्लभ भागवत पुराण मे हैं अतः मैं इन सब बातों को झूठ मानता हूँ।
पुनःश्च - मथुरा कब मुक्त कर रहे हो?
डॉ. जमाल साहब आप को इन बातो से मितली क्यों हो रही हे ,क्या आप इन्हें मानते हे ?,जेसे की किसी का अंश रह जाने पर किसी female को होती हे |आप की ये पोस्ट भी अच्छी हे ,लेकिन वो आप के दिमाग में ये जो हे नीचा दिखाना हे तो दिखाना ही हे ?आप के एक मात्र ग्रन्थ या आप के रीती रिवाजो से कोई कोई बात हम कहते हे तो आप कहते हो की हमें ठेस पहुंचाई जा रही हे ? डॉ. साहब आप की पोस्ट ठीक थी लकिन आप ने कमेन्ट में फिर अपने इरादे जाहिर कर दिए ,पिछली पोस्ट पर मेने खतने वैज्ञानिक अधर के के बारे में पुछा किसी का जवाब नहीं आया ?
वन्दे इश्वेर्म
डॉ. साहब ये जो असंभव बाते बताई गयी हे हकीकत ना हो के सभी सांकेतिक हे ,जेसे की कुरान में ८४ हूरो का संधर्ब दिया गया ?,क्या ये बात ORIGNEL हे ठोक पिंद के ? किसने देखा हे प्रमाण ?
@रवीन्द्र नाथ,
तुम पूछते हो 'श्रीकृष्ण की जन्मस्थली पर जबरन कब्जा कर बनाई मस्जिद श्रीकृष्ण जी के परम हितैषी मुस्लिम बंधु कब हटा रहे हैं।'
पहले यह तो सिद्ध करो की वह मस्जिद जबरन कब्ज़ा करके बनाई गई है! कब्ज़ा करने का कर्म तुम्हारे यहाँ होता है. सड़क के किनारे हर पेड़ के नीचे पहले एक मूर्ति रखी जाती है, फिर वहाँ एक 'प्राचीन' भव्य मंदिर तय्यार हो जाता है. देखते देखते...
यही तो तुम लोगो की खूबी है सफ़ेद झूठ बोलने की ,इतिहास गवाह है हजारो मंदिर तोड़ कर मस्जिदे खड़ी कर दी गयी .आज भी अनेक मस्जिदे ऐसी है जहा मंदिर हुआ करते थे और ये निर्लज्ज आलाप रहे है की ऐसा तो कुछ हुआ ही नही .सबूत दो .
हिम्मत इतनी की हमारे प्राण , हमारी आस्था के केंद्र राम और क्रष्ण की जन्म भूमि भी नही छोड़ी और हमारी आस्था पर ही प्रश्न करते है .पाकिस्तान देने के बाद भी वही समस्या .
अब और कितने पाकिस्तान चाहिए ????
हिन्दू घटा ,देश बटा
जमाल अगर तुम सच में सेकुलर हो, सच का साथ दो ,राम और कृष्ण की जन्म भूमि पर मंदिर बनवाने का समर्थन करो
लेकिन तुम धूर्त हो ,भोले भाले लोगो को तुम मूर्ख बना सकते पर जो थोडा भी समझदार होगा वो आसानी से तुम्हारी चालाकी पकड़ लेगा .
हर बात में इस्लाम की खिचड़ी पकाने वाले तुम से क्या निष्पक्ष होने की उम्मीद की जा सकती है .
महक मैंने तुम से कहा था अपना चिन्तन थोडा व्यापक करो सच्चाई खुद दिख जाएगी पर अफ़सोस तुम सच्चाई देखना ही नही चाहते .
जमाल जी के ''सत्य पाने का एक अनमोल अवसर '' का अर्थ अगर तुम अब भी न समझो तो तुम या तो मूर्ख हो या सच देखना ही नही चाहते .
जमाल जी आप इस्लाम के बारे में लिखे में तो बेहतर होगा .इस प्रकार हिन्दू भावनाओ को चोट पहुचने की कोशिस न करे
@impact (कैरानवी):- औरंगजेबनामा पढ लो, सब मलूम चल जायेगा कि कैसे काशी का विश्वनाथ मंदिर तोडा, और कैसे मथुरा के बांकेबिहारी का मंदिर तोडा। मेरी बातों पर तो विश्वास होगा नही, गिरी जी से पूछ लो वो तो अपने आँखों से महरौली के मस्जिद के आगे लिखा सरकारी अभिलेख देख कर आए हैं जिस पर स्पष्ट शब्दों मे दर्ज है कि यह मंदिरों को तोड कर बनाई गई मस्जिद है। जब एक जगह मंदिर तोड सकते हो तुम लोग तो बाकी जगह क्यों नही? वैसे बाबरनामा मे स्पष्ट लिखे होने के बावजूद तुम लोग राम मंदिर को मानने के बजाए राम जी का birth proof और date of birth पूछते हो तो तुमसे मुझे कोइ उम्मीद नही, इसीलिए यह चुनौती है, बताओ कब छोडोगे मंदिर।
@impact (कैरानवी):- दरगाहे कैसे बनती हैं और कितनी कानूनी होती है उनकी जमीन जरा इस पर भी प्रकाश डालो।
@ रवींद्र जी ये पोस्ट मंदिर मस्जिद के विषय मे नही है इस पोस्ट का विषय तो श्रीकृष्ण जी को माखन चोर आदि न कहने के बारे मे है आप इस से सहमत हैं या असहमत इस पर रोशनी डालें । विषय से भटकने और खुद को भटकाने से बचें । भागवत पढ़ना जानते तो हवाले भी मिल जाते जैसे की दयानंद जी को मिले दयानंद जी के वक्तव्य से आप सहमत है या असहमत कृप्या बताएँ ? मूल विषय पर वापस आएँ ।
अयाज जी और जमाल जी अगर हिन्दू धर्म से इतना प्यार है और आप लोग हिन्दू धर्म के ज्ञाता है और अच्छाई बता रहे है तो हिन्दू धर्म में आ जाईये न .आप का स्वागत है .
@Dr. Ayaz Ahmad :- "भागवत पढ़ना जानते तो हवाले भी मिल जाते" बिल्कुल सही लिखा, अब कहो तो कुरान पढ कर सुनाऊ।
"शैतान ने कहा मैं तेरे बन्दों को बहकाउंगा,और उन्हें गुमराही और कामना के जाल में फसा दूँगा .सूरा -अन निसा 4 :119
"अल्लाह जिसको चाहता है गुमराही में डाल देता है .और जिसे चाहे सीधा मार्ग दिखा देता है .सूरा -अन नहल 16 :93
"यदि वे तुम्हारे ऊपर उस बात पर दवाब डालें जिसका तुझे ज्ञान नहीं हो ,तो भी दुनिया में उनके साथ भला व्यवहार करो .सूरा लुकमान 31 :15
"अपने भाइयों और बापों को मित्र नहीं बनाओ यदि वे कुफ्र को पसंद करें ,जो मित्र बनाएगा जालिम होगा .सूरा अत तौबा 9 :23
"हे लोगो अल्लाह तो अपेक्षा रहित है,स्वतंत्र है ,और अपने आप प्रशंसा का अधिकारी है .सूरा -अल फातिर 35 :15
"हमने जिन्नों और इंसानों को इसलिए बनाया कि वे सदैव हमारी तारीफ़ करते रहें.सूरा -अज जारियात 51 :56
"मुहम्मद कहदो हरेक आपति अल्लाह की तरफ से आती है .इन लोगों को क्या हो गया कि समझ के पास नहीं आते.सूरा-अन निसा 4 :78
"जो भी आपत्ति आती है ,खुद तुम्हारी तरफ से आती है .मुहम्मद हमने तुम्हें गवाह बनाया है .सूरा -अन निसा 4 :79
"कोई भी अल्लाह के आदेश के बिना ईमान नहीं ला सकता .अल्लाह ही खुद लोगों के दिलों में कुफ्र और शिर्क की गंदगी डालता है .यूनुस 10 :100
निःसंदेह काफिर तुम्हारे खुले दिश्मन हैं (5.4.101)
हे ईमान लाने वालों! उन काफिरों से लडो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममे सख्ती पाए।
अयाज़, मेरे पास ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो अगर तुम पढना जानते तो कुरान मे पाते। अगर मुझ पर ऐसे फालतु comment करोगे तो उलटा पाओगे, मै वादा करता हूँ और वादा निभाउगा।
और रही बात मंदिर मस्जिद की तो निश्चित रूप से यह उससे जुडा हुआ है, क्योंकि मै जानना चाहता हूं कि यह कैसा आदर है जो कि श्रद्धेय के मान बिन्दु, स्मरण चिन्हो के नाश को बढावा देता है।
@ MAN जी !
@ रविन्द्र जी !
(१ ) आपने कहा कि मूल ग्रन्थ से छेड़-छाड़ हुई है, मैंने प्रेस का नाम भी दिया है " गीता प्रेस गोरखपुर" और यह प्रेस भारत में धार्मिक पुस्तकें छापने में प्रथम स्थान रखती है, इसलिए वहां ऐसी घटिया हरकत ( छेड़-छाड़ ) की कोई गुंजाईश नहीं ।
(२ ) गंगा में गिरकर गन्दे नाले पवित्र हो जाते हैं, आप कि यह सोच गलत है. इसी के चलते हिन्दुओं ने तमाम गंदे नाले और अपने मुर्दे गंगा में बहादिये नतीजा यह हुआ कि गंगा तो उन्हें पवित्र न कर पाई लेकिन उस गंदगी ने गंगा की पवित्रता ख़त्म करके उसे ज़हरीला बना गिया यहाँ तक कि, बनारस में गंगा जल आचमन के लायक भी न बची। आपने हिन्दू धर्म की तुलना गंगा से ठीक ही की है, गंगा हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज का दर्पण,प्रतिक है जो दुर्दशा आज गंगा की है वही हिन्दू धर्म व हिन्दू समाज की भी है यह एक दुखद सत्य है । बहुतसे फलसफ़ियों और कवियों ने अपने गंदे विचार पवित्र ज्ञानगंगा में मिलाकर उसे भ्रष्ट कर दिया और भारत के विश्व गुरु पद को नष्ट कर दिया। भारत को उसका खोया हुआ गौरव वापस दिलाना है , हरेक गंदगी को जलगंगा और ज्ञानगंगा दोनों से हटाना है,। इस महान सेवा और सहयोग के लिए मुस्लिम आलिम और अवाम सभी तैयार हैं, हमारा प्रस्ताव स्वीकार कीजिये, हमारा प्रस्ताव भी गंभीर और प्रयास भी सार्थक होंगे, ऐसा हमें विश्वास है आप भी विश्वास कीजिये । विश्वास को अरबी में ईमान कहते हैं .भाषा का अंतर है लेकिन अर्थ एक है।
(३) ख़तना एक धार्मिक संस्कार है इससे पवित्र रहना आसान है. बीमारियों की रोकथाम में भी मददगार है जगह-जगह स्थापित लिंग के स्टेच्यूज़ पर भी लटकी हुयी खाल दिखई नहीं देती, इससे पता चलता हैं कि यहूदियों और मुसलमानों से पहले भी ज्ञानी पुरुष अपने लिंग को लटकी हुई खाल से मुक्त रखना पसंद करते थे।
ख़तना पूरी तरह वैज्ञानिक है खतना का वैज्ञानिक आधार यहाँ देखेंयहाँ पढ़ें
@ रविन्द्र जी ! कुरआन के सम्बन्ध में ग़लतफहमियों के निराकरण लिए देखें स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी का महान शोध ग्रन्थ इस लिंक पर http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
@ श्री रविन्द्र जी ! आप मुसलमानों से कह रहे हैं कि यदि वे श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तो उनकी जन्मभूमि पर जबरन और नाजायज़ तौर पर बनाई गई मस्जिद हिन्दुओं को वापस कर दें।
मुफ़्तख़ोरी के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप
1. इस संबंध में मुझे यह कहना है कि अयोध्या हो या काशी हरेक जगह मस्जिदें और मुसलमान कम हैं। अगर कोई शासक वहां मन्दिर तोड़ता तो सारे ही तोड़ता और जैसा कि कहा जाता है कि हिन्दुओं से इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा जाता था और जो इस्लाम कुबूल नहीं करता था, उसकी गर्दन काट दी जाती थी। अगर मुस्लिम शासकों ने वाक़ई ऐसा किया होता तो इन हिन्दू धर्म नगरियों में आज मुसलमान और मस्जिदें अल्प संख्या में न होतीं। इनकी संख्या में कमी से पता चलता है कि मस्जिदें जायज़ तरीक़े से ही बनाई गई हैं लेकिन ऐतिहासिक पराजय झेलने वाले ख़ामख्वाह विवाद पैदा कर रहे हैं ताकि इस्लाम को बदनाम करके उसके बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। अगर लोग इस्लाम को मान लेंगे तो फिर न कोइ शनि को तेल चढ़ाएगा और न ही कोई मूर्ति को भोग लगाएगा। इस तरह बैठे बिठाए खाने वालों को तब खुद मेहनत करके खानी पड़ेगी। अपनी मुफ़्तख़ोरी को बनाये रखने के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं जिन्हें निष्पक्ष सत्यान्वेषी कभी नहीं मानते।
सब कुछ पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है।
2. इससे यह भी पता चलता है कि हिन्दुओ को अपनी मान्यताओं पर खुद ही विश्वास नहीं है। हिन्दुओं का मानना है कि जो कुछ इस जन्म में किसी को मिलता है वह सब प्रारब्ध के अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। बिना भोगे यह क्षीण नहीं होता। ईश्वर भी इसे नहीं टाल सकता। यही कारण है कि अर्जुन आदि को भी नर्क में जाना पड़ा था। आपके पिछले जन्मों के फल आज आपके सामने हैं इसमें मुसलमान कहां से ज़िम्मेदार हो गया भाई ?, ज़रा सोचो तो सही। जो कुछ हुआ सब प्रभु की इच्छा से ही हुआ, ऐसा आपको मानना चाहिए अपनी मान्यता के अनुसार।
श्रीकृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस केवल मुसलमान हैं
3. केवल मुसलमान ही श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तब क्यों वे मस्जिद को उन लोगों को दे दें जो श्रीकृष्ण जी को ‘चोर‘ , ‘जार‘ ‘रणछोड़‘ और ‘जुआरियों का गुरू‘ बताकर उनका अपमान कर रहे हैं। अपनी कल्पना से बनाई मूर्ति पर फूल चढ़ाकर मन्दिरों में नाचने और ज़ोर ज़ोर से ‘माखन चोर नन्द किशोर‘ गाने वालों का श्री कृष्ण जी से क्या नाता ?
श्री कृष्ण जी से नाता है उन लोगों का जो श्री कृष्ण जी के आचरण को अपनाये हुए हैं।
श्री कृष्ण जी ने एक से ज़्यादा विवाह किये और जितने ज़्यादा हो सके उतने ज़्यादा बच्चे पैदा किये। शिकार खेला और इन्द्र की पूजा रूकवायी और अपनी कभी करने के लिये कहा नहीं। ये सभी आचरण धर्म हैं जिनसे आज एक हिन्दू कोरा है । अगर आज ये बातें कहीं दिखाई देती हैं तो केवल मुसलमानों के अन्दर। इसीलिए मैं कहता हूं कि केवल मुसलमान ही श्री कृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस हैं क्योंकि ‘धर्म‘ आज उनके ही पास है।
सब तरीक़े ठीक हैं तो फिर किसी एक विशेष पूजा-पद्धति पर बल क्यों ?
4. आप यह भी कहते हैं कि उपासना पद्धति से कोई अन्तर नहीं पड़ता सभी तरीक़े ठीक हैं। सभी नामरूप एक ही ईश्वर के हैं। तब आप क्यों चाहते हैं कि मस्जिद को ढहाकर एक विशेष स्टाइल का भवन बनाया जाए और उसमें नमाज़ से भिन्न किसी अन्य तरीक़े से पूजा की जाए ?
इसके बावजूद आप एक मस्जिद क्या भारत की सारी मस्जिदें ले लीजिए, हम देने के लिए तैयार हैं। पूरे विश्व की मस्जिदें ले लीजिए बल्कि काबा भी ले लीजिये जो सारी मस्जिदों का केन्द्र आपका प्राचीन तीर्थ है लेकिन पवित्र ईश्वर के इस तीर्थ को, मस्जिदों को पाने के लायक़ भी तो बनिये। अपने मन से ऐसे सभी विचारों को त्याग दीजिए जो ईश्वर को एक के बजाय तीन बताते हैं और उसकी महिमा को बट्टा लगाते हैं।
ऐसे विचारों को छोड़ दीजिए जिनसे उसका मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों में लोगा खोट निकालें। आप खुद को पवित्र बनाएं, ईश्वर और उसके सत्पुरूषों को पवित्र बताएं जैसे कि मुसलमान बताते हैं। तब आपको कोई मस्जिद मांगनी न पड़ेगी बल्कि काबा सहित हरेक मस्जिद खुद-ब-खुद आपकी हो जाएगी।
आओ और ले लो यहां की मस्जिद, वहां की मस्जिद।
ले लो मदीने की मस्जिद, ले लो मक्का की मस्जिद ।।
@ मान भाई ! ऊंचा नाम मालिक का है। जब आप उसकी शरण में आएंगे तो आपका यह भ्रम निर्मूल हो जाएगा कि कोई आपको नीचा दिखाना चाहता है। यहां केवल सच है और प्यार है, सच्चा प्यार ।
aap ke shaanti ki kaamna karta hun .
@ MAN जी !
@ रविन्द्र जी !
(१ ) आपने कहा कि मूल ग्रन्थ से छेड़-छाड़ हुई है, मैंने प्रेस का नाम भी दिया है " गीता प्रेस गोरखपुर" और यह प्रेस भारत में धार्मिक पुस्तकें छापने में प्रथम स्थान रखती है, इसलिए वहां ऐसी घटिया हरकत ( छेड़-छाड़ ) की कोई गुंजाईश नहीं ।
(२ ) गंगा में गिरकर गन्दे नाले पवित्र हो जाते हैं, आप कि यह सोच गलत है. इसी के चलते हिन्दुओं ने तमाम गंदे नाले और अपने मुर्दे गंगा में बहादिये नतीजा यह हुआ कि गंगा तो उन्हें पवित्र न कर पाई लेकिन उस गंदगी ने गंगा की पवित्रता ख़त्म करके उसे ज़हरीला बना गिया यहाँ तक कि, बनारस में गंगा जल आचमन के लायक भी न बची। आपने हिन्दू धर्म की तुलना गंगा से ठीक ही की है, गंगा हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज का दर्पण,प्रतिक है जो दुर्दशा आज गंगा की है वही हिन्दू धर्म व हिन्दू समाज की भी है यह एक दुखद सत्य है । बहुतसे फलसफ़ियों और कवियों ने अपने गंदे विचार पवित्र ज्ञानगंगा में मिलाकर उसे भ्रष्ट कर दिया और भारत के विश्व गुरु पद को नष्ट कर दिया। भारत को उसका खोया हुआ गौरव वापस दिलाना है , हरेक गंदगी को जलगंगा और ज्ञानगंगा दोनों से हटाना है,। इस महान सेवा और सहयोग के लिए मुस्लिम आलिम और अवाम सभी तैयार हैं, हमारा प्रस्ताव स्वीकार कीजिये, हमारा प्रस्ताव भी गंभीर और प्रयास भी सार्थक होंगे, ऐसा हमें विश्वास है आप भी विश्वास कीजिये । विश्वास को अरबी में ईमान कहते हैं .भाषा का अंतर है लेकिन अर्थ एक है।
(३) ख़तना एक धार्मिक संस्कार है इससे पवित्र रहना आसान है. बीमारियों की रोकथाम में भी मददगार है जगह-जगह स्थापित लिंग के स्टेच्यूज़ पर भी लटकी हुयी खाल दिखई नहीं देती, इससे पता चलता हैं कि यहूदियों और मुसलमानों से पहले भी ज्ञानी पुरुष अपने लिंग को लटकी हुई खाल से मुक्त रखना पसंद करते थे।
ख़तना पूरी तरह वैज्ञानिक है खतना का वैज्ञानिक आधार यहाँ देखेंयहाँ पढ़ें
@ रविन्द्र जी ! कुरआन के सम्बन्ध में ग़लतफहमियों के निराकरण लिए देखें स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी का महान शोध ग्रन्थ इस लिंक पर http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
मै शंकर का वह क्रोधानल,कर सकता जगती क्षार-क्षार.
मै डमरू की वह प्रिय ध्वनि हूँ,जिसमे नाचता भिसन संहार.
रणचंडी की अतृप्त प्यास,मै दुर्गा का उन्मत्त हास.
मै यम की प्रलयंकर पुकार,जलते मरघट का धुआधार.
फिर अंतरतम की ज्वाला से,जगती में आग लगा दूं मै.
गर धधक उठे जल,थल-अम्बर,तो फिर इसमें कैसा विस्मय.
हिन्दू तन मन,हिन्दू जीवन,रग-रग हिन्दू मेरा परिचय.
मै आदि पुरुष निर्भयता का,वरदान लिए आया भू पर.
पय पीकर सब मरते आये,लो अमर हुआ मै विष पीकर.
अधरों की प्यास बुझाई है,मैंने पीकर वो आग प्रखर.
हो जाती दुनिया भास्म्सार,जिसको पल भर में ही छूकर.
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन.
मै नर,नारायण-नीलकंठ,बन गया न इसमें कुछ संसय.
हिन्दू तन-मन,हिन्दू जीवन,रग रग मेरा हिन्दू परिचय
जमाल जी का बहुत बहुत धन्यवाद जो उन्हों ने लक्ष्मीशंकराचार्य जी का महान शोध ग्रन्थ के बारे में बताया .
लक्ष्मीशंकराचार्य जी शायद इस्लाम की कुछ अच्छईया बताना भूल गए है . तो मेरा फर्ज है की मैं आप को बताऊ .आप के पैगम्बरों पर एक महान शोध अनवर शेख जी ने भी किया है .
सत्य जानने का अवसर मत गवाईये .आखिर एक दिन आप ऊपर वाले को क्या जवाब देंगे .
अनवर शेख जी की दूरदर्शी द्रष्टि को कोटि कोटि प्रणाम
ये देखिये सत्य और इस को आत्मसात कीजिये ,
hindusthangaurav.com/books/islam_arab_samrajyavad.pdf
जमाल साहब दाद देनी पड़ेगी आपकी, खतने का तो वैज्ञानिक आधार हे, लेकिन ८४ हूरो का भी वैज्ञानिक आधार हे क्या ?हमें समझाइए ,ये सभी BATE सांकेतिक हे ?हा हा हा बिना खाल का लिंग मतलब ?
जमाल कश्मीर घाटी मे भी सिखों से सद्भाव एवं प्रेम से इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया है न?
धन्य है इस्लाम, उसकी प्रेम एवं शांति की शिक्षा और धन्य है उसके मानने वाले। जब इस्लामी राज्य नहीं रहा तब यह हाल है, जब इस्लाम का राज्य था उसके बारे मे मुझे समझने मे कोई भी गलतफहमी नही हो सकतई इस उदाहरण के बाद। वैसे तुम्हारे जानकारी के लिये, विभाजन के पश्चात पाकिस्तान मे लगभग १०% हिन्दु एवं हिन्दुस्तान मे इतने ही मुस्लिम रह गए थे, आज पकिस्तान मे हिन्दु एवं सिख मिल कर ३% बचे हैं (सब प्रेम के वशीभूत हो कर, पाकिस्तान के अखबार तो गलत खबर छापते हैं जजिया एवं अपहरण के बारे मे) और हिन्दुस्तान जहां मुस्लिमों पर दिन रात अत्याचार होते रहते हैं १८%। काश हिन्दुस्तान के हिन्दु भी प्रेम करना जानते होते!
रही बात मुफ्त्खोरी की तो इमाम सारे के सारे मुफ्तखोर हैं, साथ ही अनेक किस्से सामने आए जब इन सबने पैसे ले कर फतवे दिए, अर्थात भ्रष्ट भी।
निश्चित तौर पर हम जो भी भोगते हैं अपने पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर भोगते हैं, तो आज मै जो तुम्हारे कुप्रचार का विरोध कर रहा हूँ वो अगले जन्म को सुधारने के लिए।
तुमने कहा कि मुस्लिम क्यों श्रीकृष्ण का मंदिर वापस दें - Impact (कैरानवी) पढ ले जमाल मानता है कि मुस्लिमों ने मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाई है, अब आगे से सारे सबूत भी यही से मांगना मुझसे नहीं। जमाल तुम्हारे लिए, तुम असली वारिस हो योगेश्वर श्रीकृष्ण के तो उनके जगह पर उनसे संबंधित कर्म करो, उनका वहां से उन्मूलन क्यों?
महक - जमाल के इस स्वीकरिक्ति के आलोक मे एक प्रश्न तुमसे - क्या तुम भी कृष्ण मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाना उचित समझते हो? राजेन्द्र स्वर्णकार - कृपया आप भी अपने विचार इस पर रखें।
एक ईश्वर या तीन ईश्वर - जमाल तुमको पहले भी समझा चुका हूँ यह सिर्फ समझाने के लिये है, अन्यथा गीता मे योगेश्वर श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि सब एक हैं। शेष जब तक तुम अपने मस्तिष्क मे जहर भर कर रखोगे कभी नही समझोगे। हमे कोई भ्रम नही है कि यहाँ सारे post हिन्दुओं को लक्ष्य बना कर उन्हे नीचा दिखाने के लिये हैं।
जमाल गीताप्रेस का नाम बच्चा जानता है, मैने कहा, बचपन से हि धार्मिक पुस्तकें पढने मे मेरी रुचि रही माता जी के प्रभाव से मैने भागवत पुराण ४-५ बार पढी है और यह उल्लेख मेरी पुस्तक, जो कि गीताप्रेस से ही है, कही नही आया। अतः मैं इसे मानने से इंकार करता हूं।
जमाल मुझे किसी निराकरण की आवश्यकता नही है, जिस प्रकार तुम्हारे पास भागवत पुराण है, मैने भी इस january मे पुस्तक मेला से कुरान की एक प्रति खरीदी है, उदाहरण उसी से दिए हैं।
man जी इनसे पूछिए कि नसबंदी विरोध का वैज्ञानिक आधार क्या है?
सिन्धु नदी पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते, जो स का उच्चारण ह करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू, और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे।
बिलकुल सही कहा ..
सनातन धर्म हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम है
बहस का टोपिक क्या है?????
@ प्यारे भाई रविन्द्र जी !
प्लीज़ गुस्सा थूक दीजिये
1. जब आदमी गुस्से में होता है तो उसे फिर कुछ भी नज़र नहीं आता। अगर आपको भागवत में मेरे दिये हवाले नज़र नहीं आ रहे हैं तो न सही, दयानन्द जी का वचन तो आपके सामने है, आप उस पर भी चुप हैं। आपको उसे तो मानना ही चाहिये।
2. आप कह रहे हैं कि मैंने मन्दिरों को तोड़ा जाना मान लिया है। जबकि मैं इसके ठीक उलट यह कह रहा हूं कि मुसलमान बादशाहों का कल्चर मन्दिर तोड़ना कभी नहीं रहा है। यही कारण है कि देश में आज भी हिन्दू अक्सरियत में हैं और हिन्दू तीर्थ नगरियों में भी मुसलमान और मस्जिदें अल्प संख्या में हैं और किसी किसी में तो बिल्कुल भी नहीं हैं।
भारतीय संस्कृति खुद को सदा नित नूतन कैसे रखती आयी है ?
3. आप कह रहे हैं कि मैं हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार करना छोड़ दूं और मैं कह रहा हूं कि मैंने आज तक हिन्दू आस्थाओं पर कोई प्रहार किया ही नहीं। आप मेरे सभी लेखों में ऐसा कुछ कहीं एक जगह भी दिखा दीजिये, मैं तुरंत क्षमा याचना सहित उसे हटा लूंगा।
सत्यान्वेषण के लिये खण्डन-मण्डन महापुरूषों का आचरण रहा है। महापुरूषों के अनुसरण में ही कल्याण है। इसमें मुझे ज़रा भी शक नहीं है और आपको भी नहीं होना चाहिये। इस प्रकार मैं हिन्दू आस्थाओं को पुष्ट ही कर रहा हूं।
4. इसी प्रक्रिया के द्वारा भारतीय संस्कृति सदा अन्य संस्कृतियों के श्रेष्ठ गुणों को आत्मसात करके खुद सबल बनाती आयी है, विदेशी हमलावरों को पचाती आयी है। जो भी यहां आया वह यहीं का होकर रह गया। केवल अंग्रेज़ यहां से वापस जा सके लेकिन डोन्ट वरी अब भारतीय खुद ही वहां जा बसे हैं। आने वाले समय में वहां भी भारतीय संस्कृति ही हर ओर नज़र आएगी। उनमें विकार आ गये हैं और अगर हमें उन पर अपनी श्रेष्ठता साबित करनी है तो अपने विकार त्यागने होंगे और आपस के झगड़े मिटाकर ‘एक‘ होना होगा।
दूरियां भ्रम हैं
5. दूरियां भ्रम हैं और नफ़रतें बेबुनियाद हैं। पाकिस्तानी कलाकारों को भारत की जनता ने विशेषकर हिन्दू जनता ने सदा ही अपने दिल में बैठाया है। पाकिस्तान में भी हिन्दी मूवीज़ ही देखी जाती हैं और भारतीय कलाकारों को सराहा जाता है। मैं फ़िल्में देखे जाने का समर्थन नहीं कर रहा हूं बल्कि एक हक़ीक़त बयान कर रहा हूं। इससे दोनों तरफ़ की जनता के आपसी लगाव का पता चलता है। दुखद यह है कि फ़िल्में अश्लील और हिंसा प्रधान होती हैं, समाज में जुर्म और अनैतिकता फैलाती हैं।
हिन्दू सद्गुणों की खान होते हैं
6. ‘हिन्दू सद्गुणों की खान होते हैं‘ ऐसा मैं मानता हूं। हिन्दू महापुरूष पवित्र और श्रेष्ठ होते हैं लेकिन किसी भी समाज का हरेक आदमी श्रेष्ठ नहीं हो सकता। हर काल में बहुत सा साहित्य रचा जाता है। धर्म की गति बहुत सूक्ष्म होती है, इसका सही बोध कम लोगों होता है। ज़्यादातर लोग जो मन में आये कहते-लिखते हैं। जिन बातों से महापुरूषों के चरित्र पर दोष आता दिखे, उसे नकार देना ही उचित है। मैं ऐसा ही करता हूं और इसमें महापुरूष का देशकाल नहीं देखता , आप भी ऐसा ही किया कीजिए। श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी वग़ैरह महापुरूषों के बारे में समाज में जो भ्रम फैला हुआ है उसका निराकरण केवल मेरे तरीक़े से ही संभव है।
मेरा साथ दीजिये , मेरा विरोध अनुचित है।
मुसलमान करते हैं हिन्दुओं से प्यार
7. मुसलमान भी हिन्दुओं से प्यार करते हैं। मुसलमानों के त्यौहार और विवाह आदि के मौक़ों पर वे हिन्दू भाईयों को बुलाते हैं और वे जाते हैं। हिन्दू भाईयों के विवाह आदि में मुसलमान भी जाते हैं। दोनों के दरम्यान प्यार भरे रिश्ते का यह खुला सुबूत है।
8. दोनों समाजों में लालची नेता और क्रिमिनल्स भी हैं। वे अपने स्वार्थ की ख़ातिर हमेशा ही मानवता को रौंदते आये हैं। उनके आचरण से ‘धर्म‘ में या पूरे समुदाय में ही दोष सिद्ध नहीं होता। जो आदमी ऐसा करता है वह तथ्यों के विश्लेषण और निष्कर्ष की विधि से कोरा और नफ़रत में पूरा है, उसके बारे में यही धारणा ज्ञानी लोगों की बनती है।
‘एकत्व‘ के आधार
9. ‘हम केवल शरीर से अलग हैं वर्ना एक ही आत्मा हम सब में प्रवाहित है।‘ भारतीय मनीषियों ने यह सूत्र दिया है।
10. ‘हम सब मनु की संतान हैं।‘
‘हम सब को रचने वाला भी एक ही परमेश्वर है।‘
हमारे पास एकता के ही नहीं बल्कि ‘एकत्व‘ के बहुत मज़बूत आधार हैं। हमें अपने मूल स्वरूप को पहचानना होगा। बस मेरा यही आग्रह है।
क्या मेरा यह आग्रह ग़लत है ?
मालिक सब पर अपनी महर करे
@ Man जी ! आप हंसे , इट मीन्स आपको आनंद आया। आपके हंसते हुए चेहरे की कल्पना करके अच्छा लगा। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं । मैंने रमज़ान के दिनों में और ईद की नमाज़ में विशेषकर अपने लिए जो मांगा वही आप सभी भाईयों के लिये भी मांगा। कुछ लोगों के लिए तो नाम लेकर मांगा और वे नाम वे हैं जो मेरे ब्लॉग पर सदा जगमगाते ही रहते हैं।
अभिषेक जी ! आपकी लैंग्वेज में इम्प्रूवमेंट है, आपको मुबारक हो। अब मैं आपसे कुछ सीख पाऊँगा मेरे मन में ऐसी आशा जगी है। सहमति-असहमति तो चलती ही रहती है लेकिन हमें आपस में आदर भाव सदा बनाए रखना चाहिए।
महक जी इसका जीता जागता प्रमाण हैं। उन्होंने मांसाहार के संबंध में मेरे विचार का ‘जमकर‘ और दूसरों को जमाकर भी विरोध किया लेकिन आप उनके अल्फ़ाज़ में मेरे प्रति उपेक्षा या अनादर का भाव हरगिज़ नहीं देख-दिखा सकते। आप उन्हें उकसा रहे हैं कि वे मेरा विरोध करें । थोड़ा धीरज रखिये ‘वे दिन‘ क़रीब आ रहे हैं जब वे मेरा विरोध करेंगे।
उनके विरोध से मुझे खुशी होती है क्योंकि वे नफ़रत में अंधे होकर मेरा विरोध नहीं करते कि मेरी हर बात का विरोध करने या मेरी नीयत पर शक करने की उन्होंने कोई क़सम खा रखी है। वे मेरी सही बात का समर्थन भी करते हैं और किसी स्वयंभू मठाधीश से नहीं डरते। वे एक बुद्धिजीवी हैं। आलोचना और समीक्षा से लेखक के दोषों का निराकरण होता है, उसे दिशा मिलती है। मुझे महक जी से बहुत कुछ मिला है। उनका होना यह बताता है कि ‘दूरियां भ्रम हैं और नफ़रतें बेबुनियाद हैं।‘
@ महक जी ! आपने मेरे ब्लॉग को महकाया , आपका शुक्रिया ।
सुज्ञ जी भी एक ऐसे ही साथी हैं, उनकी वाणी भी प्रेरणा देती है। हम उनसे भी वाणी-कौशल सीख सकते हैं। जाने आजकल कहां हैं ?
‘तेरे दर्सन को तरसत नैन प्यारे‘
‘कहां हो सुज्ञ जी भाई हमारे‘
मालिक सब पर अपनी महर करे। आमीन
अब मेरे साथ सभी पोस्ट का मूल विषय दोहराते हुए मान लें कि - ‘ईश्वर पवित्र है और उसका मार्ग दिखाने वाले महापुरूष भी , चाहे वे किसी देशकाल में जन्मे हों‘
###@ प्यारे भाई रविन्द्र जी !
नसबंदी का समर्थन किसी धर्मग्रंथ में नहीं मिलता। इटली और चीन आदि जिन देशों में कमअक्ल लोगों ने इस पर अमल किया आज उनमें बूढ़े लोगों की तादाद ज़्यादा है और नौजवानों की कम , लड़कियों की तादाद तो लड़कों से भी कम है । कुछ देश इस योजना को बंद कर चुके हैं और बाक़ी सोच रहे हैं । भारत में लोगों ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया यही वजह है कि आज दुनिया में सबसे ज़्यादा युवा शक्ति भारत के पास है। अगर नेता लोग अपनी ‘कफ़नचोरी‘ की आदत से बाज़ आ जायें तो हर चीज़ यहां है। गोदामों से बाहर सड़ता हुआ अनाज इसका गवाह है।
वंदे ईश्वरम्
जय हिन्द
ऊँ शांति
जमाल मैं गुस्से मे नहीं हूँ, मेरा मुझ पर पूर्ण नियंत्रण है, पर हाँ यह तुम पर जरूर लागु होता है इसीलिए तुमने जो स्वयं लिखा वो तुम्हे नज़र नही आता, तुम्हारे reference के लिये तुम्हारे ही post से तुम्हारा ही comment तुमको देता हूँ "मुसलमान ही श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तब क्यों वे मस्जिद को उन लोगों को दे दें जो श्रीकृष्ण जी को ‘चोर‘ , ‘जार‘ ‘रणछोड़‘ और ‘जुआरियों का गुरू‘ बताकर उनका अपमान कर रहे हैं।" यह मेरे इस comment के जवाब मे है "श्रीकृष्ण की जन्मस्थली पर जबरन कब्जा कर बनाई मस्जिद श्रीकृष्ण जी के परम हितैषी मुस्लिम बंधु कब हटा रहे हैं।" तो यह निश्चित तौर पर मथुरा के बांके बिहारी के मंदिर पर कब्जा कर बनाई गई मस्जिद के बारे मे बात हो रही है। दोबारा कहुंगा कि तुमको अगर कुरान के वो references नज़र आ गए हो तो ठीक नही तो तुम भी जरा गुस्सा छोड कर कुरान फिर से पढो।
रही बात भागवत पुराण पढने की तो मैने उसे आज नही पहले भी कई बार पढा है और मैं अपनी बात पर कायम हूँ कि उसमे किसी देवता के द्वारा अपनी पुत्री के बलात्कार की बात नही है।
हिन्दुओं के आस्था चिन्हो पर प्रहार का यह धृणिततम रूप है जिसमें एक देवता के द्वारा अपनी पुत्री के बलात्कार की झूठी बात लिखते हो तुम। कोई भी व्यक्ति ऐसे को पूजनीय नही मान सकता, फिर धर्म ग्रन्थ मे इस तरह की बात का आना असंभव है।
महापुरुषों के विषय मे जो भ्रम फैला हुआ है उसका निराकरण सिर्फ तुम्हारे तरीके से ही संभव है यह तुम्हारा दंभ दर्शाता है, क्या तुम अपने को हम सब से श्रेष्ठ मानते हो, अगर हाँ तो किस आधार पर? अगर नही तो अपना व्यक्तव्य वापस लो।
तुमने मेरे इस बात पर चुप्पी क्यों साध ली कि अगर हिन्दुस्तान का हिन्दु भी porkistan के मुस्लिमों जितना प्रेम करने वाला होता तो आज यहाँ वो १८% नही होते। तुम हमेशा कहते आए हो कि इस्लाम का फैलने का कारण उसके द्वारा दिया गया प्रेम का संदेश है, मैं बार बार पूछ रहा हूँ कि यह संदेश कश्मीर मे सिखों को दिए जाने वाले पप्रेम जैसा ही रहा हई, अगर नही तो जाओ पहले कश्मीर मे सिखों को बचाओ, यहाँ जबानी जमाखर्च करने से काम नही चलेगा।
मैने सदिव मुस्लिमों को उनके आचरण से पैमाने पर कसा है, अगर कुरान देखने जाऊ (जिसकी हिन्दी प्रति मेरे पास है) तो बहुत ही भयंकर दृश्य सम्मुख आता है, पर मै उस पर नही जाता, मै कहता हूँ कि इस्लाम के अनुयायियों को देखो, और देखता हूँ कि वो आतंकवाद पर रणनीतिक चुप्पी साध लेते हैं।
भागवत पुराण मे क्या लिखा है वो हमे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नही करता है जिस पर इतना हल्ला मचा रहे हो, बहुत सारे हिन्दु तो इस पुराण का नाम भी नही जानते होंगे, मैं बचपन से ही इन पुस्तकों को पढता आया हूँ इसलिये जानता हूं, इस पर लिख कर दूसरों को नीचा दिखाने के अलावा क्या पाना चहते हो?
पर कश्मीर मे सिखों पर, हिन्दुओं पर क्या हो रहा है वह हमे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, उस पर लिखो, है हिम्मत? मैं शांति के दूत, प्रेम के पुजारी मुस्लिमों से पूछता हूँ कि यदि कार्टून डेनमार्क मे बनाए जाते है या कुरान अमेरीका मे जलाई जाती है (जो कि बाद मे झूठी खबर सिद्ध हुई) तो दंगे हिन्दुस्तान में क्यों होते हैं? शायद हम हिन्दु इस्लाम मि दी गई शांति और प्रेम की परिभाषा नही जानते - एक पोस्ट इस पर भी हो जाए कि कैसे प्रेम से दंगे किए जाते हैं।
नसबंदी - निश्चित तौर पर किसी धर्म्ग्रन्थ मे इसका जिक्र नही है क्योंकि यह तकनीक नई है - जानकारी के लिए।
४ टुकडों मे टिप्पणी देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ, मेरा पूरा comment spam मे जा रहा था अतः ऐसा करना पडा।
जमाल जी ,अगर मेरे शब्दों से आप को ठेस पहुची है तो इस का मुझे खेद है क्यों की शब्दों से ज्यादा महवपूर्ण वे भाव है जिनके लिए वे प्रयोग किये जाते है .
आप की नियत पर शक करने की मैंने कोइ कसम नही खाई है पर क्या करू आप के लेखो के अध्यन के बाद आप नियत पर शक नही यकीन हो जाता है .
एक बात की तारीफ करूँगा ,आप लछ्य स्पस्ट है और उस को केंद्र बिंदु मान कर आप अपने लेखो का चक्रवियुह रच रहे है जिसमे समझना हर किसी के बस की बात नही और महक जी जैसे फस रहे है .
आप अपने लेखो में सत्य के दर्शन के बात करते है तो मैं आप के शिष्य को वास्तविक सत्य दिखा रहा हू और आप उसे भड़काना कह रहे है .
एक और बात ''वन्दे ईश्वरम'' ही नही ''वन्दे मातरम'' भी कहिये आखिर आप एक भारतीय है.
वैसे हिंदी में इस्लामीकरण के प्रसार के लिए ''वन्दे ईश्वरम '' और ''सीधा मार्ग (बिस्मिल्लाह वाली आयत में वर्णित )''.जैसे शब्दों का अच्छा माया जाल रचते है आप .
ईश्वर भटके हुए लोगो को ''सच्चा मार्ग '' दिखाए और सब का कल्याण करे .
रवींद्र जी भागवत पर आप स्वामी दयानंद जी के विचार से सहमत है या असहमत । या आपको सत्यार्थ प्रकाश मे भी आपको यह प्रसंग नही मिला अनवर साहब ने तो पूरा हवाला दिया है लेकिन शायद आपको वहाँ भी नही मिला होगा और दूसरी बात यह की यहाँ कूटनीति या राजनीति की बात नही हो रही है यहाँ तो मुद्दा एक महापुरुष के संबंध मे कही गई घटिया बातों का निराकरण करना लोगों को यह समझाना है किसी को चोर आदि बताना उस महापुरुष का अपमान है आदर नही । आप भी मुद्दे पर बात करें तो अच्छा होगा । अगर प्रश्नों के उत्तर आपके पास नही है तो कोई बात नही
अयाज मैन कूटनीति राजनीति की बात नही कर रहा हूँ मै तो आईना दिखा रहा हूँ। लेखक कहता है "श्री कृष्ण जी का आदर मुसलमान भी करते हैं बल्कि सच तो यह है कि उनका आदर सिर्फ़ मुसलमान ही करते हैं" और मैं कहता हूँ कि यह बात झूठ है। नही तो मथुरा के मंदिर को मुक्त करो।
मैं मुद्दे पर ही बात कर रहा हूँ मैने सारे प्रसंग लेख से ही लिए हैं, और मैं यह अधिकार किसी को नही दे सकता कि सारा का सारा विवाद सिर्फ उसकी मर्जी से संचालित होगा।
रही बात स्वामी दयानन्द के द्वारा लिखे गये के सत्यार्थ प्रकाश मे पुराणो के विषय मे, तो मैं पहले ही कह चुका हूँ कि हिन्दुओ को तो पुराण मालूम भी नही, पर हाँ मुस्लिम कुरान भली प्रकार से जानते हैं अपने धर्म को भली प्रकार से जानते हैं, अगर आपको स्वामी जी मे इतनी ही रुचि है तो उन्होने एक पूरा अध्याय इस्लाम की कुरीतियों, कुरान एवं मुहम्मद की आलोचना को समर्पित कर रखा है सत्यार्थ प्रकाश मे, अगर इच्छा हो तो मै अगले comment मे उसके references दूँ, पचा सकोगे? यहाँ हिन्दु धर्म ग्रन्थ की बुराई हो रही है तो मजा आ रहा है?
फिर मुझसे तुमको कहते नही बनेगा कि "अगर प्रश्नों के उत्तर आपके पास नही है तो कोई बात नही" क्योंकि मै उसी ग्रन्थ का हवाला दे रहा होऊँगा जिसकी तुम बात कर रहे हो। अगर बात करनी है तो पूरी करो, coose & pick policy नही चलेगी।
@ श्री रविन्द्र जी और श्री अभिषेक जी ! मैं स्वयं को श्रेष्ठ तो नहीं मानता क्योंकि निजी तौर पर मैं श्रेष्ठता का स्वामी नहीं हूं। मैं एक जीवन जी रहा हूं और नहीं जानता कि अन्त किस हाल में होगा, सत्य पर या असत्य पर, मालिक के प्रेम में या फिर तुच्छ सांसारिक लोभ में ?
श्रेष्ठता का आधार कर्म बनते हैं। जब जीवन का अन्त होता है तब कर्मपत्र बन्द कर दिया जाता है। जिस कर्म पर जीवनपत्र बन्द होता है यदि वह श्रेष्ठ होता है तो मरने वाले को श्रेष्ठ कहा जा सकता है। मेरी मौत से ही मैं जान पाऊँगा कि मैं श्रेष्ठ हूं कि नहीं ? तब तक आप भी इन्तेज़ार कीजिये।
मैं अपने बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन ईश्वर अवश्य ही श्रेष्ठ है, उसका आदेश भी श्रेष्ठ है। उसकी उपासना करना और उसका आदेश मानना एक श्रेष्ठ कर्म है। ऋषियों का सदा यही विषय रहा है। मेरा विषय भी यही है और आपका भी यही होना चाहिए। भ्रम की दीवार को गिराने के लिए विश्वास का बल चाहिए। पाकिस्तान क्या चीज़ है सारी एशिया का सिरमौर आप बनें ऐसी हमारी दुआ और कोशिश है। इसके लिए चाहिए आपस में एकता बल्कि ‘एकत्व‘।
हमारी आत्मा एक ही आत्मा का अंश है तो फिर हमारे मन और शरीरों को भी एक हो जाना चाहिए। इसी से शक्ति का उदय होगा, इसी शक्ति से भारत विश्व का नेतृत्व करेगा। भारत की तक़दीर पलटा खा रही है, युवा शक्ति ज्ञान की अंगड़ाई ले रही है। जो महान घटित होने जा रहा है हम उसके निमित्त और साक्षी बनें और ऐसे में क्यों न विवाद के सभी आउटडेटिड वर्ज़न्स त्याग दें।
आ ग़ैरियत के परदे इक बार फिर उठा दे।
बिछड़ों को फिर मिला दें नक्शे दूई मिटा दें।।
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती।
आ इक नया शिवाला इस देश में बना दें।।
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ।
दामाने आसमाँ से इस का कलस मिला दें।।
हर सुबह उठ के गाएं मंत्र वह मीठे मीठे।
सारे पुजारियों को ‘मै‘ पीत की की पिला दें।।
शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है।
धरती के बासियों की मुक्ति प्रीत में है।।
देख लिया अनवर जी ,मैंने आपसे क्या कहा था लेकिन आप मानें तब ना ,जनाब अब तो समझ जाइए की आपकी एकता की किसी भी अपील का उन लोगों पर कोई असर नहीं होने वाला जिनका main agenda ही आपकी हर बात का विरोध करना है फिर चाहे वो सही हो या गलत ,वे मानकर बैठे हैं की आप जो भी कहेंगे गलत ही कहेंगे ,Mr.Ravindr के तो कहने ही क्या ,उनकी बातें और तर्क बहस कम और धमकी अधिक प्रतीत होती है ,
अभिषेक जी ने अभी-२ थोड़ी जिम्मेदारी पूर्वक अपनी बात ज़रूर रखी है लेकिन आपके प्रति वो पूर्वाग्रह अभी भी नहीं छोड़ा की ये सब आपका रचा हुआ चक्रव्यूह है
मैं इस पूरी बहस में नहीं पड़ना चाहता था क्योंकि मेरा ग्रंथों के विषय में ज्ञान इतना अधिक नहीं है जितना की इस बहस में भाग लेने वाले माहानुभावों का लेकिन एक बात आपको फिर कहता हूँ जमाल जी के बहस वहाँ पर की जाती है जहाँ पर दोनों पक्ष अपने-२ पूर्वाग्रहों को side में रखकर आपस में बातचीत करें ,यहाँ पर Mr.Ravindr तो इस बात के लिए लड़ रहें हैं की " कौन सही है " जबकि बहस की दिशा होनी चाहिए की " क्या सही है "
मुझे लगता है की आपको अब इस पूरी बहस का अंत कर देना चाहिए क्योंकि इसका कोई नतीजा नहीं निकलना वाला
महक
महक यह तो मुझे मालूम है कि तुम्हारा ज्ञान धर्म ग्रन्थों मे नही है यह तो अच्छी तरह से समझ मे आता है कि जिस प्रकार बिना तथ्यों को जांचे तुम जमाल की हर बात को सही मानते हो।
रही बात मेरा बहस का विषय क्या है तो समझा दूं कि मेरे बहस का विषय कभी भी मूलतः धर्म ग्रन्थ नही रहे, उनसे मेरा मोहभंग बहुत पहले हो चुका है, मैने जो कुछ references दिये वो सिर्फ कुछ लोगो को आईना दिखाना था जो जरूरी हो रहा था।
मैं पूछता हूं कि तुम ही बताओ, आज कौन हिन्दु धर्मग्रन्थों के अनुसार आचरण कर रहा है जो उस पर विवाद हो, अगर कुछ कहना करना ही है तो वर्तमान आचरण पर करो।
देखो अभी जामा मस्जिद पर आक्रमण हुआ, commonwealth गेम को विफल करने के लिए, क्या यह वही जेहादी मानसिकता नही है जिसकी ओर मै इशारा कर रहा था? आखिर इन सबको खाद पानी किधर से मिल रहा है? क्यों नही मुस्लिम नेतृत्व इस पर ध्यान देता है? इनके जो फतवे आतंकवाद के खिलाफ हैं भी वो बहुत सारे अगर मगर के साथ हैं (खबर्दार हमे निशाना न बनाया जाय वगैरह) पर जब जबरन बुर्का पहनाने की बात आती है तो यहाँ अगर मगर सब छूट जाता है।
अब तुम बताओ कि क्या सही है, मृत कथाओं के उपर बहस करना और दूसरों को नीचा दिखाना या वर्तमान पर मनन करना और उसको सुधारने का प्रयास करना।
मेरे ब्लोग देखो, अगर मुझे कुछ कुरीति हिन्दु धर्म मे दिखी (सगोत्र विवाह पर मृत्युदण्ड) मैने उस पर लिखा है, क्योंकि वह वर्तमान है और हमे प्रभावित करता है। हमारे देश को प्रभावित करता है। और मैं मेरे देश को पीछे ले जाने की किसी भी कोशिश का जम कर विरोध करूंगा। चाहे इसके लिये कोई मुझे हठधर्मी ही करार क्यों न दे, मुझे फर्क नही पडता। रही बात तुम्हारी तो वो तुम जानो, मेरा कर्तव्य है कि मैं प्रत्येक नवयुवक को राष्ट्र चिन्तन के लिये प्रेरित करूं मै उसी उद्देश्य से कार्य कर रहा हूं, कुछ युवा जाग जाते हैं कुछ भ्रम जाल मे पडे रहते है, उसके लिए कोइ कुछ नही कर सकता।
भाई आपका आपने धर्म ग्रंथों से मोह भंग हुआ क्योंकि उनमें सच के साथ कवियों ने अपनी कल्पना घुसा दी , जो चीज़ आप मान रहे हैं वही मैं बता रहा हूँ फिर मेरा विरोध किसलिए ?
क्या इसलिए कि मुसलमान कि हर बात का विरोध करना ही है ?
जो नाहक बम फोढ़े उसका सर बिना अगर मगर के तोड़ देना चाहिए .
bhai ravindra nathji kyon faltu me bahas aage badha rahe hain. agar anwer jamal bhai sudhar rahe hain to
kya bura hai. jara sudherne ka mauka
to dijiye. unhone galat hi kya kaha hai.
विरोध किसलिए ?
क्या इसलिए कि अनवर जी की हर बात का विरोध करना ही है ?
हम तो इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं |
हम तो प्रेम को सबसे बड़ा धर्म मानते है |
न हिंदू न मुसलमान हम तो इंसान हैं |
सबसे पहले हम सब भारतीय है.
और हमें भारतीय होने पर गर्व है.
हमारा धर्म तो जिओ और जीने दो |
किसी से भी प्यार करना हमारा धर्म होना चाहिए |
जियेंगे तो देश के लिए, मरेंगे तो देश के लिए!
यही हमारा संकल्प होना चाहिए.
आप सब की थोड़ी थोड़ी बहस पढ़ी
इसको कहते है -फ़टे में टांग अडाना ।।
अरे भाई भाई जान को क्या लेना श्री कृष्ण से
और रविन्द्र जी को को कुरान शरीफ से
कुरान और भागवत जो लिखी गई उनकी
अब असली रूप में नहीं है।
और मृगतृष्णा की तरह झूठी आंस के अलावा कुछ
नहीं ।
हज़ारों लोग ईराक में कत्ल हो रहे है
चरम पन्थियों ने पाक में बच्चों को नहीं छोड़ा
कहाँ है खुदा ।
धर्म युद्ध के काल में हिन्दू नहीं
पारसी और यहूदी शिकार बने
अल्लाह अपने बच्चों का शिकार कर सकता है
सब कहते है कि -- इस कायनात् का एक एक
बन्दा अल्लाह की औलाद है ।।
भाईजान आपकी औलाद यदि आपके अनुसार
न चले तो आप उनके साथ क्या -पारसी यहूदी
जैसा सुलूक करेगे ।।
नहीं न
फिर अल्लाह इतना बेरहम क्यों
क्यों की हम सब परग्रही शक्तियों से संचालित है
ये सब फ़िज़ूल की वकवासे
और पढ़ने और लड़ने बाले फ़ालतू ।
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